शाश्वत वर्जित

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हराम अबदी अर्थात शाश्वत वर्जित या हुरमत मोअब्बद (अरबीः الحرمة المؤبدة أو الحرمة الأبدية) का अर्थ है कि एक पुरुष और एक महिला का विवाह हमेशा के लिए हराम है। शिया न्यायशास्त्र में, ज़ेना ए मोहसेना, लेआन, इद्दत की अवधि मे अथवा एहराम की हालत मे निकाह करना, पिता या पुत्र या साले से लवात (संभोग) करना, पत्नि को 9 बार तलाक़ देने के बाद एक पुरुष और एक महिला के बीच हमेशा के लिए विवाह हराम होने का कारण बनते है।

शाश्वत वर्जित शब्द का प्रयोग निकाह, तलाक़, हज और लेआन जैसे न्यायशास्त्रीय अध्यायों में किया जाता है।

परिभाषा

शाश्वत वर्जित (हराम अबदी) अस्थायी वर्जित (हराम मोवक़्क़त) के विपरीत है, जिसका अर्थ है कि एक पुरुष और एक महिला का विवाह हमेशा के लिए हराम है।[१] शाश्वत वर्जित शब्द के दो उपयोग हैं:

  • महरम (वंश्जी, रेज़ाई और विवाही) के साथ विवाह करना हमेशा के लिए हराम है।[२]
  • किसी ग़ैर-महरम से शादी करना हमेशा हराम है जिसके साथ शादी करना जायज़ है; परन्तु विघ्न उत्पन्न होने के कारण उनसे विवाह करना सदैव के लिए हराम हो जाता है।[३]

इस शब्द का उपयोग निकाह, तलाक़, हज और लेआन जैसे न्यायशास्त्रीय अध्यायों में किया जाता है।[४]

कारण

इस्लामी न्यायशास्त्र में, कुछ कारण बताए गए हैं कि एक पुरुष और एक महिला के बीच विवाह हमेशा के लिए हराम हो जाता है:

  • लेआन: पति और पत्नी के बीच लेआन होने से वो दोनो एक दूसरे के लिए हमेशा हराम हो जाते है।[५] लेआन में, पति न्यायाधीश के सामने विशेष शपथ लेकर अपनी पत्नी पर व्यभिचार का आरोप लगाता है, और पत्नी भी समान शपथ के माध्यम से अपने पति के आरोप से इनकार करती है।[६] लेआन जारी होने से (स्त्री पर व्यभिचार का आरोप लगने के कारण) पति पर से क़ज़्फ़ (व्यभिचार का आरोप) की सज़ा और स्त्री पर से व्यभिचार की सज़ा हट जाती है।[७]
  • पत्नी को नौ बार तलाक देना: शिया न्यायशास्त्र के अनुसार, यदि कोई पुरुष अपनी पत्नी को तीन बार तलाक़ देता है, तो उसे मुहल्लिल (कोई उस महिला से शादी करता है और फिर उसे तलाक देता है) के अलावा उससे दोबारा शादी करने का अधिकार नहीं है।[८] और यदि तीन बार तीन तलाक दे अर्थात यदि पत्नि को नौ बार तलाक देता है, तो यह उसके लिए हमेशा के लिए हराम हो जाती है।[९]
  • इफ़्ज़ा: यदि कोई पुरुष किसी महिला के बालिग़ होने की उम्र तक पहुंचने से पहले ही इफ़्ज़ा कर देता है, तो वह महिला उसके लिए हमेशा के लिए हराम हो जाती है।[१०] मूत्र और माहवारी पथ के एकीकरण को इफ़्ज़ा कहा जाता है।[११]
  • व्यभिचार: प्रसिद्ध न्यायशास्त्रियों के अनुसार, यदि कोई पुरुष किसी स्त्री से विवाह करने से पहले उसकी मां या उसकी बेटी के साथ व्यभिचार करता है, तो वह स्त्री उसके लिए हमेशा के लिए हराम हो जाती है।[१२] इसी प्रकार किसी विवाहित महिला अथवा तलाक़ रज्ई की इद्दत वाली महिला के साथ व्यभिचार के कारण वह महिला व्यभिचारी पर हमेशा के लिए हराम हो जाती है।[१३]
  • लवात: यदि कोई पुरुष किसी महिला से शादी करने से पहले उसके बेटे, भाई या पिता के साथ लवात करता है, तो वह महिला उसके लिए हमेशा के लिए हराम हो जाती है।[१४]
  • इद्दत की अवस्था में विवाह करना: इद्दत में रहने वाली महिला से शादी करना जायज़ नहीं है[१५] इसलिए, यदि विवाह इस जानकारी के साथ होता है कि महिला इद्दत में है और इस अवस्था मे विवाह करना हराम है तो वह स्त्री हमेशा के लिए पुरुष पर हराम हो जाती है भले ही संभोग न किया हो।[१६] लेकिन अज्ञानता की स्थिति में यदि संभोग किया हो, तो स्त्री पुरुष के लिए सदैव के लिए हराम हो जाती है और यदि संभोग नही किया हो तो विवाह अमान्य है, और वह इद्दत की अवधि समाप्त होने के बाद उस महिला से विवाह कर सकता है।[१७]
  • एहराम में रहते हुए विवाह: एहराम में रहते हुए किसी पुरुष या महिला का विवाह हराम और अमान्य है।[१८] विवाह, यह जानते हुए कि एहराम मे रहते हुए विवाह करना हराम है, संभोग के बिना भी, पुरुष के ऊपर महिला हमेशा के लिए हराम होने का कारण बनता है।[१९] इस मामले में अज्ञानता मशहूर के अनुसार, भले ही उन्होने संभोग किया हों केवल विवाह अमान्य (बातिल) है।[२०]

फ़ुटनोट

  1. मोअस्सेसा दाएरातुल मआरिफ़ अल फ़िक़्ह अल इस्लामी, फ़रहंग फ़िक़्ह फ़ारसी, 1387 शम्सी, भाग 3, पेज 291
  2. अकबरी, अहकाम रवाबिते महरम व ना महरम, 1392 शम्सी, पेज 24
  3. मुज्तहेदी तेहरानी, सह रिसाले, गुनाहाने कबीरा, महरम व ना महरम, अहकाम अल ग़ीबा, 1381 शम्सी, पेज 18-19
  4. मोअस्सेसा दाएरातुल मआरिफ़ अल फ़िक़्ह अल इस्लामी, फ़रहंग फ़िक़्ह फ़ारसी, 1387 शम्सी, भाग 1, पेज 392
  5. नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1362 शम्सी, भाग 34, पेज 3-4
  6. शहीद सानी, अल रौज़ा अल बहीया, 1410 हिजरी, भाग 6, पेज 181
  7. शहीद सानी, अल रौज़ा अल बहीया, 1410 हिजरी, भाग 6, पेज 181; ख़ुमैनी, तहरीर अल वसीला, 1434 हिजरी, भाग 2, पेज 342
  8. शेख मुफ़ीद, अल मुक़्नेआ, 1413 हिजरी, पेज 501
  9. ख़ुमैनी, तहरीर अल वसीला, 1379 शम्सी, पेज 731
  10. शहीद सानी, अल रौज़ा अल बहीया, 1410 हिजरी, भाग 5, पेज 104-105
  11. नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1362 शम्सी, भाग 29, पेज 419
  12. शहीद सानी, मसालिक अल इफ़हाम, 1413 हिजरी, भाग 7, पेज 297-298
  13. नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1362 शम्सी, भाग 29, पेज 446
  14. ख़ूई, मिनहाज अल सालेहीन, 1410 हिजरी, भाग 2, पेज 265
  15. ख़ुमैनी, तहरीर अल वसीला, 1434 हिजरी, भाग 2, पेज 303
  16. ख़ुमैनी, तहरीर अल वसीला, 1434 हिजरी, भाग 2, पेज 303
  17. मोअस्सेसा दाएरातुल मआरिफ़ अल फ़िक़्ह अल इस्लामी, अल मोसूआ अल फ़िक़्हीया, 1429 हिजरी, भाग 10, पेज 473
  18. नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1362 शम्सी, भाग 29, पेज 450
  19. नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1362 शम्सी, भाग 29, पेज 450
  20. नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1362 शम्सी, भाग 29, पेज 450


स्रोत

  • अकबरी, महमूद, अहकाम रवाबित महरम व ना महरम, क़ुम, इंतेशारात फ़ित्यान, 1392 शम्सी
  • ख़ुमैनी, सय्यद रुह अल्लाह, तहरीर अल वसीला, तेहरान, मोअस्सेसा तंज़ीम व नशर आसार इमाम ख़ुमैनी, 1379 शम्सी
  • ख़ुमैनी, सय्यद रुह अल्लाह, तहरीर अल वसीला, क़ुम, मोअस्सेसा तंज़ीम व नशर आसार इमाम ख़ुमैनी, पहला संस्करण 1434 हिजरी
  • ख़ूई, सय्यद अबुल क़ासिम, मिनहाज अल सालेहीन, क़ुम, मदीनातुल इल्म, बाइसवां संस्करण, 1410 हिजरी
  • शहीद सानी, जैनुद्दीन बिन अली, अल रौज़ा अल बहईया फ़ी शरह अल लुम्आ अल दमिश्क़ीया, क़ुम, इंतेशारात दावरी, 1410 हिजरी
  • शहीद सानी, ज़ैनुद्दीन बिन अली, मसालिक अल इफ़हाम इला तंक़ीह शरा ए अल इस्लाम, क़ुम, मोअस्सेसा अल मआरिफ अल इस्लामीया, पहला संस्करण, 1413 हिजरी
  • शेख़ मुफ़ीद, मुहम्मद बिन मुहम्मद, अल मुक़्नेआ, क़ुम, कुंगरा जहानी हजारा शेख मुफ़ीद, पहला संस्करण 1413 हिजरी
  • मोअस्सेसा दाएरतुल मआरिफ़ अल फ़िक़्ह अल इस्लामी, अल मोसूआ अल फ़िक़्हीया, क़ुम, मोअस्सेसा दाएरतुल मआरिफ़ अल फ़िक़्ह अल इस्लामी, 1429 हिजरी
  • मोअस्सेसा दाएरतुल मआरिफ़ अल फ़िक़्ह अल इस्लामी, फ़रहंग फ़िक़्ह फ़ारसी, क़ुम, मोअस्सेसा दाएरतुल मआरिफ़ अल फ़िक़्ह अल इस्लामी, 1387 शम्सी
  • मुज्तहेदी तेहरानी, अहमद, सह रिसालेः गुनाहाने कबीरा, महरम व ना महरम, अहकाम अल ग़ीबा, क़ुम, मोअस्सेसा दर राहे हक़, 1381 शम्सी
  • नजफ़ी, मुहम्मद हसन, जवाहिर अल कलाम, बैरूत, दार एहया अल तुरास अल अरबी, सातवां संस्करण, 1362 शम्सी