सहीफ़ा सज्जादिया की तिरपनवीं दुआ
शाबान 1102 में अब्दुल्लाह यज़्दी द्वारा लिखित साहिफ़ा सज्जादिया की पांडुलिपि | |
| विषय | अल्लाह के हुज़ूर में विनम्रता का इज़हार करना, न्याय के दिन पाप के प्रभाव, न्याय के दिन दया, क्षमा और शांति की मांग करना |
|---|---|
| प्रभावी/अप्रभावी | प्रभावी |
| किस से नक़्ल हुई | इमाम सज्जाद (अ) |
| कथावाचक | मुतवक्किल बिन हारुन |
| शिया स्रोत | सहीफ़ा सज्जादिया |
सहीफ़ा सज्जादिया की तिरपनवीं दुआ (अरबीःالدعاء الثالث والخمسون من الصحيفة السجادية ) इमाम सज्जाद (अ) द्वारा ईश्वर के समक्ष विनम्रता के साथ पढ़ी गई दुआओं में से एक है। इस दुआ में, इमाम सज्जाद (अ) इस दुनिया और क़यामत के दिन में पाप के परिणामों का उल्लेख करते हैं और मृत्यु से पहले ग़फ़लत की नींद से जागने की आवश्यकता पर बल देते हैं। इस दुआ में, ईश्वर से पापों की क्षमा और क़यामत के दिन शांति की दुआ की जाती है।
सहीफ़ा सज्जादिया की तिरपनवीं दुआ की विभिन्न व्याख्याएँ है, इस दुआ की व्याख्याओ मे शुहूद व शनाखत फ़ारसी भाषा मे व्याख्या है जो हसन ममदूही किरमानशाही द्वारा लिखित है और अरबी भाषा मे किताब रियाज़ उस सालेकीन फ़ी शरह सहीफ़ा सय्यद उस साजेदीन है जो सय्यद अली खान मदनी द्वारा लिखित है।
शिक्षाएँ
तिरपनवीं दुआ सहीफ़ा सज्जादिया की उन दुआओं में से एक है जिसे इमाम ज़ैनुल आबेदीन ने ईश्वर के सामने विनम्रता और दीनता की स्थिति में पढ़ा था। सय्यद मुहम्मद हुसैन फ़ज़लुल्लाह के अनुसार, इस दुआ पर अपनी व्याख्या में, ईश्वर के समक्ष ज़बान और शरीर के अन्य अंगों के माध्यम से विनम्रता व्यक्त करने से मानव आत्मा ऊपर उठती है और ईश्वर के निकट आती है।[१] इसके अलावा, हसन ममदूही किरमानशाही ने ईश्वर के पद की तुलना में एक सेवक की स्थिति को विनम्रता की अभिव्यक्ति माना है, जो गरिमा, महानता और पूर्ण आवश्यकता की अभिव्यक्ति है। इसलिए, मासूम इमाम (अ), जो ज्ञान के उच्चतम स्तर तक पहुँच चुके हैं, ईश्वर के समक्ष दूसरों की तुलना में अधिक विनम्रता व्यक्त करते हैं।[२]
इस दुआ की शिक्षाएँ इस प्रकार हैं:
- क़यामत के दिन पाप के प्रभाव: बोलने में असमर्थता, आश्चर्य और खेद, शर्म और हार।
- मनुष्य अपने कर्मों पर निर्भर है और अपने अहंकार का बंदी है।
- पाप के प्रभाव से अपमान और अपमान
- पाप करके दण्ड के बारे में परमेश्वर के वादों को हल्के में लेना
- पाप करके परमेश्वर के प्रति निर्भीकता और दुस्साहस
- परमेश्वर के सामने अपनी गलतियाँ स्वीकार करना
- पाप करने के लिए परमेश्वर के सामने दण्ड के लिए प्रतिशोध की घोषणा
- मृत्यु आने से पहले ग़फ़लत की नींद से जागने की आवश्यकता।
- मृत्यु के बाद ईश्वरीय दया पाने के लिए प्रार्थना
- जिन परिस्थितियों में शव सड़ रहे हैं, उनके लिए दया की गुहार।
- ईश्वरीय दया की उपस्थिति में सुरक्षा और शांति की प्रार्थना
- पुनरुत्थान के दिन औलिया ए इलाही के साथ रहने का अनुरोध
- धैर्य के साथ पापों की क्षमा मांगना।[३]
व्याख्याएँ
सहीफ़ा सज्जादिया की तिरपनवीं दुआ की भी व्याख्या दूसरी दुआओ की तरह की गई है। यह दुआ हुसैन अंसारियान की दयारे आशेक़ान [3] हसन ममदूही किरमानशाही की शुहुद व शनाख्त,[४] और सय्यद अहमद फ़हरी की किताब शरह व तरजुमा सहीफ़ा सज्जादिया[५] मे फ़ारसी भाषा मे व्याख्या की गई है।
सहीफ़ा सज्जादिया की तिरपनवीं दुआ सय्यद अली खान मदनी की किताब रियाज़ उस सालेकीन[६] मुहम्मद जवाद मुग़्निया की फी ज़िलाल अल-सहीफ़ा सज्जादिया,[७] मुहम्मद बिन मुहम्मद दाराबी की रियाज़ उल आरेफ़ीन[८] और सय्यद मुहम्मद हुसैन फ़ज़लुल्लाह की आफ़ाक़ अल रूह[९] मे इसका वर्णन अरबी में किया गया है। इस दुआ के शब्दों को फ़ैज़ काशानी द्वारा तालीक़ा अला अल-सहीफ़ा सज्जादियाह[१०] और इज़्ज़ुद्दीन जज़ाएरी द्वारा शरह अल-सहीफ़ा अल-सज्जादिया जैसी शाब्दिक टिप्पणियों में भी उल्लेक किया गया है।जज़ाएरी, शरह अल-सहीफ़ा अल-सज्जादिया, 1402 हिजरी, पेज 296-298
तिरपनवीं दुआ का पाठ और अनुवाद
وَ كَانَ مِنْ دُعَائِهِ عَلَيْهِ السَّلَامُ فِي التَّذَلُّلِ لِلَّهِ عَزَّ وَ جَلَّ
رَبِّ أَفْحَمَتْنِي ذُنُوبِي، وَ انْقَطَعَتْ مَقَالَتِي، فَلَا حُجَّةَ لِي، فَأَنَا الْأَسِيرُ بِبَلِيَّتِي، الْمُرْتَهَنُ بِعَمَلِي، الْمُتَرَدِّدُ فِي خَطِيئَتِي، الْمُتَحَيِّرُ عَنْ قَصْدِي، الْمُنْقَطَعُ بِي.
قَدْ أَوْقَفْتُ نَفْسِي مَوْقِفَ الْأَذِلَّاءِ الْمُذْنِبِينَ، مَوْقِفَ الْأَشْقِيَاءِ الْمُتَجَرِّينَ عَلَيْكَ، الْمُسْتَخِفِّينَ بِوَعْدِكَ
سُبْحَانَكَ! أَيَّ جُرْأَةٍ اجْتَرَأْتُ عَلَيْكَ، وَ أَيَّ تَغْرِيرٍ غَرَّرْتُ بِنَفْسِي!
مَوْلَايَ ارْحَمْ كَبْوَتِي لِحُرِّ وَجْهِي وَ زَلَّةَ قَدَمِي، وَ عُدْ بِحِلْمِكَ عَلَى جَهْلِي وَ بِإِحْسَانِكَ عَلَى إِسَاءَتِي، فَأَنَا الْمُقِرُّ بِذَنْبِي، الْمُعْتَرِفُ بِخَطِيئَتِي، وَ هَذِهِ يَدِي وَ نَاصِيَتِي، أَسْتَكِينُ بِالْقَوَدِ مِنْ نَفْسِي، ارْحَمْ شَيْبَتِي، وَ نَفَادَ أَيَّامِي، وَ اقْتِرَابَ أَجَلِي وَ ضَعْفِي وَ مَسْكَنَتِي وَ قِلَّةَ حِيلَتِي.
مَوْلَايَ وَ ارْحَمْنِي إِذَا انْقَطَعَ مِنَ الدُّنْيَا أَثَرِي، وَ امَّحَى مِنَ الْمَخْلُوقِينَ ذِكْرِي، وَ كُنْتُ مِنَ الْمَنْسِيِّينَ كَمَنْ قَدْ نُسِيَ
مَوْلَايَ وَ ارْحَمْنِي عِنْدَ تَغَيُّرِ صُورَتِي وَ حَالِي إِذَا بَلِيَ جِسْمِي، وَ تَفَرَّقَتْ أَعْضَائِي، وَ تَقَطَّعَتْ أَوْصَالِي، يَا غَفْلَتِي عَمَّا يُرَادُ بِي.
مَوْلَايَ وَ ارْحَمْنِي فِي حَشْرِي وَ نَشْرِي، وَ اجْعَلْ فِي ذَلِكَ الْيَوْمِ مَعَ أَوْلِيَائِكَ مَوْقِفِي، وَ فِي أَحِبَّائِكَ مَصْدَرِي، وَ فِي جِوَارِكَ مَسْكَنِي، يَا رَبَّ الْعَالَمِينَ.
अज्ज़ और विनम्रता के संबंध में दुआ
हे मेरे अल्लाह! मेरे पापों ने मुझे चुप करा दिया है और मेरी आवाज़ भी दम तोड़ चुकी है। अब मेरे पास कोई बहाना या हुज्जत नहीं है।
इस प्रकार, मैं अपने दुःख और कष्ट में फंसा हुआ हूँ, अपने कर्मों के हाथों में फंसा हुआ हूँ, अपने पापों से भ्रमित और परेशान हूँ, मक़सद से भटका हुआ हूँ और अपनी मंज़िल से बहुत दूर हूँ।
पाक है तू, किस दुस्साहस और साहस से मैंने तेरी आज्ञाओं से विमुख होने का साहस किया? और किस विनाश के कारण मैंने स्वयं को विनाश में झोंक दिया?
मेरे गिरने, मेरे लड़खड़ाने और मेरे फिसलने पर दया कर; और मेरी अज्ञानता के लिए अपने धैर्य और मेरी दुष्टता के लिए अपनी रहमत से मुझ पर दया कर। मैं अपने पाप और अपनी भूल को स्वीकार करता हूँ। ये मेरे हाथ और मेरा सिर हैं जिन्हें मैं विलाप करते हुए अपनी आत्मा के दण्ड के लिए समर्पित करता हूँ; मेरे बुढ़ापे, मेरे जीवन के अंत, मेरी मृत्यु के निकट, मेरी दुर्बलता, मेरी लाचारी और मेरी अल्प बुद्धि पर दया कर।
हे मेरे पालनहार! जब संसार से मेरा नामोनिशान मिट जाए और मैं भूमिगत हो जाऊँ, और सृष्टि की स्मृतियों से मेरी स्मृति मिट जाए, और मैं भूले हुए लोगों में से एक भूला हुआ सा हो जाऊँ, तो मुझ पर दया कर।
मेरे रब! जब मेरा चेहरा और मेरा मिज़ाज बदल जाए, मेरा शरीर सड़ जाए, मेरे अंग टूट जाएँ और बिखर जाएँ, और मेरे बंधन टूट जाएँ, तो मुझ पर रहम कर। हाय, मैं इस बात से अनजान हूँ कि बरज़ख़ और क़यामत के दिन, तराजू और राह में मुझसे क्या पूछा जाएगा!
मेरे पालनहार! मेरे पुनरुत्थान और मेरे जीवित होने पर मुझ पर दया कर; और उस दिन मुझे अपने औलिया के साथ स्थान दे, मेरे प्रस्थान और मेरे सफर का स्थान अपने प्रेमियों के बीच और मेरे लिए अपने साथ सुरक्षा और आराम का स्थान बना दे, हे सर्वलोक के पालनहार!
फ़ुटनोट
- ↑ फ़ज्लुल्लाह, आफ़ाक़ अल रूह, 1420 हिजरी, भाग 2, पेज 624-627
- ↑ ममदूही, शुहूद व शनाख़त, 1388 शम्सी, भाग 4, पेज 365
- ↑ ममदूही, शुहूद व शनाख़त, 1388 शम्सी, भाग 4, पेज 365-376 शरह फ़राज़हाए दुआ पंजाहो सोव्वुम सहीफ़ा अज़ साइट इरफ़ान
- ↑ अंसारीयान, दयारे आशेक़ान, 1373 शम्सी, भाग 7, पेज 623-629
- ↑ ममदूही, शुहूद व शनाख़त, 1388 शम्सी, भाग 4, पेज 363-376
- ↑ फ़हरि, शरह व तफसीर सहीफ़ा सज्जादिया, 1388 शम्सी, भाग 3, पेज 571-572
- ↑ मदनी शिराज़ी, रियाज़ उस सालेकीन, 1435 हिजरी, भाग 7, पेज 395-412
- ↑ मुग़्निया, फ़ी ज़िलाल अल सहीफ़ा, 1428 हिजरी , पेज 657-660
- ↑ दाराबी, रियाज़ उल आरेफ़ीन, 1379 शम्सी, पेज 725-730
- ↑ फ़ैज़ काशानी, तालीक़ात अलस सहीफ़ा अल-सज्जादिया, 1407 हिजरी, पेज 103
स्रोत
- अंसारीयान, हुसैन, दयारे आशेक़ान, तफ़सीर जामेअ सहीफ़ा सज्जादिया, तेहरान, पयाम ए आज़ादी, 1372 शम्सी
- जज़ाएरी, इज़्ज़ुद्दीन, शरह अल-सहीफ़ा अल-सज्जादिया, बैरूत, दार उत तआरुफ लिलमतबूआत, 1402 हिजरी
- दाराबी, मुहम्मद बिन मुहम्मद, रियाज़ अल आरेफ़ीन फ़ी शरह अल सहीफ़ा सज्जादिया, शोधः हुसैन दरगाही, तेहरान, नशर उस्वा, 1379 शम्सी
- फ़ज़्लुल्लाह, सय्यद मुहम्मद हुसैन, आफ़ाक़ अल-रूह, बैरूत, दार उल मालिक, 1420 हिजरी
- फ़हरि, सय्यद अहमद, शरह व तरजुमा सहीफ़ा सज्जादिया, तेहरान, उस्वा, 1388 शम्सी
- फ़ैज़ काशानी, मुहम्मद बिन मुर्तज़ा, तालीक़ात अलस सहीफ़ा अल-सज्जादिया, तेहरान, मोअस्सेसा अल बुहूस वत तहक़ीक़ात अल सक़ाफ़ीया, 1407 हिजरी
- मदनी शिराज़ी, सय्यद अली ख़ान, रियाज उस-सालेकीन फ़ी शरह सहीफ़ा तुस साजेदीन, क़ुम, मोअस्सेसा अल-नश्र उल-इस्लामी, 1435 हिजरी
- मुग़्निया, मुहम्मद जवाद, फ़ी ज़िलाल अल-सहीफ़ा सज्जादिया, क़ुम, दार उल किताब उल इस्लामी, 1428 हिजरी
- ममदूही किरमानशाही, हसन, शुहूद व शनाख़्त, तरजुमा व शरह सहीफ़ा सज्जादिया, मुकद्मा आयतुल्लाह जवादी आमोली, क़ुम, बूस्तान किताब, 1388 शम्सी