सय्यद अबुल क़ासिम ख़ूई
| मरज ए तक़लीद | |
| जन्म तिथि | 15 रजब 1317 हिजरी |
|---|---|
| जन्म स्थान | ख़ूई |
| मृत्यु तिथि | शनिवार, 8 सफ़र 1413 हिजरी (96 वर्ष की आयु में) |
| मृत्यु का शहर | कूफ़ा |
| समाधि स्थल | इमाम अली (अ) का रौज़ा |
| गुरू | शेख़ अल शरीया इस्फ़ाहानी, महदी माज़ंदरानी, आक़ा ज़ेया इराक़ी, मुहम्मद हुसैन ग़रवी इस्फ़ाहानी, मुहम्मद हुसैन नाईनी |
| शिष्य | मुहम्मद इ्स्हाक़ फ़य्याज़, सद्रा बादकूबेई, सय्यद मुहम्मद बाक़िर सद्र, मिर्ज़ा जवाद तबरेज़ी, सय्यद अली हुसैनी बहिश्ती, सय्यद मुर्तज़ा ख़लख़ाली, सय्यद अली सिस्तानी, मुहम्मद जाफ़र नाईनी, मुर्तज़ा बुरुजर्दी, |
| शिक्षा स्थान | हौज़ ए इल्मिया नजफ़ |
| संकलन | अल बयान फ़ी तफ़सीर अल क़ुरआन, तकमेला मिन्हाज अल सालेहीन, मोजम रेजाल अल हदीस |
| राजनीतिक | इंतिफ़ाज़ा शाबानिया इराक़ की तरफ़दारी |
| सामाजिक | विभिन्न देशों में धर्मार्थ संस्थानों और इस्लामी केंद्रों की स्थापना |
सय्यद अबुल क़ासिम मूसवी ख़ूई (अरबी: السيد أبو القاسم الخوئي) (1278-1371 हिजरी) शिया मरजए तक़लीद, रेजाल शास्त्र विशेषज्ञ, और मोअजम रिजालुल हदीस के 23 खंडों के संग्रह और तफ़सीर अल-बयान फ़ी तफ़सीरिल क़ुरआन के लेखक थे। मिर्ज़ा नाईनी और मोहक़्क़िक़ इस्फ़हानी न्यायशास्त्र और न्यायशास्त्र के सिद्धांतों में उनके दो सबसे प्रमुख शिक्षक थे। आयतुल्लाह ख़ूई की मरजईयत की आधिकारिक शुरुआत सय्यद हुसैन तबातबाई बुरुजर्दी की मृत्यु के बाद मानी जाती है और सय्यद मोहसिन तबातबाई हकीम की मृत्यु को विशेष रूप से इराक़ में उनकी मरजईयत की शुरुआत माना जाता है। अपने 70 वर्षों के शिक्षण के दौरान, सय्यद ख़ूई ने न्यायशास्त्र पर एक पूर्ण पाठ्यक्रम और न्यायशास्त्र के सिद्धांतों पर छह पाठ्यक्रम पढ़ाए हैं, उन्होंने कुरआन की व्याख्या पर एक पाठ्यक्रम भी पढ़ाया है। मुहम्मद इसहाक़ फय्याज़, सैय्यद मुहम्मद बाक़िर सद्र, मिर्ज़ा जवाद तबरेज़ी, सय्यद अली सीस्तानी, हुसैन वहीद ख़ुरासानी, सय्यद मूसा शुबैरी ज़ंजानी, सय्यद मूसा सद्र और सय्यद अब्दुल करीम मूसवी अर्दबेली सहित विद्वानों की पहचान खूई के छात्रों के रूप में की गई है।
आयतुल्लाह ख़ूई की न्यायशास्त्र (फ़िक़ह) और न्यायशास्त्र के सिद्धांतों (उसूले फ़िक़ह) में महत्वपूर्ण राय और दृष्टि है, जो कभी-कभी प्रसिद्ध शिया न्यायविदों की राय से भिन्न होती हैं। कुछ सूत्रों ने उनके प्रसिद्ध से अलग फ़तवों को 300 तक माना है। न्यायशास्त्र और न्यायशास्त्र के सिद्धांतों में उनकी कुछ अलग राय में काफ़िरों पर फ़ुरू ए दीन वाजिब होने का विरोध, चंद्र महीने की शुरुआत की सापेक्ष प्रकृति की अस्वीकृति और शोहरते फ़तवाई और आम सहमति (इजमा) की वैधता का विरोध शामिल है। अपनी मरजईयत के दौरान, उन्होने धर्म का प्रचार करने, शिया धर्म को बढ़ावा देने और ज़रूरतमंदों की मदद करने के लिये क़दम बढ़ाये। जिसमें ईरान, इराक़, मलेशिया, इंग्लैंड, अमेरिका, भारत, आदि में पुस्तकालय, स्कूल, मस्जिद, हुसैनिया और अस्पताल बनाना शामिल हैं।
1340 शम्सी के दशक में, आयतुल्लाह ख़ूई ने पहलवी सरकार के खिलाफ़ प्रतिक्रिया और बयान दिये थे; 1342 में मदरसा फ़ैज़िया की घटना का विरोध इनमें से एक है। 1357 शम्सी में ईरान में इस्लामी क्रांति की शुरुआत के बाद उनके साथ मुहम्मद रज़ा पहलवी की पत्नी फ़रह दीबा की मुलाक़ात और इस बैठक से संदेह पैदा होने के बाद, उन्होंने जनमत संग्रह जैसे मामलों में इस्लामी क्रांति और गणतंत्र पर होने वाले मेमोरेंडम का समर्थन किया। और इसी तरह से ईरान में इस्लामी गणराज्य की स्थापना और ईरान के खिलाफ़ इराक़ के युद्ध में इस्लामी ईरान का समर्थन किया। वह शाबान के महीने में होने वाले इराक़ी शिया इंतिफ़ाज़ा (आंदोलन) और शिया प्रशासित क्षेत्रों के प्रशासन के लिए एक नेतृत्व परिषद की नियुक्ति, के दौरान सद्दाम हुसैन की सरकार के दबाव में रहे और वह अपने जीवन के अंत तक नज़रबंद रहे।
जीवनी
सय्यद अबुल क़ासिम मूसवी ख़ूई का जन्म 15 रजब 1317 हिजरी को पश्चिम आज़रबाइजान के ख़ोय शहर में हुआ था।[१]उनके पिता सय्यद अली अकबर ख़ूई, अब्दुल्लाह मामक़ानी के शिष्यों में से थे, ईरान में मशरूता क्रांति का समर्थन न करने की वजह से,[२] वह 1328 शम्सी में ईरान से नजफ़ चले गए थे।[३] सय्यद ख़ूई ने, शनिवार 8 सफ़र 1413 हिजरी, 96 वर्ष की आयु में कूफ़ा में हृदय रोग के कारण वफ़ात पाई, और अमीरुल मोमिनीन (अ) के रौज़े के प्रांगण में अल ख़ज़रा मस्जिद के बग़ल में उन्हें दफ़्न किया गया। [४]
पत्नी और बच्चे
सय्यद ख़ूई की दो बार शादी हुई थी। उनके बच्चों में उनकी पहली पत्नी से तीन बेटे और तीन बेटियाँ हैं, और उनकी दूसरी पत्नी से चार बेटे और दो बेटियाँ हैं।[५] ख़ूई के कुछ प्रसिद्ध बच्चे हैं:
- सय्यद जमालुद्दीन ख़ूई, उनके सबसे बड़े बेटे, जिन्होंने नजफ़ में अपने पिता की मरजईयत के मामलों में अपना अधिकांश जीवन बिताया। उनके कुछ कार्यों में किताब किफ़ायतुल उसूल की व्याख्या, दर्शन शास्त्र व कलाम शास्त्र की चर्चा, तजरीदुल ऐतेक़ाद की शरह, दीवाने मुतनब्बी की व्याख्या और फ़ारसी में कविता का दीवान शामिल हैं।[६]

- सय्यद मुहम्मद तक़ी ख़ूई, 1368 शम्सी में इमाम ख़ूई चैरिटी संस्थान की स्थापना के बाद वह इसके महासचिव बने। 1369 शम्सी में शाबानिया इंतिफाज़ा के बाद, वह अपने पिता के चुने हुए बोर्ड के सदस्य थे जो मुक्त क्षेत्रों का प्रशासन करते थे; लेकिन इस विद्रोह के दमन और शियों के नरसंहार के बाद, उन्हें अपने पिता के साथ नजरबंद कर दिया गया और आखिरकार 30 जुलाई, 2013 को एक कार दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई। कुछ लोगों ने इस घटना को सद्दाम की सरकार की योजना का परिणाम माना है। [७] उनके पिता के न्यायशास्त्र के लेक्चर की तक़रीरात के अलावा, किताब अलइल्ज़ामात अत तबईया फ़िल उक़ूद उनके कार्यों में से हैं।[८]

आयतुल्लाह ख़ूई की बेटियों के बारे में कोई विस्तृत जानकारी नहीं है, लेकिन उनके कुछ दामादों में सय्यद नसरुल्लाह मुसतंबित, सय्यद मुर्तज़ा हकीमी, सय्यद जलालुद्दीन फ़कीह इमानी, जाफ़र ग़रवी नाईनी और सय्यद महमूद मीलानी शामिल हैं।[९]
इल्मी जीवन
1330 हिजरी में, 13 साल की उम्र में, अबुल क़ासिम ख़ूई अपने भाई अब्दुल्ला ख़ूई के साथ नजफ़ में अपने पिता के पास आ गए।[१०] उन्होंने हौज़े में प्रारंभिक और उच्च स्तर के अध्ययन में छह साल बिताए। उसके बाद उन्होने 14 वर्षों तक विभिन्न शिक्षकों से न्यायशास्त्र और न्यायशास्त्र के सिद्धांतों सहित विभिन्न शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया। इनमें से, जैसा कि उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा है, उन्होंने मुहम्मद हुसैन नाईनी और मुहम्मद हुसैन ग़रवी इसफ़हानी से सबसे अधिक इल्म हासिल किया।[११][१२]
शिक्षक और इज्तिहाद की अनुमति
सय्यद ख़ूई ने, जैसा कि उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा है, उन्होंने मुहम्मद हुसैन नाईनी और मुहम्मद हुसैन ग़रवी इसफ़हानी से सबसे अधिक ज्ञान प्राप्त किया और उन दोनो से न्यायशास्त्र के सिद्धांतों (उसूले फ़िक़्ह) का एक पूरा पाठ्यक्रम पढ़ा और न्यायशास्त्र (फ़िक़ह) की कुछ पुस्तकों को पढ़ा। उनके अलावा उन्होने शैख़ अल-शरिया (मृत्यु 1338 हिजरी), मेहदी मज़ंदरानी (मृत्यु 1342 हिजरी) और आक़ा ज़िया इराक़ी[१३] जैसे अन्य उस्तादों का भी उल्लेख किया है।
उनके अन्य शिक्षकों में मुहम्मद जवाद बलाग़ी से उन्होने इल्मे कलाम, अक़ायद व तफ़सीर, अबू तुराब ख़ुनसारी से रेजाल शास्त्र व दिरातुल हदीस, सय्यद अबुल क़ासिम ख़ुनसारी से गणित शास्त्र, सय्यद हुसैन बादकुबेई और सैयद अली काज़ी से दर्शन शास्त्र व इरफ़ान पढ़े, शामिल हैं।[१४]
नजफ़ में हौज़े में अपने अध्ययन के दौरान, उन्होने सय्यद मुहम्मद हादी मिलानी (मृत्यु 1395 हिजरी), सय्यद मुहम्मद हुसैन तबातबाई (मृत्यु 1402 हिजरी), सय्यद सदरुद्दीन जज़ायरी, अली मुहम्मद बुरुजरदी (मृत्यु 1395 हिजरी), सय्यद हुसैन ख़ादीमी और सय्यद मुहम्मद हुसैनी हमदानी से मुबाहेसा किया।[१५]
1352 हिजरी में, सय्यद ख़ूई को हौज़ा इल्मिया नजफ़ के कई मुजतहेदीन से इज्तिहाद की अनुमति मिली; जिनमें मुहम्मद हुसैन नाईनी, मुहम्मद हुसैन ग़रवी एसफ़हानी, आग़ा ज़िया इराक़ी, मुहम्मद हुसैन बलाग़ी, मिर्ज़ा अली आग़ा शिराज़ी और सय्यद अबुल हसन एसफ़हानी शामिल हैं।[१६]
मरजईयत
सय्यद ख़ूई की मरजईयत की शुरुआत स्पष्ट रूप से ज्ञात नहीं है, लेकिन बहुत से स्रोत का मानना है कि आयतुल्लाह बुरूजर्दी की मृत्यु के बाद उनकी मरजईयत की बाक़ायदा शुरुआत हुई और उन्होने इस बात पर ज़ोर दिया है कि सय्यद मोहसिन तबातबाई हकीम की मृत्यु के बाद, ख़ूई को विशेष रूप से इराक़ में श्रेष्ठ मरजा के रूप में मान्यता दी गई थी[१७] और उनकी मरजईयत को ईरान के शियों के बीच भी महत्वपूर्ण माना जाता था।[१८]ख़ूई को उन मराजे ए तक़लीद में से एक के रूप में जाना जाता है, जिनका अरब और गै़र-अरब सारे शियों के बीच महत्वपूर्ण प्रभाव रहा है।[१९]
नजफ़ के 14 मुजतहिदों, जिनमें सदरा बादकुबेई, सय्यद मुहम्मद बाक़िर सद्र, सय्यद मुहम्मद रूहानी, मुज्तबा लंकरानी, मूसा जंजानी, यूसुफ़ कर्बलाई, सय्यद यूसुफ़ हकीम और सय्यद जाफ़र मरअशी शामिल हैं, ने आयतुल्लाह ख़ूई की आलमीयत (श्रेष्ठता) की घोषणा की।[२०] मजलिसे आला ए इस्लामी शियाने लेबनान की ओर से सय्यद मूसा सद्र ने सय्यद ख़ूई के श्रेष्ठ मरजा के रूप में पेश किया।[२१]
शिक्षण
नजफ़ में अपने अध्ययन के दौरान, सय्यद ख़ूई शिक्षण में भी लगे हुए थे और विभिन्न स्रोतों के अनुसार, उन्होंने जो भी किताब पढ़ी, उसे पढ़ाया करते थे।[२२]

मुहम्मद हुसैन ग़रवी नाईनी और मुहम्मद हुसैन ग़रवी इस्फ़हानी की मृत्यु के बाद, सय्यद अबुल कासिम ख़ूई और मुहम्मद अली काज़ेमी खुरासानी के व्याख्यान कक्ष को नजफ़ के महत्वपूर्ण पाठों में से एक के रूप में पेश किया गया है और काज़ेमी ख़ुरासानी की मृत्यु के बाद, आयतुल्लाह ख़ूई के दर्स को नजफ़ के प्रसिद्ध व्याख्यानों में से एक के रूप में पेश किया गया है।[२३] जैसा कि उन्होने अपनी आत्मकथा में लिखा है, अपने लंबे शिक्षण वर्षों के दौरान, बीमारी और यात्रा के दिनों को छोड़कर, उन्होंने कभी भी अपने छात्रों को पढ़ाना बंद नहीं किया। [२४]कुल मिलाकर उन्होने 70 वर्षों तक, हौज़ा इल्मिया नजफ़ में उच्च शिक्षा और ख़ारिज के पाठ्यक्रम को पढ़ाया। और सूत्रों के अनुसार, लगभग पचास वर्षों तक नजफ़ के हौज़ा में उनका दर्स प्रसिद्ध रहा, और ईरान, भारत, अफ़गानिस्तान, पाकिस्तान, इराक़, लेबनान और कुछ अन्य देशों के छात्रों ने उनकी कक्षाओं में भाग लेते थे।[२५]
उन्होने अपने छात्रों को न्यायशास्त्र का एक पूरा पाठ्यक्रम और न्यायशास्त्र के सिद्धांतों के छह पाठ्यक्रम पढ़ाए। उन्होंने एक छोटी अवधि में कुरआन की व्याख्या का भी दर्स दिया।[२६]
पढ़ाने का तरीक़ा
वह इल्मी विषयों को पढ़ाने में ज़बरदस्त महारत रखते थे, वह विषय सामग्री को सरल अंदाज़ में, फ़सीह भाषा में, व्यवस्थित, तामझाम और हाशिये में जाने के बिना पढ़ाते थे, वह दार्शनिक मुद्दों का उल्लेख नही करते थे, वह हदीसों का बहुत उपयोग करते थे और हदीसों के दस्तावेजों (सनद) पर विशेष ध्यान देते थे।।[२७] उनका पाठ आग़ा ज़िया इराक़ी, मुहम्मद हुसैन ग़रवी नाईनी और मुहम्मद हुसैन ग़रवी इसफ़हानी और उनके अपने विचारों के वैज्ञानिक आधारों और विचारों का सारांश होता था।[२८]
रचनाएं व लेखनियां
- मुख्य लेख: सय्यद अबुल क़ासिम ख़ूई के रचनाओं की सूची
सय्यद अबुल क़ासिम ख़ूई ने फ़िक़्ह (इस्लामी न्यायशास्त्र), उसूल-ए-फिक़्ह (फिक़्ह के सिद्धांत), रिजाल (हदीस वर्णनकर्ताओं का अध्ययन), कलाम (इस्लामी धर्मशास्त्र) और क़ुरानिक विज्ञान जैसे विषयों पर कई कार्य लिखे हैं। उनकी रचनाओं को 50 खंडों के एक संग्रह में "मौसूअतुल इमाम अल-ख़ूई" नाम से संकलित किया गया है।[२९] इस संग्रह का डिजिटल संस्करण नूर कंप्यूटर रिसर्च सेंटर ऑफ इस्लामिक साइंसेज द्वारा प्रकाशित किया गया है।[३०]
आयतुल्लाह अबूल क़ासिम ख़ूई की कुछ प्रसिद्ध रचनाएं इस प्रकार हैं:
- अजवद अल तक़रीरात
- मोजम रेजाल अल हदीस
- अल-बयान फ़ी तफ्सीर अल-क़ुरआन
शिष्य

अबुल क़ासिम ख़ूई के बहुत से शिष्य थे, और कुछ स्रोतों के अनुसार उनके 600 से अधिक शिष्य थे।[३१] कुछ शिष्य उनकी इस्तिफ़ता (धार्मिक निर्णय) सभाओं में शामिल होते थे।
पहली इस्तिफ़ता समिति के सदस्य:[३२] शेख़ सद्रा बादकूबेई, शेख़ मुज्तबा लंकरानी, मिर्ज़ा जवाद तबरेज़ी, मिर्ज़ा काज़िम तबरेज़ी, शेख़ हबीबुल्लाह अराकी, सय्यद जाफ़र मरअशी।
दूसरी इस्तिफ़ता समिति के सदस्य:[३३] सय्यद अली सिस्तानी, सय्यद अली हुसैनी बहिश्ती, सय्यद मुर्तज़ा खलखाली, शेख़ मुहम्मद इस्हाक़ फ़य्याज़, शेख़ अली असगर अहमदी शाहरूदी, शेख़ मुहम्मद जाफ़र नाईनी
उनके कुछ अन्य प्रमुख शिष्य:
- मुहम्मद अली तौहीदी तबरेज़ी[३४]
- हाज आक़ा तक़ी क़ुमी
- सय्यद मुहम्मद बाक़िर सद्र
- अली फ़लसफ़ी तनकाबुनी
- सय्यद मूसा सद्र
- मुर्तज़ा बुरूजर्दी
- अबुल क़ासिम गुर्जी[३५]
- हुसैन वहीद ख़ोरासानी
- मुहम्मद आसिफ़ मोहसिनी[३६]
- सय्यद अली हाशिमी शाहरूदी
- सय्यद जवाद आले अली शाहरूदी
- मुहम्मद तक़ी जाफ़री
- सय्यद अब्दुल करीम रिज़वी कश्मीरी[३७]
- सय्यद मुहम्मद हुसैन फ़ज़लुल्लाह
- बाक़िर शरीफ़ क़रशी
- सय्यद मुहम्मद हुसैन हुसैनी तेहरानी
- बशीर हुसैन नजफ़ी
- सय्यद अब्दुल करीम मूसवी अर्दबेली
- हुसैन रास्ती काशानी
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
सय्यद अबुल क़ासिम खूई, न्यायशास्त्र और न्यायशास्त्र के सिद्धांतों में, महत्वपूर्ण राय और मत रखते थे, जो कभी-कभी प्रसिद्ध शिया न्यायविदों की राय से भिन्न होते थे, और कुछ रिपोर्टों के अनुसार, 300 फ़तवे, शिया न्यायविदों के प्रसिद्ध फ़तवों के विपरीत उनके फ़तवों में देखे जा सकते है।[३८] कुछ इनमें शामिल हैं:
- काफ़िरों पर फ़ुरूए दीन वाजिब होने का विरोध: खूई, यूसुफ़ बहरानी और सभी शिया विद्वानों की राय के विपरीत, जो मानते हैं कि काफिर धर्म के सिद्धांत के अलावा धर्म की शाखाओं का पालन करने के लिए बाध्य हैं, [३९] का मानना है कि जब तक वे इस्लाम को स्वीकार नहीं करेंगे, तब तक वह धर्म की शाखाओं का पालन करने के लिए बाध्य नहीं होंगे।[४०]
- चंद्र मास के प्रारंभ की सापेक्ष प्रकृति को न मानना: ख़ूई के अनुसार प्रचलित मत के विपरीत चंद्र मास का प्रारंभ सभी के लिए एक समान होता है और इसे सापेक्ष (निसबी) नहीं माना जा सकता। क्योंकि चंद्र मास की शुरुआत की कसौटी, क्रांतिवृत्त से चंद्रमा का प्रस्थान है, जो एक विकासात्मक घटना है और सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी की स्थिति से संबंधित है, और पृथ्वी के विभिन्न भागों और क्षेत्रों पर निर्भर नहीं है।[४१]
- शोहरते फ़तवाई और आम सहमति का विरोध: सय्यद अबुल कासिम ने शोहरते फ़तवाई के बारे में शिया विद्वानों के प्रसिद्ध मतों से सर्वथा भिन्न मत रखते थे। अधिकांश शिया उसूली उलमा के अनुसार, यदि एक फ़तवा न्यायविदों के बीच प्रसिद्ध है, तो इसके साथ असंगत मोतबर हदीस मान्य नहीं है। हालांकि, ख़ूई इस सिद्धांत से असहमत हैं और उन्होंने न्यायशास्त्र के सिद्धांतों में संघर्ष की प्राथमिकताओं (तरजीहाते बाबे तआरुज़) में "शोहरते फ़तवाई" का उल्लेख नहीं किया और उनका मानना है कि व्यावहारिक शोहरत, रिवायत में वर्णित दस्तावेज़ (सनद) की कमज़ोरी को क्षतिपूर्ति नहीं करती है; जिस तरह एक सही हदीस को न्यायविदों की असावधानी अमान्य नहीं कर देगी।[४२] उन्होंने आम सहमति (इजमा) वैधता पर भी सवाल उठाया; चाहे वह इजमा मंक़ूल हो या मुहस्सल हालांकि, उन्होने अपने फ़तवों में एहतियात किया है और वह आम सहमति (इजमा) पर ध्यान देते थे। [४३]
- प्रसिद्ध विरोधी फ़तवे: महिला को अपने पति की अनुमति के बिना घर छोड़ने की अनुमति, महिला की खुद की मृत्यु के मामले में गर्भपात की अनुमति, अहले किताब महिला के साथ मुस्लिम पुरुष के स्थायी विवाह की अनुमति, जिहादे इब्तेदाई के लिये मासूम इमाम (अ) का उपस्थित होना शर्त नही है, एक जज के लिए इज्तिहाद की शर्त नहीं है और इसी तरह से ग़ैर-मुस्लिम देशों से आयातित चमड़े की शुद्धता, जिनका शरई तरीक़े से ज़िब्ह होना संदिग्ध है।[४४]
राजनीतिक क़दम
सय्यद अबुल क़ासिम ख़ूई मरजईयत से पहले पहलवी सरकार के कार्यों की निंदा करते हुए बयान और घोषणाएं जारी कीं, उसके बाद दस साल से अधिक अवधि तक उन्होंने लगभग मौन की नीति का पालन किया और फिर फरवरी में ईरान में इस्लामी क्रांति की जीत की पूर्व संध्या पर 1357, उन्होंने इमाम खुमैनी और इस्लामी क्रांति का समर्थन किया। अंत में, इराकी शियों के शाबानिया इंतिफाज़ा के समर्थन के कारण उन्हें घर में नजरबंद कर दिया गया। [४५] आयतुल्लाह ख़ूई के कुछ सामाजिक और राजनीतिक कार्य यह हैं:

पहलवी सरकार के खिलाफ़ टिप्पणी
मेहर 1341 शम्सी में, ईरान के शाह मुहम्मद रज़ा पहलवी को एक टेलीग्राम में, ख़ूई ने राज्य और प्रांतीय संघों के बिल का विरोध किया और इसे शरीयत के विपरीत बताया।[४६]उन्होंने सय्यद मुहम्मद बेहबहानी को एक संदेश में भी ज़ोर दिया कि "ज़ोर ज़बरदस्ती से राष्ट्र की आवाज़ की ख़ामोश नही किया जा सकता है। यह लंबे समय तक नहीं चलेगा और फ़रेब देने वाले प्रचारों से समस्याओं का समाधान नहीं निकलेगा और दिवालिया अर्थव्यवस्था और लोगों के असंतोष का इलाज नहीं होगा।"[४७] इसी तरह से उन्होंने 1342 शम्सी की शुरुआत में मदरसा फैज़िया घटना पर प्रतिक्रिया व्यकित करते हुए, मुहम्मद रज़ा को एक तार भेजा और "इस्लामिक राज्य की गिरावट और उनके शासकों की नीति" के बारे में खेद व्यक्त किया।[४८] एक महीने बाद, ईरानी विद्वानों के एक समूह के एक पत्र के जवाब में, उन्होंने भ्रष्ट शासकों की अक्षमता की घोषणा की; उन्होंने मौलवियों के कर्तव्य को भारी और मौन को अस्वीकार्य माना।[४९] 15 ख़ोरदाद 1342 शम्सी में लोगों की हत्या के बाद, ईरानी शासन प्रणाली को अत्याचारी बताते हुए, 21 वीं मजलिस के चुनावों में भाग लेने पर प्रतिबंध लगाया और उसकी योग्यता को अमान्य क़रार दिया, इमाम ख़ुमैनी की गिरफ्तारी और उन्हे सज़ा दिये जाने की अफ़वाह पर उनका समर्थन करना उनकी कुछ अन्य राजनीतिक प्रतिक्रियाएं हैं।[५०]
बास पार्टी सरकार द्वारा इराक़ से खोई छात्रों का निष्कासन
- मुख्य लेख: इराक़ से निष्कासन
इराक़ से 1340 शम्सी के अंत से ईरानियों के निष्कासन के दौरान, सय्यद ख़ूई उन कुछ शिया विद्वानों में से एक थे जिन्हें निष्कासित नहीं किया गया था। हालांकि, उनके कई छात्रों के देश से निकाले जाने से उनकी पाठशाला की समृद्धि को कम कर दिया।[५१] ख़ूई के कई छात्रों ने क़ुम के हौज़े में भाग लेकर, अपने शिक्षक के न्यायशास्त्र और न्यायशास्त्र के सिद्धातों को बढ़ावा दिया, और समकालीन काल में हौज़ा इल्मिया क़ुम, जो आयतुल्लाह हायरी यज़्दी और आयतुल्लाह बुरुजर्दी की वैज्ञानिक पद्धति से प्रभावित था, उसे सय्यद ख़ूई, मिर्ज़ा नाईनी, मोहक़्क़िक़ इस्फ़हानी और आक़ा ज़िया इराक़ी जैसे विद्वानों के न्यायशास्त्रीय और सैद्धांतिक दृष्टिकोण से परिचित कराया।[५२]
दस वर्ष से अधिक की मौन अवधि
मरजईयत के बाद सय्यद ख़ूई राजनीति से हट गए।[५३] यह अवधि नज़फ में इमाम ख़ुमैनी की उपस्थिति के वर्षों के साथ मेल खाती है।[५४] 1357 शम्सी की ईरानी क्रांति की घटनाओं के खिलाफ़ उनकी चुप्पी ने ईरान में विरोध को जन्म दिया। [५५] फ़रह दीबा, मुहम्मद रज़ा पहलवी की पत्नी से 28 आबान, 1357 में अपने घर (मरजईयत के कार्यालय) में मुलाक़ात ने इन विरोधों को हवा दी। ख़ूई ने कुछ विद्वानों को संबोधित पत्रों में इस बैठक को अचानक और अवांछित माना।[५६]
फ़रह दीबा से मुलाकात

फ़रह दीबा, जो उस समय ईरान के शाह मुहम्मद रज़ा पहलवी की पत्नी थीं, ने 28 आबान 1357 हिजरी शम्सी (1978 ई) को ईदे ग़दीर के दिन आयतुल्लाह सय्यद अबुल क़ासिम ख़ूई से मुलाक़ात की।[५७] यह मुलाक़ात ऐसे समय हुई जब ईरान की इस्लामी क्रांति अपने चरम पर थी और आयतुल्लाह सय्यद रूहुल्लाह मूसवी ख़ुमैनी को इराक़ से निर्वासित किया जा चुका था।[५८] फ़रह दीबा की ख़ूई से हुई इस मुलाक़ात के कारण, ख़ूई को ईरान के क्रांतिकारी हलकों में आलोचना का सामना करना पड़ा।[५९] इसके जवाब में, ख़ूई ने सय्यद सादिक़ रूहानी को लिखे एक नोट में इस मुलाकात को अचानक और अनचाहा बताते हुए स्पष्ट किया कि उन्होंने इस मौके पर "ईरान में हो रही दुर्घटनाओं और दुखद घटनाओं की कड़ी निंदा की थी।"[६०] हुसैन फ़रदोस्त, जो मुहम्मद रज़ा पहलवी के करीबी थे, ने इस मुलाक़ात के बारे में बताया कि "आयतुल्लाह ख़ूई ने फ़रह पहलवी की मुलाक़ात की अनुरोध को अनुत्तरित छोड़ दिया था, लेकिन फ़रह ने स्वयं इस्लामिक हिजाब पहनकर ख़ूई के घर जाकर उनसे मुलाक़ात की।"[६१]
सय्यद साहिब ख़ूई, आयतुल्लाह ख़ूई के पुत्र ने आज़र 1402 हिजरी शम्सी (2023 ई) में अपने पिता की ओर से एक पत्र जारी किया, जिसमें फ़रह पहलवी को अंगूठी भेंट करने की बात को झूठा बताया गया। इस पत्र की तारीख 14 जमादी अल सानी 1402 हिजरी (20 फरवरी 1983 ई.) थी।[६२]
ईरानी इस्लामी क्रांति के साथ
सय्यद खूई ने, फ़रह दीबा से मिलने के बाद, ऐसी स्थिति में जहां पहलवी सरकार के खिलाफ़ ईरानी लोगों के संघर्ष तेज़ हो गए थे, ईरान की इस्लामी क्रांति का समर्थन किया। और उसके बाद भी विभिन्न मामलों में ईरान के इस्लामी गणराज्य का समर्थन किया। इस्लामी क्रांति की सफलता से पहले भी, उन्होने मराजे तक़लीद, विद्वानों और ईरान के लोगों को संबोधित एक बयान में, लोगों से साहस के साथ आगे बढ़ने और शरीयत के मानकों की सुरक्षा करने के लिए कहा।[६३] उन्होने उसके बाद, इस्लामी गणराज्य की प्रणाली का निर्धारण करने के लिए जनमत संग्रह के दौरान, लोगों को इस्लामी गणराज्य के लिए वोट करने की दावत दी। और अपने छात्रों से क्रांति के मामलों में भाग लेने के लिए कहा। और इराक़ और ईरान के बीच युद्ध में, इराक़ का समर्थन करने के लिए सद्दाम की सरकार के दबाव के बावजूद, उन्होंने फैसला सुनाया कि ईरान के लड़ाकों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए शरिया फंड का उपयोग करने की अनुमति है।[६४]

इराक़ का शाबानिया इंतिफाज़ा
- मुख्य लेख: इराक़ मे शाबान महीने का विद्रोह
अबुल कासिम ख़ूई ने शियों के नियंत्रण वाले क्षेत्रों का प्रबंधन करने के लिए 9 लोगों का एक प्रतिनिधिमंडल नियुक्त किया। शाबानिया इंतिफाज़ा (आंदोलन) की विफलता के बाद उन्हे सद्दाम काल के दौरान घरेलू कारावास और इराकी सरकार के व्यापक दबाव का सामना करना पड़ा।[६५] 1991 में इराकी जनता के शबानिया इंतिफाज़ा के प्रत्यक्ष समर्थन और नेतृत्व परिषद की नियुक्ति के कारण बाथ पार्टी द्वारा उन्हे गिरफ्तार करके बग़दाद भेज दिया गया। दो दिनों तक हिरासत में रखने के बाद, उन्हें जबरन सद्दाम हुसैन के पास ले जाया गया और सद्दाम ने उन्हें अपमानजनक शब्दों से संबोधित किया।[६६]
धार्मिक और सामाजिक सेवाएं
अपनी मरजईयत के दौरान, आयतुल्लाह ख़ूई ने ईरान, इराक़, मलेशिया, इंग्लैंड, अमेरिका और भारत सहित विभिन्न देशों में पुस्तकालयों, स्कूलों, मस्जिदों, अस्पतालों, दान और अनाथालयों के निर्माण का आदेश दिया। ख़ूई चैरिटी संगठन का मुख्य भवन लंदन में है।[६७] ख़ूई चैरिटी संगठन की देखरेख में कुछ इस्लामी केंद्र हैं:

- अल-इमाम अल-ख़ूई सेंटर लंदन: इसमें इस्लामिक सेंटर के अलावा, लड़कों के लिए इमाम सादिक़ स्कूल, लड़कियों के लिए अल-ज़हरा स्कूल, कम्युनिटी हॉल, सार्वजनिक पुस्तकालय और किताबों की दुकान शामिल हैं। इस फाउंडेशन के दो स्कूलों में 800 छात्र पढ़ते हैं। इस केंद्र में मासिक पत्रिका "अल नूर" अरबी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में प्रकाशित होती है। [६८]
- इमाम ख़ूई इस्लामिक सेंटर न्यूयॉर्क: तीन हज़ार लोगों की क्षमता वाला एक सेमिनार हॉल, दस हजार से अधिक पुस्तकों वाला एक पुस्तकालय, एक किंडर गार्डेन, लड़कों और लड़कियों के लिए एक स्कूल, प्रत्येक में 150 छात्र, ईमान स्कूल, विशेष रूप से अरबी भाषा सीखने के लिये, कुरआन और बच्चों की इस्लामी शिक्षा, मृत को नहलाने के लिये वाशरूम और ...[६९]
- इमाम ख़ूई चैरिटेबल इंस्टीट्यूशन मॉन्ट्रियाल: इस संस्था की स्थापना 1989 में इस्लामी और ग़ैर-इस्लामिक देशों में शिया धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक सेवाएं प्रदान करने के उद्देश्य से की गई थी।
- इमाम ख़ूई सांस्कृतिक परिसर मुंबई: मुंबई से 20 किलोमीटर दूर 100,000 वर्ग मीटर के क्षेत्र के साथ और इसमें एक बड़ा कम्युनिटी हॉल, 3,000 उपासकों की क्षमता वाली एक मस्जिद, 50,000 पुस्तकों वाला एक पुस्तकालय और 700 की क्षमता वाला एक हुसैनिया शामिल है। इसी तरह से इसमें 1,000 छात्रों की क्षमता वाला एक धार्मिक अध्ययन स्कूल, 1200 छात्रों वाला एक स्कूल प्राथमिक और माध्यमिक स्कूल, साथ ही एक फार्मेसी और एक क्लिनिक भी हैं।[७०]
उनके बारे में प्रकाशित डॉक्यूमेंट्री
डॉक्यूमेंट्री फिल्म "आयतुल्लाह" का निर्देशन सय्यद मुस्तफ़ा मूसवी तबार ने किया है और इसे औज मीडिया आर्ट ऑर्गनाइजेशन के सहयोग से बनाया गया है। यह वृत्तचित्र आयतुल्लाह ख़ूई के जीवन, शिक्षा और ईरान की इस्लामी क्रांति के साथ उनके संबंधों से संबंधित है।[७१]
फ़ोटो गैलरी
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आयतुल्लाह ख़ूई।
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नजफ़ में आयतुल्लाह ख़ूई अपने तीन बच्चों के साथ।
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आयतुल्लाह ख़ूई, अपने पिता सय्यद अली अकबर ख़ूई और सय्यद जवाद ख़ामेनेई के साथ।
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आयतुल्लाह ख़ूई और उनका बेटा।
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नजफ की अल ख़ज़रा मस्जिद में आयतुल्लाह ख़ूई के शव को दफनाया गया।
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आयतुल्लाह ख़ूई और सय्यद मुहम्मद हुसैनी शाहरूदी और सय्यद अली हुसैनी सिस्तानी।
फ़ुटनोट
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- ↑ सदराई खूई, सिमाए खूई, 1374, पृष्ठ 169; पीरी सब्ज़वारी, "ग्रैंड ٍ आयतुल्ला सैय्यद अबुल कासिम खूई; एक महान समकालीन कुरआन विद्वान", पृष्ठ 30।
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- ↑ पीरी सब्ज़वारी, "ग्रैंड आयतुल्लाह सैय्यद अबुल कासिम मूसवी ख़ूई; एक महान समकालीन कुरान विद्वान", पृष्ठ 30।
- ↑ अंसारी क़ुम्मी, "नुजूमे उम्मत - हज़रत ग्रैंड आयतुल्लाह सैय्यद अबुल कासिम मूसवी ख़ूई", पृष्ठ 57।
- ↑ ग्रैंड आयतुल्लाह सैय्यद अबुल कासिम मूसवी ख़ूई का संस्मरण, 1372, पीपी। 58 और 59।
- ↑ हज़रत ग्रैंड आयतुल्लाह सैय्यद अबुल कासिम मूसवी ख़ूई का संस्मरण, 1372, पीपी। 58 और 59।
- ↑ अंसारी क़ुम्मी, "नुजूमे उम्मत - हजरत ग्रैंड आयतुल्लाह सैय्यद अबुल कासिम मूसवी ख़ूई", पृष्ठ 58।
- ↑ हजरत ग्रैंड आयतुल्लाह सैय्यद अबुल कासिम मूसवी ख़ूई का संस्मरण, 1372, पीपी। 64 और 65
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स्रोत
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- हौज़ा इल्मिया नजफ़ के स्नातक (1200 हिजरी के बाद)
- इमाम अली के रौज़े में दफ़न लोग
- 14वीं शताब्दी (शम्सी) के मराजे ए तक़लीद
- 14वीं शताब्दी (क़मरी) के मराजे ए तक़लीद
- 15वीं शताब्दी (क़मरी) के मराजे ए तक़लीद
- 14वीं शताब्दी (क़मरी) के शिया मुफ़स्सेरीन
- 15वीं शताब्दी (क़मरी) के शिया मुफ़स्सेरीन
- 14वीं शताब्दी (क़मरी) के शिया रिजाली
- 15वीं शताब्दी (क़मरी) के शिया रिजाली
- 14वीं शताब्दी (शम्सी) के शिया रिजाली
- नजफ़ में रहने वाले मराजे ए तक़लीद
- मूसवी सादात
- सय्यद अली क़ाज़ी के छात्र
- मुहम्मद हुसैन नाईनी के छात्र
- आग़ा ज़िया इराक़ी के छात्र
- 14वीं शताब्दी (शम्सी) के हौज़ ए इल्मिया नजफ़ के शिक्षक