साहिब फ़ख़

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यह लेख हुसैन बिन अली बिन हसन के बारे में है, जिन्हें साहिब फ़ख़ के नाम से जाना जाता है। हुसैन बिन अली बिन हसन के विद्रोह के लिए, फ़ख़ की घटना देखें।
साहिब फ़ख़
फ़ख़ आंदोलन के नेता
मक्का में महल्ला ए शोहदा, फ़ख़ की घटना के कुछ शहीदों का समाधि स्थल
मक्का में महल्ला ए शोहदा, फ़ख़ की घटना के कुछ शहीदों का समाधि स्थल
पूरा नामहुसैन बिन अली बिन हसन बिन हसन बिन हसन बिन अली (अ)
उपनामसाहिब फ़ख़
वंशसादाते हसनी
प्रसिद्ध रिश्तेदारनफ़्से ज़किया, इब्राहीम बिन अब्दुल्लाह
जन्म तिथिलगभग वर्ष 128 हिजरी
शहादत की तिथि8 ज़िल हिज्जा, वर्ष 169 हिजरी
शहादत का शहरफ़ख़ (मक्का ने निकट एक महल्ला)
शहादत कैसे हुईफ़ख़ की घटना में
किस के साथीइमाम सादिक़ (अ) के सहाबी
गतिविधियांअब्बासी सरकार के विरुद्ध आंदोलन


साहिब फ़ख़ (अरबी: صاحب فخ) हुसैन बिन अली का उपनाम है, वह इमाम हसन मुज्तबा (अ) के वंशज और फ़ख़ आंदोलन के नेता है। उन्होंने वर्ष 169 हिजरी में इमाम काज़िम (अ) के दौर में हादी अब्बासी के ख़िलाफ़ आंदोलन किया और फ़ख़ क्षेत्र में शहीद हो गये। इमाम जवाद (अ) की रिवायत के अनुसार, कर्बला की घटना के बाद, फ़ख़ की घटना अहले बैत (अ) का सबसे गंभीर दुःख था। अबुल फ़रज इस्फ़हानी द्वारा वर्णित एक रिवायत में, पैग़म्बर (स) और इमाम सादिक़ (अ) ने फ़ख़ में हुसैन बिन अली के क़त्ल की भविष्यवाणी और घोषणा की थी कि वह स्वर्गीय लोगों में से है।

साहिब फ़ख़ की सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक गतिविधि उनका आंदोलन था। हालाँकि, कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि इस आंदोलन से पहले उनकी अन्य राजनीतिक गतिविधियाँ भी थीं। हुसैन फ़ख़ी ने वर्ष 169 हिजरी में ज़िल क़ादा में मदीना में विद्रोह किया और उस पर कब्ज़ा करने के बाद, वह 300 लोगों की सेना के साथ मक्का की ओर चले गए। 8 ज़िल हिज्जा को उन्होंने अब्बासी सेना के साथ "फ़ख़" नामक स्थान पर युद्ध किया। इस युद्ध में हुसैन और उनके कई साथी शहीद हो गये। एक समूह को बंदी भी लिया गया और कुछ भाग गये।

अल्लामा मजलिसी ने हुसैन फ़ख़ी के चरित्र की प्रशंसा की है; लेकिन उनका कहना है कि उनके चरित्र को लेकर आलोचनाएं भी हुई हैं। कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि भले ही साहिब फ़ख़ के व्यक्तित्व की पुष्टि करने वाली रिवायात मौजूद हैं, लेकिन उन्हें शिया इमामों द्वारा उनके आंदोलन की पुष्टि का प्रमाण नहीं माना जा सकता है।

हुसैन बिन अली को फ़ख़ स्थान पर दफ़नाया गया और इमाम काज़िम (अ) ने उनकी नमाज़े मय्यत पढ़ी थी। फ़ख़ क्षेत्र मस्जिद अल हराम से चार किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जिसे अब महल्ला ए शोहदा के रूप में जाना जाता है।

परिचय एवं स्थिति

हुसैन बिन अली, जिन्हें साहिब फ़ख़ के नाम से जाना जाता है, अपने माता-पिता दोनो की ओर से इमाम हसन मुज्तबा (अ) के वंशज थे।[१] वर्ष 169 हिजरी में 41 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु के अनुसार,[२] शोधकर्ताओं ने उनका जन्म वर्ष 128 हिजरी में बताया है।[३] हालांकि, एक अन्य रिपोर्ट में 57 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु मानी गई है।[४] उनके पिता, अली (अच्छे और नेक अली के रूप में प्रसिद्ध) और उनकी मां, ज़ैनब, अब्दुल्लाह महज़ की बेटी थीं, जो ज़्यादा इबादत के कारण ज़ौजे सालेह (नेक जोड़े) के रूप में जाने जाते थे।[५] साहिब फ़ख़ के पिता, अर्थात् अली, को नफ़्से ज़किया के आंदोलन के बाद, मंसूर अब्बासी के आदेश से अल्वियों के एक अन्य समूह के साथ गिरफ्तार कर लिया गया था, और कुछ ही समय बाद जेल में उनकी मृत्यु हो गई थी।[६]

साहिब फ़ख़ को एक बहादुर और उदार व्यक्ति के रूप में पेश किया गया है[७] और उनकी उदारता का उल्लेख विभिन्न हदीसों में किया गया है।[८] चौथी और पांचवीं शताब्दी हिजरी में शिया न्यायविदों में से एक शेख़ तूसी उन्हें इमाम सादिक़ (अ) के साथियों में से एक मानते हैं।[९] उन्होंने कोई संतान नहीं छोड़ी है।[१०] मक़ातिल अल तालेबेईन के लेखक अबुल फ़रज इस्फ़हानी द्वारा वर्णित एक हदीस के अनुसार, पैग़म्बर (स) और इमाम सादिक़ (अ) ने फ़ख़ में हुसैन बिन अली की मृत्यु की भविष्यवाणी की और घोषणा की कि वह स्वर्गीय लोगो में से है।[११] इमाम जवाद (अ) की एक हदीस के अनुसार, कर्बला की घटना के बाद, फ़ख़ की घटना अहले बैत (अ) का सबसे बड़ा दुःख था।[१२]

लोबाब अल अंसाब में बैहक़ी की रिपोर्ट के अनुसार, साहिब फ़ख़ की मृत्यु के बाद, इमाम काज़िम (अ) ने उन पर नमाज़े मय्यत पढ़ी।[१३] उन्होंने फ़ख़ के शहीदों पर रोते हुए, ईश्वर से उनके हत्यारों के लिए मौत और कड़े अज़ाब की मांग की।[१४] अबुल फ़रज इस्फ़हानी के अनुसार, हुसैन बिन अली की मृत्यु के बाद और उनके कटे हुए सिर को देखकर, इमाम काज़िम (अ) ने आय ए इस्तिरजाअ पढ़ी और उनके गुणों का उल्लेख करते हुए, उन्हें एक धर्मी व्यक्ति के रूप में पेश किया।[१५] इसके अलावा, फ़ख़ में शहीद हुए अल्वियों के अनाथों और विधवाओं के देखभाल की ज़िम्मेदारी ली।[१६] फ़ख़ की घटना, कई कवियों की कविताओं में प्रतिबिंबित हुई है, जिसमें देबल ख़ोज़ाई द्वारा रचित शेअर ताईया भी शामिल है।[१७]

हुसैन के बारे में इमामिया का दृष्टिकोण

बिहार अल अनवार पुस्तक के लेखक अल्लामा मजलिसी ने हुसैन फ़ख़ी के व्यक्तित्व की प्रशंसा की है। लेकिन उनका मानना है कि उनके बारे में आलोचनाएं भी हुई हैं।[१८] कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि भले ही साहिब फ़ख़ के व्यक्तित्व की पुष्टि करने वाली रिवायात मौजूद हैं, लेकिन उन्हें शिया इमामों द्वारा उनके आंदोलन की पुष्टि का प्रमाण नहीं माना जा सकता है।[१९] रसूल जाफ़रयान, एक इतिहासकार, फ़ख़ आंदोलन को अब्बासियों के विरुद्ध अल्वियों का सबसे सही आंदोलनों में से एक मानते हैं; लेकिन उन्होंने लिखा है कि इस बात की कोई निश्चितता नहीं है कि यह आंदोलन (क़याम) इमाम काज़िम (अ) के आदेश से किया गया था; बल्कि, यह कहा जा सकता है कि इमामी शिया इन विद्रोहों से सहमत नहीं थे; क्योंकि वे इस मुद्दे में अल्वियों के साथ शामिल थे और उनके बीच मतभेद हो गया था।[२०]

राजनीतिक गतिविधियाँ

कुछ शोधकर्ताओं के अनुसार, वर्ष 169 हिजरी से पहले हुसैन की राजनीतिक गतिविधि बहुत स्पष्ट नहीं है।[२१] हालाँकि, फ़ख़ की घटना से पहले उनके राजनीतिक आंदोलनों के लिए, निम्नलिखित साक्ष्यों का उल्लेख किया गया है: महदी अब्बासी के शासनकाल के दौरान हुसैन बिन अली को उनकी गतिविधियों के बारे में खिलाफ़त की चिंता, अल्वियों के खिलाफ़ मदीना में हादी अब्बासी और उनके एजेंटों की कड़ी कारवाई और हुसैन पर सरकार का प्रभारी होने का आरोप लगने के कारण बग़दाद बुलाना।[२२]

अबुल फ़रज इस्फ़हानी की रिपोर्ट के अनुसार, साहिब फ़ख़ ने भी नफ़्से ज़किया के आदोंलन में भाग लिया था; लेकिन नफ़्से ज़किया ने, इस उम्मीद में कि साहिब फ़ख़ भविष्य में भी उनका कार्य जारी (उनके मार्ग पर चलेंगे) रखेंगे, उन्हें अपने साथ जाने से मना कर दिया।[२३] 9वीं शताब्दी हिजरी के इतिहासकार इब्ने तग़री के अनुसार, हुसैन ने वर्ष 169 हिजरी से पहले भी आंदोलन किया था।[२४] कुछ रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि उनके क़याम (आंदोलन) से कुछ समय पहले, कूफ़ा के शियों के एक समूह ने हज के समय उनके साथ आंदोलन करने और मक्का पर कब्ज़ा करने के लिए उनके प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा की थी।[२५]

फ़ख़ की घटना

मुख्य लेख: फ़ख़ की घटना

हुसैन फ़ख़ी ने वर्ष 169 हिजरी के ज़िल क़ादा महीने में मदीना में क़याम किया।[२६] मदीना में सरकारी एजेंटों के हुसैन फ़ख़ी का सामना करने के प्रयास असफल रहे और उनमें से कई की हार और मृत्यु हो गई।[२७] तबरी के अनुसार, मदीना पर विद्रोहियों का प्रभुत्व केवल ग्यारह दिनों तक रहा।[२८] साहिब फ़ख़ ने देनयार ख़ोज़ाई नामक व्यक्ति को मदीना का गवर्नर नियुक्त किया और वह अपने तीन सौ साथियों के साथ[२९] 24 ज़िल क़ादा को मक्का के लिए रवाना हुए।[३०]

मक्का में फ़ख़ पहाड़ पर, फ़ख़ की घटना के कुछ शहीदों के मक़बरे

4,000 लोगों की सेना के साथ अब्बासियों ने 8 ज़िल हिज्जा (तरविया के दिन) को "फ़ख़" नामक स्थान पर हुसैन की सेना का सामना किया।[३१] अब्बासी कमांडर ने हुसैन को अमान दी; लेकिन हुसैन ने इनकार कर दिया, और उसके बाद हुई लड़ाई में, हुसैन और उनके कई साथी शहीद हो गए।[३२] इसके अलावा, हुसैन के साथियों के एक समूह को बंदी बना लिया गया और अन्य भाग गए।[३३] बनी अब्बास ने कुछ बंदियों को मार डाला[३४] और कुछ अन्य लोगों को, शहीदों के सिरों के साथ, हादी अब्बासी के पास बग़दाद भेज दिया गया।[३५]

फ़ख़ क्षेत्र

फ़ख़ क्षेत्र या महल्ला ए शोहदा ए मक्का, मक्का के उत्तरी प्रवेश द्वार पर और मस्जिद अल हराम से चार किलोमीटर दूर स्थित है।[३६] यह क्षेत्र कुछ प्रवासियों (मुहाजेरीन) का मक़बरा था।[३७] शोधकर्ताओं के अनुसार, महल्ला ए शोहदा ए मक्का में फ़ख़ के शहीदों की क़ब्रें दो भागों में स्थित हैं।[३८] फ़ख़ के कुछ शहीदों को एक बंद क्षेत्र में दफ़नाया गया है, जहाँ की दीवार पर "अब्दुल्लाह बिन उमर मक़बरा नंबर 2" का चिन्ह लगा हुआ है। कुछ अन्य क़ब्रें इसी स्थान के सामने फ़ख़ पहाड़ (जबल अल बरूद) या (जबल अल शहीद)[३९] के तल पर स्थित है।[४०] वर्ष 601 हिजरी में, साहिब फ़ख़ की क़ब्र पर मक़बरा बनाया गया था।[४१] फ़ख़ पहाड़ के बगल में, "ज़ी तोवा" नामक एक समतल क्षेत्र है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह सुलहे होदैबिया के समय क़ुरैश जनजाति का मिलन स्थल था।[४२]

मोनोग्राफ़ी

फ़ख़ की घटना के विषय पर लिखी गई कुछ पुस्तकें इस प्रकार हैं:

  • “माहीयते क़यामे शहीद फ़ख़” अबू फ़ाज़िल रिज़वी अर्देकानी द्वारा लिखित: लेखक ने ग्यारह अध्यायों में हुसैन बिन अली के चरित्र और उनका विद्रोह क्या और कैसे था, इसका विश्लेषण किया है।[४३] यह पुस्तक वर्ष 1375 हिजरी में इंतेशाराते दफ़्तरे इस्लामी द्वारा 280 पृष्ठों में प्रकाशित की गई थी।[४४]
  • “बतलो फ़ख़” मुहम्मद हादी अमिनी द्वारा लिखित: यह पुस्तक वर्ष 1388 हिजरी में नजफ़ में इंतेशाराते अल मतबआ अल हैदरिया के प्रयासों से 206 पृष्ठों में प्रकाशित हुई थी।[४५]

फ़ुटनोट

  1. अबुल फ़रज़ इस्फ़हानी, मक़ातिल अल तालेबेईन, 1419 हिजरी, पृष्ठ 364।
  2. हारुनी, अल एफ़ादा फ़ी तारीख़ अल आइम्मा अल सादा, 1387 शम्सी, पृष्ठ 26-28।
  3. राज़ी, अख़्बारे फ़ख़, माहिर जर्रार द्वारा शोध, 1995 ईस्वी, पृष्ठ 44; गुलेस्तानी और मीर अबुल क़ासेमी, "साहेब फ़ख़", पृष्ठ 109।
  4. बैहक़ी, लोबाब अल अंसाब, 1428 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 412।
  5. अबुल फ़रज इस्फ़हानी, मक़ातिल अल तालेबेईन, 1419 हिजरी, पृष्ठ 364; अल मोहल्ली, अल हदायक़ अल वरदिया, 1423 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 317।
  6. अबुल फ़रज इस्फ़हानी, मक़ातिल अल तालेबेईन, 1419 हिजरी, पृष्ठ 176।
  7. इब्ने असीर, अल कामिल, 1385 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 94; हारुनी, अल एफ़ादा फ़ी तारीख़ अल आइम्मा अल सादा, 1387 शम्सी, पृष्ठ 26।
  8. अबुल फ़रज इस्फ़हानी, मक़ातिल अल तालेबेईन, 1419 हिजरी, पृष्ठ 368-371।
  9. तूसी, रेजाल अल तूसी, 1373 शम्सी, पृष्ठ 182।
  10. बोख़ारी, सिर अल सिल्सिला अल अल्विया, 1963 ईस्वी, पृष्ठ 15।
  11. अबुल फ़रज इस्फ़हानी, मक़ातिल अल तालेबेईन, 1419 हिजरी, पृष्ठ 366-367।
  12. बोख़ारी, सिर अल सिल्सिला अल अल्विया, 1963 ईस्वी, पृष्ठ 14-15।
  13. बैहक़ी, लोबाब अल अंसाब, 1428 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 412।
  14. अमिनी, बतलो फ़ख़, 1388 हिजरी, पृष्ठ 139।
  15. अबुल फ़रज इस्फ़हानी, मक़ातिल अल तालेबेईन, 1419 हिजरी, पृष्ठ 380।
  16. अमिनी, बतलो फ़ख़, 1388 हिजरी, पृष्ठ 139।
  17. एरबली, कशफ़ अल ग़ुम्मा फ़ी मारेफ़त अल आइम्मा, 1381 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 322।
  18. मजलिसी, अल वजीज़ा फ़ी अल रेजाल, 1420 हिजरी, पृष्ठ 64।
  19. शरीफ़ी, "आइम्मा व क़यामहा ए शीई", पृष्ठ 89-90।
  20. जाफ़रयान, हयाते फ़िक्री व सेयासी इमामाने शिया, 1387 शम्सी, पृष्ठ 389।
  21. राज़ी, अख़्बारे फ़ख़, माहिर जर्रार द्वारा शोध, 1995 ईस्वी, पृष्ठ 44; गुलिस्तानी और मीर अबुल क़ासेमी, "साहेब फ़ख़", पृष्ठ 109।
  22. गुलुस्तानी और मीर अबुल कासेमी, "साहेब फ़ख़", पृष्ठ 109।
  23. अबुल फ़रज इस्फ़हानी, मक़ातिल अल तालेबेईन, 1419 हिजरी, पृष्ठ 246।
  24. इब्ने तग़री, अल नुजूम अल ज़ाहेरा, 1392 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 59।
  25. हस्नी, अल मसाबीह, 1423 हिजरी, पृष्ठ 468।
  26. हस्नी, अल मसाबीह, 1423 हिजरी, पृष्ठ 466; हारुनी, अल एफ़ादा फ़ी तारीख़ अल आइम्मा अल सादा, 1387 शम्सी, पृष्ठ 26; तबरी, तारीख़ अल तबरी, 1387 हिजरी, खंड 8, पृष्ठ 195।
  27. तबरी, तारिख अल-तबारी, 1387 एएच, खंड 8, पृष्ठ 194।
  28. तबरी, तारिख अल-तबारी, 1387 एएच, खंड 8, पृष्ठ 195।
  29. अबुल फ़रज इस्फ़हानी, मक़ातिल अल तालेबेईन, 1419 हिजरी, पृष्ठ 377।
  30. तबरी, तारिख अल-तबारी, 1387 एएच, खंड 8, पृष्ठ 195।
  31. मसऊदी, मोरुज अल ज़हब, 1409 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 326।
  32. तबरी, तारीख़ अल तबरी, 1387 हिजरी, खंड 8, पृष्ठ 195-200; अबुल फ़रज इस्फ़हानी, मक़ातिल अल तालेबेईन, 1419 हिजरी, पृष्ठ 377-379।
  33. तबरी, तारीख़ अल तबरी, 1387 हिजरी, खंड 8, पृष्ठ 195-200; अबुल फ़रज इस्फ़हानी, मक़ातिल अल तालेबेईन, 1419 हिजरी, पृष्ठ 377-379।
  34. मसऊदी, मोरुज अल ज़हब, 1409 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 327।
  35. अबुल फ़रज इस्फ़हानी, मक़ातिल अल तालेबेईन, 1419 हिजरी, पृष्ठ 380।
  36. अस्करी, "आप मक्का में फ़ख़ के विद्रोह और उसके शहीदों के बारे में क्या जानते हैं? चित्र", हौज़ा नुमाइंदगी ए वली ए फ़क़ीह दर हज व ज़ियारत की वेबसाइट।
  37. इब्ने असीर, असद अल ग़ाबा, 1409 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 325।
  38. लहयानी, "हय्या अल शोहदा अर्ज़े मारेकते फ़ख़ अल तारीख़िया"; अस्करी, "आप मक्का में फ़ख़ के विद्रोह और उसके शहीदों के बारे में क्या जानते हैं? चित्र", हौज़ा नुमाइंदगी ए वली ए फ़क़ीह दर हज व ज़ियारत की वेबसाइट।
  39. लहयानी, "हय्या अल शोहदा अर्ज़े मारेकते फ़ख़ अल तारीख़िया";
  40. अस्करी, "आप मक्का में फ़ख़ के विद्रोह और उसके शहीदों के बारे में क्या जानते हैं? चित्र", हौज़ा नुमाइंदगी ए वली ए फ़क़ीह दर हज व ज़ियारत की वेबसाइट।
  41. अल मोहल्ली, अल हदायेक़ अल वरदिया, 1423 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 328।
  42. अस्करी, "आप मक्का में फ़ख़ के विद्रोह और उसके शहीदों के बारे में क्या जानते हैं? चित्र", हौज़ा नुमाइंदगी ए वली ए फ़क़ीह दर हज व ज़ियारत की वेबसाइट।
  43. रिज़वी अर्देकानी, माहेईयते क़यामे शहीद फ़ख़, 1375 शम्सी।
  44. रिज़वी अर्देकानी, माहेईयते क़यामे शहीद फ़ख़, 1375 शम्सी।
  45. अमिनी, बतलो फ़ख़, 1388 हिजरी।

स्रोत

  • अबुल फ़रज इस्फ़हानी, अली बिन हुसैन, मक़ातिल अल तालेबेईन, बेरूत, मोअस्सास ए अल-अलामी लिल मतबूआत, तीसरा संस्करण, 1419 हिजरी।
  • इब्ने असीर, अली इब्ने मुहम्मद, अल कामिल फ़ी अल तारीख़, बेरुत, दार सादिर, 1385 हिजरी।
  • इब्ने असीर, अली इब्ने मुहम्मद, असद अल ग़ाबा फ़ी मारेफ़त अल सहाबा, बेरूत, दार अल-फ़िक्र, 1409 हिजरी।
  • इब्ने तग़री बर्दी, यूसुफ़, अल नुजूम अल ज़ाहेरा फ़ी मोलूके मिस्र व अल क़ाहिरा, क़ाहिरा, वेज़ारत अल सक़ाफ़ा व अल इरशाद अल क़य्यूमी, 1392 शम्सी।
  • एरबली, अली बिन ईसा, कशफ़ अल ग़ुम्मा फ़ी मारेफ़त अल आइम्मा, तबरेज़, बनी हाशमी, 1381 हिजरी।
  • अमिनी, मुहम्मद हादी, बतलो फ़ख़, बेरूत, 1388 हिजरी।
  • बोख़ारी, सहल बिन अब्दुल्लाह, सिर अल सिल्सिला अल अल्विया, नजफ, अल मतबआ अल हैदरिया, 1963 ईस्वी।
  • बैहक़ी, अली बिन ज़ैद, लोबाब अल अंसाब वा अल अल्क़ाब वा अल एअक़ाब, क़ुम, आयतुल्लाह मर्शी नजफ़ी लाइब्रेरी, 1428 हिजरी।
  • जाफ़रयान, रसूल, हयाते फ़िक्री व सेयासी इमामाने शीया, क़ुम, अंसारियान, 1387 शम्सी।
  • हस्नी, अहमद बिन इब्राहीम, अल मसाबीह, सन्आ, मोअस्सास ए अल इमाम ज़ैद बिन अली अल सक़ाफ़िया, 1423 हिजरी।
  • राज़ी, अहमद बिन सहल, अख़्बारे फ़ख़ व ख़बरे यह्या बिन अब्दुल्लाह व अख़ीह इदरीस बिन अब्दुल्लाह, माहिर जर्रार द्वारा शोध, बेरूत, दार अल-ग़र्ब अल-इस्लामी, 1995 ईस्वी।
  • रिज़वी अर्देकानी, सय्यद अबू फ़ाज़िल, माहीयते क़यामे शहीद फ़ख़, क़ुम, दफ़्तरे तब्लीग़ाते इस्लामी हौज़ ए इल्मिया क़ुम, दूसरा संस्करण, 1375 शम्सी।
  • शरीफ़ी, मोहसिन, "आइम्मा व क़यामहाए शीई", तुलूअ फ़सलनामे में, नंबर 17, बहार 1385 शम्सी।
  • तबरी, मुहम्मद बिन जरीर, तारीख़ अल तबरी, बेरूत, दार अल तोरास, 1387 हिजरी।
  • तूसी, मुहम्मद बिन हसन, रेजाल अल तूसी, क़ुम, मोअस्सास ए अल नशर अल इस्लामी, 1373 शम्सी।
  • अस्करी, मुहम्मद हुसैन, "आप मक्का में फ़ख़ के विद्रोह और उसके शहीदों के बारे में क्या जानते हैं? चित्र", हौज़ ए नुमाइंदगी ए वली ए फ़क़ीह दर हज व ज़ियारत की वेबसाइट, प्रवेश की तारीख: 29 बहमन 1392 शम्सी, विज़िट की तारीख: 13 मेहर 1399 शम्सी।
  • गुलिस्तानी, परवीन, और मीर अबुल क़ासेमी, सैय्यदा रुक़य्या, "साहेब फ़ख़", दानिशनाम ए जहाने इस्लाम में, खंड 29, तेहरान, बुनियाद दाएरतुल मआरिफ़ इस्लामी, 1400 शम्सी।
  • लहियानी, बद्र, "हय्या अल शोहदा अर्ज़े मारेकते फ़ख़ अल तारीखिया", सहीफ़ा मक्का साइट, प्रवेश की तारीख: 9 अप्रैल, 2015 ईस्वी, विज़िट की तारीख: 31 उर्देबहिश्त, 1402 शम्सी।
  • मजलिसी, मुहम्मद बाक़िर, अल वजीज़ा फ़ी अल रेजाल, तेहरान, वेज़ारते फ़र्हंग व इरशादे इस्लामी, 1420 हिजरी।
  • मोहल्ली, हमीद बिन अहमद, अल हदाएक़ अल वरदिया फ़ी मनाक़िब आइम्मा अल ज़ैदिया, सन्आ, मकतबा बद्र, 1423 हिजरी।
  • मसऊदी, अली बिन हुसैन, मोरुज अल ज़हब व मआदिन अल जवाहिर, क़ुम, दार अल हिजरा, 1409 हिजरी।
  • हारूनी, यह्या बिन हुसैन, अल एफ़ादा फ़ी तारीख़ अल आइम्मा अल सादा, तेहरान, मरकज़े पज़ोहिशी मीरासे मकतूब, 1387 शम्सी।