बिश्र बिन ग़ालिब असदी

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बिश्र बिन ग़ालिब असदी (जीवित 66 हिजरी) शिया इमामों के साथियों में से एक और हदीस के वर्णनकर्ताओं (रावियों) में से एक थे। उन्होंने अपने भाई के साथ मिलकर इमाम हुसैन (अ.स.) से दुआ ए अरफ़ा की रिवायत की है। इसी तरह से उन्होने मक्का से इराक़ की इमाम हुसैन (अ) यात्रा के दौरान उनसे ज़ाते इर्क़ के पड़ाव पर उनसे मुलाक़ात की, और जब हुसैन बिन अली (अ.स.) ने इराक़ की स्थिति के बारे में पूछा, तो उन्होंने उत्तर दिया कि लोगों के दिल आपके साथ हैं, लेकिन उनकी तलवारें बनी उमय्या के साथ हैं।

वह आशूरा की घटना में उपस्थित नहीं थे, हालाँकि बाद में उन्होंने इमाम हुसैन (अ) के साथ न जाने पर खेद व्यक्त किया।

संक्षिप्त परिचय

बिश्र बिन ग़ालिब असदी कूफ़ी उपनाम अबू सादिक़ [१] पैगंबर (स) के साथियों में से एक, ग़ालिब बिन बिश्र असदी [२] का बेटे थे और उनका संबंध बनी असद जनजाति से था। [३] स्रोतों में उनके जन्म के समय और स्थान का उल्लेख नहीं है। [४]

अहमद बिन मुहम्मद बरक़ी (मृत्यु 280 हिजरी), एक शिया लेखक, बिश्र को पैगंबर (स) के सहाबियों में से एक मानते थे। [५] इसके अलावा, आयान अल-शिया में सय्यद मोहसिन अमीन (मृत्यु 1371 हिजरी) ने तबक़ात अल-कुबरा के लेखक इब्न साद के हवाले से बिश्र को उन सहाबियों में से एक माना है जो कूफ़ा की ओर हिजरत कर गये थे।। [६]

कुछ ऐतिहासिक स्रोतों में, बिश्र बिन ग़ालिब नाम के एक व्यक्ति का उल्लेख ख़वारिज विद्रोहियों के साथ युद्ध में हज्जाज बिन यूसुफ़ की सेना के कमांडरों में से एक के रूप में किया गया है। [७] जो इसी अभियान में 76 हिजरी में में मारा गया था। [८] रेजाल शास्त्र के स्रोतों में दो लोगों का उल्लेख है जिनका नाम बशीर बिन ग़ालिब असदी है। [९] और कोई कारण नहीं है कि यह व्यक्ति वही प्रसिद्ध व्यक्ति (बशीर बिन ग़ालिब के भाई) हों।

हदीस का वर्णनकर्ता

शिया लेखकों में से, अहमद बिन मुहम्मद बरक़ी (मृत्यु 280 हिजरी) और शेख़ तूसी (मृत्यु 460 हिजरी) ने बिश्र बिन ग़ालिब को इमामों (अ) के सहाबियों और कथावाचकों (रावियों) में से एक माना है, लेकिन उन्होंने उनके जीवन बारे में कोई जानकारी नहीं दी है। [१०] शेख़ तूसी ने केवल उनके असदी होने और कूफ़ी होने को संदर्भित करते हुए उन्हें हदीस के वर्णनकर्ताओं में से एक और इमाम हुसैन (अ.स.) [११] और इमाम सज्जाद (अ) के साथियों में से एक माना है। [१२] बरक़ी ने भी इमाम हसन (अ), इमाम हुसैन (अ) और इमाम सज्जाद (अ) के साथियों के बीच उनके नाम का उल्लेख करने के अलावा, उन्हे इमाम अली (अ) के उन साथियों में से एक भी माना है जो कूफ़ा में रहते थे। [१३]

विभिन्न क्षेत्रों में हदीस और ग़ैर-हदीस पुस्तकों में बिश्र बिन ग़ालिब से बहुत सी हदीसें सुनाई गई हैं, जिनमें अहले-बैत (अ) से मुहब्बत, [१४] तफ़सीर, [१५] क़ुरआन पढ़ने का सवाब [१६] इमाम महदी (अ) के ज़हूर की हदीसें [१७] शामिल है। उन्होने अपने भाई बशीर बिन ग़ालिब के साथ, इमाम हुसैन (अ.स.) की दुआ ए अरफ़ा को नक़्ल किया है। [१८]

धर्म और विश्वसनीयता

कुछ शोधकर्ताओं के अनुसार, रेजाल शास्त्रियों के बीच बिश्र बिन ग़ालिब के धर्म के बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं है। [१९] हालाँकि, शिया रेजाल शास्त्रिय विद्वान अब्दुल्लाह ममक़ानी (मृत्यु 1351 हिजरी) ने बिश्र की अज्ञात स्थिति (मजहूलुल हाल) का ज़िक्र करते हुए, उन्हें एक इमामिया धर्म का अनुयाई माना है। [२०] सय्यद मोहसिन अमीन ने चौथी शताब्दी में एक शिया विद्वान मुहम्मद बिन उमर कश्शी पर भरोसा करते हुए, उन्हें विद्वान, गुणी और जलील अल-कद्र कहा है। लेकिन उन्होंने आगे कहा है कि यह बात कश्शी की रेजाल की किताब में नहीं है और मूल रूप से, कश्शी जैसे किसी मुतक़द्दिम विद्वान से किसी कथावाचक (रावी) की मान्यता के बारे में ऐसा साहित्य जारी नहीं हो सकता है, और इस प्रकार के वाक्य बाद (मुतअख़्ख़िर) के विद्वानों से संबंधित हैं। [२१] हालाँकि, दुआ ए अरफ़ा की प्रसिद्धि का जिक्र करते हुए कहा जाता है कि वह एक विश्वसनीय कथावाचक हैं। [२२]

इमाम हुसैन (अ) से मुलाक़ात

बिश्र बिन ग़ालिब की मुलाक़ात इमाम हुसैन (अ.स.) से तब हुई जब वह मक्का छोड़कर इराक़ की ओर जा रहे थे और ज़ात इर्क़ के क्षेत्र में उन्होने पड़ाव डाला। [२३] हुसैन बिन अली (अ.स.) ने उनसे इराक़ की स्थिति के बारे में पूछा। उन्होंने जवाब दिया कि उनके दिल आपके साथ हैं, लेकिन उनकी तलवारें बनी उमय्या के साथ हैं। इमाम ने उनके शब्दों की पुष्टि की और कहा कि ईश्वर जो चाहता है वही करता है। [२४]

ज़ात इर्क़ में इमाम हुसैन की बिश्र बिन ग़ालिब से बातचीत
इमाम हुसैन (अ): आपने कूफ़ा के लोगों को कैसे देखा?
बिश्र बिन ग़ालिब: लोगों के दिल आपके साथ हैं, लेकिन उनकी तलवारें बनी उमैया के साथ हैं।
आप सही कह रहे हैं ऐ असदी भाई! ईश्वर जो चाहता है वही करता है और जो चाहता है आदेश देता है। [२५] उनसे पहले, फ़रज़्दक़ (अरब के प्रसिद्ध कवि) ने सफ़ा 
के पड़ाव में इमाम (अ.स.) से इसी से मिलती जुलती बात कही थी।

बिश्र बिन ग़ालिब ने इमाम हुसैन (अ.स.) और इब्ने ज़ुबैर के बीच की एक बातचीत भी सुनाई है, जिसमें शियों के तीसरे इमाम ने अपनी इराक़ यात्रा का कारण भी बताया है।[२६]

बिश्र कर्बला की घटना में मौजूद नहीं थे। [२७] लेकिन इब्न साद ने अपनी पुस्तक तबक़ात अल-कुबरा में माना है कि आशूरा घटना के बाद, वह इमाम हुसैन (अ) की क़ब्र पर गए और इमाम हुसैन (अ) के साथ नहीं होने पर खेद व्यक्त किया। [२८]

बिश्र 66 हिजरी में मुख्तार के विद्रोह के दौरान मिन्हाल बिन अम्र के साथ मदीना गए थे और हुरमुला बिन काहिल असदी के बारे में मिन्हाल के साथ इमाम सज्जाद (अ) की बातचीत के दौरान मौजूद थे। [२९] इसी तरह से, मुख्तार के साथ शुरुआती सहयोग के बावजूद, बाद में वह उसके मुक़ाबले में आ गये और मुख़्तार सक़फ़ी ने उन्हें क़ैद कर लिया। [३०]

फ़ुटनोट

  1. कश्शी, इख्तियार मारेफ़त अल-रेजाल, 1409 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 171; शुश्त्री, अल-रेजाल डिक्शनरी, 1410 हिजरी, खंड 11, पृष्ठ 368।
  2. इब्न असीर, उसद अल-ग़ाबा, 1409 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 36।
  3. इब्न आसम, अल-फ़ुतुह, 1411 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 69।
  4. उदाहरण के लिए, देखें: इब्न साद, तबक़ात अल-कुबरा, 1410 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 302; अमीन, आयान अल-शिया, 1403 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 575।
  5. बर्की, अल-रेजाल, 1376, पृष्ठ 8।
  6. अमीन, आयान अल-शिया, 1403 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 575।
  7. तबरी, तारिख अल-उमम वल-मुलूक, 1387 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 244; इब्न मस्कवैह, तजारिब अल उमम, 1387 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 285; इब्न असीर, अल-कामिल, 1385 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 408।
  8. तबरी, तारिख़ अल-उमम वल-मुलूक, 1387 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 246; इब्न ख़लदून, तारीख़ इब्न खलदून, 1408 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 194।
  9. इब्न हजर असक्लानी, लेसान अल-मिज़ान, 2002, खंड 2, पृष्ठ 305; ज़हबी, मिज़ान अल-एतेदाल, 1382 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 322।
  10. बरक़ी, रेजाल बरकी, 1376, पृष्ठ 8; तूसी, रेजाल तूसी, 1373, पृष्ठ 99।
  11. तूसी, रेजाल तूसी, 1373, पृष्ठ 99।
  12. तूसी, रेजाल तूसी, 1373, पृष्ठ 110।
  13. बरकी, रेजाल बरकी, 1376, पृ.8.
  14. बर्की, अल-महासिन, 1371 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 61।
  15. सदूक़, अल-अमाली, 1342, पृष्ठ 153; हस्कानी, शवाहिद अल तंजील, 1411 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 475।
  16. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1429 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 611, 621।
  17. नोमानी, अल-ग़ैबा, 1397 हिजरी, पृष्ठ 235; तूसी, अल-ग़ैबा, 1411 हिजरी, पृष्ठ 462।
  18. मजलेसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, खंड 95, पृष्ठ 214।
  19. शरफ़ अल-दीन, मअ मौसूआत रेजाल अल-शिया, 1411 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 257।
  20. ममक़ानी, तंक़ीह अल-मक़ाल, 1431 हिजरी, खंड 12, पृष्ठ 297।
  21. अमीन, आयान अल-शिया, 1403, खंड 3, पृष्ठ 576।
  22. “बिश्र बिन ग़ालिब; सहाबी जा मांदे अज़ आशूरा", बसीज समाचार एजेंसी।
  23. इब्न आसम, अल-फ़ुतुह, 1411 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 69।
  24. इब्न आसम, अल-फ़ुतुह, 1411 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 69-70।
  25. इब्न आसम, अल-फ़ुतुह, 1411 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 69-70।
  26. अबू अल-शेख़, तबक़ात अल-मुहद्दिसीन, 1412 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 186।
  27. लेखकों का एक संग्रह, मअल रकब अल-हुसैनी, 2006, खंड 3, पृष्ठ 190।
  28. इब्न साद, तबक़ात अल-कुबरा, 1414 हिजरी, ख़मसेह 1, पृष्ठ 501।
  29. मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, खंड 45, पृष्ठ 375।
  30. सफ़्फ़ार, बसायर अल-दरजात, 1404 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 248।

स्रोत

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