सहीफ़ा सज्जादिया की इक्यावनवीं दुआ
1145 हिजरी में लिखी गई अहमद नयरेज़ी की लिपि में लिखी गई सहिफ़ा सज्जादिया की पांडुलिपि | |
| विषय | ईश्वर से विनम्र प्रार्थना और रोना और उसके आशीर्वाद के लिए आभार |
|---|---|
| प्रभावी/अप्रभावी | प्रभावी |
| किस से नक़्ल हुई | इमाम सज्जाद (अ) |
| कथावाचक | मुतवक्किल बिन हारून |
| शिया स्रोत | सहीफ़ा सज्जादिया |
सहीफ़ा सज्जादिया की इक्यावनवीं दुआ, ईश्वर से विनम्र प्रार्थना और रोना के विषय पर इमाम सज्जाद (अ) से वर्णित दुआ है। इस दुआ मे इमाम सज्जाद (अ) मानव जाति के लिए अल्लाह की अनगिनत नेमतों के लिए उसका धन्यवाद करते हैं। हालाँकि, वह इलाही नेमतो के लिए मानवीय कृतज्ञता को महत्वहीन मानते हैं और मनुष्य को अल्लाह के प्रति कृतज्ञ होने में असमर्थ मानते हैं। साथ ही, इस दुआ में अल्लाह को मनुष्य के एकमात्र समर्थक के रूप में पेश किया गया है, तथा समस्याओं से बचने का तरीका उस पर भरोसा करना है।सामाजिक जीवन की स्थिरता ईश्वर की ग़लतियों को ढकने और मुसीबत के समय दुआ की स्वीकृति के प्रकाश में, इस दुआ की अन्य शिक्षाएं हैं।
सहीफ़ा सज्जादिया की इक्यावनवीं दुआ की विभिन्न व्याख्याएँ है, इस दुआ की व्याख्याओ मे शुहूद व शनाखत फ़ारसी भाषा मे व्याख्या है जो हसन ममदूही किरमानशाही द्वारा लिखित है और अरबी भाषा मे किताब रियाज़ उस सालेकीन फ़ी शरह सहीफ़ा सय्यद उस साजेदीन है जो सय्यद अली खान मदनी द्वारा लिखित है।
शिक्षाएँ
सहीफ़ा सज्जादिया की इक्यावनवी दुआ मे अल्लाह की हम्द, बेनियाज़ बिज़ जात (आत्मनिर्भर) से हाज़त तलब करना, अल्लाह की शरण माँगना, क्षमा और माफ़ी माँगना, भलाई की माँग करना, क़ज़ा का मस्अला, ईश्वर का शुक्रिया अदा करना और मानवीय कमज़ोरियों को व्यक्त करना आदि विषय शामिल है।[१] इस दुआ पर अपनी टिप्पणी में हसन ममदूही किरमानशाही के अनुसार, दुआओं में मासूम इमामों (अ) की मुनाजात और राज़ व नियाज़ है। क्योंकि वे अल्लाह के समक्ष मनुष्य की अंतर्निहित गरीबी और अल्लाह की बेनियाज़ी पर ध्यान देते हैं, वे बंदो की सभी ज़रूरतों को इंगित करते हैं और सर्वोत्तम संभव शब्दों में अल्लाह से रहमत तलब करते हैं।[२] इस दुआ की शिक्षाएँ इस प्रकार हैं:
- अल्लाह को उसकी दयालुता के लिए धन्यवाद।
- परमेश्वर का अपने सेवकों के मांगने से पहले प्रदान करना
- अल्लाह की मनुष्यों पर अनगिनत नेमते
- अल्लाह की नेमतो के लिए कृतज्ञ होने में असमर्थता को स्वीकार करना
- इलाही रहमत और आशीर्वाद के प्रकाश में जीवन का आनंद लेना और स्वयं को बेहतर बनाना
- मनुष्य द्वारा नेमतो को हल्के में लेना तथा कृतज्ञता प्रकट न करना
- निराशा और हताशा के समय में दुआ की स्वीकृति
- परमेश्वर द्वारा मनुष्य से गंभीर विपत्तियों को हटाना
- परमेश्वर का अपने सेवकों पर विशेष अनुग्रह
- अल्लाह के होजूर ति में वापस न आ पाने से सेवकों की निराशा
- शत्रुओं के विरुद्ध मनुष्य का एकमात्र सहायक ईश्वर ही है।
- आत्मा, जीभ और मन से परमेश्वर की स्तुति करना
- स्तुति और कृतज्ञता के माध्यम से दैवी क्रोध से मुक्ति
- सच्ची और पूर्ण प्रशंसा में कृतज्ञता और उतनी ही मात्रा में ईश्वरीय संतुष्टि भी शामिल होती है।
- ईश्वर गलतियों को क्षमा करने वाला है।
- ईश्वर की क्षमा के प्रकाश में सामाजिक जीवन की स्थिरता और प्रतिष्ठा का संरक्षण
- पाप के कारण मनुष्य का अपमान और पतन
- परमेश्वर के सामने नम्रता और राजाओं का ईश्वरीय शक्ति से भय
- विनाशकारी पापों से बचना और परमेश्वर की उपस्थिति में लौटना
- आत्मा के दुखों और प्रलोभनों की अधिकता के बारे में ईश्वर से शिकायत करना
- मनुष्यों के लिए ईश्वर की कृपा की स्थायित्वता
- मनुष्य को परमेश्वर की परम आवश्यकता है
- आंतरिक कुरूपता के कारण होने वाले अपमान से बचने के लिए प्रार्थना
- कर्तव्यों का पालन करने में आलस्य शैतान की चालों में से एक है।
- ईश्वर पर भरोसा रखना ही समस्याओं से बाहर निकलने का एकमात्र रास्ता है।
- तुच्छ कृतज्ञता के कारण इस लोक और परलोक की भलाई से वंचित न होने की प्रार्थना
- ईश्वरीय आशीर्वाद के प्रति मानवीय कृतज्ञता की निरर्थकता
- ईश्वर की सज़ा उसके न्याय के समान ही है।[३]
व्याख्याएँ
सहीफ़ा सज्जादिया की इक्यावनवीं दुआ की भी व्याख्या दूसरी दुआओ की तरह की गई है। यह दुआ हुसैन अंसारियान की दयारे आशेक़ान [3] हसन ममदूही किरमानशाही की शुहुद व शनाख्त,[४] और सय्यद अहमद फ़हरी की किताब शरह व तरजुमा सहीफ़ा सज्जादिया[५] मे फ़ारसी भाषा मे व्याख्या की गई है।
सहीफ़ा सज्जादिया की इक्यावनवीं दुआ सय्यद अली खान मदनी की किताब रियाज़ उस सालेकीन[६] मुहम्मद जवाद मुग़्निया की फी ज़िलाल अल-सहीफ़ा सज्जादिया,[७] मुहम्मद बिन मुहम्मद दाराबी की रियाज़ उल आरेफ़ीन[८] और सय्यद मुहम्मद हुसैन फ़ज़लुल्लाह की आफ़ाक़ अल रूह[९] मे इसका वर्णन अरबी में किया गया है। इस दुआ के शब्दों को फ़ैज़ काशानी द्वारा तालीक़ा अला अल-सहीफ़ा सज्जादियाह[१०] और इज़्ज़ुद्दीन जज़ाएरी द्वारा शरह अल-सहीफ़ा अल-सज्जादिया जैसी शाब्दिक टिप्पणियों में भी उल्लेक किया गया है।[११]
इक्यावनवीं दुआ का पाठ और अनुवाद
وَ كَانَ مِنْ دُعَائِهِ عَلَيْهِ السَّلَامُ فِي التَّضَرُّعِ وَ الِاسْتِكَانَةِ
إِلَهِي أَحْمَدُكَ وَ أَنْتَ لِلْحَمْدِ أَهْلٌ عَلَى حُسْنِ صَنِيعِكَ إِلَيَّ، وَ سُبُوغِ نَعْمَائِكَ عَلَيَّ، وَ جَزِيلِ عَطَائِكَ عِنْدِي، وَ عَلَى مَا فَضَّلْتَنِي بِهِ مِنْ رَحْمَتِكَ، وَ أَسْبَغْتَ عَلَيَّ مِنْ نِعْمَتِكَ، فَقَدِ اصْطَنَعْتَ عِنْدِي مَا يَعْجِزُ عَنْهُ شُكْرِي.
وَ لَوْ لَا إِحْسَانُكَ إِلَيَّ وَ سُبُوغُ نَعْمَائِكَ عَلَيَّ مَا بَلَغْتُ إِحْرَازَ حَظِّي، وَ لَا إِصْلَاحَ نَفْسِي، وَ لَكِنَّكَ ابْتَدَأْتَنِي بِالْإِحْسَانِ، وَ رَزَقْتَنِي فِي أُمُورِي كُلِّهَا الْكِفَايَةَ، وَ صَرَفْتَ عَنِّي جَهْدَ الْبَلَاءِ، وَ مَنَعْتَ مِنِّي مَحْذُورَ الْقَضَاءِ.
إِلَهِي فَكَمْ مِنْ بَلَاءٍ جَاهِدٍ قَدْ صَرَفْتَ عَنِّي، وَ كَمْ مِنْ نِعْمَةٍ سَابِغَةٍ أَقْرَرْتَ بِهَا عَيْنِي، وَ كَمْ مِنْ صَنِيعَةٍ كَرِيمَةٍ لَكَ عِنْدِي
أَنْتَ الَّذِي أَجَبْتَ عِنْدَ الِاضْطِرَارِ دَعْوَتِي، وَ أَقَلْتَ عِنْدَ الْعِثَارِ زَلَّتِي، وَ أَخَذْتَ لِي مِنَ الْأَعْدَاءِ بِظُلَامَتِي.
إِلَهِي مَا وَجَدْتُكَ بَخِيلًا حِينَ سَأَلْتُكَ، وَ لَا مُنْقَبِضاً حِينَ أَرَدْتُكَ، بَلْ وَجَدْتُكَ لِدُعَائِي سَامِعاً، وَ لِمَطَالِبِي مُعْطِياً، وَ وَجَدْتُ نُعْمَاكَ عَلَيَّ سَابِغَةً فِي كُلِّ شَأْنٍ مِنْ شَأْنِي وَ كُلِّ زَمَانٍ مِنْ زَمَانِي، فَأَنْتَ عِنْدِي مَحْمُودٌ، وَ صَنِيعُكَ لَدَيَّ مَبْرُورٌ.
تَحْمَدُكَ نَفْسِي وَ لِسَانِي وَ عَقْلِي، حَمْداً يَبْلُغُ الْوَفَاءَ وَ حَقِيقَةَ الشُّكْرِ، حَمْداً يَكُونُ مَبْلَغَ رِضَاكَ عَنِّي، فَنَجِّنِي مِنْ سُخْطِكَ.
يَا كَهْفِي حِينَ تُعْيِينِي الْمَذَاهِبُ وَ يَا مُقِيلِي عَثْرَتِي، فَلَوْ لَا سَتْرُكَ عَوْرَتِي لَكُنْتُ مِنَ الْمَفْضُوحِينَ، وَ يَا مُؤَيِّدِي بِالنَّصْرِ، فَلَوْ لَا نَصْرُكَ إِيَّايَ لَكُنْتُ مِنَ الْمَغْلُوبِينَ، وَ يَا مَنْ وَضَعَتْ لَهُ الْمُلُوكُ نِيرَ الْمَذَلَّةِ عَلَى أَعْنَاقِهَا، فَهُمْ مِنْ سَطَوَاتِهِ خَائِفُونَ، وَ يَا أَهْلَ التَّقْوَى، وَ يَا مَنْ «لَهُ الْأَسْماءُ الْحُسْنى»، أَسْأَلُكَ أَنْ تَعْفُوَ عَنِّي، وَ تَغْفِرَ لِي فَلَسْتُ بَرِيئاً فَأَعْتَذِرَ، وَ لَا بِذِي قُوَّةٍ فَأَنْتَصِرَ، وَ لَا مَفَرَّ لِي فَأَفِرَّ.
وَ أَسْتَقِيلُكَ عَثَرَاتِي، وَ أَتَنَصَّلُ إِلَيْكَ مِنْ ذُنُوبِيَ الَّتِي قَدْ أَوْبَقَتْنِي، وَ أَحَاطَتْ بِي فَأَهْلَكَتْنِي، مِنْهَا فَرَرْتُ إِلَيْكَ- رَبِّ- تَائِباً فَتُبْ عَلَيَّ، مُتَعَوِّذاً فَأَعِذْنِي، مُسْتَجِيراً فَلَا تَخْذُلْنِي، سَائِلًا فَلَا تَحْرِمْنِي مُعْتَصِماً فَلَا تُسْلِمْنِي، دَاعِياً فَلَا تَرُدَّنِي خَائِباً.
دَعَوْتُكَ- يَا رَبِّ- مِسْكِيناً، مُسْتَكِيناً، مُشْفِقاً، خَائِفاً، وَجِلًا، فَقِيراً، مُضْطَرّاً إِلَيْكَ.
أَشْكُو إِلَيْكَ يَا إِلَهِي ضَعْفَ نَفْسِي عَنِ الْمُسَارَعَةِ فِيمَا وَعَدْتَهُ أَوْلِيَاءَكَ، وَ الْمُجَانَبَةِ عَمَّا حَذَّرْتَهُ أَعْدَاءَكَ، وَ كَثْرَةَ هُمُومِي، وَ وَسْوَسَةَ نَفْسِي.
إِلَهِي لَمْ تَفْضَحْنِي بِسَرِيرَتِي، وَ لَمْ تُهْلِكْنِي بِجَرِيرَتِي، أَدْعُوكَ فَتُجِيبُنِي وَ إِنْ كُنْتُ بَطِيئاً حِينَ تَدْعُونِي، وَ أَسْأَلُكَ كُلَّمَا شِئْتُ مِنْ حَوَائِجِي، وَ حَيْثُ مَا كُنْتُ وَضَعْتُ عِنْدَكَ سِرِّي، فَلَا أَدْعُو سِوَاكَ، وَ لَا أَرْجُو غَيْرَكَ
لَبَّيْكَ لَبَّيْكَ، تَسْمَعُ مَنْ شَكَا إِلَيْكَ، وَ تَلْقَى مَنْ تَوَكَّلَ عَلَيْكَ، وَ تُخَلِّصُ مَنِ اعْتَصَمَ بِكَ، وَ تُفَرِّجُ عَمَّنْ لَاذَ بِكَ.
إِلَهِي فَلَا تَحْرِمْنِي خَيْرَ الْآخِرَةِ وَ الْأُولَى لِقِلَّةِ شُكْرِي، وَ اغْفِرْ لِي مَا تَعْلَمُ مِنْ ذُنُوبِي.
إِنْ تُعَذِّبْ فَأَنَا الظَّالِمُ الْمُفَرِّطُ الْمُضَيِّعُ الْآثِمُ الْمُقَصِّرُ الْمُضَجِّعُ الْمُغْفِلُ حَظَّ نَفْسِي، وَ إِنْ تَغْفِرْ فَأَنْتَ أَرْحَمُ الرَّاحِمِينَ.
तज़र्रोअ व तज़ल्लुल से संबंधित हज़रत की दुआ
हे परमेश्वर! मैं तुझे धन्यवाद देता हूं और तेरे धन्यवाद का पात्र हैं। मुझ पर आपकी दयालुता और भलाई के लिए, मुझ पर आपके आशीर्वाद की प्रचुरता के लिए, और मुझे दिए गए आपके महान उपहार के लिए धन्यवाद। तेरी दया के लिए धन्यवाद, जिसके लिए तूने मुझे ऊंचा किया है, और तेरी नेमत के लिए, जो तूने मुझे प्रचुरता से प्रदान की है। तूने मुझ पर इतना उपकार किया है कि मैं थक गया हूँ और तेरा आभार व्यक्त करने में असमर्थ हूँ।
और यदि मुझ पर तेरी दया न होती और मेरे जीवन की भूमि पर तेरी प्रचुर कृपा न होती, तो मैं इससे अपना हिस्सा प्राप्त नहीं कर पाता और अपने अस्तित्व को सुधार नहीं पाता। यह तू ही थी, जिसके बिना किसी प्रस्तावना के, मुझ पर अपनी दया का परिचय दिया, और मुझे मेरे सभी कार्यों में पर्याप्तता और आवश्यकता से मुक्ति प्रदान की, और तूने मुझ से विपत्ति के कष्ट और कठिनाई को दूर किया, और तूने मुझ पर भयानक भाग्य आने से रोका।
हे पालन हार! तूने मुझ पर से कितनी प्राणघातक विपत्तियाँ टाली हैं, और तूने मुझ पर कितने प्रचुर नेमते दी हैं, और तूने अपनी उपस्थिति से मुझे कितनी उत्तम अच्छी चीज़ें प्रदान की हैं!
तू ही तो हैं जिसने मेरी ज़रूरत और निराशा के समय में मेरी दुआ का उत्तर दिया; और जब मैं पाप के घातक जाल में गिर गया, तो तूने मेरे गिरने को अनदेखा कर दिया; और तूने मेरे हुक़ूक़ लौटा दिये, जो मेरे शत्रुओं ने बल और अत्याचार से मुझसे छीन लिये थे।
हे पालन हार! जब मैं तेरे सामने भीख मांगने के लिए खड़ा था, तो मैंने तुझे कंजूस नहीं पाया; और जब मैंने तुझे पुकारा, तो मैंने तुझे तनावग्रस्त; बल्कि मैंने पाया कि तू मेरी दुआओं का सुननेवाला और मेरी अभिलाषाओं को पूरा करनेवाला है; और मैंने अपने जीवन के प्रत्येक चरण में, हर अवस्था में, मुझ पर तेरी प्रचुर और पूर्ण कृपा देखी है। मैं तेरी हम्द व सना करता हूँ; और तेरी अच्छाई मेरे लिए कृतज्ञता और धन्यवाद का कारण है।
मेरी आत्मा, जीभ और बुद्धि विवेक तेरी हम्द व सना करते हैं; प्रशंसा जो पूर्णता और कृतज्ञता की सच्चाई के दायरे तक पहुँचती है; वह स्तुति जो मेरे प्रति तेरी परम संतुष्टि के शिखर पर हो; इसलिए मुझे अपने क्रोध से बचा।
हे मेरे शरणस्थल, जब विभिन्न और अप्रासंगिक मार्ग मुझे थका देते हैं और परेशान करते हैं। हे मेरी गलतियों को क्षमा करने वाले; यदि तेरी क्षमा न होती तो मैं भी अपमानित लोगों में शामिल होता। हे मेरी विजय और सहायता के प्रदाता, यदि तेरी सहायता न होती तो मैं भी पराजितों में शामिल होता। ऐ तू जो उसके सामने अपनी गर्दनों पर अपमान का जुआ डालते हो, और उसकी यातनाओं और उकाबों से डरते हो! हे धर्मपरायण! हे सर्वोत्तम नाम उसी के हैं! मैं तुझसे क्षमा मांगता हूं और मुझे क्षमा करने के लिए कहता हूं; मैं इतना निर्दोष नहीं कि मुझे माफ किया जा सके; मैं जीत हासिल करने के लिए पर्याप्त मजबूत नहीं हूं; मेरे पास भागने के लिए कोई जगह नहीं है।
मैं तुझ से अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगता हूं; मैं उन पापों से घृणा करता हूँ जिन्होंने मुझे अपमान में डाल दिया है, मेरे पैरों को जकड़ लिया है, और मुझे विनाश की स्थिति में ला खड़ा किया है। मेरे परवरदिगार! मैं अपने सारे पापों से पश्चाताप और प्रायश्चित करके तेरे पास आया हूँ; अतः मेरा पश्चाताप स्वीकार कर। मैं एक शरणार्थी हूं! मुझे आश्रय दे। मैं सुरक्षित रहना चाहता हूं, मुझे मत छोड़। मैं भिखारी हूं, वंचित न कर, मेरा हाथ पकड़ छोड़ना मत। मुझे यह चाहिए, मैं हताश हूं, इसे वापस मत कर।
हे मेरे परमात्मा! जब मैं दरिद्र, असहाय, भयभीत, निराश्रित और व्यथित हूँ, तब मैं तेरे द्वार पर आया हूँ; मैं तुझे चाहता हूं।
हे मेरे परमेशवर ! अपनी दुर्बलता के कारण मैं तेरे मित्रों से किये गये वचन को शीघ्रता से पूरा नहीं कर सकता; और मैं उन बातों से दूर रहूंगा जिनके विषय में तूने अपने शत्रुओं को चेतावनी दी थी; और मैं तुझ से अपने दुःख और अपनी आत्मा के प्रलोभन के बारे में शिकायत करता हूँ।
हे अल्लाह ! मेरे मन की कुरूपता के कारण मुझे लज्जित न कर, और मेरे पाप के कारण मेरा विनाश न कर। मैं तुझे पुकारता हूं और तू मुझे उत्तर देता है; यद्यपि जब तू मुझे पुकारते हो तो मैं तुम्हें उत्तर देने में देर करता हूँ। मुझे जो भी चाहिए, मैं तुझसे मांगता हूं; और मैं जहां भी और जिस भी स्थिति में रहूंगा, अपना रहस्य तुझे सौंप दूंगा। मैं तेरे अतिरिक्त किसी को नहीं पुकारता, और तेरे अतिरिक्त मुझे किसी से कोई आशा नहीं है।
मेरे कान तेरी आज्ञा मे लगे है; तू किसी ऐसे व्यक्ति की शिकायत सुनता हैं जो तुझ से शिकायत करता है; और तू उन लोगों की ओर तत्पर रहता है जो तेरे प्रताप पर भरोसा रखता हैं; और जो कोई तेरी दया की गोद में आ जाता है, तू उसे दुःख और पीड़ा से मुक्त कर देता है; और जो कोई तेरी शरण में आये, तू उसका दुःख और शोक दूर कर देगा।
हे अल्लाह ! मेरी थोड़ी सी कृतज्ञता के कारण मुझे इस लोक और परलोक की भलाई से वंचित न कर; और मेरे विषय में जो पाप तू जानता है, उन्हें क्षमा कर दे।
यदि तू मुझे दण्ड देंगा, तो मैं वही अत्याचारी, वही वायु के सामने झुकने वाला, वही विनाश करने वाला, वही पाप करने वाला, वही उपेक्षा करने वाला, वही दुर्बल बुद्धि वाला, वही भोला और मूर्ख हो जाऊंगा जो तूने भाग्य और लाभ के संबंध में ऐसा करता है। और यदि तू मुझे क्षमा कर दे, तो तू अत्यन्त दयावान है!
फ़ुटनोट
- ↑ अंसारीयान, दयारे आशेक़ान, 1372 शम्सी, भाग 7, पेज 607
- ↑ ममदूही, शुहूद व शनाख़त, 1388 शम्सी, भाग 4, पेज 311
- ↑ ममदूही, शुहूद व शनाख़त, 1388 शम्सी, भाग 4, पेज 311-336 शरह फ़राज़हाए दुआ पंजाहो यकुम अज़ साइट इरफ़ान
- ↑ ममदूही, शुहूद व शनाख़त, 1388 शम्सी, भाग 4, पेज 307-336
- ↑ फ़हरि, शरह व तफसीर सहीफ़ा सज्जादिया, 1388 शम्सी, भाग 3, पेज 547-552
- ↑ मदनी शिराज़ी, रियाज़ उस सालेकीन, 1435 हिजरी, भाग 7, पेज 333-364
- ↑ मुग़्निया, फ़ी ज़िलाल अल सहीफ़ा, 1428 हिजरी , पेज 641-646
- ↑ दाराबी, रियाज़ उल आरेफ़ीन, 1379 शम्सी, पेज 707-715
- ↑ फ़ज़्लुल्लाह, आफ़ाक़ अल रूह, 1420 शम्सी, भाग 2, पेज 601-613
- ↑ फ़ैज़ काशानी, तालीक़ात अलस सहीफ़ा अल-सज्जादिया, 1407 हिजरी, पेज 102-103
- ↑ जज़ाएरी, शरह अल-सहीफ़ा अल-सज्जादिया, 1402 हिजरी, पेज 288-292
स्रोत
- अंसारीयान, हुसैन, दयारे आशेक़ान, तफ़सीर जामेअ सहीफ़ा सज्जादिया, तेहरान, पयाम ए आज़ादी, 1372 शम्सी।
- जज़ाएरी, इज़्ज़ुद्दीन, शरह अल-सहीफ़ा अल-सज्जादिया, बैरूत, दार उत तआरुफ लिलमतबूआत, 1402 हिजरी।
- दाराबी, मुहम्मद बिन मुहम्मद, रियाज़ अल आरेफ़ीन फ़ी शरह अल सहीफ़ा सज्जादिया, शोधः हुसैन दरगाही, तेहरान, उस्वा प्रकाशन, 1379 शम्सी।
- फ़ज़्लुल्लाह, सय्यद मुहम्मद हुसैन, आफ़ाक़ अल-रूह, बैरूत, दार उल मालिक, 1420 हिजरी।
- फ़हरी, सय्यद अहमद, शरह व तरजुमा सहीफ़ा सज्जादिया, तेहरान, उस्वा प्रकाशन, 1388 शम्सी।
- फ़ैज़ काशानी, मुहम्मद बिन मुर्तज़ा, तालीक़ात अलस सहीफ़ा अल-सज्जादिया, तेहरान, मोअस्सेसा अल बुहूस वत तहक़ीक़ात अल सक़ाफ़ीया, 1407 हिजरी।
- मदनी शिराज़ी, सय्यद अली ख़ान, रियाज उस-सालेकीन फ़ी शरह सहीफ़ा तुस साजेदीन, क़ुम, मोअस्सेसा अल-नश्र उल-इस्लामी, 1435 हिजरी।
- ममदूही किरमानशाही, हसन, शुहूद व शनाख़्त, तरजुमा व शरह सहीफ़ा सज्जादिया, आयतुल्लाह जवादी आमोली का परिचय, क़ुम, बूस्तान किताब, 1388 शम्सी।
- मुग़्निया, मुहम्मद जवाद, फ़ी ज़िलाल अल-सहीफ़ा सज्जादिया, क़ुम, दार उल किताब उल इस्लामी, 1428 हिजरी।