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सहीफ़ा सज्जादिया की बावनवी दुआ

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सहीफ़ा सज्जादिया की बावनवीं दुआ
शाबान 1102 में अब्दुल्लाह यज़्दी द्वारा लिखित साहिफ़ा सज्जादिया की पांडुलिपि
शाबान 1102 में अब्दुल्लाह यज़्दी द्वारा लिखित साहिफ़ा सज्जादिया की पांडुलिपि
विषयजरूरतों को पूरा करने पर जोर देने वाली दुआ
प्रभावी/अप्रभावीप्रभावी
किस से नक़्ल हुईइमाम सज्जाद (अ)
कथावाचकमुतवक्किल बिन हारून
शिया स्रोतसहीफ़ा सज्जादिया


सहिफ़ा सज्जादिया की बावनवीं दुआ, इमाम सज्जाद (अ) द्वारा अल्लाह से अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए आग्रह करते हुए पढ़ी गई दुआओं में से एक है। यह दुआ समस्त अस्तित्व पर ईश्वर की शक्ति और ज्ञान के प्रभाव को संदर्भित करती है। यह भी ज्ञात रहे कि सभी प्राणी अल्लाह के पास लौटते हैं। इस दुआ में इमाम सज्जाद (अ) बार-बार मानवीय कमियों का उल्लेख करते हैं और ईश्वर से उनकी आवश्यकताओं को पूरा करने की दुआ करते हैं। इस संसार में धोखा खाने वालों की विशेषताएं और बहुदेववादियों से घृणा इस दुआ के अन्य विषय हैं।

सहीफ़ा सज्जादिया की बावनवी दुआ की विभिन्न व्याख्याएँ है, इस दुआ की व्याख्याओ मे शुहूद व शनाखत फ़ारसी भाषा मे व्याख्या है जो हसन ममदूही किरमानशाही द्वारा लिखित है और अरबी भाषा मे किताब रियाज़ उस सालेकीन फ़ी शरह सहीफ़ा सय्यद उस साजेदीन है जो सय्यद अली खान मदनी द्वारा लिखित है।

शिक्षाएँ

बावनवीं दुआ, सहिफ़ा सज्जादिया की दुआओं में से एक दुआ है, जिसमें इमाम सज्जाद (अ) अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए ईश्वर से आग्रह करते है। हसन ममदूही किरमानशाही के अनुसार इस दुआ की व्याख्या में, जिस तरह अल्लाह से मदद मांगने पर ज़ोर देना निंदनीय नहीं है, उसी तरह दुआ पर ज़ोर देना अच्छा है।[]

इस दुआ की शिक्षाएँ इस प्रकार हैं:

  • समस्त अस्तित्व पर ईश्वरीय ज्ञान की संप्रभुता (ज़मीन या आसमान में अल्लाह से कुछ भी छिपा नहीं है)
  • अल्लाह के रिज़्क़ की आवश्यकता होने पर उसके राज्य को छोड़ना असंभव है
  • सबसे विनम्र सेवक अल्लाह की आज्ञाओं का सबसे अधिक पालन करते हैं।
  • अल्लाह के अलावा अन्य उपासक तथा उसकी कृपा का दाता ईश्वर की दृष्टि में सबसे विनम्र सेवक है।
  • अल्लाह का इन्कार उसके बारे में गलत धारणा से पैदा होता है।
  • अल्लाह के साथ साझीदार जोड़कर पैग़म्बरों का इन्कार करना
  • ब्रह्माण्ड पर ईश्वर की शक्ति का प्रभाव
  • अनन्त जीवन के साथ दिव्य मुठभेड़ से नाखुश होने में मनुष्य की असमर्थता।
  • सभी विश्वासियों और अविश्वासियों पर मृत्यु की अंतिम सजा
  • ईश्वर के अलावा किसी दूसरे की इबादत करने वाले से घृणा।
  • अपने कार्यों की कमी और अपूर्णता को तथा अपनी गलतियों और पापों की महानता को ईश्वर की दृष्टि में स्वीकार करना
  • संसार द्वारा धोखा दिए गए लोगों की विशेषताएँ: खालीपन, लापरवाही, सांसारिकता, तथा नेमत की प्रचुरता से धोखा खाया हुआ हृदय।
  • हवस मानव विकास में बाधा डालती है
  • मनुष्य पर इच्छाओं के प्रभुत्व के बावजूद अल्लाह से दुआ करना
  • मनुष्य पर संसार के प्रभुत्व के बावजूद अल्लाह से दुआ करना
  • पापों की अधिकता के बावजूद अल्लाह से दुआ करना
  • अल्लाह से दुआ है कि उसके अलावा कोई माबूद नहीं है।
  • ईश्वर की सेवा के माध्यम से मनुष्य की सभी आवश्यकताओं से मुक्ति
  • ईश्वर के भय से सांसारिक मित्रता के लुप्त होने की कामना करना
  • परमेश्वर की ओर भागना और साथ ही उसका भय मानना
  • परमेश्वर पर भरोसा रखने और उसकी उदारता और महानता पर निर्भर रहने की आवश्यकता
  • ईश्वर के प्रति शुद्ध भक्ति और पूर्ण ध्यान पूर्ण मानव की सबसे बड़ी इच्छा है।[]

व्याख्याएँ

सहीफ़ा सज्जादिया की बावनवीं दुआ की भी व्याख्या दूसरी दुआओ की तरह की गई है। यह दुआ हुसैन अंसारियान की दयारे आशेक़ान[] हसन ममदूही किरमानशाही की शुहुद व शनाख्त,[] और सय्यद अहमद फ़हरी की किताब शरह व तरजुमा सहीफ़ा सज्जादिया[] मे फ़ारसी भाषा मे व्याख्या की गई है।

सहीफ़ा सज्जादिया की बावनवीं दुआ सय्यद अली खान मदनी की किताब रियाज़ उस सालेकीन[] मुहम्मद जवाद मुग़्निया की फ़ी ज़िलाल अल-सहीफ़ा सज्जादिया,[] मुहम्मद बिन मुहम्मद दाराबी की रियाज़ उल आरेफ़ीन[] और सय्यद मुहम्मद हुसैन फ़ज़्लुल्लाह की आफ़ाक़ अल रूह[] मे इसका वर्णन अरबी में किया गया है। इस दुआ के शब्दों को फ़ैज़ काशानी द्वारा तालीक़ा अला अल-सहीफ़ा सज्जादिया[१०] और इज़्ज़ुद्दीन जज़ाएरी द्वारा शरह अल-सहीफ़ा अल-सज्जादिया जैसी शाब्दिक टिप्पणियों में भी उल्लेक किया गया है।[११]

बावनवीं दुआ का पाठ और अनुवाद

पाठ
पाठ और अनुवाद
अनुवाद

وَ كَانَ مِنْ دُعَائِهِ عَلَيْهِ السَّلَامُ فِي الْإِلْحَاحِ عَلَى اللَّهِ تَعَالَى

व काना मिन दुआए हि अलैहिस सलामो फ़ी इलहाहे अलल्लाहे तआला

يَا اللَّهُ الَّذِي‏ لا يَخْفى‏ عَلَيْهِ شَيْ‏ءٌ فِي الْأَرْضِ وَ لا فِي السَّماءِ، وَ كَيْفَ يَخْفَى عَلَيْكَ- يَا إِلَهِي- مَا أَنْتَ خَلَقْتَهُ، وَ كَيْفَ لَا تُحْصِي مَا أَنْتَ صَنَعْتَهُ، أَوْ كَيْفَ يَغِيبُ عَنْكَ مَا أَنْتَ تُدَبِّرُهُ، أَوْ كَيْفَ يَسْتَطِيعُ أَنْ يَهْرُبَ مِنْكَ مَنْ لَا حَيَاةَ لَهُ إِلَّا بِرِزْقِكَ، أَوْ كَيْفَ يَنْجُو مِنْكَ مَنْ لَا مَذْهَبَ لَهُ فِي غيْرِ مُلْكِكَ.

या अल्लाहुल लज़ी ला यख़फ़ा अलैहे शैउन फ़िल अर्ज़े वला फ़िस समाए व कैफ़ा यख़फ़ा अलैका-या इलाही- मा अंता ख़लक़तहू, व क़ैफ़ा ला तोहसी मा अंता सनअतहू, औ कैफ़ा यग़ीबो अंका मा अंता तोदब्बेरोहू, औ कैफ़ा यस्ततीओ अय यहरोबा मिंका मन ला हयाता लहू इल्ला बेरिज़्क़ेका, औ कैफ़ा यंजू मिंका मन ला मज़हबा लहू फ़ी ग़ैरे मुलकेका

سُبْحَانَكَ! أَخْشَى خَلْقِكَ لَكَ أَعْلَمُهُمْ بِكَ، وَ أَخْضَعُهُمْ لَكَ أَعْمَلُهُمْ بِطَاعَتِكَ، وَ أَهْوَنُهُمْ عَلَيْكَ مَنْ أَنْتَ تَرْزُقُهُ وَ هُوَ يَعْبُدُ غَيْرَكَ

सुब्हानका ! अख़शा ख़लक़ेका लका आलमोहुम बेका, व अख़ज़ओहुम लका आअमलोहुम बेताअतेका, व अहवनोहुम अलैका मन अंता तरज़ोक़ोहू व होवा यअबोदो ग़ैरका

سُبْحَانَكَ! لَا يَنْقُصُ سُلْطَانَكَ مَنْ أَشْرَكَ بِكَ، وَ كَذَّبَ رُسُلَكَ، وَ لَيْسَ يَسْتَطِيعُ مَنْ كَرِهَ قَضَاءَكَ أَنْ يَرُدَّ أَمْرَكَ، وَ لَا يَمْتَنِعُ مِنْكَ مَنْ كَذَّبَ بِقُدْرَتِكَ، وَ لَا يَفُوتُكَ مَنْ عَبَدَ غَيْرَكَ، وَ لَا يُعَمَّرُ فِي الدُّنْيَا مَنْ كَرِهَ لِقَاءَكَ.

सुब्हानका ! ला यंक़ोसो सुलतानका मन अशरका बेका, व कज़बा रसूलका, व लैसा यस्ततीओ मन करेहा क़ज़ाअका अय यरुद्दा अमरका, वला यमतनेओ मिंका मन कज़्जबा बेक़ुदरतेका, वला यफ़ूतोका मन अबदा गैरका, वला यअम्मोरो फ़िद दुनिया मन करेहा लेक़ाएका

سُبْحَانَكَ! مَا أَعْظَمَ شَأْنَكَ، وَ أَقْهَرَ سُلْطَانَكَ، وَ أَشَدَّ قُوَّتَكَ، وَ أَنْفَذَ أَمْرَكَ!

सुब्हानका ! मा आअज़मा शानका, व अक़हरा सुलतानका, व अशद्दा क़ुव्वतेका, व अंफ़ज़ा अमरका!

سُبْحَانَكَ! قَضَيْتَ عَلَى جَمِيعِ خَلْقِكَ الْمَوْتَ: مَنْ وَحَّدَكَ وَ مَنْ كَفَرَ بِكَ، وَ كُلٌّ ذَائِقُ الْمَوْتِ، وَ كُلٌّ صَائِرٌ إِلَيْكَ، فَتَبَارَكْتَ وَ تَعَالَيْتَ لَا إِلَهَ إِلَّا أَنْتَ وَحْدَكَ لَا شَرِيكَ لَكَ.

सुब्हानका ! क़ज़्यता अला जमीए ख़लक़ेकल मौत, मन वह्हदका व मन कफ़रा बेका, व कुल्लो ज़ाएक़ुल मौते, व क़ुल्लो साएरुन इलैका, फ़तबारकता व तआलयता ला इलाहा इल्ला अंता वहदका ला शरीका लका

آمَنْتُ بِكَ، وَ صَدَّقْتُ رُسُلَكَ، وَ قَبِلْتُ كِتَابَكَ، وَ كَفَرْتُ بِكُلِّ مَعْبُودٍ غَيْرِكَ، وَ بَرِئْتُ مِمَّنْ عَبَدَ سِوَاكَ.

आमंतो बेका, व सद्दकतो रोसोलका, व क़बिलतो किताबाक, व कफ़रतो बेकुल्ले मअबूदिन गैरेका, व बरेअतो मिम्मन अबदा सेवाका

اللَّهُمَّ إِنِّي أُصْبِحُ وَ أُمْسِي مُسْتَقِلًّا لِعَمَلِي، مُعْتَرِفاً بِذَنْبِي، مُقِرّاً بِخَطَايَايَ، أَنَا بِإِسْرَافِي عَلَى نَفْسِي ذَلِيلٌ، عَمَلِي أَهْلَكَنِي، وَ هَوَايَ أَرْدَانِي، وَ شَهَوَاتِي حَرَمَتْنِي.

अल्लाहुम्मा इन्नी असबहो व अम्सी मुस्तक़िल्लन लेअमली, मोअतरेफ़न बेज़म्बी, मोक़िर्रन बेखतायाता, अना बेइसराफ़ी अला नफ़्सी ज़लीलुन, अमली अहलकनी, व हवाया अरदानी, व शहवाती हरमतनी

فَأَسْأَلُكَ يَا مَوْلَايَ سُؤَالَ مَنْ نَفْسُهُ لَاهِيَةٌ لِطُولِ أَمَلِهِ، وَ بَدَنُهُ غَافِلٌ لِسُكُونِ عُرُوقِهِ، وَ قَلْبُهُ مَفْتُونٌ بِكَثْرَةِ النِّعَمِ عَلَيْهِ، وَ فِكْرُهُ قَلِيلٌ لِمَا هُوَ صَائِرٌ إِلَيْهِ.

फअस्अलोका या मौलाया सुआला मन नफ़सोहू लाहीयतुन लेतूले अमलेहि, व बदनहू ग़ाफ़ेलुन लेसूकूने उरूक़ेही, व क़ल्बोहू मफ़तूनुन बेकस्रतेहिन नेअमे अलैहे, व फ़िकरोहू क़लीलुन लेमा होवा साएरून इलैह

سُؤَالَ مَنْ قَدْ غَلَبَ عَلَيْهِ الْأَمَلُ، وَ فَتَنَهُ الْهَوَى، وَ اسْتَمْكَنَتْ مِنْهُ الدُّنْيَا، وَ أَظَلَّهُ الْأَجَلُ، سُؤَالَ مَنِ اسْتَكْثَرَ ذُنُوبَهُ، وَ اعْتَرَفَ بِخَطِيئَتِهِ، سُؤَالَ مَنْ لَا رَبَّ لَهُ غَيْرُكَ، وَ لَا وَلِيَّ لَهُ دُونَكَ، وَ لَا مُنْقِذَ لَهُ مِنْكَ، وَ لَا مَلْجَأَ لَهُ مِنْكَ، إِلَّا إِلَيْكَ.

सुआला मन क़द ग़लबा अलैहिल अमलो, व फ़तनहुल हवा, वस तमकनत मिनहुद दुनिया, व अज़ल्लहुल अजलो, सुआला मनिस तकसरा ज़ोनूबहू व अतरेफ़ा बेख़तीअतेही, सुआला मन ला रब्बा लहू ग़ैरोका, वला वलीय्या लहू दूनका, वला मुनक़ेज़ा लहू मिनका, वला मलजा लहू मिंका, इल्ला इलैका

إِلَهِي أَسْأَلُكَ بِحَقِّكَ الْوَاجِبِ عَلَى جَمِيعِ خَلْقِكَ، وَ بِاسْمِكَ الْعَظِيمِ الَّذِي أَمَرْتَ رَسُولَكَ أَنْ يُسَبِّحَكَ بِهِ، وَ بِجَلَالِ وَجْهِكَ الْكَرِيمِ، الَّذِي لَا يَبْلَى وَ لَا يَتَغَيَّرُ، وَ لَا يَحُولُ وَ لَا يَفْنَى، أَنْ تُصَلِّيَ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِ مُحَمَّدٍ، وَ أَنْ تُغْنِيَنِي عَنْ كُلِّ شَيْ‏ءٍ بِعِبَادَتِكَ، وَ أَنْ تُسَلِّيَ نَفْسِي عَنِ الدُّنْيَا بِمَخَافَتِكَ، وَ أَنْ تُثْنِيَنِي بِالْكَثِيرِ مِنْ كَرَامَتِكَ بِرَحْمَتِكَ.

इलाही अस्अलोका बेहक़्क़ेकल वाज़ेबे अला जमीअ ख़लकेका, व बेइस्लमेकल अज़ीमिल लज़ी अमरता रसूलका अय युसब्बेहका बेहि, व बेजलाले वज्हेकल करीम, अल लज़ी ला यब्ला वला यताग़य्यर, वला यहूलो वला यफ़ना, अन तोसल्लेया अला मुहम्मदिन व आले मुहम्मद, व अन तुग़नेयनी अन कुल्ले शैइन बेएबादतेका, व अन तोसल्लेया नफसी अनिद दुनिया बेमख़ाफ़तेका, व अन तुसनेयनी बिल कसीरे मिन करामतेका बेरहमतेका

فَإِلَيْكَ أَفِرُّ، و مِنْكَ أَخَافُ، وَ بِكَ أَسْتَغِيثُ، وَ إِيَّاكَ أَرْجُو، وَ لَكَ أَدْعُو، وَ إِلَيْكَ أَلْجَأُ، وَ بِكَ أَثِقُ، وَ إِيَّاكَ أَسْتَعِينُ، وَ بِكَ أُومِنُ، وَ عَلَيْكَ أَتَوَكَّلُ، وَ عَلَى جُودِكَ وَ كَرَمِكَ أَتَّكِلُ.

फइलैका आफ़िर्रुन, व मिनका अख़ाफ़ो, व बेका अस्तग़ीसो, व इय्याका अरजू, व लका उदऊ, व इलैका अलजा, व बेका असेको, व इय्याका अस्तईनो, व बेका ओमेनो, व अलैका अतवक्कलो, व अला जूदेका व करमेका अत्तकेलो

وَ كَانَ مِنْ دُعَائِهِ عَلَيْهِ السَّلَامُ فِي الْإِلْحَاحِ عَلَى اللَّهِ تَعَالَى
तज़र्रोअ और इल्हाह की दुआ
يَا اللَّهُ الَّذِي‏ لا يَخْفى‏ عَلَيْهِ شَيْ‏ءٌ فِي الْأَرْضِ وَ لا فِي السَّماءِ، وَ كَيْفَ يَخْفَى عَلَيْكَ- يَا إِلَهِي- مَا أَنْتَ خَلَقْتَهُ، وَ كَيْفَ لَا تُحْصِي مَا أَنْتَ صَنَعْتَهُ، أَوْ كَيْفَ يَغِيبُ عَنْكَ مَا أَنْتَ تُدَبِّرُهُ، أَوْ كَيْفَ يَسْتَطِيعُ أَنْ يَهْرُبَ مِنْكَ مَنْ لَا حَيَاةَ لَهُ إِلَّا بِرِزْقِكَ، أَوْ كَيْفَ يَنْجُو مِنْكَ مَنْ لَا مَذْهَبَ لَهُ فِي غيْرِ مُلْكِكَ.
हे परमेश्वर, जिनसे न धरती पर, न स्वर्ग में, कुछ भी छिपा नहीं है। और हे मेरे परमेश्वर, जो कुछ तूने बनाया है, वह तुझसे कैसे छिपा रह सकता है? और जो कुछ तूने रचा है, वह तेरी दृष्टि से कैसे छिपा रह सकता है? और जिसका जीवन तेरे भोजन पर निर्भर है, वह तुझसे कैसे विमुख हो सकता है? और जो तेरी हुकूमत से बाहर निकलने का मार्ग नहीं पाता, वह तुझसे कैसे मुक्त हो सकता है?
سُبْحَانَكَ! أَخْشَى خَلْقِكَ لَكَ أَعْلَمُهُمْ بِكَ، وَ أَخْضَعُهُمْ لَكَ أَعْمَلُهُمْ بِطَاعَتِكَ، وَ أَهْوَنُهُمْ عَلَيْكَ مَنْ أَنْتَ تَرْزُقُهُ وَ هُوَ يَعْبُدُ غَيْرَكَ
पाक है तू। जो तुझे सबसे ज़्यादा जानता है, वही सारी सृष्टि में सबसे ज़्यादा तुझसे डरता है, और जो तेरे आगे झुकता है, वही तेरे हुक्म की सबसे ज़्यादा तामील करता है। और तेरी नज़र में सबसे ज़्यादा अपमानित वह है जिसे तू रोज़ी देता है और जो तेरे अलावा किसी और की इबादत करता है।
سُبْحَانَكَ! لَا يَنْقُصُ سُلْطَانَكَ مَنْ أَشْرَكَ بِكَ، وَ كَذَّبَ رُسُلَكَ، وَ لَيْسَ يَسْتَطِيعُ مَنْ كَرِهَ قَضَاءَكَ أَنْ يَرُدَّ أَمْرَكَ، وَ لَا يَمْتَنِعُ مِنْكَ مَنْ كَذَّبَ بِقُدْرَتِكَ، وَ لَا يَفُوتُكَ مَنْ عَبَدَ غَيْرَكَ، وَ لَا يُعَمَّرُ فِي الدُّنْيَا مَنْ كَرِهَ لِقَاءَكَ.
पाक है तू। जो कोई तुझे साझी ठहराता है और तेरे रसूलों का इन्कार करता है, वह तेरी हुकूमत को कम नहीं कर सकता। और जो तेरे आदेश और पूर्वनिर्धारण को नापसंद करता है, वह तेरे आदेश को पलट नहीं सकता। और जो तेरी शक्ति का इन्कार करता है, वह तुझसे बच नहीं सकता। और जो तुझे छोड़कर किसी और की इबादत करता है, वह तुझसे बच नहीं सकता, और जो तुझसे मिलने से घृणा करता है, वह इस संसार में अनन्त जीवन प्राप्त नहीं कर सकता।
سُبْحَانَكَ! مَا أَعْظَمَ شَأْنَكَ، وَ أَقْهَرَ سُلْطَانَكَ، وَ أَشَدَّ قُوَّتَكَ، وَ أَنْفَذَ أَمْرَكَ!
पाक है तू। तोरी शान कितनी महान है, तेरा इक़्तेदार कितना प्रबल है, तेरी शक्ति कितनी प्रबल है, और तेरी आज्ञा कितनी प्रभावशाली है।
سُبْحَانَكَ! قَضَيْتَ عَلَى جَمِيعِ خَلْقِكَ الْمَوْتَ: مَنْ وَحَّدَكَ وَ مَنْ كَفَرَ بِكَ، وَ كُلٌّ ذَائِقُ الْمَوْتِ، وَ كُلٌّ صَائِرٌ إِلَيْكَ، فَتَبَارَكْتَ وَ تَعَالَيْتَ لَا إِلَهَ إِلَّا أَنْتَ وَحْدَكَ لَا شَرِيكَ لَكَ.
पाक है तू, तूने समस्त सृष्टि के लिए मृत्यु का आदेश दिया है। क्या कोई तुझे पहचानता है और क्या कोई तुझे अस्वीकार करता है? सभी मृत्यु की कड़वी पीड़ा का स्वाद चखेंगे और सभी तेरी ओर लौटेंगे। हे परमप्रधान, तू पाक हैं। तेरे सिवा कोई माबूद नहीं। तू एक हैं और तेरा कोई साझी नहीं।
آمَنْتُ بِكَ، وَ صَدَّقْتُ رُسُلَكَ، وَ قَبِلْتُ كِتَابَكَ، وَ كَفَرْتُ بِكُلِّ مَعْبُودٍ غَيْرِكَ، وَ بَرِئْتُ مِمَّنْ عَبَدَ سِوَاكَ.
मैं तुझ पर ईमान लाया, तेरे रसूलों की पुष्टि की, तेरी किताब को स्वीकार किया, तेरे अतिरिक्त किसी भी इबादत को झुठलाया और तेरे अतिरिक्त किसी दूसरे की इबादत करने वाले से घृणा की।
اللَّهُمَّ إِنِّي أُصْبِحُ وَ أُمْسِي مُسْتَقِلًّا لِعَمَلِي، مُعْتَرِفاً بِذَنْبِي، مُقِرّاً بِخَطَايَايَ، أَنَا بِإِسْرَافِي عَلَى نَفْسِي ذَلِيلٌ، عَمَلِي أَهْلَكَنِي، وَ هَوَايَ أَرْدَانِي، وَ شَهَوَاتِي حَرَمَتْنِي.
ऐ अल्लाह! मैं इस दुनिया में सुबह-शाम अपने कर्मो को छोटा करके, अपने पापों को स्वीकार करके और अपनी गलतियों को स्वीकार करके बिताता हूँ। अपनी आत्मा के साथ किए गए अन्याय और ज्यादती के कारण मैं अपमानित और शर्मिंदा हूँ। मेरे चरित्र ने मुझे नष्ट कर दिया है, मेरे अहंकार ने मुझे नष्ट कर दिया है, और मेरी इच्छाओं ने मुझे (अच्छाई और खुशी के प्रति) बहरा बना दिया है।
فَأَسْأَلُكَ يَا مَوْلَايَ سُؤَالَ مَنْ نَفْسُهُ لَاهِيَةٌ لِطُولِ أَمَلِهِ، وَ بَدَنُهُ غَافِلٌ لِسُكُونِ عُرُوقِهِ، وَ قَلْبُهُ مَفْتُونٌ بِكَثْرَةِ النِّعَمِ عَلَيْهِ، وَ فِكْرُهُ قَلِيلٌ لِمَا هُوَ صَائِرٌ إِلَيْهِ.
हे मेरे पालनहार! मैं तुझसे ऐसे व्यक्ति की तरह पूछता हूँ जिसकी आत्मा दीर्घकालिक आशाओं के कारण असावधान है, जिसका शरीर स्वास्थ्य और आराम के कारण अचेत है, जिसका हृदय प्रचुर आशीर्वादों के कारण इच्छाओं से भरा हुआ है, और जिसकी चिंता अंतिम परिणाम से कम है।
سُؤَالَ مَنْ قَدْ غَلَبَ عَلَيْهِ الْأَمَلُ، وَ فَتَنَهُ الْهَوَى، وَ اسْتَمْكَنَتْ مِنْهُ الدُّنْيَا، وَ أَظَلَّهُ الْأَجَلُ، سُؤَالَ مَنِ اسْتَكْثَرَ ذُنُوبَهُ، وَ اعْتَرَفَ بِخَطِيئَتِهِ، سُؤَالَ مَنْ لَا رَبَّ لَهُ غَيْرُكَ، وَ لَا وَلِيَّ لَهُ دُونَكَ، وَ لَا مُنْقِذَ لَهُ مِنْكَ، وَ لَا مَلْجَأَ لَهُ مِنْكَ، إِلَّا إِلَيْكَ.
मेरा प्रश्न उस व्यक्ति जैसा है जो इच्छाओं से ग्रस्त है। जो स्वार्थ की इच्छाओं से मोहित हो गया है। जो संसार के वशीभूत हो गया है और जिसके सिर पर मृत्यु का साया मंडरा रहा है। मेरा प्रश्न उस व्यक्ति जैसा है जो अपने पापों के प्रति अत्यधिक सचेत है और अपनी गलतियों को स्वीकार करता है। मेरा प्रश्न उस व्यक्ति जैसा है जिसका तेरे अलावा कोई स्वामी नहीं है, तेरे अलावा कोई रक्षक नहीं है, और तेरे अलावा कोई सरपरस्त नहीं है, और तेरे अलावा कोई शरणस्थल नहीं है, जिसके लिए तेरे अलावा कोई रुजुअ करने का स्थान नहीं है।
إِلَهِي أَسْأَلُكَ بِحَقِّكَ الْوَاجِبِ عَلَى جَمِيعِ خَلْقِكَ ، وَ بِاسْمِكَ الْعَظِيمِ الَّذِي أَمَرْتَ رَسُولَكَ أَنْ يُسَبِّحَكَ بِهِ ، وَ بِجَلَالِ وَجْهِكَ الْكَرِيمِ ، الَّذِي لَا يَبْلَى وَ لَا يَتَغَيَّرُ ، وَ لَا يَحُولُ وَ لَا يَفْنَى ، أَنْ تُصَلِّيَ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِ مُحَمَّدٍ ، وَ أَنْ تُغْنِيَنِي عَنْ كُلِّ شَيْ‌ءٍ بِعِبَادَتِكَ ، وَ أَنْ تُسَلِّيَ نَفْسِي عَنِ الدُّنْيَا بِمَخَافَتِكَ ، وَ أَنْ تُثْنِيَنِي بِالْكَثِيرِ مِنْ كَرَامَتِكَ بِرَحْمَتِكَ .
ऐ अल्लाह! मैं तुझसे तेरे हक़ की क़सम देता हूँ जो तेरी मख़लूक़ पर वाजिब है, और तेरे उस अज़ीम नाम की क़सम जिससे तूने अपने रसूल को तेरी शान बयान करने का हुक्म दिया, और तेरे उस महान स्वत्व की महानता और ऐश्वर्य की क़सम जो न बदलता है, न नाश होता है। मैं तुझसे मुहम्मद और उनके परिवार पर अपनी रहमत बरसाने, अपनी इबादत के ज़रिए मुझे हर चीज़ से आज़ाद करने, अपने ख़ौफ़ के ज़रिए मेरे दिल को दुनिया से आज़ाद करने, और अपनी रहमत, भरपूर माफ़ी और इज़्ज़त के साथ मुझे वापस लौटाने की दुआ माँगता हूँ।
فَإِلَيْكَ أَفِرُّ ، و مِنْكَ أَخَافُ ، وَ بِكَ أَسْتَغِيثُ ، وَ إِيَّاكَ أَرْجُو ، وَ لَكَ أَدْعُو ، وَ إِلَيْكَ أَلْجَأُ ، وَ بِكَ أَثِقُ ، وَ إِيَّاكَ أَسْتَعِينُ ، وَ بِكَ أُومِنُ ، وَ عَلَيْكَ أَتَوَكَّلُ ، وَ عَلَى جُودِكَ وَ كَرَمِكَ أَتَّكِلُ .
क्योंकि मैं केवल तेरी ओर ही मुड़ता हूँ, केवल तुझ ही से डरता हूँ, केवल तेरी ही शरण लेता हूँ, केवल तुझ पर ही आशा रखता हूँ, केवल तुझे ही पुकारता हूँ, केवल तेरी ही शरण लेता हूँ, केवल तुझ पर ही भरोसा करता हूँ, केवल तुझ से ही सहायता चाहता हूँ, केवल तुझ पर ही विश्वास करता हूँ, केवल तुझ पर ही निर्भर रहता हूँ, और तेरी उपस्थिति और उदारता पर भरोसा करता हूँ।

तज़र्रोअ और इल्हाह की दुआ

हे परमेश्वर, जिनसे न धरती पर, न स्वर्ग में, कुछ भी छिपा नहीं है। और हे मेरे परमेश्वर, जो कुछ तूने बनाया है, वह तुझसे कैसे छिपा रह सकता है? और जो कुछ तूने रचा है, वह तेरी दृष्टि से कैसे छिपा रह सकता है? और जिसका जीवन तेरे भोजन पर निर्भर है, वह तुझसे कैसे विमुख हो सकता है? और जो तेरी हुकूमत से बाहर निकलने का मार्ग नहीं पाता, वह तुझसे कैसे मुक्त हो सकता है?

पाक है तू। जो तुझे सबसे ज़्यादा जानता है, वही सारी सृष्टि में सबसे ज़्यादा तुझसे डरता है, और जो तेरे आगे झुकता है, वही तेरे हुक्म की सबसे ज़्यादा तामील करता है। और तेरी नज़र में सबसे ज़्यादा अपमानित वह है जिसे तू रोज़ी देता है और जो तेरे अलावा किसी और की इबादत करता है।

पाक है तू। जो कोई तुझे साझी ठहराता है और तेरे रसूलों का इन्कार करता है, वह तेरी हुकूमत को कम नहीं कर सकता। और जो तेरे आदेश और पूर्वनिर्धारण को नापसंद करता है, वह तेरे आदेश को पलट नहीं सकता। और जो तेरी शक्ति का इन्कार करता है, वह तुझसे बच नहीं सकता। और जो तुझे छोड़कर किसी और की इबादत करता है, वह तुझसे बच नहीं सकता, और जो तुझसे मिलने से घृणा करता है, वह इस संसार में अनन्त जीवन प्राप्त नहीं कर सकता।

पाक है तू। तोरी शान कितनी महान है, तेरा इक़्तेदार कितना प्रबल है, तेरी शक्ति कितनी प्रबल है, और तेरी आज्ञा कितनी प्रभावशाली है।

पाक है तू, तूने समस्त सृष्टि के लिए मृत्यु का आदेश दिया है। क्या कोई तुझे पहचानता है और क्या कोई तुझे अस्वीकार करता है? सभी मृत्यु की कड़वी पीड़ा का स्वाद चखेंगे और सभी तेरी ओर लौटेंगे। हे परमप्रधान, तू पाक हैं। तेरे सिवा कोई माबूद नहीं। तू एक हैं और तेरा कोई साझी नहीं।

मैं तुझ पर ईमान लाया, तेरे रसूलों की पुष्टि की, तेरी किताब को स्वीकार किया, तेरे अतिरिक्त किसी भी इबादत को झुठलाया और तेरे अतिरिक्त किसी दूसरे की इबादत करने वाले से घृणा की।

ऐ अल्लाह! मैं इस दुनिया में सुबह-शाम अपने कर्मो को छोटा करके, अपने पापों को स्वीकार करके और अपनी गलतियों को स्वीकार करके बिताता हूँ। अपनी आत्मा के साथ किए गए अन्याय और ज्यादती के कारण मैं अपमानित और शर्मिंदा हूँ। मेरे चरित्र ने मुझे नष्ट कर दिया है, मेरे अहंकार ने मुझे नष्ट कर दिया है, और मेरी इच्छाओं ने मुझे (अच्छाई और खुशी के प्रति) बहरा बना दिया है।

हे मेरे पालनहार! मैं तुझसे ऐसे व्यक्ति की तरह पूछता हूँ जिसकी आत्मा दीर्घकालिक आशाओं के कारण असावधान है, जिसका शरीर स्वास्थ्य और आराम के कारण अचेत है, जिसका हृदय प्रचुर आशीर्वादों के कारण इच्छाओं से भरा हुआ है, और जिसकी चिंता अंतिम परिणाम से कम है।

मेरा प्रश्न उस व्यक्ति जैसा है जो इच्छाओं से ग्रस्त है। जो स्वार्थ की इच्छाओं से मोहित हो गया है। जो संसार के वशीभूत हो गया है और जिसके सिर पर मृत्यु का साया मंडरा रहा है। मेरा प्रश्न उस व्यक्ति जैसा है जो अपने पापों के प्रति अत्यधिक सचेत है और अपनी गलतियों को स्वीकार करता है। मेरा प्रश्न उस व्यक्ति जैसा है जिसका तेरे अलावा कोई स्वामी नहीं है, तेरे अलावा कोई रक्षक नहीं है, और तेरे अलावा कोई सरपरस्त नहीं है, और तेरे अलावा कोई शरणस्थल नहीं है, जिसके लिए तेरे अलावा कोई रुजुअ करने का स्थान नहीं है।

ऐ अल्लाह! मैं तुझसे तेरे हक़ की क़सम देता हूँ जो तेरी मख़लूक़ पर वाजिब है, और तेरे उस अज़ीम नाम की क़सम जिससे तूने अपने रसूल को तेरी शान बयान करने का हुक्म दिया, और तेरे उस महान स्वत्व की महानता और ऐश्वर्य की क़सम जो न बदलता है, न नाश होता है। मैं तुझसे मुहम्मद और उनके परिवार पर अपनी रहमत बरसाने, अपनी इबादत के ज़रिए मुझे हर चीज़ से आज़ाद करने, अपने ख़ौफ़ के ज़रिए मेरे दिल को दुनिया से आज़ाद करने, और अपनी रहमत, भरपूर माफ़ी और इज़्ज़त के साथ मुझे वापस लौटाने की दुआ माँगता हूँ।

क्योंकि मैं केवल तेरी ओर ही मुड़ता हूँ, केवल तुझ ही से डरता हूँ, केवल तेरी ही शरण लेता हूँ, केवल तुझ पर ही आशा रखता हूँ, केवल तुझे ही पुकारता हूँ, केवल तेरी ही शरण लेता हूँ, केवल तुझ पर ही भरोसा करता हूँ, केवल तुझ से ही सहायता चाहता हूँ, केवल तुझ पर ही विश्वास करता हूँ, केवल तुझ पर ही निर्भर रहता हूँ, और तेरी उपस्थिति और उदारता पर भरोसा करता हूँ।

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फ़ुटनोट

  1. ममदूही, शुहूद व शनाख़त, 1388 शम्सी, भाग 4, पेज 341।
  2. ममदूही, शुहूद व शनाख़त, 1388 शम्सी, भाग 4, पेज 341-362; शरह फ़राज़हाए दुआ पंजाहो दोव्वुम सहीफ़ा अज़ साइट इरफ़ान
  3. अंसारीयान, दयारे आशेक़ान, 1373 शम्सी, भाग 7, पेज 611-622।
  4. ममदूही, शुहूद व शनाख़त, 1388 शम्सी, भाग 4, पेज 337-362।
  5. फ़हरि, शरह व तफसीर सहीफ़ा सज्जादिया, 1388 शम्सी, भाग 3, पेज 559-565।
  6. मदनी शिराज़ी, रियाज़ उस सालेकीन, 1435 हिजरी, भाग 7, पेज 365-394।
  7. मुग़्निया, फ़ी ज़िलाल अल सहीफ़ा, 1428 हिजरी , पेज 647-655।
  8. दाराबी, रियाज़ उल आरेफ़ीन, 1379 शम्सी, पेज 717-724।
  9. फ़ज़्लुल्लाह, आफ़ाक़ अल रूह, 1420 शम्सी, भाग 2, पेज 614-629।
  10. फ़ैज़ काशानी, तालीक़ात अलस सहीफ़ा अल-सज्जादिया, 1407 हिजरी, पेज 102-103।
  11. जज़ाएरी, शरह अल-सहीफ़ा अल-सज्जादिया, 1402 हिजरी, पेज 293-295।

स्रोत

  • अंसारीयान, हुसैन, दयारे आशेक़ान, तफ़सीर जामेअ सहीफ़ा सज्जादिया, तेहरान, पयाम ए आज़ादी, 1372 शम्सी।
  • जज़ाएरी, इज़्ज़ुद्दीन, शरह अल-सहीफ़ा अल-सज्जादिया, बैरूत, दार उत तआरुफ लिलमतबूआत, 1402 हिजरी।
  • दाराबी, मुहम्मद बिन मुहम्मद, रियाज़ अल आरेफ़ीन फ़ी शरह अल सहीफ़ा सज्जादिया, शोधः हुसैन दरगाही, तेहरान, नशर उस्वा, 1379 शम्सी।
  • फ़ज़्लुल्लाह, सय्यद मुहम्मद हुसैन, आफ़ाक़ अल-रूह, बैरूत, दार उल मालिक, 1420 हिजरी।
  • फ़हरी, सय्यद अहमद, शरह व तरजुमा सहीफ़ा सज्जादिया, तेहरान, उस्वा, 1388 शम्सी।
  • फ़ैज़ काशानी, मुहम्मद बिन मुर्तज़ा, तालीक़ात अलस सहीफ़ा अल-सज्जादिया, तेहरान, मोअस्सेसा अल बुहूस वत तहक़ीक़ात अल सक़ाफ़ीया, 1407 हिजरी।
  • मदनी शिराज़ी, सय्यद अली ख़ान, रियाज उस-सालेकीन फ़ी शरह सहीफ़ा तुस साजेदीन, क़ुम, मोअस्सेसा अल-नश्र उल-इस्लामी, 1435 हिजरी।
  • ममदूही किरमानशाही, हसन, शुहूद व शनाख़्त, तरजुमा व शरह सहीफ़ा सज्जादिया, मुकद्मा आयतुल्लाह जवादी आमोली, क़ुम, बूस्तान किताब, 1388 शम्सी।
  • मुग़्निया, मुहम्मद जवाद, फ़ी ज़िलाल अल-सहीफ़ा सज्जादिया, क़ुम, दार उल किताब उल इस्लामी, 1428 हिजरी।