सहिफ़ा सज्जादिया की पंद्रहवीं दुआ

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सहीफ़ा सज्जादिया की पंद्रहवीं
1145 हिजरी में लिखी गई अहमद नयरेज़ी की लिपि में लिखी गई साहिफ़ा सज्जादियाह की पांडुलिपि
1145 हिजरी में लिखी गई अहमद नयरेज़ी की लिपि में लिखी गई साहिफ़ा सज्जादियाह की पांडुलिपि
विषयबीमारियाँ, तकलीफ़ें और समस्याएँ आने के समय की दुआ • बीमारी के उखरवी प्रभाव
प्रभावी/अप्रभावीप्रभावी
किस से नक़्ल हुईइमाम सज्जाद (अ)
कथावाचकमुतावक्किल बिन हारुन
शिया स्रोतसहीफ़ा सज्जादिया


सहीफ़ा सज्जादिया की पंद्रहवीं (अरबीःالدعاء الخامس عشر من الصحيفة السجادية) दुआ इमाम सज्जाद (अ) की प्रसिद्ध दुआओं में से एक है, जिसे आप बीमारी या संकट के समय पढ़ते थे। इस दुआ में हज़रत सज्जाद (अ) स्वास्थ्य के आशीर्वाद के लिए या बीमारी के दौरान ईश्वर को धन्यवाद देते हैं और उखरवी प्रभावो जैसे पापों के साफ होने का संकेत है। आप (अ) बीमारी को पश्चाताप के लिए एक चेतावनी और ईश्वर में विश्वास को सभी बंद दरवाजों की कुंजी मानता है।

पंद्रहवीं दुआ का वर्णन सहीफ़ा सज्जादिया की व्याख्याओ मे किया गया है, जैसे कि फ़ारसी में हुसैन अंसारियान द्वारा दयारे आशेक़ान, हसन ममदूही किरमानशही की शुहूद व शनाख़्त और अरबी भाषा मे सय्यद अली खान मदनी द्वारा लिखित रियाज़ उस-सालेकीन फ़ी शरह सहीफ़ा सय्यदुस साजेदीन है।

शिक्षाएँ

सहीफ़ा सज्जादिया की 15वीं दुआ का मुख्य विषय रोग, असुविधाएँ और समस्याएँ होने पर दुआ करना है; निस्संदेह, इस दुआ में इमाम सज्जाद (अ) का अधिकांश ध्यान बीमारी, विपत्ति और विपत्ति के बाद के जीवन और आध्यात्मिक प्रभावों पर है[१] पंद्रहवीं दुआ की शिक्षाएँ, जो इमाम सज्जाद द्वारा सात छंदों[२] में बयान की गई हैं इस प्रकार हैं:

  • स्वास्थ्य और बीमारी दोनों के लिए ईश्वर को धन्यवाद देना (स्वास्थ्य और बीमारी को समान रूप से देखना)
  • स्वास्थ्य के आशीर्वाद की महिमा और बीमारी सहन करने की सुखदता
  • इबादत में शक्ति और प्रसन्नता की नेमत पर धन्यवाद (अल्लाह की खुशनूदी की प्राप्ति के लिए स्वास्थ से लाभ उठाना)
  • बीमारी वह कारक है जो पापों को कम करती है और लापरवाही से रोकती है
  • पश्चाताप और बीमारी से पाप के प्रभाव मिट जाते है
  • रोग के प्रभाव और आशीर्वाद पर ध्यान देना
  • बीमारी पश्चाताप के लिए एक चेतावनी है
  • बीमारी को सहने करने के लिए जज़ा की प्राप्ति और उस जज़ा का फ़रिश्तो द्वारा लिखा जानाना
  • बीमारी के लिए ईश्वर की जज़ा उसकी कृपा और दया पर आधारित है।[३]
  • बीमारी के समय स्वास्थ्य की कदर करना
  • ईश्वर के आदेशों को लोकप्रिय बनाने और कठिनाइयों को आसान बनाने की चाहत[४]
  • ईश्वर पर भरोसा रखना सभी बंद दरवाजों की कुंजी है
  • अल्लाह की नेमत बिना किसी मिन्नत के बीमारी या दुःख और संकट के समय हज़रत की प्रार्थना है[५]

व्याख्याएँ

सहीफ़ा सज्जादिया की शरहो मे उसकी पंद्रहवी दुआ का वर्णन किया गया है। हुसैन अंसारियान ने दयारे आशेक़ान[६] मे इस दुआ की पूर्ण व्याख्या की है। इसी तरह मुहम्मद हसन ममदूही किरमानशाही की किताब शुहूद व शनाख़त[७] सय्यद अहमद फ़हरि की किताब शरह व तरजुमा सहीफ़ा सज्जादिया[८] का फ़ारसी भाषा मे वर्णन किया गया है।

इसके अलावा सहीफ़ा सज्जादिया की पंद्रहवीं दुआ सय्यद अली ख़ान मदनी की किताब रियाज़ उस-सालेकीन,[९] मुहम्मद जवाद मुग़निया की किताब फ़ी ज़िलाल अल-सहीफ़ा अल-सज्जादिया,[१०] मुहम्मद बिन मुहम्मद दाराबी की किताब रियाज़ उल-आरेफ़ीन[११] सय्यद मुहम्मद हुसैन फ़ज़लुल्लाह[१२] की किताब आफ़ाक़ अल-रूह मे इस दुआ की अरबी भाषा मे व्याख्या लिखी गई है। इस दुआ के सार्वजनिक मफहूम और शब्दिक अर्थ को फ़ैज काशानी की किताब तालीक़ात अलस सहीफ़ा अल-सज्जादिया[१३] और इज़्ज़ुद्दीन जज़ाएरी की किताब शरह सहीफ़ा सज्जादिया मे विस्तृत रूप से वर्णन किया गया है।[१४]

पाठ और अनुवाद

सहीफ़ा सज्जादिया की पंद्रहवीं दुआ
दुआ का हिंदी उच्चारण अनुवाद दुआ का अरबी उच्चारण
वकाना मिन दुआएही अलैहिस सलामो इज़ा मरज़ा ओ नज़ला बेहि करबुन ओ बलीयतिन बीमारी या दुःख और संकट के समय हज़रत की दुआ وَ كَانَ مِنْ دُعَائِهِ عَلَيْهِ السَّلَامُ إِذَا مَرِضَ أَوْ نَزَلَ بِهِ كَرْبٌ أَوْ بَلِيِّةٌ
अल्लाहुम्मा लकल हम्दो अला मा लम अज़ल अतसर्ऱफ़ो फीहे मिन सलामते बदनी, व लकल हमदो अला मा अहदसता बी मिन इल्लतिन फी जसदी हे पालनहार! जिस शरीर में मैं सदैव रहता था, उसके स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए तेरी स्तुति हो, और तेरे आदेश से अब मेरे शरीर में जो रोग उत्पन्न हुआ है, उसके लिए भी तेरी स्तुति हो। اللَّهُمَّ لَكَ الْحَمْدُ عَلَى مَا لَمْ أَزَلْ أَتَصَرَّفُ فِيهِ مِنْ سَلَامَةِ بَدَنِي ، وَ لَكَ الْحَمْدُ عَلَى مَا أَحْدَثْتَ بِي مِنْ عِلَّةٍ فِي جَسَدِي
फ़मा अदरा, या इलाही, अय्यो हालैने अहक़्क़ा बिश्शुक्रे लका, व अय्यो वक़्तैने औला बिहम्दे लका हे परमात्मा! मैं नहीं जानता कि इन दोनों स्थितियों में से कौन सी स्थिति अधिक धन्यवाद के योग्य है और इन दोनों में से कौन सी स्थिति तेरी प्रशंसा के अधिक योग्य है। فَمَا أَدْرِي ، يَا إِلَهِي ، أَيُّ الْحَالَيْنِ أَحَقُّ بِالشُّكْرِ لَكَ ، وَ أَيُّ الْوَقْتَيْنِ أَوْلَى بِالْحَمْدِ لَكَ
आ वक़्तुस सेहतिल लजी हन्नातनी फ़ीहत तय्येबाते रिज़्क़ेका, व नश्शत्ततनी बेहा लेइब्तेग़ाए मरज़ातेका व फ़ज्लेका, व क़व्वैतनी मअहा अला मा वफ़्फ़कततनी लहू मिन ताअतेका स्वास्थ्य के क्षणों में, जिसमें तूने अपने शुद्ध आहार को मेरे लिए सुखद बना दिया और मेरे दिल में तेरी खुशी और अनुग्रह और कृपा पाने की इच्छा पैदा की और इसके साथ ही, तूने अपनी आज्ञा मानने की अनुमति देकर, मुझे अपने पद से मुक्त कर दिया इसकी शक्ति दी? أَ وَقْتُ الصِّحَّةِ الَّتِي هَنَّأْتَنِي فِيهَا طَيِّبَاتِ رِزْقِكَ ، وَ نَشَّطْتَنِي بِهَا لِابْتِغَاءِ مَرْضَاتِكَ وَ فَضْلِكَ ، وَ قَوَّيْتَنِي مَعَهَا عَلَى مَا وَفَّقْتَنِي لَهُ مِنْ طَاعَتِكَ
अम वक़्तुल इल्लतिल लती मह्हसतनी बेहा, वन्नेअमिल लतित हफतनी बेहा, तखफ़ीफ़न लेमा तक़ोला बेहि अलय्या ज़हरि मिनल खतियाते, व तत्हीरन लेमन असमतो फ़ीहे मिनस सय्येआते, व तन्बीहन लेतनावोलित तौबते, व तज़कीरन लेमहविल हौबते बेतक़दीमिन नेअमते या इस बीमारी का समय. जिसके द्वारा उसने मेरे पापों को दूर कर दिया और मुझे आशीषों का उपहार दिया, ताकि उन पापों का बोझ हल्का हो जाए जो मेरी पीठ पर भारी बोझ बन गए हैं, और मुझे उन बुराइयों से शुद्ध कर जिनमें मैं डूब गया हूं, और मुझे पश्चाताप करने की चेतावनी दी, और अतीत का पश्चाताप क्या आशीर्वाद की याद दिलाने से अविश्वास (आशीर्वाद में अविश्वास) का पाप मिट सकता है? أَمْ وَقْتُ الْعِلَّةِ الَّتِي مَحَّصْتَنِي بِهَا ، وَ النِّعَمِ الَّتِي أَتْحَفْتَنِي بِهَا ، تَخْفِيفاً لِمَا ثَقُلَ بِهِ عَلَيَّ ظَهْرِي مِنَ الْخَطِيئَاتِ ، وَ تَطْهِيراً لِمَا انْغَمَسْتُ فِيهِ مِنَ السَّيِّئَاتِ ، وَ تَنْبِيهاً لِتَنَاوُلِ التَّوْبَةِ ، وَ تَذْكِيراً لِمحْوِ الْحَوْبَةِ بِقَدِيمِ النِّعْمَةِ
व फ़ी ख़ेलाले ज़ालेका मा कतबा लियल कातेबाने मिन ज़क्किल आमाले, मा ला कल्बन फकर फीहे, वला लेसानन नतक़ा बेहि, वला जारेहतन तकल्लफ़त्हो, बल इफ़ज़ालन मिन्का अलय्या, व एहसानन मिन सनीएका एलय्या और बीमारी के दौरान भी मुंशी मेरे लिए वो नेक काम लिखते रहे जिनकी न मेरे दिल में कल्पना थी, न ज़बान पर आते थे, न किसी अंग से मेरी तकलीफ़ दूर होती थी। ये आपकी ही मेहरबानी थी जो मेरे साथ हुई وَ فِي خِلَالِ ذَلِكَ مَا كَتَبَ لِيَ الْكَاتِبَانِ مِنْ زَكِيِّ الْأَعْمَالِ ، مَا لَا قَلْبٌ فَكَّرَ فِيهِ ، وَ لَا لِسَانٌ نَطَقَ بِهِ ، وَ لَا جَارِحَةٌ تَكَلَّفَتْهُ ، بَلْ إِفْضَالًا مِنْكَ عَلَيَّ ، وَ إِحْسَاناً مِنْ صَنِيعِكَ إِلَيَّ
अल्लाहुम्मा फ़सल्ले अला मुहम्मदिन वा आलेहि, व हब्बिब इलय्या मा रज़ीता ली, व यस्सिरली मा अहललता बी, व तह्हिरनी मिन दनसे मा असलफ़तो, व अमहो अन्नी शर्रा मा कद्दमतो, व औजिदनी हलावतल आफ़ीयते, व अज़िक़नी बरदस सलामते, वजअल मखरजी अन इल्लती ऐला अफ़वेका, व मुताहव्वली अन सरअती इला तजावोज़ेका, व खलासी मिन करबी ऐला ज़ौजेका व सलामती मिन हाज़ेहिश शिद्दते इला फ़रजेका हे परमेश्वर! मुहम्मद और उनके परिवार पर रहमत नाज़िल कर, और जो कुछ भी तूने मेरे लिए पसंद किया है उसे मेरी दृष्टि में प्रिय बना, और मुझ पर जो मुसीबत डाली है उसे कम कर, और मुझे मेरे पिछले पापों के दाग से मुक्त कर, मेरी बुराइयों को नष्ट कर और मुझे आनंद दे स्वास्थ्य का सुख और स्वास्थ्य का आनंद और मुझे इस रोग से मुक्त कर और मुझे अपनी क्षमा की ओर ले आ और मुझे इस अवस्था से क्षमा और दया की ओर मोड़ और इस चिंता से छुटकारा दिलाकर अपने आराम तक पहुँचा और विस्तार की मंजिल तक पहुँचा और इस तीव्रता और कठोरता को दूर करके विस्तार कर। اللَّهُمَّ فَصَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ ، وَ حَبِّبْ إِلَيَّ مَا رَضِيتَ لِي ، وَ يَسِّرْ لِي مَا أَحْلَلْتَ بِي ، وَ طَهِّرْنِي مِنْ دَنَسِ مَا أَسْلَفْتُ ، وَ امْحُ عَنِّي شَرَّ مَا قَدَّمْتُ ، وَ أَوْجِدْنِي حَلَاوَةَ الْعَافِيَةِ ، وَ أَذِقْنِي بَرْدَ السَّلَامَةِ ، وَ اجْعَلْ مَخْرَجِي عَنْ عِلَّتِي إِلَي عَفْوِكَ ، وَ مُتَحَوَّلِي عَنْ صَرْعَتِي إِلَى تَجَاوُزِكَ ، وَ خَلَاصِي مِنْ كَرْبِي إِلَى رَوْحِكَ ، و سَلَامَتِي مِنْ هَذِهِ الشِّدَّةِ إِلَى فَرَجِكَ
इन्नकल मुतफ़ज़्ज़लो बिल एहसानिल मुततव्वलो बिलइमतेनान, अल वह्हाबुल करीमो, जुल जलाले वल इकराम क्योंकि तू ही दाता और अनमोल आशीषों का दाता है, और तू ही क्षमा और कृपा का स्वामी और महानता और महिमा का स्वामी है। إِنَّكَ الْمُتَفَضِّلُ بِالْإِحْسَانِ ، الْمُتَطَوِّلُ بِالِامْتِنَانِ ، الْوَهَّابُ الْكَرِيمُ ، ذُو الْجَلَالِ وَ الْإِكْرَامِ

फ़ुटनोट

  1. ममदूही, शुहूद व शनाख़त, 1388 शम्सी, भाग 2, पेज 34
  2. तरजुमा व शरह दुआ ए चहारदहुम सहीफ़ा सज्जादिया, साइट इरफ़ान
  3. दुआ का पाठ
  4. दुआ का पाठ
  5. अंसारियान, दयारे आशेक़ान, 1372 शम्सी, भाग 5, पेज 295-363; ममदूही, शुहूद व शनाख़त, 1388 शम्सी, भाग 2, पेज 57-74
  6. अंसारियान, दयारे आशेक़ान, 1371 शम्सी, भाग 5, पेज 295-363
  7. ममदूही, शुहूद व शनाख़त, 1388 शम्सी, भाग 2, पेज 57-74
  8. फ़हरि, शरह व तफसीर सहीफ़ा सज्जादिया, 1388 शम्सी, भाग 2, पेज 109-114
  9. मदनी शिराज़ी, रियाज़ उस सालेकीन, 1435 हिजरी, भाग 3, पेज 75-100
  10. मुग़निया, फ़ी ज़िलाल अल सहीफ़ा, 1428 , पेज 203-208
  11. दाराबी, रियाज़ उल आरेफ़ीन, 1379 शम्सी, पेज 183-192
  12. फ़ज़्लुल्लाह, आफ़ाक़ अल रूह, 1420 शम्सी, भाग 1, पेज 351-360
  13. फ़ैज़ काशानी, तालीक़ात अलस सहीफ़ा अल-सज्जादिया, 1407 हिजरी, पेज 39-41
  14. जज़ाएरी, शरह अल-सहीफ़ा अल-सज्जादिया, 1402 हिजरी, पेज 94-95


स्रोत

  • अंसारियान, हुसैन, दयारे आशेकान, तफसीर जामेअ सहीफ़ा सज्जादिया, तेहरान, पयाम आज़ादी, 1372 शम्सी
  • जज़ाएरी, इज़्ज़ुद्दीन, शरह अल-सहीफ़ा अल-सज्जादिया, बैरूत, दार उत तआरुफ लिलमतबूआत, 1402 हिजरी
  • दाराबी, मुहम्मद बिन मुहम्मद, रियाज़ अल आरेफ़ीन फ़ी शरह अल सहीफ़ा सज्जादिया, शोधः हुसैन दरगाही, तेहरान, नशर उस्वा, 1379 शम्सी
  • फ़ज़्लुल्लाह, सय्यद मुहम्मद हुसैन, आफ़ाक़ अल-रूह, बैरूत, दार उल मालिक, 1420 हिजरी
  • फ़हरि, सय्यद अहमद, शरह व तरजुमा सहीफ़ा सज्जादिया, तेहरान, उस्वा, 1388 शम्सी
  • फ़ैज़ काशानी, मुहम्मद बिन मुर्तज़ा, तालीक़ात अलस सहीफ़ा अल-सज्जादिया, तेहरान, मोअस्सेसा अल बुहूस वत तहक़ीक़ात अल सक़ाफ़ीया, 1407 हिजरी
  • मदनी शिराज़ी, सय्यद अली ख़ान, रियाज उस-सालेकीन फ़ी शरह सहीफ़ा तुस साजेदीन, क़ुम, मोअस्सेसा अल-नश्र उल-इस्लामी, 1435 हिजरी
  • मुग़निया, मुहम्मद जवाद, फ़ी ज़िलाल अल-सहीफ़ा सज्जादिया, क़ुम, दार उल किताब उल इस्लामी, 1428 हिजरी
  • ममदूही किरमानशाही, हसन, शुहूद व शनाख़्त, तरजुमा व शरह सहीफ़ा सज्जादिया, मुकद्मा आयतुल्लाह जवादी आमोली, क़ुम, बूस्तान किताब, 1388 शम्सी