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शेग़ार विवाह

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शेग़ार विवाह (फ़ारसी: نکاح شِغار) जाहिली काल के दौरान निकाह शेग़ार एक प्रकार का विवाह था।[] इस प्रकार के विवाह में, दो पुरुष एक-दूसरे की बेटियों या बहनों से शादी करते थे, और प्रत्येक महिला को दूसरी महिला का महर माना जाता था। इस्लाम के अनुसार, यह विवाह हराम (निषिद्ध) और बातिल (अमान्य) है।[] न्यायशास्त्रीय स्रोतों में, निकाह शेग़ार को महर के बिना विवाह भी कहा गया है।[]

10वीं शताब्दी हिजरी के शिया न्यायविद शहीद सानी के अनुसार, इमामी न्यायविदों की आम सहमति (इज्मा) है कि शेग़ार विवाह बातिल (अमान्य) है।[] इस विवाह की अमान्यता के लिए पैग़म्बर (स) की हदीस (لا شِغار فی الاسلام ला शेग़ारा फ़िल इस्लाम; अनुवाद: इस्लाम में शेग़ार नहीं है) को आधार बनाया गया है।[] शिया न्यायविद् साहिब जवाहिर (1255-1329 हिजरी) के फ़तवे के अनुसार, किसी भी विवाह में जहां किसी अन्य महिला का विवाह मेहरिया, या महर के एक हिस्से को शर्त के रूप में शामिल किया गया हो, तो वह विवाह अमान्य है।[]

लेख "निकाहे शेग़ार दर फ़िक़्ह व क़ानून व नक़्शे आन दर मुनाज़ेआते फ़ामिली" में कहा गया है कि हनफ़ियों को छोड़कर, सुन्नियों के अन्य चार संप्रदाय शेग़ार विवाह को अमान्य मानते हैं।[] अबू हनीफ़ा का कहना है कि शेग़ार विवाह के निषिद्ध होने का कारण इसकी अमान्य शर्तें हैं; क्योंकि अमान्य शर्त का विवाह पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। उनका मानना है कि किसी महिला से विवाह करने को दूसरी महिला का महर या महर के एक हिस्से को शर्त के रुप में नहीं रखा जा सकता है; लेकिन उनके अनुसार महर उल मिस्ल को अनिवार्य बना देने से शेग़ार विवाह की समस्या हल हो जायेगी।[]

कुछ रिपोर्टों के अनुसार, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, अफगानिस्तान, भारत और सुमात्रा जैसे कुछ क्षेत्रों में ग़रीबी और महर देने में असमर्थता के कारण शेग़ार विवाह किया जाता है।[]

फ़ुटनोट

  1. अली, अल मुफ़स्सल फ़ी तारीख़ अल अरब क़ब्ल अल इस्लाम, 1391 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 537-538।
  2. जज़ीरी, अल फ़िक़्ह अला अल मज़ाहिब अल अरबआ, 1419 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 190।
  3. इब्ने हजर असक्लानी, तल्ख़ीस अल हबीर, 1419 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 328।
  4. शहीद सानी, अल रौज़ा अल बहिया, 1413 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 244; नजफ़ी, जवाहि अल कलाम, 1362 शम्सी, खंड 30, पृष्ठ 128।
  5. हुर्रे अल आमेली, वसाएल अल शिया, 1416 हिजरी, खंड 20, पृष्ठ 303; मुस्लिम बिन हज्जाज, सहीह मुस्लिम, 1412 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 1034।
  6. नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1362 शम्सी, खंड 30, पृष्ठ 130।
  7. पूहंदोवी, "निकाहे शेग़ार दर फ़िक़्ह व क़ानून व नक़्शे आन दर मुनाज़ेआते फ़ामिली", पृष्ठ 55-56।
  8. जज़ीरी, अल फ़िक़्ह अला अल मज़ाहिब अल अरबआ, 1419 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 191।
  9. तर्मानिनी, अल ज़ेवाज इन्दा अल अरब अल जाहेलिया व अल इस्लाम, 1984 ईस्वी, पृष्ठ 28; पूहंदोवी, "निकाहे शेग़ार दर फ़िक़्ह व क़ानून व नक़्शे आन दर मुनाज़ेआते फ़ामिली", पृष्ठ 55-56।

स्रोत

  • इब्ने हजर असक्लानी, तल्ख़ीस अल हबीर फ़ी तख़्रीज़ अहादीस अल रफ़ेई अल कबीर, बिना स्थान, दार उल कुतुब अल इल्मिया, पहला संस्करण, 1419 हिजरी।
  • पूहंदोवी, अब्दुल माजिद समीम, "निकाहे शेग़ार दर फ़िक़्ह व क़ानून व नक़्शे आन दर मुनाज़ेआते फ़ामिली", इल्मी पजोहिशी अस्सास ए तहसीलाते आली ख़ूसूसी ग़ालिब त्रैमासिक में, चौथा वर्ष, संख्या 1, वसंत 1394 शम्सी।
  • तर्मानीनी, अब्दुस्सलाम, अल ज़ेवाज इन्दा अल अरब अल जाहेलिया व अल इस्लाम, कुवैत, आलम अल मारेफ़त, 1984 इस्वी।
  • जज़ीरी, अब्दुर्रहमान, अल फ़िक़ह अला अल मज़ाहिब अल अरब्आ (खंड 4), बेरूत, दार अल सक़लैन, 1419 हिजरी।
  • लेखकों का एक समूह, अल मौसूआ अल फक़ीह अल कुवैतिया (खंड 41), कुवैत, वेज़ारते औक़ाफ़ व अल शोऊन अल इस्लामिया, 1404-1427 हिजरी।
  • शहीद सानी, ज़ैनुद्दीन बिन अली, अल रौज़ा अल बहिया फ़ी शरहे अल लोम्आ अल दमिश्किया (खंड 5), क़ुम, मकतब अल दावरी, 1410 हिजरी।
  • अली, जावद, अल मुफ़स्सल फ़ी तारीख़ अल अरब क़ब्ल अल इस्लाम (खंड 5), बेरूत, दार उल इल्म लिल मलाईन, 1391 हिजरी।
  • मुस्लिम बिन हज्जाज, मुस्लिम, सहीह मुस्लिम (खंड 2), क़ाहिरा, दार उल हदीस, 1412 हिजरी।
  • नजफी, मुहम्मद हसन, जवाहिर अल कलाम (खंड 30), महमूद क़ूचानी द्वारा शोध किया गया, बेरूत, दार उल इहिया अल तोरास अल अरबी, 7वां संस्करण, 1362 शम्सी।