मिस्यार निकाह

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मिस्यार निकाह (फ़ारसीःنِکاح مِسْیار) सुन्नियों के बीच एक प्रकार का विवाह है। इस विवाह में विवाह की शर्तें (उनके अनुसार) जैसे शरई अक़्द पढ़ना, गवाहों की उपस्थिति और मेहेर होती हैं, लेकिन इसमें महिला गुजारा भत्ता (नफ़्क़ा) और सहवास का अधिकार अपनी मरज़ी से छोड़ देती है। इस शादी में पति जब चाहे अपनी पत्नी के पास आ सकता है और पत्नी अपने मामलों में स्वतंत्र होती है।

मिस्यार किसी महिला के लिए आवास और गुजारा भत्ता (नफ़्क़ा) का अधिकार न होना शिया संप्रदाय में अस्थायी विवाह (निकाहे मुवक़्क़त) की तरह है; जबकि इससे उसके साथ कुछ मतभेद हैं; जैसे कि इसका स्थायित्व (दाइम होना), चार पत्नियों की सीमा, गवाह की आवश्यकता, और तलाक़, खुलअ या रद्दीकरण (फ़स्ख़) द्वारा अलग होना, जो एक अस्थायी विवाह मे नहीं है। ऐसा कहा जाता है कि मिस्यार शादी के नए न्यायिक मुद्दों (जदीद मसाइल) में से एक है जो सबसे पहले सऊदी अरब के तमीम क्षेत्र में शुरू हुई थी। फ़हद अल-ग़नीम को मिस्यार निकाह शब्द का प्रयोग करने वाला पहला व्यक्ति माना गया है।

इमामिया न्यायविदों के अनुसार, मुतआ और मिस्यार की शादी के बीच समानता और इसके गठन की समान पृष्ठभूमि के अनुसार, सुन्नी मुफ्तियों ने अस्थायी विवाह को अमान्य करने और मिस्यार निकाह को वैध बनाने में सुन्नी मुफ्तियों पर फैसले मे दोहरेपन का आरोप लगाया है। नासिर मकारिम शिराज़ी के अनुसार, मिस्यार का अध्ययन करने वाले सभी शिया न्यायविदों ने शर्तों के साथ इसकी अनुमति पर फ़तवा जारी किया है। सुन्नी मुफ़्तियों के एक समूह ने मिस्यार निकाह को जायज़ माना है, कुछ ने हराम, और कुछ ने इसके संबंध मे कोई फ़तवा नही दिया है।

परिभाषा

मिस्यार निकाह को एक प्रकार का विवाह कहा जाता है जिसमें सुन्नियों की नजर में विवाह की शर्तें, जैसे शरिया अनुबंध (शरई अक़्द) पढ़ना, गवाहों की उपस्थिति और मेहेर आदि ... का पालन किया जाता है, और महिला अपने इख़्तियार से गुजारा भत्ता (नफ़्क़ा) और साथ-सोने के अधिका का त्याग करती है।[१]

सऊदी अरब के महान विद्वानों की परिषद के सदस्य अब्दुल्लाह मुनय्यअ के अनुसार, मिस्यार निकाह मे विवाह के सभी अहकाम, जैसे कि विरासत, मेहेर और बच्चों की वैधता होती है, और एक महिला अपने कुछ अधिकारों जैसे सहवास और गुजारा भत्ता को माफ कर सकती है[२] सुन्नी न्यायविद वहबा ज़ोहेली ने भी विरासत के अधिकार को मिस्यार निकाह में सुरक्षित माना है।[३]

इस विवाह में, पति जब चाहे महिला के पास जा सकता है, और महिला अपने मामलों में स्वतंत्र होती है।[४] "मिस्यार" शब्द शब्दकोश में मौजूद नहीं है, और आम भाषा में इसका अर्थ आसान तथा शीघ्र गुजरने वाला है।[५]

अस्थायी विवाह के साथ समानता और अंतर

शिया न्यायविद मकारिम शिराज़ी के अनुसार, मिस्यार निकाह एक अस्थायी विवाह (निकाह मुवक़्क़त) के समान है; क्योंकि इस प्रकार के विवाह में, महिला अपने घर में रहती है और अपने गुजारा भत्ते के लिए जिम्मेदार होती है।[६] दोनों विवाहों में, महिला को गुजारा भत्ता, सह-आवास या आवास का अधिकार नहीं होता है, और दोनो (पति-पत्नि) को एक दूसरे से विरासत भी नही मिलती और इसके अलावा महिला को घर से बाहर जाने के लिए अपने पति की अनुमति की आवश्यकता नहीं होती है।[७]

मिस्यार निकाह और अस्थायी विवाह के बीच अंतर यह है कि अस्थायी विवाह में विवाह की अवधि निर्धारित की जानी चाहिए, लेकिन मिस्यार निकाह यह एक स्थायी विवाह (निकाह दाइम) के रूप में संपन्न होता है। और मिस्यार निकाह में महिलाओ की संख्या स्थायी विवाह के समान चार होती है; लेकिन अस्थायी विवाह में महिलाओ की संख्या की कोई शर्त नहीं है। एक और अंतर यह है कि पति-पत्नि का अलगाव तलाक़, ख़ुलअ या रद्दिकरण (फ़स्ख़) के माध्यम से होता है; लेकिन अस्थायी विवाह अवधि समाप्त होने या शेष अवधि माफ करने के साथ ही समाप्त हो जाता है।[८] इसके अलावा, मिस्यार निकाह के निष्पादन के लिए दो गवाहों की उपस्थिति की आवश्यकता होती है, जबकि अस्थायी विवाह में ऐसी कोई शर्त नहीं होती है।[९]

= इतिहास और उत्पत्ति की पृष्ठभूमि

ऐसा कहा जाता है कि मिस्यार निकाह, विवाह के जदीद मसाइल में से एक है जो सबसे पहले सऊदी अरब के तमीम क्षेत्र में शुरू हुई थी। फहद अल-ग़नीम को मिस्यार शब्द का इस्तेमाल करने वाला पहला व्यक्ति माना गया है।[१०] 1990 के दशक में, सऊदी अरब में मिस्यार निकाह के प्रकाशन के बाद, विवाह का यह रूप धीरे-धीरे फारस की खाड़ी के अरब देशों जैसे कुवैत, क़तर, बहरीन और संयुक्त अरब अमीरात में फैल गया और संभवतः अन्य देशों ने भी इसे अपनाया।[११] कुछ सुन्नी विद्वानों ने अपने न्यायशास्त्र में मिस्यार को उदाहरणों से जोड़ने की कोशिश की है।[१२]

स्थायी विवाह (निकाह दाइम) की बढ़ती लागत, जैसे आवास और अधिक मेहेर का प्रावधान, और पुरुषों की अपनी दूसरी शादी को परिवार से छिपाने की इच्छा को सुन्नियों के बीच मिस्यार के उद्भव का कारण माना गया है। तलाकशुदा और अभिभावकहीन महिलाओं की संख्या में वृद्धि, कुछ स्थितियों में पुरुषों की बहुविवाह की आवश्यकता, जैसे पहली पत्नी की बीमारी, और गरीब पुरुष का खर्च महिला द्वारा वहन करना भी इसके प्रेरणाओं और कारणों में से हैं।[१३]

शिया शोधकर्ताओं का मानना है कि सुन्नी न्यायशास्त्र के अस्थायी विवाह के विरोध और इसके आधारों का सामना करने के कारण मिस्यार निकाह नामक प्रतिक्रिया हुई है।[१४] कुछ शिया न्यायविदों ने इस मुद्दे पर सुन्नी विद्वानों की आलोचना की है और उन पर फैसले में दोहरेपन का आरोप लगाया है। उनके अनुसार, मुतआ और मिस्यार निकाह के बीच समानता और उनके गठन के आधारों की समानता को देखते हुए, सुन्नी मुफ़्तियों ने अस्थायी विवाह को बातिल और हराम क्यों माना है, और दूसरी ओर, मिस्यार निकाह की अनुमति क्यों दी है।[१५]

मिस्यार निकाह का हुक्म

शिया न्यायविद नासिर मकारिम शिराज़ी के अनुसार, इस मुद्दे से निपटने वाले सभी शिया न्यायविदों ने शर्तों के साथ मिस्यार निकाह की अनुमति पर फतवा जारी किया है[१६] उनके अनुसार, ऐसी शादी दो मायनों में सही है:

  1. महिला से गुजारा भत्ता, सह-निवास, आवास और विरासत जैसे अधिकारों की मांग न करने की शर्त को विवाह अनुबंध के पाठ में शामिल नहीं किया जाना चाहिए; बल्कि महिला को नैतिक रूप से प्रतिबद्ध होना चाहिए कि वह उनकी मांग न करे।
  2. कुछ अधिकारों की छूट को अनुबंध के पाठ में क्रिया की शर्त (शर्ते फेल) के रूप में शामिल किया जाना चाहिए, न कि परिणाम की शर्त के रूप में; क्रिया की स्थिति में महिला कहती है कि मैं तुमसे शादी करूंगी और तुमसे गुजारा भत्ता या सहवास की मांग नहीं करूंगी। परिणाम की स्थिति में, पुरुष कहता है कि मैं तुमसे शादी करूंगा, बशर्ते कि तुम्हारे पास कोई अधिकार न हो।[१७] मकारिम शिराज़ी के दृष्टिकोण मे, महिला क्रिया शर्त की विधि द्वारा विरासत के अधिकार को भी त्याग सकती है।[१८]

ऐसा कहा गया है कि शिया मराज ए तक़लदी सय्यद अली सिस्तानी और हुसैन अली मुंतज़री भी मिस्यार को जायज़ मानते हैं।[१९]

सुन्नी मुफ्तियों के बीच, मिस्यार के हुक्म के संबंध में तीन सिद्धांतों का उल्लेख किया गया है: एक समूह ने इसे जायज़ माना और कुछ ने इसे हराम माना, और उनमें से कुछ ने कोई फतवा नहीं दिया और इसके हुक्म के बारे में तवक़्क़ुफ़ किया है।[२०] मिस्यार के समर्थकों का मानना है कि इस विवाह में भी स्थायी विवाह की शर्तें और तत्व और महत्वपूर्ण मस्लहत हैं।[२१] मकारिम शिराज़ी के अनुसार, कई सुन्नी न्यायविद जैसे सऊदी अरब के मुफ़्ती बिनबाज़, क़रज़ावी और मिस्र के मुफ़्ति नस्र फ़रीद वासिल ने इस प्रकार के विवाह को जायज़ माना है; लेकिन अल-अजहर के पूर्व शेख जाद्द उल-हक़ ने इसका विरोध किया है[२२] सऊदी अरब के महान विद्वानों की परिषद के सदस्य अब्दुल्लाह मुनिअ[२३] और अल-अजहर से संबंधित मिस्र के दार उल-इफ्ता ने मिस्यार को सही माना है।[२४]

फ़ुटनोट

  1. निकाह मिस्यार जायज़ अस्त, साइट दार उल-इफ़्ता मरकज़ी अहले सुन्नत मकारिम शिराज़ी, किताब उन-निकाह, 1424 हिजरी, भाग 5, पेज 21 अय्यूबी, नसीरी व तवल्लाई, अर्ज़ेयाबी तत्बीक़ी मशरूईयते निकाह मिस्यार दर फ़िक़्ह अहले सुन्नत व मज़हबे इमामिया, पेज 26 हातेमी व शनिवर, निकाहाए नवीन मआसिर व मशरूईयते आनहा, पेज 50
  2. उज़्व बिकबार उल-उलमा अल-सऊदीया यजीज़ो ज़वाज उल-मिस्यार व यसीरो जदलन, साइट अरबी 21
  3. सादेक़ी, अहले तसन्नुन व इज़देवाज मिस्यार, पेज 49
  4. सादेक़ी, अहले तसन्नुन व इज़देवाज मिस्यार, पेज 65
  5. क़रज़ावी, हौला ज़वाज उल-मिस्यार, पेज 7
  6. मकारिम शिराज़ी, किताब उन-निकाह, 1424 हिजरी, भाग 5, पेज 21
  7. सादेक़ी, अहले तसन्नुन व इज़देवाज मिस्यार, पेज 54
  8. क़रज़ावी, हौला ज़वाज उल-मिस्यार, पेज 15
  9. आमेरी, मुत्आ व मिस्यार दर फ़िक़्ह मआसिर, पेज 680
  10. सादेक़ी, अहले तसन्नुन व इज़देवाज मिस्यार, पेज 51
  11. ख़लीफ़ा फ़रज उल-आइब, ज़वाज उल-मिस्यार बैन अल-इबाहते वत-तहरीम, पेज 320
  12. सादेक़ी, अहले तसन्नुन व इज़देवाज मिस्यार, पेज 51
  13. ख़लीफ़ा फ़रज उल-आइब, ज़वाज उल-मिस्यार बैन अल-इबाहते वत-तहरीम, पेज 320-321
  14. देखेः आमेरी, मुत्आ व मिस्यार दर फ़िक़्ह मआसिर, पेज 683 सादेक़ी, अहले तसन्नुन व इज़देवाज मिस्यार, पेज 66
  15. मकारिम शिराज़ी, किताब उन-निकाह, 1424 हिजरी, भाग 5, पेज 20, 21-22
  16. मकारिम शिराज़ी, किताब उन-निकाह, 1424 हिजरी, भाग 5, पेज 22
  17. मकारिम शिराज़ी, किताब उन-निकाह, 1424 हिजरी, भाग 5, पेज 23
  18. मकारिम शिराज़ी, किताब उन-निकाह, 1424 हिजरी, भाग 5, पेज 24
  19. हातेमी व शनिवर, निकाहाए नवीन मआसिर व मशरूईयते आनहा, पेज 56
  20. अहले तसन्नुन व इज़देवाज मिस्यार, पुज़ूहिशगाह उलूम इंसानी व मुतालेआत फ़रहंगी
  21. आमेरी, मुत्आ व मिस्यार दर फ़िक़्ह मआसिर, पेज 681-682 क़रज़ावी, हौला ज़वाज उल-मिस्यार, पेज 6
  22. मकारिम शिराज़ी, किताब उन-निकाह, 1424 हिजरी, भाग 5, पेज 21-22
  23. उज़्व बिकबार उल-उलमा अल-सऊदीया यजीज़ो ज़वाज उल-मिस्यार व यसीरो जदलन, साइट अरबी 21
  24. इज़देवाज मख़फ़ी बराय अहले सुन्नत मज़ाज शुद, साइट ताबनाक


स्रोत

  • इज़देवाज मख़फ़ी बराय अहले सुन्नत मजाज़ शुद, वेबगाह ताबनाक, प्रविष्ठ की तारीख 4 आबान 1386 शम्सी, विज़िट की तारीख 15 मुरदाद 1403 शम्सी
  • अय्यूबी, हुसैन व दिगरान, अरज़याबी तत्बीक़ी मशरूईयते निकाह मिस्मार दर फ़िक़्ह अहले सुन्नत व मज़हब इमामिया, दर मजल्ले मुतालेआत फ़िक़्ह व हुक़ूक़ इस्लामी, क्रमांक 5, पाईज़ व ज़मिस्तान 1390 शम्सी
  • हातेमी, अली असगर व क़ादिर शनिवर, निकाहाए नवीन मआसिर व मशरूईयते आनहा, दर मजल्ले मुतालेआत फ़िक़्ह व हुक़ूक़ इस्लामी, क्रमांक 3, ज़मिस्तान, 1389 शम्सी
  • ख़लीफ़ा फरज उल-आइब, अबुल कासिम, ज़वाज उल-मिस्यार बैन अल-इबाहते वत-तहरीम, दर मजल्ले अल-उलूम उल-क़ानूनीयते वश-शरीयते, दानिशगाह ज़ावीया, लीबीया, क्रमांक 7, 2015 ई
  • सादेक़ी, मुहम्मद, अहले तसन्नुन व इज़देवाज मिस्यार, दर मजल्ले मुतालेआत राहबुरदी ज़नान, क्रमांक 40, ताबिस्तान 1387 शम्सी
  • आमेरी, सहीला, मुत्आ व मिस्यार दर फ़िक़्ह मआसिर, दर मजमूआ मक़ालात दवाज़दहुमीन कांफ्रेंस बैनुल मिल्ली पुजूहिशहाए मुदीरियत व उलूम इंसानी दर ईरान, 1402 शम्सी
  • उज़्व बिकबार उल-उलमा अल-सऊदीया यजीज़ो ज़वाज उल-मिस्यार व यसीरो जदलन, साइट अरबी 21, प्रविष्ठ की तारीख 19 फ़रवरी 2009 ई, विजिट की तारीख 13 मुरदाद 1403 शम्सी
  • क़रज़ावी, युसुफ़, हौला ज़वाज उल-मिस्यार, अराय शुदे दर हुमाइश मजमअ फ़िक़्ही इस्लामी, दौरा 18, मक्का 1427 हिजरी
  • मकारिम शिराज़ी, नासिर, किताब उन-निकाह, शोधः मुहम्मद रज़ा हामेदी व मसऊद मकारिम, क़ुम, इंतेशारात मदरसा इमाम अली इब्न अबि तालिब (अ), पहला संस्करण 1424 हिजरी
  • निकाह मिस्यार जायज़ अस्त, साइट दार उल-इफ़्ता मरक़जी अहले सुन्नत, प्रविष्ठ की तारीख 10 मुरदाद 1400 शम्सी, विजिट की तारीख 13 मुरदाद 1403 शम्सी