तीनों कफ़्फ़ारा

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कफ़्फ़ार ए जम्अ (अरबी: كفارة الجمع) अर्थात तीनों कफ़्फ़ारों का एक साथ भुगतान करना, ग़ुलाम को आज़ाद करना, साठ दिन का रोज़ा रखना और साठ फ़क़ीरों को एक साथ खाना खिलाना है, जो हराम कार्य द्वारा रोज़ा तोड़ने के कारण और जानबूझकर की गई हत्या के कारण अनिवार्य हो जाता है। हालांकि, कुछ न्यायविद रोज़े को हराम कार्य द्वारा तोड़ने में सामूहिक प्रायश्चित (कफ़्फ़ार ए जम्अ) के भुगतान को एहतेयात से सहमत मानते हैं।

सामूहिक प्रायश्चित (कफ़्फ़ार ए जम्अ) में लगातार 31 दिन का रोज़ा होना चाहिए, और भोजन में, प्रत्येक फ़क़ीर को कम से कम एक मुद तआम (750 ग्राम गेहूं, जौ, आदि) का भुगतान करना चाहिए। फ़तवे के अनुसार अगर तीनों कफ़्फ़ारों का एक साथ भुगतान करना संभव न हो तो जितना हो सके उतने का भुगतान करना चाहिए और अगर उनमें से किसी एक के भी भुगतान में असमर्थ हो और किसी भी मात्रा में भुगतान न कर सकता हो तो उसे माफ़ी (इस्तिग़फ़ार) मांगनी चाहिए।

परिभाषा

कफ़्फ़ार ए जम्अ, एक साथ कई कफ़्फ़ारों का भुगतान करना है, जो कुछ हराम कार्यों को करने के कारण अनिवार्य (वाजिब) हो जाता है, और इसमें एक ग़ुलाम को मुक्त करना, साठ दिनों तक रोज़ा रखना और साठ फ़क़ीरों को खाना खिलाना शामिल है।[१] कफ़्फ़ारा एक वित्तीय और शारीरिक दंड है जिसका भुगतान कुछ पापों के करने के बदले में किया जाना चाहिए।[२]

अनिवार्य होने के स्थान

हराम कार्य द्वारा रोज़ा तोड़ना और जानबूझकर हत्या करने जैसे मामलों में सामूहिक प्रायश्चित (कफ़्फ़ार ए जम्अ) का भुगतान अनिवार्य हो जाता है:

हराम कार्य द्वारा रोज़ा तोड़ना

कुछ न्यायविदों के फ़तवे के अनुसार, अपवित्रता (नेजासत) का खाना, व्यभिचार (ज़ेना) और हस्तमैथुन जैसे हराम कार्यों द्वारा रोज़ा तोड़ना सामूहिक प्रायश्चित (कफ़्फ़ार ए जम्अ) के दायित्व (वुजूब) का कारण बनता है;[३] उस कार्य की निषिद्धता (हुरमत) मूल रूप से हो या किसी कारण से जैसे कि हड़पना (ग़स्ब), अशुद्ध (नजिस) होना, या हानिकारक भोजन खाना, हराम है।[४] इमाम रज़ा (अ) द्वारा वर्णित हदीस के अनुसार, हराम कार्य द्वारा रोज़ा तोड़ना सामूहिक प्रायश्चित (कफ़्फ़ार ए जम्अ) के योग्य है।[५] कुछ अन्य ने, न्यायशास्त्र के नियमों और कुछ अन्य हदीसों के आधार पर, हराम कार्य द्वारा रोज़ा तोड़ने पर केवल एक कफ़्फ़ारे को आवश्यक माना है।[६] आयतुल्लाह ख़ामेनेई[७] और आयतुल्लाह सिस्तानी[८] ने कफ़्फ़ार ए जम्अ के भुगतान को एहतेहाते मुस्तहब माना है। कुछ अन्य ने इस मालमे में एहतेयाते वाजिब का हुक्म दिया है।[९]

कुछ मराजे ए तक़लीद के फ़तवे के अनुसार, हराम कार्य द्वारा रोज़ा तोड़ने पर सामूहिक कफ़्फ़ारे (कफ़्फ़ार ए जम्अ) का भुगतान रमज़ान के रोज़े के लिए विशिष्ट नहीं है और इसमें अन्य वाजिब रोज़े भी शामिल हैं।[१०] कुछ लोगों ने सिर और छाती के मिश्रण (बलग़म) के निगलने को भी इसी हुक्म से जोड़ा है।[११] इसके अलावा, जिस लार में खून हो उसका निगलना भी, कुछ फतवों के अनुसार सामूहिक प्रायश्चित (कफ़्फ़ार ए जम्अ) के भुगतान का कारण होगा[१२] या एहतेयाते वाजिब की बेना पर उसे तीन कफ़्फ़ारों का भुगतान करना चाहिए।[१३]

कुछ न्यायविदों के फ़तवे के अनुसार, रोज़े की अवस्था में भगवान और पैग़म्बर (स) के बारे में झूठ बोलना सामूहिक प्रायश्चित (कफ़्फ़ार ए जम्अ) का कारण बनता है; हालांकि इस बारे में मतभेद पाया जाता है।[१४]

हत्या

किसी मुसलमान की जानबूझकर हत्या पर, कफ़्फ़ार ए जम्अ का भुगतान है।[१५] इस हुक्म का उल्लेख हदीसों में हुआ है।[१६] इसी तरह हदीसों के अनुसार, हत्यारे के पश्चाताप (तौबा) को स्वीकार करने की शर्तों में से एक सामूहिक प्रायश्चित (कफ़्फ़ार ए जम्अ) का भुगतान है।[१७]

कुछ का मानना है कि सामूहिक प्रायश्चित उस समय अनिवार्य है जब व्यक्ति ने स्वयं हत्या की हो, और यदि वह हत्या का कारण था या उसे हत्या का आदेश दिया गया था, तो उस पर कफ़्फ़ार ए जम्अ वाजिब नहीं है।[१८]

मुस्लिम महिला, पुरुष, आज़ाद, ग़ुलाम, समझदार, पागल, वयस्क और बच्चे की हत्या पर, हत्या के कफ़्फ़ारे का भुगतान करना वाजिब है।[१९] इस हुक्म में वह भ्रूण भी शामिल है जिसमें आत्मा ने प्रवेश कर लिया हो।[२०]

एक पागल या बच्चे द्वारा की गई हत्या के कफ़्फ़ार ए जम्अ के भुगतान के वाजिब होने के बारे में; मतभेद पाया जाता है; कुछ ने लिखा है कि उनमें से अधिकांश का मानना है कि ग़ुलाम को भोजन खिलाने और मुक्त करने की राशि उनकी संपत्ति से ली जानी चाहिए, और उसे ठीक होने और परिपक्व (बालिग़) होने के बाद ख़ुद रोज़ा रखना चाहिए।[२१]

अधिकांश न्यायविदों का मानना है कि क़ेसास के बाद, फ़क़ीरों को खाना खिलाने और रोज़ा रखने की लागत हत्यारे की संपत्ति से ली जाएगी;[२२] और यदि हत्यारे को कफ़्फ़ारा के भुगतान से पहले मार दिया जाता है, तो उसकी संपत्ति से कफ़्फ़ारे की लागत ली जाएगी;[२३] अगर हत्यारे पर क़ेसास का आदेश सिद्ध न होता हो; जैसे पिता के हाथों बच्चे की हत्या, उस पर सामूहिक प्रायश्चित (कफ़्फ़ार ए जम्अ) वाजिब है।[२४]

यदि कई लोग एक साथ किसी की हत्या करते हैं, तो उनमें से प्रत्येक पर सामूहिक कफ़्फ़ारा अनिवार्य (वाजिब) है।[२५] कुछ हदीसों में, यह कहा गया है कि यदि कोई हराम महीनों के दौरान हत्या करता है, तो कफ़्फ़ारे के लिए, उसे उन महीनों के दौरान रोज़ा रखना चाहिए।[२६]

अहकाम

सामूहिक प्रायश्चित (कफ़्फ़ार ए जम्अ) के कुछ नियम (अहकाम) इस प्रकार हैं:

  • साठ दिनों में, कम से कम इकतीस दिनों का रोज़ा लगातार होना चाहिए।[२७]
  • फ़क़ीर को भोजन देने में भोजन की कम से कम मात्रा एक मुद तआम (750 ग्राम गेहूँ, जौ आदि) का भुगतान है।[२८] हालांकि, अल्लामा मजलिसी के अनुसार, एक मुद या दो मुद तआम के भुगतान के बारे में, न्यायविदों के बीच मतभेद है।[२९]
  • यदि तीनों कफ़्फ़ारों का एक साथ भुगतान करना संभव न हो, तो जो कुछ संभव हो वह करे, और यदि उनमें से किसी का भी प्रायश्चित करने की शक्ति न हो, तो उसे क्षमा (इस्तिग़फ़ार) मांगनी चाहिए।[३०]

सम्बंधित लेख

फ़ुटनोट

  1. शहीदे अव्वल, ग़ायतुल मुराद, 1414 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 459; आबी, कशफ़ुल रोमूज़, 1417 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 259; शहीदे अव्वल, अल-लोमआ अल-दमश्क़िया, 1410 हिजरी, पृष्ठ 85।
  2. मिशकिनी, मुस्तलेहाते अल-फ़िक़ह, 1419 हिजरी, पृष्ठ 438।
  3. शेख़ बहाई, जामेअ अब्बासी, 1429 हिजरी, पृष्ठ 462; बहरानी, सद्दाद अल-एबाद, 1421 हिजरी, पृष्ठ 229; अल्लामा हिल्ली, इरशाद अल-अज़हान, 1410 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 97; इमाम खुमैनी, तौज़ीहुल मसाएल, 1424 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 931।
  4. फ़क़आनी, मसाएल इब्ने ताई, बी ता, पृष्ठ 178; शहीद सानी, हाशिया अल-मुख्तसर अल-नाफ़ेअ, 1422 हिजरी, पृष्ठ 61; इमाम खुमैनी, तौज़ीहुल मसाएल, 1424 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 930-931।
  5. शेख़ सदूक़, मन ला यहज़रोहुल फ़कीह, 1413 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 378।
  6. सैमुरी, ग़ायतुल मराम, 1420 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 319।
  7. ख़ामेनेई, अज्वबातुल इस्तिफ़ताआत, 1420 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 135।
  8. सिस्तानी, तौज़ीहुल मसाएल, 1393 शम्सी, पृष्ठ 298-299।
  9. इमाम खुमैनी, तहरीर अल-वसिला, 1409 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 126; इमाम खुमैनी, तौज़ीहुल मसाएल, 1426 हिजरी, पृष्ठ 344।
  10. फ़क़आनी, मसाएल इब्ने ताई, बी ता, पृष्ठ 178।
  11. मजलिसी, लवामेअ साहिब-क़रानी, 1414 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 248; शहीद सानी, हाशिया अल-इरशाद, 1414 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 309।
  12. किर्मानशाही, मक़ामेअ अल-फ़ज़्ल, 1421 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 249।
  13. इमाम खुमैनी, तौज़ीहुल मसाएल, 1426 हिजरी, पृष्ठ 349।
  14. इमाम खुमैनी, तौज़ीहुल मसाएल (मोहश्शा), 1424 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 931।
  15. बहरानी, ओयून अल-हक़ाएक़ अल-नाज़ेरा, 1410 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 310।
  16. उदाहरण के लिए, देखें: कुलैनी, अल-काफ़ी, खंड 7, पृष्ठ 276; तूसी, तहज़ीब अल-अहकाम, 1407 हिजरी, खंड 10, पृष्ठ 162-165; सदूक़, मन ला यहज़रोहुल फ़कीह, 1413 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 95-96; हुर्रे आमोली, वसाएल अल-शिया, 1409 हिजरी, खंड 29, पृष्ठ 34।
  17. उदाहरण के लिए, देखें: फ़ाज़िल मिक़दाद, कंज़ुल इरफ़ान, 1425 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 367; इब्ने इदरीस हिल्ली, अल-सराएर अल-हावी, 1410 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 33; हुर्रे आमोली, हिदायातुल उम्मा, 1412 हिजरी, खंड 8, पृष्ठ 467।
  18. फख़्र अल-मुहक़्क़ेक़ीन, इज़ाह अल-फ़वाएद, 1387 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 751; मजलिसी, हुदूद व कसास व दियात, तेहरान, पृष्ठ 160।
  19. आबी, कशफ़ अल-रुमूज़, 1417 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 681; मजलिसी, हुदूद व क़ेसास व दियात, तेहरान, पृष्ठ 160।
  20. हाएरी, अल-शरह अल-सग़ीर, 1409 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 520।
  21. मजलिसी, हुदूद व क़ेसास व दियात, पृष्ठ 161।
  22. मजलिसी, हुदूद व क़ेसास व दियात, तेहरान, पृष्ठ 160।
  23. फ़क़आनी, अल-दुर अल-मंज़ूद, 1418 हिजरी, पृष्ठ 333।
  24. अल्लामा हिल्ली, तहरीर अल-अहकाम अल-शरिया, 1420 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 460।
  25. हिल्ली, इरशाद अल-अज़हान, 1410 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 97; फख़्र अल-मुहक़्क़ेक़ीन, इज़ाह अल-फ़वाएद, 1387 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 751; मजलिसी, हुदूद व क़ेसास व दियात, तेहरान, पृष्ठ 161।
  26. हुर्रे आमोली, वसाएल अल-शिया, 1409 हिजरी, खंड 10, पृष्ठ 380-381।
  27. इमाम खुमैनी, तहरीर अल-वसिला, 1409 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 302
  28. मकारिम शिराज़ी, तौज़ीहुल मसाएल, 1429 हिजरी, पृष्ठ 263।
  29. मजलिसी, हुदूद व क़ेसास व दियात, तेहरान, पृष्ठ 160।
  30. इमाम खुमैनी, तौज़ीहुल मसाएल (मोहश्शा), 1424 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 930-931।


स्रोत

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