दुआ मकारिम अल अख़्लाक़

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दुआ मकारिम अल-अख़्लाक़ (अरबीः دعاء مكارم الأخلاق) या सहीफ़ा सज्जादिया की 20वीं दुआ इमाम सज्जाद (अ) की प्रसिद्ध दुआओ में से एक है जिसमें परमेश्वर से अच्छे नैतिकता प्राप्त करने और अच्छे कर्म करने और नैतिक बुराइयों से बचने के लिए मदद मांगी जाती है। इस दुआ में अनुरोधों में व्यक्तिगत और सामाजिक नैतिकता शामिल है। इस दुआ में, इमाम सज्जाद (अ) ने मानव विकास में आने वाली बाधाओं और उसे शैतान की शिक्षा की बुराई से बचाने के तरीकों की ओर इशारा किया है।

इस दुआ के अधिकांश छंदों की शुरुआत में बार-बार सलवात दोहराने के साथ साथ अल्लाह से दुआ मांगी गई है। सहीफा सज्जादिया की 20वीं दुआ को दुआ ए मकारिम अल-अख़लाक कहा जाता है क्योंकि इसमें नैतिकता हासिल करने और अच्छे कर्म करने के लिए मानव निर्माण की शिक्षाएं शामिल हैं।

दुआ ए मकारिम अल-अख़लाक़ को नैतिकता पाठ के रूप में मुहम्मद तक़ी फ़लसफ़ी, मिस्बाह यज़दी और रुहुल्लाह ख़ातमी द्वारा स्वतंत्र रूप से समझाया और प्रकाशित किया गया था। इसके अलावा, इस दुआ का वर्णन सहीफ़ा सज्जादीया की व्याख्याओं में किया गया है, जैसे कि हुसैन अंसारियान द्वारा दयारे आशेक़ान और सय्यद अली खान मदनी द्वारा रियाज़ अल-सालेकीन की शरह की है।

महत्व एवं स्थान

सहीफ़ा सज्जादिया की 20वीं दुआ को अच्छे संस्कार प्राप्त करने और अच्छे कर्म करने के लिए मानव निर्माण की शिक्षाओं को शामिल करने के कारण मकारिम अल-अख़लाक़ दुआ के नाम से जाना जाता है।[१] इस दुआ मे इमाम सज्जाद (अ) कई नैतिक बुराइयों और पापों की गणना की हैं और इसी प्रकार नैतिक गुणों की एक सूची भी बताते हुए अल्लाह से उन्हें सुशोभित करने का आग्रह किया है।[२]

इमाम सज्जाद (अ) के साहित्यिक सरणियों के उपयोग और वाक्यात्मक और रूपात्मक शैलियों के चयन के साथ-साथ सामग्री के अनुरूप अवधारणाओं और शब्दों के चयन को मकारिम अल-अख़लाक़ दुआ के विशेषाधिकार के रूप में माना गया है।[३]

प्रत्येक दुआ के आरंभ में सलवात दोहराना

मकारिम अल-अख़लाक़ दुआ में मुहम्मद (स) और उनके परिवार पर 20 बार सलवात दोहराई गई है और सलवात के बाद हर बार नई इच्छा व्यक्त की गई हैं।[४] सलवात के साथ दुआ मांगने को उस सुन्नत मे शुमार किया गया है जो मासूमीन की सीरत से हम तक पहुंची है और हमे हुक्म दिया गया है कि अल्लाह से किसी चीज का अनुरोध करने से पहले और उसके बाद सलवात पढ़ी जाए।[५] चूँकि हदीसों के अनुसार, सलवात मुस्तजाब (स्वीकार) होती है, इसलिए सलवात के साथ जो अरज़ी ईश्वर के दरबार मे की जाती है उसके स्वीकार होने का बेहतर आधार होता है। इसलिए, इमाम सज्जाद (अ) ने इस दुआ में और दुआओ के दूसरी किताबो मे सलवात का बहुत अधिक उपयोग किया है।[६]

अच्छे संस्कारों की परमेश्वर से प्रार्थना क्यो?

मकारिम अल-अख़लाक़ दुआ के अपने विवरण की शुरुआत में रूहुल्लाह ख़ातमी यह सवाल उठाते हैं कि ईश्वर से अच्छे संस्कारों को कैसे तलब करे, जबकि मनुष्य को स्वयं अच्छे संस्कार सीखने का प्रयास करना चाहिए और बिना प्रयास के वह कहीं नहीं पहुँचेगा। इसका उत्तर देते हुए कहते है कि दुआ मानवीय प्रयास का स्थान नही ले सकती; इसलिए, अच्छे संस्कार प्राप्त करने के लिए, निरंतर प्रयासों के अलावा, प्रार्थना करना भी आवश्यक है ताकि ईश्वर का इरादा पूरा हो सके। दूसरी ओर, जब कोई व्यक्ति प्रार्थना करना शुरू करता है, तो व्यक्ति के अंदर एक प्रकार की हालत पैदा होती है जिससे मकारिम अल अख़्लाक़ प्राप्त करने का उसका दृढ़ संकल्प मजबूत हो जाता है।[७]

शिक्षाएँ

मकारिम अल-अख़्लाक दुआ का मुख्य विषय ईश्वर से अच्छे संस्कार प्राप्त करने और अच्छे कर्म करने का अनुरोध है।[८] इस प्रार्थना में अनुरोधों में विचार, भाषण और कार्रवाई के क्षेत्र में नैतिकता शामिल है, और इसे दो अक्षों व्यक्तिगत और सामाजिक नैतिकता में प्रस्तुत किया गया है।[९] सय्यद अली नक़ी फैज़ुल इस्लाम के अनुवाद और टिप्पणी के विभाजन के आधार पर 30 छंदों में इमाम सज्जाद (अ) से मकारिम अल-अख़लाक़ दुआ की शिक्षाएं इस प्रकार हैं:[१०]

व्यक्तिगत नैतिकता के शीर्षक

  • विश्वास का सबसे पूर्ण चरण, उच्चतम स्तर की निश्चितता, सर्वोत्तम इरादे और सर्वोत्तम कार्यों का आग्रह करना
  • आस्था सभी अच्छे कर्मों और अच्छे संस्कारों का स्रोत है।
  • अच्छी मंशा ही अच्छे कार्य का स्रोत है।
  • मानव विकास में समस्याएँ और बाधाएँ: ईश्वर के अलावा अन्य पर ध्यान और व्यस्तता, गरीबी, लालच, अहंकार, स्व-धार्मिकता (खुद पसंदी) और शेखी बघारना।
  • किसी व्यक्ति को बचाने के तरीके: पुनरुत्थान के लिए कर्म करना, लक्ष्य के रास्ते पर समय बिताना, गरीबी और जीविका की प्रचुरता से मुक्त रहना, आश्चर्य और पाखंड के बिना इबादत करना और आशीर्वाद के बिना अच्छे कर्म करना।
  • महानता और गौरव के साथ-साथ विनम्रता का अनुरोध
  • आज्ञाकारिता और दासता के मार्ग में आयु का अनुरोध करना[११]
  • कार्य में दृढ़ता: उचित मार्गदर्शन, दृढ़ इरादा, निरंतर इबादत और शैतान से दूर रहना
  • नैतिक विषयों में निपुणता हेतु अनुरोध |
  • दुआ की स्वीकृति का उत्तर माँगना
  • जीवन के दौरान वित्तीय विस्तार और बुढ़ापे में पर्याप्त जीविका के लिए दुआ करना
  • जीवन के अंत में ईश्वरीय क्षमा मांगना
  • समस्त जीवन में ईश्वर का स्मरण करना
  • दैवीय दंड से मुक्ति के लिए प्रार्थना करना
  • सर्वोत्तम तरीके से मार्गदर्शन की प्रार्थना करना
  • परीक्षा न लेने और धन से न जुड़ने की इच्छा व्यक्त करना
  • जीवन में संयम की प्रार्थना करना
  • ईश्वर से सर्वश्रेष्ठ के लिए प्रार्थना करना
  • अधिकार की दया से वंचित करने के कारकों से बचने की चाहत[१२]
  • धन से बंदो की दिव्य परीक्षा |
  • धन-दौलत में बरकत मांगना
  • दैवीय शक्ति का आश्रय लेना
  • धर्मपरायणता (तक़वा) से लाभ पाने की इच्छा में और ईश्वरीय मार्गदर्शन के आधार पर बोलना[१३]
  • गरीबी की कठिनाइयाँ और अपमान
  • इबादत में संयम बरतने का अनुरोध करना
  • जीविकोपार्जन के कारण इबादत से विरत रहना[१४]
  • हर चीज़ का परिवर्तन ईश्वर के हाथ में है।
  • आत्मा का विनाश की कगार पर होना
  • जीवन के अंत को ईश्वरीय क्षमा के साथ जुड़ने की चाहत करना
  • ईश्वर को याद करके और ईश्वर तथा उसके प्रेम का पालन करके इस लोक और परलोक की भलाई प्राप्त करना[१५]
  • दिव्य प्रेम के सुगम मार्ग की प्रार्थना करना
  • भगवान से इस दुनिया और उसके बाद की भलाई के लिए प्रार्थना करना[१६]

सामाजिक नैतिकता के शीर्षक

  • दूसरों के पूर्वाग्रहों को सुधारने की दुआ: ईर्ष्या (हसद) को प्यार में बदलना
  • शत्रुओं पर विजय के लिए प्रार्थना करना
  • उत्पीड़कों के उत्पीड़न से सुरक्षा और प्रतिरक्षा की मिठास से लाभ उठाने की इच्छा करना[१७]
  • त्याग (ईसार) और नैतिक क्षमा प्रदान
  • सत्ता चाहने और दूसरों के अधिकारों का उल्लंघन करने से इनकार
  • धर्मी लोगों (सालेहीन) की विशेषताओं को व्यक्त करना: न्याय का विस्तार करना, क्रोध को शांत करना, लोगों को सुधारना, लोगों के अच्छे कार्यों को प्रकट करना, दोषों (बुरईयो) को छिपाना, नम्रता, अच्छा व्यवहार, शांति, गरिमा, अच्छे नैतिकता, सामाजिक शिष्टाचार और सार्वजनिक नैतिकता का पालन करना आदि।
  • फिजूलखर्ची से बचने की प्रार्थना करना
  • बुरे काम के विरुद्ध अच्छी प्रतिक्रिया व्यक्त करना
  • देवताओं से सहायता माँगने के दुष्परिणाम |
  • लोगों के दिलों और ज़बानों में शैतानी प्रेरण (झूठी इच्छा, संदेह, ईर्ष्या, श्राप, झूठी गवाही, अपमान, आदि)
  • ज़ुल्म सहने और सताने से बचने के लिए ईश्वर की शरण लेना
  • दिव्य मार्गदर्शन व्यक्त करना (अभिव्यक्ति की शक्ति और लोगों का मार्गदर्शन करने पर इसका प्रभाव)
  • जिम्मेदारी और उचित प्रबंधन
  • रिश्तेदारों की दुश्मनी को दोस्ती में बदलना
  • दूसरों के साथ सहयोग करना और समुदाय की सेवा करना
  • जमात के साथ जाना और विधर्मियों (बिदअत गुजारो) को त्यागना[१८]
  • मानवीय गरिमा का ध्यान रखना
  • नीच लोगों की आवश्यकता न रखकर प्रतिष्ठा बनाये रखना
  • अच्छाई की ओर मार्गदर्शकों के बीच रहना
  • एक आदर्श का होना और न्याय के विस्तार में दिशा का निर्धारण करना
  • शांति बनाना और हिंसा से लड़ना
  • सद्गुणों में सामाजिक प्रतिस्पर्धा का महत्व
  • हानि एवं क्षति के कारकों को हटाना
  • अनुचित उपकार छोड़ना
  • अत्याचारियों के विरुद्ध शक्तिशाली हाथ और शत्रुओं के विरुद्ध ज़बाने गोया की इच्छा
  • अमीरों की दौलत को नजरअंदाज करना
  • मुहम्मद और उनके परिवार के लिए सर्वोत्तम आशीर्वाद का अनुरोध करना[१९]

व्याख्याएँ

मकारिम अल-अख़लाक दुआ की शरह मोनोग्राफी रूप में की गई है, उनमें से कुछ हैं:

  • शरह व तफ़सीर दुआ मकारिम अल अख़लाक़ मुहम्मद तक़ी फ़लसफ़ी की रचना है जिसे दफ़तर नशर फ़रहंग इस्लामी ने 1370 शम्सी मे पब्लिश का है। यह शरह मुहम्मद तक़ी फ़लसफ़ी द्वारा क़ुम और तेहरान मे सहीफ़ा सज्जादीया की बीसवी दुआ पर दिए गए भाषणो का संग्रह है और कुछ आयतो और हदीसों को एकत्र करने और जोड़ने के बाद, इसे 89 अध्यायों में प्रकाशित किया गया था।[२०]
  • शरह दुआ मकारिम अल अख़लाक़ मुहम्मद तक़ी मिस्बाह यज़्दी की रचना (2017 और 2018 ईस्वी में नैतिकता के पाठों का संग्रह है)[२१]
  • नूर अल-आफ़ाक: शेख मुहम्मद हुसैन ज़ू इल्म द्वारा दुआ मकारिम अल अखलाक की शरह है जिसके रचीयता अली अकबर एल्मी है और 1370 शम्सी मे प्रकाशित की गई थी।[२२]
  • आईना ए मकारिम (इमाम सज्जाद (अ) की दुआ मकारिम अल-अखलाक की व्याख्या है); दो भागो में सय्यद रूहुल्लाह ख़ात्मी द्वारा दुआ मकारिम अल अख़लाक पर 23 बैठको मे नैतिकता पर दिए गए भाषणो का संग्रह है। जिसे 1368 मे ज़ुलाल पब्लिशिंग द्वारा प्रकाशित किया गया था।[२३]

सहीफ़ा सज्जादिया की सभी दुआओ पर लिखी गई व्याख्याओ की तरह दुआ मकारिम अल अखलाक का भी वर्णन किया गया है। इस दुआ का वर्णन सहीफ़ा सज्जादिया की व्याख्याओं में किया गया है, जिसमें हुसैन अंसारियन की पुस्तक दियार आशेक़ान भी शामिल है,[२४] इस दुआ का वर्णन फ़ारसी भाषा में मुहम्मद हसन ममदूही किरमानशाही[२५] द्वारा शुहूद व शनाख़्त में भी किया गया है और इसका विवरण और अनुवाद सय्यद अहमद फ़हरी[२६] द्वारा भी किया गया है।

दुआ मकारिम अल अखलाक सय्यद अली खान मदनी द्वारा लिखित रियाज़ अल-सालेकीन[२७] मुहम्मद जवाद मुग़निया द्वारा लिखित फ़ि ज़ेलाल अल सहीफ़ा अल सज्जादिया[२८] मुहम्मद बिन मुहम्मद दाराबी[२९] की लिखित रियाज़ अल आरेफ़ीन जैसी किताबों में भी है। सय्यद मुहम्मद हुसैन फ़ज़्लुल्लाह[३०] द्वारा लिखित आफ़ाक़ अल-रूह शीर्षक से अरबी भाषा में वर्णन किया गया है। इस दुआ के शब्दों को शब्दकोष से भी समझाया गया है, जैसे फ़ैज़ काशानी द्वारा तालीक़ात अला अल साहिफ़ा अल-सजादिया[३१] और ऐज़ुद्दीन अल जज़ायेरी द्वारा लिखित साहिफ़ा सज्जादियाह का स्पष्टीकरण दिया है।[३२]

पाठ और अनुवाद

हिंदी पाठ अनुवाद अरबी पाठ
वकाना मिन दुआएही अलैहिस सलामो फ़ी मकारेमिल अख़्लाक़े व मरज़िय्यिल अफ़आले पवित्र सदाचार और अच्छे कर्मो से सुसज्जित होने की दुआ وَ كَانَ مِنْ دُعَائِهِ عَلَيْهِ السَّلَامُ فِي مَكَارِمِ الْأَخْلَاقِ وَ مَرْضِيِّ الْأَفْعَالِ
(1) अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिव वआलेहि, व बल्लिग़ बेईमानी अकमलल ईमाने, वज़्अल यक़ीनी अफ़्ज़लल यक़ीने, वनतहे बेनियती एला अहसनिन नियाते, व बेअमली एला अहसनि आमाले, हे परमेश्वर! मुहम्मद और उनके परिवार पर दया कर और मेरे विश्वास को सबसे उत्तम विश्वास बना और मेरे विश्वास को सर्वोत्तम विश्वास बना और मेरे इरादे को सर्वोत्तम इरादे और मेरे कार्यों को सर्वोत्तम कार्यों के स्तर तक बढ़ा। اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَی مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ، وَ بَلِّغْ بِإِیمَانِی أَکمَلَ الْإِیمَانِ، وَ اجْعَلْ یقِینِی أَفْضَلَ الْیقِینِ، وَ انْتَهِ بِنِیتِی إِلَی أَحْسَنِ النِّیاتِ، وَ بِعَمَلِی إِلَی أَحْسَنِ الْأَعْمَالِ
(2) अल्लाहुम्मा वफ़्फ़िर बेलुत्फ़ेका नियती, व सह्हेहो बेमा इंदका यक़ीनी, वस्तस्लेह बेक़ुदरतेका मा फ़सदा मिन्नी, हे अल्लाह! अपनी प्रसन्नता से मेरे इरादे को शुद्ध और ईमानदार बना, अपनी दया से मेरे विश्वास को मजबूत कर, और अपनी शक्ति से मेरे दोषों को सुधार। اللَّهُمَّ وَفِّرْ بِلُطْفِک نِیتِی، وَ صَحِّحْ بِمَا عِنْدَک یقِینِی، وَ اسْتَصْلِحْ بِقُدْرَتِک مَا فَسَدَ مِنِّی
(3) अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिव वा आलेही, वक्फ़ेनी मा यशग़लोनिल एहतेमामो बेहि, वस्तअमिल्नी बेमा तस्अलोनि ग़दन अन्हो, वस्तफ़्रिग़ अय्यामी फ़ीमा ख़लक़्तनी लहू, व अग़्नेनी व औअसे अला फ़ी रिज़्क़ेका, वला तफ़्तिन्नी बिन्नज़रे, व आइज़्ज़ेनी वला तब्तलेयिन्नी बिल किब्रे, व अय्यिद्नी लका वला तुफ़्सेदो एबादती बिल उज्बे, व अज्रे लिन्नासे अला यदिल ख़ैरा वला तम्हफ़्हो बिलमन्ने, वहब ली मआलेयल अख़्लाक़े, वअसिम्नी मिनल फ़ख़्रे, हे परमात्मा! मुहम्मद और उनके परिवार पर दया कर और मुझे उन व्यस्तताओं से मुक्त कर जो मुझे इबादत करने से रोकती हैं और मुझे उन चीजों का पालन करने की अनुमति दे जिनके बारे में मुझसे कल और जीवन भर पूछा जाएगा। इसे सृजन के उद्देश्य के लिए विशिष्ट बना। और मुझे (दूसरों से) आज़ाद कर और मेरी जीविका में प्रचुरता प्रदान कर। अभाव और उपेक्षा से ग्रस्त न हूं। आदर और सम्मान दें, उन्हें अहंकार से ग्रस्त न होने दें। मेरी आत्मा को इबादत के लिए वश में कर ले और मेरी इबाद को स्वार्थ से भ्रष्ट न होने दे और मेरे हाथों से लोगों का उपकार करके उसे व्यर्थ न जाने दे। मुझ पर दया कर और मुझे अभिमान और अहंकार से बचा, اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَی مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ، وَ اکفِنِی مَا یشْغَلُنِی الِاهْتِمَامُ بِهِ، وَ اسْتَعْمِلْنِی بِمَا تَسْأَلُنِی غَداً عَنْهُ، وَ اسْتَفْرِغْ أَیامِی فِیمَا خَلَقْتَنِی لَهُ، وَ أَغْنِنِی وَ أَوْسِعْ عَلَی فِی رِزْقِک، وَ لَا تَفْتِنِّی بِالنَّظَرِ، وَ أَعِزَّنِی وَ لَا تَبْتَلِینِّی بِالْکبْرِ، وَ عَبِّدْنِی لَک وَ لَا تُفْسِدْ عِبَادَتِی بِالْعُجْبِ، وَ أَجْرِ لِلنَّاسِ عَلَی یدِی الْخَیرَ وَ لَا تَمْحَقْهُ بِالْمَنِّ، وَ هَبْ لِی مَعَالِی الْأَخْلَاقِ، وَ اعْصِمْنِی مِنَ الْفَخْرِ
(4) अल्लाहुम्मा सल्ले अले मुहम्मदिव वा आलेही, वला तरफ़अनी फिन्नासे दरजतन इल्ला हतत्नी इन्द नफ़्सी मिस्लहा, वला तोहदिस ली इज़्जन जाहेरन इल्ला अहदस्ता ली ज़िल्लातन बातेनतन इन्दा नफ्सी बेकदरेहा,. हे मेरे अल्लाह! मुहम्मद और उनके परिवार पर दया कर और लोगों के बीच मेरा मान बढ़ा, मुझे अपनी नजरों में गिरा, और जितना तू मुझे बाहरी सम्मान देता है, उतना ही अंदर से मुझे बेकार होने का एहसास कर। اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَی مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ، وَ لَا تَرْفَعْنِی فِی النَّاسِ دَرَجَةً إِلَّا حَطَطْتَنِی عِنْدَ نَفْسِی مِثْلَهَا، وَ لَا تُحْدِثْ لِی عِزّاً ظَاهِراً إِلَّا أَحْدَثْتَ لِی ذِلَّةً بَاطِنَةً عِنْدَ نَفْسِی بِقَدَرِهَا
(5) अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिव व आले मुहम्मदिन, व मत्तेअनी बेहुदन सालेह ला अस्तब्देलो बेहि, व तरीक़ते हक्क़े ला अरबेओ अन्हा, व नीयते रुश्दिन ला अश्को फ़ीहा, व अम्मिरनी मा काना उम्री बिज़्लतन फ़ी ताअतेका, फ़इज़ा काना ओमोरी मरतअन लिश शैताने फ़क़्निज़्नी इलैका क़ब्ला अय यस्बेक़ा मफ़तोका इलय्या, ओ यस्तहकम ग़ज़्बोका अलय्या, हे पालनहार! मुहम्मद और उनके परिवार पर दया कर और मुझे इतना अच्छा मार्गदर्शन दे कि मैं इसे किसी और चीज से न बदल सकूं और मुझे सही रास्ते पर ला दे जिससे मैं कभी पीछे नहीं हटूंगा, और मुझे ऐसा दृढ़ इरादा दे कि मुझे कभी भी ज़रा सा भी संदेह न हो। और जब तक मेरा जीवन तेरी आज्ञाकारिता और आज्ञापालन का कार्य करता रहे, तब तक मुझे जीवित रखना, और जब यह शैतान की चरागाह बन जाए, तो इससे पहले कि तेरी अप्रसन्नता मुझ पर हावी हो जाए या तेरा क्रोध मुझ पर प्रबल हो जाए, मुझे अपनी ओर बुला ले लेना। اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَی مُحَمَّدٍ وَ آلِ مُحَمَّدٍ، وَ مَتِّعْنِی بِهُدًی صَالِحٍ لَا أَسْتَبْدِلُ بِهِ، وَ طَرِیقَةِ حَقٍّ لَا أَزِیغُ عَنْهَا، وَ نِیةِ رُشْدٍ لَا أَشُک فِیهَا، وَ عَمِّرْنِی مَا کانَ عُمُرِی بِذْلَةً فِی طَاعَتِک، فَإِذَا کانَ عُمُرِی مَرْتَعاً لِلشَّیطَانِ فَاقْبِضْنِی إِلَیک قَبْلَ أَنْ یسْبِقَ مَقْتُک إِلَی، أَوْ یسْتَحْکمَ غَضَبُک عَلَی
(6) अल्लाहुम्मा ला तदअ खस्लतन तोआबो मिन्नी इल्ला अस्लहतोहा, वला आऐबतन अवन्नबो बेहा इल्ला हस्सन्तहा, वला अक्रूमतन फ़िय्या नाक़ेसतन इल्ला अत्मम्तहा हे पालनहार! कोई भी ऐसा गुण बिना सुधारे न छोड़ जो मेरे लिए बुरा माना जाए और कोई ऐसी बुरी आदत न छोड़ जिसके लिए मुझे डांटा जा सके। और मुझमें जो पवित्र चरित्र अभी अधूरा है, उसे पूरा कर इसे अधूरा न रहने दे اللَّهُمَّ لَا تَدَعْ خَصْلَةً تُعَابُ مِنِّي إِلَّا أَصْلَحْتَهَا ، وَ لَا عَائِبَةً أُوَنَّبُ بِهَا إِلَّا حَسَّنْتَهَا ، وَ لَا أُكْرُومَةً فِيَّ نَاقِصَةً إِلَّا أَتْمَمْتَهَا
(7) अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिव वा आले मुहम्मद, व अब्दिलनी मिन बिज़्अते अहलिश शनाआनिल महब्बता, व मिन हसदे अहलिल बग़्इल मव्द्दता, व मिन ज़िन्नते अहलिस सलाहिस सकता, वमिन अदावतिल अदनैनल वलायता, व मिन उक़ूके ज़विल अरहामिल मबर्रता, वमिन ख़िज़लानिल अकरबीनन नुसरता, व मिन हुब्बिल मुदारीना तस्हीहल मेकते, व मिन रद्दिल मलाबेसीना करमल इश्रते वमिन मरारते ख़ौफिज़ जालेमीना हलावतल अमनतिल अमनते हे अल्लाह! मुहम्मद और उनके परिवार पर दया कर, और मेरे प्रति प्रेम से शत्रुओं की शत्रुता, प्रेम से विद्रोही की ईर्ष्या, विश्वास से धर्मी का अविश्वास, मित्रता से अपनों की शत्रुता, दया से प्रियजनों का विच्छेद, रिश्तेदारों का प्यार। अविश्वास को समर्थन और सहयोग से, चापलूसों के दिखावटी प्यार को सच्चे प्यार से, और सहकर्मियों के अपमानजनक व्यवहार को अच्छी संगति से, और उत्पीड़कों के डर की कड़वाहट को शांति की मिठास से बदल दे। اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِ مُحَمَّدٍ ، وَ أَبْدِلْنِي مِنْ بِغْضَةِ أَهْلِ الشَّنَآنِ الْمحَبَّةَ ، وَ مِنْ حَسَدِ أَهْلِ الْبَغْيِ الْمَوَدَّةَ ، وَ مِنْ ظِنَّةِ أَهْلِ الصَّلَاحِ الثِّقَةَ ، وَ مِنْ عَدَاوَةِ الْأَدْنَيْنَ الْوَلَايَةَ ، وَ مِنْ عُقُوقِ ذَوِي الْأَرْحَامِ الْمَبَرَّةَ ، وَ مِنْ خِذْلَانِ الْأَقْرَبِينَ النُّصْرَةَ، ، وَ مِنْ حُبِّ الْمُدَارِينَ تَصْحِيحَ الْمِقَةِ ، وَ مِنْ رَدِّ الْمُلَابِسِينَ كَرَمَ الْعِشْرَةِ ، وَ مِنْ مَرَارَةِ خَوْفِ الظَّالِمِينَ حَلَاوَةَ الْاَمَنَةِ الْاَمَنَةِ
(8) अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिव वा आलेहि, वज्अल ली यदन अला मन ज़लमी, व लेसानन अला मन ख़ासमनी, व ज़फ़रन बेमन आ नदनी, व हब ली मकर्रन अला मन कायदनी, व क़ुदरतन अला मनिज़ तहदनी, व तकज़ीबन लेमन क़सबनी, व सलामतन मिम्मन तवाअदनी, व वफ़्फ़कनी लेताअते मन सद्दनी, व मुताबअते मन अरशदनी, हे परमेश्वर! मुहम्मद और उनके परिवार पर दया कर और जो भी मेरे साथ अन्याय करे उस पर मुझे अधिकार दे। जो मुझ से झगड़ता है, उसके मुकाबले मे मुझे जबान शकन दे, जो मुझ से शत्रुता रखता है, उस पर मुझे विजय और सफलता दे। जो कोई मुझसे नाराज़ हो, उसे उसके मकर की छूट दे दो। जो मुझ पर अत्याचार करता है उस पर विजय पाऊं। मुझे उस का इन्कार करने की शक्ति दे जो मेरी निन्दा करता है, और जो मुझे धमकाता है उससे मेरी रक्षा कर। उसकी आज्ञा मानू जो मुझे सुधारता है और उसका अनुसरण करूं जो मुझे सही रास्ता दिखाता है। اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ ، وَ اجْعَلْ لِي يَداً عَلَى مَنْ ظَلَمَنِي ، وَ لِسَاناً عَلَى مَنْ خَاصَمَنِي ، وَ ظَفَراً بِمَنْ عَانَدَنِي ، وَ هَبْ لِي مَكْراً عَلَى مَنْ كَايَدَنِي ، وَ قُدْرَةً عَلَى مَنِ اضْطَهَدَنِي ، وَ تَكْذِيباً لِمَنْ قَصَبَنِي ، وَ سَلَامَةً مِمَّنْ تَوَعَّدَنِي ، وَ وَفِّقْنِي لِطَاعَةِ مَنْ سَدَّدَنِي ، وَ مُتَابَعَةِ مَنْ أَرْشَدَنِي
(9) अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिव व आलेहि, व सद्दनी लेअन ओआरेज़ मन गश्शनी बिन नस्हे, वज्ज़ेया मन हजरनी बिल बिर्रे, व ओसीबा मन हरमनी बिल बज़्ले, व ओकाफ़ेय मन क़तअनी बिस सेलते, व ओख़ालेफ़ा मनिग ताबनी एला हुस्निज़ ज़िक्रे, व अन अश्कोरल हस्नता, व उग़्ज़ेया अनिस सय्येअते, हे अल्लाह! मुहम्मद और उनके परिवार पर दया कर और मुझे उसके साथ अच्छा व्यवहार करने का अवसर दे जिसने मुझे धोखा दिया है, और जो मुझे छोड़ देता है उसके साथ अच्छा व्यवहार करने का अवसर दे। जो मुझे वंचित करता है, मैं उसे अनुग्रह और क्षमा से पुरस्कृत करूंगा, और जो निर्दयी है, मैं उसे दया से पुरस्कृत करूंगा, और जो मेरी पीठ पीछे मेरे साथ अन्याय करता है, मैं उसे अच्छे के रूप में याद रखूंगा, और उसके अच्छे व्यवहार के लिए धन्यवाद व्यक्त करूंगा, और बुराई को नजरअंदाज कर दूंगा। اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ ، وَ سَدِّدْنِي لِأَنْ أُعَارِضَ مَنْ غَشَّنِي بِالنُّصْحِ ، وَ أَجْزِيَ مَنْ هَجَرَنِي بِالْبِرِّ ، وَ أُثِيبَ مَنْ حَرَمَنِي بِالْبَذْلِ ، وَ أُكَافِيَ مَنْ قَطَعَنِي بِالصِّلَةِ ، وَ أُخَالِفَ مَنِ اغْتَابَنِي إِلَى حُسْنِ الذِّكْرِ ، وَ أَنْ أَشْكُرَ الْحَسَنَةَ ، وَ أُغْضِيَ عَنِ السَّيِّئَةِ
(10) अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिव वा आलेहि, व हल्लेनी, बेहिलयतिस सालेहीना, व अलबिस्नी ज़ीनतल मुत्तक़ीना, फ़ि बस्तिल अद्ले, व कज़ुल्मिल ग़ैज़े, व इत्फ़इन नाएरते, व ज़म्मे अहलिल फ़ुरक़ते, व इस्लाहिल ज़ातिल यमीने, व इफ़्शाइल आरेफ़ते, व सितरिल आएबते, व लीनिल अरीकते, व ख़फ़्ज़िल जनाहे, व हुस्निस सीरते, व सुकूनिर रीहे, व तीबिल मख़ालफ़ते, वस सबक़े एलल फ़ज़ीलते, व ईसारित तफ़ज़्ज़ोले, व तरकित ताअयीरे, व इफ़्ज़ाले अला ग़ैरिल मुस्तहक़्क़े, वल क़ौले बिल हक़्क़े व इन अज़्ज़, व इस्तिक़लालिल ख़ैरे व इन कसोरा मिन कौली व फेअली, वस्तिकसारिश शर्रे व इन कल्ला मिन क़ौली व फ़ेअली, व अकमिल ज़ालेका ली बेदवामित ताअते, व लुज़ूमिल जमाअते, व रफ़्ज़े अहलिल बेदआऐ, वमुस्तमेलिर राइल मुख़्तरऐ, हे पालनहार! मुहम्मद और उनके परिवार पर दया कर और न्याय के फैलाने, क्रोध पर लगाम लगाने और देशद्रोह को दबाने, विभाजित और बिखरे हुए लोगों को एक साथ मिलाने, आपस में शांति बनाए रखने, अच्छे कर्म दिखाने, दोषों को छिपाने, नम्र और विनम्र बनाने। और एक अच्छा चरित्र अपनाने, उसे बनाए रखने, अच्छे आचरण करने, उत्कृष्टता की ओर बढ़ाने, दया और दयालुता को प्राथमिकता देने, लालच से बचाने और अयोग्य पर दया करने और सच बोलने। भले ही वह बोलने में कमजोर हो, और भले ही वह ऊँचा हो, उसकी वाणी और चरित्र की अच्छाई को कम आँकने, और भले ही वह नीचा हो, उसके शब्दों और कार्यों की बुराई को अधिक आँकने। मुझे धर्मियों के आभूषणों और धर्मपरायणों के साष्टांग प्रणाम और इन सभी चीजों से अलंकृत करके, जमात और नवोन्मेषी लोगों और आविष्कृत दाइयों के प्रति शाश्वत आज्ञाकारिता और प्रतिबद्धता। फालो करने वालों से अलग करके पाए तकमील तक पहुंचा اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ ، وَ حَلِّنِي، بِحِلْيَةِ الصَّالِحِينَ ، وَ أَلْبِسْنِي زِينَةَ الْمُتَّقِينَ ، فِي بَسْطِ الْعَدْلِ ، وَ كَظْمِ الغَيْظِ ، وَ إِطْفَاءِ النَّائِرَةِ ، وَ ضَمِّ أَهْلِ الْفُرْقَةِ ، و إِصْلَاحِ ذَاتِ الْبَيْنِ ، وَ إِفْشَاءِ الْعَارِفَةِ ، وَ سَتْرِ الْعَائِبَةِ ، وَ لِينِ الْعَرِيكَةِ ، وَ خَفْضِ الْجَنَاحِ ، وَ حُسْنِ السِّيرَةِ ، وَ سُكُونِ الرِّيحِ ، وَ طِيبِ الْمخَالَقَةِ ، وَ السَّبْقِ إِلَى الْفَضِيلَةِ ، وَ إِيثَارِ التَّفَضُّلِ ، وَ تَرْكِ التَّعْيِيرِ ، وَ الْإِفْضَالِ عَلَى غَيْرِ الْمُسْتَحِقِّ ، وَ الْقَوْلِ بِالْحَقِّ وَ إِنْ عَزَّ ، وَ اسْتِقْلَالِ الْخَيْرِ وَ إِنْ كَثُرَ مِنْ قَوْلِي وَ فِعْلِي ، وَ اسْتِكْثَارِ الشَّرِّ وَ إِنْ قَلَّ مِنْ قَوْلِي وَ فِعْلِي ، وَ أَكْمِلْ ذلك لِي بِدَوَامِ الطَّاعَةِ ، وَ لُزُومِ الْجَمَاعَةِ ، وَ رَفْضِ أَهْلِ الْبِدَعِ ، وَ مُسْتَعْمِلِ الرَّاْيِ الْمُخْتَرَعِ
(11) अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिव व आलेही, वज्अल औसआ रिज़्क़ेका अलय्या इज़ा कबिरतो, व अक़्वा क़ुव्वतेका फ़िय्या इज़ा नसिब्तो, वला तब्तलेयन्नी बिल कस्ले अन इबादतिक, व ललअमा अन सबीलिक, वला बित्तअर्रोज़े ले ख़ेलाफ़े मोहब्बतिक, वला मजामअते मन तफ़र्रक़ा अन्क, वला मुफ़ारक़ते मनिज तमअ इलैक। हे अल्लाह! मुहम्मद और उनके परिवार पर दया कर, और जब मैं बूढ़ा हो जाऊं, तो मेरे लिए अपनी प्रचुर जीविका की घोषणा कर, और जब मैं कमजोर और असहाय हो जाऊं, तो अपनी शक्तिशाली शक्ति से मेरा समर्थन कर, और मुझे इस बात मे लिप्त न कर कि मै तेरी इबादत में सुस्ती और कोताही न करूं, तेरे मार्ग के मूल्यांकन से भटक जाऊ, तेरे प्रेम की मांगों का उल्लंघन करूं। और जो लोग तुझसे बंटे और बिखरे हुए हों, उनसे दोस्ती रखूं और जो तेरी ओर बढ़ने वाले हों, उनसे दूर रहूं। اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ ، وَ اجْعَلْ أَوْسَعَ رِزْقِكَ عَلَيَّ إِذَا كَبِرْتُ ، وَ أَقْوَى قُوَّتِكَ فِيَّ إِذَا نَصِبْتُ ، وَ لَا تَبْتَلِيَنِّي بِالْكَسَلِ عَنْ عِبَادَتِكَ ، وَ لَا الْعَمَى عَنْ سَبِيلِكَ ، وَ لَا بِالتَّعَرُّضِ لِخِلَافِ مَحَبَّتِكَ ، وَ لَا مُجَامَعَةِ مَنْ تَفَرَّقَ عَنْكَ ، وَ لَا مُفَارَقَةِ مَنِ اجْتَمَعَ إِلَيْكَ
(12) अल्लाहुम्मज अलनी उसूलो बेका इंदज़्ज़रूरते, व अस्अलोका इन्दल हाजते, व अतज़र्रओ इलैका इन्दल मसकनते, वला तफ़तिन्नी बिल इस्तीआनते बे ग़ैयरेक इज़ज़ तोरिरतो, वला बिल ख़ुज़ूए ले सुआले ग़ैयरेका इज़िफ़ तक़रतो, वला बित तज़र्रोए एला मन दूनका इज़ा रहिब्तो, फ़स्तहिक़्क़ा बे ज़ालेका ख़िज़लानक व मन्अका व ऐराज़क़ या अर्हमर राहेमीन हे परमेश्वर! मुझे ऐसा बना कि मैं जरूरत के समय तेरे माध्यम से हमला कर सकूं, जरूरत के समय तुझसे सवाल कर सकूं और गरीबी और जरूरत के समय तेरे सामने रो सकूं, और जरूरत के समय तेरे अलावा किसी और से मदद मांगने के लिए मुझे प्रलोभित न कर। गरीबी और दरिद्रता के समय मैं विनम्रतापूर्वक तेरे सामने विनती करता हूं, और भय के अवसर पर, मैं तेरे अलावा किसी और के सामने विनम्रतापूर्वक विनती करूं ताकि मैं तुझसे वंचित, असफलता और अविश्वास का पात्र बन सकूं। हे परम दयालु! اللَّهُمَّ اجْعَلْنِي أَصُولُ بِكَ عِنْدَ الضَّرُورَةِ ، وَ أَسْأَلُكَ عِنْدَ الْحَاجَةِ ، وَ أَتَضَرَّعُ إِلَيْكَ عِنْدَ الْمَسْكَنَةِ ، وَ لَا تَفْتِنِّي بِالِاسْتِعَانَةِ بِغَيْرِكَ إِذَا اضْطُرِرْتُ ، وَ لَا بِالْخُضُوعِ لِسُؤَالِ غَيْرِكَ إِذَا افْتَقَرْتُ ، وَ لَا بِالتَّضَرُّعِ إِلَى مَنْ دُونَكَ إِذَا رَهِبْتُ ، فَأَسْتَحِقَّ بِذَلِكَ خِذْلَانَكَ وَ مَنْعَكَ وَ إِعْرَاضَكَ ، يَا أَرْحَمَ الرَّاحِمِينَ
(13) अल्लाहुम्मज्अल मा युलक़िश शैतानो फ़ी रूअई मेनत तमन्नी वत तज़न्नी वल हसदे ज़िकरन ले अज़मतेका, वा तफ़क्कोरन फ़ी क़ुदरतेका, व तदबीरन अला अदुव्वेका, व मा अज्रा अलय्या लेसानी मिन लफ़्ज़ते फ़ोहशिन औ हुज्रिन ओ शतमे इरज़िन औ शहादते बातेलिन औ इग़्तियाबे मोमिने ग़ाएबिन औ सब्बे हाज़ेरिन वमा अश्बहा ज़ालेका नुत्क़न बिल हम्दे लका, व इग़्राक़न फिस सनाए अलैका, व ज़हाबन फ़ी तमजीदेका, व शुकरन ले नेअमतेका, व एअतेराफ़न बे एहसानेका, व एहसाअन लेमेननेका, हे ईश्वर! लालच, अविश्वास और ईर्ष्या की भावनाएँ जो शैतान मेरे दिल में पैदा करे। उन्हे अपनी महानता की याद अपनी शक्ति में सोचने और दुश्मन के खिलाफ योजना बनाने, और अश्लील भाषण या अश्लील बातो, या निंदा या झूठी गवाही या अनुपस्थित आस्तिक की चुगली या वर्तमान से भी बदतर के विचारों से बदल। मौखिक और इसी तरह की बातें जो तू मेरी जुबान पर लाना चाहता हैं, उन्हें अपनी प्रशंसा, प्रयास और प्रशंसा में गर्व, प्रशंसा और महानता के भाव, कृतज्ञता और उपकारों की स्वीकृति और अपने आशीर्वाद की गिनती से बदल दें। اللَّهُمَّ اجْعَلْ مَا يُلْقِي الشَّيْطَانُ فِي رُوعِي مِنَ الَّتمَنِّي وَ التَّظَنِّي وَ الْحَسَدِ ذِكْراً لِعَظَمَتِكَ ، وَ تَفَكُّراً فِي قُدْرَتِكَ ، وَ تَدْبِيراً عَلَى عَدُوِّكَ ، وَ مَا أَجْرَى عَلَى لِسَانِي مِنْ لَفْظَةِ فُحْشٍ أَوْ هُجْرٍ أَوْ شَتْمِ عِرْضٍ أَوْ شَهَادَةِ بَاطِلٍ أَوِ اغْتِيَابِ مُؤْمِنٍ غَائِبٍ أَوْ سَبِّ حَاضِرٍ وَ مَا أَشْبَهَ ذَلِكَ نُطْقاً بِالْحَمْدِ لَكَ ، وَ إِغْرَاقاً فِي الثَّنَاءِ عَلَيْكَ ، وَ ذَهَاباً فِي تَمْجِيدِكَ ، وَ شُكْراً لِنِعْمَتِكَ ، وَ اعْتِرَافاً بِاِحْسَانِكَ ، و اِحْصَاءً لِمِنَنِكَ
(14) अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिव वा आलेह, वला अज़्लमन्ना व अंता मोतीक़ुन लिद दफ़्ए अन्नी, वला अज़्लेमन्ना व अंतल क़ादेरो अलल कब्ज़े मिन्नी, वला अज़िल्लन्ना व क़द अमकनतका हेदायती, वला इफ़्तकेरन्ना व मिन इंदेका वुस्ई, वला अतग़यन्ना व मिन इंदेका वुज्दी हे परमात्मा! मुहम्मद और उनके परिवार पर दया कर, और जब तक तू इसे रोकने में सक्षम है, तब तक मेरे साथ अन्याय न होने दे, और जब तक तेरे पास मुझे गलत करने से रोकने की शक्ति है, तब तक मुझे किसी के साथ अन्याय न करने दे, और जब तक तू मुझे गलत करने से रोकने में सक्षम है, मुझे भटकने मत दे। मेरा मार्गदर्शन तेरे लिए आसान है और मोहताज न हूं, जबकि मेरी आज़ादी तुझसे है। और सरकश न हो जाऊं जबकि मेरी खुशहाली तुझ ही से है। اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ ، وَ لَا أُظْلَمَنَّ وَ أَنْتَ مُطِيقٌ لِلدَّفْعِ عَنِّي ، وَ لَا أَظْلِمَنَّ وَ أَنْتَ الْقَادِرُ عَلَى الْقَبْضِ مِنِّي ، وَ لَا أَضِلَّنَّ وَ قَدْ أَمْكَنَتْكَ هِدَايَتِي ، وَ لَا أَفْتَقِرَنَّ وَ مِنْ عِنْدِكَ وُسْعِي ، وَ لَا أَطْغَيَنَّ وَ مِنْ عِنْدِكَ وُجْدِي
(15) अल्लाहुम्मा एला मग़फ़ेरतेका वफ़दतो, व एला अफ़वेका क़सदतो, व एला तजावोज़ेका इश्तक़तो, व बेफ़ज़्लेका वसिक़्तो, व लैसा इंदी मा यूजेबो ली मग़फ़ेरतेका, वला फ़ी अम्ली मा अस्तहिक़्क़ो बेहि अफ़वका, वमा ली बादा अन हक्मतो अला नफ़्सी इल्ला फ़ज़्लोका, फ़सल्ले अला मुहम्मदि व आलेहि, व तफ़ज़्ज़ल अलय्या, हे परमेश्वर! मैं तेरी क्षमा की ओर आया हूँ और तुझसे क्षमा माँग रहा हूँ और तेरी क्षमा की अभिलाषा कर रहा हूँ। मुझे केवल तेरी कृपा पर भरोसा है और मेरे पास ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे मुझे क्षमा मिल सके और मेरे कार्यों में ऐसा कुछ भी नहीं है जो तेरी क्षमा के योग्य हो और अब जब मैंने अपने विरुद्ध निर्णय लिया है। मैंने वह किया है जो तेरी कृपा के अलावा मेरी मुख्य आशा हो सकती है। इसलिए मुहम्मद और उनके परिवार पर दया कर और मुझ पर दया कर। اللَّهُمَّ إِلَى مَغْفِرَتِكَ وَفَدْتُ ، وَ إِلَى عَفْوِكَ قَصَدْتُ ، وَ إِلَى تَجَاوُزِكَ اشْتَقْتُ ، وَ بِفَضْلِكَ وَثِقْتُ ، وَ لَيْسَ عِنْدِي مَا يُوجِبُ لِي مَغْفِرَتَكَ ، وَ لَا فِي عَمَلِي مَا أَسْتَحِقُّ بِهِ عَفْوَكَ ، وَ مَا لِي بَعْدَ أَنْ حَكَمْتُ عَلَى نَفْسِي إِلَّا فَضْلُكَ ، فَصَلِّ عَلَي مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ ، وَ تَفَضَّلْ عَلَيَّ
(16) अल्लाहुम्मा व अंतिक़्नी बिल हुदा, व अलहिम्नित्तक़वा, व वफ़्फ़िक़्नी लिल लति हेया अज़्का, वस्तअमिलनी बेमा होवा अर्ज़ा हे भगवान ! मेरा मार्गदर्शन कर, मेरे हृदय में धर्मपरायणता और परहेज़गारी उत्पन्न कर, मुझे शुद्ध कर्म का अवसर दे, मुझे मेरे पसंदीदा कार्य में व्यस्त रख। اللَّهُمَّ وَ أَنْطِقْنِي بِالْهُدَى ، وَ أَلْهِمْنِي التَّقْوَى ، وَ وَفِّقْنِي لِلَّتِي هِيَ أَزْكَى ، وَ اسْتَعْمِلْنِي بِمَا هُوَ أَرْضَى
(17) अल्लाहुम्मा अस्अलोका बेयत्तरीक़तल मुस्ला, वज्अलनी अला मिल्लतेका अमूतो व अहया हे भगवान ! मुझे उत्तम मार्ग दिखा और मुझे अपने धर्म और संविधान पर मार और उसी पर जिला। اللَّهُمَّ اسْلُكْ بِيَ الطَّرِيقَةَ الْمُثْلَى ، وَ اجْعَلْنِي عَلَى مِلَّتِكَ أَمُوتُ وَ أَحْيَا
(18) अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिव व आलेहि, व मत्तेअनी बिल इक़्तेसादे, वज्अलनी मिन अहलिस सदादे, व मन अदिल्लतिर रशादे, व मिन सालेहिल ऐबादे, वर ज़ुक़्नी फ़ौज़ल मआदे, व सलामतल मिरसादे हे अल्लाह! मुहम्मद और उनके परिवार पर दया कर और मुझे (वाणी और चरित्र में) विनम्र बना और मुझे सही काम करने वालों और मार्गदर्शन के नेताओं और अच्छे सेवकों में से एक बना और मुझे इसके बाद सफलता और नरक की आग से सुरक्षा प्रदान कर। اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ ، وَ مَتِّعْنِي بِالِاقْتِصَادِ ، وَ اجْعَلْنِي مِنْ أَهْلِ السَّدَادِ ، وَ مِنْ أَدِلَّةِ الرَّشَادِ ، وَ مِنْ صَالِحِ الْعِبَادِ ، وَ ارْزُقْنِي فَوْزَ الْمَعَادِ ، وَ سلَامَةَ الْمِرْصَادِ
(19) अल्लाहुम्मा ख़ुज़ लेनफ़्सेका मिन नफ़्सी मा योख़ल्लेसोहा, व अब्क़े लेनफ़्सी मिन नफ़्सी मा युस्लेहोहा, फ़इन्ना नफ्सी हालेकतुन औ तअसेमहा हे अल्लाह, मेरी आत्मा का एक भाग अपने लिए (परीक्षण के लिए) सुरक्षित रख ताकि वह (सज़ा से) मुक्त हो सके और एक भाग जो इसके (धार्मिक) सुधार और धार्मिकता से संबंधित है, मेरे लिए रह जाए, क्योंकि मेरी आत्मा है नाश हो रहा है। यह होने वाला है, लेकिन तुझे इसे बचाना होगा। اللَّهُمَّ خُذْ لِنَفْسِكَ مِنْ نَفْسِي مَا يُخَلِّصُهَا ، وَ أَبْقِ لِنَفْسِي مِنْ نَفْسِي مَا يُصْلِحُهَا ، فَإِنَّ نَفْسِي هَالِكَةٌ أَوْ تَعْصِمَهَا
(20) अल्लाहुम्मा अंता उद्दती इन हज़िंतो, व अंता मुन्तजई इन होरिम्तो, व बेकस्तेग़ासी इन करिस्तो, व इंदका मिम्मा फ़ाता ख़लफ़ुन, व लेमा फ़सदा सलाहुन, व फ़ीमा अंकरता तग़ईरुन, फ़म्नुन अलय्या कब्लल बलाए बिल आफ़ीयते, व क़ब्लत तलबे बिल जिदते, व क़ब्लज़ ज़लाले बिर रेशादे, वक फ़ेनी मऊनता मअर्रतिल ऐबादे, व हब्ली अम्ना यौमिल मेआदे, वम्नेहनी हुस्नल इरशादे हे अल्लाह! अगर मैं दुखी हूं तो मेरा उपकरण (सांत्वना) तू है। और यदि मैं (हर स्थान से) वंचित हो जाऊं, तो मेरी आशा तू है। और यदि मुझ पर दुखों की भीड़ हो, तो तुझ ही से फ़रयाद हूं। जो चला गया है उसे बदलना और जो नष्ट हो गया है उसे सही करना और जो तुझे नापसंद है उसे बदलना तेरे हाथ में है। इसलिए मुझे बुलाने से पहले समृद्धि, मांगने से पहले समृद्धि और भटकने से पहले मार्गदर्शन प्रदान कर। और लोगों के कठोर शब्दों के दर्द से मेरी रक्षा कर, और मुझे क़यामत के दिन शांति और संतुष्टि प्रदान कर, और मुझे अच्छे मार्गदर्शन की कृपा प्रदान कर। اللَّهُمَّ أَنْتَ عُدَّتِي إِنْ حَزِنْتُ ، وَ أَنْتَ مُنْتَجَعِي إِنْ حُرِمْتُ ، وَ بِكَ اسْتِغَاثَتِي إِنْ كَرِثْتُ ، وَ عِنْدَكَ مِمَّا فَاتَ خَلَفٌ ، وَ لِمَا فَسَدَ صَلَاحٌ ، وَ فِيما أَنْكَرْتَ تَغْيِيرٌ ، فَامْنُنْ عَلَيَّ قَبْلَ الْبَلَاءِ بِالْعَافِيَةِ ، وَ قَبْلَ الطَّلَبِ بِالْجِدَةِ ، وَ قَبْلَ الضَّلَالِ بِالرَّشَادِ ، وَ اكْفِنِي مَؤُونَةَ مَعَرَّةِ الْعِبَادِ ، وَ هَبْ لِي أَمْنَ يَوْمِ الْمَعَادِ ، وَ امْنِحْنِي حُسْنَ الْاِرْشَادِ
(21) अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिव वा आलेही, वदरा अन्नी बेलुत्फ़ेका, वग़ज़ोनी बेनेअमतेका, वस्लेहनी बेकरमेका, व दावेनी बेसुन्अका, व अज़िल्लेनी फ़ी ज़राका, व जल्लिलनी रेज़ाका, व वफ़्फ़िक़्नी इज़श तकलक अलय्यल ओमूरो लेअहदाहा, व इज़ा तशाबहतिल आमालो लेअज़काहा, व इज़ा तनाकज़्तिल मलाले लेअरज़ाहा हे परमात्मा! मुहम्मद और उनके परिवार पर दया कर और अपनी प्रसन्नता से मुझमें से (बुराइयों को) दूर कर और अपनी कृपा से मुझे सुधार, अपनी कृपा से मेरा पालन-पोषण कर और अपनी कृपा और दया से मुझे (शारीरिक और मानसिक रोगों से) बचा। मुझे अपनी दया की छाया में रख और मुझे अपनी कृपा से ढँक लें। और जब मामला संदिग्ध हो जाए, तो उनमें से जो अधिक सही हो, और जब कार्यों के बारे में संदेह हो, तो उनमें से जो अधिक शुद्ध हो, और जब धर्मों में मतभेद हो, तो उनमें से जो अधिक अनुकूल हो, उस पर अमल करने की तौफ़ीक़ प्रदान कर। اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ ، وَ ادْرَأْ عَنِّي بِلُطْفِكَ ، وَ اغْذُنِي بِنِعْمَتِكَ ، وَ أَصْلِحْنِي بِكَرَمِكَ ، وَ دَاوِنِي بِصُنْعِكَ ، وَ أَظِلَّنِي فِي ذَرَاكَ ، وَ جَلِّلْنِي رِضَاكَ ، وَ وَفِّقْنِي إِذَا اشْتَكَلَتْ عَلَيَّ الْأُمُورُ لِأَهْدَاهَا ، وَ إِذَا تَشَابَهَتِ الْأَعْمَالُ لِأَزْكَاهَا ، وَ إِذَا تَنَاقَضَتِ الْمِلَلُ لِأَرْضَاهَا
(22) अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिव व आलेहि, व तव्विज्नी बिल किफ़ायते, व सुम्नी हुस्नल वेलायते, व हब्ली सिद्क़ल हेदायते, वला तफ़्तिन्नी बिस्सअते, वम्नेहनी हुस्नद दअते, वला तज्अल अय्शी कद्दन कद्दा, व ला तुरद्दो दुआई अलय्या रद्दा, फ़इन्नी ला अज्अलो लका ज़िद्दा, वला अद्ऊ मअका निद्दा हे परमेश्वर! मुहम्मद और उनके परिवार पर दया कर और मुझे बेगुनाही का ताज पहना और मुझे प्रासंगिक कार्यों को करने और उन्हें सर्वोत्तम तरीके से करने के लिए नियुक्त कर और मुझे ऐसे मार्गदर्शन से सम्मानित कर जो स्थायी और स्थिर हो और मुझे धन और समृद्धि के साथ गुमराह न कर। आसानी और आराम प्रदान कर, और जीवन को बहुत कठिन बना दें। मेरी दुआ न ठुकराना क्योंकि मैं किसी को तेरा मुख़ालिफ़ नहीं मानता और तेरे साथ किसी को अपना हमसफ़र नहीं बुलाता। اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ ، وَ تَوِّجْنِي بِالْكِفَايَةِ ، وَ سُمْنِي حُسْنَ الْوِلَايَةِ ، وَ هَبْ لِي صِدْقَ الْهِدَايَةِ ، وَ لَا تَفْتِنِّي بِالسَّعَةِ ، وَ امْنِحْنِي حُسْنَ الدَّعَةِ ، وَ لَا تَجْعَلْ عَيْشِي كَدّاً كَدّاً ، وَ لَا تَرُدَّ دُعَائِي عَلَيَّ رَدّاً ، فَإِنِّي لَا أَجْعَلُ لَكَ ضِدّاً ، وَ لَا أَدْعُو مَعَكَ نِدّاً
(23) अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिव वा आलेहि, वम्नअनी मिनस सरफ़े, व हस्सिन रिज़्की मिनत तलफ़े, व वफ़्फ़िर मलकती बिल बरकते फ़ीह, व असिब बी सबीलल हेदायते लिलबिर्रे फ़ीमा अंतफ़ेको मिन्हो हे पालनहार! मुहम्मद और उनके परिवार पर दया कर। और मुझे फिजूलखर्ची से रोक और मेरी जीविका को नष्ट होने से रोक, और मेरे धन पर आशीष दे और उसे बढ़ा दे, और उसे अच्छी चीजों में खर्च करके मुझे सीधे मार्ग पर ले आ। اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ ، وَ امْنَعْنِي مِنَ السَّرَفِ ، وَ حَصِّنْ رِزْقِي مِنَ التَّلَفِ ، وَ وَفِّرْ مَلَكَتِي بِالْبَرَكَةِ فِيهِ ، وَ أَصِبْ بِي سَبِيلَ الْهِدَايَةِ لِلْبِرِّ فِيما أُنْفِقُ مِنْهُ
(24) अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिव वा आलेहि, वक्फ़ेनी मऊनतल इक्तेसाबे, वर ज़ुक़्नी मिन ग़ैरेह तेसाबिन, फ़ला अश्तग़ेला अन ऐबादतेका बित्तलबे, वला अहतमेला इस्रा तबेआतिल मकसबे हे अल्लाह! मुहम्मद और उनके परिवार पर दया कर और मुझे अर्थव्यवस्था के दुखों से मुक्त कर। और अनगिनत जीविका दे ताकि मैं जीविका के चक्कर में भ्रमित होकर तेरी इबादत से विमुख न हो जाऊं और (गलत व नाजायज) व्यापार का फल न भोगूं। اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ ، وَ اكْفِنِي مَؤُونَةَ الِاكْتِسَابِ ، وَ ارْزُقْنِي مِنْ غَيْرِ احْتِسَابٍ ، فَلَا أَشْتَغِلَ عَنْ عِبَادَتِكَ بِالطَّلَبِ ، وَ لَا أَحْتَمِلَ إِصْرَ تَبِعَاتِ الْمَكْسَبِ
(25) अल्लाहुम्मा फ़अत्लिबनी बेक़ुदरतेका मा अत्लोबो, व अजिरनी बेइज़्ज़तेका मिम्मा अरहबो हे पालनहार! अपनी शक्ति से मैं जो माँगता हूँ वह मुझे प्रदान कर और अपने सम्मान और महिमा के माध्यम से मुझे जिस चीज़ से डर लगता है उससे मेरी रक्षा कर। اللَّهُمَّ فَأَطْلِبْنِي بِقُدْرَتِكَ مَا أَطْلُبُ ، وَ أَجِرْنِي بِعِزَّتِكَ مِمَّا أَرْهَبُ
(26) अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिव व आलेहि, व सुन वज्ही बिल यसाले, व ला तब्तज़िल जाही बिल इक़्तासे फ़स्तर्ज़ेक़ा अहला रिज़्केका, वस्तअतेया शेरारा ख़ल्क़ेका, फ़अफ़्तनिने बेहम्दे मन आअतानी, व उब्तली बेज़म्मे मन मनअनी, व अंता मिन दूनेहिम वलीयुल ऐअताए वम मन्ऐ हे ईश्वर ! मेरी प्रतिष्ठा को शर्म आनी चाहिए। और अपनी दयालुता से मुझे सुरक्षित रखना और गरीबी और कठिनाई के कारण मेरी स्थिति को नजरअंदाज न करना। उन लोगों से जीविका माँगना शुरू करना जो तुझसे जीविका प्राप्त करते हैं। और मैं चाहता हूं, कि तेरे दीन दासोंकी दृष्टि मेरी ओर फेर ले, और जो मुझे देता है, उसकी प्रशंसा करूं, और जो न दे, उसकी बुराई करूं। और देने और रोकने का अधिकार केवल तेरे पास है, उसके पास नहीं। اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ ، وَ صُنْ وَجْهِي بِالْيَسَارِ ، وَ لَا تَبْتَذِلْ جَاهِي بِالْإِقْتَارِ فَأَسْتَرْزِقَ أَهْلَ رِزْقِكَ ، وَ أَسْتَعْطِيَ شِرَارَ خَلْقِكَ ، فَأَفْتَتِنَ بِحَمْدِ مَنْ أَعْطَانِي ، وَ اُبْتَلَي بِذَمِّ مَنْ مَنَعَنِي ، وَ أَنْتَ مِنْ دُونِهِمْ وَلِيُّ الْإِعْطَاءِ وَ الْمَنْعِ
(27) अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिव व आलेहि, वरज़ुक्नी सेह्हतन फ़ी ऐबादातिन, व फ़राग़न फ़ी ज़हादतिन, व इल्मन फ़िस तेअमालिन, व वराअन फ़ी इज्मालिन हे परमात्मा! मुहम्मद और उनके परिवार पर दया कर और मुझे स्वास्थ्य प्रदान कर जो पूजा में उपयोगी है, और अवकाश जो दुनिया से वैराग्य में बिताया जाता है, और ज्ञान जो कार्रवाई के साथ है, और पवित्रता जो संयम में है। اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ ، وَ ارْزُقْنِي صِحَّةً فِي عِبَادَةٍ ، وَ فَرَاغاً فِي زَهَادَةٍ ، وَ عِلْماً فِي اسْتِعْمَالٍ ، وَ وَرَعاً فِي اِجْمَالٍ
(28) अल्लाहुम्मख तिम बेअफ़्वेका अजली, व हक़्क़िक़ फ़ी रजाए रहमतेका अमली, व सह्हिल ऐला बुलूग़ रेज़ाका सोबोली, व हस्सिन फ़ी जमीअ अहवाली अमली हे पालनहार! अपनी क्षमा के साथ मेरे जीवन का अंत कर और दया की आशा में मेरी लालसा को सफल बना और तेरी प्रसन्नता तक पहुँचने का मार्ग आसान बना और हर स्थिति में मेरे कार्यों को बेहतर बना। اللَّهُمَّ اخْتِمْ بِعَفْوِكَ أَجَلِي ، وَ حَقِّقْ فِي رَجَاءِ رَحْمَتِكَ أَمَلِي ، وَ سَهِّلْ إِلَى بُلُوغِ رِضَاكَ سُبُلِي ، وَ حَسِّنْ فِي جَمِيعِ أَحْوَالِي عَمَلِي
(29) अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिव व आलेहि, व नब्बेहनी लेज़िक्रेका फ़ी औक़ातिल ग़फ़्लते, वस तअमिलनी बेतआतेका फ़ी अय्यामिल मोहलते, वन्हज ली ऐला महब्बतेका सबीलन सहलतन, अक्मिल ली बेहा ख़ैरद दुनिया वल आख़ेरते हे परमात्मा ! मुहम्मद और उनके परिवार पर दया कर और उपेक्षा के क्षणों में मुझे अपनी याद के प्रति सचेत कर और राहत के दिनों में मुझे अपनी आज्ञाकारिता में व्यस्त रख और मेरे लिए अपने प्यार का आसान रास्ता खोल और इसके माध्यम से मेरे लिए दुनिया को पूरा करो। اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ ، وَ نَبِّهْنِي لِذِكْرِكَ فِي أَوْقَاتِ الْغَفْلَةِ ، وَ اسْتَعْمِلْنِي بِطَاعَتِكَ فِي أَيَّامِ الْمُهْلَةِ ، وَ انْهَجْ لِي إِلَى مَحَبَّتِكَ سَبِيلًا سَهْلَةً ، أَكْمِلْ لِي بِهَا خَيْرَ الدُّنْيَا وَ الآْخِرَةِ
(30) अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिव व आलेहि, कअफ़्ज़ले मा सल्लयता अला अहिदन मिन ख़्लक़ेका क़ब्लहू, व अंता मुसल्लिन अला अहदिन बादहू, व आतेना फ़िद दुनिया हसनतव व फ़िल आख़ेरते हसनतव वक़ेनी बे रहमतेका अज़ाबन नारे हे पालन हार ! मुहम्मद और उनके परिवार पर दया कर। ऐसी दयालुता जो तूने पहले प्राणियों में से किसी एक पर भेजी थी और तू उसके बाद किसी पर भेजने वाला हैं और हमें इस दुनिया में और उसके बाद में भलाई प्रदान कर और अपनी दया से हमें नरक की सजा से बचा। اللَّهُمَّ وَ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ ، كَأَفْضَلِ مَا صَلَّيْتَ عَلَى أَحَدٍ مِنْ خَلْقِكَ قَبْلَهُ ، وَ أَنْتَ مُصَلٍّ عَلَى أَحَدٍ بَعْدَهُ ، وَ آتِنَا فِي الدُّنْيَا حَسَنَةً وَ فِي الآْخِرَةِ حَسَنَةً ، وَ قِنِي بِرَحْمَتِكَ عَذَابَ النَّارِ

फ़ुटनोट

  1. ख़ातेमी, आईना मकारिम, 1368 शम्सी, पेज 13 ममदूही किरमानशाही, शोहूद व शनाख्त, 1388 शम्सी, भाग 2, पेज 207
  2. तरजुमा दुआ ए मकारम अल अखलाक़, पाएगाह इत्तेला रसानी दफ्तर आयतुल्लाह मकारिम शिराज़ी
  3. क़ासिम पीवंदी, सब्क शनासी दुआ ए मकारम अल अख़लाक़, पेज 403
  4. अंसारीयान, दयार ए आशेक़ान, 1373 शम्सी, भाग 6, पेज 183
  5. ख़ातेमी, आईना मकारिम, 1368 शम्सी, पेज 207
  6. फ़लसफ़ी, शरह दुआ मकारम अल अख़लाक़, भाग 1, पेज 706
  7. ख़ातेमी, आईना मकारिम, 1368 शम्सी, भाग 1, पेज 13
  8. ख़ातेमी, आईना मकारिम, 1368 शम्सी, भाग 1, पेज 13
  9. ममदूही किरमानशाही, शोहूद व शनाख्त, 1388 शम्सी, भाग 2, पेज 207
  10. तरजुमा व शरह सहीफ़ा सज्जादीया की बीसवी दुआ, साइट इरफ़ान
  11. दुआ का पाठ
  12. दुआ का पाठ
  13. दुआ का पाठ
  14. दुआ का पाठ
  15. दुआ का पाठ
  16. अंसारियान, दयार आशेक़ान, 1373 शम्सी, भाग 6, पेज 171-351 ममदूही किरमानशाही, शोहूद व शनाख्त, 1388 शम्सी, भाग 2, पेज 207-283
  17. दुआ का पाठ
  18. दुआ का पाठ
  19. अंसारियान, दयार आशेक़ान, 1373 शम्सी, भाग 6, पेज 171-351 ममदूही किरमानशाही, शोहूद व शनाख्त, 1388 शम्सी, भाग 2, पेज 207-283
  20. शरह व तफ़सीर दुआ मकारम अल अख़लाक़, साइट दार अल मुबल्लेग़ीन फ़लसफी
  21. शरह दुआ मकारम अल अख़लाक़, पाएगाह इत्तेलारसानी आसार आयतुल्लाह मिस्बाह यज़्दी
  22. नूर अल आफ़ाक़ शरह दुआ मकारिम अल अख़लाक़, पाएगाह इत्तेलारसानी किताब खानाहाए ईरान
  23. आईना मकारिम शरह दुआ मकारम अल अख़लाक़, पाएगाह वीकी नूर
  24. अंसारियान, दयार आशेक़ान, 1373 शम्सी, भाग 6, पेज 171-351
  25. ममदूही, किताब शोहूद व शनाख्त, 1388 शम्सी, भाग 2, पेज 207-283
  26. फहरी, शरह व तफ़सीर सहीफ़ा सज्जादीया, 1388 शम्सी, भाग 2, पेज 215-327
  27. मदनी शीराज़ी, रियाज़ अल सालेकीन, 1435 हिजरी, भाग 3, पेज 255-240
  28. मुगनीया, फ़ी जेलाल अल सहीफ़ा, 1428 हिजरी, पेज 264-281
  29. दाराई, रियाज़ अल आरेफ़ीन, 1379 शम्सी, पेज 235-264
  30. फ़ज्लुल्लाह, आफ़ाक़ अल रूह, 1420 हिजरी, भाग 1, पेज 431-544
  31. फ़ैज काशानी, ताअलीक़ात अलस सहीफ़ा अल सज्जादीया, 1407 हिजरी, पेज 47-51
  32. जज़ाएरी, शरह अल सहीफ़ा अल सज्जादीया, 1402 हिजरी, पेज 111-121

स्रोत

  • अंसारियान, हुसैन, दयार आशेक़ान, तफसीर जामेअ सहीफ़ा सज्जादीया, तेहरान, पयाम आजादी, 1372 शम्सी
  • तरजुमा दुआ ए मकारम अल अख़लाक़, पाएगाह इत्तेलारसानी दफ्तर आयतुल्लाह मकारिम शिराज़ी
  • जज़ाएरी, इज़्ज़ुद्दीन, शरह अल सहीफ़ा अल सज्जादीया, बैरुत, दार अल तआरुफ़ लिलमतबूआत, 1402 हिजरी
  • खातेमी, रूहुल्लाह, आईना मकारिम, तेहरान, नशर जुलाल, 1368 शम्सी
  • दाराई, मुहम्मद बिन मुहम्मद, रियाज़ अल आरेफ़ीन फ़ी शरह अल सहीफ़ा अल सज्जादीया, शोधः हुसैन दरगाही, तेहरान, नशर उस्वा, 1379 शम्सी
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  • फ़ज़लुल्लाह, सय्यद मुहम्मद हुसैन, आफ़ाक़ अल रूह, बैरुत, दार अल मालिक, 1420 हिजरी
  • फ़लसफ़ी, मुहम्मद तक़ी, शरह व तफ़सीर दुआ मकारम अल अख़लाक़, दफ्तर नशर फ़रहंग इस्लामी, 1370
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  • फ़ैज़ काशानी, मुहम्मद बिन मुर्तज़ा, तअलीक़ात अलस सहीफ़ा अल सज्जादीया, तेहरान, मोअस्सेसा अल बुहूस वत तहक़ीक़ात अल सक़ाफ़ीया, 1407 हिजरी
  • क़ासिम पीवंदी, ज़हरा व सय्यद मुहम्मद रज़ा इब्न अल रसूल व मुहम्मद खाक़ानी, सब्क शनासी दुआ मकारम अल अख़लाक़, दर मजल्ला उलूम हदीस, क्रमांक 73, 1393 शम्सी
  • मदनी शिराज़ी, सय्यद अली खान, रियाज अल सालेकीन फ़ी शरह सहीफ़ा सय्यद अल साजेदीन, क़ुम, मोअस्सेसा अल नशर अल इस्लामी, 1435 हिजरी
  • मिस्बाह यज्दी, मुहम्मद तकी, दरस हाए मकारम अल अख़लाक, पाएगाह इत्तेला रसानी आसार आयतुल्लाह मिस्बाह यज़्दी
  • मुग़नीयाह, मुहम्मद जवाद, फ़ी ज़ेलाल अल सहीफ़ा अल सज्जादीया, क़ुम, दार अल किताब अल इस्लामी, 1428 हिजरी
  • ममदूही किरमानशाही, हसन, शोहूद व शनाख़्त, तरजुमा व शरह सहीफा सज्जादीया, मुकद्दमा आयतुल्लाह जवादी आमोली, क़ुम, बूस्तान किताब, 1388 शम्सी