सय्यद अबुल क़ासिम ख़ूई

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(आयतुल्लाह ख़ूई से अनुप्रेषित)
सय्यद अबुल क़ासिम ख़ूई
मरज ए तक़लीद
जन्म तिथि15 रजब 1317 हिजरी
जन्म स्थानख़ूई
मृत्यु तिथिशनिवार, 8 सफ़र 1413 हिजरी (96 वर्ष की आयु में)
मृत्यु का शहरकूफ़ा
समाधि स्थलइमाम अली (अ) का हरम
गुरूशेख़ अल शरीया इस्फ़ाहानी, महदी माज़ंदरानी, आक़ा ज़ेया इराक़ी, मुहम्मद हुसैन ग़रवी इस्फ़ाहानी, मुहम्मद हुसैन नाईनी,
शिष्यमुहम्मद इ्स्हाक़ फ़य्याज़, सद्रा बादकूबेई, सय्यद मुहम्मद बाक़िर सद्र, मिर्ज़ा जवाद तबरेज़ी, सय्यद अली हुसैनी बहिश्ती, सय्यद मुर्तज़ा ख़लख़ाली, सय्यद अली सिस्तानी, मुहम्मद जाफ़र नाईनी, मुर्तज़ा बुरोजर्दी,
शिक्षा स्थानहौज़ा ए इल्मिया नजफ़
संकलनअल बयान फ़ी तफ़सीर अल क़ुरआन, तकमेला मिन्हाज अल सालेहीन, मोजम रेजाल अल हदीस
राजनीतिकइंतिफ़ाज़ा शाबानिया इराक़ की तरफ़दारी
सामाजिकविभिन्न देशों में धर्मार्थ संस्थानों और इस्लामी केंद्रों की स्थापना


सय्यद अबुल क़ासिम मूसवी ख़ूई (अरबी: السيد أبو القاسم الخوئي) (1278-1371 हिजरी) शिया मरजए तक़लीद, रेजाल शास्त्र विशेषज्ञ, और मोअजम रिजालुल हदीस के 23 खंडों के संग्रह और तफ़सीर अल-बयान फ़ि तफ़सीरिल क़ुरआन के लेखक थे। मिर्ज़ा नाईनी और मोहक़्क़िक़ इस्फ़हानी न्यायशास्त्र और न्यायशास्त्र के सिद्धांतों में उनके दो सबसे प्रमुख शिक्षक थे। आयतुल्लाह ख़ूई की मरजईयत की आधिकारिक शुरुआत सय्यद हुसैन तबातबाई बुरुजरदी की मृत्यु के बाद मानी जाती है और सय्यद मोहसिन तबातबाई हकीम की मृत्यु को विशेष रूप से इराक़ में उनकी मरजईयत की शुरुआत माना जाता है। अपने 70 वर्षों के शिक्षण के दौरान, सय्यद ख़ूई ने न्यायशास्त्र पर एक पूर्ण पाठ्यक्रम और न्यायशास्त्र के सिद्धांतों पर छह पाठ्यक्रम पढ़ाए हैं, उन्होंने कुरआन की व्याख्या पर एक पाठ्यक्रम भी पढ़ाया है। मुहम्मद इसहाक़ फय्याज़, सैय्यद मुहम्मद बाक़िर सद्र, मिर्ज़ा जवाद तबरेज़ी, सैयद अली सीस्तानी, हुसैन वहीद ख़ुरासानी, सैयद मूसा शुबैरी ज़ंजानी, सैय्यद मूसा सद्र और सैय्यद अब्दुल करीम मूसवी अर्दबेली सहित विद्वानों की पहचान खूई के छात्रों के रूप में की गई है।

आयतुल्लाह ख़ूई की न्यायशास्त्र और न्यायशास्त्र के सिद्धांतों में महत्वपूर्ण राय और दृष्टि है, जो कभी-कभी प्रसिद्ध शिया न्यायविदों की राय से भिन्न होती हैं। कुछ सूत्रों ने उनके प्रसिद्ध से अलग फ़तवों को 300 तक माना है। न्यायशास्त्र और न्यायशास्त्र के सिद्धांतों में उनकी कुछ अलग राय में काफ़िरों पर फ़ुरू ए दीन वाजिब होने का विरोध, चंद्र महीने की शुरुआत की सापेक्ष प्रकृति की अस्वीकृति और शोहरते फ़तवाई और आम सहमति (इजमा) की वैधता का विरोध शामिल है। अपनी मरजईयत के दौरान, उन्होने धर्म का प्रचार करने, शिया धर्म को बढ़ावा देने और ज़रूरतमंदों की मदद करने के लिये क़दम बढ़ाये। जिसमें ईरान, इराक़, मलेशिया, इंग्लैंड, अमेरिका, भारत, आदि में पुस्तकालय, स्कूल, मस्जिद, हुसैनिया और अस्पताल बनाना शामिल हैं।

1340 शम्सी के दशक में, आयतुल्लाह ख़ूई ने पहलवी सरकार के खिलाफ़ प्रतिक्रिया और बयान दिये थे; 1342 में मदरसा फ़ैज़िया की घटना का विरोध इनमें से एक है। 1357 शम्सी में ईरान में इस्लामी क्रांति की शुरुआत के बाद उनके साथ मुहम्मद रज़ा पहलवी की पत्नी फ़रह दीबा की मुलाक़ात और इस बैठक से संदेह पैदा होने के बाद, उन्होंने जनमत संग्रह जैसे मामलों में इस्लामी क्रांति और गणतंत्र पर होने वाले मेमोरेंडम का समर्थन किया। और इसी तरह से ईरान में इस्लामी गणराज्य की स्थापना और ईरान के खिलाफ़ इराक़ के युद्ध में इस्लामी ईरान का समर्थन किया। वह शाबान के महीने में होने वाले इराक़ी शिया इंतिफ़ाज़ा (आंदोलन) और शिया प्रशासित क्षेत्रों के प्रशासन के लिए एक नेतृत्व परिषद की नियुक्ति, के दौरान सद्दाम हुसैन की सरकार के दबाव में रहे और वह अपने जीवन के अंत तक नज़रबंद रहे।

जीवनी

सय्यद अबुल क़ासिम मूसवी ख़ूई का जन्म 15 रजब 1317 हिजरी को पश्चिम आज़रबाइजान के ख़ोय शहर में हुआ था।[१]उनके पिता सय्यद अली अकबर ख़ूई, अब्दुल्लाह मामक़ानी के शिष्यों में से थे, ईरान में मशरूता क्रांति का समर्थन न करने की वजह से,[२] वह 1328 शम्सी में ईरान से नजफ़ चले गए थे।[३] सय्यद ख़ूई ने, शनिवार 8 सफ़र 1413 हिजरी, 96 वर्ष की आयु में कूफ़ा में हृदय रोग के कारण वफ़ात पाई, और अमीरुल मोमिनीन (अ) के रौज़े के प्रांगण में अल ख़ज़रा मस्जिद के बग़ल में उन्हें दफ़्न किया गया। [४]

पत्नी और बच्चे

सय्यद ख़ूई की दो बार शादी हुई थी। उनके बच्चों में उनकी पहली पत्नी से तीन बेटे और तीन बेटियाँ हैं, और उनकी दूसरी पत्नी से चार बेटे और दो बेटियाँ हैं।[५] ख़ूई के कुछ प्रसिद्ध बच्चे हैं:

  • सय्यद जमालुद्दीन ख़ूई, उनके सबसे बड़े बेटे, जिन्होंने नजफ़ में अपने पिता की मरजईयत के मामलों में अपना अधिकांश जीवन बिताया। उनके कुछ कार्यों में किताब किफ़ायतुल उसूल की व्याख्या, दर्शन शास्त्र व कलाम शास्त्र की चर्चा, तजरीदुल ऐतेक़ाद की शरह, दीवाने मुतनब्बी की व्याख्या और फ़ारसी में कविता का दीवान शामिल हैं।[६]
सय्यद ख़ूई के अंतिम संस्कार पर आयतुल्लाह सीस्तानी की प्रार्थना
  • सय्यद मुहम्मद तक़ी ख़ूई, 1368 शम्सी में इमाम ख़ूई चैरिटी संस्थान की स्थापना के बाद वह इसके महासचिव बने। 1369 शम्सी में शाबानिया इंतिफाज़ा के बाद, वह अपने पिता के चुने हुए बोर्ड के सदस्य थे जो मुक्त क्षेत्रों का प्रशासन करते थे; लेकिन इस विद्रोह के दमन और शियों के नरसंहार के बाद, उन्हें अपने पिता के साथ नजरबंद कर दिया गया और आखिरकार 30 जुलाई, 2013 को एक कार दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई। कुछ लोगों ने इस घटना को सद्दाम की सरकार की योजना का परिणाम माना है। [७] उनके पिता के न्यायशास्त्र के लेक्चर की तक़रीरात के अलावा, किताब अलइल्ज़ामात अत तबईया फ़िल उक़ूद उनके कार्यों में से हैं।[८]
हरम ए इमाम अली (अ) में आयतुल्लाह खूई की क़ब्र

आयतुल्लाह ख़ूई की बेटियों के बारे में कोई विस्तृत जानकारी नहीं है, लेकिन उनके कुछ दामादों में सय्यद नसरुल्लाह मुसतंबित, सय्यद मुर्तज़ा हकीमी, सय्यद जलालुद्दीन फ़कीह इमानी, जाफ़र ग़रवी नाईनी और सय्यद महमूद मीलानी शामिल हैं।[९]

इल्मी जीवन

1330 हिजरी में, 13 साल की उम्र में, अबुल क़ासिम ख़ूई अपने भाई अब्दुल्ला ख़ूई के साथ नजफ़ में अपने पिता के पास आ गए।[१०] उन्होंने हौज़े में प्रारंभिक और उच्च स्तर के अध्ययन में छह साल बिताए। उसके बाद उन्होने 14 वर्षों तक विभिन्न शिक्षकों से न्यायशास्त्र और न्यायशास्त्र के सिद्धांतों सहित विभिन्न शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया। इनमें से, जैसा कि उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा है, उन्होंने मुहम्मद हुसैन नाईनी और मुहम्मद हुसैन ग़रवी इसफ़हानी से सबसे अधिक इल्म हासिल किया।[११][१२]

शिक्षक और इज्तिहाद की अनुमति

सय्यद ख़ूई ने, जैसा कि उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा है, उन्होंने मुहम्मद हुसैन नाईनी और मुहम्मद हुसैन ग़रवी एसफ़हानी से सबसे अधिक ज्ञान प्राप्त किया और उन दोनो से न्यायशास्त्र के सिद्धांतों (उसूले फ़िक़्ह) का एक पूरा पाठ्यक्रम पढ़ा और न्यायशास्त्र (फ़िक़ह) की कुछ पुस्तकों को पढ़ा। उनके अलावा उन्होने शैख़ अल-शरिया (मृत्यु 1338 हिजरी), मेहदी मज़ंदरानी (मृत्यु 1342 हिजरी) और आक़ा ज़िया इराक़ी[१३] जैसे अन्य उस्तादों का भी उल्लेख किया है।

उनके अन्य प्रोफेसरों में मुहम्मद जवाद बलाग़ी से उन्होने इल्मे कलाम, अक़ायद व तफ़सीर, अबू तुराब ख़ुनसारी से रेजाल शास्त्र व दिरातुल हदीस, सय्यद अबुल क़ासिम ख़ुनसारी से गणित शास्त्र, सय्यद हुसैन बादकुबेई और सैयद अली काज़ी से दर्शन शास्त्र व इरफ़ान पढ़े, शामिल हैं।[१४]

नजफ़ में हौज़े में अपने अध्ययन के दौरान, उन्होने सय्यद मुहम्मद हादी मिलानी (मृत्यु 1395 हिजरी), सय्यद मुहम्मद हुसैन तबताबाई (मृत्यु 1402 हिजरी), सय्यद सदरुद्दीन जज़ायरी, अली मुहम्मद बुरुजेरदी (मृत्यु 1395 हिजरी), सय्यद हुसैन ख़ादीमी और सय्यद मुहम्मद हुसैनी हमदानी से मुबाहेसा किया।[१५]

1352 हिजरी में, सय्यद ख़ूई को हौज़ा इल्मिया नजफ़ के कई मुजतहेदीन से इज्तिहाद की अनुमति मिली; जिनमें मुहम्मद हुसैन नाईनी, मुहम्मद हुसैन ग़रवी एसफ़हानी, आग़ा ज़िया इराक़ी, मुहम्मद हुसैन बलाग़ी, मिर्ज़ा अली आग़ा शिराज़ी और सय्यद अबुल हसन एसफ़हानी शामिल हैं।[१६]

मरजईयत

सय्यद ख़ूई की मरजईयत की शुरुआत स्पष्ट रूप से ज्ञात नहीं है, लेकिन बहुत से स्रोत का मानना है कि आयतुल्लाह बुरूजर्दी की मृत्यु के बाद उनकी मरजईयत की बाक़ायदा शुरुआत हुई और उन्होने इस बात पर ज़ोर दिया है कि सय्यद मोहसेन तबताबाई हाकिम की मृत्यु के बाद, ख़ूई को विशेष रूप से इराक़ में श्रेष्ठ मरजा के रूप में मान्यता दी गई थी[१७] और उनकी मरजईयत को ईरान के शियों के बीच भी महत्वपूर्ण माना जाता था।[१८]ख़ूई को उन मराजे ए तक़लीद में से एक के रूप में जाना जाता है, जिनका अरब और गै़र-अरब सारे शियों के बीच महत्वपूर्ण प्रभाव रहा है।[१९]

नजफ़ के 14 मुजतहिदों, जिनमें सदरा बादकुबेई, सय्यद मुहम्मद बाक़िर सद्र, सय्यद मुहम्मद रूहानी, मुजतबा लंकरानी, ​​मूसा जंजानी, यूसुफ़ करबलाई, सय्यद यूसुफ़ हकीम और सैय्यद जाफ़र मरअशी शामिल हैं, ने आयतुल्लाह ख़ूई की आलमीयत (श्रेष्ठता) की घोषणा की।[२०] मजलिसे आला ए इस्लामी शियाने लेबनान की ओर से सय्यद मूसा सद्र ने सय्यद ख़ूई के श्रेष्ठ मरजा के रूप में पेश किया।[२१]

शिक्षण

नजफ़ में अपने अध्ययन के दौरान, सय्यद ख़ूई शिक्षण में भी लगे हुए थे और विभिन्न स्रोतों के अनुसार, उन्होंने जो भी किताब पढ़ी, उसे पढ़ाया करते थे।[२२]

मस्जिद ए ख़ज़्रा मेें पढ़ाते हुऐ आयतुल्लाह खूई

मुहम्मद हुसैन ग़रवी नाईनी और मुहम्मद हुसैन ग़रवी इसफहानी की मृत्यु के बाद, सय्यद अबुल कासिम ख़ूई और मुहम्मद अली काज़ेमी खुरासानी के व्याख्यान कक्ष को नजफ़ के महत्वपूर्ण पाठों में से एक के रूप में पेश किया गया है और काज़ेमी ख़ुरासानी की मृत्यु के बाद, आयतुल्लाह ख़ूई के दर्स को नजफ़ के प्रसिद्ध व्याख्यानों में से एक के रूप में पेश किया गया है।[२३] जैसा कि उन्होने अपनी आत्मकथा में लिखा है, अपने लंबे शिक्षण वर्षों के दौरान, बीमारी और यात्रा के दिनों को छोड़कर, उन्होंने कभी भी अपने छात्रों को पढ़ाना बंद नहीं किया। [२४]कुल मिलाकर उन्होने 70 वर्षों तक, हौज़ा इल्मिया नजफ़ में उच्च शिक्षा और ख़ारिज के पाठ्यक्रम को पढ़ाया। और सूत्रों के अनुसार, लगभग पचास वर्षों तक नजफ़ के हौज़ा में उनका दर्स प्रसिद्ध रहा, और ईरान, भारत, अफ़गानिस्तान, पाकिस्तान, इराक़, लेबनान और कुछ अन्य देशों के छात्रों ने उनकी कक्षाओं में भाग लेते थे।[२५]

उन्होने अपने छात्रों को न्यायशास्त्र का एक पूरा पाठ्यक्रम और न्यायशास्त्र के सिद्धांतों के छह पाठ्यक्रम पढ़ाए। उन्होंने एक छोटी अवधि में कुरआन की व्याख्या का भी दर्स दिया।[२६]

पढ़ाने का तरीक़ा

वह इल्मी विषयों को पढ़ाने में ज़बरदस्त महारत रखते थे, वह विषय सामग्री को सरल अंदाज़ में, फ़सीह भाषा में, व्यवस्थित, तामझाम और हाशिये में जाने के बिना पढ़ाते थे, वह दार्शनिक मुद्दों का उल्लेख नही करते थे, वह हदीसों का बहुत उपयोग करते थे और हदीसों के दस्तावेजों (सनद) पर विशेष ध्यान देते थे।।[२७] उनका पाठ आग़ा ज़िया इराक़ी, मुहम्मद हुसैन ग़रवी नाईनी और मुहम्मद हुसैन ग़रवी इसफ़हानी और उनके अपने विचारों के वैज्ञानिक आधारों और विचारों का सारांश होता था।[२८]

रचनाएं व लेखनियां

सय्यद ख़ूई द्वारा लिखित कार्यों में उनकी रचनाएं, इल्मी रिसाले, तौज़ीहुल मसायल और उनके शिक्षकों के व्याख्यान सहित विभिन्न कार्य शामिल हैं। ख़ूई के कई कार्यों को "इमाम अल-ख़ूई के विश्वकोश" नामक एक पचास खंड वाले संग्रह में एकत्र किया गया है, इस संग्रह के 42 खंडों में तर्कसंगत न्यायशास्त्र (फ़िक़हे इस्तिदलाली) का एक पूरा पाठ्यक्रम शामिल है, और खंड 43 से 48 न्यायशास्त्र के सिद्धांतों (उसूले फ़िक़ह) का एक पूरा पाठ्यक्रम है। इस संग्रह के 49वें खंड में रेजाल शास्त्र की कई किताबों और उनके दर्स की तक़रीरात की कई पुस्तकों को व अन्य को शामिल किया गया हैं, और 50वें खंड में अलबयान फ़ी तफ़सीरिल कुरआन पुस्तक शामिल है।[२९]

  • रचनाएं व इल्मी रिसाले

सैय्यद ख़ूई ने कुरआनिक विज्ञान, न्यायशास्त्र, न्यायशास्त्र के सिद्धांतों और रेजाल शास्त्र सहित विभिन्न विषयों पर रचनाएँ लिखी हैं; जैसे:

  • रिसाला फ़ी नफ़हात अल-इजाज़, चमत्कार और मोजिज़े को साबित करने के बारे में[३०] और पवित्र कुरआन की अमरता को साबित करने वाला एक धर्मशास्त्रीय कार्य है, जिसे छद्म नाम वाले व्यक्ति नसीरुद्दीन ज़ाफ़िर की पुस्तक "हुसनुल ईजाज फ़ी इबतालिल ईजाज" के जवाब में लिखा गया था।।[३१] उन्होंने इसे 25 साल की उम्र में लिखा था और यह उनका पहला काम है।[३२]
अल बयान फ़ी तफ़्सीर अल क़ुरआन
  • अल-बयान फ़ी तफ़सीरिल क़ुरआन, में क़ुरआन विज्ञान के कुछ विषयों के बारे में एक व्यापक परिचय और सूरह हम्द की छह आयतों की व्याख्या शामिल है।[३३] इस पुस्तक की शुरूआत में पवित्र क़ुरआन के गुणों, चमत्कार और उसकी अमरता जैसे विभिन्न विषय शामिल हैं। इस प्रस्तावना में कुरआन में विरूपण (तहरीफ़) ना होने पर ज़ोर दिया गया है। इसके अलावा, पवित्र कुरआन की 36 आयतों की समीक्षा, जिनके निरस्त (मंसूख़) होने का दावा किया जाता है इस में शामिल है, और ख़ूई का मानना ​​है कि उक्त आयतों को निरस्त नहीं किया गया है।[३४] कुछ शोधकर्ताओं के अनुसार, अल बयान के प्रकाशन की शुरुआत से ही, इस पर वैज्ञानिक समाज का ध्यान केंद्रित हो गया और यह हौज़ा इल्मिया और विश्वविद्यालय में इस विषय में पाठों का आधार बन गई।[३५]
  • मोअजम रेजाल अल-हदीस व तफ़सील तबक़ात अल-रिजाल, 23 ​​खंडों में, रेजाल की एक किताब है जिसे पहली बार 1398 हिजरी[३६] में नजफ़ में प्रकाशित किया गया था और इसमें 15,000 से अधिक हदीस कथाकारों (रावियों) की जीवनी का वर्णन है, और स्पष्टीकरण में प्रत्येक रावियों ने जिन लोगों से हदीस नक़्ल की है उन सभी का उल्लेख किया। इस कार्य को शिया रेजाल शास्त्र का सबसे विस्तृत संग्रह माना जाता है।[३७]
  • तौज़ीहुल मसायल और फ़तवा आधारित लेखनियां
मिन्हाजुस सालेहीन

ख़ूई के फ़तवों पर आधारित लगभग 30 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं; जिन में 1361 हिजरी में नजफ़ में प्रकाशित संदिग्ध कपड़ों पर एक पुस्तक से लेकर अल-मसायल अल-मुन्तख़ेबा नामक पुस्तक तक जो अरबी, फारसी, अंग्रेजी, उर्दू, फ्रेंच, इंडोनेशियाई और तुर्की में प्रकाशित हो चुकी है, मिन्हाजुस सालेहीन पुस्तक का सारांश है। अन्य कार्यों में तौज़ीहुल मसायल, मुंतख़बुर रसायल, मनासिके हज, अरबी और फ़ारसी भाषाओं में, और इसी तरह से एक किताब इज़ालतुल मुहादा अन मिलकिल मनाफ़ेइल मुतज़ादा है जो 1351 हिजरी में लिखी गई है। इनमें से कुछ न्यायशास्त्रीय और फ़तवा आधारित किताबें यह हैं: [३८]

  • मिन्हाजुस सालेहीन, पहले उन्होने इसे सैय्यद मोहसिन हकीम द्वारा लिखित किताब मिन्हाजुस सालेहीन पर एक टिप्पणी के रूप में लिखा था, और फिर बाद में हकीम की राय के बजाय पाठ में अपनी टिप्पणियों को शामिल किया, और अंत में हकीम की किताब को अपने फ़तवे के आधार पर फिर से लिखा। यह किताब पहली बार 1390 हिजरी में नजफ़ में प्रकाशित हुई थी, उसके बाद बहुत बार प्रकाशित हुई।[३९] मिन्हाज अल-सालेहीन ख़ूई का विवरण सैय्यद तक़ी तबताबाई क़ुम्मी द्वारा दस खंडों में प्रकाशित किया गया था। सय्यद ख़ूई के बाद के कुछ न्यायविदों, विशेष रूप से उनके छात्रों ने फ़तवा की किताब (तौज़ीहुल मसाइल) को लिखने में उनसे प्रेरित होकर उसका शीर्षक मिन्हाज अल-सालेहीन रखना शुरु कर दिया।
  • हाशिया बर उर्वातुल वुसक़ा: ख़ूई ने सबसे पहले इस फ़तवा आधारित किताब पर एक हाशिया लिखा, जिसे उनके कुलीन छात्रों की उपस्थिति में परामर्श सत्र में तैयार किया गया था, लेकिन उर्वा के पूर्ण पाठ्यक्रम को पढ़ाने के बाद, उन्होंने इस पर फिर से एक हाशिया लिखा, और ऐसा कहा जाता है कि इसका लगभग एक तिहाई पिछले हाशिये से अलग है।[४०]
  • उनके शिक्षकों के व्याख्यान

स्रोतों में उनके दो शिक्षक मिर्ज़ा मुहम्मद हुसैन नाईनी और मुहम्मद हुसैन इस्फ़हानी के फिक़्ह और उसूल के पाठों पर उनके व्याख्यानों का उल्लेख हुआ है। [४१] आग़ा बुज़ुर्ग तेहरानी में उनके द्वारा आक़ा ज़िया इराक़ी के व्याख्यानों का भी उल्लेख किया है। [४२] उनमें से, सबसे प्रसिद्ध व्याख्यान मिर्ज़ा नाईनी के न्यायशास्त्र के सिद्धांतों के पाठों पर आधारित हैं, जो मोहम्मद हुसैन नाईनी[४३] के जीवनकाल के दौरान पहली बार अजवद अल-तक़रीरात के नाम से प्रकाशित हुए थे और वर्षों बाद, संशोधन और परिवर्धन के बाद, 1368 हिजरी में तेहरान में इसे प्रकाशित किया गया था।। यह काम नाईनी के मूलभूत सिद्धांतों के बारे में प्रसिद्ध स्रोतों में से एक के रूप में जाना जाता है।[४४]

  • उनके छात्रों द्वारा लिखे गए उनके पाठों का व्याख्यान

ख़ूई के कई छात्रों ने, उनके शिक्षण वर्षों के दौरान, उनके पाठों के व्याख्यान संकलित किए और ये व्याख्यान उन के संशोधन के बाद प्रकाशित हुए। इनमें से कुछ व्याख्याएं हैं:

  1. मिस्बाह अल उसूल, सय्यद मुहम्मद सरवर वायज़ बेहसूदी द्वारा, सय्यद ख़ूई द्वारा न्यायशास्त्र के सिद्धांतों का एक पूरा पाठ्यक्रम।[४५]
  2. देरासात फिल उसूल, सय्यद अली हाशिमी शाहरूदी द्वारा सय्यद ख़ूई के उसूल के तीसरे पाठ्यक्रम का पूर्ण संस्करण है।
  3. मुहाज़ेरात फ़ी उसूले फ़िक़्ह, मुहम्मद इसहाक़ फैयाज द्वारा लिखित व्याख्यान, जो सय्यद ख़ूई को बहुत पसंद आया।[४६]
  4. मबानिल इस्तिंबात, सैय्यद अबुल क़ासिम कोकबी तबरेज़ी।
  5. मसाबिहुल उसूल, सय्यद अलाउद्दीन बहरुल उलूम द्वारा लिखित ।
  6. रिसाला फ़िल अम्र बैनल अमरैन।[४७] ख़ूई ने कलाम और दर्शन शास्त्र के इस विषय को आखुंद ख़ुरासानी की किताब केफ़ायतुल उसूल के अनुसार पैरवी करते हुए तलब व इरादा की बहस में उल्लेख किया है।
  7. मिस्बाह अल-फ़क़ाहा फ़िल मामलात। मुहम्मद अली तौहीदी द्वारा लिखित न्यायशास्त्र की इस किताब में अपने विश्लेषण में आयतुल्लाह ख़ूई ने लेखक की संपूर्णता, सटीकता और ज्ञान की व्यापकता की प्रशंसा की है।[४८]

शिष्य

आयतुल्लाह ख़ूई और उनके छात्र, दाऐं से सय्यद जाफ़र ख़ूई,सय्यद मूसा सद्र,सय्यद अब्दुल्लाह शीराज़ी,अबुल क़ासिम ख़ूई,सय्यद नसरुल्लाह मुस्तंबित,सय्यद मुर्तज़ा हकमी

उनके छात्रों की सख्या बहुत अधिक है। कुछ स्रोतों में उनके शिष्यों की तादाद 600 से ज़्यादा उल्लेख है।[४९] उनके कुछ श्रेष्ठ छात्र जो उनकी फ़तवा समिति के सदस्य भी थे यह हैं: मुहम्मद इसहाक़ फ़य्याज़, सदरा बादकूबेई, सय्यद मुहम्मद बाक़िर सद्र, मीरज़ा जवाद तबरेज़ी, सय्यद अली हुसैनी बहिश्ती, सय्यद मुर्तुज़ा ख़लख़ाली, सय्यद अली सीस्तानी, अली फ़लसफ़ी तिनकाबुनी, मुहम्मद जाफ़र नाईनी व मुर्तुज़ा बुरूजर्दी।

उनके कुछ अन्य छात्र हैं: अबुल क़ासिम गुर्जी [५०] हुसैन वहीद ख़ुरासानी, मुहम्मद आसिफ़ मोहसेनी कंधारी,[५१] सय्यद अली हाशिमी शाहरूदी, सय्यद जवाद आले अली शाहरूदी, मुहम्मद तक़ी जाफ़री, सय्यद अब्दुल करीम रज़वी कश्मीरी, [५२]सय्यद मुहम्मद हुसैन फज़लुल्लाह, बाक़िर शरीफ़ करशी, सय्यद मुहम्मद हुसैन हुसैनी तेहरानी, ​​बशीर हुसैन नजफ़ी, सय्यद मूसा सद्र, हाज आग़ा तक़ी क़ुम्मी, और सय्यद अब्दुल करीम मूसवी अर्दबेली।[५३]

वैज्ञानिक दृष्टिकोण

सैय्यद अबुल क़ासिम खूई, न्यायशास्त्र और न्यायशास्त्र के सिद्धांतों में, महत्वपूर्ण राय और मत रखते थे, जो कभी-कभी प्रसिद्ध शिया न्यायविदों की राय से भिन्न होते थे, और कुछ रिपोर्टों के अनुसार, 300 फ़तवे, शिया न्यायविदों के प्रसिद्ध फ़तवों के विपरीत उनके फ़तवों में देखे जा सकते है।[५४] कुछ इनमें शामिल हैं:

  • काफ़िरों पर फ़ुरूए दीन वाजिब होने का विरोध: खूई, यूसुफ़ बहरानी और सभी शिया विद्वानों की राय के विपरीत, जो मानते हैं कि काफिर धर्म के सिद्धांत के अलावा धर्म की शाखाओं का पालन करने के लिए बाध्य हैं, [५५] का मानना ​​है कि जब तक वे इस्लाम को स्वीकार नहीं करेंगे, तब तक वह धर्म की शाखाओं का पालन करने के लिए बाध्य नहीं होंगे।[५६]
  • चंद्र मास के प्रारंभ की सापेक्ष प्रकृति को न मानना: ख़ूई के अनुसार प्रचलित मत के विपरीत चंद्र मास का प्रारंभ सभी के लिए एक समान होता है और इसे सापेक्ष (निसबी) नहीं माना जा सकता। क्योंकि चंद्र मास की शुरुआत की कसौटी, क्रांतिवृत्त से चंद्रमा का प्रस्थान है, जो एक विकासात्मक घटना है और सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी की स्थिति से संबंधित है, और पृथ्वी के विभिन्न भागों और क्षेत्रों पर निर्भर नहीं है।[५७]
  • शोहरते फ़तवाई और आम सहमति का विरोध: सैय्यद अबुल कासिम ने शोहरते फ़तवाई के बारे में शिया विद्वानों के प्रसिद्ध मतों से सर्वथा भिन्न मत रखते थे। अधिकांश शिया उसूली उलमा के अनुसार, यदि एक फ़तवा न्यायविदों के बीच प्रसिद्ध है, तो इसके साथ असंगत मोतबर हदीस मान्य नहीं है। हालांकि, ख़ूई इस सिद्धांत से असहमत हैं और उन्होंने न्यायशास्त्र के सिद्धांतों में संघर्ष की प्राथमिकताओं (तरजीहाते बाबे तआरुज़) में "शोहरते फ़तवाई" का उल्लेख नहीं किया और उनका मानना ​​है कि व्यावहारिक शोहरत, रिवायत में वर्णित दस्तावेज़ (सनद) की कमजोरी को क्षतिपूर्ति नहीं करती है; जिस तरह एक सही हदीस को न्यायविदों की असावधानी अमान्य नहीं कर देगी।[५८] उन्होंने आम सहमति (इजमाअ) वैधता पर भी सवाल उठाया; चाहे वह इजमा मंक़ूल हो या मुहस्सल हालांकि, उन्होने अपने फ़तवों में एहतियात किया है और वह आम सहमति (इजमा) पर ध्यान देते थे। [५९]
  • प्रसिद्ध विरोधी फ़तवे: महिला को अपने पति की अनुमति के बिना घर छोड़ने की अनुमति, महिला की खुद की मृत्यु के मामले में गर्भपात की अनुमति, अहले किताब महिला के साथ मुस्लिम पुरुष के स्थायी विवाह की अनुमति, जिहादे इब्तेदाई के लिये मासूम इमाम (अ) का उपस्थित होना शर्त नही है, एक जज के लिए इज्तिहाद की शर्त नहीं है और इसी तरह से ग़ैर-मुस्लिम देशों से आयातित चमड़े की शुद्धता, जिनका शरई तरीक़े से ज़िब्ह होना संदिग्ध है।[६०]

राजनीतिक क़दम

सय्यद अबुल क़ासिम ख़ूई मरजईयत से पहले पहलवी सरकार के कार्यों की निंदा करते हुए बयान और घोषणाएं जारी कीं, उसके बाद दस साल से अधिक अवधि तक उन्होंने लगभग मौन की नीति का पालन किया और फिर फरवरी में ईरान में इस्लामी क्रांति की जीत की पूर्व संध्या पर 1357, उन्होंने इमाम खुमैनी और इस्लामी क्रांति का समर्थन किया। अंत में, इराकी शियों के शाबानिया इंतिफाज़ा के समर्थन के कारण उन्हें घर में नजरबंद कर दिया गया। [६१] आयतुल्लाह ख़ूई के कुछ सामाजिक और राजनीतिक कार्य यह हैं:

पहलवी सरकार के खिलाफ़ टिप्पणी

मेहर 1341 शम्सी में, ईरान के शाह मुहम्मद रज़ा पहलवी को एक टेलीग्राम में, ख़ूई ने राज्य और प्रांतीय संघों के बिल का विरोध किया और इसे शरीयत के विपरीत बताया।[६२]उन्होंने सय्यद मुहम्मद बेहबहानी को एक संदेश में भी ज़ोर दिया कि "ज़ोर ज़बरदस्ती से राष्ट्र की आवाज़ की ख़ामोश नही किया जा सकता है। यह लंबे समय तक नहीं चलेगा और फ़रेब देने वाले प्रचारों से समस्याओं का समाधान नहीं निकलेगा और दिवालिया अर्थव्यवस्था और लोगों के असंतोष का इलाज नहीं होगा।"[६३] इसी तरह से उन्होंने 1342 शम्सी की शुरुआत में मदरसा फैज़िया घटना पर प्रतिक्रिया व्यकित करते हुए, मुहम्मद रज़ा को एक तार भेजा और "इस्लामिक राज्य की गिरावट और उनके शासकों की नीति" के बारे में खेद व्यक्त किया।[६४] एक महीने बाद, ईरानी विद्वानों के एक समूह के एक पत्र के जवाब में, उन्होंने भ्रष्ट शासकों की अक्षमता की घोषणा की; उन्होंने मौलवियों के कर्तव्य को भारी और मौन को अस्वीकार्य माना।[६५] 15 ख़ोरदाद 1342 शम्सी में लोगों की हत्या के बाद, ईरानी शासन प्रणाली को अत्याचारी बताते हुए, 21 वीं मजलिस के चुनावों में भाग लेने पर प्रतिबंध लगाया और उसकी योग्यता को अमान्य क़रार दिया, इमाम ख़ुमैनी की गिरफ्तारी और उन्हे सज़ा दिये जाने की अफ़वाह पर उनका समर्थन करना उनकी कुछ अन्य राजनीतिक प्रतिक्रियाएं हैं।[६६]

इराक़ से ईरानियों का निष्कासन

मुख्य लेख: इराक़ से निष्कासन

इराक़ से 1340 शम्सी के अंत से ईरानियों के निष्कासन के दौरान, सय्यद ख़ूई उन कुछ शिया विद्वानों में से एक थे जिन्हें निष्कासित नहीं किया गया था। हालांकि, उनके कई छात्रों के देश से निकाले जाने से उनकी पाठशाला की समृद्धि को कम कर दिया।[६७] ख़ूई के कई छात्रों ने क़ुम के हौज़े में भाग लेकर, अपने शिक्षक के न्यायशास्त्र और न्यायशास्त्र के सिद्धातों को बढ़ावा दिया, और समकालीन काल में हौज़ा इल्मिया क़ुम, जो आयतुल्लाह हायरी यज़्दी और आयतुल्लाह बुरुजर्दी की वैज्ञानिक पद्धति से प्रभावित था, उसे सय्यद ख़ूई, मिर्ज़ा नाईनी, मोहक़्क़िक़ इस्फ़हानी और आक़ा ज़िया इराक़ी जैसे विद्वानों के न्यायशास्त्रीय और सैद्धांतिक दृष्टिकोण से परिचित कराया।[६८]

दस वर्ष से अधिक की मौन अवधि

मरजईयत के बाद सय्यद ख़ूई राजनीति से हट गए।[६९] यह अवधि नज़फ में इमाम ख़ुमैनी की उपस्थिति के वर्षों के साथ मेल खाती है।[७०] 1357 शम्सी की ईरानी क्रांति की घटनाओं के खिलाफ़ उनकी चुप्पी ने ईरान में विरोध को जन्म दिया। [७१] फ़रह दीबा, मुहम्मद रज़ा पहलवी की पत्नी से 28 आबान, 1357 में अपने घर (मरजईयत के कार्यालय) में मुलाक़ात ने इन विरोधों को हवा दी। ख़ूई ने कुछ विद्वानों को संबोधित पत्रों में इस बैठक को अचानक और अवांछित माना।[७२]

फ़रह दीबा से मुलाकात

फ़रह दीबा, ईरान के तत्कालीन शाह, मुहम्मद रज़ा पहलवी की पत्नी, 28 अबान 1357 को सय्यद अबुल क़ासिम ख़ूई से मिलने ईदे ग़दीर के दिन उनके घर गई।[७३] यह मुलाक़ात ऐसी स्थिति में हुई जहां ईरानी लोगों की इस्लामी क्रांति अपने चरम पर थी और सय्यद रुहुल्लाह मूसवी ख़ुमैनी को इराक़ से निष्कासित कर दिया गया था।[७४] फरह दीबा की ख़ूई से मुलाक़ात के कारण ईरान के क्रांतिकारी हलकों में उनकी आलोचना हुई।[७५] इसलिए, सय्यद सादिक़ रूहानी को संबोधित एक नोट में, उन्होने इस बैठक की अचानकता और अवांछितता पर जोर देते हुए, इस मरजा तक्लीद ने याद दिलाया कि इसमें, "हमने इसमें ईरान में हुई दुर्भाग्यपूर्ण और विनाशकारी घटनाओं का कड़ा विरोध किया।"[७६] मुहम्मद रज़ा पहलवी के क़रीबियों में से एक हुसैन फ़र्दोस्त ने इस मुलाक़ात के बारे में कहा: आयतुल्लाह सय्यद अबुल क़ासिम ख़ूई ने फ़रह दीबा की मुलाक़ात के आवेदन का उत्तर नही दिया था। वह ख़ुद बिना आज्ञा इस्लामी हिजाब पहन कर उनके घर गई थी।[७७]

ईरानी इस्लामी क्रांति के साथ

सय्यद खूई ने, फ़रह दीबा से मिलने के बाद, ऐसी स्थिति में जहां पहलवी सरकार के खिलाफ़ ईरानी लोगों के संघर्ष तेज़ हो गए थे, ईरान की इस्लामी क्रांति का समर्थन किया। और उसके बाद भी विभिन्न मामलों में ईरान के इस्लामी गणराज्य का समर्थन किया। इस्लामी क्रांति की सफलता से पहले भी, उन्होने मराजे तक़लीद, विद्वानों और ईरान के लोगों को संबोधित एक बयान में, लोगों से साहस के साथ आगे बढ़ने और शरीयत के मानकों की सुरक्षा करने के लिए कहा।[७८] उन्होने उसके बाद, इस्लामी गणराज्य की प्रणाली का निर्धारण करने के लिए जनमत संग्रह के दौरान, लोगों को इस्लामी गणराज्य के लिए वोट करने की दावत दी। और अपने छात्रों से क्रांति के मामलों में भाग लेने के लिए कहा। और इराक़ और ईरान के बीच युद्ध में, इराक़ का समर्थन करने के लिए सद्दाम की सरकार के दबाव के बावजूद, उन्होंने फैसला सुनाया कि ईरान के लड़ाकों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए शरिया फंड का उपयोग करने की अनुमति है।[७९]

शाबानिया इंतिफाज़ा की विफलता के बाद आयतुल्लाह ख़ूई और सद्दाम की मुलाक़ात

इराक़ का शाबानिया इंतिफाज़ा

मुख्य लेख: इराक़ी शाबानिया आंदोलन

अबुल कासिम ख़ूई ने शियों के नियंत्रण वाले क्षेत्रों का प्रबंधन करने के लिए 9 लोगों का एक प्रतिनिधिमंडल नियुक्त किया। शाबानिया इंतिफाज़ा (आंदोलन) की विफलता के बाद उन्हे सद्दाम काल के दौरान घरेलू कारावास और इराकी सरकार के व्यापक दबाव का सामना करना पड़ा।[८०] 1991 में इराकी जनता के शबानिया इंतिफाज़ा के प्रत्यक्ष समर्थन और नेतृत्व परिषद की नियुक्ति के कारण बाथ पार्टी द्वारा उन्हे गिरफ्तार करके बग़दाद भेज दिया गया। दो दिनों तक हिरासत में रखने के बाद, उन्हें जबरन सद्दाम हुसैन के पास ले जाया गया और सद्दाम ने उन्हें अपमानजनक शब्दों से संबोधित किया।[८१]

धार्मिक और सामाजिक सेवाएं

अपनी मरजईयत के दौरान, आयतुल्लाह ख़ूई ने ईरान, इराक़, मलेशिया, इंग्लैंड, अमेरिका और भारत सहित विभिन्न देशों में पुस्तकालयों, स्कूलों, मस्जिदों, अस्पतालों, दान और अनाथालयों के निर्माण का आदेश दिया। ख़ूई चैरिटी संगठन का मुख्य भवन लंदन में है।[८२] ख़ूई चैरिटी संगठन की देखरेख में कुछ इस्लामी केंद्र हैं:

  • अल-इमाम अल-ख़ूई सेंटर लंदन: इसमें इस्लामिक सेंटर के अलावा, लड़कों के लिए इमाम सादिक़ स्कूल, लड़कियों के लिए अल-ज़हरा स्कूल, कम्युनिटी हॉल, सार्वजनिक पुस्तकालय और किताबों की दुकान शामिल हैं। इस फाउंडेशन के दो स्कूलों में 800 छात्र पढ़ते हैं। इस केंद्र में मासिक पत्रिका "अल नूर" अरबी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में प्रकाशित होती है। [८३]
  • इमाम ख़ूई इस्लामिक सेंटर न्यूयॉर्क: तीन हज़ार लोगों की क्षमता वाला एक सेमिनार हॉल, दस हजार से अधिक पुस्तकों वाला एक पुस्तकालय, एक किंडर गार्डेन, लड़कों और लड़कियों के लिए एक स्कूल, प्रत्येक में 150 छात्र, ईमान स्कूल, विशेष रूप से अरबी भाषा सीखने के लिये, कुरआन और बच्चों की इस्लामी शिक्षा, मृत को नहलाने के लिये वाशरूम और ...[८४]
  • इमाम ख़ूई चैरिटेबल इंस्टीट्यूशन मॉन्ट्रियाल: इस संस्था की स्थापना 1989 में इस्लामी और ग़ैर-इस्लामिक देशों में शिया धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक सेवाएं प्रदान करने के उद्देश्य से की गई थी।
  • इमाम ख़ूई सांस्कृतिक परिसर मुंबई: मुंबई से 20 किलोमीटर दूर 100,000 वर्ग मीटर के क्षेत्र के साथ और इसमें एक बड़ा कम्युनिटी हॉल, 3,000 उपासकों की क्षमता वाली एक मस्जिद, 50,000 पुस्तकों वाला एक पुस्तकालय और 700 की क्षमता वाला एक हुसैनिया शामिल है। इसी तरह से इसमें 1,000 छात्रों की क्षमता वाला एक धार्मिक अध्ययन स्कूल, 1200 छात्रों वाला एक स्कूल प्राथमिक और माध्यमिक स्कूल, साथ ही एक फार्मेसी और एक क्लिनिक भी हैं।[८५]

उनके बारे में प्रकाशित डॉक्यूमेंट्री

डॉक्यूमेंट्री फिल्म "आयतुल्लाह" का निर्देशन सय्यद मुस्तफ़ा मूसवी तबार ने किया है और इसे औज मीडिया आर्ट ऑर्गनाइजेशन के सहयोग से बनाया गया है। यह वृत्तचित्र आयतुल्लाह ख़ूई के जीवन, शिक्षा और ईरान की इस्लामी क्रांति के साथ उनके संबंधों से संबंधित है।[८६]

फ़ुटनोट

  1. हायरी, रुज़शुमारे क़मरी, 2001, पृ.195: सौर तिथि तिथि परिवर्तक के साथ गणना पर आधारित
  2. अंसारी क़ुम्मी, "नुजूमे उम्मत - ग्रैंड आयतुल्लाह हाज सैय्यद अबुल कासिम ख़ूई", पृष्ठ 54।
  3. सदराई खूई, सिमाए खूई, 1374, पृष्ठ 169; पीरी सब्ज़वारी, "ग्रैंड ٍ आयतुल्ला सैय्यद अबुल कासिम खूई; एक महान समकालीन कुरआन विद्वान", पृष्ठ 30।
  4. पीरी सब्ज़वारी, "ग्रैंड आयतुल्ला सय्यद अबुल कासिम ख़ूई; एक महान समकालीन कुरान विद्वान", पीपी 41-42।
  5. "आयतुल्ला सैय्यद अबुल कासिम मूसवी खूई का परिचय"।
  6. अमीनी, मोजम रिजाल अल-फ़िक्र वल-अदब फ़िन नजफ़..., 1384 हिजरी, पृष्ठ 170।
  7. "आयतुल्लाह सैय्यद अबुल कासिम मूसवी ख़ूई का परिचय"।
  8. शाकिरी, "अल-इमाम अल-सय्यद अल-ख़ूई: जीवनी और संस्मरण", पीपी. 254, 256-257.
  9. "आयतुल्लाह सैय्यद अबुल कासिम मूसवी ख़ूई का परिचय"।
  10. सुबहानी तबरीज़ी, "मरजईयत दर शिया", पी. 16
  11. पीरी सब्ज़वारी, "ग्रैंड आयतुल्लाह सैय्यद अबुल कासिम मूसवी ख़ूई; एक महान समकालीन कुरान विद्वान", पृष्ठ 30।
  12. अंसारी क़ुम्मी, "नुजूमे उम्मत - हज़रत ग्रैंड आयतुल्लाह सैय्यद अबुल कासिम मूसवी ख़ूई", पृष्ठ 57।
  13. ग्रैंड आयतुल्लाह सैय्यद अबुल कासिम मूसवी ख़ूई का संस्मरण, 1372, पीपी। 58 और 59।
  14. हज़रत ग्रैंड आयतुल्लाह सैय्यद अबुल कासिम मूसवी ख़ूई का संस्मरण, 1372, पीपी। 58 और 59।
  15. अंसारी क़ुम्मी, "नुजूमे उम्मत - हजरत ग्रैंड आयतुल्लाह सैय्यद अबुल कासिम मूसवी ख़ूई", पृष्ठ 58।
  16. हजरत ग्रैंड आयतुल्लाह सैय्यद अबुल कासिम मूसवी ख़ूई का संस्मरण, 1372, पीपी। 64 और 65
  17. शरीफ़ राज़ी, गंजीन ए दानिशमंदान, 1354-1352, खंड 2, पृष्ठ 3-5; रईसज़ादे, "ख़ूई, अबुल कासिम", पृष्ठ 515।
  18. जाफरियान, तशय्यो दर इराक़, मरजईयत एंड ईरान, 2006, पृष्ठ 108।
  19. जाफरियान, तशय्यो दर इराक़, मरजईयत एंड ईरान, 2006, पृष्ठ 51।
  20. आयतुल्ला अब्बास खातम यज्दी के संस्मरण, 1380, पीपी। 98-100।
  21. ज़हीर, इमाम अल-सैय्यद मूसा अल-सदर का मार्ग, 2000 ईस्वी, खंड 2, पीपी। 294-293।
  22. अंसारी कुम्मी, "नुजूमे उम्मत - हज़रत ग्रैंड आयतुल्ला हाज सैयद अबुल कासिम ख़ूई", पृष्ठ 59।
  23. अंसारी कुम्मी, "नुजूमे उम्मत - हज़रत ग्रैंड आयतुल्ला हाज सैय्यद अबुल कासिम ख़ूई", पृष्ठ 61।
  24. अंसारी कुम्मी, "नुजूमे उम्मत - हज़रत ग्रैंड आयतुल्ला हाज सैय्यद अबुल कासेम ख़ूई", पृष्ठ 62।
  25. अंसारी कुम्मी, "नुजूमे उम्मत - हज़रत ग्रैंड आयतुल्ला हाज सैय्यद अबुल कासिम ख़ूई", पृष्ठ 65।
  26. अंसारी कुम्मी, "नुजूमे उम्मत - हज़रत ग्रैंड आयतुल्ला हाज सैय्यद अबुल कासेम ख़ूई", पृष्ठ 62।
  27. अंसारी कुम्मी, "नुजूमे उम्मत - हज़रत ग्रैंड आयतुल्ला हाज सैय्यद अबुल कासिम ख़ूई", पृष्ठ 63।
  28. अंसारी कुम्मी, "नुजूमे उम्मत-हज़रत ग्रैंड आयतुल्ला हाज सैय्यद अबुल कासिम ख़ूई", पृष्ठ 64।
  29. रईसज़ादे, "ख़ूई, अबुल कासिम", पृष्ठ 522।
  30. पीर चिराग़, "आयतुल्ला ख़ूई और अल बयान", पृष्ठ 76।
  31. अंसारी कुम्मी, "नुजूमे उम्मत- हज़रत ग्रैंड आयतुल्ला हाज सैय्यद अबुल कासिम ख़ूई", पृष्ठ 69।
  32. अंसारी कुम्मी, "नुजूमे उम्मत- हज़रत ग्रैंड आयतुल्ला हाज सैय्यद अबुल कासिम ख़ूई", पृष्ठ 70।
  33. अंसारी कुम्मी, "नुजूमे उम्मत- हज़रत ग्रैंड आयतुल्ला हाज सैय्यद अबुल कासिम ख़ूई", पृष्ठ 70।
  34. अंसारी क़म्मी, "नुजूमे उम्मत- हज़रत ग्रैंड आयतुल्ला हाज सैय्यद अबुल कासिम ख़ूई", पृष्ठ 70।
  35. अयाज़ी, "आयतुल्ला खोई के स्कूल ऑफ़ इंटरप्रिटेशन के प्रवर्तक कौन थे?", पृष्ठ 231।
  36. पीर चिराग़, "आयतुल्ला खोई और अल बायन", पृष्ठ 76।
  37. पीरचिराग़, "आयतुल्ला ख़ूई और अल बयान", पृष्ठ 76।
  38. अंसारी क़ुम्मी, "नुजूमे उम्मत - हज़रत आयतुल्ला ग्रैंड अयातुल्ला हज सैय्यद अबुल कासिम ख़ूई", पीपी। 72-74 देखें।
  39. रईसज़ादे, "ख़ूई, अबू अल-कासिम", पी. 521, सगीर द्वारा उद्धृत, असतिन अल-मरजाय्याह अल-आलिया फ़िल-नजफ़ अल-अशरफ़, 1424 एएच, पी. 297।
  40. "वे कहते हैं कि आयतुल्ला खोई के 300 फ़तवे प्रसिद्ध हैं"।
  41. अंसारी, शेख अंसारी का जीवन और व्यक्तित्व, पीपी. 454-455.
  42. आग़ा बुज़ुर्ग तेहरानी, ​​तबकात अल-शिया, भाग 1, 1404 हिजरी, पीपी। 71-72।
  43. आग़ा बुज़ुर्ग तेहरानी, ​​अल-ज़रिया, 1403 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 278।
  44. रईसज़ादे, "ख़ूई, अबुल कासिम", पृष्ठ 520 देखें।
  45. देखें: वाज़ बेहसौदी, मिस्बाह अल-उसूल, 1422 हिजरी, खंड 1; वायज़ बेहसूदी, मिस्बाह अल-असुल, 1430 हिजरी, खंड 2।
  46. अंसारी क़ुम्मी, "नुजूमे उम्मत: हज़रत आयतुल्लािल उज़मा ख़ूई", पृष्ठ 68।
  47. मशर, मोआफिन फ़ारसी और अरबी मुद्रित पुस्तकें, 1340-1344, खंड 1, स्तंभ 241।
  48. आग़ा बुज़ुर्ग तेहरानी, ​​अल-ज़रिया, 1403 हिजरी, खंड 20, पृष्ठ 240।
  49. शरीफ़ देखें, "तलमज़ाह अल-इमाम अल-खोई", पीपी. 252-235.
  50. स्थायी चेहरे, पी. 9; कल्चरल यूनिवर्स मैगज़ीन, नंबर 12, पृष्ठ 6; विज्ञान अकादमी का त्रैमासिक जर्नल, संख्या 5, पृष्ठ 126।
  51. मेहदीज़ादे काबुली, "मोहसिनी, मोहम्मद आसिफ़", एरियाना एनसाइक्लोपीडिया।
  52. जीवनी, इरफ़ान कश्मीरी वेबसाइट।
  53. रईसज़ादे, "ख़ूई, अबू अल-कासिम", पी. 515, शरीफ द्वारा उद्धृत, 1414 हिजरी, पी. 677-695।
  54. "संविधान में आख़ूंद ख़ुरासानी का हस्तक्षेप पारंपरिक नहीं था"।
  55. # फैयाज़, "आयतुल्लाह ख़ूई के सैद्धांतिक और न्यायशास्त्र संबंधी नवाचार", पीपी 336 और 337।
  56. फैयाज़, "आयतुल्लाह ख़ूई के सैद्धांतिक और न्यायशास्त्र संबंधी नवाचार", पेज 336 और 337।
  57. फैयाज़, "आयतुल्लाह ख़ूई के सैद्धांतिक और न्यायशास्त्र संबंधी नवाचार", पेज 336 और 337।
  58. फैयाज़, "आयतुल्लाह ख़ूई के सैद्धांतिक और न्यायशास्त्रीय नवाचार", पीपी. 325 और 326; रईसज़ादे, "ख़ूई, अबुल कासिम", पृष्ठ 518।
  59. रईसज़ादे, "ख़ूई, अबुल कासेम", पृष्ठ 518।
  60. रईसज़ादे, "ख़ूई, अबुल कासिम", पृष्ठ 518।
  61. रईसज़ादे, "ख़ूई, अबुलकासिम", पृष्ठ 516।
  62. रईसज़ादे, "ख़ूई, अबुलकासिम", पृष्ठ 516।
  63. रईसज़ादे, "ख़ूई, अबुलकासिम", पृष्ठ 516।
  64. रईसज़ादे, "ख़ूई, अबुलकासिम", पृष्ठ 516।
  65. रईसज़ादे, "ख़ूई, अबुलकासिम", पृष्ठ 516।
  66. रईसज़ादे, "ख़ूई, अबुलकासिम", पृष्ठ 516।
  67. रईसज़ादे, "ख़ूई, अबुलकासिम", पृष्ठ 519।
  68. रईसज़ादे, "ख़ूई, अबुलकासिम", पीपी. 519-520.
  69. रईसज़ादे, "ख़ूई, अबुलकासिम", पृष्ठ 516।
  70. रईसज़ादे, "ख़ूई, अबुलकासिम", पृष्ठ 516।
  71. रईसज़ादे, "ख़ूई, अबुलकासिम", पृष्ठ 516।
  72. रईसज़ादे, "ख़ूई, अबुल कासिम", पीपी. 516-517.
  73. रईसज़ादे, "ख़ूई, अबुल कासिम", पीपी. 516-517.
  74. रईसज़ादे, "ख़ूई, अबुल कासिम", पृष्ठ 516।
  75. रईसज़ादे, "ख़ूई, अबुलकासिम", पृष्ठ 51
  76. रईसज़ादे, "ख़ूई, अबुल कासिम", पीपी. 516-517; Tabatabai, "साहसिक बैठक और विभिन्न कथाएँ"।
  77. हाशेमियानफर, गूने शिनासी ए रफ़तारे सियासी मराजे तक़लीद, 1390, पी. 224।
  78. रईसज़ादे, "ख़ूई, अबुल कासिम", पृष्ठ 517।
  79. रईसज़ादे, "ख़ूई, अबुल कासिम", पृष्ठ 517।
  80. रईसज़ादे, "ख़ूई, अबुल कासिम", पृष्ठ 516।
  81. जाफरियन, "1991 में शबानिया इंतिफाज़ा में आयतुल्ला खोई की गिरफ्तारी के बारे में एक पठनीय संस्मरण"।
  82. अंसारी क़ुम्मी, "नुजूमे उम्मत - ग्रैंड आयतुल्ला हाज सय्यद अबुल कासेम ख़ूई", पृष्ठ 95।
  83. इस्लामिक, ग़ुरुबे खुर्शीद फ़काहत, 1372, पृष्ठ 42।
  84. हज़रत ग्रैंड आयतुल्ला हाज सैयद अबुल कासिम ख़ूई का संस्मरण, 1372, पीपी। 117-118।
  85. हज़रत ग्रैंड आयतुल्ला हाज सय्यद अबुल कासिम ख़ूई का संस्मरण, 1372, पीपी। 119-121।
  86. आयतुल्ला की डॉक्यूमेंट्री पर्दे पर है। अबना न्यूज एजेंसी। 17 अगस्त, 2019 को समीक्षित

स्रोत

  • आग़ा बुज़ुर्ग तेहरानी, ​​अल-ज़रीया अल-तसानिफ़ अल-शिया, बेरूत, अलिंकी मंज़वी और अहमद मंज़वी द्वारा प्रकाशित, 1403 हिजरी।
  • आग़ा बुज़ुर्ग तेहरानी, ​​तबक़ात आलाम अल-शिया: 14वीं शताब्दी में नुक़बा अल-बशर, भाग 1-4, मशहद, दार अल-मुर्तज़ा लल्नशेर, 1404 हिजरी।
  • "आयतुल्ला सिस्तानी ने कहा: स्वर्गीय श्री खुमैनी के साथ मेरे बहुत सारे संबंध थे", मेहरानमाह पत्रिका में मोहम्मद कैनी के साथ साक्षात्कार, नंबर 12, जून 2013।
  • इस्लामी, ग़ुलाम रेज़ा, न्यायशास्त्र का सूर्यास्त, तेहरान, दार अल-कातब अल-इस्लामिया, 1372।
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