इराक़ मे शाबान महीने का विद्रोह
इराक़ मे शाबान महीने का विद्रोह, (अरबीःالانتفاضة الشعبانية) शाबान 1411 हिजरी अर्थात वर्ष 1991 ई, में शाबान में सद्दाम हुसैन की सरकार के खिलाफ इराकी जनता का विद्रोह था। विद्रोह बसरा से शुरू हुआ और प्रदर्शनकारियों ने 15 दिनों के भीतर अठारह इराकी प्रांतों में से चौदह पर कब्जा कर लिया।
इराकी बअस पार्टी की प्रतिक्रिया में दसियों हज़ार लोग मारे गए और लगभग 20 लाख लोग विस्थापित हुए। कई मौलवियों को गिरफ्तार कर लिया गया या उन्हें फाँसी दे दी गई और कुछ इराक से भाग गए। इसके अलावा, बअस पार्टी की प्रतिक्रिया में, इमाम अली (अ) और इमाम हुसैन (अ) के हरम को नुकसान पहुँचाया गया, और इराकी सरकार ने कई धार्मिक स्कूलों, मस्जिदों और इमाम बारगाहो को ध्वस्त कर दिया।
लोगों का असंतोष, कुवैत और ईरान के साथ युद्ध में इराक के आर्थिक और कल्याणकारी बुनियादी ढांचे का विनाश और क्षति सद्दाम हुसैन के खिलाफ इराकी लोगों के विद्रोह के कारक रहे हैं।
पृष्ठभूमि और शुरुआत
इराकी लोगों का विद्रोह शाबान 1411 हिजरी अर्थात 1991 ई में बसरा शहर से शुरू हुआ। कुवैत युद्ध से लौटे इराकी सैनिकों में से एक ने टैंक का एक गोला सद्दाम की तस्वीर पर दाग दिया।[१] इस घटना के बाद, लोगों ने इराकी बअस पार्टी की इमारत और फिर शहर की जेल पर हमला किया और उस पर कब्जा कर लिया।[२] प्रदर्शनकारियों ने कुछ समय मे ही बसरा शहर पर भी कब्जा कर लिया और जब उसके कब्जे की खबर फैल गई, तो इराक के कुछ अन्य प्रांतों का कंट्रोल भी संभाल लिया।[३]
कुवैत के साथ युद्ध के बाद इराक के आर्थिक और कल्याणकारी बुनियादी ढांचे का विनाश, ईरान के साथ युद्ध से हुई क्षति और बअसी शासन के प्रति लोगों के असंतोष को सद्दाम के खिलाफ इराकी लोगों के विद्रोह का कारण माना गया है।[४] कुवैत पर इराक के हमले के बाद, अमेरिका के नेतृत्व में सहयोगी सेनाओं ने इराक पर हमला किया और इराक के कई आर्थिक और कल्याणकारी बुनियादी ढांचे को ध्वस्त कर दिया।[५] फारस की खाड़ी युद्ध के बाद इराकी सरकार बहुत कमजोर हो गई और सरकारी संस्थान नष्ट हो गए। लोगों को हथियार भी मिले ये सभी क्रांति के निर्माण में शामिल थे।[६]
यह विद्रोह अपने तरीके से और बिना किसी प्रारंभिक योजना के शुरू हुआ और कोई भी राजनीतिक दल या व्यक्ति इस विद्रोह का पूर्ण नेता नहीं था।[७]
फैलाव
शाबान के विद्रोह में, अठारह इराकी प्रांतों में से चौदह पर लोगों ने कब्ज़ा कर लिया। प्रदर्शनकारियों ने दयाली, वासित, मैसान, बसरा, ज़ी क़ार, मुसन्ना, क़ादसिया, बाबुल, कर्बला, नजफ, दहूक, अरबेल, किरकूक और सुलेमानिया प्रांतों और केंद्र के अलावा केवल सलाहुद्दीन, बगदाद, नैनवा और अल-अंबार प्रांतों पर नियंत्रण बाकी रह गया।[८] इस कारण से, शाबान के विद्रोह को सद्दाम हुसैन शासन के दौरान इराक की सबसे बड़ी आंतरिक चुनौती माना गया है।[९]
नजफ़
नजफ़ के लोगों का विद्रोह शाबान की 16 तारीख को इमाम अली (अ) के हरम के आसपास प्रदर्शन के रूप में शुरू हुआ[१०] कुछ समय बाद, यह अवामी समूहों और बाथिस्ट ताकतों के बीच सशस्त्र संघर्ष में बदल गया और इसके परिणामस्वरूप दोनों समूहों के लोगों की मृत्यु हुई और चोटिल हुए। 17 शाबान की दोपहर तक झड़पें जारी रहीं और अवामी समूहों की जीत हुई और शहर के केंद्र में हरे झंडे फहराए गए।[११]
कर्बला
कर्बला शहर में विद्रोह 18 शाबान को शुरू हुआ[१२], हालांकि 16 शाबान को शहर में छुटपुट झड़पें हुईं।[१३] कर्बला में लोगों का विद्रोह तीन दिनों तक जारी रहा तीसरे दिन, लोगों ने शहर पर कब्ज़ा कर लिया।[१४]
विद्रोह का अंजाम
शाबान का विद्रोह 15 दिनों तक चला।[१५] सद्दाम की सेना द्वारा क्रांतिकारियों का बुरी तरह दमन किया गया और अनौपचारिक आंकड़ों के अनुसार, लगभग तीन लाख लोग मारे गए और लगभग 20 लाख इराकी विस्थापित हुए।[१६] हालांकि, यह पहली घटना थी इसने सद्दाम हुसैन की सरकार को गंभीर रूप से खतरे में डाल दिया और लगभग उसके पतन का कारण बना।[१७]
नजफ़ और कर्बला सहित कुछ शहरों को सबसे अधिक क्षति हुई[१८] धार्मिक शहरों में, सद्दाम का हुसैन कामिल नाम का दामाद विद्रोह को नष्ट करने के लिए जिम्मेदार था। हुसैन कामिल द्वारा इन दो धार्मिक शहरों में विद्रोह के दमन को बहुत क्रूर और नागरिकों की हत्या करने वाला माना गया है।[१९] कर्बला और नजफ़ में बाथिस्ट बलों ने दर्जनों मस्जिदों, धार्मिक स्कूलों और इमाम बारगाहो को ध्वस्त कर दिया था[२०] कई मूल्यवान पांडुलिपियो को भी नष्ट कर दिया गया।[२१]
शासन ने कुछ क्षेत्रों पर कब्ज़ा करने के लिए रासायनिक बमों का इस्तेमाल किया।[२२] बअस शासन द्वारा गिरफ्तार किए गए कई लोगों को मार डाला गया और उन्हें सामूहिक कब्रों में दफना दिया गया, जिन्हें सद्दाम के पतन के बाद खोजा गया था।[२३]
कई लोगों ने सुरक्षित रहने के लिए इमामों की दरगाहों में शरण ली, लेकिन बअस पार्टी के सैनिकों ने दरगाहों पर हमला कर दिया और कई लोगों को मार डाला।[२४]
विद्रोह को दबाने के बाद आयतुल्लाह ख़ूई को उनके परिवार के कई सदस्यों और रिश्तेदारों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया और बगदाद स्थानांतरित कर दिया गया[२५] और कुछ दिनों के बाद, उन्हें टेलीविजन कैमरों के सामने सद्दाम से बात करने के लिए मजबूर किया गया।[२६]
सय्यद मुहम्मद रज़ा मूसवी खलखाली, सय्यद जाफ़र बहरुल उलूम और सय्यद एज़ेद्दीन बहरुल उलूम, जो आयतुल्लाह ख़ूई के प्रतिनिधि थे, को विद्रोह के दमन के बाद मार डाला गया।[२७] सय्यद मुहम्मद सब्ज़वारी, शेख मुहम्मद रज़ा शबीब सईदी और सय्यद मुहम्मद सालेह खुरसान भी इराक से चले गए।[२८]
पवित्र स्थानों को नुकसान
सद्दाम का दामाद हुसैन कामिल कर्बला में और बअस पार्टी के प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण लोगों में से एक, ताहा यासीन रमज़ान, नजफ़ में विद्रोह को दबाने का प्रभारी था।[२९] सद्दाम की सेना ने कर्बला और नजफ़ पर तोपों और टैंको से हमला किया इन हमलों में इमाम अली (अ), इमाम हुसैन (अ) और हज़रत अब्बास (अ) की दरगाहें क्षतिग्रस्त हो गईं, और उसके बाद हरम के दरवाजे छह महीने के लिए बंद कर दिए गए।[३०]
सरकार के समर्थक
1991 में इराक को कुवैत से खदेड़ने के बाद अमेरिकी सरकार की नीति इराक की सरकार को बदलने की थी; लेकिन शाबान के विद्रोह में, जॉर्ज बुश ने सद्दाम को लोगों के खिलाफ अपने सभी सैन्य बलों का उपयोग करने की इजाजत दी, इराक में एक धार्मिक सरकार को सत्ता में आने से रोकने के लिए दृष्टिकोण में इस बदलाव का मूल्यांकन किया गया है।[३१] पर्यवेक्षकों का मानना है कि अमेरिका ने फ़ार्स की ख़ाड़ी के युद्ध के दौरान इराक गणराज्य के गार्ड को बरकरार रहने की अनुमति दी। मीलान राय ने अपनी पुस्तक में कहा है कि यह निर्णय अमेरिकी अधिकारियों के उच्चतम स्तर पर जानबूझकर और सचेत रूप से किया गया था।[३२] तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री ने अपने संस्मरणों में भी इसका उल्लेख किया था, जो बाद में प्रकाशित हुआ, कि यह निर्णय लिया गया था अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर कि सद्दाम को गिरना नहीं चाहिए; क्योंकि सद्दाम के पतन के बाद सरकार ईरान के समर्थकों के हाथ में आ जाएगी।[३३] विशेषज्ञों का मानना है कि संयुक्त राज्य अमेरिका का यह निर्णय सऊदी अरब और पूरे अरब माहौल के दबाव में आया था; क्योंकि वे सद्दाम के पतन की स्थिति में शियो की जीत को लेकर चिंतित थे।[३४]
मुजाहेदीन संगठन की भूमिका
कुछ स्रोतों के अनुसार, पीपुल्स मुजाहेदीन ऑर्गनाइजेशन ऑफ ईरान (मुनाफ़ेक़ीन) के आतंकवादी समूह ने शाबान महीने के विद्रोह को दबाने में इराकी सरकार के साथ सहयोग किया। दस्तावेज़ों के अनुसार, उन्होंने बसरा के लोगों को दबाने में भूमिका निभाई और बड़ी संख्या में मृतकों को सामूहिक कब्रों में दफना दिया।[३५]
संगठन से अलग हुए कुछ सदस्यों ने इस घटना और मरवारीद नाम से किए गए ऑपरेशन के बारे में स्पष्टीकरण दिया है। उन्होंने इस विद्रोह में कुर्दों के नरसंहार और इस विद्रोह में सद्दाम को संगठन की सेवा देने की बात कबूल की है।[३६] बाद में, 7 आबान 1394 शम्सी को एक समूह जिसने खुद को शाबान विद्रोह के पीड़ितों के परिवारों के रूप में पेश किया, ने एक मिसाइल ऑपरेशन में पीपुल्स मुजाहेदीन ख़ल्क समूह के 25 सदस्यों को मार डाला और उनमें से 200 को घायल कर दिया।[३७]
प्रतिक्रियाएँ
शाबान की 18 तारीख को, विद्रोह की शुरुआत के दो दिन बाद, आयतुल्लाह खूई ने नजफ में एक बयान जारी किया जिसमें उन्होंने शरिया नियमों का पालन करने, लोगों की संपत्ति और सार्वजनिक धन से दूर रहने, सड़कों पर छोड़े गए शवों को दफनाने का फैसला सुनाया।[३८] उसके दो दिन बाद, आयतुल्लाह ख़ूई ने एक और बयान जारी किया जिसमें उन्होंने मामलों से निपटने के लिए 9 मौलवियों को नियुक्त किया, जो थे:
- सय्यद मुहम्मद रज़ा मूसवी खलखाली
- सय्यद जाफ़र बहरुल उलूम
- सय्यद इज्जुद्दीन बहरुल उलूम
- सय्यद मुहम्मद सब्ज़ेवारी, आयतुल्लाह सब्ज़ेवारी के पुत्र
- शेख मुहम्मद रज़ा शबीब साएदी
- सय्यद मुहम्मद सालेह सय्यद अब्दुर रसूल खरसान
- मुहम्मद तक़ी ख़ूई आयतुल्लाह ख़ूई के पुत्र
- सय्यद मुहम्मद रज़ा खरसान
- सय्यद मोहिउद्दीन ग़रीफ़ी
बयान जारी होने के बाद, इनमें से कुछ लोग मामलों से निपटने के लिए अलग-अलग शहरों में चले गए।[३९]
नजफ के महान विद्वानों में से एक सय्यद अब्दुल आला सब्ज़वारी ने भी एक फतवा जारी करके विद्रोह के लिए अपने समर्थन की घोषणा की।[४०]
सय्यद मुहम्मद बाक़िर हकीम ने भी विद्रोह का समर्थन किया और उनके समर्थकों ने भी शाबान विद्रोह में प्रमुख भूमिका निभाई।[४१]
ईरान में, इराकी लोगों की हत्या और पवित्र स्थानों के अपमान के लिए सार्वजनिक शोक का दिन घोषित किया गया था[४२] और ईरान के इस्लामी गणराज्य के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनई ने इस अवसर पर एक संदेश जारी किया।[४३]
असफलता के कारण
शोधकर्ताओं ने शाबान विद्रोह की त्वरित विफलता के कारण के रूप में कई कारकों की पहचान की है:
- सरकार द्वारा युद्ध तोपों जैसे उच्च विनाशकारी शक्ति वाले भारी हथियारों का उपयोग
- सभी प्रकार के हथियारों तक पहुंच के साथ इराकी राष्ट्रपति गार्ड जैसे प्रशिक्षित बल का उपयोग करना और लोगों को मारने की व्यापक शक्तियां भी होना[४४]
- सरकार का हवाई प्रभुत्व और हेलीकाप्टरों का उपयोग
- अंदर और बाहर योग्य नेतृत्व का अभाव
- सुन्नी प्रांतों का विद्रोह में शामिल होने में विफलता
- क्षेत्रीय देशों से विद्रोह को समर्थन का अभाव[४५]
- इराकी समूहों के बीच समन्वय का अभाव
- क्रांतिकारियों द्वारा इराकी शहरों पर अनियोजित प्रभुत्व
- विद्रोह में मौजूद समूहों के बीच सहयोग, एकजुटता और राष्ट्रवाद की भावना का न होना।[४६]
संबंधित लेख
फ़ुटनोट
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स्रोत
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