सहीफ़ा सज्जादिया की इक्कीसवीं दुआ
विषय | दुःख और मलाल के समय दुआ |
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प्रभावी/अप्रभावी | प्रभावी |
किस से नक़्ल हुई | इमाम सज्जाद (अ) |
कथावाचक | मुतवक्किल बिन हारुन |
शिया स्रोत | सहीफ़ा सज्जादिया |
सहीफ़ा सज्जादिया की इक्कीसवीं दुआ (अरबीःالدعاء الواحد والعشرون من الصحيفة السجادية)इमाम सज्जाद (अ) की मशहूर दुआओं में से एक है, जिसे दुःख और मलाल के समय पढ़ा जाता है। इस दुआ में, इमाम सज्जाद (अ) तौहीद अफ़आली के पाठ को व्यक्त करते हैं और ईश्वर को अस्तित्व में एकमात्र प्रभावी के रूप में पेश करते हैं। इमाम सज्जाद (अ) के अनुसार, मनुष्य के लिए एकमात्र सुरक्षित स्थान ईश्वर की दया है। इसी तरह ईश्वर ही आपके सपनों को हासिल करने का एकमात्र तरीका है। चौथे इमाम ने लोगों से दुआ के स्वीकार होने में देरी होने पर ईश्वर से निराश न होने को कहा है। वह आज्ञाकारिता को ईश्वर से निकटता तक पहुंचने का तरीका मानते हैं।
इक्कीसवीं दुआ का वर्णन सहीफ़ा सज्जादिया की व्याख्याओ मे किया गया है, जैसे कि फ़ारसी में हुसैन अंसारियान द्वारा दयारे आशेक़ान, हसन ममदूही किरमान शाही की शुहूद व शनाख़्त और अरबी भाषा मे सय्यद अली खान मदनी द्वारा लिखित रियाज़ उस-सालेकीन फ़ी शरह सहीफ़ा सय्यदुस साजेदीन है।
शिक्षाएँ
सहीफ़ा सज्जादिया की इक्कीसवीं दुआ वह दुआ है जिसे इमाम सज्जाद (अ) परेशानियो और बाहरी घटनाओ के कारण होने वाले दुख और गलतियों और गुनाहो के कारण होने वाले दुख और मलाल के लिए है।[१] इक्कीसवीं दुआ की शिक्षाओ को इस प्रकार बयान किया हैं:
- ईश्वर असहाय व्यक्ति को बेनियाज़ बना देता है
- तौहीद अफ़आली के पाठ का बयान करना
- ईश्वर के बिना सुरक्षा नहीं (ईश्वर की दया ही मनुष्य के लिए एकमात्र सुरक्षित क्षेत्र है)
- ईश्वर के बिना कोई सहायक और समर्थक नहीं है
- दैवीय प्रकोप के सामने मनुष्य की शक्तिहीनता
- ताकत और क्षमता केवल ईश्वर की मदद के प्रकाश में
- ईश्वर से दूर भागने के बाद उसके पास लौटने की अनिवार्यता
- ईश्वर ही अस्तित्व में एकमात्र प्रभावी है, ईश्वर एकमात्र सहायक और मांगकर्ता है
- अस्तित्व की व्यवस्था पर ईश्वर का नियंत्रण
- सभी साधन ईश्वर की इच्छा के हाथ में हैं।
- ईश्वर सपनों को प्राप्त करने का मार्ग है
- बंदे के हक़ मे परमेश्वर का निर्णय ही असली न्याय है।
- आज्ञाकारिता ईश्वर से निकटता तक पहुंचने का तरीका है
- मानवीय कमजोरी का प्रमाण
- उपासना मनुष्य के लिए ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग है।
- असमर्थता और लाचारी तथा अपमान और अभाव की स्वीकारोक्ति
- ईश्वर की आज्ञा का पालन करके उसकी संतुष्टि और प्रेम प्राप्त करने की विशिष्टता
- दुआ के देर से स्वीकार होने मे ईश्वर से निराश न होना
- क्षमा के दौरान ईश्वर की याद से ग़ाफ़िल न होना
- शरीर और आत्मा से आज्ञाकारिता और दासता में सफलता के लिए अनुरोध
- प्रशंसा का ईश्वर से मखसूस होने का रहस्य
- ईश्वर से मित्रता के लिए हृदय को ख़ाली करने और उसे याद करने के लिए कार्य करने का अनुरोध
- ईश्वर के प्रति इच्छा और जुनून से हृदय को मजबूत करने का आग्रह
- ईश्वर की इच्छा के आलोक में जीवन भर हृदय को वश में करने की दुआ करना
- सभी कार्यों में ईश्वर की संतुष्टि प्राप्त करने की क्षमता माँगना
- ईश्वर और उसके औलिया से दुष्टों और मनुष्यों से भय का अनुरोध
- सभी स्थितियों में ईश्वर की स्तुति माँगना
- दुनिया में परहेज़गारी आख़िरत का तोशा है।
- लगातार उसकी आज्ञा मानकर ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करना और उसके क्रोध से बचना
- परमेश्वर का भय मानकर पाप से बचना।
- ईश्वर और उनके औलिया से मुहब्बत का अनुरोध
- मन की शांति और ईश्वर तथा उसकी रचना से अच्छे लोगों की आवश्यकता की कमी के लिए दुआ करना
- ईश्वर से खुशी और हृदय की हानि का आशीर्वाद माँगना
- मुहम्मद (स) और उनके परिवार के साथ रहने की दुआ करना[२]
व्याख्याएँ
सहीफ़ा सज्जादिया की शरहो मे उसकी इक्कीसवीं दुआ का वर्णन किया गया है। हुसैन अंसारियान ने दयारे आशेक़ान[३] मे इस दुआ की पूर्ण व्याख्या की है। इसी तरह मुहम्मद हसन ममदूही किरमानशाही की किताब शुहूद व शनाख़त[४] सय्यद अहमद फ़रहि की किताब शरह व तरजुमा सहीफ़ा सज्जादिया[५] का फ़ारसी भाषा मे वर्णन किया गया है।
इसके अलावा सहीफ़ा सज्जादिया की इक्कीसवीं दुआ सय्यद अली ख़ान मदनी की किताब रियाज़ उस-सालेकीन,[६] मुहम्मद जवाद मुग़निया की किताब फ़ी ज़िलाल अल-सहीफ़ा अल-सज्जादिया,[७] मुहम्मद बिन मुहम्मद दाराबी की किताब रियाज़ उल-आरेफ़ीन[८] सय्यद मुहम्मद हुसैन फ़ज़लुल्लाह[९] की किताब आफ़ाक़ अल-रूह मे इस दुआ की अरबी भाषा मे व्याख्या लिखी गई है। इस दुआ के सार्वजनिक मफहूम और शब्दिक अर्थ को फ़ैज काशानी की किताब तालीक़ात अलस सहीफ़ा अल-सज्जादिया[१०] और इज़्ज़ुद्दीन जज़ाएरी की किताब शरह सहीफ़ा सज्जादिया मे विस्तृत रूप से वर्णन किया गया है।[११]
पाठ और अनुवाद
दुआ का हिंदी उच्चारण | अनुवाद | दुआ का अरबी उच्चारण |
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व काना मिन दुआएहि अलैहिस सलामो इज़ा हजनहू अमरुन व अहम्मतहुल खताया | दुःख और मलाल के अवसर पर इमाम सज्जाद (अ) की दुआ | وَ كَانَ مِنْ دُعَائِهِ عَلَيْهِ السَّلَامُ إِذَا حَزَنَهُ أَمْرٌ وَ أَهَمَّتْهُ الْخَطَايَا |
अल्लाहुम्मा या काफ़ीयल फ़र्दिज़ ज़ईफ़े, व वाक़ेयल अमरिल मख़ूफ़े, अफ़रदतनियल ख़ताया फ़ला साहेबा माई, व ज़उफ़्तो अन ग़ज़ाबेका फ़ला मोअय्येदा ली, व अशरफ़तो अला ख़ौफ़े लेक़ाएका फ़ला मुसक्केना लेरौअती | हे परमेश्वर! हे अकेले और तनंहा, कमजोर और असहाय लोगों की किफालत करने वाले और खतरनाक चरणों से बचाने वाले! पापों ने मुझे असहाय बना दिया है। अब कोई साथी नहीं है और मैं तेरा क्रोध सहन करने में असमर्थ हूं। अब कोई सहारा नहीं है। तेरे प्रतिध्वनि का ख़तरा है। अब इस आतंक से राहत नहीं मिल रही है। | اللَّهُمَّ يَا كَافِيَ الْفَرْدِ الضَّعِيفِ، وَ وَاقِيَ الْأَمْرِ الَْمخُوفِ، أَفْرَدَتْنِي الْخَطَايَا فَلَا صَاحِبَ مَعِي، وَ ضَعُفْتُ عَنْ غَضَبِكَ فَلَا مُؤَيِّدَ لِي، وَ أَشْرَفْتُ عَلَى خَوْفِ لِقَائِكَ فَلَا مُسَكِّنَ لِرَوْعَتِي |
व मय यूमेनुमि मिन्रा न अंता अख़फ़्तनि, व मन योसाएदनि व अंता अफ़रदतनि, व मन योक़व्वीनी व अंता अज़अफ़तनी | और जब तू ने मुझे डरा दिया है, तो कौन है जो मुझे तुझ से तृप्त कर सके? और जब से तूने मुझे अकेला छोड़ दिया है, मेरा हाथ थामने वाला कौन है? और जब तू ने मुझे निर्बल कर दिया है, तो कौन है जो मुझे बल दे? | وَ مَنْ يُؤْمِنُنِي مِنْكَ وَ أَنْتَ أَخَفْتَنِي، وَ مَنْ يُسَاعِدُنِي وَ أَنْتَ أَفْرَدْتَنِي، وَ مَنْ يُقَوِّينِي وَ أَنْتَ أَضْعَفْتَنِي |
ला योजीरो, या इलाही, इल्ला रब्बुन अला मरबूबिन, व ला यूमेनो इल्ला ग़ालेबुन अला मग़लूबिन, व ला योईनो इल्ला तालेबुन अला मतलूबिन | हे मेरे परमात्मा! परवरदा को कोई शरण नहीं दे सकता उसके पालन हार के सिवा, और हारे हुए को उसके वश मे करने वाले के सिवा कोई अमान नहीं दे सकता । और खोजने वाले के अतिरिक्त कोई भी उसकी सहायता नहीं कर सकता। | لَا يُجِيرُ، يَا إِلَهِي، إِلَّا رَبٌّ عَلَى مَرْبُوبٍ، وَ لَا يُؤْمِنُ إِلَّا غَالِبٌ عَلَى مَغْلُوبٍ، وَ لَا يُعِينُ إِلَّا طَالِبٌ عَلَى مَطْلُوبٍ |
व बेयदेका, या इलाही, जमीओ ज़ालेकस सबबे, व इलैकल मफ़र्रो वल महरबो, फ़सल्ले अला मुहम्मदिव वा आलेहि, व आजिर हरबी, व अनजेह मतलबी | हे मेरे परमेश्वर, ये सभी संसाधन तेरे हाथों में हैं और बचने का रास्ता तेरे पास है। इसलिए मुहम्मद और उनके परिवार पर रहमत नाज़िल कर और मेरी शरण को अपने चरणों में आश्रय दे और मेरी आवश्यकता पूरी कर। | وَ بِيَدِكَ، يَا إِلَهِي. جَمِيعُ ذَلِكَ السَّبَبِ، وَ إِلَيْكَ الْمَفَرُّ وَ الْمَهْرَبُ، فَصَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ، وَ أَجِرْ هَرَبِي، وَ أَنْجِحْ مَطْلَبِي. |
अल्लाहुम्मा इन्नका इन सरफ़ता अन्नी वजहकल करीमा ओ मनअतनी फ़ज़लकल जसीमा ओ हज़रता अल्लया रिज़क़का ओ कतअता अन्नी सबबका लम अजेदिस सबीला ऐला शैइन मिन अमली ग़ैरका, व लम अक़दिर अला मा इन्दका बेमऊनते सेवाका, फ़इन्नी अब्दोका व फ़ी क़बज़ेतेका, नासियति बयदेका | हे अल्लाह! यदि तूने अपना पवित्र मुख मुझ से फेर लिया, और अपना महान उपकार रोक लिया, या जीविका रोक ली, या अपनी दया मुझ से छीन ली, तो मैं तेरे सिवा अपनी इच्छाओं तक पहुँचने का कोई साधन न पा सकूँगा तेरी सहायता के बिना तेरे पास मौजूद चीज़ों तक पहुंच प्राप्त नही कर सकता। क्योंकि मैं तेरा दास हूं, और तेरी शक्ति और तेरे ही हाथ में मेरी बाग डोर है। | اللَّهُمَّ إِنَّكَ إِنْ صَرَفْتَ عَنِّي وَجْهَكَ الْكَرِيمَ أَوْ مَنَعْتَنِي فَضْلَكَ الْجَسِيمَ أَوْ حَظَرْتَ عَلَيَّ رِزْقَكَ أَوْ قَطَعْتَ عَنِّي سَبَبَكَ لَمْ أَجِدِ السَّبِيلَ إِلَى شَيْءٍ مِنْ أَمَلِي غَيْرَكَ، وَ لَمْ أَقْدِرْ عَلَى مَا عِنْدَكَ بِمَعُونَةِ سِوَاكَ، فَاِنِّي عَبْدُكَ وَ فِي قَبْضَتِكَ، نَاصِيَتِي بِيَدِكَ |
ला अमर ली मआ अमरेका, माज़िन फ़िय्या हुकमोका, अदलुन फ़िय्या क़ज़ाओका, व ला क़ुव्वता ली अलल ख़ोरूजे मिन सुलतानेका, वला अस्ततीओ मुजावज़ता क़ुदरतेका, वला असतमीलो हवाका, वला अबलग़ो रेज़ाका, वला अनालो मा इंदका इल्ला बेताअतेका व बेफ़ज़ले रहमतेका | मेरा आदेश तेरे आदेश के आगे नहीं चल सकता। मेरे बारे में तेरा फैसला जारी है और मेरे पक्ष में तेरा फैसला न्याय और निष्पक्षता पर आधारित है। मुझे अपना राज्य छोड़ने की कोई इच्छा नहीं है और मुझमें तेरी सुरक्षा से बाहर निकलने की कोई ताकत नहीं है और मुझे तेरा प्यार नहीं मिल सकता है। तेरी आज्ञाकारिता और तेरी दया के बिना मैं न तो ते प्ररी सन्नता प्राप्त कर सकता हूँ और न ही तेरा आशीर्वाद प्राप्त कर सकता हूँ। | لَا أَمْرَ لِي مَعَ أَمْرِكَ، مَاضٍ فِيَّ حُكْمُكَ، عَدْلٌ فِيَّ قَضَاؤُكَ، وَ لَا قُوَّةَ لِي عَلَى الْخُرُوجِ مِنْ سُلْطَانِكَ، وَ لَا أَسْتَطِيعُ مُجَاوَزَةَ قُدْرَتِكَ، وَ لَا أَسْتَمِيلُ هَوَاكَ، وَ لَا أَبْلُغُ رِضَاكَ، وَ لَا أَنَالُ مَا عِنْدَكَ إِلَّا بِطَاعَتِكَ وَ بِفَضْلِ رَحْمَتِكَ |
इलाही असबहतो व अमसयतो अब्दन दाखेरन लका, ला अमलेको लेनफ़सि नफ़अन वला ज़र्रन इल्ला बेका, अशहदो बेज़ालेका अला नफ़सी, व आअतेरफ़ो बेज़अफ़े क़ुव्वति व क़िल्लते हीलती, फअनजिज़ ली मा वअदतनी, व तम्मिम ली मा आतयतनी, फ़इन्नी अब्दोकल मिसकीनुल मुस्तकीनुज़ ज़ईफ़ुज ज़रीरुल हकीरुल महीनुल फ़कीर अल ख़ाएफ़ुल मुस्तजीरो | हे पालनहार! मैं हर स्थिति में तेरा विनम्र सेवक हूं, तेरी मदद के बिना मैं अपने हित का स्वामी नहीं हूं। मैं अपने बारे में इस असहायता का गवाह हूं और अपनी कमजोरी और असहायता को स्वीकार करता हूं। इसलिये जो वचन तू ने मुझ से किया है, उसे पूरा कर, और जो कुछ तू ने मुझे दिया है, उसे भी पूरा कर; क्योंकि मैं तेरा दास हूं, जो गूंगा, दीन, निर्बल, दीन, घृणित, अपमानित, निराश्रित, डरा हुआ हूं, और शरण की खोज में हूं। | إِلَهِي أَصْبَحْتُ وَ أَمْسَيْتُ عَبْداً دَاخِراً لَكَ، لَا أَمْلِكُ لِنَفْسِي نَفْعاً وَ لَا ضَرّاً إِلَّا بِكَ، أَشْهَدُ بِذَلِكَ عَلَى نَفْسِي، وَ أَعْتَرِفُ بِضَعْفِ قُوَّتِي وَ قِلَّةِ حِيلَتِي، فَأَنْجِزْ لِي مَا وَعَدْتَنِي، وَ تَمِّمْ لِي مَا آتَيْتَنِي، فَإِنِّي عَبْدُكَ الْمِسْكِينُ الْمُسْتَكِينُ الضَّعِيفُ الضَّرِيرُ الْحَقِيرُ الْمَهِينُ الْفَقِيرُ الْخَائِفُ الْمُسْتَجِيرُ |
अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिव वा आलेहि, व ला तजअलनी नासेयन लेज़िकरेका फ़ीमा औलयतनी, वला ग़ाफ़ेलन लेएहसानेका फ़ीमा अबलयतनी, व ला आसेयन मिन इजाबतेका ली व इन अबतात अन्नी, फ़ी सर्राए कुन्तो ओ ज़र्राआ, ओ शिद्दतिन ओ रखाइन, ओ आफ़ियतिन ओ बलाइन, ओ बुअसिन ओ नअमाआ, ओ जेदतिन ओ लअवाआ, ओ फ़क़्रिन ओ ग़ेनन | हे परमात्मा! मुहम्मद और उनके परिवार पर रहमत नाज़िल कर, और मुझे उन उपहारों को भूलने न दे जो तूने दिए हैं, और मुझे उन नेमतो को भूलने न दो जो तूने दी हैं, और मुझे दुआ की स्वीकृति से निराश न कर, भले ही यह अच्छा है आराम में या दर्द में, कठिनाई में या आसानी में, स्वास्थ्य में या बीमारी में, गरीबी में या समृद्धि में, कठिनाई में या मुश्किल में, गरीबी में या धन में | اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ، وَ لَا تَجْعَلْنِي نَاسِياً لِذِكْرِكَ فِيما أَوْلَيْتَنِي، وَ لَا غَافِلًا لِإِحْسَانِكَ فِيما أَبْلَيْتَنِي، وَ لَا آيِساً مِنْ إِجَابَتِكَ لِي وَ إِنْ أَبْطَأَتْ عَنِّي، فِي سَرَّاءَ كُنْتُ أَوْ ضَرَّاءَ، أَوْ شِدَّةٍ أَوْ رَخَاءٍ، أَوْ عَافِيَةٍ أَوْ بَلَاءٍ، أَوْ بُؤْسٍ أَوْ نَعْمَاءَ، أَوْ جِدَةٍ أَوْ لَأْوَاءَ، أَوْ فَقْرٍ أَوْ غِنًى |
अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिव वा आलेहि, वजअल सनाई अलैका, व मदही इय्याका, व हम्दी लका फ़ी कुल्ले हालाती हत्ता ला अफ़रहा बेमा आतयतनि मिनद दुनिया, व ला अहज़ना अला मा मनअतनी फ़ीहा, व अशइर क़ल्बी तक़वाका, वसतअमिल बदनी फ़ीमा तक़बलहू मिन्नी, वशग़ल बेताअतेका नफ़सी अन कुल्ले मा यरेदो अल्य्या हत्ता ला ओहिब्बा शैअन मिन सुखतेका, वला असखता शैअन मिन रेज़ाका | हे परमेश्वर ! मुहम्मद और उनके परिवार पर रहमत नाज़िल कर और मुझे हर स्थिति में प्रशंसा और धन्यवाद देने में व्यस्त रख, जब तक कि तू मुझे इस दुनिया में जो कुछ भी देता हैं उससे मैं खुश न होने लगूं और जो तू मुझसे रोक ले उससे मैं दुखी न होने लगूं। और परहेजगारी को मेरे दिल का शेआर बना दे और मेरे शरीर से वह काम ले जिसे तू स्वीकार करे और मुझे तेरी आज्ञाकारिता के माध्यम से सभी सांसारिक क्षेत्रों से मुक्त कर ताकि मैं उसको अपना मित्र न बनाऊं जो तेरी नाराजगी का कारण हो और जो तुझे पसंद है उसे नापसंद ना करूं। | اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ، وَ اجْعَلْ ثَنَائِي عَلَيْكَ، وَ مَدْحِي إِيَّاكَ، وَ حَمْدِي لَكَ فِي كُلِّ حَالَاتِي حَتَّى لَا أَفْرَحَ بِمَا آتَيْتَنِي مِنَ الدُّنْيَا، وَ لَا أَحْزَنَ عَلَى مَا مَنَعْتَنِي فِيهَا، وَ أَشْعِرْ قَلْبِي تَقْوَاكَ، وَ اسْتَعْمِلْ بَدَنِي فِيما تَقْبَلُهُ مِنِّي، وَ اشْغَلْ بِطَاعَتِكَ نَفْسِي عَنْ كُلِّ مَا يَرِدُ عَلَيَّ حَتَّى لَا اُحِبَّ شَيْئاً مِنْ سُخْطِكَ، وَ لَا أَسْخَطَ شَيْئاً مِنْ رِضَاكَ |
अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिव वा आलेहि, व फ़र्रिग कल्बी लमुहब्बतेका, वशगलहो बेजिकरेका, वनअशहो बेखौफ़ेका व बिल वजले मिन्का, व क़ुव्वेहि बिर रग़बते इलैका, व अमिलहो एला ताअतेका, व अजरे बेहि फ़ी अहब्बिस सोबोले इलैका, व ज़ा लिल्लाहो बिर रग़बते फ़ीमा इंदका अय्यामे हयाती कुल्लेहा | हे पालन हार! मुहम्मद और उनके परिवार पर रहमत नाज़िल कर और मेरे दिल को जीवन भर अपने प्यार के लिए आज़ाद कर। उसे अपनी याद में व्यस्त रख, उसे उसके डर और भय के माध्यम से (उसके पापों के लिए) प्रायश्चित करने का अवसर दें, उसे तेरी ओर मुड़कर शक्ति और ऊर्जा दें, उसे अपनी आज्ञा मानने और तेरे सबसे पसंदीदा मार्ग पर चलने और तेरी कृपा प्राप्त करने के लिए प्रेरित कर। | اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ، وَ فَرِّغْ قَلْبِي لَِمحَبَّتِكَ، وَ اشْغَلْهُ بِذِكْرِكَ، وَ انْعَشْهُ بِخَوْفِكَ وَ بِالْوَجَلِ مِنْكَ، وَ قَوِّهِ بِالرَّغْبَةِ إِلَيْكَ، وَ أَمِلْهُ إِلَى طَاعَتِكَ، وَ أَجْرِ بِهِ فِي أَحَبِّ السُّبُلِ إِلَيْكَ، وَ ذَلِّلْهُ بِالرَّغْبَةِ فِيما عِنْدَكَ أَيَّامَ حَيَاتِي كُلِّهَا |
वजअल तकवाका मिनद दुनिया ज़ादी, व एला रहमतेका रेहलति, व फ़ी मरज़ातेका मदखली, वज अल फ़ी जन्नतेका मसवाया, व हब ली क़ुव्वतन अहतमेलो बेहा जमीअ मरज़ातेका, व जअल फ़ेरारेया इलैका, व रग़बति फ़ीमा इंदका, व अलबिस क़ल्बेयल वहशता मिन शेरारे ख़ल्क़ेका, व हब लेया अल अनसा बेका व बेओलेयाएका व अहले ताअतेका | और संयम को मेरा तोशा, तेरी दया की ओर मेरी यात्रा, तेरी प्रसन्नता में मेरा मार्ग और तेरी जन्नत में मेरी मंजिल बना और मुझे ऐसी शक्ति प्रदान कर कि मैं तेरी प्रसन्नता का बोझ उठा सकूं। और मेरा भय तेरे प्रति और मेरी अभिलाषा तेरे उपकारों की ओर कर दे और मेरे हृदय को बुरे लोगों से मुक्त कर, और तुझ से और तेरे मित्रों और अनुयायियों से परिचित कर दे। | وَ اجْعَلْ تَقْوَاكَ مِنَ الدُّنْيَا زَادِي، وَ إِلَى رَحْمَتِكَ رِحْلَتِي، وَ فِي مَرْضَاتِكَ مَدْخَلِي، وَ اجْعَلْ فِي جَنَّتِكَ مَثْوَايَ، وَ هَبْ لِي قُوَّةً أَحْتَمِلُ بِهَا جَمِيعَ مَرْضَاتِكَ، وَ اجْعَلْ فِرَارِيَ إِلَيْكَ، وَ رَغْبَتِي فِيما عِنْدَكَ، وَ أَلْبِسْ قَلْبِيَ الْوَحْشَةَ مِنْ شِرَارِ خَلْقِكَ، وَ هَبْ لِيَ الْأُنْسَ بِكَ وَ بِأَوْلِيَائِكَ وَ أَهْلِ طَاعَتِكَ |
वला तजअल लेफ़ाजेरिन वला काफ़ेरिन अलय्या मिन्नतिन, वला लहू इंदी यदन, वला बी इलैहिम हाजतन, बेलिजअल सुकूना क़ल्बी व अन्सा नफ़सी व इस्तिग़नाई व केफ़ायति बेका व बेखेयारे ख़ल्क़ेका | और कोई ज़ालिम और काफ़िर मुझ पर मेहरबान न हो। उसकी दृष्टि मुझ पर न हो, न ही मुझे उसकी कोई आवश्यकता हो, परन्तु मेरे मन की शांति, मेरे हृदय का स्नेह, और मेरी उदासीनता और गतिविधि को अपने और अपने चुने हुए सेवकों के साथ जोड़ दे। | وَ لَا تَجْعَلْ لِفَاجِرٍ وَ لَا كَافِرٍ عَلَيَّ مِنَّةً، وَ لَا لَهُ عِنْدِي يَداً، وَ لَا بِي إِلَيْهِمْ حَاجَةً، بَلِ اجْعَلْ سُكُونَ قَلْبِي وَ أُنْسَ نَفْسِي وَ اسْتِغْنَائِي وَ كِفَايَتِي بِكَ وَ بِخِيَارِ خَلْقِكَ |
अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिव वा आलेहि, वजअलनी लहुम क़रीनन, वज्अलनी लहुम नसीरन, वमनुन अलय्या बेशौक़िन इलैका, व बिलअमले लका बेमा तोहिब्बो व तरज़ा, इन्नका अला कुल्ले शैइन क़दीर, व ज़ालेका अलैका यसीर | हे परम परमेश्वर! मुहम्मद और उनके परिवार पर रहमत नाज़िल कर, और मुझे उनका साथी और सहायक बना, और मुझ पर अपने उत्साह और उन कामों से अनुग्रह कर जो तुझे पसंद हैं और जो तुझे प्रसन्न करते हैं। क्योंकि तू हर काम में सक्षम हैं और ये काम तेरे लिए आसान है। | اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ، وَ اجْعَلْنِي لَهُمْ قَرِيناً، وَ اجْعَلْنِي لَهُمْ نَصِيراً، وَ امْنُنْ عَلَيَّ بِشَوْقٍ إِلَيْكَ، وَ بِالْعَمَلِ لَكَ بِمَا تُحِبُّ وَ تَرْضَى، إِنَّكَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ، وَ ذَلِكَ عَلَيْكَ يَسِيرٌ |
फ़ुटनोट
- ↑ ममदूही, शुहूद व शनाख़त, 1388 शम्सी, भाग 2, पेज 289
- ↑ अंसारियान, दयारे आशेक़ान, 1373 शम्सी, भाग 6, पेज 359-383; ममदूही, शुहूद व शनाख़त, 1388 शम्सी, भाग 2, पेज 289-323
- ↑ अंसारियान, दयारे आशेक़ान, 1373 शम्सी, भाग 6, पेज 359-383
- ↑ ममदूही, शुहूद व शनाख़त, 1388 शम्सी, भाग 2, पेज 289-323
- ↑ फ़हरि, शरह व तफसीर सहीफ़ा सज्जादिया, 1388 शम्सी, भाग 2, पेज 335-353
- ↑ मदनी शिराज़ी, रियाज़ उस सालेकीन, 1435 हिजरी, भाग 3, पेज 441-490
- ↑ मुग़्निया, फ़ी ज़िलाल अल सहीफ़ा, 1428 हिजरी , पेज 283-293
- ↑ दाराबी, रियाज़ उल आरेफ़ीन, 1379 शम्सी, पेज 265-281
- ↑ फ़ज़्लुल्लाह, आफ़ाक़ अल रूह, 1420 शम्सी, भाग 1, पेज 545-566
- ↑ फ़ैज़ काशानी, तालीक़ात अलस सहीफ़ा अल-सज्जादिया, 1407 हिजरी, पेज 51-52
- ↑ जज़ाएरी, शरह अल-सहीफ़ा अल-सज्जादिया, 1402 हिजरी, पेज 122-126
स्रोत
- अंसारियान, हुसैन, दयारे आशेकान, तफसीर जामेअ सहीफ़ा सज्जादिया, तेहरान, पयाम आज़ादी, 1372 शम्सी
- जज़ाएरी, इज़्ज़ुद्दीन, शरह अल-सहीफ़ा अल-सज्जादिया, बैरूत, दार उत तआरुफ लिलमतबूआत, 1402 हिजरी
- दाराबी, मुहम्मद बिन मुहम्मद, रियाज़ अल आरेफ़ीन फ़ी शरह अल सहीफ़ा सज्जादिया, शोधः हुसैन दरगाही, तेहरान, नशर उस्वा, 1379 शम्सी
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- ममदूही किरमानशाही, हसन, शुहूद व शनाख़्त, तरजुमा व शरह सहीफ़ा सज्जादिया, मुकद्मा आयतुल्लाह जवादी आमोली, क़ुम, बूस्तान किताब, 1388 शम्सी