सय्यदा नफ़ीसा

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सय्यदा नफ़ीसा
सय्यदा नफ़ीसा की ज़रीह, मिस्र में
जन्मदिन11 रबीअ अल अव्वल वर्ष 145 हिजरी
जन्म स्थानमक्का
मृत्युरमज़ान, वर्ष 208 हिजरी
दफ़्न स्थानमिस्र
निवास स्थानमदीना
पिताहसन बिन ज़ैद बिन हसन
जीवनसाथीइसहाक़ मोतमिन
बच्चेक़ासिम और उम्मे कुलसूम
आयु63 वर्ष
दफन निर्देशांक30°01′44″N 31°14′05″E / 30.029006°N 31.234788°E / 30.029006; 31.234788

सय्यदा नफ़ीसा (अरबी: السيدة نفيسة) या नफ़ीसा ख़ातून (145-208 हिजरी) इमाम हसन मुजतबा (अ) की वंशज और हसन बिन ज़ैद बिन हसन की बेटी हैं। ऐतिहासिक स्रोतों ने उन्हें धर्मनिष्ठ (आबिदा), तपस्वी (ज़ाहिदा), मुहद्दिस, परोपकारी और क़ुरआन हिफ़्ज़ करने वाली महिलाओं में से एक माना है। वह इमाम सादिक़ (अ) के बेटे इसहाक़ मोतमिन की पत्नी थीं। सय्यदा नफीसा, जो पैगंबर इब्राहिम (अ) की क़ब्र पर जाने के लिए मिस्र गई थीं, लोगों के आग्रह पर मिस्र में रुक गईं और अपने जीवन के अंत तक वहीं रहीं। कुछ स्रोतों में, बीमारों को ठीक करने और मिस्र और नील नदी को सूखे से मुक्त करने जैसे चमत्कारों का श्रेय सय्यदा नफीसा को दिया गया है।

सय्यदा नफीसा तफ़सीर और हदीस से परिचित थीं, इसीलिए हदीस के कुछ विद्वानों, जिनमें इमाम शाफ़ेई और अहमद बिन हंबल शामिल थे, ने उनकी हदीस सभाओं में भाग लिया और उनसे हदीसों को उल्लेख किया है। नफीसा ख़ातून का निधन रमज़ान 208 हिजरी में हुआ। इसहाक़ मोतमिन अपनी पत्नी के पार्थिव शरीर को मदीना स्थानांतरित करना चाहते थे; परन्तु मिस्र के लोगों के अनुरोध पर, उन्होने उन्हे वहीं दफ़्न कर दिया। क़ाहिरा में उनका मक़बरा मुसलमानों के लिए तीर्थस्थल है।

जीवनी

नफीसा ख़ातून मक्का में पैदा हुईं और मदीना में पली-बढ़ीं।[१] कहा जाता है कि मदीना में जिस घर में नफीसा रहती थीं वह मदीना के पश्चिम में था और इमाम सादिक़ (अ) के घर के सामने था।[२] किताब दुर्र अलमंसूर फ़ी तबक़ाते रबात अल-खदु़र में, किताब असआफ़ अल-राग़ेबीन से उल्लेख किया गया है कि नफीसा का जन्म 145 हिजरी में हुआ था।[३] अज़ीज़ुल्लाह अतारदी ने उसी वर्ष के रबी अल-अव्वल के 11 वें दिन उनके जन्म का उल्लेख किया है।[४]

उनके पिता से उनका वंश तीन बिचौलियों के माध्यम से इमाम हसन मुजतबा (अ) तक पहुंचता है।[५] उनके पिता हसन बिन ज़ैद, मंसूर अब्बासी की ओर से 5 साल तक मदीना के शासक थे, लेकिन उन्हें हटा दिया गया और कैद कर लिया गया।[६] मक़रेज़ी ने किताब अल रौज़ा अल इंसीया बे फ़ज़्ले मशहद अल-सय्यदा अल नफीसा के हवाले से उल्लेख किया है कि उनकी मां उम्मे वलद थीं।[७]

शादी

नफीसा खातून ने इसहाक़ इब्ने जाफ़र (अ) से शादी की, जिन्हे इमाम सादिक़ (अ) के बेटे इसहाक़ अल-मोतमिन के नाम से जाना जाता है।[८] कुछ मौजूदा स्रोतों ने शादी के समय उनकी उम्र 15 वर्ष ज़िक्र की है।[९] इसहाक़ अल-मोतमिन हदीस के वर्णन में एक भरोसेमंद (सिक़ह) व्यक्ति हैं[१०] और वह सातवें इमाम की उनके बेटे इमाम अली रज़ा (अ) के बारे में उनकी वसीयत के गवाहों में से एक थे।[११] नफीसा ने इसहाक़ बिन जाफ़र के लिए क़ासिम और उम्मे कुलसूम नाम के दो बच्चों को जन्म दिया।[१२]


मिस्र की ओर प्रवास

सख़ावी ने अपने किताब अल-मज़ारात में किताब अलदुर्र अल-मंसूर फ़ी तबकात रबात अल-खदूर के हवाले से उल्लेख किया गया है कि नफीसा ख़ातून 193 हिजरी में हज करने के बाद अपने पति के साथ पैगंबर इब्राहीम (अ) की क़ब्र पर जाने के लिए बैतुल मुक़द्दस (यरूशलम) गई थीं। उसके बाद वह मिस्र गईं। मिस्र के लोगों ने उनका स्वागत किया। वह सबसे पहले मिस्र के एक बड़ व्यापारी जमाल अल-दीन बिन अब्दुल्लाह बिन जस्सास के घर में रहीं। कहा जाता है कि मिस्र और उसके आसपास के बहुत से लोग एक यहूदी की बेटी के उपचार (शेफ़ा) के कारण उनसे आशीर्वाद लेने के इरादे से उनके पास आने लगे थे। उन्होने मिस्र से हेजाज़ जाने की योजना बनाई। मिस्र के लोगों ने मिस्र के शासक से उन्हे हेजाज़ जाने से रोकने के लिए कहा। उन्होने मिस्र के शासक से कहा कि मैं एक कमज़ोर महिला हूं और मैं अल्लाह की इबादत नही कर पा रही हूं, और मेरा निवास स्थान छोटा है और उसमें इतने सारे लोगों के आने जाने की संभावना नही है। मिस्र के शासक का दरबुस सबाअ में एक घर था उसने वह उन्हे दे दिया और उनसे चाहा कि वह हफ़्ते में दो दिन लोगों को समर्पित करें ओर अन्य दिनों में पूजा करें। नफीसा ने शनिवार और बुधवार को लोगों को समर्पित किया और हमेशा के लिए मिस्र में बस गईं। [१३]

आध्यात्मिक और वैज्ञानिक रुतबा

ज़रक़ली ने सय्यदा नफीसा का उल्लेख तक़ीया, सालेहा, और क़ुरआन व हदीस के विद्वान जैसे गुणों के साथ किया है।[१४] नफीसा अल-दारैन, नफीसा अल-ताहिरा, नफीसा अल-आबिदा, नफीसा अल-मिसरिया, और नफीसा अल-मिसरीयीन​​[१५] अन्य उपाधियाँ हैं जिनके साथ उनका वर्णन किया गया है।

आध्यात्मिक रुतबा

कुछ रिपोर्टों में सैय्यद नफीसा की इबादत, तपस्या और उदारता (सख़ावत) के बारे में बताया गया है और उल्लेख किया गया है कि उनके पास बहुत संपत्ति थी और वह लोगों की मदद करती थी, खासकर जरूरतमंदों और बीमारों की।[१६] वह 30 बार हज यात्राओं पर गई थीं।[१७] स्रोतों के अनुसार, वह एक तहज्जुद गु़ज़ार (नमाज़े शब पढ़ने वाली) थीं और वह बहुत उपवास रखती थीं।[१८] यह भी बताया गया है कि उन्होने अपने लिए एक क़ब्र खोदी थी, जिसमें वह हर दिन प्रवेश करती थी, नमाज़ पढ़ती थी और क़ुरआन ख़त्म करती थी।[१९]

नवासिख़ अल-तवारीख़ के अनुसार, सय्यदा नफीसा ने मिस्र के लोगों के बीच एक उच्च स्थान हासिल किया था।[२०] अबू नस्र बुखारी कहते हैं कि मिस्र के लोग अपने दावों को साबित करने के लिए नफीसा खातून के नाम की शपथ लेते हैं।[२१] मिस्र के कुछ शोधकर्ताओं का मानना ​​है कि मिस्र के लोग उनके तपस्वी जीवन के कारण उन्हे मानते रखते हैं।[२२]

सय्यदा नफ़ीसा क़ुरआन से लगाव रखती थी और वह क़ुरआन की हाफ़िज़ थी।[२३] वह क़ुरआन की इन आयतों को पढ़ रही थीं: [२४] «قل لمن ما فی السموات و الارض قل لله، کتب علی نفسه الرحمه» [२५] या لهم دارالسلام عند ربهم وهو ولیّهم بما کانوا یعملون[२६] जब उनका निधन हुआ।[२७]

वैज्ञानिक स्थिति

सय्यदा नफीसा व्याख्या और हदीस से परिचित थीं।[२८] कुछ विद्वानों ने उनके हवाले से हदीस का उल्लेख किया है। [२९] मुहम्मद बिन इदरिस शाफी'ई (चार सुन्नी संप्रदायों के न्यायविदों में से एक) उनसे हदीस लिया करते थे।[३०] और अहमद बिन हंबल (हंबलियों के नेता) उनकी हदीस की सभी में भाग लिया करते थे।[३१] जब मुहम्मद इब्न इदरीस शाफ़ेई का निधन हुआ, तो उनके शरीर को सैय्यदा नफीसा के घर ले जाया गया और उन्होंने जनाज़े की नमाज़ में भाग लिया।[३२]

करामात

कुछ स्रोतों में, उनकी कुछ करामतें जैसे कि रोगी को शेफ़ा अता करना[३३] और मिस्र और नील नदी को सूखे से निजात दिलाने[३४] का श्रेय सय्यदा नफ़ीसा को दिया जाता है। जमाल अल-दीन बिन तग़री बर्दी ने कहा है कि उनके चमत्कार सब जगह प्रसिद्ध है। [३५] अहमद अबू कफ़ सय्यदा नफ़ीसा को उपनाम करीम अल-दारैन दिये जाने का कारण यह मानते हैं क्योंकि मिस्र के लोगों ने उनके चमत्कारों को उनके जीवन के समय में भी और उनकी मृत्यु के बाद देखा था।[३६] कुछ स्रोतों को भी उनकी मृत्यु के बाद भी उनके चमत्कारों का वर्णन किया गया है।[३७] ज़बीहुल्लाह महल्लाती ने अपनी किताब रियाज़ अल -शारिया में, नफ़ीसा ख़ातूम के लिए करामात का उल्लेख करने के बाद, उसके स्रोत में अहले सुन्नत की पुस्तक का उल्लेख किया है जो विचार योग्य है।[३८]

वफ़ात और मक़बरा

सय्यदा नफ़ीसा का मकबरा, क़ाहिरा में

नफीसा ख़ातून की मृत्यु रमज़ान 208 हिजरी में हुई थी।[३९] इसहाक़ मोतमिन अपनी पत्नी के पार्थिव शरीर को मदीना ले जाना चाहते थे, लेकिन मिस्र के निवासियों के अनुरोध पर, उन्होंने उन्हे वहां दफ़्न कर दिया।[४०] मक़रेज़ी कहते हैं कि मिस्र के लोगों ने इसहाक़ से उन्हे बरकत की ख़ातिर मिस्र में दफ़्न करने का अनुरोध किया।[४१] कुछ स्रोतों के अनुसार इसहाक़ ने स्वीकार नही किया। मिस्र के लोग मिस्र के शासक के पास गए और उनसे इसहाक़ को अपनी पत्नी के पार्थिव शरीर को मदीना में स्थानांतरित करने से रोकने के लिए कहा। शासक की मध्यस्थता प्रभावी नही हुई। उन लोगों ने कुछ माल जमा किया और इसहाक को दिया और उनसे अपने अनुरोध पर सहमती जताने के लिए कहा, लेकिन इसहाक़ ने इनकार कर दिया। लेकिन आखिरकार, वह उन्हे मिस्र में दफ़्न करने के लिये राज़ी हो गये, कहा गया है कि इसहाक ने मिस्र के लोगों की इच्छा को उस सपने के कारण पूरा किया था, जो उन्होंने देखा था। उन्होने सपने में देखा कि पैग़ंबर (स) उनसे अपनी पत्नी को वहां दफ़्न करने के लिए कह रहे हैं।[४२]

काहिरा में सय्यदा नफ़ीसा को उनके घर में जो दर्ब अल-सबाअ और दर्ब यज़रब के के रूप में जाना जाता था, दफ़्न किया गया।[४३] मक़रेज़ी उनकी क़ब्र को उन चार जगहों[नोट १] में एक मानते हैं जो मिस्र में दुआए क़बूल होने के लिये प्रसिद्ध हैं।[४४] इसी तरह से उन्होने उल्लेख किया है कि उनकी क़ब्र पर सबसे पहले रौज़ा बनाने वाले मिस्र के शासक उबैदुल्लाह बिन सरी बिन हकम थे। ज़रीह के प्रवेश द्वार पर रबीउस सानी वर्ष 482 हिजरी की तिथि दर्ज है। [४५] उसके बाद वर्ष 532 हिजरी में हाफ़िज़ ख़लीफ़ा ने उसका पुननिर्माण किया और उस पर ज़रीह और गुंबद बनवाया। [४६] याक़ूत हमवी (सातवीं चन्द्र शताब्दी के भूगोलवेत्ता) ने उस समय उनकी क़ब्र के ऊपर एक गुंबद के बारे में बताया है। [४७] सैय्यदा नफीसा का दरगाह मिस्र में प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में से एक है। [४८] इब्ने कसीर, जो कब्रों की ज़ियारत को शिर्क के रूप में मानते हैं, वह कहते हैं: मिस्र के लोग उनके बारे में ऐसे शब्दों का उपयोग करते हैं जो अविश्वास (कुफ़्र) और बहुदेववाद (शिर्क) की ओर ले जाते हैं। उनके बयान से यह समझा जा सकता है कि उस समय मिस्र के शिया और सुन्नी लोग नफीसा खातून के लिए एक विशेष सम्मान रखते थे और उनकी क़ब्र पर जाते थे।[४९] ज़हबी की रिपोर्ट से यह भी ज्ञात होता है कि वह मिस्रियों को इसका श्रेय देते हैं कि वह उनसे पापों की क्षमा के लिए दुआ करते हैं। इससे यह पता चलता है कि मिस्र के लोग उनसे तवस्सुल किया करते थे। [५०]

मिस्र के लोग सर्कसियन मामलुक राजवंश से मलिक अशरफ़ क़ायतबे (शासनकाल 872-901 हिजरी) के युग के दौरान 889 हिजरी से सय्यदा नफीसा का जन्मदिन मनाते आ रहे हैं। उनके जन्मदिन की रात, शियों और सुन्नियों की एक बड़ी भीड़ देर रात तक उनकी दरगाह में क़सीदे पढ़ते हैं और ख़शी मनाते है। मिस्र के लोग अपनी मन्नतों को पूरा करने के लिए सय्यद नफीसा की ओर रुख़ (उनसे तवस्सुल) करते हैं और आशीर्वाद (तबर्रुक) के लिए ज़रीह को चूमते हैं। इसी तरह से उनके रौज़े के चारों तरफ़ शादी समारोह आयोजित करने और उनके रौज़े में दुल्हन को तवाफ़ कराने की भी प्रथा है। [५१]

काजार युग के दौरान, कुछ ईरानी शिया हज यात्रा के दौरान दमिश्क़ (शामात) और मिस्र भी जाते थे और सय्यदा नफीसा के रौज़े का दौरा करते थे। ये तीर्थ यात्राएं कुछ ईरानी हज यात्रा वृत्तांतों में परिलक्षित हुई हैं और उनके धर्मस्थल और उनके बारे में मिस्र की मान्यताओं के बारे में जानकारी प्रदान करती हैं।[५२]

तीर्थ पत्र

जीवनी पुस्तकों में सय्यदा नफीसा के लिए तीर्थपत्रों (ज़ियारत नामों) का उल्लेख किया गया है। इन ज़ियारतनामों में, उनके आध्यात्मिक रुतबे और ख़ानदानी शराफ़त की प्रशंसा की गई है और पैग़ंबरे इस्लाम (स) के परिवार की एक महिला के रूप में उन को सलाम किया गया है। [५३] कुछ रिपोर्टों के अनुसार, सय्यदा नफ़ीसा की ज़ियारत के समय मुसलमान ज़ियारत नामा पढ़ते हैं, और उसमें, वह उनके ख़ानदान की शराफ़त का वर्णन करने के बाद वह भगवान से चाहते थे कि वह उनकी जरूरतों (हाजत) को पूरा करे। [५४] इस तीर्थयात्रा के पाठ का उल्लेख "दुर्र अल-मंसूर" पुस्तक में किया गया है। इसका एक भाग यह है:

السلام و التحیة و الاکرام و الرضا من العلی الاعلی الرحمن علی سیدة نفیسة سلالة نبی الرحمة و هادی الامة ... و اقض حوائجنا فی الدنیا و الاخرة یا رب العالمین

.[५५]

मिस्रवासी बुधवार को सय्यदा नफ़ीसा का तीर्थ दिवस (ज़ियारत का विशेष दिन) मानते हैं [५६]

احمد فهمی محمد

قِف لائذاً بسلیلة الزهراء بنت النبی کریمة الآباء [५७]

ذات العلا و المکرمات نفیسة بنت الامیر و سید الکرماء

(अनुवाद: पैगंबर की बेटी हैं और उनके वंशज करीम हैं / रुको और शरण लो यह ज़हरा की वंशज हैं / वह अमीर और महान स्वामी की बेटी हैं / जो उच्च हैं और नफ़ीस सम्मान वाली हैं / )

मोनोग्राफ़

सय्यद नफ़ीसा के बारे में अरबी और फ़ारसी में किताबें लिखी गई हैं। किताब अल-तोहफा अल-इंसियह मिन मआसिर अल-नफ़ीसा की उनके चमत्कारों के बारे में और किताब अल-सैयदा नफीसा (लेखक: तौफीक़ अबू इल्म) अरबी में लिखी गई है। इसी तरह से, अज़ीज़ुल्लाह अतारदी ने किताब "गौहरे ख़ानदाने इमामत" या ज़िन्दगी नामा ए सैय्यदा अल-नफ़ीसा और ग़ुलाम रेज़ा गुली ज़ावरेह ने उनके बारे में "बानू ए बा करामत" [५८] पुस्तक लिखी हैं। [स्रोत की आवश्यकता]

नोट

  1. मिस्र में चार स्थान जो दुआ के स्वीकार होने के लिए जाने जाते हैं। वे हैं: यूसुफ़ नबी की जेल, हज़रत मूसा मस्जिद, क़राफ़ा मस्जिद में एक कमरा और सैयदा नफ़ीसा का क़ब्रिस्तान (मकरीज़ी, अल-ख़ुतत अल-मकरीज़िया, 1998, खंड 3, पृष्ठ 640)।

फ़ुटनोट

  1. ज़रकली, अल-आलाम, 1989, खंड 8, पृष्ठ 44।
  2. गुली ज़वारेह, बानूए बा करामत, 2002, पृष्ठ 38।
  3. फ़वाज़ अल-आमिली, अल-दुर अल-मंसूर, 1312 हिजरी, पृष्ठ 521।
  4. अत्तारदी, गौहरे ख़ानदाने इमामत, 1373, पृष्ठ 7।
  5. इब्न कसीर, अल-बिदाया वल-निहाया, 1407 हिजरी, खंड 10, पृष्ठ 262।
  6. इब्न कसीर, अल-बिदाया वल-निहाया, 1407 हिजरी, खंड 10, पृष्ठ 262।
  7. मक़रेज़ी, अल-ख़ुतत अल-मक़रेज़िया, 1998, खंड 3, पृष्ठ 637।
  8. मक़रेज़ी, अल-ख़ुतत अल-मक़रेज़िया, 1998, खंड 3, पृष्ठ 638।
  9. अत्तारदी, गौहरे ख़ानदाने इमामत, 1373, पृष्ठ 10; अबू काफ, अहले बैत अल-नबी फ़ी मिस्र, 1975, पेज। 101-102।
  10. मक़रेज़ी, अल-ख़ुतत अल-मक़रेज़िया, 1998, खंड 3, पृष्ठ 637।
  11. कुलैनी, अल-काफी, खंड 1, पृष्ठ 316।
  12. मक़रेज़ी, अल-ख़ुतत अल-मक़रेज़िया,, 1998, खंड 3, पृष्ठ 637।
  13. फ़वाज़ अल-आमिली, अल-दुर अल-मंसूर, 1312 हिजरी, पृष्ठ 522।
  14. ज़रकली, अल-आलम, 1989, खंड 8, पृष्ठ 44
  15. अबू कफ, अहलल बैत अल-नबी फ़ी मिस्र, 1975, पृष्ठ 111।
  16. इब्न कसीर, अल-बिदाया वाल-निहाया, 1407 हिजरी, खंड 10, पृष्ठ 262; मुहम्मद अल-हस्सून, आलाम नेसाइल मोमिनात, 1411 हिजरी, पीपी. 626-628।
  17. ज़रकली, अल-आलम, 1989, खंड 8, पृष्ठ 44; मक़रेज़ी, अल-ख़ुतत अल-मक़रेज़ीया, 1998, खंड 3, पृष्ठ 639।
  18. मक़रेज़ी, अल-ख़ुतत अल-मक़रेज़िया,, 1998, खंड 3, पृष्ठ 639।
  19. सेपेहर, नासिख़ अल-तवारीख़, 1352, खंड 3, पृष्ठ 126।
  20. सेपेहर, नासिख़ अल-तवारीख़,, 1352, खंड 3, पृष्ठ 120।
  21. अबू नस्र बुखारी, सिर अल-सिलसिला अल-अलविया, 1381 हिजरी, पृष्ठ 29।
  22. शेख़ मोहम्मद सबान, असआफ अल-राग़ेबीन, पांडुलिपि, पेज 81.
  23. मक़रेज़ी, अल-ख़ुतत अल-मक़रेज़िया, 1998, खंड 3, पृष्ठ 637।
  24. मक़रेज़ी, अल-ख़ुतत अल-मक़रेज़िया, 1998, खंड 3, पृष्ठ 640।
  25. सूरह अनआम, आयत 12.
  26. सूरह अनआम, आयत 127.
  27. फ़वाज़ अल-आमिली, अल-दुर अल-मंसूर, 1312 हिजरी, पृष्ठ 521; मुहद्दिस क़ुमी, मुतहल-आमाल, 1379, खंड 2, पृष्ठ 1418।
  28. अलवरदानी, अल-शिया फ़ी मिस्र, 1414 हिजरी, पृष्ठ 109।
  29. इब्न खलकान, वफ़यात अल-अय्यान, दार सादिर, खंड 5, पेज 423-424.
  30. शबलनजी, नूर अल-अबसार, काहिरा, पृष्ठ 256; फ़वाज़ अल-आमिली, अल-दुर अल-मंसूर, 1312 हिजरी, पृष्ठ 521।
  31. अत्तारदी, गौहरे ख़ानदाने इमामत, 1373, पेज 12, 29; अबू कफ, अहले बैत अल-नबी फ़ी मिस्र, 1975, पृष्ठ 107
  32. इब्न इमाद हनबली, शज़रात अल-ज़हब, 1406 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 43; इब्न ख़लकान, वफ़ायत अल-अय्यान, खंड 5, पृष्ठ 424; फ़वाज़ अल-आमिली, अल-दुर अल-मंसूर, 1312 हिजरी, पृष्ठ 521।
  33. अबू कफ, अहले बैत अल-नबी फ़ी मिस्र, 1975, पृष्ठ 107; महल्लाती, रियाहिन अल-शरिया, दार अल-कुतुब अल-इस्लामिया, खंड 5, पेज 87-88; मक़रेज़ी, अल-ख़ुतत अल-मक़रेज़िया, 1998, खंड 3, पृष्ठ 641।
  34. शबलनजी, नूर अल-अबसार, काहिरा, पृष्ठ 256; महालती, रियाहिन अल-शरिया, दार अल-कुतुब अल-इस्लामिया, खंड 5, पृष्ठ 85; मक़रेज़ी, अल-ख़ुतत अल-मक़रेज़िया, 1998, खंड 3, पृष्ठ 641।
  35. इब्न तग़री वर्दी, अल-नुजूम अल-ज़ाहेरा, वेज़ारत सक़ाफ़ा वल-इरशाद अल-कौमी, खंड 2, पृष्ठ 186
  36. अबू कफ, अहले बैत अल-नबी फ़ी मिस्र, 1975, पृष्ठ 107
  37. एक उदाहरण के लिए, देखें: फ़वाज़ अल-आमिली, अल-दुर अल-मंसूर, 1312 हिजरी, पृष्ठ 522।
  38. महल्लाती, रियाहिन अल-शरिया, दार अल-कुतुब अल-इस्लामिया, खंड 5, पृष्ठ 94।
  39. इब्न कसीर, अल-बिदाया वाल-निहाया, 1407 हिजरी, खंड 10, पृष्ठ 262; इब्न ख़लकान, वफ़यात अल-अय्यान, दार अल-सकाफा, खंड 5, पृष्ठ 424; मक़रेज़ी, अल-ख़ुतत अल-मक़रेज़िया, 1998, खंड 3, पृष्ठ 640।
  40. इब्न कसीर, अल-बिदाया वाल-निहाया, 1407 हिजरी, खंड 10, पृष्ठ 262; फ़वाज़ अल-आमिली, अल-दुर अल-मंसूर, 1312 हिजरी, पृष्ठ 521।
  41. मक़रेज़ी, अल-ख़ुतत अल-मक़रेज़िया, 1998, खंड 3, पृष्ठ 640।
  42. शबलनजी, नूर अल-अबसार, काहिरा, पृष्ठ 258; अबू कफ, अहले बैत अल-नबी फ़ी मिस्र, 1975, पृष्ठ 104; शेख़ मोहम्मद सबान, इसाफ अल-राग़ेबिन, पांडुलिपि, पी. 81; कुमी, मुंतहल-अमल, 1379, खंड 2, पृष्ठ 1418; मोहम्मद अल-हसून, महिलाओं की घोषणा, पी. 189.
  43. मक़रेज़ी, अल-ख़ुतत अल-मक़रेज़िया, 1998, खंड 3, पृष्ठ 640।
  44. मक़रेज़ी, अल-ख़ुतत अल-मक़रेज़िया, 1998, खंड 3, पृष्ठ 640।
  45. मक़रेज़ी, अल-ख़ुतत अल-मक़रेज़िया, 1998, खंड 3, पीपी। 641-642।
  46. मक़रेज़ी, अल-ख़ुतत अल-मक़रेज़िया, 1998, खंड 3, पृष्ठ 642।
  47. हम्वी, मोजम अल-बुलदान, 1995, खंड 5, पृष्ठ 142।
  48. ज़रकली, अल-आलाम, 1989, खंड 8, पृष्ठ 44।
  49. देखें: इब्न कसीर, अल-बिदाया वल-निहाया, 1407 हिजरी, खंड 10, पृष्ठ 262।
  50. इब्न इमाद हनबली, शज़रात अल-ज़हब, 1406 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 43।
  51. अलवरदानी, अल-शिया फ़ी मिस्र, 1414 हिजरी, पेज 110, 113।
  52. उदाहरण के लिए: जाफेरियान, "सफ़र नामा हज जज़ायरी इराकी ", 2009, पेज 271।
  53. शबलनजी, नूर अल-अबसार, काहिरा, पेज 259.
  54. फ़वाज़ अल-आमिली, अल-दुर अल-मंसूर, 1312 हिजरी, पृष्ठ 522।
  55. फ़वाज़ अल-आमिली, अल-दुर अल-मंसूर, 1312 हिजरी, पृष्ठ 522।
  56. अतारदी, गौहरे ख़ानदाने इमामत, 1373, पृष्ठ 62।
  57. तौफीक़, अल-सैयदा नफीसा, 2008, पृष्ठ 222।
  58. बानूए बा करामत शरहे हाल व ज़िक्रे करामाते सैयदा नफ़ीस नवादा ए इमाम हसन मोज्तबी (अ), एडिना बुक साइट।

स्रोत

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