हज़रत अब्बास अलैहिस सलाम
हज़रत अब्बास अलैहिस सलाम इमामज़ादे, कर्बला के शहीदों में से एक | |
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नाम | अब्बास |
भूमिका | कर्बला की घटना में इमाम हुसैन (अ) के ध्वजवाहक |
उपाधि | अबुल फ़ज़्ल, अबुल क़ासिम |
जन्मदिन | 4 शाबान वर्ष 26 हिजरी |
जन्म स्थान | मदीना |
मृत्यु | 10 मुहर्रम वर्ष 61 हिजरी |
दफ़्न स्थान | कर्बला |
निवास स्थान | मदीना |
उपनाम | क़मरे बनी हाशिम |
पिता | इमाम अली (अ) |
माता | उम्मुल बनीन |
जीवनसाथी | लोबाबा, उबैदुल्लाह बिन अब्बास की पुत्री |
बच्चे | फ़ज़ल, उबैदुल्लाह |
आयु | 35 वर्ष |
अब्बास बिन अली बिन अबी तालिब (अ) (अरबी: العباس بن علي بن أبي طالب) (26-61 हिजरी) अबुल-फ़ज़्ल के नाम से मशहूर इमाम अली (अ) के पांचवे और उम्मुल बनीन के बड़े बेटे है। आपके जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा कर्बला की घटना मे आपकी उपस्थिति और आशूरा के दिन आपकी शहादत है। 61 हिजरी के मोहर्रम से पहले आपके जीवन और परिस्थितियों के बारे में अधिक जानकारी नहीं है, सिवाय इसके कि कुछ रिपोर्टों के अनुसार, वह सिफ़्फीन के युद्द में मौजूद थे।
कर्बला की घटना मे आप इमाम हुसैन (अ) की सेना के सेनापति और धव्जधारक थे। इमाम हुसैन (अ) के साथीयो के लिए फ़ुरात से पानी लाए। आप और आपके भाईयो ने उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद के दो शरण पत्रो को नकारते हुए इमाम हुसैन (अ) की सेना मे रह कर युद्ध किया और शहीद हुए। मक़ातिल की कुछ किताबो ने लिखा है कि आपकी दोनो भुजाए कट गई थी और सिर पर गुर्ज़ लगा था और इसी हालत मे शहीद हुए। कुछ किताबो मे आप के लाशे पर इमाम हुसैन (अ) के गिरया करने का भी उल्लेख किया है।
कुछ स्रोतो मे आपका क़द लंबा और सुंदर चेहरा लिखा है। शियो के इमामो ने स्वर्ग में हज़रत अब्बास के लिए उच्च स्थान बयान किया है, और बहुत सी करामातो का भी उल्लेख हुआ है उनमे से एक हाजत रवाई है। यहा तक कि ग़ैर शिया (सुन्नी), गैर मुस्लिम (कुफ्फ़ार) की भी हाजत रवाई करते है।
शिया हज़रत अब्बास के लिए एक बड़े आध्यात्मिक मक़ाम के क़ायल हैं; वो उन्हे बाबुल हवाइज कहते हैं और उनसे अपील (मुतवस्सिल होते) करते हैं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के रौज़े के पास हज़रत अब्बास का रौज़ा शियों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। इसके अलावा, शिया उन्हें सक़्क़ा ए कर्बला भी कहते हैं और मुहर्रम की 9वीं जबकि कुछ देशों मे शिया 8वीं तारीख़ को हज़रत अब्बास के नाम से अज़ादारी करते हैं। जबकि ईरान में 9वीं मोहर्रम (तासूआ) आपसे विशिष्ठ है और इस दिन ईरान मे आप से सार्वजनिक अवकाश रहता है।
अनुसंधानी संसाधनों की कमी
कुछ शोधकर्ताओ के अनुसार कर्बला की घटना से पहले अब्बास बिन अली (अ) के जीवन के बारे मे इतिहास मे कोई विशेष उल्लेख नही है। इसीलिए आपके जन्म और जीवन के संबंध मे अधिक मतभेद है।[१] अमेरिकी वुद्धिजीवी चेलकूसकी ने आपके जीवन को इतिहास में मनगढ़त बताया है।[२] हज़रत अब्बास (अ) के संबंध मे लिखी जाने वाले अधिकतर किताबें 14वीं और 15वीं चन्द्र शताब्दी की है। तीन भाग पर आधारित किताब बतलुल अलक़मी के लेखक अब्दुल वाहिद मुज़फ़्फ़र (मृत्यु 1391 हिजरी), ख़साएसुल अब्बासीया के लेखक मुहम्मद इब्राहीम कलबासी नजफी (मृत्यु 1310 हिजरी),[३] हयाते अबिल फ़ज़्लिल अब्बास के लेखक मुहम्मद अली उर्दूबादी (मृत्यु 1380 हिजरी), क़मरे बनी हाशिम अल-अब्बास के लेखक मूसवी मुक़र्रम (मृत्यु 1391 हिजरी) और चेहरा ए दरख़शाने क़मरे बनी हाशिम के लेखक रब्बानी ख़लखाली की मृत्यु 1389 हिजरी मे हुई।
नाम और वंशावली
अब्बास बिन अली की सबसे प्रसिद्ध उपाधि अबुल फ़ज़्ल है। आप इमाम अली (अ) के पाचंवे बेटे और उम्मुल बनीन (फ़ातिमा बिन्ते हेज़ाम) के साथ विवाह के परिणाम स्वरूप जन्म लेने वाले सबसे बड़े बेटे है।[४]
इमाम अली (अ)
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माता
आपकी माता को इमाम अली (अ) से अक़ील – जोकि वंशावली विशेषज्ञ थे - ने परिचित कराया था। इमाम अली (अ) ने अक़ील को अपने लिए एक ऐसी जीवन साथी (पत्नी) खोजने के लिए कहा जो बहादुर बच्चों को जन्म दे।[६] कहा जाता है कि आशूर की रात जब ज़ुहैर बिन क़ैन को इस बात का पता चला कि शिम्र ने अब्बास को शरण पत्र भेजा है तो कहाः हे अमीरुल मोमिनीन के बेटे, जब तुम्हारे पिता ने विवाह करना चाहा था तो तुम्हारे चाचा अक़ील से कहा कि उनके लिए ऐसी महिला खोजे जिसकी वंशावली मे बहादुरी हो ताकि उनसे बहादुर बेटा जन्म ले, ऐसा बेटा जो कर्बला में हुसैन का सहायक बने।[७] उर्दूबादी के अनुसार जुहैर और अब्बास के बीच की वार्ता असरार उश-शहादा किताब के अलावा किसी दूसरी किताब मे नही देखा।[८]
उपाधियाँ
- अबुल फ़ज़्ल: हज़रत अब्बास की सबसे प्रसिद्ध उपाधि अबुल फ़ज़्ल है।[९] कुछ लोगों का कहना है कि क्योंकि बनी हाशिम परिवार में जिसका भी नाम अब्बास नाम होता था उसको अबुल फ़ज्ल कहा जाता था, इसीलिए अब्बास को बचपन मे अबुल फ़ज़्ल कहा जाता था।[१०] सय्यद अब्दुर रज़्ज़ाक मूसवी मुक़र्रम ने "अल-जरीदतो फ़ी उसूले अंसाबिल अलावीयीन" नामक किताब का हवाला देते हुए लिखा है कि अब्बास (अ) का फ़ज़ल नाम का एक बेटा था। इसलिए उन्हें अबुल फ़ज़्ल कहा जाता है।[११]
- अबुल क़ासिमः हज़रत अब्बास का क़ासिम नाम का बेटा था इसीलिए उनको अबुल क़ासिम भी कहा जाता है। हज़रत अब्बास की इस उपाधि का उल्लेख अरबाईन की ज़ियारत मे भी हुआ है।[१२]
- अबुल क़िरबाः कुछ लोगो का मानना है कि यह उपाधि उन्हे इसलिए दी गई है क्योकि हज़रत अब्बास (अ) ने कर्बला की घटना के दौरान कई बार तंबुओ (ख़ैमों) मे पानी पहुंचाया था। इस उपाधि का उल्लेख कई स्रोतो मे किया गया है।[१३] क़िरबा अर्थात पानी की मश्क।[१४]
- अबुल फ़रजाः इस उपाधि का तर्क यह है कि अब्बास हर उस व्यक्ति के काम को हल करते है जो आपसे आग्रह करता है।[१५] फरजा का अर्थ होता है दुखो को दूर करना है।[१६]
उपनाम
अस्सलामो अलल अब्बास बिन अमीरिल मोमेनीन अल मवासी अख़ाहो बेनफ़्सेही, अल आख़ेज़े ले ग़देही मिन अमसेही, अल फ़ादी लहू अल वाक़ी, अस साई एलैह बे माऐही अल मक़तूऐही यदाहो। अनुवाद: अब्बास बिन अमीरूल मोमिनीन को सलाम, जिन्होंने अपनी जान देकर भाई] की मदद की, और उनके लिए ख़ुद मर गए, क़यामत के दिन लिए अपनी दुनिया से फायदा उठाया, अपने भाई के लिए खुद को कुर्बान कर दिया, और उनके लिए एक निस्वार्थ रक्षक और सैनिक थे, भले ही वह खुद प्यासे थे, और कोशिश की जो पानी उसके पास है हुसैन के पास पहुंचाए, लेकिन उसके दोनों हाथ कट गए।
हजरत अब्बास (अ) के विभिन्न उपनामो का उल्लेख किया गया है उनमे से कुछ उपनाम पुराने और कुछ नए है जनता उनको सिफ़ात और फ़ज़ाइल के माध्यम से बुलाती है।[१७] कुछ उपनाम निम्मलिखित हैः
- क़मर बनी हाशिम[१८]
- बाबुल हवाइजः[१९] बगदादी के अनुसार, यह उपनाम सभी शियों, विशेषकर इराकी शियों के बीच प्रसिद्ध है।[२०] बहुत से लोगो का विश्वास है कि हज़रत अब्बास (अ) से मांगने पर अल्लाह तआला उनकी मांग (मन्नत) को पूरा करता है।[२१]
- सक़्क़ाः यह उपनाम इतिहासकारों और वंशावलीज्ञों के बीच प्रसिद्ध है।[२२] आप (अ) ने कर्बला में तीन बार अहले हरम और इमाम हुसैन (अ) ख़ैमो मे पानी पहुंचाया।[२३] हज़रत अब्बास (अ) के रज्जों में, इस उपनाम को निर्दिष्ट किया गया है, जैसे कि इन्नी अनल अब्बासो उग़्दू बिस सुका; मैं अब्बास हूं और मैं रात को सक़्क़ा के पद के साथ बिताऊंगा।[२४]
- अल-शहीद[२५]
- परचमदार व अलमदार[२६]
- बाब उल-हुसैनः कुछ लोगों ने शिया आरिफ सय्यद अली क़ाज़ी तबताबाई,के रहस्योद्घाटन (मुकाशेफ़ा) का हवाला दिया, और यह खबर प्राप्त की कि "हज़रत अबुल फ़ज़्लिल अब्बास (अ) औलिया का काबा है"। उन्होंने हजऱत अब्बास (अ) को यह उपनाम दिया है।[२७]
जीवनी
कुछ शोधकर्ताओ के अनुसार हज़रत अब्बास (स) के कर्बला की घटना से पहले के जीवन के संबंध मे इतिहास मे कोई जानकारी नही है।[२८] जो जीच कर्बला से पहले उनके जीवन मे मिलती है वह है उनका सिफ़्फीन के युद्ध मे हाज़िर होना और दूसरी जगह इमाम हसन (अ) की तद्फ़ीन के समय[२९] इसके अलावा जो कुछ भी मिलता है वह कर्बला की घटना मे मिलता है।[३०]
जन्म
हज़रत अब्बास (अ) के जन्म के साल मे मतभेद है।[३१] यह मतभेद इमाम अली (अ) की शहादत के समय अब्बास (अ) की आयु के संबंध मे मौजूद मतभेद के आधार पर है कुछ ने उस समय हज़रत अब्बास (अ) की आयु 16-18 वर्ष लिखी है।[३२] जबकि इसके विपरीत कुछ ने आपकी आयु मात्र 14 वर्ष लिखा है और कहा है कि आप उस समय नाबालिग़ थे।[३३]
प्रसिद्ध कथनानुसार हज़रत अब्बास (अ) का जन्म 26 हिजरी मे मदीना मे हुआ।[३४] उर्दूबादी के अनुसार, पुराने स्रोतों में उनके जन्म के दिन और महीने के बारे में कोई उल्लेख नही मिलता, केवल 13 वीं शताब्दी में लिखी गई किताब अनीस उश-शिया मे आपका जन्म 4 शाबान उल्लेखित है।[३५] ख़साएसुल अब्बासीया के लेखक ने किसी स्रोत का उल्लेख किए बिना लिखा है कि जब हज़रत अब्बास (अ) का जन्म हुआ तो इमाम अली (अ) ने अपनी गोद मे लिया और अब्बास नाम रखा और आपके कानो मे आज़ान और अक़ामत कही, तत्पश्चात आपकी भुजाओ को चूमा और रोने लगे, हज़रत उम्मुल बनीन ने रोने का कारण पूछा तो उनको जवाब मे कहा अब्बास की दोनो भुजाए हुसैन की सहायता करने मे कट जाएंगी और अल्लाह तआला इसको दोनो भुजाओ के बदले मे आख़ेरत मे दो पर प्रदान करेगा।[३६] दूसरी किताबो मे भी इसी को आधार मानते हुए इमाम अली (अ) का अब्बास (अ) की भुजाओ के कटने पर रोने का उल्लेख किया है।[३७]
जीवन साथी और संतान
अब्बास (अ), अब्बास बिन अब्दुल मत्तलिब की पोत्री लुबाबा के साथ 40 से 45 हिजरी के बीच विवाह के बंधन मे बधे।[३९] कुछ स्रोतो मे लुबाबा के पिता का नाम उबैदुल्लाह बिन अब्बास[४०] और बाकी दूसरे स्रोतो मे अब्दुल्लाह बिन अब्बास[४१] बताया है।
तीसरी शताब्दी के इतिहासकार इब्ने हबीब बग़दादी ने अब्बास (अ) की पत्नि लुबाबा को उबैदुल्लाह की बेटी और लुबाबा बिन्ते अब्दुल्लाह को अली बिन अब्दुल्लाह जाफ़र की पत्नि लिखा है।[४२] लुबाबा से फ़ज़्ल और उबैदुल्लाह नाम के दो बेटो ने जन्म लिया।[४३] आपकी शहादत पश्चात पहले वलीद बिन अत्बा और उसके बाद ज़ैद बिन हसन से विवाह किया।[४४]
उबैदुल्लाह बिन अब्बास (अ) ने इमाम सज्जाद (अ) की बेटी के साथ विवाह किया।[४५] दूसरे इतिहासकारो ने आपके बेटो के नाम हसन, क़ासिम, मुहम्मद बताते हुए एक बेटी का भी उल्लेख किया है और लिखते है कि क़ासिम और मुहम्मद आशूर के दिन अपने पिता की शहादत के बाद वीरगति को प्राप्त हो गए थे।[४६]
हज़रत अब्बास की नस्ल उनके बेटे उबैदुल्लाह और पोते हसन से आगे बढ़ी। हज़रत अब्बास (अ) के बेटे प्रसिद्ध अलवीयो मे से थे और उनमे से बहुत से विद्वान, कवि, क़ाज़ी और शासक थे।[४७] हज़रत अब्बास (अ) की पीढ़ी का प्रसार उत्तरी अफ़्रीक़ा से ईरान तक बताया जाता है।[४८] हज़रत अब्बास की पीढ़ी के इस प्रसार का कारण सरकार का दमन बताया है।[४९]
सिफ़्फ़ीन का युद्द
कुछ किताबों के अनुसार सिफ़्फ़ीन के युद्ध में हज़रत अब्बास (अ) की उपस्थिति का उल्लेख किया गया है। इस युद्ध में आप (अ) उन लोगों में से एक थे, जिन्होंने सिफ़्फ़ीन के युद्ध में मालिके अशतर की कमान के तहत फ़ोरात पर हमला किया और इमाम अली (अ) के सैनिकों के लिए पानी का प्रबंध किया।[५०] इन्ही किताबो मे हज़रत अब्बास (अ) के हाथो इब्ने शासा और उसके सात बेटो का क़त्ल भी सिफ़्फ़ीन के युद्ध की घटनाओ मे उल्लेख किया गया है।[५१] कुछ लेखकों के अनुसार, सीरिया के लोग इब्ने शासा की ताकत को एक हजार घुड़सवारों के बराबर मानते थे।[५२] कुछ लोगों ने सिफ़्फ़ीन में हज़रत अब्बास (अ) की उपस्थिति पर भी संदेह किया हौ और जिन्होंने संदेह नहीं किया उन्होने इसे ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुरूप नही पाया है।[५३]
हज़रत अली (अ) की इमाम हुसैन (अ) के बारे मे हज़रत अब्बास (अ) को वसीयत के संबंध मे जोकि प्रसिद्ध है उर्दूबादी के अपनी किताब मे लिखा कि इस का कोई दस्तावेज नही है।[५४]
कर्बला की घटना मे
- मुख्य लेखः कर्बला की घटना
कर्बला की घटना मे हज़रत अब्बास (अ) की उपस्थिति आपके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है इसीलिए शियों के यहां आपका बड़ा महत्व है। हज़रत अब्बास (अ) को इमाम हुसैन (अ) के आंदोलन का सबसे प्रमुख व्यक्ति कहा जाता है।[५५] इसके बावजूद हज़रत अब्बास (अ) के बारे मे अलग से लिखी गई अधिकतर किताबो मे, इमाम हुसैन (अ) की मदीना से मक्का और मक्का से कूफ़ा तक के सफ़र और मोहर्रम 61 हिजरी से पहले तक हज़रत अब्बास (अ) के बारे मे कोई एतिहासिक रिपोर्ट या रिवायत मे कुछ नही मिलता।[५६]
मक्का मे धर्मोपदेश देना
ख़तीबे काबा किताब के लेखक ने हज़रत अब्बास (अ) से एक खुत्बा मंसूब किया है।[५७] उन्होने इस ख़ुत्बे को मनाक़िबे सादातुल किराम नामक किताब के एक नोट का हवाला देते हुए लिखा है कि इस किताब को नही देखा है।[५८] इस रिपोर्ट के अनुसार हज़रत अब्बास (अ) ने इस्लामी कैलेंडर के अंतिम महीने ज़िल हिज्जा की 8 वीं तारीख़ को काबा की छत से जनता को संबोधित किया जिसमे इमाम हुसैन (अ) की स्थिति का हवाला देकर यज़ीद को शराबी के रूप मे पेश करके यज़ीद के प्रति लोगो की निष्ठा की आलोचना की। और अपने भाषण मे उन्होने कहा कि जब तक वो जीवित है, वो इमाम हुसैन (अ) को शहीद नही होने देंगे और इमाम हुसैन (अ) को शहीद करने का एकमात्र तरीका अब्बास को मारना है।[५९] धर्मोपदेश के पाठ की साहित्यिक आलोचना, लेखक और मूल किताब की गुमनामी पर आधारित एक लेख मे जोया जहांबख्श ने इसे अस्वीकार कर दिया और कहा कि यह घटना दूसरे किसी स्रोत मे नही मिलती।[६०]
आशूरा के दिन परचमदारी
आशूरा के दिन हज़रत अब्बास (अ) इमाम हुसैन (अ) की सेना के ध्वजधारक थे। इमाम हुसैन (अ) ने आशूरा की सुबह उन्हे यह पद सौपा।[६१] कुछ रिपोर्टो के अनुसार जब हज़रत अब्बास (अ) ने कुरूक्षेत्र मे जाने के लिए कहा तो इमाम हुसैन (अ) ने उन्हे ध्वजधारक होना याद दिलाया।[६२]
पानी लाना
ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार, जब दुश्मन ने इमाम हुसैन (अ) के कारवां पर पानी बंद कर दिया और जब अहले हरम और असहाब की प्यास बढ़ी, तो इमाम (अ) ने हज़रत अब्बास (अ) को तीस घुड़सवारों और बीस पैदल सैनिकों के साथ पानी लाने के लिए भेजा। वे रात में दरिया के करीब पहुंचे, लेकिन अम्र बिन हज्जाज और उसके साथी उन्हें दरिया तक पहुंचने से रोकना चाहते थे, हज़रत अब्बास (अ) और उनके साथियों ने उन्हें पीछे खदेड़ दिया और खुद को दरिया तक पहुंचा दिया और मशको में पानी भरा। दरिया से पलटते समय अम्र बिन हज्जाज और उसके साथियों ने उन पर हमला किया। हज़रत अब्बास (अ) और अन्य घुड़सवारों ने दुश्मन के रास्ते को तब तक रोके रखा जब तक कि पैदल सेना ख़याम में पानी नहीं ले आई।[६३]
शरण पत्रो का ठुकराना
जब हुसैनी कारवां कर्बला मे था तो दुश्मन हज़रत अब्बास और उनके भाईयो के लिए दो शरण पत्र लेकर आए।
अब्दुल्लाह बिन अबी महल का शरण पत्र
जब शिम्र ज़िल जौशन ने इमाम हुसैन (अ) के साथ युद्ध करने या इब्ने ज़ियाद के लिए आत्मसमर्पण का पत्र मिला, तो उम्मुल बनीन के भतीजे अब्दुल्लाह बिन अबी महल का महल छोड़ते समय शिम्र से अपने फ़ूपीज़ाद भाईयो के लिए शरण पत्र प्राप्त किया और उसे इमाम हुसैन (अ) के शिविर में अपने मालिक के माध्यम से उम्मुल बनीन के बच्चों के लिए भेद दिया। जब उसका दूत हजरत अब्बास (अ) और उसके भाइयों के पास पहुंचा, तो उस ने उन से कहा, तुम्हारे मामा ने तुम्हें यह शरण पत्र भेजा है। जवाब में, उन्होंने कहा: हमारे मामा को सलाम कहना और उन्हें बताना कि हमें शरण पत्र की आवश्यकता नहीं है, सुमैय्या के बेटे के शरण पत्र की तुलना में अल्लाह का शरण पत्र हमारे लिए उत्तम है।[६४]
शिम्र ज़िल-जोशन का शरण पत्र
मुहर्रम की नौवीं रात को शिम्र ने इमाम हुसैन (अ) के असहाब के सामने खड़े होकर कहा: मेरे भांजे कहाँ हैं?! अब्बास, जाफ़र और उस्मान तंबू से बाहर आए और कहा: क्या चाहते हो? शिम्र ने कहा: आप सुरक्षित हैं। उन्होंने कहा: यदि तुम हमारे मामा हो, तो तुम्हारे और तुम्हारे शरण पत्र पर अल्लाह लानत करे। केवल हमारे लिए शरण पत्र लाए और पैगम़्बर (स) के बेटे को छोड़ दिया।[६५]
इब्ने आसिम (मृत्यु 314 हिजरी) इस प्रकार लिखता है कि जब शिम्र ने उम्मुल बनीन के बेटो को आवाज़ दी हुसैन (अ) ने अपने भाईयो से कहाः उसका जवाब दीजिए, चाहे फासिक़ ही क्यो ना हो, क्योकि वो तुम्हारा मामा है। हज़रत अब्बास (अ) और उनके भाईयो ने शिम्र से कहाः क्या कहा? शिम्र ने कहाः हे मेरे भांजो! तुम लोग सुरक्षित हो। हुसैन के साथ खुद को मत मारो और अमीरुल मोमिनीन यज़ीद की बात मानो। उस समय, अब्बास बिन अली ने कहा: डूब मर शिम्र! हे खुदा के दुश्मन तुझ पर और तेरे शरण पत्र पर खुदा लानत करे! हमसे दुश्मन की आज्ञा मानने और अपने भाई की मदद करना बंद करने के लिए कह रहा हैं?।[६६]
इब्ने कसीर (मृत्यु 774 हिजरी) ने को प्राचीन स्रोतो के विपरीत इस प्रकार बयान किया है: हुसैन के भाइयों ने शिम्र से कहा: यदि हमें और हमारे भाई हुसैन को शरण देते हो, तो हम भी आपके शरण को स्वीकार करेंगे, अन्यथा हमें इसकी आवश्यकता नहीं है।[६७] लेकिन स्पष्ट रूप से, इब्न कसीर और इब्ने आसम की रिपोर्ट, समय की देरी और उनकी सामग्री के कारण, विचार करने योग्य हैं और प्राचीन पुस्तकों की रिपोर्टों के विपरीत हैं।[६८]
हज़रत अब्बास के भाईयो की शहादत
ऐतिहासिक रिपोर्टों के अनुसार, उम्मुल-बनीन के साथ इमाम अली (अ) की शादी का नतीजा अब्बास, जाफ़र, अब्दुल्लाह और उस्मान नाम के चार बेटे थे।[६९] और हज़रत अब्बास ने अपने भाइयों को आशूरा के दौरान लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया। यह रिपोर्ट दो स्रोतों में दो प्रकार से बयान की गई है।
तुमसे विरासत पाऊं
अबू मख़नफ़ (157 हिजरी), तबरी (310 हिजरी) और इब्ने असीर (630 हिजरी) की रिपोर्ट के अनुसार, हज़रत अब्बास (अ) ने अपने भाइयों अब्दुल्लाह, जाफ़र और उस्मान से कहा: हे मेरी भाईयो, मैदान में जाओ ताकि कि मैं तुम से विरासत पाऊं, क्योंकि आपके कोई सन्तान नहीं है, उन्होंने वैसा ही किया और शहीद हुए।[७०]
लेकिन कुछ लोगों के दृष्टिकोण से यह रिपोर्ट ग़लत है, क्योंकि उस स्थिति में अब्बास को पता था कि मैं भी मारा जाऊंगा और विरासत मांगने का कोई मतलब नहीं है।[७१] साथ ही, यह रिपोर्ट विरासत के कानून के साथ असंगत है, क्योंकि उम्मुल-बनीन की उपस्थिति और इस तथ्य के बावजूद कि हज़रत अब्बास के भाइयों की पत्निया और बच्चे नही थे। अतः विरासत हज़रत अब्बास को नहीं बल्कि उम्मुल बनीन को अपने बेटो से विरासत मिलती।[७२]
मैं तुम्हारी जंग का गवाह बनूं
शेख मुफ़ीद (413 हिजरी), तबरसी (548 हिजरी), इब्ने नेमा (645 हिजरी) और इब्ने हातिम (664 हिजरी) ने नक़ल किया: जब अब्बास बिन अली (अ) ने देखा कि उनके बहुत से लोग शहीद हो गए है तो अपने भाईयो अब्दुल्लाह, जाफ़र और उस्मान से कहा: हे मेरे भाईयो! मैदान में जाओ ताकि मैं तुम्हें देख सकूं कि [तुम अल्लाह के रास्ते मे कैसे शहीद होंगे]; मैंने तुम्हें ख़ुदा और उसके रसूल के लिए नसीहत की, क्योंकि तुम्हारे संतान नहीं है।[७३] शायद यही वजह है कि हज़रत अब्बास (अ) ने अपने भाइयों को पहले मैदान में इसलिए भेजा कि वह उन्हें जिहाद के लिए तैयार करने का इनाम और उन लोगों का भी अज्र पाए जो अपने भाई की शहादत के लिए धैर्यवान थे।[७४]
आशूर के दिन हज़रत अब्बास (अ) के रज्ज़
आशूर के दिन हज़रत अब्बास (अ) के विभिन्न रज्ज़[७५] बयान हुए हैः
अक़्समतो बिल्लाहे अल-आअज़्ज़िल आज़मे | वा बिल हजूने सादेक़न वा ज़मज़मा |
वा बिल हतीमे वल फ़ना अल-मोहर्रमे | लेयुख़ज़बन्ना अल-यौमा जिस्मी बेज़मी |
दूनल हुसैने ज़िलफ़ख़ारे अल-अक़दमे | इमामो अहलिल फ़ज्ले वत्तकर्रोमे[७६] |
अनुवादः मुझे क़सम है सबसे प्यारे और शानदार खुदा की, और हजून की भी और ज़मज़म के पानी की भी *खुदा के घर की और मस्जिद के इलाक़े की क़सम है कि आज मेरा जिस्म खून से रंगा जाएगा* हुसैन के पैर जो सद्गुणों और सम्मानों के मालिक और अग्रणी हैं।
ला अरहबूल मौता इज़ अल-मौते ज़क़ा | हत्ता ओवारी फिल मसालीते लक़ा |
नफ़्सी ले नफ़्सिल मुस्तफ़ा अत्तोहरे वक़ा | इन्नी अन्ल अब्बासो अग़्दू बिस्सिक़ा |
वला अखाफ़ुश शरो यौमल मुलतक़ा | वला अख़ाफ़ुश शर्रो यौमल मुलतक़ा[७७] |
अनुवादः मैं मौत से नहीं डरता, जब वह बुलाती है, जब तक कि मैं परखे हुए आदमियों के बीच न आ जाऊं और मैं धूल में न समा जाऊं, मेरा जीवन हुसैन के जीवन की ढाल और बलिदान है, जो चुना हुआ और पवित्र है, मैं अब्बास हूं, मै मश्क के साथ आता हूं, और युद्ध के दिन, दुश्मनों की बुराई से कुछ नहीं होता मुझे कोई पछतावा नहीं है।
वल्लाहे इन क़ताअतुम यमीनी | इन्नी ओहामी अबादन अन दीनी |
वा अन इमामिन सादिक अल-यक़ीने | नज्लिल नबीइल ताहिरिल अमीने[७८] |
अनुवादः मै अल्लाह की कसम खाता हूँ! यद्यपि आपने मेरा दाहिना हाथ काट दिया, मैं अपने धर्म और इमाम का समर्थन करना जारी रखूंगा जो अपनी निश्चितता में ईमानदार हैं और पैगंबर के शुद्ध और वफ़ादार पुत्र हैं।
शहादत
मुहम्मद हसन मुज़फ़्फ़र के अनुसार, अधिकांश इतिहासकारों का मत है कि मुहर्रम की 10 तारीख को हज़रत अब्बास (अ) निश्चित रूप से शहीद हुए है। मुजफ़्फ़र ने मुहर्रम के 7वें और 9वें दिन शहादत के बारे में दो अन्य बातों का उल्लेख किया और उन्हें कमज़ोर और बहुत दुर्लभ माना है।[७९]
आशूरा के दिन हज़रत अब्बास (अ) की लड़ाई और वह कैसे शहीद हुए, इसका विभिन्न प्रकार से वर्णन किया गया है।[८०] कुछ स्रोतों के अनुसार, हज़रत अब्बास (अ) इमाम के आख़री सहाबी की शहादत तक इमाम हुसैन (अ) और बनी हाशिम कुरूक्षेत्र में नहीं गए थे।[८१]
शेख मुफ़ीद के अनुसार, इमाम हुसैन और हज़रत अब्बास बिन अली (अ) एक साथ कुरूक्षेत्र गए थे, लेकिन उमर साद की सेना दोनो के बीच बाधा बन गए। इमाम हुसैन (अ) घायल हो गए और ख़ैमे में लौट आए, और अब्बास (अ) अकेले तब तक लड़े जब तक कि वह गंभीर रूप से घायल नहीं हो गए और युद्ध करने की ताक़त समाप्त हो गई। इस बीच ज़ैद बिन वरक़ा हनफ़ी और हुकैम बिन तुफ़ैल सिनबेसी ने उन्हे (हज़रत अब्बास) को मार डाला।[८२] शेख़ मुफ़ीद ने किसी अन्य विवरण का उल्लेख नहीं किया। हज़रत अब्बास की शहादत का विवरण अबी मख़नफ़ के मक़तल में भी नहीं मिलता।[८३] ग़ैरे मशहूर ज़ियारते नाहीया मे यज़ीद बिन वक्काद और हकीम बिन अल-तुफैल अल-ताई का उल्लेख हजरत अब्बास (अ) के हत्यारों के रूप में किया गया है।[८४]
कुछ अन्य सूत्रों के अनुसार असहाब और बनी हाशिम के शहीद होने के बाद हज़रत अब्बास (अ) ने ख़ैमो के लिए पानी लाने की योजना बनाई। उन्होने फ़ोरात की ओर हमला किया और फ़ोरात के रखवालों के बीच में से खुद को पानी तक पहुंचने में सक्षम रहे। रास्ते में दुश्मन ने आप पर हमला कर दिया। वह खजूर के पेड़ो में दुश्मन के साथ लड़ रहे थे और खैमो की ओर जा रहे थे जब ज़ैद बिन वरक़ा जहनी एक खजूर के पेड़ के पीछे से कूदा और आपके दाहिने हाथ पर वार किया। हज़रत अब्बास (अ) ने बाएं हाथ में तलवार ली और दुश्मन से लड़ते रहे। हकीम बिन तुफ़ैल ताई, जो एक पेड़ के पीछे छिपा हुआ था, ने आपके बाएं हाथ पर वार किया और उसके बाद अब्बास के सिर पर लंबवत प्रहार करके आपको शहीद कर दिया।[८५]
ख़्वारज़मी के अनुसार, जब हज़रत अब्बास (अ) शहीद हुए, तो इमाम हुसैन (अ) अपने भाई के जनाज़े पर आकर फूट-फूट कर रोए और कहा: "अब मेरी कमर टूट गई है और मेरे पास कोई विकल्प नहीं है।"[८६] ख़्वारज़मी इसके आधार पर हज़रत अब्बास (अ) को कुरूक्षेत्र में जाने वाला अंतिम व्यक्ति नही मानते।[८७]
इमाम हुसैन (अ) के सम्मान मे पानी ना पीना
11वीं शताब्दी के विद्वान फख्रुद्दीन तुरैही के अनुसार, अल-मुंतख़ब किताब मे जब हज़रत अब्बास (अ) फ़ुरात के किनारे पर पहुंचे तो उन्होने पानी चुल्लू मे लेकर पीना चाहा, लेकिन जब पानी चेहरे के करीब लाए तो उन्होंने हुसैन (अ) की प्यास को याद किया और पानी फेक दिया और अपने प्यासे होठों के साथ मशक भरके फ़ुरात से बाहर आ गए।[८८] अल्लामा मजलिसी ने भी मुख्य स्रोत के नाम का उल्लेख किए बिना बिहार उल-अनवार में इसी बात का उल्लेख किया है।[८९]
उर्दूबादी ने कुछ अशआर और ज़ियारते नाहिया के कुछ हिस्से का विश्लेषण करके यह साबित करने की कोशिश की है कि यह घटना हुई है।[९०] शोधकर्ता जोया जहांबख्श ने एक नोट में कहा है कि इस घटना का इतिहास के पुराने स्रोत मे उल्लेख नहीं है। मक़ातिल अल-तालिबयीन के एक पुराने शोकगीत में हैं, जिसमें कहा गया है कि "अबुल फ़ज़ल ने अपनी प्यास को हुसैन (अ) पर नियोछावर कर दिया"।[९१][नोट १]
फ़ज़ाइल और विशेषताएँ
कुछ लोग हज़रत अब्बास (अ), इमाम अली (अ), इमाम हसन (अ) और इमाम हुसैन (अ)[९२] के साथ रहना और उनके साथ रहना सबसे महत्वपूर्ण फ़ज़ीलतो और विशेषताओं में से एक मानते हैं।[९३] असरार अल-शोहादा किताब से मासूमीन (अ) की एक हदीस को वर्णित करते हुए अब्दुर रज़्ज़ाक़ ने अपनी किताब अल-अब्बास मे हज़रत अब्बास (अ) ने इनसे ज्ञान प्राप्त किया है।[९४] जाफ़र नक़दी उनके बारे में लिखते हैं, "वो ज्ञान, पवित्रता, दुआ और इबादत के मामले में अहले-बैत के बुजुर्गों में से एक हैं। कुछ का मानना है कि हालांकि वह अब्बास हैं इस्मत के पद पर नहीं, बल्कि वह उनके सबसे करीबी व्यक्ति हैं।[९५] हज़रत अब्बास (अ) ने पांच मासूम इमाम देखे हैं। इमाम अली (अ), इमाम हसन (अ), इमाम हुसैन (अ), इमाम सज्जाद (अ) और इमाम बाक़़िर (अ) जो कर्बला की घटना में मौजूद थे। वह इस गुण के लिए प्रसिद्ध हैं।[९६]
बाद के लेखकों ने लिखा है कि अब्बास (अ) ने खुद को अपने दो बड़े भाइयों, इमाम हसन (अ) और इमाम हुसैन (अ) के बराबर नहीं माना, और वह हमेशा उन्हें अपना इमाम मानते थे और उनके प्रति आज्ञाकारी थे [९७] और हमेशा उन दोनों का सम्मान करते थे। वो "यब्ना रसूलुल्लाह", "या सय्यदी" और इसी तरह के अन्य उपनाम से संबोधित करते थे।[९८]
कल्बासी ने "ख़साए सुल अब्बासीया" पुस्तक में इस बात के मोतक़िद है कि हज़रत अब्बास (अ) के पास एक सुखद और सुंदर चेहरा था और इसीलिए उन्हें क़मर बनी हाशिम कहा जाता था।[९९] हज़रत अब्बास (अ) के हत्यारे के अनुसार, कर्बला मे मैने एक सुंदर आदमी को मार डाला, जिसकी दोनों आँखों के बीच सज्दे का निशान था।[१००] कुछ रिपोर्टों के अनुसार, उन्हें बनी हाशिम की विशेष शख्सियतों में से एक माना जाता था, जिनके पास एक मज़बूत और लंबा शरीर था, इस हद तक कि जब वह घोड़े पर बैठते थे, तो उनके पैर ज़मीन पर लगते जाते थे।[१०१]
अब्बास (अ) की फ़ज़ीलतो में से एक, जिसकी प्रशंसा मित्रों और शत्रुओं ने समान रूप से की है, और कोई भी इससे इनकार नहीं कर सकता, वह उनका साहस है।[१०२] लोगों के बीच, आपका यह व्यवहार एक मुहावरा बन गया है।[१०३]
स्वर्ग मे हज़रत अब्बास (अ) का स्थान
अब्बास को आशूरा के दिन इमाम हुसैन (अ) के सबसे महत्वपूर्ण और प्रमुख साथियों में से एक माना जाता है।[१०४] वह कर्बला की घटना में इमाम हुसैन (अ) की सेना के ध्वजधारक थे।[१०५] इमाम हुसैन (अ) ने हज़रत अब्बास के बारे में कहा, "भाई मेरी जान आप पर कुर्बान।"[१०६] और अब्बास (अ) की लाश पर रोए भी हैं।[१०७] कुछ लोग इन शब्दों और इशारों को शियों के तीसरे इमाम के निकट उच्च स्थिति का संकेत मानते है।[१०८]
हदीसों में हज़रत अब्बास (अ) के स्वर्ग में विशेष स्थान पर भी बल दिया गया है; एक रिवायत के अनुसार, इमाम सज्जाद (अ) ने कहा, अल्लाह मेरे चाचा अब्बास पर रहम करे, जिन्होने स्वंयं को अपने भाई इमाम हुसैन (अ) पर क़ुर्बान कर दिया और इस मार्ग मे उनके दोनों हाथ कट गए जिसके बदले मे अल्लाह उनको स्वर्ग में दो पंख प्रदान करेगा ताकि वो उन दो पंखों के साथ स्वर्ग में स्वर्गदूतों के साथ उड़ान भर सके, जिस तरह जाफ़र बिन अबी तालिब को भी दो पंख किए गए।[१०९] इमाम ने आगे कहा कि मेरे चाचा अब्बास का अल्लाह की नज़र में एक उच्च दर्जा और स्थिति है कि क़यामत के दिन सभी शहीद इस पर रशक (हसरत,तम्न्ना) करेगें।[११०] एक रिवायत के अनुसार, जब इमाम सज्जाद (अ) ने हज़रत अब्बास (अ) के बेटे उबैदुल्लाह को देखा तो आप (इमाम सज्जाद) के आंसू बहने लगे और उन्होंने कहा: अल्लाह के रसूल पर सबसे कठिन दिन जो गुजरा वह ओहद की जंग वाला दिन था कि उस दिन रसूलल्लाह (स) के चाचा हमज़ा बिन अब्दुल मुत्तलिब जो ख़ुदा और नबी के शेर था उस दिन शहीद हुए उसके बाद मौता की जंग का दिन था उस दिन आपके चाचा जाद भाई जाफ़र बिन अबी तालिब मारे गए। फिर उन्होने कहा: लेकिन हुसैन (अ) के दिन की तरह कोई दिन नहीं है, कि उस दिन तीस हजार पुरुषों [योद्धाओं] ने उन पर हमला किया और वो यह सोच रहे थे कि उनके रक्तपात से वो अल्लाह के नजदीक होंगे, जबकि इमाम हुसैन (अ) ने उन्हे खुदा की याद दिलाई वो उस समय तक ग्रहणशील नही हुए जब तक कि उन्होने इमाम हुसैन (अ) को क्रूरता से शहीद नही कर दिया।[१११]
अबू नस्र बुख़ारी ने इमाम सादिक़ (अ) से एक रिवायत नक़्ल करते हुए हज़रत अब्बास (अ) को (नाफ़ेज़ुल बसीरत अर्थात गहरी अंतर्दृष्टि रखने वाला) शब्द के साथ वर्णित किया है और उन्हें एक मजबूत विश्वास वाले व्यक्ति के रूप में पेश किया है, जो इमाम हुसैन (अ) के साथ लड़े थे और शहीद हो गए थे।[११२] अन्य स्रोतों में भी इस कथन का उल्लेख है।[११३]
सय्यद अब्दुल रज़्ज़ाक मुक़र्रम ने अपनी किताब मक्तलुल-हुसैन में कहा है कि इमाम सज्जाद (अ) ने आशूरा की घटना के बाद कर्बला के सभी शहीदों के शवों को दफ़नाने के लिए बनी असद से मदद मांगी, लेकिन इमाम हुसैन (अ) और हज़रत अब्बास (अ) को दफ़नाने के लिए उनसे मदद नहीं ली और कहा कि इन दो शहीदो के दफ़नाने मे कोई मेरी मदद रहा है मुझे आपकी मदद की ज़रूरत नहीं है।[११४]
ज़ियारतनामा
पिज़ूहिशी दर सीरा वा सीमा ए अब्बास बिन अली नामक किताब के अनुसार हज़रत अब्बास (अ) के लिए अलग-अलग किताबों में ग्यारह ज़ियारत नामो का वर्णन किया गया है।[११५] जिनमें से कुछ को दूसरे ज़ियारत नामो का सारांश माना जाता है।[११६] ग्यारह ज़ियारत नामो में से तीन इमाम सादिक़ (अ) से बयान किए गए है,[११७] और कुछ मे मासूमीन (अ) से मंसूब होने में भी संदेह किया गया है।[११८]
इन ज़ियारत नामो में हज़रत अब्बास (अ) के लिए प्रशंसनीय व्याख्याओं का उल्लेख मिलता है; अब्दे सालेह जैसे, पैगंबर (स) के उत्तराधिकारी के सामने तसलीम हो जाने वाला और उसे स्वीकार करने और उसके प्रति वफादार रहने वाला, अल्लाह, रसूल (स) और इमाम (अ) के प्रति आज्ञाकारी करार दिया है, और बदरियो और मुजाहिदो की तरह अल्लाह के मार्ग मे काम किया है।[११९] इसके अलावा, कुछ लोग ज़ियारते नाहिया[नोट २] मे आपके बारे मे जो शब्द मौजूद है वो इमाम ज़माना (अ) की निगाह मे आपकी उच्च स्थिति का संकेत मानते है।[१२०]
हज़रत अब्बास (अ) के करामात
हज़रत अब्बास के करामात शियों के बीच प्रसिद्ध हैं, और हज़रत अब्बास से तवस्सुल करके रोगियों के ठीक होने या अन्य समस्याओं को हल करने के बारे में कई दास्तान हैं। "दर किनारे अलक़मा करामातुल अब्बासीया" नामक किताब मे करामात की 72 दास्तानो को एकत्र किया है।[१२१] चेहरा ए दरख़शाने कमरे बनी हाशिम नामक किताब मे रब्बानी ख़लख़ाली ने अब्बास (स) के लगभग आठ सौ करामात को एकत्रित करके प्रत्येक खंड में 250 से अधिक दास्ताने लिखी है। हालाँकि, इनमें से कुछ कहानियों को दोहराया गया है। इन स्रोतों के अनुसार, हज़रत अब्बास (अ) की करामात केवल शियों से मखसूस नही नहीं हैं बल्कि हज़रत अब्बास (अ) की करामात अन्य धर्मों और संप्रदायों, जैसे कि सुन्नियों, ईसाइयों, किलिमियों और पारसी लोगों के लिए भी बताए गए हैं।[१२२]
शिया संस्कृति मे हज़रत अब्बास (अ)
शियों का हज़रत अब्बास (अ) के साथ एक बड़ा भावनात्मक संबंध है और वे उन्हें चौदह मासूमीन (अ) के बाद सर्वोच्च स्थान पर मानते हैं।[१२३] मुहम्मद बगदादी ने अपनी पुस्तक का एक अध्याय शियों और अबुल फ़ज़्ल (अ) के बीच संबंधों को समर्पित करते हुए अबुल फ़ज़्लिल अब्बास (अ) के लिए शियों के प्यार और स्नेह की घनिष्ठता को बहुत स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया है।[१२४] इसी कारण शिया संस्कृति, तवस्सुल, अज़ादारी और प्रतीकीकरण में एक महत्वपूर्ण स्थान है।
हज़रत अब्बास (अ) से तवस्सुल
शियों के बीच हज़रत अब्बास (अ) की विशेष स्थिति के कारण, लोग अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए हज़रत अब्बास (अ) की ओर रुख करते हैं और उनसे मन्नतें लेते हैं।[१२५] कुछ ने सुन्नियों, ईसाइयों, किलिमियों और अर्मेनियाई लोगों के लिए हज़रत अब्बास के करामात भी बयान किए हैं।[१२६]
नवीं मोहर्रम की अज़ादारी
मुहर्रम के पहले दशक के धार्मिक समारोहों में, मुहर्रम की 9 तारीख अधिकांश शिया हज़रत अब्बास (अ) से मख़सूस मनाते है, लेकिन उपमहाद्वीप मे मुहर्रम की 8 तारीख आपसे मख़सूस है। हज़रत अब्बास (अ) की अज़ादारी से विशेष दिन जो आशूरा के बाद मस्जिदों, इमाम बारगाहो और तकियों में शिया मातम मनाने का सबसे महत्वपूर्ण समय मानते है। इस दिन ईरान और कुछ इस्लामिक देशों में छुट्टी होती है।[१२७]
ज़ंजान मे यौमुल अब्बासः हर साल मुहर्रम के 8वें दिन की शाम को, इस शहर के हुसैनीया ए आज़म ज़ंजान से लेकर इमामज़ादे सय्यद इब्राहिम तक की दूरी पर मातम मनाने वालों की एक बड़ी भीड़ इकट्ठा होती है और मातम करती है। कुछ रिपोर्टों के अनुसार 2016 में 9700 से अधिक भेड़ो और 2015 में 12000 भेड़ो की लोगों की मन्नत के कारण क़ुर्बानी की गई।[१२८] हाल के वर्षों में, हर साल लगभग पांच लाख लोग इस समारोह में भाग लेते हैं। इस समारोह को ईरान की आध्यात्मिक विरासतों में से एक के रूप में पंजीकृत किया गया है।[१२९]
ज़िक्र या काशेफ़ल-कर्ब
ज़िक्र "या काशेफ़ल-कर्बे अन वजहिल-हुसैन इकशिफ़ कर्बी बेहक़्क़े अखिकल-हुसैन" ((हे हुसैन के चेहरे से दुःख और दर्द को दूर करने वाले अपने भाई हुसैन के सदक़े मे मेरे दुख और दर्द को दूर कर))। यह ज़िक्र हज़रत अब्बास से तवस्सुल करने वाले जिक्रो मे शुमार किया जाता है, और कभी-कभी इस ज़िक्र को 133 बार पढ़ने की सिफारिश की जाती है।[१३०] यह ज़िक्र शिया हदीसी ग्रंथो मे भी उल्लेखित है।
अनुष्ठान और अन्य रीति-रिवाज
- अलम निकालना: इमाम हुसैन (अ) की अज़ादारी मे हज़रत अब्बास (अ) की याद मे अलम निकाला जाता है।[१३१]
- सक़्क़ाई: यह मनक़बत पढ़ने की रस्मों में से एक है अज़ादारी के दिनों में आयोजित की जाती है, विशेष रूप से ईरान में तासूआ (9 मुहर्रम) और अशूरा को आयोजन होता है। यह अनुष्ठान कभी-कभी नौहा पढ़ने के रूप में और कभी-कभी अज़ादारी के रास्ते में और धार्मिक प्रतिनिधिमंडलों में प्यास बुझाने के रूप में आयोजित की जाती है; पहले मामले में, विशेष अश्आर और नौहे होते हैं, और दूसरे मामले में सक़्क़ा विशेष कपड़े पहनते हैं और मातम मनाने वालों को मशक या सुराही से पानी पिलाते हैं।[१३२]
इराक़ और ईरान के कई शिया शहरों में सक्काई संस्कृति आम है[१३३] और सक्काई संस्कृति का प्रभाव हज़रत अब्बास के नाम पर बने प्याऊ स्थानो पर देखा जा सकता है।[१३४]
- हज़रत अब्बास (अ) की क़सम खाना: हज़रत अब्बास की क़सम खाना शियों और यहां तक कि सुन्नियों के बीच भी एक आम बात है, इसलिए कुछ लोगो का कहना है कि शिया हज़रत अब्बास की क़सम खाकर अपने झगड़े खत्म कर लेते हैं। और कुछ लोग अब्बास के नाम की क़सम को ही एकमात्र सच्ची क़सम मानते हैं।[१३५] कुछ शिया कबीले हज़रत अब्बास (अ) की कसम खाकर अपने अनुबंधों, समझौतों, सौदों और अनुबंधों की पुष्टि करते हैं और उन्हें मजबूत करती हैं।[१३६] हज़रत अब्बास (अ) की क़सम पर विशेष ध्यान देने का कारण उनकी हिम्मत, वफ़ादारी, जोश, शिष्टता और शौर्य है।[१३७] हज़रत अब्बास की क़सम पर भरोसा करने के बारे में सुन्नियों, खासकर इराकियों के कुछ उद्धरण हैं। इराक के पूर्व रक्षा मंत्री, हरदान तिकरिती ने कहा है कि अहमद हसन अल-बक्र (इराक़ के पूर्व राष्ट्रपतियों में से एक) और सद्दाम और कई अन्य लोगों के साथ मिलकर, वे एक समझौता करना चाहते थे और अपने समझौते को मजबूत करना चाहते थे और एक दूसरे के साथ विश्वासघात न करने के लिए, उन्होंने क़सम खाने का फैसला किया हालांकि कुछ लोगों ने क़सम खाने के लिए अबू हनीफा की क़ब्रगाह का सुझाव दिया, लेकिन उन्होंने अंततः हज़रत अब्बास (अ) के रौज़े पर जाने और वहां क़सम खाने का फैसला किया।<refतिकरीती, मुजाकेरात ए हरदान अल-तिकरीती, 1971 ई, पेज 5></ref>
- हज़रत अब्बास (अ) की नज़्र: हज़रत अब्बास (अ) की नज़्र एक विशेष नज़्र है जिसमे कुछ देशो मे यह महिला गैदरिंग होती है।[१३८] हज़रत अब्बास (अ) की नज़्र विशेष अनुष्ठान और दुआ पढ़कर आयोजित की जाती है। सबसे महत्वपूर्ण और सामान्य नज़्रो में से एक "अबुलफजल" की नज़्र है।[१३९]
- अब्बासीया या बैतुल-अब्बास: यह उन जगहों को कहा जाता है जो हज़रत अब्बास (अ) के नाम पर और मातम मनाने के लिए बनाई जाती हैं। कुछ लोगों ने कहा है कि इन जगहों पर कई अन्य कार्यक्रम भी किए जाते हैं और उनका कार्य इमाम बारगाहो के समान है।[१४०]
- जानबाज़ दिवस (पूर्व सैनिक दिवस): इस्लामिक गणराज्य ईरान के आधिकारिक कैलेंडर में, हज़रत अब्बास (अ) के जन्म दिवस 4 शाबान जानबाज़ दिवस के रूप में नामित किया गया है।[१४१]
- पंजा या पंज चिन्ह, कुछ शिया क्षेत्रों में पंजे को अलम के ऊपर स्थापित किया जाता है जोकि हजरत अब्बास (अ) के कटे हुए हाथों का प्रतीक है। क्योकि पंजे मे पांच उंगलिया है इसको आधार मानते हुए कुछ शिया इसे पंजेतन का प्रतीक मानते हैं।[१४२]
हज़रत अब्बास (अ) से संबंधित स्थान और भवन
ईरान और इराक़ में कुछ ऐसे स्थान हैं जिनका समय के साथ लोगों द्वारा सम्मान किया गया है, और लोग अपनी नज़्र व नियाज़ एंवं हदीया देने के लिए उस स्थान पर जाते हैं, और उनका अक़ीदा है कि दुआ करने और मन्नत करने से उनकी ज़रूरतें पूरी होती है।
हज़रत अब्बास (अ) का हरम
- मुख्य लेखः हज़रत अब्बास (अ) का हरम
हज़रत अब्बास (अ) की क़ब्र इमाम हुसैन (अ) के हरम से 378 मीटर उत्तर पूर्व में कर्बला शहर में स्थित है और शियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से एक है। हज़रत अब्बास (अ) के हरम और इमाम हुसैन (अ) के हरम के बीच की दूरी को बैनुल हरमैन कहा जाता है।[१४३]
बहुत से इतिहासकारों के अनुसार अब्बास (अ) को उनकी शहादत के स्थान पर नहरे अलक़मा के पास दफनाया गया है।[१४४] क्योंकि अन्य शहीदों के विपरीत इमाम हुसैन (अ) ने उन्हें अपनी शहादत के स्थान से नहीं हटाया और उन्हे दूसरे शहीदो के पास लेकर नही गए।
अब्दुल रज़्ज़ाक़ मुक़र्रम जैसे कुछ लेखकों का मानना है कि इमाम हुसैन (अ) का हज़रत अब्बास के पार्थिव शरीर को ख़ैमे में नहीं ले जाने का कारण खुद हज़रत अब्बास का अनुरोध या हज़रत अब्बास के पार्थिव शरीर पर घावो के कारण स्थानांतरित करने में इमाम की अक्षमता नहीं थी। बल्कि इमाम हुसैन बिन अली (अ) चाहते थे कि उनके भाई का अलग हरम हो।[१४५] मुक़र्रम ने अपने इस बयान के लिए किसी दस्तावेज का उल्लेख नहीं किया है।
मक़ाम कफ अल-अब्बास
- मुख्य लेखः मक़ाम कफ़ अल-अब्बास
मक़ाम कफ़ अल-अब्बास के नाम से उन दो जगहों का नाम है जहां कहा जाता है कि हजरत अब्बास (अ) के हाथ उनके शरीर से अलग होकर ज़मीन पर गिर गए थे। ये दो स्थान हज़रत अब्बास (अ) के हरम के बाहर उत्तर-पूर्व और दक्षिण-पूर्व में और बाज़ार जैसी दो गलियों के प्रवेश द्वार पर स्थित हैं। इन दोनों जगहों पर प्रतीक बनाए गए हैं और ज़ाएरीन वहां जाते हैं।[१४६]
क़दम गाह, सक़्क़ा खाने और सक़्का निफ़ार
- क़दम गाहः हज़रत अब्बास के नाम पर ईरान में कई क़दम गाह हैं कि लोग हमेशा इन जगहों पर अपनी मन्नत मांगने और अपनी ज़रूरतें पूरी करने और अपनी धार्मिक गतिविधियों को पूरा करने के लिए जाते हैं।[१४७] इन क़दमगाहो मे सिमनान, हुवैज़ा, बुशहर और शिराज का उल्लेखित है।[१४८] खलखली के अनुसार, लार शहर मे एक वेधशाला है जहां उस क्षेत्र के सुन्नी हर मंगलवार को अपने परिवारों के साथ अपनी मन्नतें पूरी होने पर नज़र और नियाज़ करते हैं।[१४९]
- सक़्क़ा खाना (प्याऊ): यह शियों के धार्मिक प्रतीकों में से एक है। रास्ता चलने वाले मुसाफ़िरो को पानी पिलाने और सवाब हासिल करने के उद्देश्य से सार्वजनिक सड़को पर छोटे छोटे प्याऊ बनाए जाते है। शिया संस्कृति में प्याऊ हज़रत अब्बास (अ) का कर्बला की घटना में पानी पिलाने की याद मे बनाए जाते है, और इमाम हुसैन (अ) तथा हज़रत अब्बास (अ) के नाम से सजाए जाते है।[१५०] कुछ लोग मन्नते पूरी होने के लिए वहां मोमबत्तियां जलाते हैं या धागे बांधते है।[१५१] दुनिया के विभिन्न हिस्सों में हज़रत अब्बास (अ) के नाम पर बहुत से प्याऊ बनाए गए हैं।[१५२]
- सक़्क़ा निफार: या साक़ी निफ़ार या सक़्का तालार ईरान के माज़ंदरान क्षेत्र में पारंपरिक इमारतों का नाम है, जिनका उपयोग धार्मिक शोक समारोह आयोजित करने और नज़रो नियाज़ के लिए किया जाता है। ये इमारतें आम तौर पर एक धार्मिक स्थान, जैसे कि मस्जिद, तकिया अथवा इमाम बारगाह के आसपास बनाई जाती हैं। सक़्क़ा निफ़ार का श्रेय हज़रत अब्बास (अ) को दिया जाता है और कुछ लोग इन्हें "अबुल फ़ज़ली" कहते हैं।[१५३]
हज़रत अब्बास (अ) से मंसूब तस्वीर
कुछ स्थानो पर कुछ ऐसी पेंटिग है जो हज़रत अब्बास बिन अली (अ) की तस्वीर से प्रसिद्ध है। इन तस्वीरो का इस्तेमाल धार्मिक प्रतिनिधिमंडलों और तकियों में भी किया जाता है। शिया मराज ए तक़लीद के अनुसार इन तस्वीरो को हज़रत अब्बास (अ) से विशिष्ठ करना आसानी से स्वीकार नहीं किया जा सकता है। हालांकि उन्होंने कहा कि इन छवियों को इमाम बारगाहो और तकियों में स्थापित करने मे अगर हराम या अपमानजनक कार्य का कारण नहीं बनती है तो कोई शरई समस्या नहीं है, लेकिन उन्होंने इन तस्वीरो से बचने की सिफ़ारिश की है।[१५४]
हाल के वर्षों में, आशूरा घटना पर केंद्रित दो फिल्में बनाई गईं, जिन्हें मुख्तार नामा और रस्ताखीज़ कहा जाता है, मुख्तारनामे में मराज ए तक़लीद की आपत्ति जताने के कारण हज़रत अब्बास (अ) का चेहरा नही दिखाया गया।[१५५] और रस्ताखीज़ फ़िल्म को संशोधन के बावजूद रिलीज़ होने की अनुमति नही दी गई।[१५६][नोट ३]
मोनोग्राफ़ी
हज़रत अब्बास (अ) के संबंध मे अब तक बहुत सी किताबो की रचना हुई है जिनमे से फ़ारसी भाषा मे कुछ निम्मलिखित हैः
- जिंदागानी क़मर ए बनी हाशिमः ज़ह़ूर इश्क आला, हुसैन बद्रुद्दीन, तेहारन, महताब, 1382 शम्सी
- साक़ी ए ख़ूबानः अबुल फ़ज़्लिल अब्बास के जीवन की व्याख्या पर आधारित मुहम्मद चक़ाई अराकी द्वारा लिखित है और इस किताब को नश्रे मुर्तज़ा क़ुम ने 1376 शम्सी मे प्रकाशित किया है।
- जिंगदानी ए हज़रत अबुल फ़ज़्लिल अब्बास अलमदारे कर्बलाः रज़ा दश्ती द्वारा रचित किताब को मोअस्सेसा पाज़ीना तेहरान ने 1382 शम्सी मे प्रकाशित किया।
- चेहरा ए दरखशान कमर ए बनी हाशिम अबुल फ़ज़्लिल अब्बासः अली रब्बानी ख़लख़ाली ने लिखा और मकतबतुल हुसैन ने 1378 शम्सी मे क़ुम से प्रकाशित किया।
- अबुल क़ुर्बाः अबुल फ़ज़्लिल अब्बास (अ) की जीवन व्याख्या पर आधारित है इस किताब के लेखक मजीद ज़जाजी मुजर्रद काशानी है इस किताब को सुबहान ने 1379 शम्सी मे तेहरान से 3 खंडो मे प्रकाशित किया।
- अब्बास (अ) सिपह सालार कर्बलाः अब्बास शबगाही शबिस्तरी द्वारा जीवन परिचय पर आधारित किताब है जोकि 1381 शम्सी मे हुरूफ़िया तेहरान से प्रकाशित हुई।
- अब्बास बिन अली (अ) जवाद मोहद्दीसी, मजमूआ ए आशनाई बा उस्वेहा का नौवा अंक है, जोकि इंतेशाराते बोस्तान किताब द्वारा 8 वां संस्करण प्रकाशित किया गया।[१५७]
- अबुल फ़ज़्लिल अब्बास, पिज़ूहिशी दर सीरा ए वा सीमा ए अब्बास बिन अली (अ), जवाद ख़ुर्रमयान द्वारा लिखित और 1386 शम्सी मे पहला संस्करण नश्रे राहे सब्ज द्वारा प्रकाशित है।
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फ़ुटनोट
- ↑ बग़दादी, अल-अब्बास, 1433 हिजरी, पेज 73-75; महमूदी, माहे बी ग़ुरूब, 1379 शम्सी, पेज 38
- ↑ चास्मकी, अब्बास जवान मर्द दिलेर, पेज 373
- ↑ महदवी, आलामे इस्फ़हान, 1386 शम्सी, भाग 1, पेज 110
- ↑ अमीन, आयान उश-शिया, 1406 हिजरी, भाग 7, पेज 429; क़ुमी, नफ़्सुल महमूम, 1376 शम्सी, पेज 285
- ↑ ख़ुर्रमयान, अब्ल फ़ज्लिल अब्बास, 1386 शम्सी, पेज 25
- ↑ बुख़ारी, सिर रुस सिलसिलातुल अलावीया, 1382 हिजरी, पेज 88; इब्ने अंबा, उम्दातुत तालिब, 1381 हिजरी, पेज 357; मुज़फ़्फ़र, मोसूआतो बतलिल अलक़मी, 1429 हिजरी, भाग 1, पेज 105
- ↑ मूसवी मुक़र्रम, अल-अब्बास (अ), 1427 हिजरी, पेज 77; उर्दूबादी, हयाते अबिल फ़ज़्लिल अब्बास, 1436 हिजरी, पेज 52-53; ख़ुरासानी क़ाएनी बेरजुंदी, कितरीब उल अहमर, 1386 हिजरी, पेज 386
- ↑ अल-उर्दूबादी, हयाते अबिल फ़ज़्लिल अब्बास, 1436 हिजरी, पेज 52-53
- ↑ अबुल फरज इस्फ़हानी, मक़ातेलुत तालिबयीन, 1408 हिजरी, पेज 89; इब्ने नेमा ए हिल्ली, मुसीर उल-एहज़ान, 1380 शम्सी, पेज 254
- ↑ मुज़फ़्फ़र, मोसूअतो बत्लिल अलक़मी, 1429 हिजरी, भाग 2, पेज 12
- ↑ मूसवी मुक़र्रम, अल-अब्बास (अ), 1427 हिजरी, भाग 1, पेज 138
- ↑ बहिश्ती, क़हरमान अल-कमे, 1374 शम्सी, पेज 43; मुज़फ़्फ़र, मोसूआतो बत्लिल अलक़मी, 1429 हिजरी, भाग 2, पेज 12
- ↑ बलाज़ुरी, अंसाब उल-अशराफ़, 1394 हिजरी, भाग 2, पेज 191; तबरसी, आलाम उल वरा बेआलामुल हुदा, 1390 हिजरी, पेज 203; अबुल फरज अल-इस्फहानी, मक़ातेलुत तालिबयीन, 1357 हिजरी, पेज 55; बहिश्ती, क़हरमाने अलक़मे, 1374 हिजरी, पेज 43
- ↑ दहखुदा, लुग़त नामे दहख़ुदा, 1377 शम्सी, भाग 11, पेज 17497
- ↑ मुज़फ़्फ़र, मोसूअतो बतलिल अलक़मी, 1429 हिजरी, भाग 2, पेज 12
- ↑ दहखुदा, लुग़त नामे दहख़ुदा, 1377 शम्सी, भाग 11, पेज 17037
- ↑ देखेः मुज़फ़्फ़र, मोसूअतो बत्लिल अलक़मी, 1429 हिजरी, भाग 2, पेज 14-20; बहिश्ती, क़हरमान अल-कमे, 1374 शम्सी, पेज 45-50; हादी मनिश, कुन्नियेहा वा लक़ब्हा ए हज़रत अब्बास (अ), पेज 106
- ↑ अबुल फ़रज अल-इस्फ़हानी, मक़ातेलुत तालिबयीन, 1408 हिजरी, पेज 90; इब्ने निमाए हिल्ली, मसीर उल-एहज़ान, 1380 शम्सी, पेज 254
- ↑ नासेरी, मौलिद अल-अब्बास बिन अली (अ), 1372 शम्सी, पेज 30
- ↑ बग़दादी, अल-अब्बास, 1433 हिजरी, पेज 20
- ↑ बहिश्ती, क़हरमान अल-कमे, 1374 शम्सी, पेज 48; शरीफ़ क़रशी, जिंदगानी हज़रत अब्बास, 1386 शम्सी, पेज 36-37
- ↑ मुज़फ़्फ़र, मोसूअतो बत्लिल अलक़मी, 1429 हिजरी, भाग 2, पेज 14; अमीन, आयान उश-शिया, 1406 हिजरी, भाग 7, पेज 429; तबरी, तारीख उल उमम वल मुलूक, 1967 ई, भाग 5, पेज 412-413; अबुल फ़रज अल-इस्फ़हानी, मक़ातेलुत तालिबयीन, 1408 हिजरी, पेज 117-118
- ↑ ताअमा, तारीख मरक़दिल हुसैन वल अब्बास, 1416 हिजरी, पेज 238
- ↑ क़ुमी, नफ़्सुल महमूम, अल-मकतब अल-हैदरी, पेज 304
- ↑ मुज़फ़्फ़र, मोसूअतो बतलिल अलक़मी, 1429 हिजरी, भाग 2, पेज 108-109
- ↑ इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब आले अबी तालिब, मतबआ अल-इल्मीया, भाग 4, पेज 108; अल्लामा मजलिसी, बिहार उल-अनवार, 1403 हिजरी, भाग 45, पेज 40
- ↑ हज़रत अबुल फ़ज़्लिल अब्बास अलैहिस सलाम काबा ए औलिया
- ↑ बगदादी, अल-अब्बास, 1433 हिजरी, पेज 73-75; महमूदी, माहे बी ग़ुरूब, 1379 शम्सी, पेज 38
- ↑ मूसवी मुकर्रम, अल-अब्बास (अ), 1435 हिजरी, पेज 247-251
- ↑ बगदादी, अल-अब्बास, 1433 हिजरी, पेज 74
- ↑ उर्दुबादी, हयाते अबिल फ़ज़्ललिल अब्बास, 1436 हिजरी, पेज 61; महमूदी, माहे बी ग़ुरूब, 1379 शम्सी, पेज 31
- ↑ महमूदी, माहे बी ग़ुरूब, 1379 शम्सी, पेज 31 और 50
- ↑ नासेरी, मौलिद अल-अब्बास बिन अली (अ), 1372 शम्सी, पेज 62; तमआ, तारीख मरक़दिल हुसैन वल अब्बास, 1416 हिजरी, पेज 242
- ↑ ज़ुजाजी काशानी, सक़्काए कर्बला, 1379 शम्सी, पेज 89-90; अमीन, आयान उश-शिया, 1406 हिजरी, भाग 7, पेज 429
- ↑ उर्दुबादी, हयाते अबिल फ़ज़्ललिल अब्बास, 1436 हिजरी, पेज 64
- ↑ कलबासी, अल-खसाएसुल अब्बासीया, 1420 हिजरी, पेज 64-71
- ↑ देखेः नासेरी, मौलिद अल-अब्बास बिन अली (अ), 1372 शम्सी, पेज 61-62; ख़लख़ाली, चेहरा ए दरख़शाने क़मरे बनी हाशिम, 1378 शम्सी, पेज 140
- ↑ ख़रमियान, अबुल फ़ज़्लिल अब्बास, 1386, पेज 45
- ↑ ज़ुबैरी, नसबे क़ुरैश, 1953 ई, भाग 1, पेज 79; ज़ुजाजी काशानी, सक़्काए कर्बला, 1379 शम्सी, पेज 98
- ↑ देखेः बग़दादी, अल-महबर, दार उल आफ़ाक़ उल-जदीदा, पेज 441; तिल्मसानी, अल-जोहरा, अनसारियान, पेज 59
- ↑ देखेः इब्ने सूफ़ी, अल-मज्दी, 1422 हिजरी, पेज 436
- ↑ बगदादी, बग़दादी, अल-महबर, दार उल आफ़ाक़ उल-जदीदा, पेज 440-441
- ↑ इब्ने सूफ़ी, अल-मज्दी, 1422 हिजरी, पेज 436
- ↑ बग़दादी, अल-महबर, दार उल आफ़ाक़ उल-जदीदा, पेज 441
- ↑ मुज़फ़्फ़र, मोसूअतो बतलिल अलक़मी, 1429 हिजरी, भाग 3, पेज 429
- ↑ रब्बानी ख़लख़ाली, चेहरा ए दरखशाने कमरे बनी हाशिम, 1378 शम्सी, भाग 2, पेज 123
- ↑ रब्बानी ख़लख़ाली, चेहरा ए दरखशाने कमरे बनी हाशिम, 1378 शम्सी, भाग 2, पेज 118 महमूदी, माहे बी ग़ुरूब, 1379 शम्सी, पेज 89
- ↑ रब्बानी ख़लख़ाली, चेहरा ए दरखशाने कमरे बनी हाशिम, 1378 शम्सी, भाग 2, पेज 118
- ↑ रब्बानी ख़लख़ाली, चेहरा ए दरखशाने कमरे बनी हाशिम, 1378 शम्सी, भाग 2, पेज 126
- ↑ हाएरी माज़ंदरानी, मआलिउस सिब्तैन, 1412 हिजरी, भाग 2, पेज 437; मूसवी मुक़र्रम, अल-अब्बास (अ), 1427 हिजरी, पेज; 242 ख़ुरासानी क़ाऐनी बेरजुंदी, किबरीत उल अहमर, 1386 हिजरी, पेज 385
- ↑ मूसवी मुक़र्रम, अल-अब्बास (अ), 1427 हिजरी, पेज 242; ख़ुरासानी क़ाऐनी बेरजुंदी, किबरीत उल अहमर, 1386 हिजरी, पेज 385
- ↑ मूसवी मुक़र्रम, अल-अब्बास (अ), 1427 हिजरी, पेज 242; ख़ुरासानी क़ाऐनी बेरजुंदी, किबरीत उल अहमर, 1386 हिजरी, पेज 385
- ↑ बररसी इद्दीआ ए हुजूर हज़रत अबुल फ़ज्लिल अब्बास दर सिफ़्फ़ीन, साइट हौज़ा
- ↑ उर्दूबादी, हयात अबिल फज़्लिल अब्बास, 1436 हिजरी, पेज 55
- ↑ शरीफ़ क़रशी, जिंदगानी ए हज़रत अब्ल फज्लिल अब्बास, 1386 शम्सी, पेज 124
- ↑ बगदादी, अल-अब्बास, 1433 हिजरी, पेज 73-75; देखेः मुज़फ़्फ़र, मोसूआतो बतलिल अल-क़मी, 1429 हिजरी, भग 1,2 और3; मूसवी मुक़र्रम, अल-अब्बास (अ), 1427 हिजरी, पेज 242; ख़ुरासानी क़ाऐनी बेरजुंदी, किबरीत उल अहमर, 1386 हिजरी; ताअमा, तारीखे मरक़दिल हुसैन वल अब्बास, 1416 हिजरी; इब्ने ज़ौजी, तज़्करतुल ख़वास, 1418 हिजरी; उर्दूबादी, मौसूअसतुल अल्लामा अल-उर्दूबादी, 1436 हिजरी; शरीफ़ क़रशी, जिंदगानी ए हजरत अब्ल फ़ज्लिल अब्बास, 1386 शम्सी; अल-ख़ुवारज़्मी, मक़तालुल हुसैन, 1423 हिजरी, भाग 1; इब्ने आसम अल-कूफ़ी, अल-फ़ुतूह, 1411 हिजरी, भाग 4,5
- ↑ यूनिसयान, खतीबे काबा, 1386 शम्सी, पेज 46
- ↑ यूनिसयान, खतीबे काबा, 1386 शम्सी, पेज 46
- ↑ यूनिसयान, खतीबे काबा, 1386 शम्सी, पेज 46-48
- ↑ जहान बख्श, गंजी नौयाफ्ते या वहमी बर बाफते, पेज 28-56
- ↑ बलाज़ुरी, अंसाबुल अशराफ, पेज 1417 हिजरी, भाग 3, पेज 187; अबुल फ़रज अल-इस्फहानी, मकातिल अलतालिबयीन, 1408 हिजरी, पेज 90; मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, भाग 2, पेज 95; बुखारी, सिर्रुस सिलसिलातुल अलावीया, 1382 हिजरी, पेज 88-89
- ↑ कुमी, नफ्सुल महमूम, अल-मकतबा अल-हैदरिया, पेज 306
- ↑ अबू मखनफ, मकतलुल हुसैन, 1364 शम्सी, पेज 98-99; तिबरी, तारीखे तिबरी, मोअस्सेसा ए अल-आलमी, भग 4, पेज 312; अबुल फरज, मकातिल अलतालिबयीन, 1970 ई, पेज 117; ख़ुवारिज़्मी, मक़्तलुल हुसैन, 1418 हिजरी, भाग 1, पेज 346-347; दैनूरी, अल-अख्बार अलतुआल, 1960 ई, पेज 255; इब्ने आसम, अल-फुतूह, 1411 हिजरी, भाग 5, पेज 92
- ↑ अबू मखनफ, मकतलुल हुसैन, पेज 103-104; तिबरी, तारीखे तिबरी, मोअस्सेसा अल-आलमी, भाग 4, पेज 314; इब्ने आसम, अल-फ़ुतूह, 1411 हिजरी, भाग 5, पेज 94; इब्ने असीर, आलकामिल फी तारीख, 1399 हिजरी, भाग 4, पेज 56; इब्ने कसीर, अल-बिदाया वन-निहाया, 1408 हिजरी, भाग 8, पेज 190
- ↑ अबू मख़नफ़, मक़तलुल हुसैन, पेज 104; तबरी, तारीखे तबरी, मोअस्सेसा अल-आलमी, भगा 4, पेज 315; शेख मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, भाग 2, पेज 89; तबरसी, ऐलाम उल-वरा, दार उल कुतुब उल-इस्लामीया, भाग 1, पेज 454; दमिश्की, जवाहेरूल मतालिब, 1416 हिजरी, भाग 2, पेज 281
- ↑ इब्ने आसिम, अल-फ़ुतूह, 1411 हिजरी, भाग 5, पेज 94
- ↑ इब्ने कसीर, अल-बिदाया वन-निहाया, 1408 हिजरी, भाग 8, पेज 190
- ↑ सालेही हाजीयाबादी, शोहदा ए नैनवा, 1386 शम्सी, पेज 40
- ↑ अबू मखनफ, मकतलुल हुसैन, 1364 शम्सी, पेज 175; अबू मख़नफ, वक़्अतुत तफ़, 1367 शम्सी, पेज 245; तबरी, तारीखे तबरी, मोअस्सेसा अल-आलमी, भाग 2, पेज 342; इब्ने असीर, अल-कामिल फ़ी तारीख़, 1399 हिजरी, भाग 4, पेज 76
- ↑ अबू मख़नफ, मकतलुल हुसैन, पेज 174-175; तबरी, तारीखे तबरी, मोअस्सेसा अल-आलमी, भाग 4, पेज 342; इब्ने असीर, अल-कामिल फ़ी तारीख, 1399 हिजरी, भाग 4, पेज 76
- ↑ मूसवी मुकर्रम, अल-अब्बास (अ), 1427 हिजरी, पेज 184-186; शरीफ़ क़रशी, जिंदगानी हज़रत अब्बास, 1386 शम्सी, पेज 221-222
- ↑ देखः सालेही हाजीयाबादी, शोहदा ए नैनवा, 1396 शम्सी, पेज 41-45
- ↑ शेख मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, भाग 2, पेज 109; तबरसी, ऐलाम उल वरा, उल कुतुबुल इस्लामीया, पेज 248; इब्ने नेमा, मसीर उल अहज़ान, 1369 हिजरी, पेज 5; इब्ने हातिम, अल-दुर्रुन नज़ीम, अल-नश्रुल इस्लामी, पेज 556
- ↑ उर्दूबादी, मोसूआतुल अल्लामा अल-उर्दूबादी, 1436 हिजरी, भाग 9, पेज 106
- ↑ देखेः कल्बासी, ख़साइसे अब्बासीया, 1387 शम्सी, पेज 181-188; ख़ुर्रमयान, अबुल फ़ज़्लिल अब्बास, 1386 शम्सी, पेज 106-112; उर्दूबादी, मोसूआतुल अल्लामा अल-उर्दाबादी, 1436 हिजरी, भाग 9, पेज 219-220; मुज़फ़्फ़र, मोसूआ बतलिल अलकमी, 1429 हिजरी, भाग 3, पेज 175-176
- ↑ ख़्वारिज़्मी, मक़तलुल हुसैन (अ), 1374 शम्सी, भाग2, पजे 34; इब्ने आसिम अल-कूफ़ी, अल-फ़ुतूह, 1411 हिजरी, भाग 5, पेज 114; मुज़फ़्फ़र, मोसूअतो बत्लिल अलक़मी, 1429 हिजरी, भाग 3, पेज 175-176
- ↑ क़ुमी, नफ़सुल महमूम, अल-मकतबा अल-हैदरीया, भाग 1, पेज 304
- ↑ मुज़फ़्फ़र, मोसूअतो बत्लिल अलक़मी, 1429 हिजरी, भाग 3, पेज 175 कल्बासी, ख़साइसे अब्बासीया, 1387 शम्सी, पेज 187; उर्दूबादी, मोसूआतुल अल्लामा अल-उर्दाबादी, 1436 हिजरी, भाग 9, पेज 220; ख़ुर्रमयान, अबुल फ़ज़्लिल अब्बास, 1386 शम्सी, पेज 110
- ↑ मुज़फ़्फ़र, मोसूअतो बत्लिल अलक़मी, 1429 हिजरी, भाग 3, पेज 172
- ↑ देखेः ख़्वारिज़्मी, मक़तलुल हुसैन (अ), 1423 हिजरी, भाग 1, पेज 345-358; इब्ने आसिम कूफी, अल-फ़ुतूह, 1411 हिजरी, भाग 5, पेज 84-120; सिब्ते इब्ने जोज़ी, तज़्किरतुल ख़्वास, 1426 हिजरी, भाग 2, पेज 161; तबरसी, आलाम उल वरा, 1417 हिजरी, भाग 1, पजे 457 बग़दादी, अल-अब्बास, 1433 हिजरी, पेज 73-75
- ↑ उर्दूबादी, हयात ए अबिल फ़ज़्लिल अबाबस, 1436 हिजरी, पेज 192-194
- ↑ शेख मुफ़ीद, अल-इरशाद, 141 हिजरी, भाग 2, पेज 109-110
- ↑ देखेः अबू मखनफ़, वक़्अतुत तफ, 1433 हिजरी, पेज 245
- ↑ सय्यद इब्ने ताऊस, इक़बाल उल-आमाल, 1409 हिजरी, भाग 2, पेज 574
- ↑ देखेः इबने शहर आशोब, मनाक़िब आले अबि तालिब, 1376 हिजरी, भाग 3 , पेज 256; मुज़फ़्फ़र, मोसूआतो बत्लिल अल-कमी, 1429 हिजरी, भाग 3, पेज 174-17; उर्दूबादी, हयात अबिल फ़ज्लिल अब्बास, 1436 हिजरी, पेज 219-220; ख़ुर्रमयान, अबुल फ़ज्लिल अब्बास, 1386 शम्सी, पेज 106-114
- ↑ ख़्वारिज़मी, मकतालुल हुसैन (अ), 174 शम्सी, भाग 2, पेज 34; मुज़फ़्फ़र, मोसूआतो बत्लिल अल-कमी, 1429 हिजरी, भाग 3, पेज 178; इब्ने आसिम अल-कूफी, अल-फुतूह, 1411 हिजरी, भाग 5, पेज 98; ख़ुर्रमयान, अबूल फज़्लिल अब्बास, 1386 शम्सी, पेज 113
- ↑ ख्वारिजमी, मक़तलुल हुसैन (अ), 1374 शम्सी, भाग 2, पेज 34
- ↑ तुरैही, अलमुंतख़ब, 2003 ई, पेज 307
- ↑ मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 45, पेज 41
- ↑ उर्दूबादी, हयात अबलि फज़्लिल अब्बास, 1436 हिजरी, पेज 222-225
- ↑ आया हिकायते ईसार हज़रत अबुल फज़लिल (अ) रीशा ए तारीखी नादारद, साइट पादगारिस्तान, मुरूर 8 मुर्दाद 1401 शम्सी
- ↑ मुज़फ़्फ़र, मोसूआतो बत्लिल अल-क़मी, 1429 हिजरी, भाग 2, पेज 11-12; कल्बासी, खसाएस उल अब्बासीया, 1387 शम्सी, पेज 107,108,123 और 203; मूसवी, मुकर्रम, अल-अब्बास (अ), 1427 हिजरी, पेज 130
- ↑ मूसावी मुकर्रम, अल-अब्बास, 1427 हिजरी, पेज 158
- ↑ अल-नक़दी, जाफ़र, अल-अनवार उल अलावीया
- ↑ देखेः कल्बासी, खसाएस उल अब्बासीया, 1387 शम्सी, पेज 123; बहिश्ती, क़हरमान अलक़मा, 1374 शम्सी, पेज 103-107
- ↑ अल्लामा मजलिसी, बिहार उल अनवार, भाग 46, पेज 212
- ↑ मुज़फ़्फ़र, मोसूअतो बत्लिल अल-कमी, 1429 हिजरी, भाग 2, पेज 355-356; महमूदी, माहे बी ग़ुरूब, 1379 शम्सी, पेज 97
- ↑ मुज़फ़्फ़र, मोसूअतो बत्लिल अल-कमी, 1429 हिजरी, भाग 2, पेज 355-356; बग़दादी, अल-अब्बास, 1433 हिजरी, पेज 71-73
- ↑ कल्बासी, खसाएस उल अब्बासीया, 1387 शम्सी, पेज 107-109; मुज़फ़्फ़र, मोसूअतो बत्लिल अल-कमी, 1429 हिजरी, भाग 2, पेज 94
- ↑ समावी, अब्सार उल ऐन फ़ी अंसारिल हुसैन, भाग 1, पेज 63
- ↑ ताअमा, तारीखे मरक़द अल-हुसैन वल अब्बास, 1416 हिजरी, पेज 236; मुज़फ़्फ़र, मोसूअतो बत्लिल अल-कमी, 1429 हिजरी, भाग 2, पेज 94
- ↑ कल्बासी, खसाएस उल अब्बासीया, 1387 शम्सी, पेज 109
- ↑ ताअमा, तारीखे मरक़द अल-हुसैन वल अब्बास, 1416 हिजरी, पेज 236
- ↑ ख़ुर्रमयान, अबुल फ़ज़्लिल अब्बास, 1386 शम्सी, पेज 159
- ↑ देखेः ख़ुर्रमयान, अबुल फ़ज़्लिल अब्बास, 1386 शम्सी, पेज 123-126
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- ↑ मुज़फ़्फ़र, मौसूअतो बत्लिल अलक़मी, 1429 हिजरी, भाग 3, पेज 178; इब्ने आसिम अल-कूफी, अल-फ़ुतूह, 1411 हिजरी, भाग 5, पेज 98; ख़्वारिज़मी, मक़तलुल हुसैन, 1374 शम्सी, भाग 2, पेज 34
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- ↑ बगदादी, अल-अब्बास, 1433 हिजरी, पेज 151; कलबासी, खसाएसुल अब्बसीया, 1387 शम्सी, पेज 213-214
- ↑ रब्बानी ख़लखाली, चेहरा ए दरख़शान क़मरे बनी हाशिम, 1386 शम्सी, भाग 2, पेज 267; कलबासी, खसाएसुल अब्बसीया, 1387 शम्सी, पेज 214
- ↑ मज़ाहेरी, फ़रहंगे सोगे शीई, 1395 शम्सी, पेज 110-111
- ↑ खुदा तू ए ईन मद्दाहीहा नीस्त, रोज़नामा सुबह नौ
- ↑ यौमुल अब्बास दर ज़ंजान, बुज़ुर्गतरीन मेआदगाह आशिक़ाने हुसैनी दर किश्वर, बाशगाह खबरनिगारान जवान
- ↑ यौमुल अब्बास दर ज़ंजान, बुज़ुर्गतरीन मेआदगाह आशिक़ाने हुसैनी दर किश्वर, बाशगाह खबरनिगारान जवान
- ↑ रब्बानी ख़लख़ाली, चेहरा ए दरखशान क़मरे बनी हाशिम, 1378 शम्सी, भाग 2, पेज 326
- ↑ मज़ाहेरी, फ़रहंगे सोगे शीई, 1395 शम्सी, पेज 354-356; रब्बानी ख़लख़ाली, चेहरा ए दरखशान क़मरे बनी हाशिम, 1378 शम्सी, भाग 3, पेज 182-213
- ↑ रब्बानी ख़लख़ाली, चेहरा ए दरखशान क़मरे बनी हाशिम, 1378 शम्सी, भाग 3, पेज 182-213
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- ↑ इज़्हाराते अहमद रज़ा दरवेश पस अज़ तवक़्क़ुफ़ अकरान रस्ताख़ीज़, खबर गुजारी ए इस्ना
- ↑ अब्बास बिन अली अलैहेमस सलाम, 9 वां शुमारा अज़ मजमू आए आशनाई बा उस्वाहा, पातूक किताबे फ़र्दा
नोट
- ↑ و من واساه لا يثنيه شيء * و جاد له على عطش بماء* वा मिन वासाहो ला यस्नीहे शैउन *वा जादा लहू अली अत्शुन बेमाइन * अल-इस्फहानी, मक़ातिलुत तालिबयीन, भाग 1, पेज 89
- ↑ السَّلَامُ عَلَی الْعَبَّاسِ بْنِ أَمِیرِ الْمُؤْمِنِینَ، الْمِوَاسِی أَخَاهُ بِنَفْسِهِ، الْآخِذِ لِغَدِهِ مِنْ أَمْسِهِ، الْفَادِی لَهُ الْوَاقِی، السَّاعِی إِلَیهِ بِمَائِهِ الْمَقْطُوعَهِ؛ अस्सलामो अलल अब्बास इब्ने अमीरिल मोमिनीन, अलमिवासी अख़ाहो बेनफ्सी, अल-आख़ेजे लेगदेही मिन अम्सेही, अल-फ़ादी लहूल वाक़ी, अस-साई इलैहे बेमाएहिल मक़तूएहि, (अनुवादः अब्बास बिन अमीरुल मोमिनीन को सलाम, जिन्होंने अपने भाई की अपने जीवन के साथ मदद की, और उनके लिए प्राण दिए, वो अपने भाई के लिए एक गार्ड और समर्पित सैनिक थे, प्यासे होने के बावजूद, उन्होंने हुसैन के पास पानी लाने की कोशिश की, जबकि उनके दोनों हाथ कट गए थे।
- ↑ इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, 9 साल बाद रस्ताखीज़ फिल्म को 16 इस्फ़ंद 1400 अर्थात 4 शाबान 1443 हिजरी को रिलीज़ होने की अनुमति मिली।
स्रोत
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- महमूदी, सय्यद मुहम्मद हुसैन, दर किनारे अलकमा करामातलि अब्बासीया, क़ुम, इंतेशारात नसाहे, 1379 शम्सी
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- मुज़फ़्फर, अब्दुल वाहिद बिन अहमद, मोसूआतो बत्लिल अलक़मी, नजफ, मतबा अल-हैदरीया, 1429 हिजरी
- मूसवी मुकर्रम, अल-सय्यद अब्दुर रज्जाक, अल-अब्बास (अ), शोधः समाहतुश शेख मुहम्मद अल-हस्सून, नजफ, मकतबातुर रौज़ातुल अब्बासीया, 1427 हिजरी
- मूसवी मुकर्रम, अलयसय्यद अब्दुर रज़्ज़ाक़, अल-अब्बास इब्ने अल-इमाम अमीर अल-मोमिनी अली बिन अबी तालिब, 1435 हिजरी
- महदवी, सय्यद मुस्लेहुद्दीन, आलाम इस्फहान, शोधः गुलाम रज़ा नस्रुल्लाही, इस्फहान, साज़माने फ़रहंगी तफ़रीही शहरदारी इस्फहान, 1386 शम्सी
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- हादी मनिश, अबुल फ़ज़्ल, कुन्नीयेहा व लकबहाए हजरत अब्बास (अ),दर नश्रिया मुबल्लेगान, क्रमांक 106
- हादी मनिश, अबुल फ़ज़्ल, निगाही बे शख्सीयत वा अमलकर्द हज़रत अबाबस (अ) पीश अज़ वाकेया कर्बला, दर नश्रिया ए मुबल्लेगान, क्रमांक 58
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- खुदाई तू इन मद्दाहीहा नीस्त, रूज़नामा ए सुब्ह नौ
- यौमुल अब्बास दर ज़ंजान, बुजुर्गतरीन मीआदगाह आशेक़ान हुसैनी दर किश्वर, बाशगाह खबर निगारान जवान
- 18 दक़ीके अज़ मुख्तारनामा सांसुर शुद, वेबगाहे फरारू
- इज़्हाराते अहमद रज़ा दरवेश पस अज़ तवक़्क़ुफ़ इकरान रस्ताख़ीज़, खबर गुजारी ईस्ना
- अब्बास बिन अली अलैहेमस सलाम, नहूमीन शुमारा अज़ मजमूआ आशनाई बा उस्वेहा, पातूके किताब फ़रदा
- हरम हज़रत अबुल फज़्लिल अब्बास (अ), वेबगाह मरकज़ तालीमात इस्लामी वाशिंग्टन