ग़ैर महरम

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(ना महरम से अनुप्रेषित)

ग़ैर महरम (अरबी: غير المحارم)‌ महरम के मुक़ाबले मे ऐसे व्यक्ति को कहा जाता है जिसके समाने हिजाब करना आवश्यक है और उसके साथ शादी करना जायज़ है।

फ़ुक़्हा के अनुसार, ग़ैर महरम महिला के चेहरे और हाथों की कलाई के अलावा शरीर को देखने की अनुमति नहीं है। अगर चेहरे और हाथों को देखना और ग़ैर महरम महिला की आवाज सुनना गुनाह की ओर ले जाता हो तब भी हराम है। फ़ुक़्हा के फ़तवो के अनुसार, एक महिला के लिए अपने पूरे शरीर को ग़ैर महरम मर्द से छुपाना वाजिब है। निसंदेह, हाथों की उंगलियों से कलाई तक, चेहरे की गोलाई को छुपाने में मतभेद है, अधिकांश फ़ुक़्हा इसे छुपाना वाजिब नहीं मानते। इसी तरह महिला का ग़ैर महरम मर्द के शरीर को देखना जायज़ नहीं है।

ग़ैर महरम के शरीर को छूना और ग़ैर महरम पुरुष या महिला का पाप में लिप्त होने के भय से एकांत में रहना भी हराम है। इस्लामी न्यायशास्त्र में ग़ैर महरम के साथ विवाह करने की अनुमति है, हालांकि कुछ विशेष परिस्थितियों मे कुछ ग़ैर महरम के साथ शादी करना वर्जित हो जाता है।

परिभाषा

जो व्यक्ति महरम नहीं है वह ग़ैर महरम कहलाता है। महरम वह होता है जो वंश, विवाह और स्तनपान के माध्यम से एक दूसरे से संबंधित हैं।[१] इस शब्द का इस्तेमाल न्यायशास्त्र के अध्यायों जैसे निकाह, तलाक़ और हद (सज़ा) में होता है।[२]

सूर ए नूर की आयत 30-31 में अल्लाह तआला ने ग़ैर महरम और जिन चीज़ो को अल्लाह ने हराम बताया है उन्हे नही देखने का आदेश दिया है।[३] आइम्मा ए मासूमीन (अ) द्वारा ग़ैर महरम पुरुष और महिला का एक दूसरे से संबंध रखने की बहुत निंदा की गई है।[४] इमाम बाक़िर (अ) ने ग़ैर महरम से बात करने को शैतान के जाल से वर्णित किया है।[५] इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) ने ग़ैर महरम की ओर देखने को शैतान के बाणों से निकला ज़हरीला तीर माना है।[६] इमाम अली (अ) के एक कथन के अनुसार ग़ैर महरम महिला से बात करना विपत्ति आने और दिलों के विचलित होने का कारण है।[७]

फ़ैज़ काशानी ने किताब महज्जा तुल बैज़ा[८] में और मुल्ला मुहम्मद मेहदी नराक़ी ने किताब जामे उल सआदात[९] में ग़ैर महरम को देखना आंख की कुफराने नेमत बताया है। शहीद मुर्तज़ा मुताह्हरी ने किताब मसअल ए हिजाब मे, इस्लाम में महिलाओं के लिए हिजाब और उपयुक्त कपड़ों के पालन पर जोर देने के फ़लसफे को व्यक्तियों के मानसिक स्वास्थ्य, समाज के स्वास्थ्य और स्थिरता, परिवार प्रणाली को मजबूत करने, महिलाओं की इज्जत बढ़ाना और उनकी अश्लीलता को रोकना जैसे मामलों के रूप में माना है।[१०]

ग़ैर महरम के साथ इरतेबात संबंधी नियम

इस्लामी धर्मशास्त्र में उन लोगों के लिए कुछ नियम हैं जो आपस मे एक दूसरे के लिए ग़ैर महरम हैं: ग़ैर महरम को देखना हराम है

  • पुरूष का ग़ैर महरम महिला के चेहरे और हाथों की कलाई के अलावा शरीर को देखना हराम है।[११] इसी प्रकार चेहरे और हाथों को आनंद लेने के इरादे से देखना और पाप मे पड़ने के भय से हो, हराम है।[१२]
  • महिला का ग़ैर महरम पुरुष के शरीर को देखना हराम है, किंतु बिना मस्ती के इरादे और पाप मे ना पड़ने के भय से शरीर के उन हिस्सों जैसे सिर, हाथ और पैर को छोड़कर जिन्हें आम तौर पर ढकने की आवश्यकता नहीं होती है उन्हे देख सकती है।[१३]
  • शिया धर्मशास्त्रियो के फ़तवे के अनुसार, शादी के इरादे से किसी महिला का चेहरा देखना जायज़ है।[१४] कुछ फ़ुक़हा महिला के शरीर के कुछ हिस्से को देखना -बाल, गर्दन और सीने का कुछ हिस्सा- बिना आनंद और शादी के इरादे से देखना जायज़ है।[१५]
  • हिजाब ना करने वाली महिलाओ के वीडियो और फोटो जिन्हे वह नही जानता वासना के बिना देखने मे कोई मुश्किल नही है, लेकिन अगर वह उन महिलाओ को जानता है तो उनकी वीडियो और फोटो देखना खुद उन महिलाओ को देखने जैसा है।[१६]
  • डॉक्टर का ग़ैर महरम के शरीर को इलाज के लिए देखना, ज़रूरी हो तो, जायज़ है।[१७] बिना हिजाब के ग़ैर मुस्लिम महिलाओ की तस्वीर को देखना जायज़ है, जबकि देखने मे आनंद का इरादा ना हो और भ्रष्टाचार का स्रोत ना बने।[१८]

ग़ैर महरम से शरीर का छुपाना वाजिब है

महिलाओं के लिए ग़ैर महरम से अपने शरीर को छुपाना वाजिब है।[१९] जबकि चेहरे और हाथों की उंगलियों से कलाई तक छुपाने के वाजिब होने मे मतभेद पाया जाता है।[२०] शेख़ तूसी[२१] अल हदाइक़ के लेखक[२२] शेख़ अंसारी[२३] सय्यद मुहम्मद काज़िम तबातबाई यज़्दी[२४] सैय्यद मोहसिन हकीम[२५] इमाम ख़ुमैनी[२६] और सय्यद अली ख़ामेनई[२७] जैसे फ़क़ीहो के अनुसार महिलाओ के लिए सिर, चेहरा और हाथ की उंगलियो से कलाई तक छुपाना वाजिब नही है। अल्लामा हिल्ली जैसे धर्मशास्त्री ने तज़किरत अल फ़ुक़्हा मे[२८] फ़ाज़िले मिक़दाद[२९] और सय्यद अब्दुल आला सब्ज़ावारी[३०] ने भी चेहरा और हाथ की उंगलियो से कलाई तक छुपाना वाजिब माना है। इसी प्रकार सभी फ़क़्हा ने अगर हराम में पड़ने का डर या किसी व्यक्ति को हराम काम करने पर उकसाने का इरादा हो, तो चेहरा और हाथ की उंगलियो से कलाई तक छुपाना वाजिब है।[३१]

ग़ैर महरम को छूना हराम है

  • धर्मशास्त्रियो के अनुसार, ग़ैर महरम के शरीर को छूना जायज़ नहीं है, लेकिन आपात स्थिति के मामलों में इसकी अनुमति है, जैसे इलाज के लिए या किसी व्यक्ति के जीवन को बचाने के लिए।[३२] इसी प्रकार एक ग़ैर महरम के शरीर को कपड़े या दस्ताने के साथ छूना बिना वासना और आंनंद के हो तो कोई मुश्किल नही है।[३३] इसी तरह से कुछ फ़ुक़्हा ग़ैर महरम से कपड़े या दस्ताने के साथ हाथ मिलाना नुकसान पहुंचाने का इरादा ना हो और अगर ग़ैर महरम ( पुरुष हो या महिला) का हाथ ना दबाए जायज़ मानते है।[३४]

ग़ैर महरम महिला की आवाज सुनने का हुक्म

  • धर्मशास्त्रीयो के अनुसार बिना आनंद और हराम में पड़ने के डर के बिना किसी ग़ैर महरम महिला की आवाज का सुनना जायज़ है और हराम मे पड़ने और आनंद के इरादे से सुनना हराम है।[३५]
  • महिला का तेज आवाज़ के साथ ऐसे स्थान पर नमाज पढ़ना जबकि उसे पता हो कि उसकी आवाज़ ग़ैर महरम सुन रहे है शहीदे अव्वल जैसे धर्मशास्त्रीयो के अनुसार हराम और नमाज़ बातिल है।[३६] साहिबे जवाहिर ने इस कार्य के हराम होने को स्वीकार करते हुए इसकी वजह से नमाज बातिल होने को स्वीकार नही किया है।[३७]

ग़ैर महरम के साथ अकेले रहने का हुक्म

कुछ फ़ुक़्हा के अनुसार, ग़ैर-महरम के साथ अकेले रहना हराम है।[३८] जबकि कुछ धर्मशास्त्रीयो ने ग़ैर-महरम के साथ अकेला रहना ऐसी परिस्तिथि मे हराम माना है जब गुनाह मे पड़ने का ऐहतेमाल हो।[३९] आयतुल्लाह ख़ूई (मृत्यु 1371श.) के फ़त्वे के अनुसार ना महरम के साथ अकेला रहना हराम के मुकद्दमे के बाब से और यह गुनाह करने का कारण बनता है हराम है।[४०] जवाहिर अल कलाम के लेखक मुहम्मद हसन नजफ़ी के अनुसार, ग़ैर-महरम के साथ अकेले रहना मकरूह है।[४१]

बात करना

  • धर्मशास्त्रियो के अनुसार, आनंद का इरादा किए बिना और गुनाह मे पड़ने का भय ना हो ग़ैर-महरम से बात करना जायज़ है।[४२]
  • मिर्ज़ा जवाद तबरेज़ी के अनुसार, जवान आदमी का ग़ैर महरम के साथ बात करना आनंद का इरादा ना हो और गुनाह मे पड़ने का भी ख़ौफ़ ना हो बेहतर है बात ना करे।[४३]
  • मैसेज के माध्यम से ग़ैर महरम के साथ इरतेबात रखना ई-मेल, चैट उस परिस्तिथि मे हराम है जब ऐस करना भ्रष्टाचार या गुनाह का सबब बने।[४४]

ग़ैर महरम से शादी करना जायज़ है

इस्लामी धर्मशास्त्र में, केवल ग़ैर-महरम के साथ शादी करना जायज़ है, महरम के साथ शादी करना जायज़ नही है।[४५]

  • हालांकि साली ग़ैर महरम है, लेकिन जब तक पत्नि जीवित है या तलाक़ नही दी है, तब तक साली से शादी करना जायज़ नही है।[४६]

कुछ शर्तों के कारण कुछ ग़ैर महरमो से शादी करना हमेशा के लिए मना है:

  1. पुरुष का उस महिला से शादी करना जिसे उसने 9 बार तलाक़ दिया हो।[४७]
  2. पुरुष का उस महिला से शादी करना है जिसने शादी से पहले उसकी मां या उसकी बेटी के साथ ज़ेना (रेप) किया हो।[४८]
  3. पुरुष का विवाहित महिला से शादी करना, या ऐसी महिला से शादी करना जिसके साथ उसने तलाक़ की इद्दत मे ज़ेना किया हो।[४९]
  4. पुरुष का उस महिला से शादी करना जिसके साथ शादी से पहले, बेटे, भाई या उसके पिता के साथ लवात किया हो।[५०]

संबंधित लेख

फ़ुटनोट

  1. मुजतहेदि तेहरानी, सह रिसालेः गुनाह आने कबीरा, महरम वा ना महरम, अहकाम उल ग़ीबत, 1381 शम्सी, पेज 10
  2. नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1404 हिजरी, भाग 29, पेज 237,
  3. क़िराअती, तफ़सीरे नूर, 1387 शम्सी, भाग 6, पेज 171-173
  4. नूरी, मसतदरक अल वसाइल, 1408 हिजरी, भाग 14, पेज 272
  5. नूरी, मसतदरक अल वसाइल, 1408 हिजरी, भाग 14, पेज 272
  6. शेख़ सदूक़, मन ला याहजेर अल फ़क़ीह, 1413 हिजरी, भाग 4, पेज 18
  7. इब्न शैबा हर्रानी, तोहफ अल ओक़ूल, 1404 हिजरी, पेज 151
  8. फ़ैज़ काशानी, मोहज्जा अल बैज़ा, 1417 हिजरी, भाग 7, पेज 161
  9. नराक़ी, जामे अल सआदात, मोअस्सेसा अल आलमी लिल मतबूआत, भाग 3, पेज 245
  10. मुताहरि, मस्अला ए हिजाब, 1386 शम्सी, पेज 76
  11. नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1404 हिजरी, भाग 29, पेज 75
  12. नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1404क., भाग 29, पेज 75; सीस्तानी, तौज़ीह अल मसाइल, 1415 हिजरी, पेज 508
  13. सीस्तानी, तौज़ीह उल मसाइल, 1415क., पेज 508; मकारिम शीराज़ी, अहकामे ख़ानवादा, 1389 शम्सी, पेज 22
  14. शहीद सानी, मसालिक अल अफ़हाम, 1412 हिजरी, भाग 7, पेज 40
  15. शहीद सानी, अल रौज़त अल बहयत, 1410 हिजरी, भाग 5, पेज 97-98; तबरेज़ी, इस्तिफ़ताआत जदीज, 1385 शम्सी, भाग 1, पेज 355
  16. इस्तिफ़ताआत जदीज, 1385 श्म्सी, भाग 1, पेज 356
  17. ख़ुई, इस्तिफ़ताआत, पेज 299; मकारिम शीराज़ी, अहकामे ख़ानवादा, 1389 शम्सी, पेज 25
  18. मकारिम शीराज़ी, अहकामे ख़ानवादा, 1389 शम्सी, पेज 31
  19. नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1404 हिजीर, भाग 2, पेज 4
  20. मोअस्सेसा ए दाएरत अल मआरिफ़ अल फ़िक़्ह अल इस्तिदलाली, फरहंगे फ़िक्हे फ़ारसी, 1387 शम्शसी, भाग 2, पेज 283
  21. शेख़ तूसी, अल मबसूत, 1387 हिजरी, भाग 4, पेज 160
  22. बहरानी, हदाइक़ अल नाज़ेरा, मोअस्सेसा ए अल नश्र अल इस्लामी अल ताबेअत लेजमाअत अल मुदर्रेसीन, भाग 23, पेज 56
  23. अंसारी, किताब अल निकाह, 1415 हिजरी, पेज 48
  24. यज़्दी तबातबाई, अल उरवत अल वुस्क़ा, 1430 हिजरी., भाग 6, पेज 206
  25. हकीम, मुस्तमसिक अल उरवत, 1391 हिजरी, भाग 5, पेज 241-242
  26. इमाम ख़ुमैनी, तहरीर अल वसीला, 1434 हिजरी, भाग 2, पेज 261
  27. छुपाना और देखना, Khamenei.ir
  28. अल्लामा हिल्ली, तज़किरत अल फ़ुक़्हा, अल मकतबत अल रिज़वियत ले एहयाए अल आसार अल जाफ़रियत, भाग 2, पेज 573
  29. फ़ाज़िले मिक़दाद, कंज़ अल इरफ़ान, 1373 श्म्सी, भाग 2, पेज 222
  30. सब्ज़ावारी, मोहज़्ज़ब अल अहकाम, 1413 हिजरी, भाग 5, पेज 230-237
  31. बहरानी, हदाइक़ अल नाज़ेरा, मोअस्सेसा ए अल नश्र अल इस्लामी अल ताबेअत लेजमाअत अल मुदर्रेसीन, भाग 23, पेज 56; सिस्तानी, तौज़ीह अल मसाइल, 1415 हिजरी, पेज 508
  32. नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1404 हिजरी, भाग 29, पेज 100
  33. नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1404 हिजरी, भाग 29, पेज 99; मोअस्सेसा अल दाएरत अल फ़िक़्ह अल इस्लामी, अल मोसूअत अल फ़िक़्हियत, 1423 हिजरी, भाग 5, पेज 81
  34. इमाम ख़ुमैनी, रिसाला निजात अल ऐबाद, 1409 हिजरी, पेज 363
  35. तबातबाई यज़्दी, अल उरवत अल वुस्क़ा, 1415 हिजरी, भाग 5, पेज 490
  36. शहीदे अव्वाल, ज़िकरा अल शिया, 1419 हिजरी, भाग 3, पेज 322
  37. नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1404 हिजरी, भाग 9, पेज 383-384
  38. शहीद सानी, मसालिक अल इफ़हाम, 1412 हिजरी, भाग 9, पेज 323-325
  39. मोअस्सेसा अल दाएरत अल फ़िक़्ह अल इस्लामी, अल मोसूअत अल फ़िक़्हियत, 1423 हिजरी, भाग 5, पेज 185
  40. तौहीदी, मिसबाह उल फ़ुकाहत, 1417 हिजरी., भाग 1, पेज 350
  41. नजफ़ी, जवाहिर उल कलाम, 1404 हिजरी, भाग 32, पेज 344
  42. नजफ़ी, जवाहिर उल कलाम, 1404 हिजरी, भाग 32, पेज 99
  43. तबरेज़ी, इस्तिफ़ताआत जदीद, 1385 शम्सी, पेज 362
  44. ग़ैर महरम के साथ ई-मेल, चैट या मैसेज के माध्यम से संबंध रखना, आयतुल्लाहिल उज़्मा नासिर मकारिम शीराज़ी की साइट
  45. उदाहरण के लिए मोहक़्क़िक़े हिल्ली की किताब देखे, शराए उल इस्लाम, 1408 हिजरी, भाग 2, पेज 224; नजफ़ी, जवाहिर उल कलाम, 1404 हिजरी, भाग 29, पेज 237
  46. बनी हाश्मी ख़ुमैनी, रिसाला तौज़ीह उल मसाइल 13 मराजे, 1385 शम्सी, अहकामे निकाह, मस्ला 2390
  47. मुफ़ीद, अलमुक़्नेआ, मोअस्सेसा नश्र इस्लामी, भाग 1, पेज 501
  48. शहीद सानी, मसालिक अल इफ़हाम, 1412 हिजरी, भाग 7, पेज 297-298
  49. नजफ़ी, जवाहिर उल कलाम, 1404 हिजरी, भाग 29, पेज 446
  50. मोहक़्क़िक़े हिल्ली, शराए उल इस्लाम, 1408 हिजरी, भाग 2, पेज 233

स्रोत

  • इब्ने शैबा हर्रानी, हसन बिन अली, तोह्फ उल उक़ूल, क़ुम, मोअस्सेसा अल नश्र उल इस्लामी, दूसरा प्रकाशन 1404 हिजरी
  • इमाम ख़ुमैनी, सय्यद रूह उल्लाह, तहरीर उल वसीला, क़ुम, मतबआ मोअस्सत उल उरूज, पहला प्रकाशन 1434 हिजरी
  • इमाम ख़ुमैनी, सय्यद रूह उल्लाह, रिसाला निजात उल ऐबाद, तेहरान, मोअस्सा तंज़ीन वा नश्र आसारे इमाम ख़ुमैनी, पहला प्रकाशन 1422 हिजरी
  • बहरानी, यूसुफ, हदाइक़ उन नाज़िरा फ़ी अहकामि इतरातित ताहिरा, क़ुम, मोअस्सेसत उन नश्र उल इस्लामी अत्ताबेअत लिजामेअत उल मुदर्रेसीन
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  • छुपाना और देखना, साइट Khamenei.ir, अपलोडिग की तारीख 6 अक्टूबर 2014, विज़िट की तारीख 24 अप्रैल 2021
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  • फ़ैज़ काशानी, मुहम्मद बिन शाह मुर्तज़ा, मोहज़्जा तुल बैज़ा, क़ुम, मोअस्सा अल नश्र उल इस्लामी, चौथा प्रकाशन, 1417 हिजरी
  • क़राती, मोहसिन, तफ़्सीरे नूर, तेहरान, मरकज़ ए फ़रहंगी दर्सहा ए अज़ क़ुरआन, 1387 शम्सी
  • मोअस्सेसा ए दाएरत उल मआरिफ अल फ़िक़्ह उल इस्लामी, अलमौसूअत उल फ़िक़्हिया, क़ुम, मोअस्सेसा ए दाएरत उल मआरिफ अल फ़िक़्ह उल इस्लामी, 1423 हिजरी
  • मोअस्सेसा ए दाएरत उल मआरिफ अल फ़िक़्ह उल इस्लामी, फ़रहंग ए फ़िक्ह फ़ारसी, क़ुम, मोअस्सेसा ए दाएरत उल मआरिफ अल फ़िक़्ह उल इस्लामी, 1387 शम्सी
  • मुज्तेहिदी, तेहरानी, अहमद, सह रिसाले, गुनाहाने कबीरा, महरम वा ना महरम, अहकाम उल ग़ीबत, क़ुम, मोअस्सेसा ए दर राहे हक़, 1381 शम्सी
  • मोहक़्क़िक़े हिल्ली, जाफ़र बिन हसन, शराए उल इस्लाम, क़ुम, मोअस्सेसा ए इस्माईलीयान, दूसरा प्रकाशन, 1408 हिजरी
  • मोहक़्क़िके करकि, जामे उल मक़ासिद, मोअस्सेसा ए आले अलबैत (अ.स.), दूसरा प्रकाशन, 1414 हिजरी
  • मुफ़ीद, मुहम्मद बिन मुहम्मद, अलमुक़्नेआ, क़ुम, शेख मुफ़ीद मिलेनियम वर्ल्ड कांग्रेस, 1413 हिजरी
  • मुताहरि, मुर्तुज़ा, मस्एला ए हिजाब, क़ुम, इंतेशारात ए सद्रा, 1386 शम्सी
  • मकारिम शिराज़ी, नासिर, अहकाम ए ख़ानवादा, क़ुम, इमाम अली इब्ने अबि तालिब (अ.स.), दूसरा प्रकाशन, 1389 शम्सी
  • नजफ़ी, मुहम्मद हसन, जवाहिर उल कलाम फ़ी शरह शराए उल इस्लाम, बैरूत, दारे एहया इल तुरास उल अरबी, 1404 हिजरी
  • नराक़ी, मुल्ला मुहम्मद महदी, जामे उस सादात, बैरूत, मोअस्सेसा तुल आअलमी लिल मतबुआत, चौथा प्रकाशन
  • नूरी, मीरज़ा हुसैन, मुस्तदरक उल वसाइल, क़ुम, मोअस्सेसा आले अलबैत (अ.स.) ले एहया इत तुरास, 1408 हिजरी