साहिफ़ा सज्जादियाह की सोलहवीं दुआ (अरबीःالدعاء السادس عشر من الصحيفة السجادية) इमाम सज्जाद (अ) की प्रसिद्ध दुयाओ में से एक है, जिले अल्लाह से क्षमा मांगते समय पढ़ते थे। इस दुआ मे हज़रत सज्जाद (अ) ईश्वर और उसकी विशेषताओं का उल्लेख करते हुए ईश्वर के सामने अपनी कमियाँ गिनाते हैं। इस दुआ मे इमाम सज्जाद (अ) ने यह भी उल्लेख किया है कि ईश्वर की दया उनके क्रोध पर हावी हो जाती है और ईश्वर अपने सेवकों को दंडित करने में धैर्य की ओर इशारा किया हैं। इस दुआ में अज्ञानता को पाप की जड़ बताया है और ईश्वरीय नामों की अपील करके समस्या के समाधान और पापों को क्षमा करने के लिए ईश्वर से मदद मांगी जाती है।

1145 हिजरी में लिखी गई अहमद नयरेज़ी की लिपि में लिखी गई साहिफ़ा सज्जादियाह की पांडुलिपि

सोलहवीं दुआ का वर्णन सहीफ़ा सज्जादिया की व्याख्याओ मे किया गया है, जैसे कि फ़ारसी में हुसैन अंसारियान द्वारा दयारे आशेक़ान, हसन ममदूही किरमानशही की शुहूद व शनाख़्त और अरबी भाषा मे सय्यद अली खान मदनी द्वारा लिखित रियाज़ उस-सालेकीन फ़ी शरह सहीफ़ा सय्यदुस साजेदीन है।

शिक्षाएँ

सहीफ़ा सज्जादिया की सोलहवीं दुआ का मुख्य विषय क्षमा मांगना और पापों की क्षमा मांगना है। इस दुआ मे इमाम सज्जाद (अ) ईश्वरीय दया पाने के लिए अधिकांश बंदो की अंतर्निहित गरीबी और ईश्वर की मुतलक़ुन बेनियाज़ी और उसकी कृपा तथा दया की ओर ध्यान आकर्षित कराया हैं[१] इमाम सज्जाद के माध्यम से 34 छंदो में सोलहवीं दुआ की शिक्षाएँ[२] और संदेश इस प्रकार हैं:

  • ईश्वर की दया की ओर पापीयो की उम्मीद
  • समस्याओं के समाधान के लिए उचित गुणों द्वारा दिव्य नामों से तवस्सुल करना और क्षमा मांगना
  • ईश्वर उपकार की याद दिलाने के लिए गरीबों को उसकी शरण मे लाना
  • ईश्वरीय दंड के भय से अन्यायियों का रोना
  • हर चीज़ पर ईश्वर की दया और ज्ञान की विशालता
  • ईश्वरीय आशीर्वाद में सृष्टि का हिस्सा
  • उसकी सज़ा पर ईश्वर की क्षमा की सर्वोच्चता (उसके क्रोध पर दया की प्रार्थमिकता)
  • ईश्वर के उपहार की वंछित करने पर प्रार्थमिकता
  • आशीर्वाद के बदले में ईश्वर कोई बदलना नही चाहता
  • दैवीय दण्ड में न्याय का ध्यान
  • दुआ करने का ईश्वर का आदेश और उसके आदेश को स्वीकार करने की आवश्यकता
  • पापों की स्वीकारोक्ति
  • विद्रोह की जड़ अज्ञानता है
  • अत्यंत समर्पण के साथ दुआ करना और मानवीय आवश्यकता की ओर इशारा करना
  • ईश्वर से कृपा और दया माँगना
  • अपने बंदो की प्रार्थनाओं, पुकारों और तवक्कुल के मुक़ाबिल ईश्वर का प्रेम और दया[३]
  • पश्चाताप करने वालों के प्रति परमेश्वर का व्यवहार
  • ईश्वर का डर
  • मनुष्यों के असंख्य दोषों के कारण ईश्वर के समक्ष लज्जित होना
  • मुनाजात और राज़ो नियाज़ से वंछित होना
  • प्रतिष्ठा बचाने के लिए ईश्वर का शुक्रिया
  • मनुष्य का बुरी चीजों के प्रति रुझान और अपनी अच्छाइयों के प्रति उसकी अज्ञानता
  • स्वर्ग और नर्क पर यक़ीन
  • ईश्वर के सामने पापों की स्वीकारोक्ति
  • स्वर्ग ईश्वर के निमंत्रण का अंत है और नरक शैतान के निमंत्रण का अंत है[४]
  • बंदो को सजा देने मे परमेश्वर का धैर्य
  • पापों को ईश्वर के समक्ष देखने का माहात्म्य
  • पापों की क्षमा बंदो के इस्तेहक़ाक़ से नहीं ईश्वर की कृपा से होती है
  • क्षमा की मिठास का स्वाद चखने का अनुरोध
  • ईश्वर की दया की क्षमा के साथ पीड़ा और नरक से मुक्ति माँगना[५]
  • पश्चाताप के कारण पवित्रता
  • ईश्वर जो चाहता है वही करता है[६]

व्याख्याएँ

सहीफ़ा सज्जादिया की शरहो मे उसकी सोलहवी दुआ का वर्णन किया गया है। हुसैन अंसारियान ने दयारे आशेक़ान[७] मे इस दुआ की पूर्ण व्याख्या की है। इसी तरह मुहम्मद हसन ममदूही किरमानशाही की किताब शुहूद व शनाख़त[८] सय्यद अहमद फ़रहि की किताब शरह व तरजुमा सहीफ़ा सज्जादिया[९] का फ़ारसी भाषा मे वर्णन किया गया है।

इसके अलावा सहीफ़ा सज्जादिया की सोलहवीं दुआ सय्यद अली ख़ान मदनी की किताब रियाज़ उस-सालेकीन,[१०] मुहम्मद जवाद मुग़निया की किताब फ़ी ज़िलाल अल-सहीफ़ा अल-सज्जादिया,[११] मुहम्मद बिन मुहम्मद दाराबी की किताब रियाज़ उल-आरेफ़ीन[१२] सय्यद मुहम्मद हुसैन फ़ज़लुल्लाह[१३] की किताब आफ़ाक़ अल-रूह मे इस दुआ की अरबी भाषा मे व्याख्या लिखी गई है। इस दुआ के सार्वजनिक मफहूम और शब्दिक अर्थ को फ़ैज काशानी की किताब तालीक़ात अलस सहीफ़ा अल-सज्जादिया[१४] और इज़्ज़ुद्दीन जज़ाएरी की किताब शरह सहीफ़ा सज्जादिया मे विस्तृत रूप से वर्णन किया गया है।[१५]

पाठ और अनुवाद

सहीफ़ा सज्जादिया की सोलहवीं दुआ
दुआ का हिंदी उच्चारण अनुवाद दुआ का अरबी उच्चारण
वकाना मिन दुआएहे अलैहिस सलामो इज़स्तक़ाला मिन ज़ुनूबेहि, औ तज़र्रआ फ़ी तलबिल अफ़्वे अन ओयूबेहि गुनाहों की माफ़ी और क्षमा के बारे में हज़रत की दुआ وَ كَانَ مِنْ دُعَائِهِ عَلَيْهِ السَّلَامُ إِذَا اسْتَقَالَ مِنْ ذُنُوبِهِ ، أَوْ تَضَرَّعَ فِي طَلَبِ الْعَفْوِ عَنْ عُيُوبِهِ
अल्लाहुम्मा या मन बेरहमतेहि यस्तग़ीसुल मुज़नेबूना हे परमेश्वर! हे वह जिससे पापी उसकी दया के द्वारा फरयादरसी के लिए पुकारते हैं। اللَّهُمَّ يَا مَنْ بِرَحْمَتِهِ يَسْتَغيثُ الْمُذْنِبُونَ
वया मन ऐला ज़िक्रे एहसानेहि यफ़ज़उल मुज़तर्रूना हे वह, जिसकी दया और कृपा की याद का सहारा बेकस और लाचार ढूंडते हैं وَ يَا مَنْ إِلَى ذِكْرِ إِحْسَانِهِ يَفْزَعُ الْمُضْطَرُّونَ
वया मन लेख़ीफ़तेहि यंतहेबुल ख़ातेऊना हे वह जिसके भय से अवज्ञाकारी और अपराधी चिल्लाते हैं! وَ يَا مَنْ لِخِيفَتِهِ يَنْتَحِبُ الْخَاطِئُونَ
या अंसा कुल्ले मुस्तौहेशे गरीबिन, व या फ़रजा कुल्ले मकरूबिन कईबिन, व या ग़ौसा कुल्ले मुख़ज़ूलिन फरीदिन, व या अज़ोदा कुल्ले मोहताजिन तरीदिन हे, हर भटकते हुए दिलवाले की पूंजी, हर दुखी और टूटे हुए दिल वाले का शोक मनाने वाला, हर बेसहारा और अकेले व्यक्ति का रोने वाला और हर बहिष्कृत और जरूरतमंद व्यक्ति का मददगार يَا أُنْسَ كُلِّ مُسْتَوْحِشٍ غَرِيبٍ ، وَ يَا فَرَجَ كُلِّ مَكْرُوبٍ كَئِيبٍ ، وَ يَا غَوْثَ كُلِّ مَخْذُولٍ فَرِيدٍ ، وَ يَا عَضُدَ كُلِّ مُحْتَاجٍ طَرِيدٍ
अंतल लज़ी वसेअता कुल्ला शैइन रहमतन व इल्मन तू वह हैं जो हर चीज को अपने ज्ञान और दया से ढक देते हैं। أَنْتَ الَّذِي وَسِعْتَ كُلَّ شَيْ‌ءٍ رَحْمَةً وَ عِلْماً
व अंतल लज़ी जअलता लेकुल्ले मख़लूकिन फ़ी नेअमेता सहमन और तू वह है जिसने हर प्राणी को अपनी नेमतों में हिस्सा दिया وَ أَنْتَ الَّذِي جَعَلْتَ لِكُلِّ مَخْلُوقٍ فِي نِعَمِكَ سَهْماً
व अंतल लज़ि अफ़ूहो आला मिन ऐक़ाबेहि तो, वह है जिसकी क्षमा और दया उसके प्रतिशोध पर प्रबल होती है وَ أَنْتَ الَّذِي عَفْوُهُ أَعْلَى مِنْ عِقَابِهِ
व अंतल लज़ि तस्आ रहमतोहू अमामा ग़ज़बेह तूही वह है जिसकी दया उसके क्रोध से पहले होती है وَ أَنْتَ الَّذِي تَسْعَى رَحْمَتُهُ أَمَامَ غَضَبِهِ
व अंतल लज़ि अताओहू अक्सरो मिन मंऐहि तूही वह है जिसके उपहार, आशीर्वाद रोक लेने से भी अधिक हैं وَ أَنْتَ الَّذِي عَطَاؤُهُ أَكْثَرُ مِنْ مَنْعِهِ
व अंतल लज़ित तसअल ख़लाऐको कुल्लोहुम फ़ी वुस्ऐहि तूही वह है जिसकी विशालता में सारा ब्रह्माण्ड समाया हुआ है وَ أَنْتَ الَّذِي اتَّسَعَ الْخَلَائِقُ كُلُّهُمْ فِي وُسْعِهِ
व अंतल लज़ि ला यरग़बो फ़ी जज़ाए मन आताहो तू वही है जिसे देता है, उससे बदले में कुछ भी अपेक्षा नहीं करता وَ أَنْتَ الَّذِي لَا يَرْغَبُ فِي جَزَاءِ مَنْ أَعْطَاهُ
व अंतल लज़ि ला युफ़रेतो फ़ी ऐकाबे मन असाहो और तू वही है जो तेरी आज्ञा न माने तो उसको तू अधिक दण्ड नही देता وَ أَنْتَ الَّذِي لَا يُفْرِطُ فِي عِقَابِ مَنْ عَصَاهُ
व अना, या इलाही अब्दोकल लज़ि अमरतहू बिद दुआए फ़क़ाला लब्बयका व सअदयका, हा अना ज़ा, या रब्बे, मतरूहुन बैना यदयका हे परमात्मा! मैं तेरा वह बंदा हूं जिसे तूने दुआ करने का आदेश दिया था, तब वह ऊंचे स्वर से चिल्लाया। हाँ, वह मैं ही हूँ, हे परमात्मा! जो तेरे सामने बेइज्जत होकर पड़ा है وَ أَنَا ، يَا إِلَهِي ، عَبْدُكَ الَّذِي أَمَرْتَهُ بِالدُّعَاءِ فَقَالَ لَبَّيْكَ وَ سَعْدَيْكَ ، هَا أَنَا ذَا ، يَا رَبِّ ، مَطْرُوحٌ بَيْنَ يَدَيْكَ
अनल लज़ि औक़रतिल ख़ताया ज़हरहू, व अनल लज़ि अफ़नतिज़ ज़ुनूबो ओमोरहू, व अनल लज़ि बेजहलेहि असाका, वलम तकुन अहलन मिन्हो लेज़ालेका मैं वह हूं जिसकी पीठ पर पापों का बोझ है। मैं वह हूं जिसकी उम्र पापों में बीती है। मैं ही वह हूं जिसने तेरी अज्ञानता के कारण तेरी अवज्ञा की। यद्यपि तू मेरी ओर से अवज्ञा का पात्र नहीं था أَنَا الَّذِي أَوْقَرَتِ الْخَطَايَا ظَهْرَهُ ، وَ أَنَا الَّذِي أَفْنَتِ الذُّنُوبُ عُمُرَهُ ، وَ أَنَا الَّذِي بِجَهْلِهِ عَصَاكَ ، وَ لَمْ تَكُنْ أَهْلًا مِنْهُ لِذَاكَ
हल अंता, या इलाही, राहेमुन मन दआका फ़अब्लेग़ा फ़िद दुआए अम अंता ग़ाफ़ेरुन लेमन बकाका फ़अस्रेआ फ़िल बुकाए अम अंता मुताजावज़ुन अम्मन अफ़्फ़रा लका वजहहू तज़ल्लोलन अम अंता मुग़ने मन शका इलैका, फ़क़्रहू तवक्कोलन हे मेरे परमेश्वर! जो कोई तूझसे दुआ मांगेगा, क्या तू उस पर रहम करेगा? कि मैं निरन्तर दुआ करता रहूँ। या उसे माफ कर दे जो तेरे सामने रोये? ताकि मैं जल्द ही रोने के लिए तैयार हो सकूं। या जो तेरे सामने औंधे मुंह गिर पड़े उसे क्षमा करेगा? या जो तुझ पर भरोसा करते हुए अपनी तंगदस्ती की शिकायत करे, क्या तू उसे बेनियाज़ कर देगा? هَلْ أَنْتَ ، يَا إِلَهِي ، رَاحِمٌ مَنْ دَعَاكَ فَأُبْلِغَ فِي الدُّعَاءِ أَمْ أَنْتَ غَافِرٌ لِمَنْ بَكَاكَ فَأُسْرِعَ فِي الْبُكاء أَمْ أَنْتَ مُتَجَاوِزٌ عَمَّنْ عَفَّرَ لَكَ وَجْهَهُ تَذَلُّلًا أَمْ أَنْتَ مُغْنٍ مَنْ شَكَا اِلَيْكَ ، فَقْرَهُ تَوَكُّلاً
इलाही ला तोख़य्यिब मन ला यजेदो मोअतेयन गैरका, वला तख़ज़ुल मन ला यस्तग़नी अंका बेअहदिन दूनका हे परमात्मा! उसे निराश मत कर जिसका प्रदाता कोई और नहीं है, और उसे वंचित मत कर जिसके पास तेरे अलावा कोई बेनियाजी का माध्यम नहीं है। إِلَهِي لَا تُخَيِّبْ مَنْ لَا يَجِدُ مُعْطِياً غَيْرَكَ ، وَ لَا تَخْذُلْ مَنْ لَا يَسْتَغْنِي عَنْكَ بِأَحَدٍ دُونَكَ
इलाही फ़सल्ले अला मुहम्मदिन व आलेही, वला तोअरिज़ अन्नि व क़द अक़बलतो अलैका, वला तहरिमनी व क़द रग़िबतो इलैका, वला तज़बहनी बिर्रद्दे व क़दिन तसबतो बैना यदैयका हे ईश्वर! मुहम्मद और उनकी संतान पर रहमत नाजिल कर, और जब मैं तेरी ओर रुख करूँ तो मुझसे मुँह न मोड़, और जब मैं इच्छा लेकर तेरे पास आया हूँ तो मुझे निराशा में मत छोड़, और जब मैं तेरी ओर फिरूँ तो मुझे कठोरता से न डाँट। जबकि मैं तेरे सामने खड़ा हूं। إِلَهِي فَصَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ ، وَ لَا تُعْرِضْ عَنِّي وَ قَدْ أَقْبَلْتُ عَلَيْكَ ، وَ لَا تَحْرِمْنِي وَ قَدْ رَغِبْتُ إِلَيْكَ ، وَ لَا تَجْبَهْنِي بِالرَّدِّ وَ قَدِ انْتَصَبْتُ بَيْنَ يَدَيْكَ
अंतल लज़ि वसफ़ता नफ़सका बिर रहमते, फ़सल्ले अला मुहम्मदिन व आलेहि, वरहमनी, व अंतल लज़ि सम्मयता नफ़सका बिल अफ़्वे फ़ाअफ़े अन्नि तू वही है जिसने दया के साथ अपना वर्णन किया। अतः मुहम्मद और उनकी सन्तान पर रहमत नाज़िल कर और मुझ पर दया कर और तूने अपना नाम दयालु रखा है। इसलिए मुझे माफ कर दे أَنْتَ الَّذِي وَصَفْتَ نَفْسَكَ بِالرَّحْمَةِ ، فَصَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ ، وَ ارْحَمْنِي ، وَ أَنْتَ الَّذِي سَمَّيْتَ نَفْسَكَ بِالْعَفْوِ فَاعْفِ عَنّي
क़द तरा या इलाही, फ़ैयजा दमई मिन ख़ीफ़तेका, व वजीबा क़ल्बी मिन ख़शयतेका, वन तेकाज़ा जवारेही मिन हैयबतेका हे परमात्मा! तू अपने भय के कारण मेरे आँसुओं की धारा, तेरे भय के कारण मेरे हृदय की धड़कन और तेरे हैबत के कारण मेरे अंगों की कपकपी देख रहा है। قَدْ تَرَى يَا إِلَهِي ، فَيْضَ دَمْعِي مِنْ خِيفَتِكَ ، وَ وَجِيبَ قَلْبِي مِنْ خَشْيَتِكَ ، وَ انْتِقَاضَ جَوَارِحِي مِنْ هَيْبَتِكَ
कुल्लो ज़ालेका हयाअन मिंका लेसूए अमली, व लेज़ालेका ख़मदा सौती अनिल जारे इलैका, व कुल्ला लेसानी अन मुनाजातेका यह सब अपने बुरे कर्मो को देखकर तुझ से लज्जा और हया महसूस करने का परिणाम है। यही कारण है कि तज़र्रोअ और ज़ारी के समय मेरी आवाज़ रुक जाती है और मुनाजात के समय पर ज़बान काम नही देती كُلُّ ذَلِكَ حَيَاءٌ مِنْكَ لِسُوءِ عَمَلِي ، وَ لِذَاكَ خَمَدَ صَوْتِي عَنِ الْجَأْرِ إِلَيْكَ ، وَ كَلَّ لِسَانِي عَنْ مُنَاجَاتِكَ
या इलाही फ़लकल हम्दो फ़कम मिन आऐबते सतरतहा अलय्या फ़लम तफ़ज़हनी, व कम मिन ज़ंबिन ग़त्तयतोहू अलय्या फ़लम तशहरनि, व कम मिन शाएबतिन अलममतो बेहा फ़लम तहतेका अन्नी सित्रहा, वलम तोक़ल्लिदनी मकरूहा शनारेहा, व लम तुब्ते सौआतेहा लेमन यलतमेसो मआईबी मिन जीरती, व हसदते नेअमतेका इंदी हे परमेश्वर, तेरी हम्द और शुक्र है, कि तूने मेरे कितने ही दोष छिपाए, और मुझे लज्जित न होने दिया, और मेरे कितने पाप छिपे थे, और मुझे लज्जित न किया, और मैं ने कितनी ही बुराइयां की, परन्तु तूने उन्हें प्रकट नही किया। तूने मेरी गर्दन मे लज्जा और अपमान का जुआ नहीं डाला और मेरे पड़ोसियों के सामने ये बुराइयाँ प्रकट नहीं कीं जो मेरे दोषों की तलाश में थे और जो मुझे दिए गए आशीर्वाद से ईर्ष्या करते थे। يَا إِلَهِي فَلَكَ الْحَمْدُ فَكَمْ مِنْ عَائِبَةٍ سَتَرْتَهَا عَلَيَّ فَلَمْ تَفْضَحْنِي ، وَ كَمْ مِنْ ذَنْبٍ غَطَّيْتَهُ عَلَيَّ فَلَمْ تَشْهَرْنِي ، وَ كَمْ مِنْ شَائِبَةٍ أَلْمَمْتُ بِهَا فَلَمْ تَهْتِكْ عَنِّي سِتْرَهَا ، وَ لَمْ تُقَلِّدْنِي مَكْرُوهَ شَنَارِهَا ، وَ لَمْ تُبْدِ سَوْءَاتِهَا لِمَنْ يَلْتَمِسُ مَعَايِبِي مِنْ جِيرَتِي ، وَ حَسَدَةِ نِعْمَتِكَ عِنْدِي
सुम्मा लम यंहनी ज़ालेका अन अन जरयतो इला सूऐ मा अहदता मिन्नी फिर भी तेरी कृपा मुझे उन बुराइयों को करने से नहीं रोक सकी जिनके बारे में तू मेरे बारे में जानते हैं ثُمَّ لَمْ يَنْهَنِي ذَلِكَ عَنْ أَنْ جَرَيْتُ إِلَى سُوءِ مَا عَهِدْتَ مِنِّي
फ़मन अजहलो मिन्नी, या इलाही, बेरुश्देहि व मन अग़फ़लो मिन्नी अन हज़ेहि व मन अब्अदो मिन्नी मिन इस्तिस्लाह नफ़्सेहि हीना अनंफ़ेको मा अजरयता अलय्या मिन रिज़क़ेका फ़ीमा नहयतनी अन्हो मिन माअसीयतेका व मन अब्अदो ग़ौरन फिल बातेले, व अशद्दो इक़दामन अलस सूए मिन्नी हीना अक़ेफ़ो बैना दअवतेका व दअवतिश शैताने फ़त्तबेओ दअवतहू अला ग़ैरे अमेयन मिन्नी फ़ी मअरफ़तिन बेहि वला निस्यानिन मिन हिफ़्जि लहू तो हे परमेश्वर! मुझसे अधिक कौन अपने कल्याण से अनभिज्ञ है, अपने भाग्य से अनभिज्ञ है और आत्म-सुधार से दूर है, जबकि मैं उस जीविका को खर्च करता हूं जो तूने मेरे लिए उन पापों में खर्च किया है जिनसे तूने मुझे माफ कर दिया है? और जब मैं ऐसे चौराहे पर खड़ा हूं जहां एक तरफ बुलाता है और दूसरी तरफ शैतान बुलाता है, तो मुझसे ज्यादा कौन झूठ की गहराई तक उतरकर बुराई करने की हिम्मत करेगा, तो मुझे उसकी हरकतों का एहसास होगा। فَمَنْ أَجْهَلُ مِنِّي ، يَا إِلَهِي ، بِرُشْدِهِ وَ مَنْ أَغْفَلُ مِنِّي عَنْ حَظِّهِ وَ مَنْ أَبْعَدُ مِنِّي مِنِ اسْتِصْلَاحِ نَفْسِهِ حِينَ أُنْفِقُ مَا أَجْرَيْتَ عَلَيَّ مِنْ رِزْقِكَ فِيما نَهَيْتَنِي عَنْهُ مِنْ مَعْصِيَتِكَ وَ مَنْ أَبْعَدُ غَوْراً فِي الْبَاطِلِ ، وَ أَشَدُّ إِقْدَاماً عَلَي السُّوءِ مِنِّي حِينَ أَقِفُ بَيْنَ دَعْوَتِكَ وَ دَعْوَةِ الشَّيْطَانِ فَأَتَّبِعُ دَعْوَتَهُ عَلَي غَيْرِ عَميً مِنِّي فِي مَعْرِفَةٍ بِهِ وَ لَا نِسْيَانٍ مِنْ حِفْظِي لَهُ
उदाहरण उदाहरण उदाहरण
व अना हीनएजिन मूक़ेनुन बेअन्ना मुंतहा दअवतेका ऐलल जन्नते, व मुन्तहा दअवतेहि इलन्नारे और मैं उसकी हरकतों को ध्यान में रखते हुए उसकी आवाज का जवाब देता हूं।' हालाँकि मैं अब भी मानता हूँ कि तेरे निमंत्रण का अंत स्वर्ग है और उसकी आवाज़ का जवाब देने का अंत नरक है। وَ أَنَا حِينَئِذٍ مُوقِنٌ بِأَنَّ مُنْتَهَى دَعْوَتِكَ إِلَى الْجَنَّةِ ، وَ مُنْتَهَى دَعْوَتِهِ إِلَي النَّارِ
सुब्हानका मा आजबा मा अशहदो बेहि अला नफ़सी, व आ अद्देदोहू मिन मकतूमिन अमरि अल्लाहो अक़बर! यह कितनी अजीब बात है कि मैं अपने ही खिलाफ गवाही दे रहा हूं और अपने छिपे हुए कामों को एक-एक करके गिन रहा हूं। سُبْحَانَكَ مَا أَعْجَبَ مَا أَشْهَدُ بِهِ عَلَى نَفْسِي ، وَ أُعَدِّدُهُ مِنْ مَكْتُومِ أَمْرِي
व आअजबो मिन ज़ालेका अनातोका अन्नी, व इब्ताओका अन मुआजलती, व लैसा ज़ालेका मिन करमी अलैका, बल तानियन मिन्का ली, व तफ़ज़्ज़लन मिंका अलय्या लेअन अरतदेआ अन मअसीयतेकल मुस्खेतातिन, व अक़लेआ अन सय्येआतेयल मखलेकते, व लेअन अफ़वका अन्नी अहब्बो इलैका मिन उक़ूबति और इससे भी अधिक अजीब बात यह है कि तू मुझे मोहलत दे रहे हैं और सज़ा देने में देरी कर रहे हैं। ऐसा इसलिए नहीं है कि मैं तेरी दृष्टि में प्रतिष्ठित हूं, बल्कि मेरे मामले में तेरी सहनशीलता और मेरे प्रति तेरी प्रसन्नता और कृपा के कारण है, ताकि मैं तुझे अप्रसन्न करने वाली अवज्ञा से बच सकूं और अपमानजनक पापों से दूर रह सकूं और क्योंकि तू मुझे मुझे सज़ा देने से भी ज़्यादा क्षमा करना पसंद करता हैं وَ أَعْجَبُ مِنْ ذَلِكَ أَنَاتُكَ عَنِّي ، وَ إِبْطَاؤُكَ عَنْ مُعَاجَلَتِي ، وَ لَيْسَ ذَلِكَ مِنْ كَرَمِي عَلَيْكَ ، بَلْ تَأَنِّياً مِنْكَ لِي ، وَ تَفَضُّلًا مِنْكَ عَلَيَّ لِأَنْ أَرْتَدِعَ عَنْ مَعْصِيَتِكَ الْمُسْخِطَةِ ، وَ أُقْلِعَ عَنْ سَيِّئَاتِيَ الْمخْلِقَةِ ، وَ لِأَنَّ عَفْوَكَ عَنِّي أَحَبُّ إِلَيْكَ مِنْ عُقُوبَتِي
बल अना, या इलाही, अकसरो ज़ोनूबन, व अकबहो आसारन, व अशनओ अफ़आलन, व अशद्दो फ़िल बातेले तहव्वोरन, व अज़अफ़ो इंदा ताअतेका तयक्क़ज़न, व अक़ल्लो लेवईदेका इंतेबाहन व इरतेक़ाबन मिन अन अहसेया लका ओयूबी, ओ अक़देरा अला ज़िक् ज़ुनूबी बल्कि, मैं, हे परमात्मा! मैं बहुत पापी हूं, बुरे कर्मों और दुष्कर्मों में निर्भीक हूं, तेरी आज्ञा मानने में धीमा हूं, तेरी धमकियों और झिड़कियों से बेखबर हूं और उसके प्रति बहुत कम सतर्क हूं, इसलिए मैं तेरे सामने अपने दोषों को कैसे गिना सकता हूं और उल्लेख और विवरण के द्वारा अपने पापों को कैसे छिपा सकता हूं? بَلْ أَنَا ، يَا إِلَهِي ، أَكْثَرُ ذُنُوباً ، وَ أَقْبَحُ آثَاراً ، وَ أَشْنَعُ أَفْعَالًا ، وَ أَشَدُّ فِي الْبَاطِلِ تَهَوُّراً ، وَ أَضْعَفُ عِنْدَ طَاعَتِكَ تَيَقُّظاً ، وَ أَقَلُّ لِوَعِيدِكَ انْتِبَاهاً وَ ارْتِقَاباً مِنْ أَنْ أُحْصِيَ لَكَ عُيُوبِي ، أَوْ أَقْدِرَ عَلَي ذِكْرِ ذُنُوبِي
व इन्नमा अवब्बख़ो बेहाज़ा नफ़सी तमअन फ़ी राफ़तेकल लती बेहा सलाहो अमरिल मुज़नेबीना, व रजाअन लेरहमतेकल लति बेहा फ़काको रक़ाबिल खातेईना और जो लोग इस रीति से अपने आप को धिक्कारते हैं, वे तेरी करुणा और दया के प्रलोभन में हैं, जिस से पापियों की दशा सुधरती है, और तेरी उस दया की आशा में रहते हैं, जिस से अपराधियों की गर्दनें छूट जाती हैं وَ إِنَّمَا أُوَبِّخُ بِهَذَا نَفْسِي طَمَعاً فِي رَأْفَتِكَ الَّتِي بِهَا صَلَاحُ أَمْرِ الْمُذْنِبِينَ ، وَ رَجَاءً لِرَحْمَتِكَ الَّتِي بِهَا فَكَاكُ رِقَابِ الْخَاطِئِينَ
अल्लाहुम्मा व हाज़ेहि रक़बति क़द अरक़्क़तोहज़ जोनूबो, फ़सल्ले अला मुहम्मदिव वा आलेहि, व आअतिक़हा बेअफ़वेका, व हाज़ा ज़हरि क़द असक़लत्हुल ख़ताया, फ़सल्ले अला मुहम्मदिव व आलेहि, व ख़फ़्फ़िफ़ अन्हो बेमन्नेका हे पालनहार! यह मेरी गर्दन है जो पापों से बंधी हुई है। तू मुहम्मद और उनके परिवार पर रहमत नाज़िल कर और अपनी क्षमा और दया से उसे मुक्त कर, और यह मेरी पीठ है जो पापों के बोझ से दबी हुई है, इसलिए मुहम्मद और उनके परिवार पर रहमत नाजलि कर और अपनी खुशी और इनाम से उसे हल्का कर दे اللَّهُمَّ وَ هَذِهِ رَقَبَتِي قَدْ أَرَقَّتْهَا الذُّنُوبُ ، فَصَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ ، وَ أَعْتِقْهَا بِعَفْوِكَ ، وَ هَذَا ظَهْرِي قَدْ أَثْقَلَتْهُ الْخَطَايَا ، فَصَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ ، وَ خَفِّفْ عَنْهُ بِمَنِّكَ
या इलाही लौ बकयतो इलैका हत्ता तस्क़ोता अशकारो ऐनय्या, वन तहब्तो हत्ता यंक़तेआ सौती, व क़ुमतो लका हत्ता ततनश्शरा कदामाया, व रक्अतो लका हत्ता यंख़लेआ सुल्बी, व सज्दतो लका हत्ता तत्फ़क्क़ा हदकत़ताया, व अकलतो तुराबल अर्ज़ा तौला उमरि, व शरिबतो माअर रेमादे आख़ेरा दहरि, व ज़करतो फ़ी ख़ेलाला ज़ालेका हत्ता बेकुल्ले लेसानी सुम्मा लम अरफ़आ तरफ़ा इला आफ़ाक़िस समाए इस्तेहयाअन मिन्का मसतौजबतो बेज़ालेका महवा सय्येअतिन वाहेदतिन मिन सय्यआते हे पालन हार! अगर मैं तेरे सामने इतना रोऊं कि मेरी पलकें गिर जाएं। और मैं इतना चिल्लाऊं और रोऊं कि मेरी आवाज बंद हो जाए, और मैं तेरे सामने इतनी देर तक खड़ा रहूं कि दोनों पैर सूज जाएं, और इतना रुकूअ करूं कि रीढ़ की हड्डी उखड़ जाए, और इतना सजदा करूं कि मेरी आंखें अंदर की ओर धस जाएं जिंदगी भर धूल फांकता रहूं, जिंदगी भर गंदा पानी पीता रहूं और इस बीच तेरा जिक्र इतना करूं कि जवाब देते-देते जबान थक जाए, फिर शर्म और हया के कारण आसमान की तरफ आंखें न उठाऊं तो इसके बावजूद मै अपने पापो मे से एक पाप के क्षमा करने का भी अधिकार नही रखता يَا إِلَهِي لَوْ بَكَيْتُ إِلَيْكَ حَتَّى تَسْقُطَ أَشْفَارُ عَيْنَيَّ ، وَ انْتَحَبْتُ حَتَّى يَنْقَطِعَ صَوْتِي ، وَ قُمْتُ لَكَ حَتَّى تَتَنَشَّرَ قَدَمَايَ ، وَ رَكَعْتُ لَكَ حَتَّى يَنْخَلِعَ صُلْبِي ، وَ سَجَدْتُ لَكَ حَتَّى تَتَفَقَّأَ حَدَقَتَايَ ، وَ أَكَلْتُ تُرَابَ الْأَرْضِ طُولَ عُمْرِي ، وَ شَرِبْتُ مَاءَ الرَّمَادِ آخِرَ دَهْرِي ، وَ ذَكَرْتُكَ فِي خِلَالِ ذَلِكَ حَتَّى يَكِلَّ لِسَانِي ، ثُمَّ لَمْ أَرْفَعْ طَرْفِي إِلَى آفَاقِ السَّمَاءِ اسْتِحْيَاءً مِنْكَ مَا اسْتَوْجَبْتُ بِذَلِكَ مَحْوَ سَيِّئَةٍ وَاحِدَةٍ مِنْ سَيِّئَاتِي
व इन कुंता तग़फ़ेरो ली हीना इस्तौजेबो मगफ़ेरतेका, व तआफ़ू अन्नी हीना इस्तहिक़्क़ा अवका फ़िन जालेका गैरो वाजिबिन ली बेइस्तेहक़ाके, वला अना अहलो लहू बेइस्तिजाबे, इज काना जज़ाई मिंका फ़ी अव्वले मा असैयतोकन नारा, फ़इन तोअज्जिबनी फ़अंता गैरो जालेमिन ली और यदि तू मुझे क्षमा कर दे जबकि मैं तेरी क्षमा के योग्य समझा जाता हूँ और मुझे क्षमा कर दे जबकि मैं तेरी क्षमा के योग्य समझा जाऊं, तो यह मेरे विशेषाधिकार के कारण आवश्यक नहीं होगा, न ही विशेषाधिकार के कारण मैं इसका हकदार हूँ। क्योंकि जब मैंने पहले पहले तेरे विरूद्ध पाप किया, तो मेरा दण्ड नरक था। अतः यदि वह मुझे दण्ड देगा तो वह मेरे प्रति अन्याय नहीं करेगा وَ إِنْ كُنْتَ تَغْفِرُ لِي حِينَ أَسْتَوْجِبُ مَغْفِرَتَكَ ، وَ تَعْفُو عَنِّي حِينَ أَسْتَحِقُّ عَفْوَكَ فَإِنَّ ذَلِكَ غَيْرُ وَاجِبٍ لِي بِاسْتِحْقَاقٍ ، وَ لَا أَنَا أَهْلٌ لَهُ بِاسْتِيجَابٍ ، إِذْ كَانَ جَزَائِي مِنْكَ فِي أَوَّلِ مَا عَصَيْتُكَ النَّارَ ، فَإِنْ تُعَذِّبْنِي فَأَنْتَ غَيْرُ ظَالِمٍ لِي
इलाही फ़इज़ क़द तोग़म्मदतनी बेसितरेका फ़लम तफ़ज़हनी, व तअन्नैयतनी बेकरमेका फ़लम तोआहिल्नी, व हलमता अन्नी बेतफ़ज़्ज़ोलेका फ़लम तोग़य्यिर बेनअमतेका अलय्या, व लम तुकद्दिर मअरूफ़का इंदी, फ़अरहम तूला तज़र्रोई व शिद्दता मसकनती, व सूआ मौक़ेफी हे मेरे पालन हार! जबकि तू ने मुझे ढाँप लिया और मुझे रुसवा न किया, और अपनी नेमतों में नरमी बरती और सज़ा देने में जल्दबाज़ी न की, और अपनी कृपा से मेरे साथ नम्रता से पेश आया, और न अपनी मेहरबानियाँ बदलीं, तो फिर क़ुदरत ही क्या है मेरी लंबी याचनाओं और सख्त जरूरतों और मेरी स्थिति के दुख पर रहम कर إِلَهِي فَإِذْ قَدْ تَغَمَّدْتَنِي بِسِتْرِكَ فَلَمْ تَفْضَحْنِي ، وَ تَأَنَّيْتَنِي بِكَرَمِكَ فَلَمْ تُعَاجِلْنِي ، وَ حَلُمْتَ عَنِّي بِتَفَضُّلِكَ فَلَمْ تُغَيِّرْ نِعْمَتَكَ عَلَيَّ ، وَ لَمْ تُكَدِّرْ مَعْرُوفَكَ عِنْدِي ، فَارْحَمْ طُولَ تَضَرُّعِي وَ شِدَّةَ مَسْكَنَتِي ، وَ سُوءَ مَوْقِفِي
अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिव वा आलेहि व केनी मिनल मआसी, व इस्तअमिलनी बित्तआते, व अरज़ुक़्नी हुसनल इनाबते, व तह्हिरनी बित्तौबते, व अय्यिदनी बिलइस्मते, व इस्तस्लेहनी बिल आफ़ीयते, व अज़िक़नी हलावतल मग़फ़ेरते, वजअलनी तलीका अफ़वेका, व अतीका रहमतेका, व अकतुप ली अमानन मिन सुख़्तेका, व बश्शिरनी बेज़ालेका फ़िल आजेले दूनल आजेले, बुशरेया आअरेफ़ोहा, व अर्ऱफनी फ़ी अलामतन अतबय्यनोहा हे परमात्मा! मुहम्मद और उनके परिवार पर रहमत नाजिल कर, और मुझे पापों से सुरक्षित रख और आज्ञाकारिता में सक्रिय कर, और मुझे अच्छी वापसी का अवसर प्रदान कर, और मुझे पश्चाताप के माध्यम से शुद्ध कर, और अपनी अच्छी देखभाल से मेरी मदद कर, और स्वास्थ्य के साथ मेरी स्थिति में सुधार कर, और क्षमा, काम और जलन की मिठास आनंददायक हो और मुझे अपनी क्षमा से मुक्त कर दे और अपनी दया से मुक्त कर दे और अपनी सजा से मुक्ति का परवाना लिख दे और परलोक से पहले इस दुनिया में मुक्ति की ऐसी खुशखबरी दे दे कि यह स्पष्ट हो जाए। اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ ، وَ قِنِي مِنَ الْمَعَاصِي ، وَ اسْتَعْمِلْنِي بِالطَّاعَةِ ، وَ ارْزُقْنِي حُسْنَ الْإِنَابَةِ ، وَ طَهِّرْنِي بِالتَّوْبَةِ ، وَ أَيِّدْنِي بِالْعِصْمَةِ ، وَ اسْتَصْلِحْنِي بِالْعَافِيَةِ ، وَ أَذِقْنِي حَلَاوَةَ الْمَغْفِرَةِ ، وَ اجْعَلْنِي طَلِيقَ عَفْوِكَ ، وَ عَتِيقَ رَحْمَتِكَ ، وَ اكْتُبْ لِي أَمَاناً مِنْ سُخْطِكَ ، وَ بَشِّرْنِي بِذَلِكَ فِي الْعَاجِلِ دُونَ الآْجِلِ . بُشْرَى أَعْرِفُهَا ، وَ عَرِّفْنِي فِيهِ عَلَامَةً أَتَبَيَّنُهَا
इन्ना ज़ालेका ला यज़ीको अलैका फी वुस्ऐका, वला यताकदोका फ़ी कुदरतेका, वला यतसअदोका फी अनातेका, वला योअव्वेका फी जज़ीले हेबातेकल लती दल्लत अलैहा आयातोका, इन्नका तफअलो मा तशाओ व तहकोमो मा तोरीदो इन्नका अला कुल्ले शैइन क़दीर और मुझे कोई ऐसा चिन्ह दिखा कि मैं उसे बिना किसी संदेह और अस्पष्टता के पहचान लूं और यह बात तेरी सर्वशक्तिमान शक्ति के सामने कठिन नहीं है और तेरी शक्ति के सामने कठिन नहीं है। सचमुच, तेरी शक्ति सब कुछ ढांप लेती है إِنَّ ذَلِكَ لَا يَضِيقُ عَلَيْكَ فِي وُسْعِكَ ، وَ لَا يَتَكَأَّدُكَ فِي قُدْرَتِكَ ، وَ لَا يَتَصَعَّدُكَ فِي أَنَاتِكَ ، وَ لَا يَؤُودُكَ فِي جَزِيلِ هِبَاتِكَ الَّتِي دَلَّتْ عَلَيْهَا آيَاتُكَ ، إِنَّكَ تَفْعَلُ مَا تَشَاءُ ، وَ تَحْكُمُ مَا تُرِيدُ ، إِنَّكَ عَلَى كُلِّ شَيْ‌ءٍ قَدِيرٌ

फ़ुटनोट

  1. ममदूही, शुहूद व शनाख़त, 1388 शम्सी, भाग 2, पेज 80
  2. तरजुमा व शरह दुआ ए चहारदहुम सहीफ़ा सज्जादिया, साइट इरफ़ान
  3. दुआ का पाठ
  4. दुआ का पाठ
  5. दुआ का पाठ
  6. अंसारियान, दयारे आशेक़ान, 1372 शम्सी, भाग 5, पेज 373-480 ममदूही, शुहूद व शनाख़त, 1388 शम्सी, भाग 2, पेज 80-115
  7. अंसारियान, दयारे आशेक़ान, 1371 शम्सी, भाग 5, पेज 373-480
  8. ममदूही, शुहूद व शनाख़त, 1388 शम्सी, भाग 2, पेज 80-115
  9. फ़हरि, शरह व तफसीर सहीफ़ा सज्जादिया, 1388 शम्सी, भाग 2, पेज 125-155
  10. मदनी शिराज़ी, रियाज़ उस सालेकीन, 1435 हिजरी, भाग 3, पेज 101-170
  11. मुग़निया, फ़ी ज़िलाल अल सहीफ़ा, 1428 , पेज 209-226
  12. दाराबी, रियाज़ उल आरेफ़ीन, 1379 शम्सी, पेज 193-211
  13. फ़ज़्लुल्लाह, आफ़ाक़ अल रूह, 1420 शम्सी, भाग 1, पेज 361-388
  14. फ़ैज़ काशानी, तालीक़ात अलस सहीफ़ा अल-सज्जादिया, 1407 हिजरी, पेज 41-43
  15. जज़ाएरी, शरह अल-सहीफ़ा अल-सज्जादिया, 1402 हिजरी, पेज 96-102


स्रोत

  • अंसारियान, हुसैन, दयारे आशेकान, तफसीर जामेअ सहीफ़ा सज्जादिया, तेहरान, पयाम आज़ादी, 1372 शम्सी
  • जज़ाएरी, इज़्ज़ुद्दीन, शरह अल-सहीफ़ा अल-सज्जादिया, बैरूत, दार उत तआरुफ लिलमतबूआत, 1402 हिजरी
  • दाराबी, मुहम्मद बिन मुहम्मद, रियाज़ अल आरेफ़ीन फ़ी शरह अल सहीफ़ा सज्जादिया, शोधः हुसैन दरगाही, तेहरान, नशर उस्वा, 1379 शम्सी
  • फ़ज़्लुल्लाह, सय्यद मुहम्मद हुसैन, आफ़ाक़ अल-रूह, बैरूत, दार उल मालिक, 1420 हिजरी
  • फ़हरि, सय्यद अहमद, शरह व तरजुमा सहीफ़ा सज्जादिया, तेहरान, उस्वा, 1388 शम्सी
  • फ़ैज़ काशानी, मुहम्मद बिन मुर्तज़ा, तालीक़ात अलस सहीफ़ा अल-सज्जादिया, तेहरान, मोअस्सेसा अल बुहूस वत तहक़ीक़ात अल सक़ाफ़ीया, 1407 हिजरी
  • मदनी शिराज़ी, सय्यद अली ख़ान, रियाज उस-सालेकीन फ़ी शरह सहीफ़ा तुस साजेदीन, क़ुम, मोअस्सेसा अल-नश्र उल-इस्लामी, 1435 हिजरी
  • मुग़निया, मुहम्मद जवाद, फ़ी ज़िलाल अल-सहीफ़ा सज्जादिया, क़ुम, दार उल किताब उल इस्लामी, 1428 हिजरी
  • ममदूही किरमानशाही, हसन, शुहूद व शनाख़्त, तरजुमा व शरह सहीफ़ा सज्जादिया, मुकद्मा आयतुल्लाह जवादी आमोली, क़ुम, बूस्तान किताब, 1388 शम्सी