सहीफ़ा सज्जादिया की चवालीसवीं दुआ
शाबान 1102 में अब्दुल्लाह यज़्दी द्वारा लिखित सहीफ़ा सज्जादिया की पांडुलिपि | |
अन्य नाम | भलाई का आग्रह करने की दुआ |
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विषय | रमज़ान का महीना आने पर पढ़ी जाने वाली दुआ, रमज़ान के महीने में ईमान वालों के कर्तव्य, रमज़ान के महीने की विशेषताएँ |
प्रभावी/अप्रभावी | प्रभावी |
किस से नक़्ल हुई | इमाम सज्जाद (अ) |
कथावाचक | मुतवक्किल बिन हारुन |
शिया स्रोत | सहीफ़ा सज्जादिया |
सहीफ़ा सज्जादिया की चावलीसवीं दुआ (अरबीःالدعاء الرابع والأربعون من الصحيفة السجادية ) इमाम सज्जाद (अ) की प्रसिद्ध दुआओं में से एक है जिसे आप रमज़ान का महीने आने पर पढ़ा करते थे। इस दुआ में इमाम सज्जाद (अ) रमजान के महीने के दौरान ईमान वालो के कर्तव्यों और हक़ीक़ी रोज़े की शर्तों को समझाते हैं, और ईश्वर से शैतान की बुराई से रक्षा करने की दुआ करते हैं।
इस दुआ की शुरुआत में हज़रत ज़ैनु आबेदीन अपने बन्दों को कृतज्ञता का दर्जा देने के लिए ईश्वर को धन्यवाद देते हैं और ईश्वर से अपने पापों को धोने और धर्मी के दर्जे तक पहुंचने के लिए दुआ करते हैं।
सहीफ़ा सज्जादिया की व्याख्याओ मे चालीसवीं दुआ का वणर्न किया गया है, जैसे कि फ़ारसी में हुसैन अंसारीयान द्वारा दयारे आशेक़ान, हसन ममदूही किरमानशाही द्वारा शुहुद वा शनाख़्त, और मुहम्मद तक़ी मिस्बाह यज़्दी द्वारा सहबा ए हुज़ूर, और सय्यद अली खान मदनी द्वारा रियाज़ अल-सालेकीन अरबी भाषा मे है।
शिक्षाएँ
चालीसवीं दुआ सहीफ़ा सज्जादिया की दुआओं में से एक है जिसे इमाम सज्जाद (अ) रमज़ान की शुरुआत में पढ़ा करते थे। इस दुआ में, इमाम (अ) रमज़ान के महीने की खूबियों का उल्लेख करते हैं और इस महीने के दौरान आस्तिक के कर्तव्यों पर चर्चा करते हैं।[१] इस दुआ की शिक्षाएं इस प्रकार हैं:
- सेवकों को कृतज्ञता का दर्जा देने के लिए ईश्वर को धन्यवाद देना।
- शुक्र और बढ़े हुए आशीर्वाद के बीच विकासवादी संबंध
- नेक लोगों के लिए परमेश्वर का अच्छा प्रतिफल
- धर्म के आशीर्वाद से लाभ पाने के लिए ईश्वर की स्तुति करना
- रमज़ान ईश्वरीय अच्छाई और प्रसन्नता प्राप्त करने का महीना है।
- रमजान इबादत के लिए उठने का महीना है।
- रमज़ान के महीने के नाम: (अल्लाह का महीना, इस्लाम और समर्पण का महीना, पवित्रता का महीना, परीक्षण का महीना (उपवास के माध्यम से शुद्धिकरण और शुद्धि), इबादत के लिए उठने का महीना, क़ुरआन के नाज़िल होने का महीना)
- अन्य महीनों की तुलना में रमज़ान की श्रेष्ठता
- अन्य रातों की तुलना में शब ए क़द्र की श्रेष्ठता
- बंदो को शब ए क़द्र के स्थायी आशीर्वाद से लाभ मिलता है।
- रमज़ान की फ़ज़ीलत जानने का अनुरोध
- रमज़ान के महीने की सफलता के लिए दुआ
- रमज़ान के महीने में फ़ालतु बाते सुनने और फ़ालतु चीज़े देखने से बचने का अनुरोध
- हराम चीज़ों तक पहुँचने और हराम मार्ग पर कदम रखने से बचने का अनुरोध
- लुक्मा ए हराम से सुरक्षित रहने के लिए दुआ
- परमेश्वर की इच्छा और आज्ञा के अनुसार बोलने का अनुरोध
- पाखंड रहित और प्रसिद्धि की चाहत के बिना कार्य करने की दुआ
- रमज़ान के दौरान पाँच नमाज़ों के समय पर ध्यान देने का महत्व
- वाजिब नमाज़ों का दर्जा और प्रतिष्ठा प्राप्त करने वालों के उच्च पद
- रोज़ा रखने के अनुष्ठान और उसके नुकसान: बाहरी और आंतरिक शक्तियों पर नियंत्रण, शुद्ध इरादे, आदि।
- पवित्र कर्मों और पापों से मुक्ति के प्रकाश में फ़रिश्तों से उच्च पद प्राप्त करने की दुआ
- इस्लाम सभी प्राकृतिक मानवीय आवश्यकताओं को पूरा करता है।
- रमजान के महीने के दौरान वांछनीय नैतिक और सामाजिक रिश्ते: पड़ोसियों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखना, ख़ुम्स और ज़कात देकर संपत्ति को शुद्ध करना, दोस्तों और दुश्मनों की रक्षा करना और उन्हें क्षमा करना, दुश्मनों के प्रति सहिष्णुता आदि।
- एकेश्वरवाद में भटकाव से बचने के लिए ईश्वर की शरण में जाना
- संतों की गरिमा से लाभ पाने के लिए दुआ
- रमज़ान में सबसे अच्छे सेवक बनने की दुआ
- शैतान के धोखे से सुरक्षा के लिए दुआ
- ईश्वरीय क्षमा से लाभ पाने के लिए दुआ करना
- रमज़ान के पूरे महीने में इबादत और आज्ञाकारिता का अनुरोध
- रमज़ान के महीने के अंतिम दिन पापों के नाश के लिए दुआ
- रमजान के महीने में नरक में पड़े बहुत से लोगों की सज़ा माफ कर दी जाती है।
- रमज़ान के महीने में शैतान के प्रभुत्व से ईश्वर की शरण लें।
- रमज़ान की रातों और आखिरी दिनों में संवेदनशीलता
- रमज़ान के दिन और रात मानवीय कार्यों की गवाही देते हैं।
- रमज़ान के पवित्र महीने के बाद और पूरे वर्ष इबादत और सेवा जारी रखने का अनुरोध
- स्वर्ग प्राप्ति के लिए दुआ
- इस्लाम के पैग़म्बर (स) पर हर समय और हर परिस्थिति में रहमत का नुजूल हो।[२]
व्याख्याएँ

सहीफ़ा सज्जादिया की शरहो मे चालीसवीं दुआ का वर्णन किया गया है, जिसमें हुसैन अंसारियान की किताब दयारे आशेक़ान,[३] मोहम्मद हसन ममदूही किरमानशाही की किताब शुहुद वा शनाख्त,[४] और सय्यद अहमद फ़हरी की किताब फ़ारसी भाषा मे लिखित है।[५]
मोहम्मद तक़ी मिस्बाह यज़्दी की पुस्तक "सहबाए हुज़ूर" में इस दुआ की व्याख्या की गई है। यह पुस्तक इन दुआओ के रहस्यमय, भक्तिपूर्ण और नैतिक विषयों की व्याख्या करती है। इसके अलावा, रमज़ान के महीने की विशेषताएं, जैसे मार्गदर्शन, इबादत, दया, आशीर्वाद, क्षमा, पश्चाताप, खुशी, ज्ञान, पवित्रता, ईमानदारी, क़ुरआन का नाज़िल होना, इसमें शब ए क़द्र का अस्तित्व, दुआ, और रोज़ा, इमाम सज्जाद (अ) के दृष्टिकोण से जांच की गई है।[६]
अली करीमी जहरमी[७] की किताबहाए सीमाए रमज़ान सहीफ़ा सज्जादिया की चालीसवीं दुआ के साथ रमज़ान के विदा होने और सय्यद रज़ा बाक़िर मुवाहिदयान और अली बाक़री फ़र द्वरा सरौश रमज़ान (रमजान की शुरुआत और अंत में इमाम सज्जाद की दुआ पर एक टिप्पणी) लिखित है। ये दोनों किताबें रमज़ान के महीने के विभिन्न पहलुओं, ईद-उल-फ़ित्र की कुछ खूबियों और उस महीने से बाहर निकलने के तौर-तरीकों की जाँच करती हैं।[८]
सहीफ़ा सज्जादिया की चालीसवीं दुआ सय्यद अली खान मदनी की किताब रियाज अल सालेकीन[९] मुहम्मद जवाद मुग़्निया की फी ज़िलाल अल-सहीफ़ा सज्जादिया,[१०] मुहम्मद बिन जवाद दाराई की किताब रियाज़ अल आरेफ़ीन[११] और सय्यद मुहम्मद हुसैन फ़ज़्लुल्लाह की किताब आफ़ाक अल-रूह[१२] मे इसका वर्णन अरबी में किया गया है। इस दुआ के शब्दों को फ़ैज़ काशानी द्वारा तालीक़ात अल-सहीफ़ा सज्जादिया[१३] और इज़्ज़ुद्दीन अल-जज़ाइरी द्वारा लिखित शरह अलस सहीफ़ा अल सज्जादिया मे किया गया है।[१४]
चवालीसवीं दुआ का पाठ और अनुवाद
وَ كَانَ مِنْ دُعَائِهِ عَلَيْهِ السَّلَامُ إِذَا دَخَلَ شَهْرُ رَمَضَانَ
الْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي هَدَانَا لِحَمْدِهِ، وَ جَعَلَنَا مِنْ أَهْلِهِ لِنَكُونَ لِإِحْسَانِهِ مِنَ الشَّاكِرِينَ، وَ لِيَجْزِيَنَا عَلَى ذَلِكَ جَزَاءَ الْمُحْسِنِينَ
وَ الْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي حَبَانَا بِدِينِهِ، وَ اخْتَصَّنَا بِمِلَّتِهِ، وَ سَبَّلَنَا فِي سُبُلِ إِحْسَانِهِ لِنَسْلُكَهَا بِمَنِّهِ إِلَى رِضْوَانِهِ، حَمْداً يَتَقَبَّلُهُ مِنَّا، وَ يَرْضَى بِهِ عَنَّا
وَ الْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي جَعَلَ مِنْ تِلْكَ السُّبُلِ شَهْرَهُ شَهْرَ رَمَضَانَ، شَهْرَ الصِّيَامِ، وَ شَهْرَ الْإِسْلَامِ، وَ شَهْرَ الطَّهُورِ، وَ شَهْرَ التَّمْحِيصِ، وَ شَهْرَ الْقِيَامِ «الَّذِي أُنْزِلَ فِيهِ الْقُرْآنُ، هُدىً لِلنَّاسِ، وَ بَيِّناتٍ مِنَ الْهُدى وَ الْفُرْقانِ»
فَأَبَانَ فَضِيلَتَهُ عَلَى سَائِرِ الشُّهُورِ بِمَا جَعَلَ لَهُ مِنَ الْحُرُمَاتِ الْمَوْفُورَةِ، وَ الْفَضَائِلِ الْمَشْهُورَةِ، فَحَرَّمَ فِيهِ مَا أَحَلَّ فِي غَيْرِهِ إِعْظَاماً، وَ حَجَرَ فِيهِ الْمَطَاعِمَ وَ الْمَشَارِبَ إِكْرَاماً، وَ جَعَلَ لَهُ وَقْتاً بَيِّناً لَا يُجِيزُ- جَلَّ وَ عَزَّ- أَنْ يُقَدَّمَ قَبْلَهُ، وَ لَا يَقْبَلُ أَنْ يُؤَخَّرَ عَنْهُ.
ثُمَّ فَضَّلَ لَيْلَةً وَاحِدَةً مِنْ لَيَالِيهِ عَلَى لَيَالِي أَلْفِ شَهْرٍ، وَ سَمَّاهَا لَيْلَةَ الْقَدْرِ، «تَنَزَّلُ الْمَلائِكَةُ وَ الرُّوحُ فِيها بِإِذْنِ رَبِّهِمْ مِنْ كُلِّ أَمْرٍ» سَلامٌ دَائِمُ الْبَرَكَةِ إِلَى طُلُوعِ الْفَجْرِ عَلَى مَنْ يَشَاءُ مِنْ عِبَادِهِ بِمَا أَحْكَمَ مِنْ قَضَائِهِ.
اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ، وَ أَلْهِمْنَا مَعْرِفَةَ فَضْلِهِ وَ إِجْلَالَ حُرْمَتِهِ، وَ التَّحَفُّظَ مِمَّا حَظَرْتَ فِيهِ، وَ أَعِنَّا عَلَى صِيَامِهِ بِكَفِّ الْجَوَارِحِ عَنْ مَعَاصِيكَ، وَ اسْتِعْمَالِهَا فِيهِ بِمَا يُرْضِيكَ حَتَّى لَا نُصْغِيَ بِأَسْمَاعِنَا إِلَى لَغْوٍ، وَ لَا نُسْرِعَ بِأَبْصَارِنَا إِلَى لَهْ
وَ حَتَّى لَا نَبْسُطَ أَيْدِيَنَا إِلَى مَحْظُورٍ، وَ لَا نَخْطُوَ بِأَقْدَامِنَا إِلَى مَحْجُورٍ، وَ حَتَّى لَا تَعِيَ بُطُونُنَا إِلَّا مَا أَحْلَلْتَ، وَ لَا تَنْطِقَ أَلْسِنَتُنَا إِلَّا بِمَا مَثَّلْتَ، وَ لَا نَتَكَلَّفَ إِلَّا مَا يُدْنِي مِنْ ثَوَابِكَ، وَ لَا نَتَعَاطَى إِلَّا الَّذِي يَقِي مِنْ عِقَابِكَ، ثُمَّ خَلِّصْ ذَلِكَ كُلَّهُ مِنْ رِئَاءِ الْمُرَاءِينَ، وَ سُمْعَةِ الْمُسْمِعِينَ، لَا نُشْرِكُ فِيهِ أَحَداً دُونَكَ، وَ لَا نَبْتَغِي فِيهِ مُرَاداً سِوَاكَ.
اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ، وَ قِفْنَا فِيهِ عَلَى مَوَاقِيتِ الصَّلَوَاتِ الْخَمْسِ بِحُدُودِهَا الَّتِي حَدَّدْتَ، وَ فُرُوضِهَا الَّتِي فَرَضْتَ، وَ وَظَائِفِهَا الَّتِي وَظَّفْتَ، وَ أَوْقَاتِهَا الَّتِي وَقَّتَّ
وَ أَنْزِلْنَا فِيهَا مَنْزِلَةَ الْمُصِيبِينَ لِمَنَازِلِهَا، الْحَافِظِينَ لِأَرْكَانِهَا، الْمُؤَدِّينَ لَهَا فِي أَوْقَاتِهَا عَلَى مَا سَنَّهُ عَبْدُكَ وَ رَسُولُكَ- صَلَوَاتُكَ عَلَيْهِ وَ آلِهِ- فِي رُكُوعِهَا وَ سُجُودِهَا وَ جَمِيعِ فَوَاضِلِهَا عَلَى أَتَمِّ الطَّهُورِ وَ أَسْبَغِهِ، وَ أَبْيَنِ الْخُشُوعِ وَ أَبْلَغِهِ.
وَ وَفِّقْنَا فِيهِ لِأَنْ نَصِلَ أَرْحَامَنَا بِالْبِرِّ وَ الصِّلَةِ، وَ أَنْ نَتَعَاهَدَ جِيرَانَنَا بِالْإِفْضَالِ وَ الْعَطِيَّةِ، وَ أَنْ نُخَلِّصَ أَمْوَالَنَا مِنَ التَّبِعَاتِ، وَ أَنْ نُطَهِّرَهَا بِإِخْرَاجِ الزَّكَوَاتِ، وَ أَنْ نُرَاجِعَ مَنْ هَاجَرَنَا، وَ أَنْ نُنْصِفَ مَنْ ظَلَمَنَا، وَ أَنْ نُسَالِمَ مَنْ عَادَانَا حَاشَى مَنْ عُودِيَ فِيكَ وَ لَكَ، فَإِنَّهُ الْعَدُوُّ الَّذِي لَا نُوَالِيهِ، وَ الْحِزْبُ الَّذِي لَا نُصَافِيهِ.
وَ أَنْ نَتَقَرَّبَ إِلَيْكَ فِيهِ مِنَ الْأَعْمَالِ الزَّاكِيَةِ بِمَا تُطَهِّرُنَا بِهِ مِنَ الذُّنُوبِ، وَ تَعْصِمُنَا فِيهِ مِمَّا نَسْتَأْنِفُ مِنَ الْعُيُوبِ، حَتَّى لَا يُورِدَ عَلَيْكَ أَحَدٌ مِنْ مَلَائِكَتِكَ إِلَّا دُونَ مَا نُورِدُ مِنْ أَبْوَابِ الطَّاعَةِ لَكَ، وَ أَنْوَاعِ الْقُرْبَةِ إِلَيْكَ.
اللَّهُمَّ إِنِّي أَسْأَلُكَ بِحَقِّ هَذَا الشَّهْرِ، وَ بِحَقِّ مَنْ تَعَبَّدَ لَكَ فِيهِ مِنِ ابْتِدَائِهِ إِلَى وَقْتِ فَنَائِهِ: مِنْ مَلَكٍ قَرَّبْتَهُ، أَوْ نَبِيٍّ أَرْسَلْتَهُ، أَوْ عَبْدٍ صَالِحٍ اخْتَصَصْتَهُ، أَنْ تُصَلِّيَ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ، وَ أَهِّلْنَا فِيهِ لِمَا وَعَدْتَ أَوْلِيَاءَكَ مِنْ كَرَامَتِكَ، وَ أَوْجِبْ لَنَا فِيهِ مَا أَوْجَبْتَ لِأَهْلِ الْمُبَالَغَةِ فِي طَاعَتِكَ، وَ اجْعَلْنَا فِي نَظْمِ مَنِ اسْتَحَقَّ الرَّفِيعَ الْأَعْلَى بِرَحْمَتِكَ.
اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ، وَ جَنِّبْنَا الْإِلْحَادَ فِي تَوْحِيدِكَ، وَ الْتَّقْصِيرَ فِي تَمْجِيدِكَ، وَ الشَّكَّ فِي دِينِكَ، وَ الْعَمَى عَنْ سَبِيلِكَ، وَ الْإِغْفَالَ لِحُرْمَتِكَ، وَ الِانْخِدَاعَ لِعَدُوِّكَ الشَّيْطَانِ الرَّجِيمِ
اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ، وَ إِذَا كَانَ لَكَ فِي كُلِّ لَيْلَةٍ مِنْ لَيَالِي شَهْرِنَا هَذَا رِقَابٌ يُعْتِقُهَا عَفْوُكَ، أَوْ يَهَبُهَا صَفْحُكَ فَاجْعَلْ رِقَابَنَا مِنْ تِلْكَ الرِّقَابِ، وَ اجْعَلْنَا لِشَهْرِنَا مِنْ خَيْرِ أَهْلٍ وَ أَصْحَابٍ.
اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ، وَ امْحَقْ ذُنُوبَنَا مَعَ امِّحَاقِ هِلَالِهِ، وَ اسْلَخْ عَنَّا تَبِعَاتِنَا مَعَ انْسِلَاخِ أَيَّامِهِ حَتَّى يَنْقَضِيَ عَنَّا وَ قَدْ صَفَّيْتَنَا فِيهِ مِنَ الْخَطِيئَاتِ، وَ أَخْلَصْتَنَا فِيهِ مِنَ السَّيِّئَاتِ.
اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ، وَ إِنْ مِلْنَا فِيهِ فَعَدِّلْنَا، وَ إِنْ زُغْنَا فِيهِ فَقَوِّمْنَا، وَ إِنِ اشْتَمَلَ عَلَيْنَا عَدُوُّكَ الشَّيْطَانُ فَاسْتَنْقِذْنَا مِنْهُ.
اللَّهُمَّ اشْحَنْهُ بِعِبَادَتِنَا إِيَّاكَ، وَ زَيِّنْ أَوْقَاتَهُ بِطَاعَتِنَا لَكَ، وَ أَعِنَّا فِي نَهَارِهِ عَلَى صِيَامِهِ، وَ فِي لَيْلِهِ عَلَى الصَّلَاةِ وَ التَّضَرُّعِ إِلَيْكَ، وَ الْخُشُوعِ لَكَ، وَ الذِّلَّةِ بَيْنَ يَدَيْكَ حَتَّى لَا يَشْهَدَ نَهَارُهُ عَلَيْنَا بِغَفْلَةٍ، وَ لَا لَيْلُهُ بِتَفْرِيطٍ.
اللَّهُمَّ وَ اجْعَلْنَا فِي سَائِرِ الشُّهُورِ وَ الْأَيَّامِ كَذَلِكَ مَا عَمَّرْتَنَا، وَ اجْعَلْنَا مِنْ عِبَادِكَ الصَّالِحِينَ الَّذِينَ يَرِثُونَ الْفِرْدَوْسَ هُمْ فِيها خالِدُونَ، وَ الَّذِينَ يُؤْتُونَ ما آتَوْا وَ قُلُوبُهُمْ وَجِلَةٌ، أَنَّهُمْ إِلى رَبِّهِمْ راجِعُونَ، وَ مِنَ الَّذِينَ يُسارِعُونَ فِي الْخَيْراتِ وَ هُمْ لَها سابِقُونَ.
اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ، فِي كُلِّ وَقْتٍ وَ كُلِّ أَوَانٍ وَ عَلَى كُلِّ حَالٍ عَدَدَ مَا صَلَّيْتَ عَلَى مَنْ صَلَّيْتَ عَلَيْهِ، وَ أَضْعَافَ ذَلِكَ كُلِّهِ بِالْأَضْعَافِ الَّتِي لَا يُحْصِيهَا غَيْرُكَ، إِنَّكَ فَعَّالٌ لِمَا تُرِيدُ.
रमज़ान के महीने के स्वागत के लिए हज़रत की दुआ
सारी प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जिसने हमें अपनी प्रशंसा और धन्यवाद की ओर मार्गदर्शित किया और हमें प्रशंसा करने वालों में शामिल किया, ताकि हम उसके उपकारों के प्रति कृतज्ञता दिखाने वालों में गिने जाएँ और वह हमें इस कृतज्ञता के बदले में अच्छे कर्म करने वालों का प्रतिफल प्रदान करे।
उस अल्लाह की प्रशंसा है, जिसने हमें अपना धर्म दिया, हमें अपने राष्ट्र का हिस्सा बनाकर प्रतिष्ठित किया, और हमें अपनी कृपा और दया के मार्ग पर निर्देशित किया। ताकि उसकी कृपा और दया से हम इन मार्गों का अनुसरण कर सकें और उसकी प्रसन्नता प्राप्त कर सकें। ऐसी प्रशंसा जिसे वह स्वीकार करता है।
और जिस कारण वह हमसे प्रसन्न होगा। सारी प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जिसने अपने महीने को अपनी कृपा और दया के मार्गों में से एक बनाया है, अर्थात् रमज़ान का महीना, रमज़ान का महीना, इस्लाम का महीना, शुद्धि का महीना, सुलह का महीना, इबादत और क़याम का महीना। वह महीना जिसमें क़ुरआन अवतरित हुआ। जो लोगों के लिए मार्गदर्शक है। इसमें मार्गदर्शन और सही और गलत के बीच अंतर के बारे में स्पष्ट मान्यताएं हैं;
इसलिए उसने सभी महीनों पर इसकी श्रेष्ठता प्रकट की। उसने इस महीने को जो प्रचुर सम्मान और उत्कृष्ट गुण प्रदान किये हैं, तथा अपनी महानता को प्रकट करने के लिए, इसमें उन चीजों को हराम करार दिया है जो अन्य महीनों में वर्जित थीं। और उसी के आदर में उसने खाने-पीने को हराम कर दिया और उसके लिए एक स्पष्ट समय निर्धारित कर दिया। और सर्वशक्तिमान ईश्वर उसे उसके निर्धारित समय से आगे नहीं बढ़ने देता और न ही उसमें विलम्ब करना स्वीकार करता है।
फिर उसने उसकी एक रात को हज़ार महीनों की रातों से श्रेष्ठ बनाया और उसका नाम शब ए क़द्र रखा। इस रात फ़रिश्ते और पवित्र आत्मा हर उस मामले को लेकर उतरते हैं जो उसने तय किया है, अपने बन्दों में से जिस किसी के पास चाहता है। वह रात पूर्ण शांति की रात होती है, जिसका आशीर्वाद भोर तक बना रहता है।
हे पालनहार! अल्लाह मुहम्मद और उनके परिवार पर रहमत नाजिल कर और हमें इस महीने की कृपा और सम्मान को पहचानने के लिए मार्गदर्शन कर। उसकी आदर-सत्कार और पवित्रता का स्मरण रख और उसमें जो चीज़ें हैं उनसे बच जिन्हें तूने हराम किया है। हमारे अंगों को अवज्ञा से रोककर और उन्हें उन कामों में व्यस्त रखकर जो आपको प्रसन्न करते हैं, हमें इसका व्रत रखने में सहायता करें, ताकि हम व्यर्थ की बातें न सुनें;
हम व्यर्थ की चीज़ों की ओर प्रेम के बिना अपनी आँखें न उठाएँ, न हराम की ओर अपने हाथ बढ़ाएँ, न हराम की ओर आगे बढ़ें, न हमारे पेट तेरे द्वारा हलाल की गई चीज़ों के अलावा कुछ ग्रहण करें, न हमारी ज़बानें तेरे द्वारा उतारी गई चीज़ों के अलावा बोलें। केवल वही कार्य करे जो तेरे पुरस्कार के करीब ले जाएं और केवल वही कार्य करे जो तेरी सजा से बचाएं। फिर इन सारे कर्मों को मुनाफ़िक़ों के पाखण्ड और यश चाहने वालों की यश-प्रवृत्ति से शुद्ध कर, ताकि वे तेरे सिवा किसी को अपना साझी न बनाएँ और तेरे सिवा किसी को महत्व न दें।
हे पालनहार! मुहम्मद और उनके परिवार पर दुरूद भेज और हमें पाँचों नमाज़ों के समय बता दे, साथ ही जो सीमाएँ तूने निर्धारित की हैं, जो दायित्व तूने निर्धारित किये हैं, जो तौर-तरीके तूने निर्धारित किये हैं, और जो समय तुमने निर्धारित किये हैं उनसे अवगत कर।
और हमें इन नमाज़ों में उन लोगों के स्तर तक उठा, जो इन नमाज़ों के सर्वोच्च स्तर को प्राप्त करते हैं, जो अपने दायित्वों का ध्यान रखते हैं, और जो उन्हें अपने समय पर उसी तरह से पूरा करते हैं जैसे तूने विशेष सेवक और रसूल, अल्लाह उन पर आशीर्वाद और शांति प्रदान करे, ने उन्हें रुकू और सजदे में और उनके सभी गुणों और श्रेष्ठता के साथ, पूर्णता और पूर्ण पवित्रता और स्पष्ट और पूर्ण विनम्रता के साथ पूरा किया।
और हमें इस महीने में यह तौफीक अता फरमा कि हम अपने चाहने वालों से नेकी और उदारता के द्वारा अच्छे संबंध बनाए रखें, अपने पड़ोसियों का ख्याल रखें और उन्हें उपहार और क्षमा प्रदान करें, अपने माल को मज़लूमों से साफ करें और ज़कात अदा करके उसे पाक करें। और हमें उन लोगों की ओर मेल-मिलाप का हाथ बढ़ाना चाहिए जो हमसे अलग हो गए हैं, और हमें उन लोगों के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार करना चाहिए जो हम पर अत्याचार करते हैं। जो लोग हमसे शत्रुता रखते हैं, उनसे हम समझौता कर लें; सिवाय उनके जो तुरे लिए और तुरे ही कारण शत्रुता रखते हैं। क्योंकि वह हमारा शत्रु है, जिसे हम मित्र नहीं बना सकते, तथा वह ऐसे समूह का सदस्य है, जिससे हम मुक्त नहीं हो सकते।
और हमें इस महीने में ऐसे पवित्र कर्मों के माध्यम से आपकी निकटता प्राप्त करने की क्षमता प्रदान कर कि तू हमें पापों से शुद्ध कर दें और हमें फिर से बुरे कर्म करने से बचाएँ, यहाँ तक कि फ़रिश्ते तेरे सामने जो कर्म प्रस्तुत करते हैं, वे हमारी सभी आज्ञाकारिता और हमारी सभी उपासनाओं के मुकाबले हल्के हों।
हे परमेश्वर! मैं तुझसे इस महीने की पवित्रता और अधिकार की शपथ लेकर, तथा इस महीने के आरम्भ से लेकर अन्त तक तेरी इबादत करने वालों की सिफ़ारिश की शपथ लेकर, चाहे वह कोई फ़रिश्ता हो, कोई भेजा हुआ पैग़म्बर हो, या कोई धर्मी और चुना हुआ व्यक्ति हो, दुआ करता हूँ कि तू मुहम्मद और उनके परिवार पर अपनी कृपा बरसा, तथा हमें उस सम्मान और प्रतिष्ठा के योग्य बना, जिसका वादा तूने अपने मित्रों से किया है, तथा हमारे लिए वह पुरस्कार निर्धारित कर, जो तूने सबसे अधिक आज्ञाकारी लोगों के लिए निर्धारित किया है, तथा अपनी दया से हमें उन लोगों में सम्मिलित कर, जिन्होंने सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया है।
हे परमेश्वर! मुहम्मद और उनके परिवार पर दया कर और हमें हमारे एकेश्वरवाद में विकृत होने, तेरी प्रशंसा और महिमा में कमी होने, तेरे धर्म पर संदेह करने, तेरे मार्ग से भटकने, तेरी पवित्रता की उपेक्षा करने और तेरे दुश्मन, अस्वीकृत शैतान द्वारा धोखा दिए जाने से बचा।
हे परम परमेश्वर! मुहम्मद और उनके परिवार पर दुरूद भेज, और चूँकि तुरे कुछ बन्दे ऐसे हैं जिन्हें तेरी दया और कृपा मुक्त कर देती है या तेरी क्षमा उन्हें क्षमा कर देती है, तो हमें भी उन बन्दों में शामिल कर और हमें इस महीने के सबसे अच्छे लोगों और साथियों में शामिल कर।
हे परमेश्वर! हे अल्लाह, मुहम्मद और उनके परिवार पर दया कर, और इस महीने के आगमन के साथ हमारे पापों को मिटा दे, और जब इसके दिन समाप्त हो जाएं, तो हमारे पापों के अभिशाप को हमसे दूर कर दे, ताकि यह महीना ऐसी स्थिति में समाप्त हो जाए जिसमें तूने हमें हमारे दोषों से शुद्ध कर दिया हो और हमें हमारे पापों से मुक्त कर दिया हो।.
हे पालनहार! मुहम्मद और उनके परिवार पर दुरूद भेज, और यदि हम इस महीने में सत्य से विमुख हो जाएं तो हमें सीधे मार्ग पर ले चल, और यदि हम भटक जाएं तो हमें सुधार दे, और यदि तेरा दुश्मन शैतान हमें घेर ले तो हमें उसके चंगुल से छुड़ा ले।
हे पालनहार! इस महीने को हमारे द्वारा तेरे लिए की जाने वाली इबादतो से भर दे, और इसके क्षणों को हमारी आज्ञाकारिता के कार्यों से सजा दे, और इसके दिनों में रोज़ा रखने, इसकी रातों में प्रार्थना करने, तेरे समक्ष विनम्रतापूर्वक, और हमारी सहायता कर। ताकि उसके दिन हमारे विरुद्ध लापरवाही और रातें चूक और भूल की गवाही न दें।
हे अल्लाह! हमें सभी महीनों और दिनों में इसी प्रकार बना दे, जब तक तू हमें जीवित रखे, और हमें उन बन्दों में सम्मिलित कर जो सदैव स्वर्ग के जीवन के उत्तराधिकारी होंगे। और जो लोग अल्लाह की राह में अपनी सामर्थ्य के अनुसार कुछ भी खर्च करते हैं, फिर भी उनके दिलों में यह अफ़सोस बना रहता है कि उन्हें अपने रब की ओर लौटना पड़ेगा और जो लोग नेक कामों में जल्दी करते हैं, वही लोग नेक कामों में सबसे आगे हैं।
फ़ुटनोट
- ↑ ममदूही किरमानशाही, शुहूद व शनाख़त, 1388 शम्सी, भाग 3, पेज 388
- ↑ अंसारियान, दयारे आशेक़ान, 1373 शम्सी, भाग 7, पेज 407-470 ममदूही, शुहूद व शनाख़त, 1388 शम्सी, भाग 3, पेज 388-442 तरजुमा व शरह दुआ ए चहलो चहार्रुम अज़ साइट इरफ़ान
- ↑ अंसारियान, दयारे आशेक़ान, 1373 शम्सी, भाग 7, पेज 399-470
- ↑ ममदूही, शुहूद व शनाख़त, 1388 शम्सी, भाग 3, पेज 383-424
- ↑ फ़हरी, शरह व तफसीर सहीफ़ा सज्जादिया, 1388 शम्सी, भाग 3, पेज 221-279
- ↑ मिस्बाह यज़्दी, सोहबाए हुज़ूर, 1391 शम्सी, फहरिसत मतालिब
- ↑ मोअर्ऱफ़ी किताब सीमाए रमज़ान
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- ↑ मदनी शिराज़ी, रियाज़ उस सालेकीन, 1435 हिजरी, भाग 6, पेज 5-94
- ↑ मुग़्निया, फ़ी ज़िलाल अल सहीफ़ा, 1428 हिजरी , पेज 499-513
- ↑ दाराबी, रियाज़ उल आरेफ़ीन, 1379 शम्सी, पेज 543-553
- ↑ फ़ज़्लुल्लाह, आफ़ाक़ अल रूह, 1420 शम्सी, भाग 2, पेज 359-388
- ↑ फ़ैज़ काशानी, तालीक़ात अलस सहीफ़ा अल-सज्जादिया, 1407 हिजरी, पेज 87-89
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स्रोत
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- मिस्बाह यज़्दी, मुहम्मद तक़ी, सोहबा ए हुजूर (शरह दुआ चहलो चहार्रुम सहीफ़ा सज्जादिया), कुम, मोअस्सेसा आमूज़िशी व पुज़ूहिशी इमाम ख़ुमैनी (र)
- मुग़्निया, मुहम्मद जवाद, फ़ी ज़िलाल अल-सहीफ़ा सज्जादिया, क़ुम, दार उल किताब उल इस्लामी, 1428 हिजरी
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