सहीफ़ा सज्जादिया की अड़तालीसवीं दुआ
शाबान 1102 में अब्दुल्लाह यज़्दी द्वारा लिखित साहिफ़ा सज्जादिया की पांडुलिपि | |
| विषय | ईद-उल-अज़हा और शुक्रवार के दिन नमाज़ के बाद , इस्लामी समुदाय के नेतृत्व को मासूम लोगों को समर्पित करना, तथा पैग़म्बर (स) और उनके परिवार पर दुरूद |
|---|---|
| प्रभावी/अप्रभावी | प्रभावी |
| किस से नक़्ल हुई | इमाम सज्जाद (अ) |
| कथावाचक | मुतवक्किल बिन हारुन |
| शिया स्रोत | सहीफ़ा सज्जादिया |
| विशेष समय | ईद-उल-अज़हा और शुक्रवार के दिन नमाज़ के बाद |
सहीफ़ा सज्जादिया की अड़तालीसवीं दुआ (अरबीःالدعاء الثامن والأربعون من الصحيفة السجادية) इमाम सज्जाद (अ) की प्रसिद्ध दुआओं में से एक है जिसे आप (अ) ईद-उल-अज़हा के दिन और शुक्रवार को पढ़ते थे। इस दुआ में इमाम सज्जाद (अ) ईद के दिन मुसलमानों के एकत्र होने को इस्लाम की महानता का प्रदर्शन मानते हैं तथा इन दिनों के दौरान ईश्वर से दया और क्षमा की दुआ करते हैं। इस दुआ में पैग़म्बरे इस्लाम (स) और उनके अहले बैत (अ) पर कई बार दुरूद भेजी गई है।
इस दुआ में यह भी कहा गया है कि इस्लामी समुदाय का नेतृत्व विशेष रूप से मासूम लोगों के लिए है, जिसे शासकों ने हड़प लिया है। इस दुआ में चौथे इमाम ईश्वर से अनेक अनुरोध करते हैं, जिनमें फरज मे ताजील, विपत्तियों से सुरक्षा, प्रचुर मात्रा में जीविका और पापों के लिए क्षमा मांगना शामिल है।
अड़तालीसवीं दुआ को फ़ारसी में सहीफ़ा सज्जादिया की व्याख्याओ में समझाया गया है, जैसे कि हुसैन अंसारियान द्वारा रचित दयारे आशेक़ान और हसन ममदूही किरमानशाही द्वारा रचित शुहुद वा शनाख़त, और अरबी में सैय्यद अली ख़ान मदनी द्वारा रचित पुस्तक रियाज़ अल-सालेकीन मे बयान किया गया है।
शिक्षाएँ
अड़तालीसवीं दुआ सहीफ़ा सज्जादिया की दुआओं में से एक है जिसे इमाम सज्जाद (अ) ईद-उल-अज़हा के दिन और शुक्रवार को पढ़ते थे। इस दुआ का विषय ईद-उल-अज़हा और शुक्रवार की विशेषताओं तथा इन दिनों के दौरान ईश्वर की विशेष कृपा को व्यक्त करना है। इस दुआ में, हज़रत ज़ैनुल आबेदीन (अ) भी सरकार के अयोग्य लोगों के हाथों में पड़ने पर खेद व्यक्त करते हैं, यह इंगित करते हुए कि इस्लामी समाज का शासक मासूम होना चाहिए।[१] इस दुआ में, मुहम्मद और उनके परिवार पर बार-बार सलवात भेजी जाती है। इस दोहराव का रहस्य पैग़म्बर (स) और उनके परिवार की स्थिति के लिए प्रशंसा माना जाता है, जो इस दुनिया और उसके बाद के लोगों की खुशी के लिए उनके मार्गदर्शन के लिए ऋणी हैं।[२] इस दुआ की शिक्षाएँ इस प्रकार हैं:
- शुक्रवार और ईद-उल-अज़हा की हार्दिक शुभकामनाएँ
- संसार की प्रभुता को परमेश्वर को समर्पित करना और उसकी स्तुति करना
- ईद के दिन मुसलमान इस्लाम की महानता दिखाने के लिए एकत्रित होते हैं
- अल्लाह से उस भलाई के बराबर भलाई मांगना जो उसने दूसरे बंदो को दी है।
- अल्लाह के नामों और गुणों का उचित उपयोग करने की आवश्यकता
- परमेश्वर को पहचानकर नेमतो का बेहतर इस्तेमाल करना
- स्वर्ग और उच्च पद परमेश्वर की कृपा और दया का फल हैं।
- मुहम्मद और उनके परिवार पर अनंत दुरूद भेजने का आग्रह
- ईश्वर के अलावा किसी और से मदद मांगना उचित नहीं है।
- अपने स्वयं के कर्मों की अपेक्षा ईश्वर की क्षमा और दया की आशा करना
- परमेश्वर की दया उसके बन्दों के पापों से बड़ी है।
- ईद-उल-अज़हा और शुक्रवार को ईश्वर से पुरस्कार, उपहार और इनाम प्राप्त करने की आशा करना
- हर अच्छाई को प्राप्त करना और हर बुराई से दूर रहना केवल ईश्वर की कृपा से ही संभव है।
- इस संसार और परलोक की भलाई के लिए ईश्वर से आशा रखना
- धार्मिक कार्य (अमल सालेह) न करना और आत्म-धार्मिकता उन कारणों में से हैं जिनके कारण दुआए स्वीकार नही होती
- अल्लाह का मनुष्य से बेनियाज होना और मनुष्य को परमेश्वर की आवश्यकता होना
- क्षमा मांगकर ज्ञान के शिखर तक पहुंचना
- अल्लाह के सामने आने के लिए तैयारी करने की ज़रूरत
- शुक्रवार को पैग़म्बर (स) और अहले बैत (अ) की शिफ़ाअत की आशा करना
- अहले-बैत (अ) के समान होना उनकी सिफ़ारिश का आनंद लेने के लिए एक शर्त है।
- अल्लाह के सामने पाप और बुराई को स्वीकार करना
- अल्लाह की असीम दया और क्षमा को स्वीकार करना
- ईद-उल-अज़हा और जुमा की नमाज़ का वारिसों और चुने हुए लोगों से विशेष होना
- अहले बैत (अ) के दुश्मनों पर लानत करना
- नमाज़े ईद और नमाज़े जुमा का इमामो और अल्लाह के बंदो से छीनना
- धर्म शासकों का खिलौना है।
- उत्पीड़कों के कार्यों से प्रसन्न होकर उनके उत्पीड़न में भाग लेना
- मुहम्मद और आले मुहम्मद (अ) की फरज मे ताजील की दुआ करना
- एकेश्वरवाद और आस्था के लोगों के बीच रहने की प्रार्थना
- तज़र्रोअ और ज़ारी के माध्यम से अल्लाह के क्रोध और दण्ड से मुक्ति की दुआ करना।
- ईश्वर की दया से दूर होने का दुःख
- मृत्यु से पहले दुआ के स्वीकार होने की दुआ करना
- जीवन के अंत तक अच्छे स्वास्थ्य का आनंद लेने का अनुरोध
- अल्लाह अपने सेवकों के पापों का दण्ड शीघ्रता से नहीं देता
- दैवीय क्षेत्र उत्पीड़न और उसके कारण से मुक्त है
- अनेक विपत्तियों से सुरक्षित रहने के लिए दुआ
- ईश्वरीय शक्ति के प्रकाश में समस्याओं के समाधान, खुलेपन और दुख एवं शोक से मुक्ति के लिए दुआ।
- मानवीय पूर्णता के विकास के माध्यम से मृत्यु के चंगुल से मुक्ति
- शुक्रवार और ईद-उल-अज़हा के दिन ईश्वरीय प्रकोप से बचने के लिए ईश्वर की शरण में जाना
- अल्लाह सबसे बड़ा सहारा है
- ईश्वर से दुआ करके समस्याओं से छुटकारा पाना
- दैवी दण्ड से सुरक्षा के लिए दुआ करना
- दिव्य द्वार तक मार्गदर्शन के लिए दुआ करना
- ईश्वर से सहायता के लिए दुआ करना
- ईश्वर से दया, क्षमा और जीविका में पर्याप्तता की दुआ करना
- पापों के लिए क्षमा मांगना
- बुराई से सुरक्षा के लिए दुआ
- ईश्वरीय आशीर्वाद के प्रकाश में खुशियों की कामना
- अपने लिए जो नियत किया गया है उसमें भलाई और अच्छाई की मांग करना
- ईश्वर पर भरोसा, आत्म-विश्वास से बड़ा है[३]
व्याख्याएँ
सहीफ़ा सज्जादिया की अड़तालीसवीं दुआ की भी व्याख्या दूसरी दुआओ की तरह की गई है। यह दुआ हुसैन अंसारियान की पुस्तक दयारे आशेक़ान,[४] हसन ममदूही किरमानशाही की शुहुद व शनाख्त,[५] और सय्यद अहमद फ़हरी की किताब शरह व तरजुमा सहीफ़ा सज्जादिया[६] मे फ़ारसी भाषा मे व्याख्या की गई है।
सहीफ़ा सज्जादिया की अड़तालीसवीं दुआ सय्यद अली खान मदनी की किताब रियाज़ उल सालेकीन[७] मुहम्मद जवाद मुग़्निया की फी ज़िलाल अल-सहीफ़ा सज्जादिया,[८] मुहम्मद बिन मुहम्मद दाराबी की रियाज़ उल आरेफ़ीन[९] और सय्यद मुहम्मद हुसैन फ़ज़लुल्लाह की आफ़ाक़ अल रूह[१०] मे इसका वर्णन अरबी में किया गया है। इस दुआ के शब्दों को फ़ैज़ काशानी द्वारा तालीक़ा अला अल-सहीफ़ा सज्जादिया[११] और इज़्ज़ुद्दीन जज़ाएरी द्वारा शरह अल-सहीफ़ा अल-सज्जादिया जैसी शाब्दिक टिप्पणियों में भी उल्लेक किया गया है।[१२]
अड़तालीसवीं दुआ का पाठ और अनुवाद
وَ كَانَ مِنْ دُعَائِهِ عَلَيْهِ السَّلَامُ يَوْمَ الْأَضْحَي وَ يَوْمَ الْجُمُعَةِ
اللَّهُمَّ هَذَا يَوْمٌ مُبَارَكٌ مَيْمُونٌ ، وَ الْمُسْلِمُونَ فِيهِ مُجْتَمِعُونَ فِي أَقْطَارِ أَرْضِكَ ، يَشْهَدُ السَّائِلُ مِنْهُمْ وَ الطَّالِبُ وَ الرَّاغِبُ وَ الرَّاهِبُ وَ أَنْتَ النَّاظِرُ فِي حَوَائِجِهِمْ ، فَأَسْأَلُكَ بِجُودِكَ وَ كَرَمِكَ وَ هَوَانِ مَا سَأَلْتُكَ عَلَيْكَ أَنْ تُصَلِّيَ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ .
وَ أَسْأَلُكَ اللَّهُمَّ رَبَّنَا بِأَنَّ لَكَ الْمُلْكَ ، وَ لَكَ الْحَمْدَ ، لَا إِلَهَ إِلَّا أَنْتَ ، الْحَلِيمُ الْكَرِيمُ الْحَنَّانُ الْمَنَّانُ ذُو الْجَلَالِ وَ الْإِكْرَامِ ، بَدِيعُ السَّمَاوَاتِ وَ الْأَرْضِ ، مَهْمَا قَسَمْتَ بَيْنَ عِبَادِكَ الْمُؤْمِنِينَ مِنْ خَيْرٍ أَوْ عَافِيَةٍ أَوْ بَرَكَةٍ أَوْ هُدًى أَوْ عَمَلٍ بِطَاعَتِكَ ، أَوْ خَيْرٍ تَمُنُّ بِهِ عَلَيْهِمْ تَهْدِيهِمْ بِهِ إِلَيْكَ ، أَوْ تَرْفَعُ لَهُمْ عِنْدَكَ دَرَجَةً ، أَوْ تُعْطِيهِمْ بِهِ خَيْراً مِنْ خَيْرِ الدُّنْيَا وَ الآْخِرَةِ أَنْ تُوَفِّرَ حَظِّي وَ نَصِيبِي مِنْهُ
وَ أَسْأَلُكَ اللَّهُمَّ بِأَنَّ لَكَ الْمُلْكَ وَ الْحَمْدَ ، لَا إِلَهَ إِلَّا أَنْتَ ، أَنْ تُصَلِّيَ عَلَى مُحَمَّدٍ عَبْدِكَ وَ رَسُولِكَ وَ حَبِيبِكَ وَ صِفْوَتِكَ وَ خِيَرَتِكَ مِنْ خَلْقِكَ ، وَ عَلَى آلِ مُحَمَّدٍ الْأَبْرَارِ الطَّاهِرِينَ الْأَخْيَارِ صَلَاةً لَا يَقْوَى عَلَى إِحْصَائِهَا إِلَّا أَنْتَ ، وَ أَنْ تُشْرِكَنَا فِي صَالِحِ مَنْ دَعَاكَ فِي هَذَا الْيَوْمِ مِنْ عِبَادِكَ الْمُؤْمِنِينَ ، يَا رَبَّ الْعَالَمِينَ ، وَ أَنْ تَغْفِرَ لَنَا وَ لَهُمْ ، إِنَّكَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ .
اللَّهُمَّ إِلَيْكَ تَعَمَّدْتُ بِحَاجَتِي ، وَ بِكَ أَنْزَلْتُ الْيَوْمَ فَقْرِي وَ فَاقَتِي وَ مَسْكَنَتِي ، وَ إِنِّي بِمَغْفِرَتِكَ وَ رَحْمَتِكَ أَوْثَقُ مِنِّي بِعَمَلِي ، وَ لَمَغْفِرَتُكَ وَ رَحْمَتُكَ أَوْسَعُ مِنْ ذُنُوبِي ، فَصَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِ مُحَمَّدٍ ، وَ تَوَلَّ قَضَاءَ كُلِّ حَاجَةٍ هِيَ لِي بِقُدْرَتِكَ عَلَيْهَا ، وَ تَيْسِيرِ ذَلِكَ عَلَيْكَ ، وَ بِفَقْرِي إِلَيْكَ ، وَ غِنَاكَ عَنِّي ، فَإِنِّي لَمْ أُصِبْ خَيْراً قَطُّ إِلَّا مِنْكَ ، وَ لَمْ يَصْرِفْ عَنِّي سُوءاً قَطُّ أَحَدٌ غَيْرُكَ ، وَ لَا أَرْجُو لِأَمْرِ آخِرَتِي وَ دُنْيَايَ سِوَاكَ .
اللَّهُمَّ من تَهَيَّأَ وَ تَعَبَّأَ وَ أَعَدَّ وَ اسْتَعَدَّ لِوَفَادَةٍ إِلَى مَخْلُوقٍ رَجَاءَ رِفْدِهِ وَ نَوَافِلِهِ وَ طَلَبَ نَيْلِهِ وَ جَائِزَتِهِ ، فَإِلَيْكَ يَا مَوْلَايَ كَانَتِ الْيَوْمَ تَهْيِئَتِي وَ تَعْبِئَتِي وَ إِعْدَادِي وَ اسْتِعْدَادِي رَجَاءَ عَفْوِكَ وَ رِفْدِكَ وَ طَلَبَ نَيْلِكَ وَ جَائِزَتِكَ .
اللَّهُمَّ فَصَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِ مُحَمَّدٍ ، وَ لَا تُخَيِّبِ الْيَوْمَ ذَلِكَ مِنْ رَجَائِي ، يَا مَنْ لَا يُحْفِيهِ سَائِلٌ وَ لَا يَنْقُصُهُ نَائِلٌ ، فَإِنِّي لَمْ آتِكَ ثِقَةً مِنِّي بِعَمَلٍ صَالِحٍ قَدَّمْتُهُ ، وَ لَا شَفَاعَةِ مَخْلُوقٍ رَجَوْتُهُ إِلَّا شَفَاعَةَ مُحَمَّدٍ وَ أَهْلِ بَيْتِهِ عَلَيْهِ وَ عَلَيْهِمْ سَلَامُكَ .
أَتَيْتُكَ مُقِرّاً بِالْجُرْمِ وَ الْإِسَاءَةِ إِلَى نَفْسِي ، أَتَيْتُكَ أَرْجُو عَظِيمَ عَفْوِكَ الَّذِي عَفَوْتَ بِهِ عَنِ الْخَاطِئِينَ ، ثُمَّ لَمْ يَمْنَعْكَ طُولُ عُكُوفِهِمْ عَلَى عَظِيمِ الْجُرْمِ أَنْ عُدْتَ عَلَيْهِمْ بِالرَّحْمَةِ وَ الْمَغْفِرَةِ .
فَيَا مَنْ رَحْمَتُهُ وَاسِعَةٌ ، وَ عَفْوُهُ عَظِيمٌ ، يَا عَظِيمُ يَا عَظِيمُ ، يَا كَرِيمُ يَا كَرِيمُ ، صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِ مُحَمَّدٍ وَ عُدْ عَلَيَّ بِرَحْمَتِكَ وَ تَعَطَّفْ عَلَيَّ بِفَضْلِكَ وَ تَوَسَّعْ عَلَيَّ بِمَغْفِرَتِكَ .
اللَّهُمَّ إِنَّ هَذَا الْمَقَامَ لِخُلَفَائِكَ وَ أَصْفِيَائِكَ وَ مَوَاضِعَ أُمَنَائِكَ فِي الدَّرَجَةِ الرَّفِيعَةِ الَّتِي اخْتَصَصْتَهُمْ بِهَا قَدِ ابْتَزُّوهَا ، وَ أَنْتَ الْمُقَدِّرُ لِذَلِكَ ، لَا يُغَالَبُ أَمْرُكَ ، وَ لَا يُجَاوَزُ الَْمحْتُومُ مِنْ تَدْبِيرِكَ كَيْفَ شِئْتَ وَ أَنَّى شِئْتَ ، وَ لِمَا أَنْتَ أَعْلَمُ بِهِ غَيْرُ مُتَّهَمٍ عَلَى خَلْقِكَ وَ لَا لِإِرَادَتِكَ حَتَّى عَادَ صِفْوَتُكَ وَ خُلَفَاؤُكَ مَغْلُوبِينَ مَقْهُورِينَ مُبْتَزِّينَ ، يَرَوْنَ حُكْمَكَ مُبَدَّلًا ، وَ كِتَابَكَ مَنْبُوذاً ، وَ فَرَائِضَكَ مُحَرَّفَةً عَنْ جِهَاتِ أَشْرَاعِكَ ، وَ سُنَنَ نَبِيِّكَ مَتْرُوكَةً .
اللَّهُمَّ الْعَنْ أَعْدَاءَهُمْ مِنَ الْأَوَّلِينَ وَ الآْخِرِينَ ، وَ مَنْ رَضِيَ بِفِعَالِهِمْ وَ أَشْيَاعَهُمْ وَ أَتْبَاعَهُمْ .
اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِ مُحَمَّدٍ ، إِنَّكَ حَمِيدٌ مَجِيدٌ ، كَصَلَوَاتِكَ وَ بَرَكَاتِكَ وَ تَحِيَّاتِكَ عَلَى أَصْفِيَائِكَ إِبْرَاهِيمَ وَ آلِ إِبْرَاهِيمَ ، وَ عَجِّلِ الْفَرَجَ وَ الرَّوْحَ وَ النُّصْرَةَ وَ الَّتمْكِينَ وَ التَّأْيِيدَ لَهُمْ .
اللَّهُمَّ وَ اجْعَلْنِي مِنْ أَهْلِ التَّوْحِيدِ وَ الْإِيمَانِ بِكَ ، وَ التَّصْدِيقِ بِرَسُولِكَ ، وَ الْأَئِمَّةِ الَّذِينَ حَتَمْتَ طَاعَتَهُمْ مِمَّنْ يَجْرِي ذَلِكَ بِهِ وَ عَلَى يَدَيْهِ ، آمِينَ رَبَّ الْعَالَمِينَ.
اللَّهُمَّ لَيْسَ يَرُدُّ غَضَبَكَ إِلَّا حِلْمُكَ ، وَ لَا يَرُدُّ سَخَطَكَ إِلَّا عَفْوُكَ ، وَ لَا يُجِيرُ مِنْ عِقَابِكَ إِلَّا رَحْمَتُكَ ، وَ لَا يُنْجِينِي مِنْكَ إِلَّا التَّضَرُّعُ إِلَيْكَ وَ بَيْنَ يَدَيْكَ ، فَصَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِ مُحَمَّدٍ ، وَ هَبْ لَنَا يَا إِلَهِي مِنْ لَدُنْكَ فَرَجاً بِالْقُدْرَةِ الَّتِي بِهَا تُحْيِي أَمْوَاتَ الْعِبَادِ ، وَ بِهَا تَنْشُرُ مَيْتَ الْبِلَادِ .
وَ لَا تُهْلِكْنِي يَا إِلَهِي غَمّاً حَتَّى تَسْتَجِيبَ لِي ، وَ تُعَرِّفَنِي الْإِجَابَةَ فِي دُعَائِي ، وَ أَذِقْنِي طَعْمَ الْعَافِيَةِ إِلَى مُنْتَهَى أَجَلِي ، وَ لَا تُشْمِتْ بِي عَدُوِّي ، وَ لَا تُمَكِّنْهُ مِنْ عُنُقِي ، وَ لَا تُسَلِّطْهُ عَلَيَّ
إِلَهِي إِنْ رَفَعْتَنِي فَمَنْ ذَا الَّذِي يَضَعُنِي ، وَ إِنْ وَضَعْتَنِي فَمَنْ ذَا الَّذِي يَرْفَعُنِي ، وَ إِنْ أَكْرَمْتَنِي فَمَنْ ذَا الَّذِي يُهِينُنِي ، وَ إِنْ أَهَنْتَنِي فَمَنْ ذَا الَّذِي يُكْرِمُنِي ، وَ إِنْ عَذَّبْتَنِي فَمَنْ ذَا الَّذِي يَرْحَمُنِي ، وَ إِنْ أَهْلَكْتَنِي فَمَنْ ذَا الَّذِي يَعْرِضُ لَكَ فِي عَبْدِكَ ، أَوْ يَسْأَلُكَ عَنْ أَمْرِهِ ، وَ قَدْ عَلِمْتُ أَنَّهُ لَيْسَ فِي حُكْمِكَ ظُلْمٌ ، وَ لَا فِي نَقِمَتِكَ عَجَلَةٌ ، وَ إِنَّمَا يَعْجَلُ مَنْ يَخَافُ الْفَوْتَ ، وَ إِنَّمَا يَحْتَاجُ إِلَي الظُّلْمِ الضَّعِيفُ ، وَ قَدْ تَعَالَيْتَ يَا إِلَهِي عَنْ ذَلِكَ عُلُوّاً كَبِيراً .
اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِ مُحَمَّدٍ ، وَ لَا تَجْعَلْنِي لِلْبَلَاءِ غَرَضاً ، وَ لَا لِنَقِمَتِكَ نَصَباً ، وَ مَهِّلْنِي ، وَ نَفِّسْنِي ، وَ أَقِلْنِي عَثْرَتِي ، وَ لَا تَبْتَلِيَنِّي بِبَلَاءٍ عَلَى أَثَرِ بَلَاءٍ ، فَقَدْ تَرَى ضَعْفِي وَ قِلَّةَ حِيلَتِي وَ تَضَرُّعِي إِلَيْكَ .
أَعُوذُ بِكَ اللَّهُمَّ الْيَوْمَ مِنْ غَضَبِكَ ، فَصَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ ، وَ أَعِذْنِي.
وَ أَسْتَجِيرُ بِكَ الْيَوْمَ مِنْ سَخَطِكَ ، فَصَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ ، وَ أَجِرْنِي
وَ أَسْأَلُكَ أَمْناً مِنْ عَذَابِكَ ، فَصَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ ، وَ آمِنِّي
وَ أَسْتَهْدِيكَ ، فَصَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ ، وَ اهْدِنِي
وَ أَسْتَنْصِرُكَ ، فَصَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ ، وَ انْصُرْنِي
وَ أَسْتَرْحِمُكَ ، فَصَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ ، وَ ارْحَمْنِي
وَ أَسْتَكْفِيكَ ، فَصَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ ، وَ اكْفِنِي
وَ أَسْتَرْزِقُكَ ، فَصَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ ، وَ ارْزُقْنِي
وَ أَسْتَعِينُكَ ، فَصَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ ، وَ أَعِنِّي
وَ أَسْتَغْفِرُكَ لِمَا سَلَفَ مِنْ ذُنُوبِي ، فَصَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ ، وَ اغْفِرْ لِي
وَ أَسْتَعْصِمُكَ ، فَصَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ ، وَ اعْصِمْنِي ، فَإِنِّي لَنْ أَعُودَ لِشَيْءٍ كَرِهْتَهُ مِنِّي إِنْ شِئْتَ ذَلِكَ
يَا رَبِّ يَا رَبِّ ، يَا حَنَّانُ يَا مَنَّانُ ، يَا ذَا الْجَلَالِ وَ الْإِكْرَامِ ، صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ ، وَ اسْتَجِبْ لِي جَمِيعَ مَا سَأَلْتُكَ وَ طَلَبْتُ إِلَيْكَ وَ رَغِبْتُ فِيهِ إِلَيْكَ ، وَ أَرِدْهُ وَ قَدِّرْهُ وَ اقْضِهِ وَ أَمْضِهِ ، وَ خِرْ لِي فِيما تَقْضِي مِنْهُ ، وَ بَارِكْ لِي فِي ذَلِكَ ، وَ تَفَضَّلْ عَلَيَّ بِهِ ، وَ أَسْعِدْنِي بِمَا تُعْطِينِي مِنْهُ ، وَ زِدْنِي مِنْ فَضْلِكَ وَ سَعَةِ مَا عِنْدَكَ ، فَإِنَّكَ وَاسِعٌ كَرِيمٌ ، وَ صِلْ ذَلِكَ بِخَيْرِ الآْخِرَةِ وَ نَعِيمِهَا ، يَا أَرْحَمَ الرَّاحِمِينَ . (ثُمَّ تَدْعُو بِمَا بَدَا لَكَ ، وَ تُصَلِّي عَلَي مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ أَلْفَ مَرَّةٍ هَكَذَا كَانَ يَفْعَلُ عَلَيْهِ السَّلَامُ).
ईद-उल-अज़हा और शुक्रवार के दिन इमाम सज्जाद (अ) की दुआ
हे परमेश्वर! यह एक धन्य और शुभ दिन है जिस दिन पृथ्वी के हर कोने से मुसलमान एकत्र होते हैं। इनमें प्रश्नकर्ता और जिज्ञासु दोनों ही शामिल हैं। वे जिज्ञासु और भयभीत दोनों हैं। वे सभी तेरे समक्ष मौजूद हैं, और तू ही उनकी आवश्यकताओं का ध्यान रखता हैं। इसलिए, तेरी उपस्थिति और उदारता को देखते हुए, और इस विश्वास के साथ कि मेरी ज़रूरत को पूरा करना तेरे लिए आसान है, मैं तुझसे मुहम्मद और उनके परिवार पर रहमत नाज़िल करने की दुआ करता हूँ।
हे परमात्मा ! हे हम सबके प्रभु! क्योंकि तेरे लिए ही बादशाही है और तेरी ही प्रशंसा है, तेरे अतिरिक्त कोई पूज्य नहीं; तू अत्यन्त सहनशील, अत्यन्त दयावान, कृपालु, महिमावान, आकाशों और धरती का रचयिता है। अतः मैं तुझसे प्रार्थना करता हूँ कि जब तू अपने ईमानवाले बन्दों को भलाई, स्वास्थ्य और बरकत प्रदान करे, या तेरे आज्ञापालन की क्षमता प्रदान करे, या ऐसी भलाई प्रदान करे कि तू उन पर अनुग्रह करे और उन्हें अपनी ओर मार्ग दिखाए, या अपने यहाँ उनका दर्जा बढ़ाए, या उन्हें दुनिया और आख़िरत की भलाई में से कोई भलाई प्रदान करे, तो उसमें मेरा हिस्सा और सौभाग्य बढ़ा दे।
हे परवरदिगारा ! राज्य तेरा ही है, सारी प्रशंसा और आदर तेरा ही है, तेरे सिवा कोई पूज्य नहीं। इसलिए, मैं तुझसे प्रार्थना करता हूँ कि तू अपने अब्द रसूल, प्रिय, चुने हुए और चुनी हुई सृष्टि मुहम्मद और उनके परिवार पर, जो धर्मी, शुद्ध और सृष्टि में सर्वश्रेष्ठ हैं, अपनी रहमत नाजिल कर, ऐसी रहमत जिसे तेरे अलावा कोई गिन नहीं सकता। और जो कोई तेरे ईमानवाले बन्दों में से आज तुझसे कोई नेकी मांगे, तो हमें भी उसमें हिस्सा प्रदान कर। हे समस्त लोकों के स्वामी, हमें और उन सभी को क्षमा कर, क्योंकि तू सभी कार्य करने में समर्थ हैं।
हे पालनहार ! मैंने अपनी ज़रूरतें तेरे पास लाया हूं और अपनी गरीबी, अभाव और ज़रूरत का बोझ तेरे पास लाया हूँ, और मैं अपने कर्मों की तुलना में तेरी क्षमा और दया से अधिक संतुष्ट हूँ, और वास्तव में, तेरी क्षमा और दया का विस्तार मेरे पापों से कहीं अधिक व्यापक है, इसलिए मुहम्मद और उनके परिवार पर रहमत नाज़िल कर, और तू ही मेरी हर ज़रूरत को पूरा कर। क्योंकि तेरे पास इस पर शक्ति है, जो तेरे लिए सहज है, और क्योंकि मुझे तेरी आवश्यकता है और तू मुझसे स्वतंत्र हो, और क्योंकि मैं तेरे बिना किसी भी भलाई को प्राप्त करने में सक्षम नहीं हूँ, और तेरे अलावा कोई भी मुझसे दुःख दूर नहीं कर सका है। और मैं दुनिया और आख़िरत के मामलों में तेरे सिवा किसी से उम्मीद नहीं रखता।
हे परमात्मा ! जो कोई भी व्यक्ति पुरस्कार और उपहार की आशा और क्षमा और पुरस्कार की इच्छा के साथ किसी भी प्राणी के पास जाने के लिए तैयार, तत्पर और उत्सुक है, तो हे मेरे स्वामी ! आज मेरी तत्परता, तैयारी, प्रावधान और तत्परता तेरी क्षमा और प्रावधान की आशा में है, और तेरी क्षमा और पुरस्कार की आशा में है।
इसलिए, हे मेरे परमेश्वर! अतः मुहम्मद और उनके परिवार पर दुरूद भेज और आज मुझे मेरी आशाओं में असफल न कर। हे वह जो भिक्षा के कारण विवश नहीं है, और न ही वह अपनी कृपा के उपहार में कमी रखता है, मैं तेरे पास किसी भी नेकी से संतुष्ट होकर नहीं आया हूँ, जो मैंने भेजी है, और न ही किसी प्राणी की सिफ़ारिश से जिसकी मैंने आशा की है, सिवाय मुहम्मद और उनके परिवार की सिफ़ारिश के।
इसलिए मैं तेरे सामने आया हूँ और अपने पापों को तथा अपने द्वारा किये गए बुरे कार्यों को स्वीकार करता हूँ। इस बीच, मैं तेरी महान क्षमाशीलता की आशा रखता हूँ जिसके द्वारा तूने पापियों को क्षमा कर दिया है। फिर, लम्बे समय तक उनके बड़े-बड़े पापों में लगे रहने के बावजूद, तूने उन पर अपनी क्षमा और दया की कृपा बरसाने से उन्हें नहीं रोका।
ऐ वह जिसकी दया बड़ी है और जिसकी क्षमा महान है! हे ज्येष्ठ! ओह अदभुत!! हे क्षमा करनेवाले! ओह करीम!! मुहम्मद और उनके परिवार पर रहमत नाज़िल कर, और अपनी दया से मुझ पर अनुग्रह कर, और अपनी कृपा और उदारता से मुझ पर दयालु बना, और मेरे लिए अपनी क्षमा का विस्तार कर।
हे परमात्मा ! यह पद (खुत्बा और नमाजे जुमे का नेतृत्व) आपके उत्तराधिकारियों और चुने हुए बंदों के लिए था, और यह आपके ट्रस्टियों का निवास था, लेकिन तूने यह उच्च पद उनके (क्रोधित लोगों) लिए आरक्षित कर रखा था और उन्होंने इसे छीन लिया। और तू ही है जिसने इस मामले को शुरू से ही तय कर रखा है। तेरे हुक्म और हुक्म को पलटा नहीं जा सकता और न तेरी आखिरी योजना (क़ज़ा और क़द्र) का उल्लंघन किया जा सकता है, चाहे तू जैसे भी चाहे और जब चाहे। इस रुचि के कारण, जिसे केवल तू ही सबसे बेहतर जानते हैं, आपको अपने भाग्य और अपनी इच्छा के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता। यहाँ तक कि (इस क्रोध के परिणामस्वरूप) तेरे चुने हुए लोग और उत्तराधिकारी पराजित और अपमानित हुए, और उनके अधिकार उनके हाथों से फिसलते गए। वे देखते हैं कि तेरे आदेश बदल दिए गए हैं, तेरी किताब को दरकिनार कर दिया गया है, तेरे कर्तव्य और दायित्व तेरे स्पष्ट उद्देश्यों से हट गए हैं, और तेरे नबी के तरीके और विधियाँ अप्रचलित हो गई हैं।
हे पालनहार ! अतः इन चुने हुए बंदो के भूतपूर्व तथा वर्तमान शत्रुओं को, तथा उन लोगों को जो इन शत्रुओं के कार्यों तथा व्यवहार से प्रसन्न हैं, तथा उन लोगों को जो उनके प्रजा तथा अनुयायी हैं, पर लानत कर।
हे परमेश्वर ! मुहम्मद और उनके परिवार पर दुरूद भेज, निस्संदेह, तू प्रशंसा के योग्य और महान हैं, जिस तरह तूने अपने चुने हुए इब्राहीम और इब्राहीम के परिवार पर दुरूद और शांति भेजी, और उनके लिए विस्तार, आराम, विजय और समर्थन तअजील कर।
हे परमात्मा ! मुझे उन लोगों में शामिल कर जो अल्लाह की तौहीद पर ईमान लाए, जो तुझ पर ईमान लाए, जो तेरे रसूल और इमामों की पुष्टि करते हैं, जिनकी आज्ञाकारिता तूने अनिवार्य की है, उन लोगों में शामिल कर जिनके द्वारा और जिनके हाथों से तूने ये सारी चीज़ें (तौहीद, ईमान और पुष्टि) बनाई हैं। हे सारे संसार के पालनहार, मेरी दुआ स्वीकार कर!
हे परमेश्वर ! तेरी सहनशीलता के अलावा कोई भी चीज़ तेरे क्रोध को टाल नहीं सकती, तेरी क्षमा के अलावा कोई भी चीज़ तेरे क्रोध को दूर नहीं कर सकती, तेरी दया के अलावा कोई भी चीज़ तेरे दण्ड से तेरी शरण नहीं दे सकती, और तेरे समक्ष बड़बड़ाने के अलावा कोई भी चीज़ तेरे अजाब नहीं बचा सकती। अतः मुहम्मद और उनके परिवार पर रहमत नाजिल कर, और अपनी कुदरत से मुर्दों को जीवित करता हैं और बंजर भूमि को उपजाऊ बनाता हैं, मुझे तेरी ओर से दुःख और संताप से मुक्ति प्रदान कीजिए।
हे परमेश्वर ! जब तक तू मेरी प्रार्थना स्वीकार न कर लें और मुझे उसकी स्वीकृति की सूचना न दे दें, तब तक मुझे दुःख और शोक से नष्ट न कर तथा मुझे जीवन के अंतिम क्षणों तक स्वास्थ्य और कल्याण के सुख से प्रसन्न रख। और दुश्मनों को यह मौक़ा न दे कि वे (मेरी हालत पर) ख़ुश हों और मेरी गर्दन पर सवार होकर मुझपर हुकूमत करें।
हे परमेश्वर ! यदि तू मुझे ऊंचा करता है, तो कौन मुझे नीचा कर सकता है? यदि तू मुझे नीचा करेगा, तो कौन मुझे ऊंचा कर सकेगा? यदि तू मुझे सम्मान देता हैं, तो कौन मुझे अपमानित कर सकता है? यदि तू मुझे अपमानित करेंगा तो मुझे कौन सम्मान देगा? और यदि तू मुझे दण्ड देगा तो मुझ पर कौन दया करेगा? और यदि तू मुझे नष्ट कर दे, तो तेरे दास के विषय में कौन तुझ से आपत्ति कर सकेगा, या तुझ से उसके विषय में कौन पूछ सकेगा? और मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि तेरे न्याय में अन्याय का लेश भी नहीं है, और न ही तेरे दण्ड में कोई जल्दबाजी है। जो अवसर चूकने से डरता है, वह जल्दबाजी में है, और जो कमजोर और असहाय है, वह उत्पीड़न की जरूरत वाला व्यक्ति है। और हे मेरे परमेश्वर! यह इन चीजों से कहीं अधिक ऊंचा और श्रेष्ठ है।
हे परमेश्वर ! अतः मुहम्मद और उनके परिवार पर दुरूद भेज और मुझे अपनी विपत्तियों और अपनी यातनाओं का निशाना न बना। मुझे राहत दे और मेरा दुःख दूर कर। मेरी गलतियों को क्षमा कर और मुझे एक के बाद एक विपत्तियों का शिकार न बना। क्योंकि तू मेरी कमजोरी और लाचारी और गड़गड़ाहट को देख रहा है।
हे अल्लाह ! मैं आज तेरे प्रकोप से तेरी शरण चाहता हूँ, अतः मुहम्मद और उनके परिवार पर दया भेज और मुझे शरण प्रदान कर।
और मैं आज तेरे क्रोध से शरण चाहता हूँ। अतः मुहम्मद और उनके परिवार पर दया भेज और मुझे सुरक्षा प्रदान कर।
और मैं तेरी सज़ा से शांति चाहता हूँ। अतः मुहम्मद और उनके परिवार पर रहमत भेज और मुझे शांति प्रदान कर।
और मैं तुझसे मार्गदर्शन चाहता हूँ, अतः मुहम्मद और उनके परिवार पर दुरूद भेज और मेरा मार्गदर्शन कर।
और मैं तेरी सहायता चाहता हूँ, अतः मुहम्मद और उनके परिवार पर दुरूद भेज और मेरी सहायता कर।
और मैं तुझसे दया की प्रार्थना करता हूँ, अतः मुहम्मद और उनके परिवार पर दया कर, और मुझ पर भी दया कर।
और मैं तुझसे आत्मनिर्भरता का प्रश्न करता हूँ, अतः मुहम्मद और उनके परिवार पर दया भेज और मुझे आत्मनिर्भर बना।
और मैं तुझसे जीविका मांगता हूं। अतः मुहम्मद और उनके परिवार पर दया भेज और मेरी भी सहायता करो।
और मैं तेरी सहायता चाहता हूँ, अतः मुहम्मद और उनके परिवार पर दुरूद भेज और मेरी सहायता कर।
और मैं अपने पिछले पापों के लिए क्षमा चाहता हूँ, इसलिए मुहम्मद और उनके परिवार पर रहमत नाज़िल कर और मुझे क्षमा कर।
और मैं तेरी पनाह में आता हूँ, अतः मुहम्मद और उनके घरवालों पर दुरूद भेज और मुझे गुनाहों से बचा, क्योंकि यदि तेरी इच्छा मेरे साथ है तो मैं कोई ऐसा काम नहीं करूँगा जो तू मुझसे नापसंद करता हो।
हे मेरे परमदेव! हे परमेश्वर! हे दयालु, हे आशीर्वाद देने वाले, हे महिमा और वैभव के मालिक, मुहम्मद और उनके परिवार पर रहमत नाज़िल कर, और उन सभी पर जो मैंने मांगा है, और जो मैंने चाहा है, और जिनके लिए मैंने आपकी ओर रुख किया है, और उन्हें आपकी इच्छा, आदेश और आदेश प्रदान करें, और उन्हें पूरा कर। और जो कुछ तू तय करे, उसे मेरे लिए अच्छा बना, और उसमें मुझे बरकत दे, और उसके ज़रिए मुझ पर फ़ज़ल कर। और जो कुछ तूने मुझे दिया है, उसमें मुझे प्रसन्न कर और मुझ पर अपनी उदारता बढ़ा, निस्संदेह तू बड़ा उदार और दानशील है, और उसे आख़िरत की भलाई और उसकी नेमतों की प्रचुरता से जोड़ दे। हे दयालुओं में सर्वाधिक दयालु! उसके बाद मुझे जो भी नमाज़ पढ़नी हो, पढ़नी चाहिए और मुहम्मद साहब और उनके परिवार पर हज़ार बार दुरूद भेजनी चाहिए, जैसा कि इमाम (अ) किया करते थे।
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फ़ुटनोट
- ↑ ममदूही, शुहूद व शनाख़त, 1388 शम्सी, भाग 4, पेज 223
- ↑ ममदूही, शुहूद व शनाख़त, 1388 शम्सी, भाग 4, पेज 260
- ↑ ममदूही, शुहूद व शनाख़त, 1388 शम्सी, भाग 4, पेज 223-267; शरह फ़राज़हाए दुआ चहलो हश्तुम अज़ साइट इरफ़ान
- ↑ अंसारीयान, दयारे आशेक़ान, 1373 शम्सी, भाग 7, पेज 557-576
- ↑ ममदूही, शुहूद व शनाख़त, 1388 शम्सी, भाग 4, पेज 215-267
- ↑ फ़हरि, शरह व तफसीर सहीफ़ा सज्जादिया, 1388 शम्सी, भाग 3, पेज 505-516
- ↑ मदनी शिराज़ी, रियाज़ उस सालेकीन, 1435 हिजरी, भाग 7, पेज 163-242
- ↑ मुग़्निया, फ़ी ज़िलाल अल सहीफ़ा, 1428 हिजरी , पेज 611-626
- ↑ दाराबी, रियाज़ उल आरेफ़ीन, 1379 शम्सी, पेज 661-680
- ↑ फ़ज़्लुल्लाह, आफ़ाक़ अल रूह, 1420 शम्सी, भाग 2, पेज 545-572
- ↑ फ़ैज़ काशानी, तालीक़ात अलस सहीफ़ा अल-सज्जादिया, 1407 हिजरी, पेज 98-99
- ↑ जज़ाएरी, शरह अल-सहीफ़ा अल-सज्जादिया, 1402 हिजरी, पेज 270-277
स्रोत
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- जज़ाएरी, इज़्ज़ुद्दीन, शरह अल-सहीफ़ा अल-सज्जादिया, बैरूत, दार उत तआरुफ लिलमतबूआत, 1402 हिजरी
- दाराबी, मुहम्मद बिन मुहम्मद, रियाज़ अल आरेफ़ीन फ़ी शरह अल सहीफ़ा सज्जादिया, शोधः हुसैन दरगाही, तेहरान, नशर उस्वा, 1379 शम्सी
- फ़ज़्लुल्लाह, सय्यद मुहम्मद हुसैन, आफ़ाक़ अल-रूह, बैरूत, दार उल मालिक, 1420 हिजरी
- फ़हरि, सय्यद अहमद, शरह व तरजुमा सहीफ़ा सज्जादिया, तेहरान, उस्वा, 1388 शम्सी
- फ़ैज़ काशानी, मुहम्मद बिन मुर्तज़ा, तालीक़ात अलस सहीफ़ा अल-सज्जादिया, तेहरान, मोअस्सेसा अल बुहूस वत तहक़ीक़ात अल सक़ाफ़ीया, 1407 हिजरी
- मदनी शिराज़ी, सय्यद अली ख़ान, रियाज उस-सालेकीन फ़ी शरह सहीफ़ा तुस साजेदीन, क़ुम, मोअस्सेसा अल-नश्र उल-इस्लामी, 1435 हिजरी
- मुग़्निया, मुहम्मद जवाद, फ़ी ज़िलाल अल-सहीफ़ा सज्जादिया, क़ुम, दार उल किताब उल इस्लामी, 1428 हिजरी
- ममदूही किरमानशाही, हसन, शुहूद व शनाख़्त, तरजुमा व शरह सहीफ़ा सज्जादिया, मुकद्मा आयतुल्लाह जवादी आमोली, क़ुम, बूस्तान किताब, 1388 शम्सी