सहीफ़ा सज्जादिया की सातवीं दुआ
विषय | कष्टों और दुखों को दूर करने की दुआ |
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प्रभावी/अप्रभावी | प्रभावी |
किस से नक़्ल हुई | इमाम सज्जाद (अ) |
कथावाचक | मुतावक्किल बिन हारुन |
शिया स्रोत | सहीफ़ा सज्जादिया |
सहीफ़ा सज्जादिया की सातवीं दुआ (अरबी: الدعاء السابع من الصحيفة السجادية) इमाम सज्जाद (अ) की प्रसिद्ध दुआओं में से एक है, जो कठिनाइयों और विपत्तियों और दुःख के समय में पढ़ी जाती है, और अल्लाह के माध्यम से कठिनाइयों को कम करने और साधनों के प्रावधान को अल्लाह की दया के माध्यम से संदर्भित करती है। इस दुआ में इमाम सज्जाद (अ) परमेश्वर से जीवन की गांठों को खोलने की विंती करते हैं। साथ ही सहीफ़ा ए सज्जादिया की सातवीं दुआ में चौथे इमाम (अ) सभी प्राणियों को ईश्वर की इच्छा के अधीन मानता है और ईश्वर की इच्छा के विरुद्ध सभी की कमज़ोरी और किसी ऐसे व्यक्ति के सहायक और समर्थक की कमी को स्वीकार करते
इस दुआ को वबा ख़त्म होने के लिए विशेष अनुष्ठानों के साथ पढ़े जाने की सिफ़ारिश की गई है, जैसे कि सुबह की नमाज़ के बाद और भोर के मध्य में पढ़ा जाए।
दयारे आशेक़ान और रियाज़ अल-सालेकीन नामक दो किताब क्रमशः हुसैन अंसारीयान और सय्यद अली खान मदनी द्वारा लिखित फ़ारसी भाषा मे सहीफ़ा ए सज्जादिया की सातवीं दुआ की व्याख्याएं है।
महत्व और स्थान
सहीफ़ा सज्जादिया की सातवीं दुआ एक ऐसी प्रार्थना है जिसे इमाम सज्जाद (अ) अत्यधिक कठिनाइयों के समय या गंभीर आपदाओं के अवतरण और दुःख के समय में पढ़ते थे। इस दुआ में, चौथे इमाम ने स्पष्ट रूप से आपदा आने पर बंदो के कर्तव्यों के बारे में चेताया है।[१] ईरान की इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह सय्यद अली ख़ामेनेई ने भी मार्च 2019 में कोरोना वायरस के प्रकोप के दौरान और अन्य देशों ने इस बीमारी को ख़त्म करने के लिए इस दुआ को पढ़ने की सिफ़ारिश की थी।[२]
शिक्षाएँ
सहीफ़ा ए सज्जादिया की सातवीं दुआ की शिक्षाएँ इस प्रकार है:
- ईश्वर हर मुश्किल को खोलने वाला है।
- सभी प्राणी ईश्वर की इच्छा के प्रति आज्ञाकारी हैं।
- जीवन का साधन प्रदान करना और जीवन के साधनों को प्रभावित करना परमेश्वर की कृपा और दया के माध्यम से होता है।[३]
- परमेश्वर की शक्ति से क़ज़ा व क़द्र (नियति) का प्रवाह होता है।
- ईश्वर की इच्छा की निश्चितता
- कठिन से कठिन विपदाओं से बचने के लिए परमेश्वर मनुष्य का आश्रय है।
- ईश्वर की इच्छा के विरुद्ध सभी कमजोर है।
- खुदा से फ़रज के दरवाज़े खोलने विंती करते हैं
- दुआ की स्वीकृति की मिठास चखने की चाह[४]
- वाजिबात को अंजाम देने और मुस्तहब्बात का प्रबंध करने के लिए दुआ
- हर चीज का प्रवाह केवल ईश्वर की इच्छा के अनुसार होता है।
- जिसे परमेश्वर ने अपमानित किया है उसका कोई सहायक नहीं है।[५]
पढ़ने का तरीका
कुछ रचनाओ में सहीफ़ा सज्जादिया की सातवीं दुआ पढ़ने का तरीका बताया गया है: इस दुआ की शुरुआत रविवार से होती है, और तीस दिनों तक, प्रत्येक दिन में, उक्त दुआ को दस बार पढ़ा जाता है, और दुआ के समाप्त होने के बाद, या रब्बे या रब्बे ज़िक्र को सांस के टूटने तक पढ़ा जाता है, फिर सजदे में जाकर ख़ुदा से अपनी हाजत माँगी जाती है। कहा जाता है कि इस दुआ के शुरू और आख़िर मे दस बार सलवात और चालीस बार या अल्लाह पढ़ा जाए। दुआ के इख्तेताम पर तुलूऐन के बीच मे और सुबह की नमाज़ के बाद तीस दिन तक पेट भरके खाना खाने और मोहर्रेमात से बचने की सिफारिश की गई है। इसी तरह बा तहारत रहने और क़िबला की ओर मुंह करके बैठने और हुज़ूर क़ल्ब भी इस दुआ के पढ़ने की शर्त है।[६]
व्याख्याएँ
सहीफ़ा ए सज्जादिया पर शरह लिखी हैः इसकी सातवीं दुआ का भी वर्णन किया गया है और इस दुआ के कठिन शब्दो की व्याख्या की गई है। इस दुआ का दयारे आशेक़ान[७] शुहूद और शनाख्त,[८] रियाज़ अल-सालेकीन[९] और फ़ी ज़िलाले अल-सहीफ़ा अल-सज्जादिया[१०] मे वर्णन किया गया है और फ़ैज काशानी[११] की रचना तालीक़ाते अला अल-सहीफ़ा अल-सज्जादिया मे व्याख्या की गई है।
दुआ और अनुवाद
दुआ का हिंदी उच्चारण | अनुवाद | दुआ का अरबी उच्चारण |
वा काना मिन दुआ ए ही अलैहिस सलाम इज़ा अराज़त लहू मोहिम्मतुन ओ नज़ालत बेहि, मोलिम्मतुन वा इन्दल करबे | यह इमाम अलैहिस सलाम की वो दुआ है जब आप (अ) पर भारी मुसीबत आ पड़ी या कोई बड़ी आपदा आ पड़ी और जब वह उदास हुए। | وَ کانَ مِنْ دُعَائِهِ علیهالسلام إِذَا عَرَضَتْ لَهُ مُهِمَّةٌ أَوْ نَزَلَتْ بِهِ، مُلِمَّةٌ وَ عِنْدَ الْکرْبِ |
या मन तोहिल्लो बेहि ओक़ादुल मक़ारेह, वा मन यफ़सओ बेहि हद्दुश शदाएदे, वा या मन यलतमेसो मिनहुल मख़रजो एला रोहिल फ़रजे | हे दुःस्वप्न की गांठों को खोलने वाले; और हे विपत्ति के तीखेपन को वश में करने वाले; और जिस से तंगी और दबाव से बाहर आने और आराम में रहने की विंति की जाती है उसका का धन्यवाद करो; | یا مَنْ تُحَلُّ بِهِ عُقَدُ الْمَکارِهِ، وَ یا مَنْ یفْثَأُ بِهِ حَدُّ الشَّدَائِدِ، وَ یا مَنْ یلْتَمَسُ مِنْهُ الْمَخْرَجُ إِلَی رَوْحِ الْفَرَجِ. |
ज़ल्लत लेकुदरतेकस सेआब, वा तोसब्बेबत बेलुत्फ़ेकल असबाब, वा जरा बेक़ुदरतेकल क़ज़ा, वा मज़त अला एरादतेकल अश्या | तेरी शक्ति से कठिनाइयाँ आसान हो जाएँगी, और तेरी कृपा से जीवन के साधन उपलब्ध हो जाएँगे, और तेरी शक्ति से आदेश और नियम प्रवाहित होंगे। और सब कुछ तेरी मर्जी से होता है। | ذَلَّتْ لِقُدْرَتِک الصِّعَابُ، وَ تَسَبَّبَتْ بِلُطْفِک الْأَسْبَابُ، وَ جَرَی بِقُدرَتِک الْقَضَاءُ، وَ مَضَتْ عَلَی إِرَادَتِک الْأَشْیاءُ. |
फ़हेया बेमश्यतेका दोना क़ौलेका मोतमेरतुन, वा बेइरादतेका दूना नहयेका मुंज़जरतुन | इसलिए, मौखिक आदेश दिए बिना, सभी प्राणी तेरी इच्छा का पालन करते हैं; और वे तेरी इच्छा के अनुसार काम करना बन्द कर देते हैं, और तू उन्हें शब्दों से मना नहीं करता। | فَهِی بِمَشِیتِک دُونَ قَوْلِک مُؤْتَمِرَةٌ، وَ بِإِرَادَتِک دُونَ نَهْیک مُنْزَجِرَةٌ. |
अन्तल मदउव्वो लिल मोहिम्माते, वा अन्तल मफ़ज़ओ फ़िल मोलिम्माते, ला यंदफ़ेओ मिन्हा इल्ला मा कश्फ़ता | विपत्तियों में तुझे ही पुकारा जाता है और कठिन से कठिन विपदाओं में तू ही शरणागत है। कठिन से कठिन विपत्तियाँ मनुष्य से दूर नहीं होतीं, सिवाय इसके कि तू क्या करता हैं; और दर्दनाक गांठों से कुछ भी नहीं खुल सकता है, सिवाय उसके जो तूने खोला है। | أَنْتَ الْمَدْعُوُّ لِلْمُهِمَّاتِ، وَ أَنْتَ الْمَفْزَعُ فِی الْمُلِمَّاتِ، لَا ینْدَفِعُ مِنْهَا إِلَّا مَا دَفَعْتَ، وَ لَا ینْکشِفُ مِنْهَا إِلَّا مَا کشَفْتَ |
वा क़द नज़ला बी या रब्बे मा क़द तकाअदनी सिक़लोहू, वा अलम्मा बी मा क़द बहाज़नी हमलोहू | अल्लाह! एक विपत्ति मुझ पर आ पड़ी है, जिसके बोझ ने मुझे कष्ट दिया है, और इसने मुझे कठिनाई और परेशानी दी है, जिसने मुझे इसे सहन करने के लिए दबाव डाला है। | وَ قَدْ نَزَلَ بی یا رَبِّ مَا قَدْ تَکأَّدَنِی ثِقْلُهُ، وَ أَلَمَّ بیمَا قَدْ بَهَظَنِی حَمْلُهُ. |
वा बेक़ुदरतेका ओरदतहू अला वा बेसुलतानेका वज्जहताहू इला | और तू उसे अपनी शक्ति से मेरे पास ले आया और अपनी शक्ति से मेरे पास भेजा है। | وَ بِقُدْرَتِک أَوْرَدْتَهُ عَلَی وَ بِسُلْطَانِک وَجَّهْتَهُ إِلَی. |
फ़ला मुसदेरा लेमा औरदता, वला सारेफ़ा लेमा वज्जहता, वला फ़ातेहा लेमा अग़लक़्ता, वला मुग़लेक़ा लेमा फ़तहता, वाल मुयस्सेरा लेमा अस्सरता, वला नासेरा लेमन ख़ज़ल्ता | बस जो तूने दाखिल किया है, उसका कोई प्रतिफल नहीं है; और जो तू ने भेजा है, उस से कोई हटता नहीं; और जो तूने बंद कर दिया है, उसके लिए कोई द्वार नहीं है; और जिसे तू खोलता है, उसे बंद करने की शक्ति किसी में नहीं; और जिसे तूने कठिन बना दिया है वह उसके लिये सरल नहीं; और जिसे तूने बेबस छोड़ा है, उसका कोई मददगार नहीं। | فَلَا مُصْدِرَ لِمَا أَوْرَدْتَ، وَ لَا صَارِفَ لِمَا وَجَّهْتَ، وَ لَا فَاتِحَ لِمَا أَغْلَقْتَ، وَ لَا مُغْلِقَ لِمَا فَتَحْتَ، وَ لَا مُیسِّرَ لِمَا عَسَّرْتَ، وَ لَا نَاصِرَ لِمَنْ خَذَلْتَ. |
फ़सल्ले अला मुहम्मदिन वा आलेही, वफ़्तह ली या रब्बे बाबल फ़रजे बेतौलेका, वकसिर अन्नी सुलताना अल्लाहुम्मा बेहौलेका, वाअनिलनी हुसनन नज़ारे फ़ीमा शकौतो, वा अज़िक़्नी हलावतस सुन्ऐ फ़ीमा साअल्तो, वा हबली मिन लदुनका रहमतन वा फ़रजन हनीअन, वज्अल ली मिन इन्देका मख़रजन वहेयन | बस मुहम्मद और उनके परिवार पर सलवात भेज, मेरे अल्लाह! अपनी कृपा और दया से, मेरे लिए राहत का द्वार खोल और अपने समाधान से, मेरे से दुख और शोक का नियंत्रण तोड़ और मुझे उस मामले में अच्छे प्रतिबिंब और विचार में ला जिसकी मैं शिकायत कर रहा हूं। और जो मैं तुझ से मांगूं उस में मुझे तदब्बुर तक पहुचां; और अपनी ओर से मुझे दया और खुलापन प्रदान कर; और मेरे लिये अपने पास से शीघ्र उद्धार का मार्ग बना। | فَصَلِّ عَلَی مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ، وَ افْتَحْ لِی یا رَبِّ بَابَ الْفَرَجِ بِطَوْلِک، وَ اکسِرْ عَنِّی سُلْطَانَ الْهَمِّ بِحَوْلِک، وَ أَنِلْنِی حُسْنَ النَّظَرِ فِیمَا شَکوْتُ، وَ أَذِقْنِی حَلَاوَةَ الصُّنْعِ فِیمَا سَأَلْتُ، وَ هَبْ لِی مِنْ لَدُنْک رَحْمَةً وَ فَرَجاً هَنِیئاً، وَ اجْعَلْ لِی مِنْ عِنْدِک مَخْرَجاً وَحِیاً. |
वला तशग़लनी बिल एहतेमामे अन तआहोदे फ़ुरूज़ेका, वस्तेअमाले सुन्नतेका | और दुख और शोक के कारण मुझे अपने दायित्वों को पूरा करने और अपने मुस्तहब का उपयोग करने से रोक। | وَ لَا تَشْغَلْنِی بِالاهْتِمَامِ عَنْ تَعَاهُدِ فُرُوضِک، وَ اسْتِعْمَالِ سُنَّتِک. |
फ़क़द ज़िक़्तो लेमा नज़ला बी या रब्बे ज़रअन, वम तलाअतो बेहमले मा हदासा अला हम्मन, वा अंतल क़ादेरो अला कश्फ़े मा मुनीतो बेहि, वा दफ़्ऐ मा वक़ाअतो फीहे, फ़फ़अल बी ज़ालेका वा इन लम असतोजिब्हो मिनका, या ज़ल अर्शिल अज़ीमे | हे अल्लाह! जो विपत्ति मुझ पर आई है उसके कारण मैं बेबस हूं; और मेरे साथ जो हुआ उसे सहने से, मेरा दिल दुख और शोक से भर गया है; और जिस वस्तु में मैं फँसा हुआ हूँ उसे दूर करने की, और जिस विपत्ति में मैं पड़ा हूँ, उसे दूर करने की सामर्थ्य तुझ में है; इसलिए मेरे बारे में अपनी शक्ति और क्षमताओं का उपयोग कर; हालाँकि मैं तुझसे इसके लायक नहीं हूँ; हे महान सिंहासन के स्वामी! | فَقَدْ ضِقْتُ لِمَا نَزَلَ بییا رَبِّ ذَرْعاً، وَ امْتَلَأْتُ بِحَمْلِ مَا حَدَثَ عَلَی هَمّاً، وَ أَنْتَ الْقَادِرُ عَلَی کشْفِ مَا مُنِیتُ بِهِ، وَ دَفْعِ مَا وَقَعْتُ فِیهِ، فَافْعَلْ بیذَلِک وَ إِنْ لَمْ أَسْتَوْجِبْهُ مِنْک، یا ذَا الْعَرْشِ الْعَظِیمِ. |
फ़ुटनोट
- ↑ ममदूही, शुहूद वा शनाख्त, 1385 शम्सी, भाग 1, पेज 425
- ↑ दुआई के रहबरे इंक़ेलाब ख़ानदने आनरा दर दौराने शुयूउ बीमारी तोसीये करदनद
- ↑ मतन ए दुआ
- ↑ मतन ए दुआ
- ↑ अनसारियान, दयारे आशेक़ान, 1371 शम्सी, भाग 4, पेज 103-224
- ↑ अकबरी साऊजी, आबे हयात, 1392 शम्सी, दस्तूर 186
- ↑ अनसारियान, दयारे आशेक़ान, 1371 शम्सी, भाग 4, पेज 103-224
- ↑ ममदूही किरमानशाही, शुहूद वा शनाख्त, 1385 शम्सी, भाग 1, पेज 425-435
- ↑ हुसैनी मदनी, रियाज़ अल-सालेकीन, 1409 हिजरी, भाग 2, पेज 301-325
- ↑ मुग़नीया, फी ज़लाले अल-सहीफ़ा अल-सज्जादिया, 1428 हिजरी, पेज 135-141
- ↑ फ़ैज़ काशानी, तालीक़ात अला अल-सहीफ़ा अल-सज्जादिया, 1407 हिजरी, पेज 3-33
स्रोत
- अनसारीयान, हुसैन, दयारे आशेक़ान, तफसीर ए जामेअ सहीफ़ा ए सज्जादिया, तेहरान, पयामे आज़ादी, 1371 शम्सी
- अकबरी साउजी, मुहम्मद हुसैन, आबे हयात, क़ुम, क़ायमे आले मुहम्मद (स), 1392 शम्सी
- हुसैनी मदनी, सय्यद अली ख़ान, रियाज़ अल-सालेकीन फ़ी शरहे सहीफ़ातुस साजेदीन, क़ुम, मोअस्सेसा अल-नश्र अल-इस्लामी, 1409 हिजरी
- दुआई के के रहबरे इंक़ेलाब ख़ानदने आनरा दर दौराने शुयूउ बीमारी तोसीये करदनद, दफ्तरे हिफ़्ज़ व नश्र आसारे हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई, दर्ज मतलब 13 इस्फंद 1398 शम्सी, वीजीट 12 आज़र 1399 शम्सी
- फ़ैज़ काशानी, मुहम्मद बिन मुर्तुज़ा, तालीकाते अल अल-सहीफ़ा अल-सज्जादिया, तेहरान, मोअस्सेसातुल बुहूस वल तहक़ीक़ातिस सक़ाफ़ीया, 1407 हिजरी
- मुग़निया, मुहम्मद जवाद, फ़ी ज़लाले अल-सहीफ़ा अल-सज्जादिया, क़ुम, दार अल-किताब अल-इस्लामी, 1428 हिजरी
- ममदूही किरमानशाही, हसन, शुहूद वा शनाख्त, तर्जुमा वा शरह सहीफ़ा ए सज्जादिया, बा मुकद्दमा आयतुल्लाह जवादी आमोली, क़ुम, बूस्ताने किताब, 1385 शम्सी