संदिग्ध संभोग
कुछ अमली व फ़िक़ही अहकाम |
फ़ुरू ए दीन |
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संदिग्ध संभोग (अरबीः وطء الشبهة) किसी अजनबी महिला के साथ वैध समझकर संभोग करने को कहा जाता है। जैसे किसी इद्दत मे रहने वाली स्त्री से यह सोचकर विवाह और संभोग करना कि ऐसा विवाह हलाल और सही है। न्यायशास्त्री इस कृत्य को व्यभिचार की तरह हराम नहीं मानते और महिला को मेहर अल मिस्ल का भुगतान करने और महिला पर इद्दत रखने को वाजिब समझते है।
न्यायविदो के फ़तवे के अनुसार संदिग्ध संभोग मे भी सामान्य विवाहो की तरह महिला की मां, बेटी और नवासी पुरूष के लिए महरम इसी तरह पुरूष का पिता, पुत्र और पोता महिला के लिए महरम बन जाते है। साथ ही न्यायविदो के फ़तवे के अनुसार संदिग्ध संभोग के परिणाम स्वरूप जन्म लेने वाले बच्चे माता-पिता के होंगे और दोनो (संदिग्ध संभोग करने वाले महिला पुरूष) को एक दूसरे से विरासत भी मिलेगी। लेकिन पुरुष या महिला मे से जिसको पता था उसने जानबूझकर यह कृत्य (संदिग्ध संभोग) किया हो, उसके प्रति औलाद का हुक्म वल्द उज़ ज़ेना का हुक्म जारी होगा अतः वह एक दूसरे से विरासत नही ले सकते हैं।
परिभाषा
"वती" एक अवैध संभोग है जिसमे व्यक्ति को यह नहीं पता होता है कि वह जो कर रहा है वह हराम है।[१] दानिशनामा फ़रहंग फ़िक़्ह (न्यायशास्त्र के विश्वकोश) मे बताए गए अर्थ के अनुसार यदि कोई इस कृत्य को हलाल धारणा के साथ एक अजनबी महिला के साथ संभोग करे तो इस कृत्य को संदिग्ध संभोग कहते है।[२] संदिग्ध संभोग कभी विषय मे संदेह के कारण होता है; उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति गलती से किसी महिला को अपनी पत्नी समझ कर संभोग करे, और कभी हुक्म मे संदेङ के कारण ऐसा होता है;[३] उदाहरण के लिए किसी इद्दत वाली महिला के साथ यह समझते हुए उसके साथ यौन संबंध बनाता है कि इद्दत वाली महिला के साथ विवाह करना हराम नही है।[४]
शिया न्यायविद आयतुल्लाह मकारिम शिराज़ी के अनुसार, "संदिग्ध संभोग" शब्द मासूम इमामो की हदीसो मे नहीं है बल्कि यह न्यायविदों के बीच प्रचलित शब्द है।[५] न्यायशास्त्र मे उन्होंने इस मुद्दे पर ज्यादातर शादी के बारे में चर्चा की है।[६]
इस्लामी गणतंत्र ईरान की इस्लामी दंड संहिता के अनुच्छेद 223 में संदिग्ध संभोग का विषय उठाया गया है। इस कानून के अनुसार, जिस व्यक्ति पर व्यभिचार का आरोप लगाया गया हो उसकी ओर से संदिग्ध संभोग होने का दावा किया जाए तो उसका यह दावा जब तक कि उसके खिलाफ कोई शरई तर्क मौजूद न हो स्वीकार किया जाएगा।[७]
शरई हुक्म
संदिग्ध संभोग मे व्यभिचारी की अज्ञानता को ध्यान मे रखते हुए न्यायशास्त्री उसको दोषी नहीं मानते है।[८] इसके बवजूद उसके लिए न्यायशास्त्र की किताबो मे कुछ विशेष नियम बयान हुए हैः
- व्यभिचार के प्रमाण का अभाव: संदिग्ध संभोग व्यभिचार का हुक्म नहीं रखता है; संदेह के कारण इस कृत्य मे लिप्त व्यक्ति को "यौन संबंधों मे बलात्कारी" मे शामिल नहीं किया गया है।[९] इसलिए इसे व्यभिचार के दंड मे शामिल नहीं किया गया है।[१०] हालांकि कुछ न्यायविदो ने कुछ हदीसो के आधार पर अपराधी की लापरवाही के कारण।[११] उसे ताज़ीर (दंड) का हक़दार माना है।[१२]
- महर: संदिग्ध संभोग होने की स्थिति मे महिला को महर अल-मिस्ल दिया जाएगा;[१३] अर्थात उस महिला की गरिमा के अनुसार उस महिला को महर का भुगतान किया जाएगा।[१४] हालांकि यह तब होता है जब संदेह और अज्ञानता दोनों पक्षों की ओर से हो अथवा महिला की ओर से हो; लेकिन यदि महिला को हराम के बारे मे पता हो, तो उसे कोई महर नहीं दिया जाएगा।[१५]
- गुजारा भत्ता: संदिग्ध संभोग की स्थिति मे महिला गुजारा भत्ता की हकदार नही है;[१६] लेकिन इस कृत्य से गर्भवती हुई महिला के गुजारा भत्ते के बारे में न्यायविदों की अलग-अलग राय है:[१७] उदाहरण के लिए पांचवी शताब्दी के न्यायविद शेख़ तूसी के अनुसार इस मामले मे भ्रूण के लिए गुजारा भत्ता साबित है[१८], लेकिन अन्य शिया न्यायविद साहिब-जवाहर इस राय के खिलाफ हैं।[१९]
- इद्दत: शिया और सुन्नी न्यायशास्त्र के दृष्टिकोण से महिला को चाहिए कि संदेह समाप्त होने के पश्चात,[२०] इद्दत पूरी करे[२१] और इस दौरान किसी पुरुष से शादी या संभोग नहीं करना चाहिए; यहाँ तक कि अपने पति के साथ भी यौन संबंध नही बनाए जाए। संदिग्ध संभोग की इद्दत तलाक की इद्दत के समान है अर्थात मासिक धर्म के तीन चक्र बीत जाए या संभोग के बाद तीन महीने का बीतना है।[२२]
- रिश्तेदारी और मह-रमीयत: शिया न्यायविद फ़ाज़िल मिक़दाद के अनुसार, अधिकांश शिया न्यायविदों और सुन्नियों के एक समूह का मानना है कि संदिग्ध संभोग रिश्तेदारी का कारण बन जाता है[२३] अर्थात महिला की मां, बेटी और नाती (नवासी) पुरूष के लिए और इसी तरह पुरूष का पिता, पुत्र और पोता महिला के लिए महरम बन जाते है।[२४] हालांकि प्रसिदध् राय के अनुसार, यह हुक्म उस स्थिति मे है संदिग्ध संभोग उल्लेखित महरमो के साथ विवाह करने से पहले अंजाम पाए लेकिन उल्लेखित लोगो मे से किसी एक के साथ संदिग्ध संभोग होने से पहले विवाह हो चुका हो तो संदिग्ध संभोग शरिया के अनुसार होने वाले विवाह को अमान्य (बातिल) नही सकता है।[२५] उदाहरण के लिए, यदि कोई पुरुष किसी महिला के साथ संदिग्ध यौन संबंध बनाए हो तो इस स्थिति मे यह पुरूष इस महिला की बेटी से विवाह नही कर सकता लेकिन यदि किसी महिला के साथ शरीया नियम के अनुसार विवाह किया उसके बाद उसकी बेटी के साथ संदिग्ध यौन संबंध बनाए तो यह उसकी मा के साथ हुए विवाह को अमान्य नही कर सकता।[२६]
वंशावली और विरासत
न्यायविदों के फ़तवे के अनुसार, संदिग्ध संभोग के परिणाम स्वूरप पैदा हुए बच्चे खुद उन्ही महिला पुरूष के माने जाते हैं जिनके शुक्राणु से पैदा हुए है[२७] साहिब-जवाहर ने इस मामले पर सर्वसम्मति का दावा किया है[२८] उनका कहना है कि अगर पुरुष और महिला दोनों, अगर वे इस मामले में गलती करते हैं, तो बच्चा उन दोनों का है[२९] और बच्चो को दोनो से विरासत मिलेगी;[३०] लेकिन अगर उनमें से एक को इसके हुक्म का पता नहीं था और दूसरे को पता था तो यहा जिसे पता था उसके प्रति बच्चे वलद उज़ ज़ेना (व्यभिचार से पैदा होने वाला बच्चा) हिसाब होगा अतः बच्चे को उससे कोई धरोहर नही मिलेगी।[३१]
न्यायशास्त्रियों के अनुसार, यदि कोई विवाहित महिला संदिग्ध संभोग का शिकार होकर गर्भवती हो जाती है, यदि इस स्थिति मे कोई सबूत मौजूद हो जिसके आधार पर मालूम हो जाए कि यह बच्चा उसके पति या उस पुरूष का नही है जिसके साथ उसने संभोग किया है (उदाहरण के लिए, उनमें से किसी एक के साथ महिला के संभोग के बीच का अंतराल छह महीने से अधिक है) तो यह बच्चा दूसरे पक्ष का होगा[३२] लेकिन अगर इस बच्चे को इन दोनो पुरूषो (पति और संभोग करने वाले पुरूष) को सौंपने की संभावना समान है, तो ऐसी स्थिति मे मतभेद पाया जाता है: कुछ लोग बच्चे को दूसरे संभोग के लिए जिम्मेदार मानते हैं,[३३] कुछ लोग इसका श्रेय पति को देते हैं[३४] और न्यायविदो को एक तीसरे समूह का मानना है कि मामले मे लॉटरी (क़ुरआ) के माध्यम से बच्चे को किसी एक पक्ष को सौंप दिया जाएगा।[३५]
फ़ुटनोट
- ↑ देखेः शहीद सानी, मसालिक अल इफ़हाम, 1413 हिजरी, भाग 7, पेज 302; नराक़ी, मुस्तनद अल शिया, 1415 हिजरी, भाग 14, पेज 221; इस्फ़ाहानी, वसीला अल नेजात, 1422 हिजरी, पेज 717
- ↑ मोअस्सेसा दाएरातुल मआरिफ़ फ़िक़्ह इस्लामी, फ़रहंग फ़िक्ह फ़ारसी, 1387 शम्सी, भाग 1, पेज 150
- ↑ सब्ज़वारी, मोहज़्ज़ब अल अहकाम, 1413 हिजरी, भाग 26, पेज 144
- ↑ मकारिम शिराज़ी, अहकाम बानवान, 1428 हिजरी, पेज 227
- ↑ मकारिम शिराज़ी, किताब अल निकाह, 1424 हिजरी, भाग 2, पेज 122
- ↑ मोअस्सेसा दाएरातुल मआरिफ़ फ़िक़्ह इस्लामी, फ़रहंग फ़िक्ह फ़ारसी, 1387 शम्सी, भाग 1, पेज 151
- ↑ क़ानून मजाज़ात इस्लामी, वेबगाह मरकज़ पुज़ूहिशहाए मजलिस शूरा ए इस्लामी
- ↑ मुंतज़री, रेसाला इसतिफ़्तेआत, क़ुम, भाग 3, पेज 372
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- ↑ शेख हुर्रे आलमोली, वसाइल अल शिया, 1409 हिजरी, भाग 28, पेज 66, हदीस 17
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- ↑ बहरानी, अल हदाइक अल नाज़ेरा, 1405 हिजरी, भाग 23, पेज 246
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- ↑ नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1404 हिजरी, भाग 32, पेज 42
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- ↑ मकारिम शिराज़ी, अहकाम बानवान, 1428 हिजरी, पेज 224
- ↑ देखेः शहीद सानी, मसालिक अल इफ़हाम, 1413 हिजरी, भाग 7, पेज 303; नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1404 हिजरी, भाग 32, पेज 340; हजावी मुकद्देसी, अल इक़्नाअ, दार अल मारफ़ा, भाग 2, पेज 456
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- ↑ हिल्ली, कंज़ अल इरफ़ान, 1425 हिजरी, भाग 2, पेज 187
- ↑ मोअस्सेसा दाएरातुल मआरिफ़ फ़िक़्ह इस्लामी, फ़रहंग फ़िक्ह फ़ारसी, 1387 शम्सी, भाग 1, पेज 151
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- ↑ मोहक़्क़िक़ हिल्ली, शरा ए अल इस्लाम, 1408 हिजरी, भाग 2, पेज 225
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- ↑ नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1404 हिजरी, भाग 31, पेज 248
- ↑ किब्ला ई, बर रसी अहकाम फ़िक़्ही व हुक़ूक़ हमल व जनीन नाशी अज़ जेना व वत बिश शुब्हा, पेज 16
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- ↑ फ़ाज़िल लंकरानी, तफसील अल शरीया (अल निकाह), 1421 हिजरी, भाग 516
- ↑ नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1404 हिजरी, भाग 31, पेज 248; मुग़नीया, फ़िक़्ह अल इमाम अल सादिक़ (अ), 1421 हिजरी, भाग 5, पेज 296
स्रोत
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