सद्दाम हुसैन
जन्म स्थान | 28 अप्रैल 1937 तिकरित |
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मृत्यु स्थान | 30 दिसंबर 2006 काज़मैन (अमेरिकी सेना द्वारा निष्पादित) |
धर्म | इस्लाम, अहले-सुन्नत |
के लिए प्रसिद्ध | इराक़ के राष्ट्रपति, इराकी बाथिस्ट पार्टी के अध्यक्ष और महासचिव |
शासन की शुरुआत | वर्ष 1979 |
शासन का अंत | वर्ष 2003 |
गतिविधियाँ | धार्मिक समारोहों पर प्रतिबंध • इराक़ में रहने वाले ईरानियों का निर्वासन • विरोधियों का भारी नरसंहार • ईरान के खिलाफ आठ साल का युद्ध • कुवैत के क्षेत्र पर अतिक्रमण • दाजिल नरसंहार • इराक़ी शबानिया इंतिफादा |
पूर्वाधिकारी | हसन अल-बक्र |
सद्दाम हुसैन 1979 से 2003 तक इराक़ के राष्ट्रपति रहा। सद्दाम इराकी बाथिस्ट पार्टी का सदस्य था। 1968 में बाथिस्ट पार्टी के तख्तापलट के बाद वह उपराष्ट्रपति और 1979 में इराक का राष्ट्रपति बना।
सद्दाम अरब राष्ट्रवाद या अखिल अरबवाद को बहुत महत्व देता था और उसका मानना था कि क्रांतिकारी रास्ता अपनाने के लिए किसी को धर्म से परे देखना चाहिए। उन्होंने शियो की अज़ादारी को प्रतिबंधित कर दिया और अरबईन वॉक पर रोक लगा दी। सद्दाम ने धार्मिक संस्थाओं और हौज़ा इल्मीया को कमजोर करने की भी भरपूर प्रयास किया। सय्यद मोहसिन हकीम ने सद्दाम सहित बाथिस्ट पार्टी के नेताओं को बहुदेववादी कहा।
सद्दाम ने अपने हजारों विरोधियों को मार डाला। उनके राष्ट्रपतित्व के दौरान हुए विद्रोहों को बुरी तरह दबा दिया गया। उसने इराक और ईरान में रासायनिक बमों का इस्तेमाल किया और हजारों नागरिकों को मार डाला या घायल कर दिया। न्यूयॉर्क टाइम्स पत्रिका ने सद्दाम को इस सदी के सबसे हिंसक लोगों में से एक माना है।
सद्दाम ने 1980 ई में ईरान के खिलाफ युद्ध शुरू किया। यह युद्ध लगभग आठ वर्षों तक चला, इसमें दोनों पक्षों के लगभग 400,000 लोग मारे गए और दोनों देशों को सैकड़ों अरब डॉलर का नुकसान हुआ। इसके बाद सद्दाम ने अगस्त 1990 ई में कुवैत पर हमला किया और कुछ महीनों के बाद, संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व में मित्र देशों की सेना के हमले के कारण उसे पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा।
20 मार्च 2003 ई को अमेरिका ने इराक पर हमला किया, सद्दाम को 2004 में अमेरिकी सेना ने गिरफ्तार कर लिया और 2005 में दुजैल नरसंहार के लिए उसे फाँसी दे दी गई।
जीवन परिचय
सद्दाम हुसैन का जन्म 28 अप्रैल 1937[१] (8 उरदिबहिश्त 1316 शम्सी[२]) तिकरित जिले के अल-अवजा में हुआ था।[३] एक बच्चे के रूप में, सद्दाम अपने सौतेले पिता के साथ चरवाहे के काम में लगे हुए थे।[४] उन्होंने अपने जीवन का कुछ हिस्सा अपनी माँ और सौतेले पिता के साथ बिताया। फिर वह अपने चाचा खैरुल्लाह तलफ़ा के पास बगदाद गया।[५] उसने ऑफिसर कॉलेज की प्रवेश परीक्षा में भाग लिया, लेकिन उनके खराब ग्रेड के कारण उन्हें इसमें प्रवेश करने से रोक दिया गया।[६]
परिवार
1963 ई में सद्दाम ने अपने ममेरे भाई की बेटी साजिदा से शादी की। इस विवाह के परिणामस्वरूप अदि और क़सी नाम के 2 बेटो के आलावा 3 बेटियाँ हुईं।[७] हुसैन कामिल और उसका भाई सद्दाम कामिल सद्दाम के दामाद थे, जो 1996 ई में सद्दाम के परिवार के साथ विवाद के बाद जॉर्डन भाग गए और वहा से वापसी पर दोनो को मार डाला गया। उसके बेटो क़सी और अदि को अमेरिकीयो ने इराक पर कब्जे के बाद, मार डाला और उनकी तीन बेटियां अपनी मां के साथ जॉर्डन में शरणार्थी बन गईं।[८] इसी तरह सद्दाम ने "समीरे शाह बंदर" से भी शादी की और इस शादी के परिणामस्वरूप अली नाम का एक बेटा हुआ।[९]
सद्दाम और बाथिस्ट पार्टी
- मुख्य लेख: इराक़ की बाथिस्ट पार्टी
सद्दाम अपनी युवावस्था में इराक की बाथिस्ट पार्टी में शामिल हो गया था।[१०] बाथिस्ट पार्टी की स्थापना 7 अप्रैल 1947 ई को सीरियाई मिशेल अफलाक [नोट 1] और सलाहुद्दीन बीतार द्वारा अरब राष्ट्रवाद के नारे के साथ की गई थी। इराक सहित अरब देशों के युवाओं को अपनी ओर आकर्षित किया।[११]
बाथिस्ट पार्टी ने 7 अक्टूबर 1959 ई मे तत्कालीन प्रधानमंत्री अब्दुल करीम कासिम की हत्या करने का फैसला करते हुए इस काम को अंजाम देने के लिए सद्दाम का च्यन किया गया। यह हत्या असफल रही और सद्दाम इसमें घायल हो गया और सीरिया और फिर मिस्र भाग गया। उसकी अनुपस्थिति में उसे मौत की सजा सुनाई गई।[१२] अंततः, वह 1963 में बगदाद लौट आया।[१३] 1964 ई मे अब्दुस सलाम अरिफ के खिलाफ बाथिस्ट पार्टी के सफल तख्तापलट के बाद सद्दाम को कैद कर लिया गया, उसने 1966 ई मे जेल से भाग कर गुप्त जीवन शुरू किया।[१४]
अंततः, अहमद हसन अल-बक्र के नेतृत्व वाली बाथिस्ट पार्टी ने 1968 ई में तख्तापलट किया और सत्ता अपने हाथ में ले ली।[१५] 1968 ई में सद्दाम को अल-बक्र का डिप्टी चुना गया।[१६] 1979 ई में, सद्दाम की मजबूरी के तहत अल-बक्र ने इस्तीफा दे दिया। सद्दाम हुसैन राष्ट्रपति पद, सशस्त्र बलों के जनरल कमांड और बाथ पार्टी के महासचिव चुने गए।[१७] इराकी तेल उद्योग का राष्ट्रीयकरण अहमद हसन अल-बक्र और उसके डिप्टी सद्दाम के समय में हुआ था।[१८]
जाति और धर्म की भूमिका
बाथिस्ट पार्टी और सद्दाम हुसैन के अपने लिए तीन मुख्य नारे थे: एकता, स्वतंत्रता और समाजवाद[१९] बाथिस्टों के बीच जातीयता और राष्ट्रवाद ने भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस कारण से, शोधकर्ताओं का मानना है कि इराक के शासकों को धर्म और मजहब के प्रति कोई वास्तविक चिंता नहीं थी, और इराक की कानूनी, वैधानिक और शासन संरचना में, धर्म और धार्मिक विद्वानों के लिए ज्यादा जगह नहीं थी।[२०]
सत्ता में आने से पहले सोशलिस्ट बाथिस्ट पार्टी धर्म की प्रशंसा और सम्मान करती थी, लेकिन सत्ता में आने के बाद वह धर्म के खिलाफ हो गई।[२१]
यह पार्टी इस्लाम को एक धर्म और एक अरब आंदोलन मानती थी जिसका लक्ष्य अरबवाद का नवीनीकरण और विकास था।[२२] सद्दाम सुन्नी धर्म का अनुयायी था[२३] और उसने खुद को धार्मिक दिखाने की कोशिश की,[२४] वह ऐसा मानता था उन्हें क्रांतिकारी प्रगति का रास्ता अपनाने के लिए धर्म से परे देखना चाहिए।[२५] सद्दाम का मानना था कि सरकार को राष्ट्रवाद को मजबूत करने के लिए किसी भी इस्लामी धर्म की विशेषताओं को बढ़ावा नहीं देना चाहिए।[२६]
सद्दाम का मानना था कि बाथिस्ट पार्टी का दर्शन धार्मिक नही है बल्कि सांसारिक दर्शन है। हालाँकि, सतही तौर पर, उन्होंने व्यक्त किया कि पार्टी को लोगों की धार्मिक मान्यताओं को अस्वीकार नहीं करना चाहिए।[२७]
हौज़ा इल्मिया नजफ के प्रमुख सय्यद मोहसिन हकीम की मृत्यु के बाद सद्दाम ने हौज़ा इल्मिया को कमजोर करने और नष्ट करने के कई प्रयास किए।[२८] इमाम खुमैनी का मानना था कि सद्दाम हुसैन एक ढोंगी व्यक्ति है, जो इस्लाम और हौज़ा इल्मिया नजफ को नष्ट करने की कोशिश कर रहा है।[२९]
अपने समय में शियो के महान मरजा ए तक़लीद सय्यद मोहसिन हकीम बाथिस्ट पार्टी के नेताओं को, जिसमें सद्दाम भी शामिल था, बहुदेववादी मानते थे।[३०] इमाम खुमैनी ने भी इस फतवे का उल्लेख किया।[३१]
धार्मिक समारोहों पर प्रतिबंध
"यह शासक (सद्दाम), जो लोगों पर बलपूर्वक शासन करता है और उन्हें उनके पहले अधिकारों और स्वतंत्रता, यानी धार्मिक समारोह करने से रोकता है, जारी नहीं रह सकता। बल और शक्ति से लोगों पर शासन करना हमेशा संभव नहीं होता है।"[३२]
इराक में बाथिस्ट पार्टी के सत्ता हासिल करने के कुछ समय बाद, शिया धार्मिक समारोहो को समस्याओं और संघर्षों का सामना करना पड़ा।[३३] इराकी सरकार ने 1977 ई में हसन अल-बक्र के राष्ट्रपति और सद्दाम हुसैन के उपराष्ट्रपति के दौरान आदेश जारी किए जोकि बाथिस्ट पार्टी की सरकार के अंत तक जारी रहे। इन आदेशों ने कुछ हुसैनी अनुष्ठानों को प्रतिबंधित कर दिया और कभी-कभी उन पर प्रतिबंध लगा दिया और किसी भी प्रकार के मूकिब और कर्बला तक पदयात्रा पर प्रतिबंध लगा दिया गया। साथ ही, इमाम हुसैन (अ) के लिए शोक सभाओ (अजादारी) का आयोजन भी बहुत सीमित कर दिया और केवल कुछ शर्तों के तहत ही इसकी अनुमति थी।[३४]
इन अनुष्ठानों को आयोजित करने में शियो के आग्रह के प्रति सरकार के विरोध के कारण संघर्ष और विद्रोह हुए, जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण 1977 ई में सफ़र का विद्रोह है।[३५]
ईरानियों का निष्कासन
- मुख्य लेख: मुआवेदीन
राष्ट्रपति हसन अल-बक्र और उपराष्ट्रपति सद्दाम हुसैन के नेतृत्व वाली बाथिस्ट सरकार ने अपनी अरबवादी नीतियों का पालन करते हुए ऐसे कानून पारित किए, जिन्होंने इराक में ईरानी नागरिकों की उपस्थिति और प्रभाव को सीमित और कठिन बना दिया[३६] 1971 ई मे उन्होने इराक़ मे रहने वाले बड़ी सख्या मे ईरानियो को निर्वासित कर दिया इनमें से अधिकतर लोग ईरानी छात्र और मौलवी थे। 1975 ई में, ईरानियों के एक और बड़ी सख्या को पुनः निर्वासित कर दिया गया।[३७]
वर्ष 1980 ई. के आसपास ईरानी मूल के इराकियों को निर्वासित करने की प्रक्रिया जारी रही[३८] इस समूह के अधिकांश लोग अमीर और व्यापारी थे और उन्हें निर्वासित करने के बाद, इराकी सरकार ने उनकी संपत्ति जब्त करने की कार्रवाई की और इस तरह तीन अरब डॉलार से अधिक की राशि प्राप्त की।[३९]
कुछ समकालीन शोधकर्ताओं ने इराकी सरकार के इस प्रकार के व्यवहार को उन अल्पसंख्यकों के लिए ज्ञात सबसे क्रूर व्यवहारों में से एक माना है जो वर्षों तक और कभी-कभी कई पीढ़ियों तक इराक में रहे और वहां के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।[४०]
सद्दाम और फिलिस्तीन
अरब जाति पर ज़ोर देने के कारण सद्दाम ने फ़िलिस्तीन की स्वतंत्रा का मुद्दा बहुत उठाया।[४१] उनका मानना था कि फ़िलिस्तीन अरब भूमि, मुसलमानों का पहला क़िबला और मुसलमानों का तीसरा पवित्र स्थान है[४२] सद्दाम ने इस बातका दावा किया कि जब तक अल-कुद्स ज़ायोनीवादियों के हाथों में रहेगा, तब तक आस्तिक होने का दावा कौन कर सकता है और सुनिश्चित कर सकता है कि उसकी नमाज़े ईश्वर द्वारा स्वीकार की जाती हैं[४३] कुवैत युद्ध के बीच में, जब अमेरिकी गठबंधन ने इराक को कुवैत छोड़ने पर मजबूर किया, सद्दाम ने इजराइल पर दर्जनों मिसाइलें दागीं जिसके बाद उसके इस काम की अरब जगत के कई लोगों ने प्रशंसा की।[४४] कई विशेषज्ञों का मानना है कि इस काम में सद्दाम का उद्देश्य था इजरायल के प्रति अरब राष्ट्रों की नफरत की भावना और इस प्रकार खुद को वैध बनाना और अमेरिकी गठबंधन के साथ युद्ध में अरब सरकारों को अपने साथ लाना।[४५] सद्दाम ने यह भी वादा किया कि वह इजरायल के आधे हिस्से को जला देगा। निस्संदेह, कुछ लोगों ने सद्दाम की निंदा की है और कहा है कि उसने इसराइल के आधे हिस्से को जलाने का वादा किया था; लेकिन उसने एरबिल में आग लगा दी इसराइल को नष्ट करने का वादा किया; लेकिन इसने कुवैत को निगल लिया।[४६] सद्दाम ने 1982 ई में विश्व कुद्स दिवस पर हमादान के लोगों के मार्च को भी निशाना बनाया, जिसमें 80 लोग मारे गए।[४७]
विद्रोह और नरसंहार
सद्दाम के राष्ट्रपति रहने के दौरान इराक में बड़े पैमाने पर नरसंहार हुआ। न्यूयॉर्क टाइम्स पत्रिका ने सद्दाम को इस सदी के सबसे क्रूर लोगों में से एक माना।[४८] सद्दाम ने सय्यद मुहम्मद बाक़िर सद्र और उनकी बहन बिंतुल हुदा को गिरफ्तार कर मार डाला।[४९] सद्दाम ने हिज़ब उद-दावा के सदस्यो को भी मारने के लिए कई प्रयास किए।[५०]
रासायनिक बमों से नरसंहार
इराकी सरकार ने ईरानी और इराकी सैन्य और नागरिक ठिकानों के खिलाफ रासायनिक बमों का इस्तेमाल किया। इराकी सेना ने इराकी शहर हलबचा और ईरानी गांव ज़रदा सहित नागरिक ठिकानों के खिलाफ नर्व गैस का इस्तेमाल किया। उसने मरीवान, सरदश्त और कई गांवों में मस्टर्ड गैस का भी उपयोग किया।[५१]
बाथिस्ट शासन ने सैन्य संघर्षों में रासायनिक बमों का भी इस्तेमाल किया और बद्र, खैबर, वल-फज्र8 और फाव क्षेत्र के परिचालन क्षेत्रों को निशाना बनाया।[५२]
1983 में ईरान-इराक युद्ध के दौरान इराक ने गंभीर रूप से रासायनिक हमले शुरू किए[५३] और ये हमले 1988 में युद्ध के अंत तक जारी रहे।[५४] इराकी सेना के रासायनिक हमलों के परिणामस्वरूप, लगभग एक लाख सैन्यकर्मी मारे गए और नागरिक शहीद और घायल हुए।[५५]
सीमा के पास के शहरों और गांवों पर रासायनिक हमलों का आदेश देने के अलावा, इराकी सरकार ने ईरानी अधिकारियों पर दबाव बढ़ाने के लिए एक मनोवैज्ञानिक अभियान शुरू करके बड़े शहरों और प्रांतीय राजधानियों पर बमबारी और रासायनिक मिसाइलों की बारिश की धमकी भी दी। एक ख़तरा, जो शोधकर्ताओं के अनुसार, उम्मीद से ज़्यादा दूर नहीं था और ईरान द्वारा संकल्प 598 को स्वीकार करने में प्रभावी था।[५६]
सफ़र महीने का विद्रोह
- मुख्य लेख: इराक़ मे सफ़र महीने का विद्रोह
बाथिस्ट पार्टी ने धार्मिक समारोहों के आयोजन पर प्रतिबंध लगा दिया और किसी भी प्रकार के मूकिब और कर्बला तक पदयात्रा पर प्रतिबंध लगा दिया,[५७] फिर भी, नजफ़ के लोगों ने 15 सफ़र 1398 हिजरी अर्थात 1977 ई को अरबईन वॉक आयोजित करने की तैयारी की[५८] 30,000 लोग कर्बला की ओर बढ़े। शुरू से ही इस आंदोलन को सरकार का सामना करना पड़ा और बड़ी संख्या में लोग शहीद हुए। अंततः नजफ से कर्बला के रास्ते मे सैन्य बलों के हमले से हजारों लोगों को गिरफ्तार कर लिया।[५९] कुछ को मार डाला गया और कुछ को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।[६०] सय्यद मुहम्मद बाक़िर सद्र और सय्यद मुहम्मद बाक़िर हकीम ने इस विद्रोह मे भूमिका निभाई।[६१] इमाम खुमैनी ने भी जनता के इस विद्रोह को मंजूरी दी।[६२]
दजील नरसंहार
- मुख्य लेख: दुजैल नरसंहार
दजील इराक के शिया बहुल शहरों में से एक है[६३] 1402 हिजरी रमज़ान के महीने में, सद्दाम दजील शहर गया। सद्दाम के आने के बाद हिज़ उद-दावा के कुछ सदस्यों ने सद्दाम की हत्या करने की कोशिश की परंतु यह कोशिश असफल रही। उसके बाद, कई बाथिस्ट बलों ने इराकी वायु सेना के समर्थन से शहर पर हमला किया। सैकड़ों पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को गिरफ्तार कर लिया गया। कई लोगों को यातना देकर मार डाला गया और कई को मौत की सज़ा दी गई और उन्हें फाँसी दे दी गई।[६४] इस नरसंहार में 148 लोग मारे गए,[६५] जिनमें से कुछ महिलाएँ और बच्चे भी थे।[६६] एक लाख हेक्टेयर से अधिक कृषि को सरकार द्वारा नष्ट कर दिया गया।[६७]
2006 ई में, सद्दाम हुसैन को दजील नरसंहार के लिए मौत की सजा सुनाई गई और उसे फाँसी दे दी गई।[६८]
शाबान महीने का विद्रोह
- मुख्य लेख: इराक़ मे शाबान महीने का विद्रोह
कुवैत युद्ध में हार के बाद इराकी लोग बाथिस्ट सरकार और सद्दाम हुसैन के खिलाफ उठ खड़े हुए। शाबान 1411 हिजरी अर्थात 1991 ई. मे हुआ।[६९]
ईरान के साथ आठ साल के युद्ध, कुवैत युद्ध में पूर्ण हार, खराब आर्थिक स्थिति और कई आर्थिक और कल्याणकारी बुनियादी ढांचे के विनाश के कारण पूरे इराक में लोग सद्दाम के खिलाफ उठ खड़े हुए। यह विद्रोह बसरा से शुरू हुआ और जल्द ही सभी प्रांतों में फैल गया।[७०] इराक के अठारह प्रांतों में से चौदह प्रांत प्रदर्शनकारियों के कंट्रोल में चले गये।[७१] यह विद्रोह 15 दिनों तक चला[७२] लगभग दो मिलियन लोग विस्थापित हुए।[७३] इमाम अली (अ) और इमाम हुसैन (अ) के हरम क्षतिग्रस्त हो गए और तीर्थस्थलों के दरवाजे छह महीने के लिए बंद कर दिए गए।[७४] कर्बला और नजफ में बाथिस्ट बलों ने दर्जनों मस्जिदों को नष्ट कर दिया उन्होंने धार्मिक स्कूलों और इमाम बारगाहो को नष्ट कर दिया।[७५]
युद्ध
सद्दाम के समय और उसके आदेश पर इराक़ ने जो युद्ध शुरू किये:
ईरान-इराक युद्ध
- मुख्य लेख: ईरान-इराक युद्ध
सद्दाम हुसैन के आदेश से इराकी सेना ने 22 सितम्बर 1980 ई को ईरान के खिलाफ चौतरफा हमला शुरू कर दिया[७६] सद्दाम इस युद्ध से कुछ लक्ष्य हासिल करना चाहता था:
- इराक अल्जीरियाई समझौते को रद्द करना चाहता था और अरवंड्रौड को इराक में मिलाना चाहता था। दूसरी ओर, कुछ लोगों का मानना है कि खुर्रम शहर और खुज़िस्तान के कुछ हिस्सों पर कब्ज़ा करने के बाद इराकी सेना के प्रदर्शन से पता चलता है कि वह खुज़िस्तान को इराक में मिलाने की कोशिश कर रही थी।[७७]
- कुछ लोगों ने कहा है कि इराकी अधिकारियों के कार्यों और भाषणों की जांच करके, यह कहा जा सकता है कि सद्दाम इस्लामी गणराज्य ईरान की नवजात सरकार को उखाड़ फेंकना और ईरान को विभाजित करना चाहता था।[७८]
- सद्दाम ने घोषणा की कि ईरान को चाहिए कि वह "बिग तनब", "लिटिल तनब" और "अबू मूसा" के तीन द्वीपों को छोड़ दे।[७९]
यह युद्ध 2888 दिनों तक चला और सदी के सबसे बड़े युद्धों में से एक बना।[८०] इस युद्ध की क्षति दोनो देशों के लिए बहुत बड़ी थी; दोनों देशों के लाखों लोगों के लिए जीवन बहुत कठिन हो गया, इससे बुनियादी ढांचे और उत्पादन सुविधाओं का विनाश और सर्वनाश हुआ, सीमावर्ती कस्बों और गांवों के आवासीय क्षेत्रों का विनाश और निकासी, प्राकृतिक संसाधनों और सांस्कृतिक विरासत का विनाश और क्षति हुई।[८१]
इस युद्ध में ईरान और इराक नामक दो देशों ने 200 अरब डॉलर खर्च किये और दोनों पक्षों को लगभग 1500 अरब डॉलर का नुकसान हुआ। ईरान ने लगभग 188,000 शहीद, 519,000 पूर्व सैनिक और 42,000 कैदी दिए[८२] इराक में लगभग 200,000 लोग मारे गए, तीन गुना अधिक घायल हुए, और लगभग 60,000 लोग पकड़ लिए गए।[८३]
इराक और कुवैत युद्ध
2 अगस्त, 1990 ई को इराकी सेना ने कुवैत से लगी अपनी सीमा पार कर तीन घंटे में उस पर कब्जा कर लिया।[८४] कुछ समय बाद इराक ने कुवैत को अपना 19वां प्रांत घोषित कर दिया।[८५] इस कब्जे के कई कारण हैं इराक और कुवैत के बीच विवाद, ईरान के साथ आठ साल के युद्ध में इराक की राजनीतिक, सैन्य और रणनीतिक विफलताओं, ईरान के साथ युद्ध के कारण हुए भारी कर्ज का उल्लेख किया गया है।[८६]
इराक को कुवैत से हटाने के लिए अमेरिका के नेतृत्व में मित्र देशों की सेना ने 17 जनवरी 1991 ई को उन पर हमला कर दिया। यह हमला व्यापक हवाई और मिसाइल बमबारी के साथ किया गया था।[८७] 38 दिनों के हवाई और मिसाइल हमलों और कई इराकी सैन्य और आर्थिक स्थलों को नष्ट करने के बाद, मित्र सेनाओं ने अंततः जमीनी हमला किया और इराकी सेना को 4 दिनो मे कुवैत की धरती से निष्कासन और हराने में सफल रहे।[८८]
इस युद्ध के दौरान इराकी सेना ने 39 मिसाइलें दागकर इजराइल पर 17 बार हमला किया।[८९]
इराक पर अमेरिकी आक्रमण
न्यूयॉर्क शहर में 11 सितंबर के हमलों के बाद, अमेरिकियों ने इन हमलों में सद्दाम की भूमिका, इराकी बाथिस्ट शासन के साथ अल-कायदा के करीबी संबंध और बड़े पैमाने पर हथियारों के अस्तित्व को प्रेरित करके इराक पर हमले के लिए जनता की राय तैयार की।[९०] अंत में, अमेरिका ने अपने सहयोगियों के साथ 2003 (29 इस्फ़ंद 1381 शमंसी[९१]) में इराक पर हमला किया और उस पर कब्जा कर लिया।[९२]
गिरफ़्तारी और फाँसी
दिसंबर 2003 में अमेरिकी सेना ने घोषणा की कि उन्होंने सद्दाम हुसैन को तिकरित के पास एक खेत से गिरफ्तार कर लिया है।[९३]
2005 में सद्दाम पर मुकदमा चला, और कई सुनवाई के बाद, सद्दाम को दुजैल नरसंहार[९४] में 148 लोगों की हत्या के लिए मौत की सजा सुनाई गई[९५] सद्दाम को ईद उल-अज़्हा की सुबह 30 दिसंबर 2006 (9 दय 1385 शम्सी)[९६] को काज़मैन शहर के एक सैन्य छावनी मे फाँसी दे दी गई, जहाँ पहले सय्यद मुहम्मद बाक़िर सद्र को फाँसी दी गई थी।[९७]
फ़ुटनोट
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