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सहीफ़ा सज्जादिया की अड़तालीसवीं दुआ

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सहीफ़ा सज्जादिया की अड़तालीसवीं दुआ
शाबान 1102 में अब्दुल्लाह यज़्दी द्वारा लिखित साहिफ़ा सज्जादिया की पांडुलिपि
शाबान 1102 में अब्दुल्लाह यज़्दी द्वारा लिखित साहिफ़ा सज्जादिया की पांडुलिपि
विषयईद-उल-अज़हा और शुक्रवार के दिन नमाज़ के बाद , इस्लामी समुदाय के नेतृत्व को मासूम लोगों को समर्पित करना, तथा पैग़म्बर (स) और उनके परिवार पर दुरूद
प्रभावी/अप्रभावीप्रभावी
किस से नक़्ल हुईइमाम सज्जाद (अ)
कथावाचकमुतवक्किल बिन हारुन
शिया स्रोतसहीफ़ा सज्जादिया
विशेष समयईद-उल-अज़हा और शुक्रवार के दिन नमाज़ के बाद


सहीफ़ा सज्जादिया की अड़तालीसवीं दुआ (अरबीःالدعاء الثامن والأربعون من الصحيفة السجادية) इमाम सज्जाद (अ) की प्रसिद्ध दुआओं में से एक है जिसे आप (अ) ईद-उल-अज़हा के दिन और शुक्रवार को पढ़ते थे। इस दुआ में इमाम सज्जाद (अ) ईद के दिन मुसलमानों के एकत्र होने को इस्लाम की महानता का प्रदर्शन मानते हैं तथा इन दिनों के दौरान ईश्वर से दया और क्षमा की दुआ करते हैं। इस दुआ में पैग़म्बरे इस्लाम (स) और उनके अहले बैत (अ) पर कई बार दुरूद भेजी गई है।

इस दुआ में यह भी कहा गया है कि इस्लामी समुदाय का नेतृत्व विशेष रूप से मासूम लोगों के लिए है, जिसे शासकों ने हड़प लिया है। इस दुआ में चौथे इमाम ईश्वर से अनेक अनुरोध करते हैं, जिनमें फरज मे ताजील, विपत्तियों से सुरक्षा, प्रचुर मात्रा में जीविका और पापों के लिए क्षमा मांगना शामिल है।

अड़तालीसवीं दुआ को फ़ारसी में सहीफ़ा सज्जादिया की व्याख्याओ में समझाया गया है, जैसे कि हुसैन अंसारियान द्वारा रचित दयारे आशेक़ान और हसन ममदूही किरमानशाही द्वारा रचित शुहुद वा शनाख़त, और अरबी में सैय्यद अली ख़ान मदनी द्वारा रचित पुस्तक रियाज़ अल-सालेकीन मे बयान किया गया है।

शिक्षाएँ

अड़तालीसवीं दुआ सहीफ़ा सज्जादिया की दुआओं में से एक है जिसे इमाम सज्जाद (अ) ईद-उल-अज़हा के दिन और शुक्रवार को पढ़ते थे। इस दुआ का विषय ईद-उल-अज़हा और शुक्रवार की विशेषताओं तथा इन दिनों के दौरान ईश्वर की विशेष कृपा को व्यक्त करना है। इस दुआ में, हज़रत ज़ैनुल आबेदीन (अ) भी सरकार के अयोग्य लोगों के हाथों में पड़ने पर खेद व्यक्त करते हैं, यह इंगित करते हुए कि इस्लामी समाज का शासक मासूम होना चाहिए।[] इस दुआ में, मुहम्मद और उनके परिवार पर बार-बार सलवात भेजी जाती है। इस दोहराव का रहस्य पैग़म्बर (स) और उनके परिवार की स्थिति के लिए प्रशंसा माना जाता है, जो इस दुनिया और उसके बाद के लोगों की खुशी के लिए उनके मार्गदर्शन के लिए ऋणी हैं।[] इस दुआ की शिक्षाएँ इस प्रकार हैं:

  • शुक्रवार और ईद-उल-अज़हा की हार्दिक शुभकामनाएँ
  • संसार की प्रभुता को परमेश्वर को समर्पित करना और उसकी स्तुति करना
  • ईद के दिन मुसलमान इस्लाम की महानता दिखाने के लिए एकत्रित होते हैं
  • अल्लाह से उस भलाई के बराबर भलाई मांगना जो उसने दूसरे बंदो को दी है।
  • अल्लाह के नामों और गुणों का उचित उपयोग करने की आवश्यकता
  • परमेश्‍वर को पहचानकर नेमतो का बेहतर इस्तेमाल करना
  • स्वर्ग और उच्च पद परमेश्वर की कृपा और दया का फल हैं।
  • मुहम्मद और उनके परिवार पर अनंत दुरूद भेजने का आग्रह
  • ईश्वर के अलावा किसी और से मदद मांगना उचित नहीं है।
  • अपने स्वयं के कर्मों की अपेक्षा ईश्वर की क्षमा और दया की आशा करना
  • परमेश्‍वर की दया उसके बन्दों के पापों से बड़ी है।
  • ईद-उल-अज़हा और शुक्रवार को ईश्वर से पुरस्कार, उपहार और इनाम प्राप्त करने की आशा करना
  • हर अच्छाई को प्राप्त करना और हर बुराई से दूर रहना केवल ईश्वर की कृपा से ही संभव है।
  • इस संसार और परलोक की भलाई के लिए ईश्वर से आशा रखना
  • धार्मिक कार्य (अमल सालेह) न करना और आत्म-धार्मिकता उन कारणों में से हैं जिनके कारण दुआए स्वीकार नही होती
  • अल्लाह का मनुष्य से बेनियाज होना और मनुष्य को परमेश्वर की आवश्यकता होना
  • क्षमा मांगकर ज्ञान के शिखर तक पहुंचना
  • अल्लाह के सामने आने के लिए तैयारी करने की ज़रूरत
  • शुक्रवार को पैग़म्बर (स) और अहले बैत (अ) की शिफ़ाअत की आशा करना
  • अहले-बैत (अ) के समान होना उनकी सिफ़ारिश का आनंद लेने के लिए एक शर्त है।
  • अल्लाह के सामने पाप और बुराई को स्वीकार करना
  • अल्लाह की असीम दया और क्षमा को स्वीकार करना
  • ईद-उल-अज़हा और जुमा की नमाज़ का वारिसों और चुने हुए लोगों से विशेष होना
  • अहले बैत (अ) के दुश्मनों पर लानत करना
  • नमाज़े ईद और नमाज़े जुमा का इमामो और अल्लाह के बंदो से छीनना
  • धर्म शासकों का खिलौना है।
  • उत्पीड़कों के कार्यों से प्रसन्न होकर उनके उत्पीड़न में भाग लेना
  • मुहम्मद और आले मुहम्मद (अ) की फरज मे ताजील की दुआ करना
  • एकेश्वरवाद और आस्था के लोगों के बीच रहने की प्रार्थना
  • तज़र्रोअ और ज़ारी के माध्यम से अल्लाह के क्रोध और दण्ड से मुक्ति की दुआ करना।
  • ईश्वर की दया से दूर होने का दुःख
  • मृत्यु से पहले दुआ के स्वीकार होने की दुआ करना
  • जीवन के अंत तक अच्छे स्वास्थ्य का आनंद लेने का अनुरोध
  • अल्लाह अपने सेवकों के पापों का दण्ड शीघ्रता से नहीं देता
  • दैवीय क्षेत्र उत्पीड़न और उसके कारण से मुक्त है
  • अनेक विपत्तियों से सुरक्षित रहने के लिए दुआ
  • ईश्वरीय शक्ति के प्रकाश में समस्याओं के समाधान, खुलेपन और दुख एवं शोक से मुक्ति के लिए दुआ।
  • मानवीय पूर्णता के विकास के माध्यम से मृत्यु के चंगुल से मुक्ति
  • शुक्रवार और ईद-उल-अज़हा के दिन ईश्वरीय प्रकोप से बचने के लिए ईश्वर की शरण में जाना
  • अल्लाह सबसे बड़ा सहारा है
  • ईश्वर से दुआ करके समस्याओं से छुटकारा पाना
  • दैवी दण्ड से सुरक्षा के लिए दुआ करना
  • दिव्य द्वार तक मार्गदर्शन के लिए दुआ करना
  • ईश्वर से सहायता के लिए दुआ करना
  • ईश्वर से दया, क्षमा और जीविका में पर्याप्तता की दुआ करना
  • पापों के लिए क्षमा मांगना
  • बुराई से सुरक्षा के लिए दुआ
  • ईश्वरीय आशीर्वाद के प्रकाश में खुशियों की कामना
  • अपने लिए जो नियत किया गया है उसमें भलाई और अच्छाई की मांग करना
  • ईश्वर पर भरोसा, आत्म-विश्वास से बड़ा है[]

व्याख्याएँ

सहीफ़ा सज्जादिया की अड़तालीसवीं दुआ की भी व्याख्या दूसरी दुआओ की तरह की गई है। यह दुआ हुसैन अंसारियान की पुस्तक दयारे आशेक़ान,[] हसन ममदूही किरमानशाही की शुहुद व शनाख्त,[] और सय्यद अहमद फ़हरी की किताब शरह व तरजुमा सहीफ़ा सज्जादिया[] मे फ़ारसी भाषा मे व्याख्या की गई है।

सहीफ़ा सज्जादिया की अड़तालीसवीं दुआ सय्यद अली खान मदनी की किताब रियाज़ उल सालेकीन[] मुहम्मद जवाद मुग़्निया की फी ज़िलाल अल-सहीफ़ा सज्जादिया,[] मुहम्मद बिन मुहम्मद दाराबी की रियाज़ उल आरेफ़ीन[] और सय्यद मुहम्मद हुसैन फ़ज़लुल्लाह की आफ़ाक़ अल रूह[१०] मे इसका वर्णन अरबी में किया गया है। इस दुआ के शब्दों को फ़ैज़ काशानी द्वारा तालीक़ा अला अल-सहीफ़ा सज्जादिया[११] और इज़्ज़ुद्दीन जज़ाएरी द्वारा शरह अल-सहीफ़ा अल-सज्जादिया जैसी शाब्दिक टिप्पणियों में भी उल्लेक किया गया है।[१२]

अड़तालीसवीं दुआ का पाठ और अनुवाद

पाठ
पाठ और अनुवाद
अनुवाद

وَ كَانَ مِنْ دُعَائِهِ عَلَيْهِ السَّلَامُ يَوْمَ الْأَضْحَي وَ يَوْمَ الْجُمُعَةِ

व काना मिन दुआएहि अलैहिस सलामो यौमल अज़हा व यौमल जुमुअते

اللَّهُمَّ هَذَا يَوْمٌ مُبَارَكٌ مَيْمُونٌ ، وَ الْمُسْلِمُونَ فِيهِ مُجْتَمِعُونَ فِي أَقْطَارِ أَرْضِكَ ، يَشْهَدُ السَّائِلُ مِنْهُمْ وَ الطَّالِبُ وَ الرَّاغِبُ وَ الرَّاهِبُ وَ أَنْتَ النَّاظِرُ فِي حَوَائِجِهِمْ ، فَأَسْأَلُكَ بِجُودِكَ وَ كَرَمِكَ وَ هَوَانِ مَا سَأَلْتُكَ عَلَيْكَ أَنْ تُصَلِّيَ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ .

अल्लाहुम्मा हाज़ा यौमुन मुबारकुम मयमूनुन, वल मुस्लेमूना फ़ीहे मुज्तमेऊना फ़ी अक़तारे अर्ज़ेका, यश्हदुस साएलो मिन्हुम वत तालेबो वर राग़ेबो वर राहेबो व अंतन नाज़ेरो फ़ी हवाएजेहिम, फ़अस्अलोका बेजूदेका व करमेका व हवाने मा साअलतोका अलैका अन तोसल्लीया अला मुहम्मदिन व आलेहि

وَ أَسْأَلُكَ اللَّهُمَّ رَبَّنَا بِأَنَّ لَكَ الْمُلْكَ ، وَ لَكَ الْحَمْدَ ، لَا إِلَهَ إِلَّا أَنْتَ ، الْحَلِيمُ الْكَرِيمُ الْحَنَّانُ الْمَنَّانُ ذُو الْجَلَالِ وَ الْإِكْرَامِ ، بَدِيعُ السَّمَاوَاتِ وَ الْأَرْضِ ، مَهْمَا قَسَمْتَ بَيْنَ عِبَادِكَ الْمُؤْمِنِينَ مِنْ خَيْرٍ أَوْ عَافِيَةٍ أَوْ بَرَكَةٍ أَوْ هُدًى أَوْ عَمَلٍ بِطَاعَتِكَ ، أَوْ خَيْرٍ تَمُنُّ بِهِ عَلَيْهِمْ تَهْدِيهِمْ بِهِ إِلَيْكَ ، أَوْ تَرْفَعُ لَهُمْ عِنْدَكَ دَرَجَةً ، أَوْ تُعْطِيهِمْ بِهِ خَيْراً مِنْ خَيْرِ الدُّنْيَا وَ الآْخِرَةِ أَنْ تُوَفِّرَ حَظِّي وَ نَصِيبِي مِنْهُ

व अस्अलोका अल्लाहुम्मा रब्बना बेअन्ना लकल मुल्का, व लकल हम्दा, ला इलाहा इल्ला अंता, अल हलीमुल करीमुल हन्नानुल मन्नानो ज़ुल जलाले वल इकराम, बदीउस समावाते वल अर्ज़े, महमा क़समता बैना ऐबादेकल मोमेनीना मिन ख़ैरिन औ आफ़ियतिन औ बरकतिन औ हुदन औ अमलिन बेताअतेका, औ ख़ैरिन तमुन्नो बेहि अलैहिम तहदीहिम बेहि इलैका, ओ तरफ़ओ लहुम इंदका दरजतन, ओ तौतीहिम बेहि ख़ैरन मिन खैरिद दुनिया वल आख़ेरते अन तोवफ़्फ़ेरा हज़्ज़ी व नसीबी मिन्हो

وَ أَسْأَلُكَ اللَّهُمَّ بِأَنَّ لَكَ الْمُلْكَ وَ الْحَمْدَ ، لَا إِلَهَ إِلَّا أَنْتَ ، أَنْ تُصَلِّيَ عَلَى مُحَمَّدٍ عَبْدِكَ وَ رَسُولِكَ وَ حَبِيبِكَ وَ صِفْوَتِكَ وَ خِيَرَتِكَ مِنْ خَلْقِكَ ، وَ عَلَى آلِ مُحَمَّدٍ الْأَبْرَارِ الطَّاهِرِينَ الْأَخْيَارِ صَلَاةً لَا يَقْوَى عَلَى إِحْصَائِهَا إِلَّا أَنْتَ ، وَ أَنْ تُشْرِكَنَا فِي صَالِحِ مَنْ دَعَاكَ فِي هَذَا الْيَوْمِ مِنْ عِبَادِكَ الْمُؤْمِنِينَ ، يَا رَبَّ الْعَالَمِينَ ، وَ أَنْ تَغْفِرَ لَنَا وَ لَهُمْ ، إِنَّكَ عَلَى كُلِّ شَيْ‌ءٍ قَدِيرٌ .

व अस्अलोका अल्लाहुम्मा बेअन्ना लकल मुल्का वल हम्दा, ला इलाहा इल्ला अन्ता, अन तोसल्लिया अला मुहम्मदिन अब्देका व रसूलेका व हबीबेका व सिफ़वतेका व ख़ेयरतेका मिन ख़लकेका, व अला आले मुहम्मदिल अबरारित ताहेरीनल अखयारे सलातन ला यक़्वा अला एहसाऐहा इल्ला अंता, व अन तुशरेकोना फ़ी सालेह मन दआका फ़ी हाज़ल यौमे मिन ऐबादेकल मोमेनीना, या रब्बल आलामीना, व अन तगफ़ेरा लना व लहुम, इन्नका अला कुल्ले शैइन क़दीर

اللَّهُمَّ إِلَيْكَ تَعَمَّدْتُ بِحَاجَتِي ، وَ بِكَ أَنْزَلْتُ الْيَوْمَ فَقْرِي وَ فَاقَتِي وَ مَسْكَنَتِي ، وَ إِنِّي بِمَغْفِرَتِكَ وَ رَحْمَتِكَ أَوْثَقُ مِنِّي بِعَمَلِي ، وَ لَمَغْفِرَتُكَ وَ رَحْمَتُكَ أَوْسَعُ مِنْ ذُنُوبِي ، فَصَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِ مُحَمَّدٍ ، وَ تَوَلَّ قَضَاءَ كُلِّ حَاجَةٍ هِيَ لِي بِقُدْرَتِكَ عَلَيْهَا ، وَ تَيْسِيرِ ذَلِكَ عَلَيْكَ ، وَ بِفَقْرِي إِلَيْكَ ، وَ غِنَاكَ عَنِّي ، فَإِنِّي لَمْ أُصِبْ خَيْراً قَطُّ إِلَّا مِنْكَ ، وَ لَمْ يَصْرِفْ عَنِّي سُوءاً قَطُّ أَحَدٌ غَيْرُكَ ، وَ لَا أَرْجُو لِأَمْرِ آخِرَتِي وَ دُنْيَايَ سِوَاكَ .

अल्लाहुम्मा इलैका तअम्मदतो बेहाजती, व बेका अंज़लतुल यौमा फ़क़्री व फ़ाक़ती व मसकनती, व इन्नी बेमग़फ़ेरतेका व रहमतेका औसक़ो मिन्नी बेअमली, व लमग़फ़ेरतोका व रहमतोका औसओ मिन ज़ुनूबी, फ़सल्ले अला मुहम्मदिव व आले मुहम्मद, व तवल्ला क़ज़ाआ कुल्ले हाजतिन हेया ली बेक़ुदरतेका अलैहा, व तयसीरे ज़ालेका अलैका, व बेफ़करी इलैका, व ग़नाका अन्नी, फ़इन्नी लम असिब ख़ैरन क़त्ता इल्ला मिन्का, व लम यसरिफ अन्नी सूआ क़त्ता अहदुन ग़ैरोका, वला अरजू लेअम्री आख़ेरती व दुन्याया सेवाका

اللَّهُمَّ من تَهَيَّأَ وَ تَعَبَّأَ وَ أَعَدَّ وَ اسْتَعَدَّ لِوَفَادَةٍ إِلَى مَخْلُوقٍ رَجَاءَ رِفْدِهِ وَ نَوَافِلِهِ وَ طَلَبَ نَيْلِهِ وَ جَائِزَتِهِ ، فَإِلَيْكَ يَا مَوْلَايَ كَانَتِ الْيَوْمَ تَهْيِئَتِي وَ تَعْبِئَتِي وَ إِعْدَادِي وَ اسْتِعْدَادِي رَجَاءَ عَفْوِكَ وَ رِفْدِكَ وَ طَلَبَ نَيْلِكَ وَ جَائِزَتِكَ .

अल्लाहुम्मा मिन तहय्या व तअब्बओ व आअद्दा वस तइद्दा लेवफ़ादते इला मख़लूक़िन रजाआ रिफ़देहि व नवाफ़ेलेहि व तलबा नीलेहि व जाएज़ेतेही, फ़इलैका या मौलाया कानतिल यौमा तहऐतनी व तअबेअती व ऐदादी वस तेअतादी रजाआ अफ़वेका व रिफ़देका व तलबा नीलेका व जाऐज़ेतेका

اللَّهُمَّ فَصَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِ مُحَمَّدٍ ، وَ لَا تُخَيِّبِ الْيَوْمَ ذَلِكَ مِنْ رَجَائِي ، يَا مَنْ لَا يُحْفِيهِ سَائِلٌ وَ لَا يَنْقُصُهُ نَائِلٌ ، فَإِنِّي لَمْ آتِكَ ثِقَةً مِنِّي بِعَمَلٍ صَالِحٍ قَدَّمْتُهُ ، وَ لَا شَفَاعَةِ مَخْلُوقٍ رَجَوْتُهُ إِلَّا شَفَاعَةَ مُحَمَّدٍ وَ أَهْلِ بَيْتِهِ عَلَيْهِ وَ عَلَيْهِمْ سَلَامُكَ .

अल्लाहुम्मा फ़सल्ले अला मुहम्मदिव व आले मुहम्मद, वला तोखय्येबिल यौमा ज़ालेका मिन रजाई, या मन ला युख़फ़ीहे साएलुन वला यंक़ोसोहू नाएलुन, फ़इन्नी लम आतेका सेक़तन मिन्नी बेअमलिन सालेहिन क़द्दमतोहू, वला शफ़ाअते मख़लूक़िन रजोअतोहू इल्ला शफ़ाअता मुहम्मदिन व अहले बैतेहि अलैहे व अलैहिम सलामोका

أَتَيْتُكَ مُقِرّاً بِالْجُرْمِ وَ الْإِسَاءَةِ إِلَى نَفْسِي ، أَتَيْتُكَ أَرْجُو عَظِيمَ عَفْوِكَ الَّذِي عَفَوْتَ بِهِ عَنِ الْخَاطِئِينَ ، ثُمَّ لَمْ يَمْنَعْكَ طُولُ عُكُوفِهِمْ عَلَى عَظِيمِ الْجُرْمِ أَنْ عُدْتَ عَلَيْهِمْ بِالرَّحْمَةِ وَ الْمَغْفِرَةِ .

आतयतोका मोक़िर्रन बिल जुर्मे वल इसाअते ऐला नफ़सी, आयततोका अरजू अज़ीमा अफ़वकल लज़ी अफ़ौता बेहि अनिल खातेईना, सुम्मा लम यमनआका तौलू उकूफ़ेहिम अला अज़ीमिल जुरमे अन उदता अलैहिम बिर रहमते वल मग़फ़ेरते

فَيَا مَنْ رَحْمَتُهُ وَاسِعَةٌ ، وَ عَفْوُهُ عَظِيمٌ ، يَا عَظِيمُ يَا عَظِيمُ ، يَا كَرِيمُ يَا كَرِيمُ ، صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِ مُحَمَّدٍ وَ عُدْ عَلَيَّ بِرَحْمَتِكَ وَ تَعَطَّفْ عَلَيَّ بِفَضْلِكَ وَ تَوَسَّعْ عَلَيَّ بِمَغْفِرَتِكَ .

फ़ीमा मन रहमतेहू वासेअतन, व अफ़वोहू अज़ीमुन, या अज़ीमो या अज़ीमो, या करीमो या करीमो, सल्ले अला मुहम्मदिव व आले मुहम्मदिन व उद अलय्या बेरहमतेका व तअतफ अलय्या बेफ़ज़लेका व तवस्सअ अलय्या बेमग़फ़ेरतेका

اللَّهُمَّ إِنَّ هَذَا الْمَقَامَ لِخُلَفَائِكَ وَ أَصْفِيَائِكَ وَ مَوَاضِعَ أُمَنَائِكَ فِي الدَّرَجَةِ الرَّفِيعَةِ الَّتِي اخْتَصَصْتَهُمْ بِهَا قَدِ ابْتَزُّوهَا ، وَ أَنْتَ الْمُقَدِّرُ لِذَلِكَ ، لَا يُغَالَبُ أَمْرُكَ ، وَ لَا يُجَاوَزُ الَْمحْتُومُ مِنْ تَدْبِيرِكَ كَيْفَ شِئْتَ وَ أَنَّى شِئْتَ ، وَ لِمَا أَنْتَ أَعْلَمُ بِهِ غَيْرُ مُتَّهَمٍ عَلَى خَلْقِكَ وَ لَا لِإِرَادَتِكَ حَتَّى عَادَ صِفْوَتُكَ وَ خُلَفَاؤُكَ مَغْلُوبِينَ مَقْهُورِينَ مُبْتَزِّينَ ، يَرَوْنَ حُكْمَكَ مُبَدَّلًا ، وَ كِتَابَكَ مَنْبُوذاً ، وَ فَرَائِضَكَ مُحَرَّفَةً عَنْ جِهَاتِ أَشْرَاعِكَ ، وَ سُنَنَ نَبِيِّكَ مَتْرُوكَةً .

अल्लाहुम्मा इन्ना हाज़ल मक़ामा ले खुलफ़ाऐका व असफ़ियाएका व मवाज़ेआ अमानाएका फ़िद दरजतिर रफ़ीअतिल लती इख्तसस्तहुम बेहा क़दिबतजूहा, व अंतल मुक़द्देरो लेज़ालेका, ला योग़ालेबो अमरोका, वला योजावज़ो अल मख़तूमो मिन तदबीरेका क़ैफ़ा शेअता व अन्नी शेअता, वलेमा अंता आलमो बेहि ग़ैरो मुत्तहमिन अला ख़लक़ेका वला लेइरादतेका हत्ता आदा सिफ़्वतोका व ख़ुलाफ़ाउका मग़लूबीना मक़हूरीना मुबतज़्ज़ीना, यरौना हुकमका मुबद्देलन, व किताबका मंबूज़ा, व फ़राएज़का मोहर्रेफ़तन अन जेहाते असराऐका, व सुनना नबीय्येका मतरूका

اللَّهُمَّ الْعَنْ أَعْدَاءَهُمْ مِنَ الْأَوَّلِينَ وَ الآْخِرِينَ ، وَ مَنْ رَضِيَ بِفِعَالِهِمْ وَ أَشْيَاعَهُمْ وَ أَتْبَاعَهُمْ .

अल्लाहुम्मल अन आदाअहुम मेनल अव्वलीना वल आख़ेरीना, व मन रज़ेया बेफ़ेआलेहिम व अशयाअहुम व अत्बाअहुम

اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِ مُحَمَّدٍ ، إِنَّكَ حَمِيدٌ مَجِيدٌ ، كَصَلَوَاتِكَ وَ بَرَكَاتِكَ وَ تَحِيَّاتِكَ عَلَى أَصْفِيَائِكَ إِبْرَاهِيمَ وَ آلِ إِبْرَاهِيمَ ، وَ عَجِّلِ الْفَرَجَ وَ الرَّوْحَ وَ النُّصْرَةَ وَ الَّتمْكِينَ وَ التَّأْيِيدَ لَهُمْ .

अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिव व आले मुहम्मद, इन्नका हमीदुन मजीद, कसलवातेका व बरकातेका व तहय्यातेका अला असफ़ीयाएका इब्राहीमा व आले इब्राहीमा, व अज्जिल फरज वर रुहा वन नुस्रता वत तमकीना वत ताईदा लहुम

اللَّهُمَّ وَ اجْعَلْنِي مِنْ أَهْلِ التَّوْحِيدِ وَ الْإِيمَانِ بِكَ ، وَ التَّصْدِيقِ بِرَسُولِكَ ، وَ الْأَئِمَّةِ الَّذِينَ حَتَمْتَ طَاعَتَهُمْ مِمَّنْ يَجْرِي ذَلِكَ بِهِ وَ عَلَى يَدَيْهِ ، آمِينَ رَبَّ الْعَالَمِينَ.

अल्लाहुम्मा वज्अलनी मिन अहलित तौहीदे व ईमाने बेका, वत तसदीके बेरसूलेका, वल आइम्मतिल लज़ीना हतमता ताअतोहुम मिम्मन यजरी ज़ालेका बेहि व अला यदयहे, आमीना रब्बल आलामीन

اللَّهُمَّ لَيْسَ يَرُدُّ غَضَبَكَ إِلَّا حِلْمُكَ ، وَ لَا يَرُدُّ سَخَطَكَ إِلَّا عَفْوُكَ ، وَ لَا يُجِيرُ مِنْ عِقَابِكَ إِلَّا رَحْمَتُكَ ، وَ لَا يُنْجِينِي مِنْكَ إِلَّا التَّضَرُّعُ إِلَيْكَ وَ بَيْنَ يَدَيْكَ ، فَصَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِ مُحَمَّدٍ ، وَ هَبْ لَنَا يَا إِلَهِي مِنْ لَدُنْكَ فَرَجاً بِالْقُدْرَةِ الَّتِي بِهَا تُحْيِي أَمْوَاتَ الْعِبَادِ ، وَ بِهَا تَنْشُرُ مَيْتَ الْبِلَادِ .

अल्लाहुम्मा लैसा यरुद्दो ग़ज़बेका इल्ला हिलमोका, वला यरुद्दो सखतका इल्ला अफ़वोका, वला योजीरो मिन ऐक़ाबेका इल्ला रहमतोका, वला युनजेनी मिन्का इल्लत तज़र्रओ इलैका व बैना यदयका, फसल्ले अला मुहम्मदिन व आले मुहम्मद, व हब लना या इलाही मिन लदुंका परजन बिल क़ुदरतिल लती बेहा तोहई अमवातल ऐबादे, व बेहा तंशोरो मयतल बिलादे

وَ لَا تُهْلِكْنِي يَا إِلَهِي غَمّاً حَتَّى تَسْتَجِيبَ لِي ، وَ تُعَرِّفَنِي الْإِجَابَةَ فِي دُعَائِي ، وَ أَذِقْنِي طَعْمَ الْعَافِيَةِ إِلَى مُنْتَهَى أَجَلِي ، وَ لَا تُشْمِتْ بِي عَدُوِّي ، وَ لَا تُمَكِّنْهُ مِنْ عُنُقِي ، وَ لَا تُسَلِّطْهُ عَلَيَّ

वला तोहलिकनी या इलाही ग़म्मन हत्ता तसतजीबा ली, व तोअर्रिफ़निल इजाबता फ़ी दुआई, व अज़िकनी तअमल आफ़ीयते एला मुंतहा अजली, वला तुशमित बी अदुव्वी, वला तोमक्किनहो मिन ओनोक़ी, वला तोसल्लितहू अलय्या

إِلَهِي إِنْ رَفَعْتَنِي فَمَنْ ذَا الَّذِي يَضَعُنِي ، وَ إِنْ وَضَعْتَنِي فَمَنْ ذَا الَّذِي يَرْفَعُنِي ، وَ إِنْ أَكْرَمْتَنِي فَمَنْ ذَا الَّذِي يُهِينُنِي ، وَ إِنْ أَهَنْتَنِي فَمَنْ ذَا الَّذِي يُكْرِمُنِي ، وَ إِنْ عَذَّبْتَنِي فَمَنْ ذَا الَّذِي يَرْحَمُنِي ، وَ إِنْ أَهْلَكْتَنِي فَمَنْ ذَا الَّذِي يَعْرِضُ لَكَ فِي عَبْدِكَ ، أَوْ يَسْأَلُكَ عَنْ أَمْرِهِ ، وَ قَدْ عَلِمْتُ أَنَّهُ لَيْسَ فِي حُكْمِكَ ظُلْمٌ ، وَ لَا فِي نَقِمَتِكَ عَجَلَةٌ ، وَ إِنَّمَا يَعْجَلُ مَنْ يَخَافُ الْفَوْتَ ، وَ إِنَّمَا يَحْتَاجُ إِلَي الظُّلْمِ الضَّعِيفُ ، وَ قَدْ تَعَالَيْتَ يَا إِلَهِي عَنْ ذَلِكَ عُلُوّاً كَبِيراً .

इलाही इन रफ़अतनी फ़मन ज़ल लज़ी यज़अऔनी, व इन वज़अतनी फ़मन ज़ल लज़ी यरफ़ओनी, व इन अकरमतनी फ़मन ज़ल लज़ी योहीनोनी, व इन आहनती फ़मन ज़ल लज़ी यकरोमोनी, व इन अज़्ज़बतनी फ़मन ज़ल लज़ी यरहमोनी, व इन अहलकतनी फ़मन ज़ल लज़ी याअरेज़ोलका फ़ी अब्देका, यो यस्अलोका अन अम्रेही, व क़द अलिमतो अन्नहू लैसा फ़ी हुक्मेका ज़ुलमुन, वला फ़ी नक़ेमतेका अजलतन, व इन्नमा यअजलो मन यख़ाफुल फ़ौता, व इन्नमा यहताजो ऐलज ज़ुल्मिज़ ज़ईफ़ो, व क़द तआलैयता या इलाही अन ज़ालेका उलूवन कबीरा

اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِ مُحَمَّدٍ ، وَ لَا تَجْعَلْنِي لِلْبَلَاءِ غَرَضاً ، وَ لَا لِنَقِمَتِكَ نَصَباً ، وَ مَهِّلْنِي ، وَ نَفِّسْنِي ، وَ أَقِلْنِي عَثْرَتِي ، وَ لَا تَبْتَلِيَنِّي بِبَلَاءٍ عَلَى أَثَرِ بَلَاءٍ ، فَقَدْ تَرَى ضَعْفِي وَ قِلَّةَ حِيلَتِي وَ تَضَرُّعِي إِلَيْكَ .

अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिन व आले मुहम्मद, वला तज्अलनी लिल बलाए ग़रज़न, वला लेनकेमतेका नसबन, व मह्हिलनी, व नफ़्फ़िसनी, व अक़िल्लनी असरती, वला तबतलिय्यनी बेबलाए अला असरे बलाए, फ़क़द तरा ज़अफ़ी व क़िल्लता हीलती व तज़र्रोई इलैका

أَعُوذُ بِكَ اللَّهُمَّ الْيَوْمَ مِنْ غَضَبِكَ ، فَصَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ ، وَ أَعِذْنِي.

अऊज़ो बेका अल्लाहुममल यौमा मिन ग़ज़बेका, फ़सल्ले अला मुहम्मदिव वा आलेहि, व आइदनी

وَ أَسْتَجِيرُ بِكَ الْيَوْمَ مِنْ سَخَطِكَ ، فَصَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ ، وَ أَجِرْنِي

व अस्तजीरो बेकल यौमा मिन सख़तेका, फ़सल्ले अला मुहम्मदिव व आलेहि, व अजिरनी

وَ أَسْأَلُكَ أَمْناً مِنْ عَذَابِكَ ، فَصَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ ، وَ آمِنِّي

व अस्अलोका अमनन मिन अज़ाबेका, फ़सल्ले अला मुहम्मदिव वा आलेहि, व आमिन्नी

وَ أَسْتَهْدِيكَ ، فَصَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ ، وَ اهْدِنِي

व अस्तहदीका, फ़सल्ले अला मुहम्मदिव वा आलेहि, वहदेनि

وَ أَسْتَنْصِرُكَ ، فَصَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ ، وَ انْصُرْنِي

व अस्तनसेरोका, फ़सल्ले अला मुहम्मदिव वा आलेहि, वनसुरनी

وَ أَسْتَرْحِمُكَ ، فَصَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ ، وَ ارْحَمْنِي

व अस्तरहेमोका, फ़सल्ले अला मुहम्मदिव वा आलेहि, वरहमनी

وَ أَسْتَكْفِيكَ ، فَصَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ ، وَ اكْفِنِي

व अस्तकफ़ीका, फ़सल्ले अला मुहम्मदिव वा आलेहि, वकफ़ेनी

وَ أَسْتَرْزِقُكَ ، فَصَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ ، وَ ارْزُقْنِي

व अस्तरज़ेक़ोका, फ़सल्ले अला मुहम्मदिव वा आलेहि, वरज़ुक़्नी

وَ أَسْتَعِينُكَ ، فَصَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ ، وَ أَعِنِّي

व अस्तईनोका, फ़सल्ले अला मुहम्मदिव वा आलेहि, व आअन्नी

وَ أَسْتَغْفِرُكَ لِمَا سَلَفَ مِنْ ذُنُوبِي ، فَصَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ ، وَ اغْفِرْ لِي

व अस्तग़फ़ेरोका लेमा सलफ़ा मिन ज़ुनूबी, फ़सल्ले अला मुहम्मदिव वा आलेहि, वग़फ़िर ली

وَ أَسْتَعْصِمُكَ ، فَصَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ ، وَ اعْصِمْنِي ، فَإِنِّي لَنْ أَعُودَ لِشَيْ‌ءٍ كَرِهْتَهُ مِنِّي إِنْ شِئْتَ ذَلِكَ

व अस्तअसेमोका, फ़सल्ले अला मुहम्मदिव वा आलेही, वअसिम्नी, फ़इन्नी लन आऊदा लेशैइन करेहतहू मिन्नी इन शैएता ज़ालेका

يَا رَبِّ يَا رَبِّ ، يَا حَنَّانُ يَا مَنَّانُ ، يَا ذَا الْجَلَالِ وَ الْإِكْرَامِ ، صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ ، وَ اسْتَجِبْ لِي جَمِيعَ مَا سَأَلْتُكَ وَ طَلَبْتُ إِلَيْكَ وَ رَغِبْتُ فِيهِ إِلَيْكَ ، وَ أَرِدْهُ وَ قَدِّرْهُ وَ اقْضِهِ وَ أَمْضِهِ ، وَ خِرْ لِي فِيما تَقْضِي مِنْهُ ، وَ بَارِكْ لِي فِي ذَلِكَ ، وَ تَفَضَّلْ عَلَيَّ بِهِ ، وَ أَسْعِدْنِي بِمَا تُعْطِينِي مِنْهُ ، وَ زِدْنِي مِنْ فَضْلِكَ وَ سَعَةِ مَا عِنْدَكَ ، فَإِنَّكَ وَاسِعٌ كَرِيمٌ ، وَ صِلْ ذَلِكَ بِخَيْرِ الآْخِرَةِ وَ نَعِيمِهَا ، يَا أَرْحَمَ الرَّاحِمِينَ . (ثُمَّ تَدْعُو بِمَا بَدَا لَكَ ، وَ تُصَلِّي عَلَي مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ أَلْفَ مَرَّةٍ هَكَذَا كَانَ يَفْعَلُ عَلَيْهِ السَّلَامُ).

या रब्बे या रब्बे, या हन्नानो या मन्नानो, या ज़ल जलाले वल इकरामे, सल्ले अला मुहम्मदिव व आलेहि, वस तजिब ली जमीआ मा साअलतोका व तलबतो इलैका व रग़िब्तो फ़ीहे इलैका, व अरिदहो व क़द्दिरहो वक़्जेही व अमज़ेही, व ख़िर ली फ़ीमा तक़ज़ी मिन्हो, व बारिक ली फ़ी ज़ालेका, व तफ़ज़्ज़ल अलय्या बेहि, व असइदनी बेमा तोअतीनी मिन्हो, व ज़िद्नी मिन फ़ज़लेका व सआते मा इंदका, फ़इन्नका वासेउन करीम, वसिल ज़ालेका बेख़ैरिल आख़ेरते व नईमेहा, या अरहमर राहीना (सुम्मा तदऊ बेमा बदा लका, व तोसल्लेया अला मुहम्मदिव वा आलेही अल्फ़ा मर्रतिन हाकज़ा काना यफ़अलो अलैहिस सलामो)

وَ كَانَ مِنْ دُعَائِهِ عَلَيْهِ السَّلَامُ يَوْمَ الْأَضْحَي وَ يَوْمَ الْجُمُعَةِ
ईद-उल-अज़हा और शुक्रवार के दिन इमाम सज्जाद (अ) की दुआ
اللَّهُمَّ هَذَا يَوْمٌ مُبَارَكٌ مَيْمُونٌ ، وَ الْمُسْلِمُونَ فِيهِ مُجْتَمِعُونَ فِي أَقْطَارِ أَرْضِكَ ، يَشْهَدُ السَّائِلُ مِنْهُمْ وَ الطَّالِبُ وَ الرَّاغِبُ وَ الرَّاهِبُ وَ أَنْتَ النَّاظِرُ فِي حَوَائِجِهِمْ ، فَأَسْأَلُكَ بِجُودِكَ وَ كَرَمِكَ وَ هَوَانِ مَا سَأَلْتُكَ عَلَيْكَ أَنْ تُصَلِّيَ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ .
हे परमेश्वर! यह एक धन्य और शुभ दिन है जिस दिन पृथ्वी के हर कोने से मुसलमान एकत्र होते हैं। इनमें प्रश्नकर्ता और जिज्ञासु दोनों ही शामिल हैं। वे जिज्ञासु और भयभीत दोनों हैं। वे सभी तेरे समक्ष मौजूद हैं, और तू ही उनकी आवश्यकताओं का ध्यान रखता हैं। इसलिए, तेरी उपस्थिति और उदारता को देखते हुए, और इस विश्वास के साथ कि मेरी ज़रूरत को पूरा करना तेरे लिए आसान है, मैं तुझसे मुहम्मद और उनके परिवार पर रहमत नाज़िल करने की दुआ करता हूँ।
وَ أَسْأَلُكَ اللَّهُمَّ رَبَّنَا بِأَنَّ لَكَ الْمُلْكَ ، وَ لَكَ الْحَمْدَ ، لَا إِلَهَ إِلَّا أَنْتَ ، الْحَلِيمُ الْكَرِيمُ الْحَنَّانُ الْمَنَّانُ ذُو الْجَلَالِ وَ الْإِكْرَامِ ، بَدِيعُ السَّمَاوَاتِ وَ الْأَرْضِ ، مَهْمَا قَسَمْتَ بَيْنَ عِبَادِكَ الْمُؤْمِنِينَ مِنْ خَيْرٍ أَوْ عَافِيَةٍ أَوْ بَرَكَةٍ أَوْ هُدًى أَوْ عَمَلٍ بِطَاعَتِكَ ، أَوْ خَيْرٍ تَمُنُّ بِهِ عَلَيْهِمْ تَهْدِيهِمْ بِهِ إِلَيْكَ ، أَوْ تَرْفَعُ لَهُمْ عِنْدَكَ دَرَجَةً ، أَوْ تُعْطِيهِمْ بِهِ خَيْراً مِنْ خَيْرِ الدُّنْيَا وَ الآْخِرَةِ أَنْ تُوَفِّرَ حَظِّي وَ نَصِيبِي مِنْهُ
हे परमात्मा ! हे हम सबके प्रभु! क्योंकि तेरे लिए ही बादशाही है और तेरी ही प्रशंसा है, तेरे अतिरिक्त कोई पूज्य नहीं; तू अत्यन्त सहनशील, अत्यन्त दयावान, कृपालु, महिमावान, आकाशों और धरती का रचयिता है। अतः मैं तुझसे प्रार्थना करता हूँ कि जब तू अपने ईमानवाले बन्दों को भलाई, स्वास्थ्य और बरकत प्रदान करे, या तेरे आज्ञापालन की क्षमता प्रदान करे, या ऐसी भलाई प्रदान करे कि तू उन पर अनुग्रह करे और उन्हें अपनी ओर मार्ग दिखाए, या अपने यहाँ उनका दर्जा बढ़ाए, या उन्हें दुनिया और आख़िरत की भलाई में से कोई भलाई प्रदान करे, तो उसमें मेरा हिस्सा और सौभाग्य बढ़ा दे।
وَ أَسْأَلُكَ اللَّهُمَّ بِأَنَّ لَكَ الْمُلْكَ وَ الْحَمْدَ ، لَا إِلَهَ إِلَّا أَنْتَ ، أَنْ تُصَلِّيَ عَلَى مُحَمَّدٍ عَبْدِكَ وَ رَسُولِكَ وَ حَبِيبِكَ وَ صِفْوَتِكَ وَ خِيَرَتِكَ مِنْ خَلْقِكَ ، وَ عَلَى آلِ مُحَمَّدٍ الْأَبْرَارِ الطَّاهِرِينَ الْأَخْيَارِ صَلَاةً لَا يَقْوَى عَلَى إِحْصَائِهَا إِلَّا أَنْتَ ، وَ أَنْ تُشْرِكَنَا فِي صَالِحِ مَنْ دَعَاكَ فِي هَذَا الْيَوْمِ مِنْ عِبَادِكَ الْمُؤْمِنِينَ ، يَا رَبَّ الْعَالَمِينَ ، وَ أَنْ تَغْفِرَ لَنَا وَ لَهُمْ ، إِنَّكَ عَلَى كُلِّ شَيْ‌ءٍ قَدِيرٌ .
हे परवरदिगारा ! राज्य तेरा ही है, सारी प्रशंसा और आदर तेरा ही है, तेरे सिवा कोई पूज्य नहीं। इसलिए, मैं तुझसे प्रार्थना करता हूँ कि तू अपने अब्द रसूल, प्रिय, चुने हुए और चुनी हुई सृष्टि मुहम्मद और उनके परिवार पर, जो धर्मी, शुद्ध और सृष्टि में सर्वश्रेष्ठ हैं, अपनी रहमत नाजिल कर, ऐसी रहमत जिसे तेरे अलावा कोई गिन नहीं सकता। और जो कोई तेरे ईमानवाले बन्दों में से आज तुझसे कोई नेकी मांगे, तो हमें भी उसमें हिस्सा प्रदान कर। हे समस्त लोकों के स्वामी, हमें और उन सभी को क्षमा कर, क्योंकि तू सभी कार्य करने में समर्थ हैं।
اللَّهُمَّ إِلَيْكَ تَعَمَّدْتُ بِحَاجَتِي ، وَ بِكَ أَنْزَلْتُ الْيَوْمَ فَقْرِي وَ فَاقَتِي وَ مَسْكَنَتِي ، وَ إِنِّي بِمَغْفِرَتِكَ وَ رَحْمَتِكَ أَوْثَقُ مِنِّي بِعَمَلِي ، وَ لَمَغْفِرَتُكَ وَ رَحْمَتُكَ أَوْسَعُ مِنْ ذُنُوبِي ، فَصَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِ مُحَمَّدٍ ، وَ تَوَلَّ قَضَاءَ كُلِّ حَاجَةٍ هِيَ لِي بِقُدْرَتِكَ عَلَيْهَا ، وَ تَيْسِيرِ ذَلِكَ عَلَيْكَ ، وَ بِفَقْرِي إِلَيْكَ ، وَ غِنَاكَ عَنِّي ، فَإِنِّي لَمْ أُصِبْ خَيْراً قَطُّ إِلَّا مِنْكَ ، وَ لَمْ يَصْرِفْ عَنِّي سُوءاً قَطُّ أَحَدٌ غَيْرُكَ ، وَ لَا أَرْجُو لِأَمْرِ آخِرَتِي وَ دُنْيَايَ سِوَاكَ .
हे पालनहार ! मैंने अपनी ज़रूरतें तेरे पास लाया हूं और अपनी गरीबी, अभाव और ज़रूरत का बोझ तेरे पास लाया हूँ, और मैं अपने कर्मों की तुलना में तेरी क्षमा और दया से अधिक संतुष्ट हूँ, और वास्तव में, तेरी क्षमा और दया का विस्तार मेरे पापों से कहीं अधिक व्यापक है, इसलिए मुहम्मद और उनके परिवार पर रहमत नाज़िल कर, और तू ही मेरी हर ज़रूरत को पूरा कर। क्योंकि तेरे पास इस पर शक्ति है, जो तेरे लिए सहज है, और क्योंकि मुझे तेरी आवश्यकता है और तू मुझसे स्वतंत्र हो, और क्योंकि मैं तेरे बिना किसी भी भलाई को प्राप्त करने में सक्षम नहीं हूँ, और तेरे अलावा कोई भी मुझसे दुःख दूर नहीं कर सका है। और मैं दुनिया और आख़िरत के मामलों में तेरे सिवा किसी से उम्मीद नहीं रखता।
اللَّهُمَّ من تَهَيَّأَ وَ تَعَبَّأَ وَ أَعَدَّ وَ اسْتَعَدَّ لِوَفَادَةٍ إِلَى مَخْلُوقٍ رَجَاءَ رِفْدِهِ وَ نَوَافِلِهِ وَ طَلَبَ نَيْلِهِ وَ جَائِزَتِهِ ، فَإِلَيْكَ يَا مَوْلَايَ كَانَتِ الْيَوْمَ تَهْيِئَتِي وَ تَعْبِئَتِي وَ إِعْدَادِي وَ اسْتِعْدَادِي رَجَاءَ عَفْوِكَ وَ رِفْدِكَ وَ طَلَبَ نَيْلِكَ وَ جَائِزَتِكَ .
हे परमात्मा ! जो कोई भी व्यक्ति पुरस्कार और उपहार की आशा और क्षमा और पुरस्कार की इच्छा के साथ किसी भी प्राणी के पास जाने के लिए तैयार, तत्पर और उत्सुक है, तो हे मेरे स्वामी ! आज मेरी तत्परता, तैयारी, प्रावधान और तत्परता तेरी क्षमा और प्रावधान की आशा में है, और तेरी क्षमा और पुरस्कार की आशा में है।
اللَّهُمَّ فَصَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِ مُحَمَّدٍ ، وَ لَا تُخَيِّبِ الْيَوْمَ ذَلِكَ مِنْ رَجَائِي ، يَا مَنْ لَا يُحْفِيهِ سَائِلٌ وَ لَا يَنْقُصُهُ نَائِلٌ ، فَإِنِّي لَمْ آتِكَ ثِقَةً مِنِّي بِعَمَلٍ صَالِحٍ قَدَّمْتُهُ ، وَ لَا شَفَاعَةِ مَخْلُوقٍ رَجَوْتُهُ إِلَّا شَفَاعَةَ مُحَمَّدٍ وَ أَهْلِ بَيْتِهِ عَلَيْهِ وَ عَلَيْهِمْ سَلَامُكَ .
इसलिए, हे मेरे परमेश्वर! अतः मुहम्मद और उनके परिवार पर दुरूद भेज और आज मुझे मेरी आशाओं में असफल न कर। हे वह जो भिक्षा के कारण विवश नहीं है, और न ही वह अपनी कृपा के उपहार में कमी रखता है, मैं तेरे पास किसी भी नेकी से संतुष्ट होकर नहीं आया हूँ, जो मैंने भेजी है, और न ही किसी प्राणी की सिफ़ारिश से जिसकी मैंने आशा की है, सिवाय मुहम्मद और उनके परिवार की सिफ़ारिश के।
يَا رَبِّ يَا رَبِّ ، يَا حَنَّانُ يَا مَنَّانُ ، يَا ذَا الْجَلَالِ وَ الْإِكْرَامِ ، صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ ، وَ اسْتَجِبْ لِي جَمِيعَ مَا سَأَلْتُكَ وَ طَلَبْتُ إِلَيْكَ وَ رَغِبْتُ فِيهِ إِلَيْكَ ، وَ أَرِدْهُ وَ قَدِّرْهُ وَ اقْضِهِ وَ أَمْضِهِ ، وَ خِرْ لِي فِيما تَقْضِي مِنْهُ ، وَ بَارِكْ لِي فِي ذَلِكَ ، وَ تَفَضَّلْ عَلَيَّ بِهِ ، وَ أَسْعِدْنِي بِمَا تُعْطِينِي مِنْهُ ، وَ زِدْنِي مِنْ فَضْلِكَ وَ سَعَةِ مَا عِنْدَكَ ، فَإِنَّكَ وَاسِعٌ كَرِيمٌ ، وَ صِلْ ذَلِكَ بِخَيْرِ الآْخِرَةِ وَ نَعِيمِهَا ، يَا أَرْحَمَ الرَّاحِمِينَ . (ثُمَّ تَدْعُو بِمَا بَدَا لَكَ ، وَ تُصَلِّي عَلَي مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ أَلْفَ مَرَّةٍ هَكَذَا كَانَ يَفْعَلُ عَلَيْهِ السَّلَامُ).
हे मेरे परमदेव! हे परमेश्वर! हे दयालु, हे आशीर्वाद देने वाले, हे महिमा और वैभव के मालिक, मुहम्मद और उनके परिवार पर रहमत नाज़िल कर, और उन सभी पर जो मैंने मांगा है, और जो मैंने चाहा है, और जिनके लिए मैंने आपकी ओर रुख किया है, और उन्हें आपकी इच्छा, आदेश और आदेश प्रदान करें, और उन्हें पूरा कर। और जो कुछ तू तय करे, उसे मेरे लिए अच्छा बना, और उसमें मुझे बरकत दे, और उसके ज़रिए मुझ पर फ़ज़ल कर। और जो कुछ तूने मुझे दिया है, उसमें मुझे प्रसन्न कर और मुझ पर अपनी उदारता बढ़ा, निस्संदेह तू बड़ा उदार और दानशील है, और उसे आख़िरत की भलाई और उसकी नेमतों की प्रचुरता से जोड़ दे। हे दयालुओं में सर्वाधिक दयालु! उसके बाद मुझे जो भी नमाज़ पढ़नी हो, पढ़नी चाहिए और मुहम्मद साहब और उनके परिवार पर हज़ार बार दुरूद भेजनी चाहिए, जैसा कि इमाम (अ) किया करते थे।

ईद-उल-अज़हा और शुक्रवार के दिन इमाम सज्जाद (अ) की दुआ

हे परमेश्वर! यह एक धन्य और शुभ दिन है जिस दिन पृथ्वी के हर कोने से मुसलमान एकत्र होते हैं। इनमें प्रश्नकर्ता और जिज्ञासु दोनों ही शामिल हैं। वे जिज्ञासु और भयभीत दोनों हैं। वे सभी तेरे समक्ष मौजूद हैं, और तू ही उनकी आवश्यकताओं का ध्यान रखता हैं। इसलिए, तेरी उपस्थिति और उदारता को देखते हुए, और इस विश्वास के साथ कि मेरी ज़रूरत को पूरा करना तेरे लिए आसान है, मैं तुझसे मुहम्मद और उनके परिवार पर रहमत नाज़िल करने की दुआ करता हूँ।

हे परमात्मा ! हे हम सबके प्रभु! क्योंकि तेरे लिए ही बादशाही है और तेरी ही प्रशंसा है, तेरे अतिरिक्त कोई पूज्य नहीं; तू अत्यन्त सहनशील, अत्यन्त दयावान, कृपालु, महिमावान, आकाशों और धरती का रचयिता है। अतः मैं तुझसे प्रार्थना करता हूँ कि जब तू अपने ईमानवाले बन्दों को भलाई, स्वास्थ्य और बरकत प्रदान करे, या तेरे आज्ञापालन की क्षमता प्रदान करे, या ऐसी भलाई प्रदान करे कि तू उन पर अनुग्रह करे और उन्हें अपनी ओर मार्ग दिखाए, या अपने यहाँ उनका दर्जा बढ़ाए, या उन्हें दुनिया और आख़िरत की भलाई में से कोई भलाई प्रदान करे, तो उसमें मेरा हिस्सा और सौभाग्य बढ़ा दे।

हे परवरदिगारा ! राज्य तेरा ही है, सारी प्रशंसा और आदर तेरा ही है, तेरे सिवा कोई पूज्य नहीं। इसलिए, मैं तुझसे प्रार्थना करता हूँ कि तू अपने अब्द रसूल, प्रिय, चुने हुए और चुनी हुई सृष्टि मुहम्मद और उनके परिवार पर, जो धर्मी, शुद्ध और सृष्टि में सर्वश्रेष्ठ हैं, अपनी रहमत नाजिल कर, ऐसी रहमत जिसे तेरे अलावा कोई गिन नहीं सकता। और जो कोई तेरे ईमानवाले बन्दों में से आज तुझसे कोई नेकी मांगे, तो हमें भी उसमें हिस्सा प्रदान कर। हे समस्त लोकों के स्वामी, हमें और उन सभी को क्षमा कर, क्योंकि तू सभी कार्य करने में समर्थ हैं।

हे पालनहार ! मैंने अपनी ज़रूरतें तेरे पास लाया हूं और अपनी गरीबी, अभाव और ज़रूरत का बोझ तेरे पास लाया हूँ, और मैं अपने कर्मों की तुलना में तेरी क्षमा और दया से अधिक संतुष्ट हूँ, और वास्तव में, तेरी क्षमा और दया का विस्तार मेरे पापों से कहीं अधिक व्यापक है, इसलिए मुहम्मद और उनके परिवार पर रहमत नाज़िल कर, और तू ही मेरी हर ज़रूरत को पूरा कर। क्योंकि तेरे पास इस पर शक्ति है, जो तेरे लिए सहज है, और क्योंकि मुझे तेरी आवश्यकता है और तू मुझसे स्वतंत्र हो, और क्योंकि मैं तेरे बिना किसी भी भलाई को प्राप्त करने में सक्षम नहीं हूँ, और तेरे अलावा कोई भी मुझसे दुःख दूर नहीं कर सका है। और मैं दुनिया और आख़िरत के मामलों में तेरे सिवा किसी से उम्मीद नहीं रखता।

हे परमात्मा ! जो कोई भी व्यक्ति पुरस्कार और उपहार की आशा और क्षमा और पुरस्कार की इच्छा के साथ किसी भी प्राणी के पास जाने के लिए तैयार, तत्पर और उत्सुक है, तो हे मेरे स्वामी ! आज मेरी तत्परता, तैयारी, प्रावधान और तत्परता तेरी क्षमा और प्रावधान की आशा में है, और तेरी क्षमा और पुरस्कार की आशा में है।

इसलिए, हे मेरे परमेश्वर! अतः मुहम्मद और उनके परिवार पर दुरूद भेज और आज मुझे मेरी आशाओं में असफल न कर। हे वह जो भिक्षा के कारण विवश नहीं है, और न ही वह अपनी कृपा के उपहार में कमी रखता है, मैं तेरे पास किसी भी नेकी से संतुष्ट होकर नहीं आया हूँ, जो मैंने भेजी है, और न ही किसी प्राणी की सिफ़ारिश से जिसकी मैंने आशा की है, सिवाय मुहम्मद और उनके परिवार की सिफ़ारिश के।

इसलिए मैं तेरे सामने आया हूँ और अपने पापों को तथा अपने द्वारा किये गए बुरे कार्यों को स्वीकार करता हूँ। इस बीच, मैं तेरी महान क्षमाशीलता की आशा रखता हूँ जिसके द्वारा तूने पापियों को क्षमा कर दिया है। फिर, लम्बे समय तक उनके बड़े-बड़े पापों में लगे रहने के बावजूद, तूने उन पर अपनी क्षमा और दया की कृपा बरसाने से उन्हें नहीं रोका।

ऐ वह जिसकी दया बड़ी है और जिसकी क्षमा महान है! हे ज्येष्ठ! ओह अदभुत!! हे क्षमा करनेवाले! ओह करीम!! मुहम्मद और उनके परिवार पर रहमत नाज़िल कर, और अपनी दया से मुझ पर अनुग्रह कर, और अपनी कृपा और उदारता से मुझ पर दयालु बना, और मेरे लिए अपनी क्षमा का विस्तार कर।

हे परमात्मा ! यह पद (खुत्बा और नमाजे जुमे का नेतृत्व) आपके उत्तराधिकारियों और चुने हुए बंदों के लिए था, और यह आपके ट्रस्टियों का निवास था, लेकिन तूने यह उच्च पद उनके (क्रोधित लोगों) लिए आरक्षित कर रखा था और उन्होंने इसे छीन लिया। और तू ही है जिसने इस मामले को शुरू से ही तय कर रखा है। तेरे हुक्म और हुक्म को पलटा नहीं जा सकता और न तेरी आखिरी योजना (क़ज़ा और क़द्र) का उल्लंघन किया जा सकता है, चाहे तू जैसे भी चाहे और जब चाहे। इस रुचि के कारण, जिसे केवल तू ही सबसे बेहतर जानते हैं, आपको अपने भाग्य और अपनी इच्छा के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता। यहाँ तक कि (इस क्रोध के परिणामस्वरूप) तेरे चुने हुए लोग और उत्तराधिकारी पराजित और अपमानित हुए, और उनके अधिकार उनके हाथों से फिसलते गए। वे देखते हैं कि तेरे आदेश बदल दिए गए हैं, तेरी किताब को दरकिनार कर दिया गया है, तेरे कर्तव्य और दायित्व तेरे स्पष्ट उद्देश्यों से हट गए हैं, और तेरे नबी के तरीके और विधियाँ अप्रचलित हो गई हैं।

हे पालनहार ! अतः इन चुने हुए बंदो के भूतपूर्व तथा वर्तमान शत्रुओं को, तथा उन लोगों को जो इन शत्रुओं के कार्यों तथा व्यवहार से प्रसन्न हैं, तथा उन लोगों को जो उनके प्रजा तथा अनुयायी हैं, पर लानत कर।

हे परमेश्वर ! मुहम्मद और उनके परिवार पर दुरूद भेज, निस्संदेह, तू प्रशंसा के योग्य और महान हैं, जिस तरह तूने अपने चुने हुए इब्राहीम और इब्राहीम के परिवार पर दुरूद और शांति भेजी, और उनके लिए विस्तार, आराम, विजय और समर्थन तअजील कर।

हे परमात्मा ! मुझे उन लोगों में शामिल कर जो अल्लाह की तौहीद पर ईमान लाए, जो तुझ पर ईमान लाए, जो तेरे रसूल और इमामों की पुष्टि करते हैं, जिनकी आज्ञाकारिता तूने अनिवार्य की है, उन लोगों में शामिल कर जिनके द्वारा और जिनके हाथों से तूने ये सारी चीज़ें (तौहीद, ईमान और पुष्टि) बनाई हैं। हे सारे संसार के पालनहार, मेरी दुआ स्वीकार कर!

हे परमेश्वर ! तेरी सहनशीलता के अलावा कोई भी चीज़ तेरे क्रोध को टाल नहीं सकती, तेरी क्षमा के अलावा कोई भी चीज़ तेरे क्रोध को दूर नहीं कर सकती, तेरी दया के अलावा कोई भी चीज़ तेरे दण्ड से तेरी शरण नहीं दे सकती, और तेरे समक्ष बड़बड़ाने के अलावा कोई भी चीज़ तेरे अजाब नहीं बचा सकती। अतः मुहम्मद और उनके परिवार पर रहमत नाजिल कर, और अपनी कुदरत से मुर्दों को जीवित करता हैं और बंजर भूमि को उपजाऊ बनाता हैं, मुझे तेरी ओर से दुःख और संताप से मुक्ति प्रदान कीजिए।

हे परमेश्वर ! जब तक तू मेरी प्रार्थना स्वीकार न कर लें और मुझे उसकी स्वीकृति की सूचना न दे दें, तब तक मुझे दुःख और शोक से नष्ट न कर तथा मुझे जीवन के अंतिम क्षणों तक स्वास्थ्य और कल्याण के सुख से प्रसन्न रख। और दुश्मनों को यह मौक़ा न दे कि वे (मेरी हालत पर) ख़ुश हों और मेरी गर्दन पर सवार होकर मुझपर हुकूमत करें।

हे परमेश्वर ! यदि तू मुझे ऊंचा करता है, तो कौन मुझे नीचा कर सकता है? यदि तू मुझे नीचा करेगा, तो कौन मुझे ऊंचा कर सकेगा? यदि तू मुझे सम्मान देता हैं, तो कौन मुझे अपमानित कर सकता है? यदि तू मुझे अपमानित करेंगा तो मुझे कौन सम्मान देगा? और यदि तू मुझे दण्ड देगा तो मुझ पर कौन दया करेगा? और यदि तू मुझे नष्ट कर दे, तो तेरे दास के विषय में कौन तुझ से आपत्ति कर सकेगा, या तुझ से उसके विषय में कौन पूछ सकेगा? और मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि तेरे न्याय में अन्याय का लेश भी नहीं है, और न ही तेरे दण्ड में कोई जल्दबाजी है। जो अवसर चूकने से डरता है, वह जल्दबाजी में है, और जो कमजोर और असहाय है, वह उत्पीड़न की जरूरत वाला व्यक्ति है। और हे मेरे परमेश्वर! यह इन चीजों से कहीं अधिक ऊंचा और श्रेष्ठ है।

हे परमेश्वर ! अतः मुहम्मद और उनके परिवार पर दुरूद भेज और मुझे अपनी विपत्तियों और अपनी यातनाओं का निशाना न बना। मुझे राहत दे और मेरा दुःख दूर कर। मेरी गलतियों को क्षमा कर और मुझे एक के बाद एक विपत्तियों का शिकार न बना। क्योंकि तू मेरी कमजोरी और लाचारी और गड़गड़ाहट को देख रहा है।

हे अल्लाह ! मैं आज तेरे प्रकोप से तेरी शरण चाहता हूँ, अतः मुहम्मद और उनके परिवार पर दया भेज और मुझे शरण प्रदान कर।

और मैं आज तेरे क्रोध से शरण चाहता हूँ। अतः मुहम्मद और उनके परिवार पर दया भेज और मुझे सुरक्षा प्रदान कर।

और मैं तेरी सज़ा से शांति चाहता हूँ। अतः मुहम्मद और उनके परिवार पर रहमत भेज और मुझे शांति प्रदान कर।

और मैं तुझसे मार्गदर्शन चाहता हूँ, अतः मुहम्मद और उनके परिवार पर दुरूद भेज और मेरा मार्गदर्शन कर।

और मैं तेरी सहायता चाहता हूँ, अतः मुहम्मद और उनके परिवार पर दुरूद भेज और मेरी सहायता कर।

और मैं तुझसे दया की प्रार्थना करता हूँ, अतः मुहम्मद और उनके परिवार पर दया कर, और मुझ पर भी दया कर।

और मैं तुझसे आत्मनिर्भरता का प्रश्न करता हूँ, अतः मुहम्मद और उनके परिवार पर दया भेज और मुझे आत्मनिर्भर बना।

और मैं तुझसे जीविका मांगता हूं। अतः मुहम्मद और उनके परिवार पर दया भेज और मेरी भी सहायता करो।

और मैं तेरी सहायता चाहता हूँ, अतः मुहम्मद और उनके परिवार पर दुरूद भेज और मेरी सहायता कर।

और मैं अपने पिछले पापों के लिए क्षमा चाहता हूँ, इसलिए मुहम्मद और उनके परिवार पर रहमत नाज़िल कर और मुझे क्षमा कर।

और मैं तेरी पनाह में आता हूँ, अतः मुहम्मद और उनके घरवालों पर दुरूद भेज और मुझे गुनाहों से बचा, क्योंकि यदि तेरी इच्छा मेरे साथ है तो मैं कोई ऐसा काम नहीं करूँगा जो तू मुझसे नापसंद करता हो।

हे मेरे परमदेव! हे परमेश्वर! हे दयालु, हे आशीर्वाद देने वाले, हे महिमा और वैभव के मालिक, मुहम्मद और उनके परिवार पर रहमत नाज़िल कर, और उन सभी पर जो मैंने मांगा है, और जो मैंने चाहा है, और जिनके लिए मैंने आपकी ओर रुख किया है, और उन्हें आपकी इच्छा, आदेश और आदेश प्रदान करें, और उन्हें पूरा कर। और जो कुछ तू तय करे, उसे मेरे लिए अच्छा बना, और उसमें मुझे बरकत दे, और उसके ज़रिए मुझ पर फ़ज़ल कर। और जो कुछ तूने मुझे दिया है, उसमें मुझे प्रसन्न कर और मुझ पर अपनी उदारता बढ़ा, निस्संदेह तू बड़ा उदार और दानशील है, और उसे आख़िरत की भलाई और उसकी नेमतों की प्रचुरता से जोड़ दे। हे दयालुओं में सर्वाधिक दयालु! उसके बाद मुझे जो भी नमाज़ पढ़नी हो, पढ़नी चाहिए और मुहम्मद साहब और उनके परिवार पर हज़ार बार दुरूद भेजनी चाहिए, जैसा कि इमाम (अ) किया करते थे।

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फ़ुटनोट

  1. ममदूही, शुहूद व शनाख़त, 1388 शम्सी, भाग 4, पेज 223
  2. ममदूही, शुहूद व शनाख़त, 1388 शम्सी, भाग 4, पेज 260
  3. ममदूही, शुहूद व शनाख़त, 1388 शम्सी, भाग 4, पेज 223-267; शरह फ़राज़हाए दुआ चहलो हश्तुम अज़ साइट इरफ़ान
  4. अंसारीयान, दयारे आशेक़ान, 1373 शम्सी, भाग 7, पेज 557-576
  5. ममदूही, शुहूद व शनाख़त, 1388 शम्सी, भाग 4, पेज 215-267
  6. फ़हरि, शरह व तफसीर सहीफ़ा सज्जादिया, 1388 शम्सी, भाग 3, पेज 505-516
  7. मदनी शिराज़ी, रियाज़ उस सालेकीन, 1435 हिजरी, भाग 7, पेज 163-242
  8. मुग़्निया, फ़ी ज़िलाल अल सहीफ़ा, 1428 हिजरी , पेज 611-626
  9. दाराबी, रियाज़ उल आरेफ़ीन, 1379 शम्सी, पेज 661-680
  10. फ़ज़्लुल्लाह, आफ़ाक़ अल रूह, 1420 शम्सी, भाग 2, पेज 545-572
  11. फ़ैज़ काशानी, तालीक़ात अलस सहीफ़ा अल-सज्जादिया, 1407 हिजरी, पेज 98-99
  12. जज़ाएरी, शरह अल-सहीफ़ा अल-सज्जादिया, 1402 हिजरी, पेज 270-277

स्रोत

  • अंसारीयान, हुसैन, दयारे आशेक़ान, तफ़सीर जामेअ सहीफ़ा सज्जादिया, तेहरान, पयाम आज़ादी, 1372 शम्सी
  • जज़ाएरी, इज़्ज़ुद्दीन, शरह अल-सहीफ़ा अल-सज्जादिया, बैरूत, दार उत तआरुफ लिलमतबूआत, 1402 हिजरी
  • दाराबी, मुहम्मद बिन मुहम्मद, रियाज़ अल आरेफ़ीन फ़ी शरह अल सहीफ़ा सज्जादिया, शोधः हुसैन दरगाही, तेहरान, नशर उस्वा, 1379 शम्सी
  • फ़ज़्लुल्लाह, सय्यद मुहम्मद हुसैन, आफ़ाक़ अल-रूह, बैरूत, दार उल मालिक, 1420 हिजरी
  • फ़हरि, सय्यद अहमद, शरह व तरजुमा सहीफ़ा सज्जादिया, तेहरान, उस्वा, 1388 शम्सी
  • फ़ैज़ काशानी, मुहम्मद बिन मुर्तज़ा, तालीक़ात अलस सहीफ़ा अल-सज्जादिया, तेहरान, मोअस्सेसा अल बुहूस वत तहक़ीक़ात अल सक़ाफ़ीया, 1407 हिजरी
  • मदनी शिराज़ी, सय्यद अली ख़ान, रियाज उस-सालेकीन फ़ी शरह सहीफ़ा तुस साजेदीन, क़ुम, मोअस्सेसा अल-नश्र उल-इस्लामी, 1435 हिजरी
  • मुग़्निया, मुहम्मद जवाद, फ़ी ज़िलाल अल-सहीफ़ा सज्जादिया, क़ुम, दार उल किताब उल इस्लामी, 1428 हिजरी
  • ममदूही किरमानशाही, हसन, शुहूद व शनाख़्त, तरजुमा व शरह सहीफ़ा सज्जादिया, मुकद्मा आयतुल्लाह जवादी आमोली, क़ुम, बूस्तान किताब, 1388 शम्सी