संग्सार

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संग्सार या रज्म (अरबी: الرجم) एक ऐसी सज़ा है जिसमें दोषी को कमर या छाती तक ज़मीन के अन्दर डाल दिया जाता है और फिर पत्थर मार-मार कर मार डाला जाता है। संग्सार (पत्थर मारना) हुदूद में से एक है, और ज़ेना ए मोहसना की सज़ा है, अर्थात, विवाहित पुरुष या महिला के बीच व्यभिचार, और इसी तरह हाकिमे शरअ द्वारा मान्यता प्राप्त होने की स्थिति में लेवात की सज़ा है। संग्सार सिद्ध करने और लागू करने की शर्तें हैं; जिसमें स्थायी पत्नी होना और व्यभिचार (ज़ेना) के दौरान अपनी पत्नी के साथ व्यभिचारी (ज़ेना करने वाले) के संभोग की संभावना, शामिल है।

कुछ मराजे ए तक़्लीद, इस तथ्य के कारण कि आज संग्सार (पत्थर मारना) इस्लाम के हित में नहीं है, उन्होंने वैकल्पिक सज़ा लागू करने का फ़तवा जारी किया है।

इसके अलावा, तौरैत में, मूर्तियों पर बच्चों की बलि, जादू टोना, ईशनिंदा (कुफ़्र गोई), शनिवार का अपमान और व्यभिचार जैसे अपराधों के लिए संग्सार सज़ा देने का उल्लेख किया गया है।

परिभाषा और लागू करने की विधि

इस्लामी न्यायशास्त्र में, संग्सार, सज़ाओं और हुदूद में से एक है, और इसे कुछ विशेष शर्तों के साथ व्यभिचार जैसे अपराधों के लिए लागू किया जाता है।[१] संग्सार में अपराधी को कमर तक या सीने तक गड्ढे में डाल दिया जाता है और उस पर तब तक पत्थर मारे जाते हैं जब तक वह मारा न जाए।[२]

मोहक़्क़िक़ हिल्ली के अनुसार, पुरुषों को कमर तक और महिलाओं को छाती तक ज़मीन में दफ़नाया जाता है। यदि गवाहों की गवाही से अपराध सिद्ध हुआ है, तो गवाहों के लिए पत्थर मारना शुरू करना अनिवार्य है, और यदि दोषी के क़बूलनामे से सिद्ध हुआ है, तो हाकिमे शरअ को पत्थर मारना शुरू करना चाहिए।[३]

यदि अपराधी संग्सार के दौरान भाग जाता है, अगर उसका अपराध उसके स्वयं के क़बूलनामे से सिद्ध हुआ है, तो उसे माफ़ कर दिया जाएगा और दोबारा संग्सार नहीं किया जाएगा; लेकिन अगर गवाहों की गवाही से सिद्ध हुआ है तो उसे फिर से संग्सार किया जाएगा।[४]

वह अपराध जिसकी सज़ा संग्सार है

न्यायविदों के फ़तवे के अनुसार, संग्सार ज़ेना ए मोहसना की सज़ा है;[५] अर्थात् उस व्यभिचारी पुरूष की सज़ा जिसकी पत्नी या दासी (कनीज़) हो; साथ ही, उस व्यभिचारी महिला की सज़ा जिसका पति हो। संग्सार, लेवात में भी लागू किया जाता है, लेकिन यह कोई निश्चित सज़ा नहीं है और हाकिमे शरअ इसके (संग्सार) और हत्या के अन्य तरीक़ों के बीच चयन कर सकता है।[६]

पुराने नियम के अनुसार, कुछ अपराधों की सज़ा संग्सार है; जिसमें मूर्तियों के लिए बच्चे की बलि देना,[७] जादू टोना,[८] ईशनिंदा (कुफ़्र गोई),[९] शनिवार की पवित्रता का अपमान करना,[१०] मूर्ति पूजा के लिए आमंत्रित करना[११] और व्यभिचार शामिल है।[१२]

संगसार की शरई दलीलें

संग्सार की वैधता और इसके लागू करने पर सुन्नियों और शियों का प्रसिद्ध फ़तवा, पैग़म्बर (स) और इमाम अली (अ) द्वारा कई मामलों में इसके कार्यान्वयन पर है, लेकिन कई अन्य न्यायविदों ने इसे खारिज कर दिया है और इसे यहूदियों के लिए विशिष्ट माना है। जो इस्लामी कानून में और पवित्र कुरआन में निर्दिष्ट या उल्लेखित नहीं है।[१३]

कुछ शिया रिवायात और हदीसों में कहा गया है कि इस्लाम में संग्सार की एक हद है, लेकिन इसे केवल किसी मासूम की उपस्थिति में ही अंजाम देने की अनुमति है। कुछ अन्य न्यायविदों की राय यह है कि कुरआन में व्यभिचार की हद (सज़ा) स्पष्ट है और इसमें कोड़े मारने की सज़ा दी जाएगी और "माइज़" और "ग़ामेदिया की पत्नी" जैसे लोगों को पत्थर मारने से जुड़ी कुछ खबरें कई अस्पष्टताओं और विसंगतियों के कारण हदीस विज्ञान के दृष्टिकोण से खारिज कर दी गई हैं।[१४]

संग्सार के बारे में बहुत हदीसें हैं।[१५] उनमें से इमाम सादिक़ (अ) द्वारा अबू बसीर की रिवायत है, जिसके अनुसार संग्सार (पत्थर मारना) ईश्वर की महान सीमा (बुज़ुर्ग हद) है और यदि कोई व्यभिचार (ज़ेना ए मोहसना) करता है, तो उसे संग्सार किया जाएगा।[१६] इसके अलावा, एक हदीस है जिसमें इमाम बाक़िर (अ) कहते हैं कि इमाम अली (अ) व्यभिचार (ज़ेना ए मोहसना) के लिए संग्सार का हुक्म देते थे।[१७]

संग्सार के बारे में न्यायविदों के पास एक अन्य दलील आम सहमति (इजमा) है।[१८] शेख़ तूसी ने किताब अल-ख़िलाफ में लिखा है: सभी मुस्लिम न्यायविद संग्सार को स्वीकार करते हैं, और केवल ख़्वारिज ने इसे अस्वीकार कर दिया है क्योंकि यह कुरआन और हदीसों में मुत्वातिर रुप से नहीं पाया जाता है।[१९]

कुरआन में संग्सार

शिया विद्वानों का मानना है कि कुरआन में संग्सार के बारे में कोई आयत नहीं है[२०] और इसका हुक्म हदीसों और मुसलमानों की आम सहमति (इजमा) से लिया गया है;[२१] लेकिन कई सुन्नी न्यायविदों और उसूलियों का मानना है कि कुरआन में संग्सार के बारे आयत है।[२२] इस समूह का कारण (दलील) वह रिवायात हैं जिनका उल्लेख कई सुन्नी हदीसी स्रोतों में किया गया है।[२३]

उदाहरण के लिए, सहीह अल बोख़ारी में, उमर बिन ख़त्ताब को यह कहते हुए उद्धृत किया गया है कि मुझे डर है कि समय बीत जाएगा और लोगों को बताया जाएगा कि कुरआन में संग्सार का उल्लेख नहीं किया गया है, और लोग उस दायित्व को त्याग करके भटक जाएंगे जो परमेश्वर ने नाज़िल किया है।[२४] इसके अलावा, मालिक बिन अनस ने उमर से उद्धृत किया है: क़ुरआन में आय ए संग्सार के न होने के कारण इसकी उपेक्षा न करो; क्योंकि पैग़म्बर (स) संग्सार करते थे और हम भी संग्सार करते थे। यह आयत कुरआन में थी और मैंने इसे नहीं लिखा क्योंकि मुझे डर था कि लोग कहेंगे कि मैंने ईश्वर की किताब में कुछ जोड़ा है।[२५] उमर इब्ने ख़त्ताब के अनुसार संग्सार की आयत इस प्रकार थी: «إذا زَنىٰ الشَيخ ُو الشَيخَة فَارْجُمُوهما اَلبَتَّة» (एज़ा ज़ना अल शैख़ो व अल शैख़तो फ़रजोमूहोमा अल्बत्तता)[२६] (अनुवाद: यदि कोई बूढ़ा आदमी और बूढ़ी औरत व्यभिचार करें, तो उन्हें संग्सार कर दो)।[२७]

अबू बक्र बाक़्लानी सहित कुछ सुन्नी विद्वान और अबू मुस्लिम इस्फ़हानी सहित अधिकांश मोतज़ेला इस दृष्टिकोण को स्वीकार नहीं करते हैं।[२८] उनका कहना है कि यदि यह वाक्यांश कुरआन का हिस्सा होता, तो उमर इब्ने ख़त्ताब ने इसे कुरआन में शामिल किया होता और लोगों के कहने के कारण इसे नहीं छोड़ा होता। साथ ही, इस वाक्यांश का साहित्य अलंकार के संदर्भ में कुरआन के साहित्य के समान नहीं है।[२९]

समकालीन शिया न्यायविदों में से एक, आयतुल्लाह ख़ूई ने अल-बयान में लिखा है: यदि यह रिवायत सत्य है, तो यह कहा जाना चाहिए कि: कुरआन से एक आयत हटा दी गई है[३०] और इस कथन की आवश्यकता यह है कि हम स्वीकार करें कि कुरआन में तहरीफ़ हुई है।[३१]

लागू करने की शर्तें

न्यायविदों की दृष्टि से संग्सार की शर्त इहसान का होना है; अर्थात जिस व्यक्ति को संग्सार किया जाता है उसमें निम्नलिखित विशेषताएं होनी चाहिए:

  • एक स्थायी पत्नी होना और उसके साथ यौन संबंध बनाने में सक्षम होना
  • आपराधिक ग़ुलाम या कनीज़ न होना
  • बुलूग़
  • बुद्धिमान (आक़िल) होना।[३२]
रेम्ब्रांट द्वारा सेंट स्टीफ़न को संग्सार करने की एक छवि।

संग्सार और मानवाधिकार

संग्सार के हुक्म पर आलोचना हुई है; जैसे कहा गया है कि, संग्सार एक अतार्किक सज़ा है और मानवाधिकारों के खिलाफ़ है।[३३] इसके अलावा, अपराध और सज़ा के बीच कोई आनुपातिकता नहीं है; क्योंकि यौन शक्ति के दबाव से एक क्षण के लिए भी फिसलने वाले के लिए यह सज़ा बहुत सख्त है; क्योंकि उसका कार्य भ्रष्ट (मफ़्सदा) नहीं होता और दूसरों को हानि नहीं पहुँचाता।[३४]

पहले आलोचना के उत्तर में उन्होंने कहा है कि इस्लाम अपराध सिद्ध करने की अवस्था और संग्सार करने की अवस्था दोनों में बहुत सख्त है; इस हद तक कि यह हुक्म एक चेतावनी है और इसे शायद ही कभी लागू किया जाता है।[३५] उन्होंने दूसरे आलोचना में भी प्रतिक्रिया दी है कि इस तरह की सज़ा का अस्तित्व इस दुनिया और आख़िरत में व्यभिचार के हानिकारक प्रभावों के कारण है, जैसे अधर्म, अनैतिकता, यौन संचारित रोग, पहचानहीन बच्चों का संकट और मनोवैज्ञानिक असुरक्षा। इसलिए, उस अपराध और सज़ा में आनुपातिक हैं।[३६]

संग्सार के हुक्म में बदलाव

2013 में, संग्सार के शरई हुक्म में बदलाव के संबंध में कुछ मराजे ए तक़लीद के साथ एक परामर्श (इस्तिफ़्ता) आयोजित किया गया था, जिसके परिणामस्वरूप उनसे अलग-अलग उत्तर प्राप्त हुए। इस परामर्श (इस्तिफ़्ता) में कहा गया था कि, यह देखते हुए कि आज संग्सार के कार्यान्वयन से इस्लाम के विरोधियों की आलोचना होती है, क्या इसके लिए कोई विकल्प निर्धारित करना संभव है?[३७]

इस इस्तिफ़्ता के उत्तर में, आयतुल्लाह नूरी हमदानी और आयतुल्लाह अल्वी गुर्गानी ने संग्सार की सज़ा को अपरिवर्तनीय घोषित किया, लेकिन इसके निष्पादन की विधि निर्धारित करना वली ए फ़क़ीह की ज़िम्मेदारी माना है। आयतुल्लाह मकारिम शिराज़ी और आयतुल्लाह सुब्हानी ने इसे वर्तमान स्थिति में प्रतिस्थापन योग्य बताया है। आयतुल्लाह मूसवी अर्दाबेली ने भी लिखा है कि: संग्सार की सज़ा परिवर्तनीय नहीं है, लेकिन अगर यह इस्लाम और मुसलमानों के हितों के खिलाफ़ है, तो फ़क़ीह जामेअ अल शराएत इसके कार्यान्वयन के खिलाफ़ हुक्म दे सकता है।[३८]

इस्लाम से पूर्व संगसार

बाइबिल के दौरान संग्सार (पत्थर मारना) आम दंडों में से एक था।[३९] यह भी कहा जाता है कि सुमेरियान (मेसोपोटामिया (बैन अल नहरैन) में रहने वाले लोग) से संबंधित तख्तियां, जो सबसे पुराने कानूनी लेख हैं, संग्सार की सज़ा का उल्लेख करते हैं।[४०] इन तख्तियों के अनुसार, जो 2400 ईसा पूर्व की हैं, चोरी और दो पुरुषों के साथ एक महिला से शादी करने (वैवाहिक संभोग) जैसे अपराधों के लिए संग्सार की सज़ा थी।[४१]

फ़ुटनोट

  1. मोहक़्क़िक़ हिल्ली, शराए अल इस्लाम, 1408 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 141 और 142।
  2. मोअस्सास ए दाएरतुल मआरिफ़ फ़िक़हे इस्लामी, फ़र्हंगे फ़िक़्ह, 1389 शम्सी, खंड 4, पृष्ठ 71।
  3. मोहक़्क़िक़ हिल्ली, शराए अल इस्लाम, 1408 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 143 और 144।
  4. मोहक़्क़िक़ हिल्ली, शराए अल इस्लाम, 1408 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 144।
  5. उदाहरण के लिए देखें, मोहक़्क़िक़ हिल्ली, शराए अल इस्लाम, 1408 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 141 और 142 ; नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1404 हिजरी, खंड 41, पृष्ठ 381।
  6. मोहक़्क़िक़ हिल्ली, शराए अल इस्लाम, 1408 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 147; नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1404 हिजरी, खंड 41, पृष्ठ 381।
  7. किताब मुक़द्दस, लावियान, 20:2
  8. किताब मुक़द्दस, लावियान, 20:27
  9. किताब मुक़द्दस, लावियान, 24:16
  10. किताब मुक़द्दस, आदाद, 15:35-36,।
  11. किताब मुक़द्दस, तस्निया, 13:11
  12. किताब मुक़द्दस, तस्निया, 22:21 और 24
  13. शकूरी, "ताअम्मोली हद्दे रजम व मनाबेअ व मबानी ए आन", पृष्ठ 190।
  14. शकूरी, "ताअम्मोली हद्दे रजम व मनाबेअ व मबानी ए आन", पृष्ठ 191।
  15. ईरवानी, दुरुस तम्हीदिया, 1427 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 272; तबरेज़ी, ओसस अल हुदूद व अल ताज़ीरात, 1417 हिजरी, पृष्ठ 107।
  16. हुर्रे आमोली, वसाएल अल शिया, खंड 28, 1409 हिजरी, पृष्ठ 61।
  17. हुर्रे आमोली, वसाएल अल शिया, खंड 28, 1409 हिजरी, पृष्ठ 61।
  18. देखें शेख़ तूसी, अल ख़िलाफ़, 1407 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 365; तबरेज़ी, ओसस अल हुदूद वा अल ताज़ीरात, 1417 हिजरी, पृष्ठ 107; नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1404 हिजरी, खंड 41, पृष्ठ 318।
  19. शेख़ तूसी, अल खिलाफ़, 1407 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 365।
  20. उदाहरण के लिए देखें, मूसवी अर्दाबेली, फ़िक़्ह अल हुदूद वा अल ताज़ीरात, 1427 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 439; खूई, अल बयान, 1401 हिजरी, पृष्ठ 202।
  21. उदाहरण के लिए देखें, तबरेज़ी, ओसस अल हुदूद वा अल ताज़ीरत, पृष्ठ 107; मूसवी अर्दाबेली, फ़िक़्ह अल-हुदूद वा अल ताज़ीरात, 1427 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 439।
  22. कुर्दी, कंकाशी फ़िक़्ही व हुक़ूक़ी दर मजाज़ाते एदाम, पृष्ठ 242।
  23. कुर्दी, कंकाशी फ़िक़्ही व हुक़ूक़ी दर मजाज़ाते एदाम, पृष्ठ 242।
  24. बोख़ारी, सहीह बोख़ारी, 1422 हिजरी, खंड 8, पृष्ठ 168
  25. मालिक बिन अनस, मोअत्ता इब्ने मालिक, 1406 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 824।
  26. मालिक बिन अनस, मोअत्ता इब्ने मालिक, 1406 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 824; ख़ूई, अल बयान, 1401 हिजरी, पृष्ठ 202।
  27. कुर्दी, कंकाशी फ़िक़्ही व हुक़ूक़ी दर मजाज़ाते एदाम, पृष्ठ 243।
  28. कुर्दी, कंकाशी फ़िक़्ही व हुक़ूक़ी दर मजाज़ाते एदाम, पृष्ठ 243 और 244।
  29. कुर्दी, कंकाशी फ़िक़्ही व हुक़ूक़ी दर मजाज़ाते एदाम, पृष्ठ 244।
  30. ख़ूई, अल बयान, 1401 हिजरी, पृष्ठ 219।
  31. ख़ूई, अल बयान, 1401 हिजरी, पृष्ठ 202।
  32. शहीद सानी, अल रौज़ा अल बहीया, 1412 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 352 और 353; मोहक़्क़िक़ हिल्ली, शराए अल-इस्लाम, 1408 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 137 और 138।
  33. कद ख़ोदाई और बाक़िर ज़ादेह, "बर्रसी ए हुक्मे संगसार अज़ मंज़रे फ़िक़ह व हुक़ूक़े बशर", 1390 शम्सी, पृष्ठ 41।
  34. कद ख़ोदाई और बाक़िर ज़ादेह, "बर्रसी ए हुक्मे संगसार अज़ मंज़रे फ़िक़ह व हुक़ूक़े बशर", 1390 शम्सी, पृष्ठ 60।
  35. कद ख़ोदाई और बाक़िर ज़ादेह, "बर्रसी ए हुक्मे संगसार अज़ मंज़रे फ़िक़ह व हुक़ूक़े बशर", 1390 शम्सी, पृष्ठ 62।
  36. कद ख़ोदाई और बाक़िर ज़ादेह, "बर्रसी ए हुक्मे संगसार अज़ मंज़रे फ़िक़ह व हुक़ूक़े बशर", 1390 शम्सी, पृष्ठ 62 और 63।
  37. "क्या पत्थर मारने की जगह कोई और सज़ा देना संभव है?", ISNA समाचार एजेंसी।
  38. "क्या पत्थर मारने की जगह कोई और सज़ा देना संभव है?", ISNA समाचार एजेंसी।
  39. कद ख़ोदाई, "बर्रसीए हुक्मे संगसार दर इस्लाम", पृष्ठ 16।
  40. कद ख़ोदाई, "बर्रसीए हुक्मे संगसार दर इस्लाम", पृष्ठ 15।
  41. कद ख़ोदाई, "बर्रसीए हुक्मे संगसार दर इस्लाम", पृष्ठ 15।

स्रोत

  • किताब मुक़द्दस।
  • ईरवानी, बाक़िर, दुरूस तम्हीदिया फ़ी अल फ़िक़्ह अल इस्तदलाली अला अल मज़हब अल जाफ़री, दूसरा संस्करण, 1427 हिजरी।
  • बोख़ारी, मुहम्मद बिन इस्माइल, अल जामेअ अल मुसनद अल सहीह (सहीह अल बोखारी), मुहम्मद ज़ुहैर बिन नासिर अल-नासिर द्वारा शोध, दार अल तौक़ अल नेजात, 1422 हिजरी)
  • तबरेज़ी, जवाद, ओसस अल हुदूद व अल ताज़ीरात, क़ुम, दफ़्तरे मोअल्लिफ़, पहला संस्करण, 1417 हिजरी।
  • हुर्रे आमोली, मुहम्मद बिन हसन, तफ़सील वसाएल अल शिया एला तहसील मसाएल अल शरीया, क़ुम, मोअस्सास ए आले अल बैत, पहला संस्करण, 1409 हिजरी।
  • ख़ूई, सय्यद अबुल क़ासिम, अल बयान फ़ी तफ़सीर अल कुरआन, क़ुम, अनवार अल होदा, 1401 हिजरी।
  • शकूरी, अबुल फ़ज़्ल, "तअम्मोली दरबार ए हद्दे रजम व मनाबेअ व मबानी ए आन", याद, संख्या 75, 1384 शम्सी।
  • शहीद सानी, ज़ैनुद्दीन आमोली, अल रौज़ा अल बहिया फ़ी शरहे अल लोमा' अल-दमश्किया, क़ुम, इंतेशाराते दफ़्तरे तब्लीग़ाते इस्लामी हौज़ ए इल्मिया क़ुम, पहला संस्करण, 1412 हिजरी।
  • शेख़ तूसी, मुहम्मद बिन हसन, अल खिलाफ़, क़ुम, मोअस्सास ए इंतेशाराते इस्लामी, पहला संस्करण, 1407 हिजरी।
  • कद खोदाई, मुहम्मद रज़ा, "बर्रसी हुक्मे संगसार दर इस्लाम (पीशीने, शराएत, अदिल्ला)", फ़िक़्ह, खंड 1 (67), 1390 शम्सी।
  • कद ख़ोदाई, मुहम्मद रज़ा, और मुहम्मद बाक़िर ज़ादेह, "[१] बर्रसी ए हुक्मे संगसार अज़ मंज़रे फ़िक़ह व हुक़ूक़े बशर", अंदीशेहाए हुक़ूक़े बशर मैगज़ीन में (मोअस्सास ए इमाम खुमैनी), सर्दी 1390 शम्सी।
  • कुर्दी, उम्मीद उस्मान, कंकाशी फ़िक़्ही व हुक़ूक़ी दर मजाज़ाते एदाम, हाशिम मूसवी आबगर्म द्वारा अनुवादित, तेहरान, एहसान, 1394 शम्सी।
  • मोहक़्क़िक़ हिल्ली, जाफ़र बिन हसन, शराए अल इस्लाम फ़ी मसाएल अल हलाल व हराम, अब्दुल हुसैन मुहम्मद अली बक़्क़ाल द्वारा शोध और संपादित, क़ुम, इस्माइलियान, दूसरा संस्करण, 1408 हिजरी।
  • नजफ़ी, मोहम्मद हसन, जवाहिर अल कलाम फ़ी शरहे शराए अल इस्लाम, बेरूत, दार अल एह्या अल तोरास अल-अरबी, 7वां संस्करण, 1404 हिजरी।
  • मालिक इब्ने अनस, मोअत्ता इब्ने मालिक, मुहम्मद फ़ोआद अब्दुल बाकी द्वारा शोध, बेरूत, दार अल एह्या अल तोरास अल अरबी, 1406 हिजरी।
  • मूसवी अर्दाबेली, सय्यद अब्दुल-करीम, फ़िक़्ह अल हुदूद व अल ताज़ीरात, क़ुम, मोअस्सास ए अल नशर ले जामेआ अल मुफ़ीद, दूसरा संस्करण, 1427 हिजरी।
  • मोअस्सास ए दाएरतुल मआरिफ़ फ़िक़्हे इस्लामी, फ़र्हंगे फ़िक़्ह मुताबिक़ मज़हबे अहले बैत, क़ुम, मोअस्सास ए दाएरतुल मआरिफ़ फ़िक़्हे इस्लामी, पहला संस्करण, 1389 शम्सी।
  • ईस्ना वेबसाइट, "क्या पत्थर मारने के बजाय एक और सज़ा देना संभव है?", 22 फ़रवरदीन 1391 शम्सी, 20 फ़रवरदीन 1397 शम्सी को देखा गया