आशूरा का दिन

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आशूरा के दिन अस्र के समय की महमूद फ़र्शचियान की एक पेंटिंग

आशूरा, (फ़ारसी: روز عاشورا) मुहर्रम के महीने का दसवां दिन है। शियों के लिए इस दिन का महत्व 61वें चंद्र वर्ष में मुहर्रम के 10वें दिन कर्बला की घटना के कारण है। इमाम हुसैन (अ.स.) आशूरा के दिन उमर बिन साद की कमान में कूफ़ा की सेना के साथ लड़ाई में कर्बला में अपने साथियों के साथ शहीद हो गए थे।

शिया हर साल मुहर्रम महीने की शुरुआत में शोक मनाते हैं। अधिकांश क्षेत्रों में शोक समारोह का यह सिलसिला मुहर्रम की 11वीं और 12वीं तारीख़ तक और कुछ क्षेत्रों में सफ़र के महीने के अंत तक (और कुछ देशों में 8 रबीअ अल अव्वल तक) जारी रहते हैं। इन शोक व अज़ादारी का चरम आशूरा के दिन होता है। इस दिन ईरान, इराक़, अफ़गानिस्तान, पाकिस्तान और भारत के आधिकारिक कैलेंडर में छुट्टी होती है।

शाब्दिक अर्थ

प्रसिद्ध कोशकारों के अनुसार आशूर और आशूरा मुहर्रम की 10वीं तारीख़ को कहते हैं और यह वह दिन है जब हुसैन बिन अली (अ) शहीद हुए थे।[१] "जमहरह अल-लुग़ा" में उल्लेख किया गया है कि आशूरा के दिन को इस्लाम के बाद इस नाम से बुलाया जाता है, और जाहेलियत के युग में ऐसा कोई नाम मौजूद नहीं था।[२] ऐसा कहा गया है कि कुछ कोशकारों ने आशूरा को एक हिब्रू (इबरानी) शब्द और आशूरा शब्द का अरबीकृत शब्द माना है।[३] आशूरा का उपयोग हिब्रू भाषा में तिश्री (यहूदी महीने) के दसवें दिन के नाम के लिए किया जाता है।[४] [५] इमाम हसन असकरी (अ.स.) ने अपने वकील क़ासिम बिन अला के लिए लिखी एक तौक़ीअ में शाबान के तीसरे दिन की एक दुआ की सिफ़ारिश की और अंत में उन्होंने आशूरा के दिन इमाम हुसैन (अ.स.) की आखिरी दुआ का हवाला दिया और आशूरा को कौसर के दिन के रूप में उल्लेख किया है। बेहार अल-अनवार में अल्लामा मजलिसी ने कौसर को मजहूल क्रिया (कूसिर) माना है, जिसका अर्थ है वह दिन जब इमाम हुसैन (अ) को दुश्मनों की भीड़ के कारण हार का सामना करना पड़ा था।[६] (ای صار مغلوباً بکثرة العدو)

आशूरा कर्बला की घटना से पहले

इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ) से एक हदीस में आया है: रमज़ान के महीने में रोज़ा के अनिवार्य होने से पहले आशूरा पर रोज़ा रखना आम बात थी, लेकिन इसके बाद इसे छोड़ दिया गया।[७]

सुन्नी आशूरा को उस दिन की सालगिरह के रूप में मानते हैं जब पैग़म्बर मूसा (अ) ने लाल सागर को विभाजित किया था और अपने अनुयायियों के साथ इसे पार किया था, और वे इस दिन को सम्मानित मानते हैं और इस दिन उपवास रखने को मुसतहब मानते हैं।[८]

आशूरा कर्बला की घटना के बाद

अधिक जानकारी के लिए, यह भी देखें: कर्बला की घटना और आशूरा का दिन (घटनाएँ)

कर्बला की घटना सन् 61 हिजरी में मुहर्रम के 10वें दिन शुक्रवार को हुई थी।[९][नोट 1][१०] इस घटना में इमाम हुसैन (अ.स.) और यज़ीद बिन मुआविया की सेना के बीच युद्ध हुआ, जो से आशूरा के दिन की सुबह से शाम तक चला, जिसमें इमाम हुसैन (अ) और इमाम सज्जाद (अ) को अलावा उनके सभी साथी शहीद हो गए।[११] आशूरा के दिन अस्र के समय, इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत के बाद, उमर बिन साद की सेना ने इमाम हुसैन के परिवार के ख़ैमों पर हमला किया और उन्हें लूट कर उनमे आग लगा दी, और सभी महिलाओं और बच्चों को बंदी बना लिया और शहीदों के शवों को घोड़ों की टापों के नीचे रौंद दिया।[१२]

कर्बला की घटना के बाद बनी उमय्या ने एक साल के अपने खाने पीने की चीज़ें जमा करके, एक दूसरे मुबारकबाद देकर और उनके लिये ख़ुशी का कामना करे, नए कपड़े पहनकर और रोज़ा रखकर आशूरा के दिन को धन्य माना।[१३] जैसा कि आशूरा तीर्थयात्रा में कहा गया है: “हाज़ा यौमुन तबर्रकत बेहि बनू उमय्या; هذا یومٌ تَبَرَّکت ‏بِهِ بَنُوأُمَیةَ؛ यह वह दिन है जिसे उमय्या ने मुबारत माना था"।[१४]

शिया इमामों ने आशूरा के दिन उपवास रखने से मना किया है और कुछ जगहों पर उन्होंने कहा है कि आशूरा के दिन सूर्यास्त तक कुछ भी खाना या पीना नहीं चाहिए। लेकिन सूर्यास्त से पहले कुछ खा लें, ताकि यह औपचारिक उपवास की तरह न हो।[१५]

आशूरा के दिन शोक

मुख्य लेख: मुहर्रम का शोक

आशूरा दिवस शिया संस्कृति में सबसे महत्वपूर्ण शोक दिवस है। जहां भी शियों का समूह होता है, वहां इस दिन शोक समारोह आयोजित किया जाता है। इस दिन शिया देशों में आधिकारिक अवकाश रहता है। बाज़ार और कारोबार भी बंद रहते हैं। मुहर्रम के पहले दस दिनों के दौरान आमतौर पर रात में और ढकी हुई जगहों पर शोक मनाया जाता है, जो बाद में गलियों और सड़कों तक फैल जाता है और लोग शोक समूहों में सड़को पर जुलूस निकालते हैं। शोक मनाने वाले लोग शोक झंडे, अलम, ताबूत, ज़ुलजनाह और इमाम हुसैन (अ.स.) के शोक से संबंधित अन्य चिन्ह लेकर चलते हैं। आशूरा के दिन शोक दोपहर तक चलता है। शोक मनाने वाले समूह आमतौर पर सार्वजनिक धार्मिक स्थानों जैसे कि क्षेत्र के इमामों या इमाम ज़ादों के रौज़ों और प्रत्येक शहर में रहने वाले विद्वानों के घरों की ओर जाते हैं। कुछ क्षेत्रों में, शोक मनाने वालों की आवाजाही का अंतिम बिंदु क़ब्रिस्तान और मृतकों का दफ़्न स्थान है। [स्रोत आवश्यक]

पहली बार आले बूयह सरकार ने इस दिन को सार्वजनिक अवकाश घोषित किया और लोगों ने शोक मनाना शुरू कर दिया।[१६]

शिया और यहां तक ​​कि कुछ सुन्नी और ग़ौर-इस्लामी धर्म भी कर्बला के शहीदों की याद को जीवित रखने के लिए आशूरा के दिन शोक मनाते हैं। शुरू-शुरू में यह रोने और शेर व मरसिया सुनाने से होता था; लेकिन धीरे-धीरे, इस शोक समारोह में मरसिया, सलाम, मजलिस, मातम, ताज़िये और अन्य चीजें शामिल हो गईं। इनमें से अधिकांश चीज़ें आले-बुयेह,[१७] सफ़ाविया[१८] और काजार[१९] काल के दौरान शुरु की गईं। कुछ धार्मिक विद्वानों और बुद्धिजीवियों का इनमें से कुछ अनुष्ठानों (विशेषकर जंज़ीर मारने) के साथ टकराव हुआ है।

आशूरा के दिन के कार्य

मफ़ातिह अल-जेनान में शेख़ अब्बास क़ोमी कहते हैं: "इंसान के लिए यह उचित है कि वह इस दिन ख़ुद को सांसारिक मामलों में व्यस्त न रखे और दुखी रहे, और यह ग़म उसके कपड़े पहनने और खाने के तरीक़े में दिखाई देना चाहिए।" इस दिन इमाम हुसैन (अ.स.) का शोक मनाएं और उनकी ज़ियारत करे। हज़ार बार सूरह तौहीद पढ़ना, दुआ ए अशरात पढ़ना, रोज़े की नीयत के बिना खाने-पीने से परहेज़ करना और इमाम हुसैन (अ.स.) के हत्यारों को हज़ार बार लानत भेजना भी इस दिन के लिए बताए गए कार्यों में से हैं।"[२०]

आशूरा इस्लाम से पहले

यहूदी, ईसाई और जाहिलियत के दौर के अरब आशूरा का सम्मान करते थे और इस दिन उपवास करते थे।[२१] ईश्वर के दूत (स) से एक हदीस वर्णित है: आशूरा की तरह उससे एक दिन पहले और उसके एक दिन बाद भी उपवास रखें ता कि यहूदी जो केवल आशूरा के दिन उपवास रखते हैं, उनसे शबाहत पैदा न हो।[२२]

शेख़ सदूक़ ने अल-मुक़नेअ किताब में उल्लेख किया है कि जो कोई आशूरा के दिन उपवास रखेगा, उसके सत्तर साल के पाप माफ़ कर दिए जाएंगे और उन्होंने उस दिन की निम्नलिखित घटनाएं बताईं हैं:

  • हज़रत आदम (अ) का पश्चाताप
  • हज़रत नूह (अ) की कश्ती का जूदी पर्वत पर ठहर जाना
  • पैग़म्बर मूसा (अ) का समुद्र से गुज़रना
  • हज़रत ईसा (अ) का जन्म
  • पैग़म्बर यूनुस (अ) का मछली के पेट से बाहर आना
  • हज़रत यूसुफ़ (अ) का कुएँ से बाहर आना।[२३]

संबंधित लेख

फ़ुटनोट

  1. देखें: देहख़ुदा, देहख़ुदा शब्दकोश, "आशूरा" शब्द के अंतर्गत।
  2. इब्न दरिद, जमहरह अल-लुग़त, 1987, खंड 2, पृष्ठ 727।
  3. सफ़ाई और सईदी, "आशूरा", पृष्ठ 15.
  4. सफ़ाई और सईदी, "आशूरा", पृष्ठ 15.
  5. https://abadis.ir/fatofa/%D8%AA%DB%8C%D8%B4%D8%B1%DB%8C/
  6. https://abadis.ir/fatofa/%D8%AA%DB%8C%D8%B4%D8%B1%DB%8C/
  7. मजलिसी, बिहार अल-अनावर, 1403 हिजरी, खंड 101, (खंड 98) पीपी 348-349।
  8. सदूक़, मन ला यहज़ोरोहु अल-फ़क़ीह, 1413 एएच, खंड 2, पृष्ठ 85।
  9. अबुल फ़रज इस्फ़हानी, मकातिल अल-तालेबिईन, प्रेस के लिए वैज्ञानिक संस्थान, पृष्ठ 84।
  10. https://hawzah.net/fa/Article/View/13056/research-on-the-solar-history-of-Ashura
  11. सफ़ाई और सईदी, "आशूरा", पृष्ठ 16.
  12. सफ़ाई और सईदी, "आशूरा", पृष्ठ 16.
  13. कोमी, मफ़ातिह अल-जेनान, उसवाह, पी. 290.
  14. कोमी, मफ़ातिह अल-जेनान, उसवाह, "आशूरा तीर्थयात्रा" के तहत।
  15. देखें: उस्तादी, "आशूरा की पृष्ठभूमि", पृष्ठ 42।
  16. शिया अध्ययन संस्थान, शोक और सस्वर पाठ की परंपरा, पृष्ठ 79
  17. आईनावंद, शोक और वाचन की परंपरा, 1386, पृ. 65-66, इब्न कसीर, अल-बिदाया व अल-निहाया द्वारा उद्धृत, खंड 183; इब्न ख़ल्दून, इब्न खल्दून का इतिहास, खंड 3, पृष्ठ 425।
  18. आईनावंद, शोक और वाचन की परंपरा, 1386, पृष्ठ 147, उद्धृत: नसरुल्ला फिलास्फी, लाइफ ऑफ शाह अब्बास प्रथम, खंड 847।।
  19. मज़ाहेरी, शिया मीडिया, 2009, पृष्ठ 87।।
  20. कोमी, मफ़ातिह अल-जेनान, उस्वा, पीपी. 289-288।
  21. देखें: उस्तादी, "द हिस्ट्री ऑफ आशूरा", पीपी. 39-38।
  22. उस्तादी, "आशूरा की पृष्ठभूमि", पृष्ठ 37-38, उद्धृत: बेहक़ी, खंड 4, पृष्ठ 287, मुस्लिम बिन हज्जाज, खंड 3, पृष्ठ 150, मुहम्मद बिन इस्माइल बुखारी , खंड 3, पृ.
  23. सदूक़, अल-मुक़नअ, 1415 हिजरी, पृष्ठ 208।

स्रोत

  • इब्न दरिद, मुहम्मद इब्न हसन, जमहरह अल-लुग़त, बेरूत, दार-ए-इल्म लिलमलायिन, 1987।
  • उस्तादी, रेज़ा, "आशूरा की पृष्ठभूमि", दर किताबे आशूरा सेनाशी, इस्लामिक रिसर्च इंस्टीट्यूट, क़ुम, ज़मज़म हेदायत, 1287 शम्सी।
  • अबुल फरज एस्फहानी, अली बिन हुसैन, मक़ातिल अल-तालेबिईन, बेरूत, अल-आलमी प्रेस एजेंसी, बी ता।
  • सफ़ाई, महविश और मोहम्मद हसन सईदी, "आशुरा", शिया दायरतुल-मआरिफ़ (खंड 11) में, अहमद सद्र हाज सैयद जवादी, कामरान फानी और बहाउद्दीन खोर्रम शाही की देखरेख में, तेहरान, हिकमत पब्लिशिंग हाउस, दूसरा संस्करण, 1390 शम्सी/1432 हिजरी।
  • देहख़ुदा, अली अकबर, देहखोदा शब्दकोश, तेहरान, 1377 शम्सी।
  • सदूक़, मुहम्मद बिन अली बिन बाबवैह, अल-मुकनअ, क़ुम, इमाम महदी (अ), पहला संस्करण, 1415 हिजरी।
  • सदूक, मुहम्मद बिन अली बिन बाबवैह, मन ला यहज़ोरहु अल-फ़क़ीह, अली अकबर ग़फ़्फ़ारी द्वारा शोध, क़ुम, इस्लामिक प्रकाशन कार्यालय, दूसरा संस्करण, 1413 हिजरी।
  • क़ोमी, अब्बास, मफ़ातिह अल-जेनान, क़ुम, उसवाह, बी ता।
  • मजलिसी, मोहम्मद बाक़िर, बिहार अल-अनवार, प्रकाशक: अल-वफ़ा फाउंडेशन, दूसरा संस्करण, 1403 हिजरी, बी जा।
  • आशूरा की सौर तिथि के बारे में एक शोध; https://hawzah.net/fa/Article/View/13056/
  • "आशूरा किस दिन और किस मौसम में हुआ?"; https://www.khabaronline.ir/news/116080/Ashura-what-day-and-in-what-season-it-happed-