ज़ेना

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ज़ेना (अरबी: الزنا) एक पुरुष और एक महिला के बीच बिना विवाह के यौन संबंध है। ज़ेना को महापापों (गुनाहे कबीरा) में से एक माना जाता है और इसकी हुरमत स्वयंसिद्ध मानते हैं। व्यभिचार (ज़ेना) की सज़ा उसकी परिस्थितियों के अनुसार अलग-अलग होती है। किसी अविवाहित व्यक्ति द्वारा ज़ेना की सज़ा 100 कोड़े, ज़ेना ए मोहसना (विवाहित पुरुष या महिला द्वारा देना) की सज़ा संगसार (पत्थर मारकर हत्या) और नस्बी महरमों (रिश्तेदारों) के साथ और ज़ोर ज़बरदस्ती (बलात्कार) द्वारा किये गए ज़ेना की सज़ा हत्या है।

न्यायविदों के फ़तवों के अनुसार, व्यभिचार (ज़ेना) केवल व्यभिचारी (ज़ेनाकार) और गवाह के कबूलनामे से ही साबित किया जा सकता है, और व्यभिचार मेडिकल परीक्षण से साबित नहीं किया जा सकता है। व्यभिचार पर अलग-अलग न्यायिक निर्णय (अहकामे शरई) हैं। उनमें से एक यह है कि किसी विवाहित महिला या ऐसी महिला के साथ व्यभिचार जो प्रत्यावर्तन (इद्दा ए रजई) की अवधि में है, अबदी हुरमत का कारण बनती है; अर्थात वह दोनो कभी एक दूसरे से विवाह नहीं सकते।

परिभाषा

न्यायविदों की परिभाषा के अनुसार, व्यभिचार (ज़ेना) एक पुरुष और एक महिला के बीच यौन संबंध है ऐसी अवस्था में कि दोनो ने विवाह न किया हो या पुरुष उस महिला का मालिक हो, या विवाह पर संदेह हो या महिला उसकी संपत्ति हो।[१] यदि इस प्रकार का संभोग होता है तो व्यभिचार (ज़ेना) माना जाता है, पुरुष ने ख़त्ने तक अपने लिंग को महिला के जननांग पथ या गुदा में प्रवेश कराया हो।[२]

व्यभिचार महापाप है

मुस्लिम विद्वानों ने व्यभिचार को प्रमुख पापों (गुनाहाने कबीरा) में से एक माना है[३] और इसकी हुरमत को एक धार्मिक सिद्धांत माना गया है।[४] 13वीं शताब्दी के शिया न्यायविद साहिब जवाहिर के अनुसार, सभी धर्म व्यभिचार के निषेध (हराम होने) पर सहमत हैं।[५] बाइबिल के अनुसार, व्यभिचार का निषेध मूसा के दस आदेशों में से एक है[६] और कुछ मामलों में इसकी सज़ा संगसार (पत्थर मारकर हत्या) है।[७]

व्यभिचार और उसके अहकाम के बारे में क़ुरआन में सात आयतें हैं।[८] हदीस की किताबों में, एक हिस्सा इससे संबंधित हदीसों को समर्पित किया गया है।[९] हदीसों में, व्यभिचार को पैग़म्बर की हत्या और काबा को नष्ट करने की श्रेणी में पेश किया गया है[१०] और इसके सांसारिक (दुनयवी) और परलोकी (ओख़रवी) परिणाम का भी उल्लेख किया गया है। जीवन में दुर्भाग्य,[११] रूप की चमक (नूरानियत) का नष्ट होना, अल्पायु (उम्र का कम होना), दरिद्रता (फ़क़्र)[१२] और अचानक मृत्यु[१३] व्यभिचार के सांसारिक परिणाम हैं। हिसाब-किताब में कठिनाई, भगवान का क्रोध और नर्क में हमेशा रहना इसके परलोकी (ओख़रवी) परिणामों में से हैं।[१४]

व्यभिचार हराम होने के फ़लसफ़े में, वंशावली के मिश्रण को रोकना, पीढ़ी को संरक्षित करना, बीमारी के प्रसार को रोकना और समाज में शांति और सुरक्षा पैदा करना जैसी चीजें शामिल हैं।[१५]

सज़ा

न्यायशास्त्र ग्रंथों में, व्यभिचार के लिए तीन दंड बताए गए हैं, जिनमें से प्रत्येक को विशिष्ट प्रकार या व्यभिचार के प्रकार के संबंध में लागू किया जाता है: कोड़े मारना, हत्या और संगसार (पत्थर मारना)।

  • कोड़े मारना: एक व्यभिचारी पुरुष या महिला जो वयस्क (बालिग़), समझदार, स्वतंत्र और अविवाहित (ग़ैर मोहसन) है, की सज़ा 100 कोड़े हैं।[१६] यह हुक्म सूर ए नूर की आयत संख्या 2 में मौजूद है। इस आयत के अनुसार, हद (सज़ा) का प्रदर्शन करते समय विश्वासियों का एक समूह उपस्थित होना चाहिए।[१७]
  • हत्या: नस्बी महरमों (जैसे मां, बहन और बेटी) के साथ व्यभिचार की सज़ा, बलात्कार (ज़ोर ज़बरदस्ती) द्वारा व्यभिचार,[१८] एक ग़ैर-मुस्लिम पुरुष द्वारा एक मुस्लिम महिला के साथ व्यभिचार और कोड़े खाने के बाद कई बार व्यभिचार को दोहराने की सज़ा, हत्या है।[१९]
  • संगसार (पत्थर मारना): ज़ेना ए मोहसना की सज़ा संगसार है।[२०] विवाहित पुरुष और महिला द्वारा व्यभिचार करना और एक स्वतंत्र पुरुष या महिला द्वारा एक वयस्क (बालिग़) और समझदार व्यक्ति के साथ व्यभिचार करना ज़ेना ए मोहसना कहलाता है।[२१] जिस व्यक्ति को पत्थर मारने की सज़ा दी गई है उसे ग़ुस्ल करना चाहिए। फिर पुरुष को कमर तक और स्त्री को छाती तक मिट्टी में गाड़ देना चाहिए और तब तक पत्थर मारना है जब तक वह मर न जाए।[२२] व्यभिचार करने वाले बूढ़े आदमी और बूढ़ी स्वतंत्र स्त्री को 100 कोड़े मारने की सज़ा है और उसके बाद संगसार करना है।[२३]

किसी पवित्र स्थान या समय, जैसे मस्जिद, धार्मिक बुज़ुर्गों की दरगाह और रमज़ान के महीने में व्यभिचार करने पर सज़ा में बढ़ोतरी होती है और हद के अलावा इसमें ताज़ीर भी होता है। यह एक पुरुष और एक मृत महिला के बीच व्यभिचार के हुक्म में है।[२४]

व्यभिचार के लिए इस्लामी सज़ा ईरान, सऊदी अरब और पाकिस्तान जैसे इस्लामी देशों के दंड संहिता में परिलक्षित होती है।[२५]

प्रमाण के तरीक़े

न्यायविदों के फ़तवों के अनुसार, व्यभिचार को साबित करने के दो तरीक़े हैं: व्यभिचारी का कबूलनामा और सबूत।

  • स्वीकारोक्ति: कर्तव्य (तकलीफ़) की सामान्य शर्तों (परिपक्वता (बुलूग़), बुद्धि, विवेक (इख़्तियार) और स्वतंत्रता) के अलावा, स्वीकारोक्ति के माध्यम से व्यभिचार का सबूत, व्यभिचारी द्वारा चार बार स्वीकारोक्ति पर आधारित है।[२६]
  • बय्यना: बय्यना के साथ व्यभिचार का सबूत चार पुरुषों की गवाही पर आधारित है, या यदि चार पुरुष उपलब्ध नहीं हैं, तो लोकप्रिय कहावत के अनुसार, तीन पुरुष और दो महिलाएं।[२७] दो पुरुषों और चार महिलाओं की गवाही के साथ, केवल कोड़े मारना ही सिद्ध होता है, रजम (पत्थर मारना नहीं)।[२८] गवाहों की गवाही हद (सज़ा) की स्थापना की ओर उल समय जाती है यदि उनकी गवाही एक ही स्थान और समय पर व्यभिचार की घटना और उसके अवलोकन के बारे में स्पष्ट हो। अन्यथा, गवाह अनुचित अनुपात के कारण क़ज़फ़ (ज़ेना या लेवात का आरोप लगाना) की सज़ा के अधीन होगा।[२९]

न्यायशास्त्र के अनुसार, मुस्तहब है कि गवाह व्यभिचार के बारे में गवाही देने से बचें। न्यायाधीश के लिए भी मुस्तहब है कि वह उन्हें संकेत और व्यंग्य के साथ गवाही देने से रोकने के लिए प्रोत्साहित करें।[३०]

व्यभिचार के कुछ न्यायशास्त्रीय अहकाम

व्यभिचार के कुछ न्यायिक नियम इस प्रकार हैं:

  • प्रसिद्ध मत के अनुसार व्यभिचार से नसब (रिश्तेदारी का रिश्ता) नहीं बनता। इसलिए, शरीयत के अनुसार, व्यभिचार से पैदा हुए बच्चे का श्रेय न तो किसी पुरुष को दिया जाता है, न ही किसी महिला को।[३१] अलबत्ता, इमाम ख़ुमैनी और आयतुल्लाह ख़ूई जैसे कुछ समकालीन न्यायविदों का एक अलग दृष्टिकोण है।[३२]
  • यदि कोई विवाहित महिला अपने पति को तलाक़ देने से पहले व्यभिचार करती है, तो न्यायविदों के प्रसिद्ध फ़तवे के अनुसार, जिस पुरुष के साथ उसने व्यभिचार किया है, उसे हमेशा के लिए प्रतिबंधित (हरामे अबदी) कर दिया जाता है।[३३] हालांकि, सय्यद मूसा शुबैरी ज़ंजानी जैसे कुछ मराजे का मानना है कि महिलाएं पुरुषों के लिए हमेशा के लिए हराम नहीं बनती हैं।[३४]
  • न्यायविदों के बीच प्रचलित राय के अनुसार, किसी महिला की माँ या बेटी के साथ व्यभिचार करने से उसके साथ विवाह वर्जित हो जाता है; बशर्ते कि व्यभिचार शादी से पहले हुआ हो।[३५]
  • लोकप्रिय दृष्टिकोण के अनुसार, एक अविवाहित महिला जिसने व्यभिचार किया है, उस पर इद्दत नहीं है;[३६] लेकिन एक विवाहित महिला जो व्यभिचार से गर्भवती हुई, फिर अपने पति को तलाक़ दे दिया, इद्दत की अवधि बीत जाने के बाद विवाह कर सकती है; भले ही उसने बच्चे को जन्म नहीं दिया हो।[३७]
  • यदि कोई पुरुष अपनी पत्नी पर व्यभिचार का आरोप लगाता है, यदि उनके बीच लेआन होता है, तो महिला हमेशा के लिए पुरुष के लिए वर्जित (हरामे अबदी) हो जाती है।[३८]
  • यदि व्यभिचारी सज़ा (हद) को जारी करने के दौरान भाग जाता है, यदि उसकी सज़ा संगसार (पत्थर मारना) हो और यह स्वीकारोक्ति द्वारा साबित हुआ हो, तो प्रसिद्ध राय के अनुसार, उसे अब सज़ा नहीं दी जाएगी; हालाँकि, यदि सज़ा कोड़े मारने या संगसार (पत्थर मारने) की हो, जो बय्यना (सबूतों) से साबित हुई हो, तो उसे सज़ा के लिए वापस भेज दिया जाएगा।[३९]
  • कोड़े मारना और पत्थर मारना तब सिद्ध होता है जब व्यभिचारी जानता हो कि व्यभिचार हराम है।[४०]
  • इन मामलों में व्यभिचार की सज़ा हटा दी गई है: संदेह के साथ व्यभिचार करना (उदाहरण के लिए, व्यभिचारी सोचता है कि वह अपनी पत्नी के साथ संभोग कर रहा है), शादीशुदा होने का दावा करना, अनिच्छा (व्यभिचार करने के लिए मजबूर होना)[४१] और व्यभिचारी शासक के सामने व्यभिचार सिद्ध होने से पहले पश्चाताप कर ले।[४२]
  • व्यभिचार की हद (सज़ा) ईश्वर का अधिकार (हक़क़ुल्लाह) है. इसलिए, इसका कार्यान्वयन किसी की मांग पर निर्भर नहीं है और न्यायाधीश इसे अपने ज्ञान से लागू कर सकता है।[४३] इसके अलावा, शहादते तबर्रूई (न्यायाधीश के अनुरोध के बिना) इसके लिए स्वीकार की जाती है।[४४]

सम्बंधित लेख

फ़ुटनोट

  1. उदाहरण के लिए, मोहक़क़िक हिल्ली, शराए अल-इस्लाम, 1408 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 136 को देखें; तूसी, अल-तिब्यान, दारुल एह्या अल-तोरास अल-अरबी, खंड 6, पृष्ठ 475।
  2. मोहक़क़िक हिल्ली, शराए अल-इस्लाम, 1408 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 136।
  3. नजफ़ी, जवाहिरुल कलाम, 1369 शम्सी, खंड 41, पृष्ठ 258; तूसी, अल-तिबयान, दारुल एह्या अल-तोरास अल-अरबी, खंड 6, पृष्ठ 475; खुमैनी, तहरीर अल-वसीला, 1408 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 274।
  4. सद्र, अल-फ़तावा अल-वाज़ेहा, अल आदाब प्रेस, पृष्ठ 19।
  5. नजफ़ी, जवाहिरुल कलाम, 1369 शम्सी, खंड 41, पृष्ठ 258।
  6. किताबे मुक़द्दस, सफ़रे ख़ुरूज, अध्याय 20, श्लोक 1 से 18।
  7. किताबे मुक़द्दस, सफ़रे तस्तिया, 22:23-24; किताबे मुक़द्दस, सफ़रे लावियान, 20:11-12।
  8. सूर ए निसा, आयत 15 और 16; सूर ए इसरा, आयत 32; सूर ए नूर, आयत 2 और 3; सूर ए फुरकान, आयत 68; सूर ए मुमतहेना, आयत 12।
  9. उदाहरण के लिए, मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, खंड 76, पृष्ठ 17 से आगे (बाब अल-ज़ेना) को देखें।
  10. मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, खंड 76, पृष्ठ 20।
  11. मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, खंड 76, पृष्ठ 19।
  12. मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, खंड 76, पृष्ठ 22।
  13. मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, खंड 76, पृष्ठ 23।
  14. मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, खंड 76, पृष्ठ 21।
  15. अल्लामाह तबातबाई, अल-मीज़ान, 1417 हिजरी, खंड 13, पृष्ठ 88; मकारिम शिराज़ी, तफ़सीरे नमूना, 1374, खंड 12, पृष्ठ 102-103।
  16. शेख़ सदूक़, अल-मुक़्ना, 1415 हिजरी, पृष्ठ 428।
  17. सूर अ नूर, आयत 2।
  18. मोहक़क़िक हिल्ली, शराए अल-इस्लाम, 1408 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 141।
  19. नजफ़ी, जवाहिरुल कलाम, 1369 शम्सी, खंड 41, पृ. 313-309; खुमैनी, तहरीर अल-वसीला, 1408 हिजरी, खंड 2, पृ. 462-463।
  20. शेख़ सदूक़, अल-मुक़्ना, 1415 हिजरी, पृष्ठ 428।
  21. नजफ़ी, जवाहिरुल कलाम, 1369 शम्सी, खंड 41, पृष्ठ 318-322।
  22. नजफ़ी, जवाहिरुल कलाम, 1369 शम्सी, खंड 41, पृष्ठ 347 और 358।
  23. शहीद सानी, अल-रौज़ा अल-बहिया, 1410 हिजरी, खंड 9, पृष्ठ 85-86; नजफ़ी, जवाहिरुल कलाम, 1369 शम्सी, खंड 41, पृष्ठ 318-320।
  24. नजफ़ी, जवाहिरुल कलाम, 1369 शम्सी, खंड 41, पृ. 373-374 और 644-645; तहरीर अल-वसीला, 1408 हिजकी, खंड 2, पृष्ठ 468।
  25. हैदरी, "ज़ाना", पृष्ठ 600।
  26. मोहक़क़िक हिल्ली, शराए अल-इस्लाम, 1408 हिजरी, खंड 4, पृ. 138-138; खुमैनी, तहरीर अल-वसीला, 1408 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 459।
  27. मोहक़क़िक हिल्ली, शराए अल-इस्लाम, 1408 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 139।
  28. मोहक़क़िक हिल्ली, शराए अल-इस्लाम, 1408 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 139।
  29. नजफ़ी, जवाहिरुल कलाम, 1369 शम्सी, खंड 41, पृ. 158-154 और 302-296; खुमैनी, तहरीर अल-वसीला, 1408 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 461; खूई, तकमिला मिन्हाज अल-सालेहीन, 1407 हिजरी, पृष्ठ 25।
  30. नजफ़ी, जवाहिरुल कलाम, 1369 शम्सी, खंड 41, पृष्ठ 307।
  31. नजफ़ी, जवाहिरुल कलाम, 1369 शम्सी, खंड 29, पृष्ठ 256-257 और खंड 31, पृष्ठ 236; खुमैनी तहरीर अल-वसीला, 1408 हिजरी, खंड 2, पृ. 264-265।
  32. शरीयती, "नसब नाशी अज़ ज़ेना व आसारे मदनी ए आन बा रूएकर्द बर दीदगाहे इमाम ख़ुमैनी", शरद ऋतु 1394 शम्सी।
  33. नजफ़ी, जवाहिरुल कलाल, 1369 शम्सी, खंड 29, पृष्ठ 446।
  34. शुबैरी ज़ंजानी, रिसाला तौज़ीहुल मसाएल, 1388 शम्सी, पृष्ठ 517, मसला 2407।
  35. नजफ़ी, जवाहिरुल कलाल, 1369 शम्सी, खंड 29, पृ. 363-368; तबातबाई यज़ेदी, अल-उर्वा अल-वुस्क़ा, 1420 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 549-550।
  36. बहरानी, अल-हदाएक़ अल-नादेरा, 1405 हिजरी, खंड 23, पृष्ठ 504।
  37. शहीद सानी, मसालिक अल-अफ़हाम, खंड 9, पृष्ठ 262-263; नजफ़ी, जवाहिरुल कलाल, 1369 शम्सी, खंड 32, 263-264।
  38. नजफ़ी, जवाहिरुल कलाल, 1369 शम्सी, खंड 30, 25-24।
  39. नजफ़ी, जवाहिरुल कलाल, 1369 शम्सी, खंड 41, पृष्ठ 349-351।
  40. मोहक़क़िक़ हिल्ली, शराए अल-इस्लाम, 1408 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 136।
  41. मोहक़क़िक़ हिल्ली, शराए अल-इस्लाम, 1408 हिजरी खंड 4, पृष्ठ 137-138।
  42. नजफ़ी, जवाहिरुल कलाल, 1369 शम्सी, खंड 41, पृष्ठ 293 और 307-308
  43. नजफ़ी, जवाहिरुल कलाल, 1369 शम्सी, खंड 41, पृष्ठ 366।
  44. नजफ़ी, जवाहरलाल कलाम, 1369, खंड 41, पृष्ठ 106।

स्रोत

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  • हैदरी, अब्बास अली, "ज़ेना", इस्लाम का विश्वकोश (खंड 21), तेहरान, 1395 शम्सी।
  • खुमैनी, रूहुल्लाह, तहरीर अल-वसीला, दार अल-किताब अल-इल्मिया, इस्माइलियान, 1408 हिजरी।
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  • नजफ़ी, मोहम्मद हसन, जवाहिरुल कलाम फ़ी शरहे शराए अल-इस्लाम, दार अल-किताब अल-इस्लामिया और अल-मकतबा अल-इस्लामिया, तेहरान, 1362 शम्सी।