इरतेदाद

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इरतेदाद (अरबी الارتداد) अर्थात धर्मत्याग इस्लाम धर्म से निकलने छोड़ने अथवा ख़ारिज होने को कहते है। जो मुसलमान इस्लाम से खारिज हो जाता है, उसे धर्मत्यागी (मुरतद्द) कहा जाता है। ईश्वर के अस्तित्व से इंकार, पैगंबर (स), इस्लाम धर्म की सत्यता, और धर्म की अनिवार्यताओं जैसे नमाज़, रोज़ा और काबा जैसे धार्मिक अभयारण्यों का खुले तौर पर अपमान करने से धर्मत्याग (इरतेदाद) साबित होता है।

धर्मत्यागियों को मुरतद्दे मिल्ली और मुरतद्दे फ़ितरी दो प्रकारों में विभाजित किया गया है, जिनमें से प्रत्येक के अपने शरिया नियम (अहकाम) हैं। न्यायविदों के बीच लोकप्रिय राय के अनुसार, मुरतद्दे फ़ितरी पुरूष की सजा मृत्युदंड है; लेकिन मुरतद्दे मिल्ली पुरूष को पश्चाताप करने और धर्म में लौटने का अवसर दिया जाता है तथा पश्चाताप न करने पर उसे मृत्युदंड दिया जाता है। लेकिन मुरतद महिला, चाहे मुरतद्दे मिल्ली हो चाहे मुरतद्दे फ़ितरी हो उसकी सज़ा मृत्युदंड नही है बल्कि जब तक वह पश्चात नही करती उसको कारावास की सज़ा दी जाती है।

कुछ न्यायविद प्रसिद्ध मत के विरुद्ध इस बात मे विश्वास करते हैं कि यदि मुरतद्दे फितरी पुरूष पश्चताप कर लेता है तो उसको मृत्युदंड नही दिया जाएगा।

मुरतद के नजिस होने के कारण उससे विवाह जायज़ ना होना मुरतद के अहकाम मे से हैं। धर्मत्याग के लिए इस प्रकार की सजा के अस्तित्व का कारण मुसलमानों को उनकी धार्मिकता में लापरवाही करने से रोकना और इस्लाम के विरोधियों द्वारा धार्मिक विश्वासों को कमजोर नहीं करना है।

परिभाषा और प्रकार

धर्मत्याग एक न्यायशास्त्रीय शब्द (फ़िक़्ही इस्तेलाह) है और न्यायविदो (फ़ुक़्हा) ने इसे इस्लाम से ख़ारिज होने के रूप में परिभाषित किया हैं।[१] मुसलमान जिसने इस्लाम धर्म को छोड़ दिया है, उसे धर्मत्यागी (मुरतद्द) कहा जाता है।[२] न्यायशास्त्रीय (फ़िक़्ही) पुस्तको के शुद्धता (तहारत), सलात (नमाज़), ज़कात, सौम (रोज़ा), हज, व्यापार (तेजारत), निकाह और विरासत जैसे विभिन्न अध्यायो मे चर्चा की जाती है।[३] कुछ न्यायशास्त्रीय पुस्तकों में, "किताब अल-मुर्तद्द" नामक एक स्वतंत्र खंड धर्मत्याग (इरतेदाद) से समर्पित है।[४]

मुरतद्द के प्रकार

मुख़्य लेखः मुरतद्दे मिल्ली और मुरतद्दे फ़ितरी

मुरतद्द् के दो प्रकार हैं और प्रत्येक के अपने नियम हैं:[५] मुरतद्दे फ़ितरी वह है जोकि मुसलमान पैदा हुआ है;[६] अर्थात् उसके माता-पिता या उनमें से कोई एक मुसलमान है।[७] फिर वह इस्लाम से ख़ारिज हो जाए।[८] जबकि मुरतद्दे मिल्ली वह है जो पहले गैर-मुस्लिम था फिर मुस्लमान हुआ उसके बाद इस्लाम से निकल जाए।[९]

मुरतद साबित होने की शर्तें और तरीके

धर्मत्याग कर्म और कथन दोनो प्रकार से साबित होता है:

कथन द्वारा धर्मत्याग तब साबित होता है जब कोई ऐसी बात कहे जो इस्लाम से ख़ारिज होने की ओर इशारा करे। जैसे कोई कहे कि ईश्वर का अस्तित्व (अल्लाह वुजूद नही रखता) नहीं है, या हज़रत मुहम्मद (स) पैगंबर नहीं हैं, या इस्लाम सत्य का धर्म नहीं है।[१०] धर्म की आवश्यकता (ज़रूरियात ए दीन) को नकारना भी इसी प्रकार है।[११] धर्म की आवश्यकता जैसे कि नमाज़, रोज़ा और हज की बाध्यता (वुजूब); जिन्हे साबित करने के लिए किसी तर्क की आवश्यकता नहीं है और सभी मुसलमान इसे स्वीकार करते हैं।[१२]

कर्म द्वारा धर्मत्याग का अर्थ है कि कोई व्यक्ति ईशनिंदा जानते हुए जान बूझकर ईशनिंदा करे। जैसे मूर्ति को सज्दा करे, चंद्रमा या सूर्य की इबादत करे या काबा जैसे धार्मिक पवित्र स्थानों का "खुलेआम अपमान" करे।[१३]

आयतुल्लाह फ़ाज़िल लंकरानी के अनुसार, एकेश्वरवाद (तौहीद) और नबूवत के बारे में संदेह (शक) इंकार की ओर नही ले जाता तब तक इरतेदाद (धर्मत्याग) का कारण नही है।[१४] अल्लामा शेरानी की व्याख्या के अनुसार, "एक शोधकर्ता जो सबूत और तर्क के साथ सच्चे धर्म को खोजने की कोशिश करता है और इस अवधि के दौरान उसे संदेह का सामना करना पड़ता है लेकिन अपनी ज़बान से इंकार नही करता तो अनुसंधान अवधि के दौरान संदेह उसके कुफ्र और इरतेदाद (अविश्वास और धर्मत्याग) का कारण नहीं बनता।"[१५]

फ़ुक़्हा बुलूग़, अक़्ल, इरादा और इख़्तियार को धर्मत्याग की शर्ते मानते हैं।[१६] इन शर्तों के आधार पर किसी पागल व्यक्ति या किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा ईशनिंदा करना जो बालिग़ नहीं है, उसके मुरतद्द होने का कारण नहीं है।[१७] इसके अलावा वह व्यक्ति जो जानबूझकर ईशनिंदा नहीं करता या उसे ईशनिंदा करने पर मजबूर किया जाए तो ऐसा व्यक्ति मुरतद्द (धर्मत्यागी) नहीं है।[१८]

न्यायविदों के फतवों के अनुसार, धर्मत्याग दो तरह से सिद्ध होता है: एक धर्मत्यागी द्वारा अपने धर्मत्याग को स्वीकार करना और दूसरा बय्येना अर्थात दो आदिल व्यक्तियो द्वारा किसी व्यक्ति के धर्मत्याग के बारे में गवाही देना।[१९] शहीद अव्वल के अनुसार, दो व्यक्ति किसी व्यक्ति के धर्मत्यागी होने पर गवाही देते है और वह कहे कि उसने गलती की है तो उसकी बात को स्वीकार किया जाएगा और इसी प्रकार यदि वह कहे कि उसे ऐसा करने पर विवश किया गया था और उसके पास तर्क (क़रीना) हो तो भी उसकी बात स्वीकार की जाएगी।[२०]

इस्लामी जगत में मुरतद के नमूने

पैगंबर ए इस्लाम (स) के समय में धर्मत्याग के उदाहरण ऐतिहासिक और तफ़सीरी किताबों में उल्लेखित है।[२१] उनमें अबुल हुसैन के दो बेटे हैं जो अंसार से थे। जिन्होने ईसाइयों के एक समूह के निमंत्रण पर इस्लाम को अलविदा कहते हुए ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया था।[२२] पैगंबर (स) ने उनकी निंदा करते हुए उन्हें पहला धर्मत्यागी घोषित किया।[२३] इसी प्रकार क़ुरैश के बुज़र्गो मे से उक़बा अबी मुइत ने शहादतैन पढ़ी ताकि पैगंबर (स) उसके भोजन को खाए; लेकिन कुछ समय पश्चात अपने दोस्त के अनुरोध पर पैगंबर (स) के चेहरे पर थूकते हुए धर्मत्यागी हो गया। बद्र की लड़ाई में उसे पकड़ने के बाद पैगंबर ने उसकी हत्या का आदेश दिया।[२४] अबू सुफ़यान की बेटी उम्मे हकम और पैगंबर की पत्नी उम्मे सलामा की बहन फातिमा पैगंबर के दौर में धर्मत्यागी महिलाओं में शामिल थीं। फ़त्ह मक्का के अवसर पर उम्मे हकम ने फिर से इस्लाम स्वीकार कर लिया था।[२५] सय्यद अब्दुल करीम मूसवी अर्दबेली ने अपनी न्यायशास्त्र की पुस्तक, फ़िक़ह अल-हुदूद वा ताज़ीरत में, पैगंबर और इमामो (अ) के समय में धर्मत्याग के उदाहरण दिए हैं।[२६] हाल के वर्षों में धर्मत्याग के लिए दोषी ठहराए गए या मारे गए लोगो मे निम्नलिखित नाम शामिल हैं:

मुरतद के अहकाम

धर्मत्याग के कुछ नियम (अहकाम) इस प्रकार हैं:

मुरतद्द की सजा

मुरतद्दे मिल्ली पुरूष जोकि पश्चाताप नहीं करता और मुरतद्दे फ़ितरी पुरूष की सज़ा मृत्युदंड है;[३०] लेकिन मुरतद्द महिला को तब तक कारावास में रखा जाएगा जब तक वह पश्चाताप न करे या मर नहीं जाती।[३१] हलांकि महिला चाहे मुरतद्दे मिल्ली हो या मुरतद्दे फ़ितरी अगर वह पश्चाताप करती है तो उसकी पश्चताप स्वीकार की जाएगी।[३२]

कुछ न्यायविदों ने धर्मत्याग के फैसलों के बारे में प्रसिद्ध फतवों के खिलाफ विचार सामने रखे हैं; सय्यद अब्दुल करीम मूसवी अर्दबेली[३३] और मरज ए तक़लीद मुहम्मद इस्हाक़ फ़य्याज़ मुरतद्दे फ़ितरी पुरूष के हुक्म को मुरतद्द के दूसरे अहकाम जैसा मानते हुए फतवा दिया है कि अगर मुरतद्दे फ़ितरी पुरूष प्रायश्चित करता है तो उसे भी सज़ा नहीं दी जाएगी।[३४]

अब्दुल्लाह जवादी अमोली ने भी कहा है कि जो व्यक्ति अनुसंधान (रिसर्च) के कारण संदेह मे पड़ जाए और धर्म से दूर हो जाए उसकी हत्या नही की जाएगी; क्योंकि हदीसों के आधार पर, संदेह होने पर भी सीमित दंड लागू नहीं किया जाना चाहिए।[३५]

कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि धर्मत्यागी की सजा परिवर्तनशील दंडों में से एक है और विलाई हुक्म है जो इस्लाम की शुरुआत में पैगंबर (स) द्वारा काफिरों के एक समूह के राजद्रोह और पाखंडीयो के धोखे से निपटने के लिए निर्धारित किया गया था। धर्मत्यागी की सजा और उसकी मात्रा और कार्यान्वयन का निर्धारण इस्लामी समाज के हितों पर आधारित है और पर्यावरणीय परिस्थितियों और शासक के विवेक पर निर्भर करता है।[३६]

धर्मत्यागी (मुरतद्द) को दण्ड देने का दर्शनशास्त्र

धर्मत्यागी को दंड देने के दर्शनशास्त्र की व्याख्या करते हुए, विभिन्न हिकमतो का उल्लेख किया गया है:

  • क्योंकि इस्लाम, राजनीतिक व्यवस्था का आधार है, धर्मत्याग और इसका प्रकटीकरण इस्लाम के कमजोर होने और उस पर आधारित राजनीतिक व्यवस्था के पतन का कारण बनता है। इस कारण वंश इस्लामी सरकार धर्मत्याग के प्रकटीकरण के खिलाफ खड़े होने और इसके लिए सजा पर विचार करने के लिए बाध्य है।[३७]
  • क्योंकि इस्लाम, वह कारक है जो समाज को जोड़ता है, धर्मत्याग और इसकी अभिव्यक्ति लोगों को अलग करने का कारण बनती है। मेहदी बाज़रगान ने जिनेवा विश्वविद्यालय में कानून के प्रोफेसर मार्सेल बुआजार से नक़ल करते हैं, "इस्लाम का धर्मत्यागियों के प्रति सख्त होने का शायद यह कारण हो सकता है कि सरकारी व्यवस्था और इस्लामी समाजों की प्रशासनिक व्यवस्था में, ईश्वर में विश्वास का विशुद्ध रूप से धार्मिक और व्यक्तिगत नहीं है। लेकिन उम्मत की एकता के बंधनों में से एक है। और यह सरकार की नींव है, ताकि इसके न होने से समाज की स्थिरता और स्थायित्व खत्म हो जाए, और यह आत्महत्या या देशद्रोह और भ्रष्टाचार की तरह है, जिसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता"।[३८]
  • इस्लाम की घोषणा करने का अर्थ है एक विशेष आदेश के लिए प्रतिबद्ध होना और एक विशेष पहचान को स्वीकार करना; इसलिए धर्मत्याग समाज की सामान्य पहचान के खिलाफ विद्रोह का एक रूप है, जो समाज की शांति को भंग करता है।[३९]
  • धर्मत्यागी को दंडित करने में सख्त होने का कारण धर्म को एक साधारण मुद्दा न मानना और इसे चुनने में अधिक सावधानी बरतना है।[४०]
  • धर्मत्यागी को दंडित करना इस्लाम के विरोधियों को लोगों के विश्वास को कमजोर करने और फिर इस्लाम छोड़ने के इरादे से इस्लाम स्वीकारने से रोकता है; चूंकि इस्लाम के आरंभ में इस्लाम के शत्रुओं की योजना ऐसी ही थी और इसी कारण धर्मत्यागी की सजा का निर्धारण किया गया था।[४१]

दूसरे अहकाम

न्यायशास्त्रीय स्रोतों के आधार पर धर्मत्याग के कुछ नियम इस प्रकार हैं:

  • अशुद्धता अर्थात निजासत: इरतेदाद, मुरतद्द की निजासत का कारण बनता है।[४२] मुरतद्दे फ़ितरी महिला, मुरतद्दे मिल्ली चाहे पुरूष हो या महिला हो, यदि वे पश्चाताप करते हैं तो वो पाक हो जाते है।[४३]
  • विवाह का भंग होना: निकाह के बाद और शारीरिक संबंध बनाने से पहले पुरूष या महिला मे से कोई एक धर्मत्यागी हो जाए तो विवाह भंग हो जाता है।[४४] यदि पुरुष शारीरिक संबंध बनाने के पश्चात मुरतद्द (धर्मत्यागी) हो जाए और मुरतद्दे फ़ितरी हो विवाह भंग हो जाता है; हालाँकि अगर महिला मुरतद्द हो जाए चाहे मिल्ली हो या फ़ितरी अगर इद्दत (इद्दते तलाक) की अवधि समाप्त होने तक पश्चाताप नहीं करती है, तो निकाह भंग हो जाता है। अन्यथा सही बाकी रहता है। इसी तरह अगर मुरतद्दे मिल्ली पुरूष हो।[४५] धर्मत्याग (इरतेदाद) मुसलमान को धर्मत्यागी (मुरतद्द) से शादी करने से रोकता है।[४६]
  • विरासत: इरतेदाद, मुरतद्द को मुसलमान से विरासत मिलने से रोकता है।[४७]

इरतेदाद और ईरानी क़ानून

ईरान के इस्लामी दंड संहिता में धर्मत्याग को अपराध के रूप में वर्णित नहीं किया गया है और इसके लिए कोई सजा निर्धारित नहीं की गई है;[४८] लेकिन कुछ लोग संविधान का हवाला देते हुए इसे अपराध मानते हैं।[४९] इस सिद्धांत में यह कहा गया है: " न्यायाधीश बाध्य है कि वह संहिताबद्ध कानूनों में प्रत्येक मुकदमे के फैसले को खोजने का प्रयास करे और यदि वह इसे नहीं पाता है, तो उसे विश्वसनीय इस्लामी स्रोतों या वैध फतवों का हवाला देकर मामले का फैसला जारी करना चाहिए..."[५०]

फ़ुटनोट

  1. देखेः शहीद सानी, हाशयातुल इरशाद, 1414 हिजरी, भाग 4, पेज 285; मूसवी अर्दबेली, फ़िक़्ह अल-हुदूद वत ताज़ीरात, 1427 हिजरी, भाग 4, पेज 44-46
  2. देखेः ख़ूई, तकमेलातुल मिन्हाज, 1410 हिजरी, पेज 53; वहीद ख़ुरासानी, मिन्हाज अल-सालेहीन, 1428 हिजरी, भाग 3, पेज 500; मूसवी अर्दबेली, फ़िक़्ह अल-हुदूद वत ताज़ीरात, 1427 हिजरी, भाग 4, पेज 44-46
  3. मोअस्सेसा दाएरातुल मआरिफ़ फ़िक़्ह इस्लामी, फ़रहंग फ़िक़्ह, 1390 शम्सी, भाग 1, पेज 366
  4. मोअस्सेसा दाएरातुल मआरिफ़ फ़िक़्ह इस्लामी, फ़रहंग फ़िक़्ह, 1390 शम्सी, भाग 1, पेज 366
  5. देखेः मोहक़्क़िक़ हिल्ली, शराए अल-इस्लाम, 1408 हिजरी, भाग 4, पेज 170-171
  6. मोहक़्क़िक़ हिल्ली, शराए अल-इस्लाम, 1408 हिजरी, भाग 4, पेज 170
  7. नजफ़ी, जवाहिर अल-कलाम, 1362 शम्सी, भाग 4, पेज 602
  8. मोहक़्क़िक़ हिल्ली, शराए अल-इस्लाम, 1408 हिजरी, भाग 4, पेज 170
  9. मोहक़्क़िक़ हिल्ली, शराए अल-इस्लाम, 1408 हिजरी, भाग 4, पेज 171
  10. मूसवी अर्दबेली, फ़िक़्ह अल-हुदूद वत ताज़ीरात, 1427 हिजरी, भाग 4, पेज 47
  11. मोअस्सेसा दाएरातुल मआरिफ़ फ़िक़्ह इस्लामी, फ़रहंग फ़िक़्ह, 1392 शम्सी, भाग 5, पेज 146
  12. मोअस्सेसा दाएरातुल मआरिफ़ फ़िक़्ह इस्लामी, फ़रहंग फ़िक़्ह, 1392 शम्सी, भाग 5, पेज 146
  13. मूसवी अर्दबेली, फ़िक़्ह अल-हुदूद वत ताज़ीरात, 1427 हिजरी, भाग 4, पेज 47-48
  14. फ़ाज़िल लंकरानी, जामे अल-मसाइल, भाग 2, पेज 504 (बे नक़ल अज़ः सरोश महल्लाती, आज़ादी, अक़्ल व ईमान, 1381 शम्सी, पेज 282-283)
  15. हुर्रे आमोली, वसाइल अल-शिया, भाग 18, पेज 596 (बे नक़ल अज़ः सरोश महल्लाती, आज़ादी, अक़्ल व ईमान, 1381 शम्सी, पेज 284)
  16. देखेः नजफ़ी, जवाहिर अल-कलाम, 1362 शम्सी, भाग 41, पेज 609-610 मूसवी अर्दबेली, फ़िक़्ह अल-हुदूद वत ताज़ीरात, 1427 हिजरी, भाग 4, पेज 102, 105, 115
  17. नजफ़ी, जवाहिर अल-कलाम, 1362 शम्सी, भाग 41, पेज 609
  18. नजफ़ी, जवाहिर अल-कलाम, 1362 शम्सी, भाग 41, पेज 609-610
  19. देखेः शहीद अव्वल, अल-दुरूस अल-शरीया, 1417 हिजरी, भाग 2, पेज 52 अल्लामा हिल्ली, तहरीर अल-अहकाम, 1420 हिजरी, भाग 5, पेज 397
  20. शहीद अव्वल, अल-दुरूस अल-शरीया, 1417 हिजरी, भाग 2, पेज 52
  21. सादक़ी फ़िदकी, इरतेदाद, 1388 शम्सी, पेज 293
  22. सादक़ी फ़िदकी, इरतेदाद, 1388 शम्सी, पेज 293-294
  23. सादक़ी फ़िदकी, इरतेदाद, 1388 शम्सी, पेज 294
  24. सादक़ी फ़िदकी, इरतेदाद, 1388 शम्सी, पेज 295-296
  25. सादक़ी फ़िदकी, इरतेदाद, 1388 शम्सी, पेज 312
  26. देखेः मूसवी अर्दबेली, फ़िक़्ह अल-हुदूद वत ताज़ीरात, 1427 हिजरी, भाग 4, पेज 5-29
  27. सरवश्ती के नव्वाब बराए सुज़ानंनदे क़ुरआन रक़म ज़द + तसावीर
  28. फ़तवा तारीखी इमाम ख़ुमैनी मबनी बर महदूर अल-दम बूदन सलमान रूश्दी
  29. फ़तवा तारीखी इमाम ख़ुमैनी मबनी बर महदूर अल-दम बूदन सलमान रूश्दी
  30. मोहक़्क़िक़ हिल्ली, शराए अल-इस्लाम, 1408 हिजरी, भाग 4, पेज 170-171
  31. नजफ़ी, जवाहिर अल-कलाम, 1362 शम्सी, भाग 41, पेज 611-612
  32. नजफ़ी, जवाहिर अल-कलाम, 1362 शम्सी, भाग 41, पेज 612-613
  33. मूसवी अर्दबेली, फ़िक़्ह अल-हुदूद वत ताज़ीरात, 1427 हिजरी, भाग 4, पेज 151
  34. फ़य्याज़ काबुली, रिसाला तौज़ीहुल मसाइल, 1426 हिजरी, पेज 626
  35. जवादी आमोली, तस्नीम, 1388 शम्सी, भाग 12, पेज 183-184
  36. सरोश महल्लाती, आज़ादी, अक़्ल व ईमान, 1381 शम्सी, पेज 287-305
  37. ऊदा, अल-तशरीअ अल-जनाई अल-इस्लामी, दार अल-किताब अल-अरबी, भाग 1, पेज 536 और पेज 631; मुताहरी, याद दाश्तहा, 1390 शम्सी, भाग 2, पेज 316
  38. मैबदी, दीनदारी व आज़ादी, 1378 शम्सी, पेज 135
  39. फ़ज़्लुल्लाह, आज़ादी व डेमोक्रेसी, 1377 शम्सी, पेज 114
  40. शाकेरीन, पुरसिश्हा वा पासुख़हाए दानिशजूई, 1389 शम्सी, पेज 317
  41. शाकेरीन, पुरसिश्हा वा पासुख़हाए दानिशजूई, 1389 शम्सी, पेज 314
  42. शेख तूसी, अल-मब्सूत, 1387 हिजरी, भाग 1, पेज 14
  43. नजफ़ी, जवाहिर अल-कलाम, 1362 शम्सी, भाग 6, पेज 293
  44. मोहक़्क़िक़ हिल्ली, शराए अल-इस्लाम, 1408 हिजरी, भाग 4, पेज 170-171
  45. नजफी, जवाहिर अल-कलाम, 1362 शम्सी, भाग 30, पेज 49
  46. नजफी, जवाहिर अल-कलाम, 1362 शम्सी, भाग 30, पेज 47
  47. देखेः नजफी, जवाहिर अल-कलाम, 1362 शम्सी, भाग 39, पेज 17
  48. दरूदी, इरतेदात दर निज़ाम हुक़ूक़ी ईरान, पेज 66
  49. दरूदी, इरतेदात दर निज़ाम हुक़ूक़ी ईरान, पेज 66
  50. क़ानून ए असासी, जम्हूरी इस्लामी ईरान, 1386 शम्सी, पेज 89

स्रोत

  • ख़ूई, सय्यद अबुल क़ासिम, तकमेलातुल मिन्हाज, क़ुम, मदीनातुल इल्म, छब्बीसवां संस्करण, 1401 हिजरी
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  • मजमूआ नवीसंदेगान, दाएरतुल मआरिफ़ फ़िक़्ह इस्लामी, फ़रहंग फ़िक्ह मुताबिक मज़हब अहले-बैत (अ), भाग 1, क़ुम, मोअस्सेसा दाएरतुल मआरिफ़ फ़िक़्ह इस्लामी, 1391 शम्सी
  • मजमूआ मवीसंदेगान, दाएरतुल मआरिफ फ़िक़्ह इस्लामी, फ़रहंग फ़िक्ह, भगा 5, क़ुम, मोअस्सेसा दाएरतुल मआरिफ़ फ़िक्ह इस्लामी, 1392 शम्सी
  • मुताहरी, मुर्तज़ा, याद दाश्तहा, तेहरान, इंतेशात सदरा, 1390 शम्सी
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  • मैबदी, फ़ाज़िल, दीनदारी वा आजादी, इंतेशारात आफ़रीने, 1378 शम्सी
  • नजफी, मुहम्मद हसन, जवाहिर अल-कलाम फ़ी शरह शराए अल-इस्लाम, संशोधन आब्बास क़ूचानी अली आख़ूंदी, दार एहया अल-तुरास अल-अरबी, बैरूत, 1404 हिजरी
  • वहीद ख़ुरासीनी, हुसैन, मिन्हाज अल-सालेहीन, क़ुम, मदरसा इमाम बाक़िर, पांचवा संस्करण, 1428 हिजरी