मीलादुन नबी उत्सव

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मीलादुन नबी उत्सव (अरबी: الاحتفال بالمولد النبوي) उन समारोहों को संदर्भित करता है जो इस्लाम के पैग़म्बर (स) के जन्म की सालगिरह पर आयोजित किए जाते हैं। शिया और सुन्नी पैग़म्बर (स) का जन्मदिन मनाते हैं, लेकिन वहाबी इसे विधर्म (बिदअत) मानते हैं क्योंकि पैग़म्बर (स) और उनके साथियों (सहाबा) के समय में ऐसे उत्सव आयोजित नहीं किए जाते थे। वहाबियों के उत्तर में, मुस्लिम विद्वानों ने कहा है कि हालाँकि पैग़म्बर (स) का जन्मदिन पैग़म्बर (स) और उनके साथियों (सहाबा) के समय में नहीं मनाया जाता था, लेकिन शरियत में इसे मनाना मना नहीं है, इसलिए, पैग़म्बर (स) का जन्मदिन मनाना विधर्म नहीं है, बल्कि उसका मनाना अच्छा होगा। इसके अलावा, मीलादुन नबी के उत्सव को वैध बनाने के लिए, क़ुरआन की आयतों और क़ुरआन की अवधारणाओं का हवाला दिया जाता है, जो पैग़म्बर (स) का सम्मान करने और उनसे प्यार करने का सलाह देते हैं।

चौथी चंद्र शताब्दी के बाद से ऐतिहासिक रिपोर्टें हैं कि मुसलमानों ने पैग़म्बर (स) के जन्मदिन पर उत्सव मनाया। इसके अलावा, पैग़म्बर के जन्म की सालगिरह पर, मक्का के लोग उनके जन्म स्थान पर इकट्ठा होते थे और दुआ पढ़ते थे और उनका आशीर्वाद लेते थे यहां तक कि आले सऊद के शासन के दौरान इस स्थान को नष्ट कर दिया गया।

शिया 17वीं रबी-उल-अव्वल को और सुन्नी 12वीं रबी-उल-अव्वल को इस्लाम के पैग़म्बर का जन्मदिन मानते हैं। शिया विद्वान इस दिन सदक़ा देना, अच्छे कर्म करना, मोमिनों को खुश करने का मुस्तहब मानते हैं। सुन्नियों ने इस दिन इस्लाम के पैग़म्बर का सम्मान करने के लिए उपहार देने और गरीबों को खाना खिलाने की सलाह दी है। इसलिए, विभिन्न देशों में मुसलमान पैग़म्बर के जन्मदिन पर उत्सव मनाते हैं। इस दिन ईरान, अफ़ग़ानिस्तान, इराक़, भारत, पाकिस्तान, इंडोनेशिया और मिस्र में आधिकारिक छुट्टी होती है।

महत्व एवं इतिहास

मीलादुन नबी उत्सव उन समारोहों को संदर्भित करता है जो पैग़म्बर के जन्म की सालगिरह पर आयोजित किए जाते हैं। मीलादुन नबी मनाने की अनुमति (जाएज़) या अस्वीकार्यता (जाएज़ न होन) मुसलमानों और वहाबियों के बीच मतभेदों में से एक है। मुसलमानों के दृष्टिकोण से, मिलादुन नबी का उत्सव मनाना जायज़ है। इसलिए, विभिन्न देशों में मुसलमान अनुष्ठानों और समारोहों का आयोजन करके पैग़म्बर (स) के जन्मदिन का उत्सव मनाते हैं।[१] इसके अलावा, इस्लाम के पैग़म्बर के जन्मदिन पर इंडोनेशिया, ईरान,[२] भारत,[३] पाकिस्तान,[४] मिस्र[५] और..[६] सहित कुछ देशों में आधिकारिक अवकाश है। लेकिन वहाबी मीलादुन नबी के उत्सव को नवीनता (बिदअत) और हराम मानते हैं।[७]

पैग़म्बर के जन्मदिन पर उत्सव मनाने का इतिहास चौथी और पांचवीं शताब्दी हिजरी तक जाता है। 9वीं शताब्दी हिजरी के इतिहासकार अहमद बिन अली मिक़रीज़ी ने मिस्र में फ़ातमिया शासन (297-567 हिजरी) के दौरान मीलादुन नबी के उत्सव के लोकप्रिय होने का उल्लेख किया है।[८] इसके अलावा, ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार, मुज़फ्फ़र अल-दीन कौकोबरी (मृत्यु 630 हिजरी), सलाहुद्दीन अय्यूबी के कमांडर और एरबिल के शासक रबी-उल-अव्वल में मीलादुन नबी का उत्सव मनाते थे।[९]

क्या मीलादुन नबी का उत्सव मनाना बिदअत है?

वहाबी इस्लाम के पैग़म्बर के जन्मदिन पर उत्सव मनाने को विधर्म (बिदअत) मानते हैं।[१०] वहाबियों में से एक अब्दुल अजीज बिन बाज़ ने इस्लाम के पैग़म्बर के जन्मदिन पर उत्सव मनाने को विधर्म (बिदअत) माना है।[११] सलफ़ी विद्वान इन समारोहों में भाग लेना, उस स्थान पर बैठना जहां उत्सव आयोजित किया जाता है या उसकी मिठाइयाँ खाना हराम मानते हैं।[१२] साथ ही, उनके कुछ लेखक पैग़म्बर के जन्मदिन समारोह को अनैतिकता (फ़िस्क़), अधार्मिकता आदि का कारण मानते हैं।[१३] वहाबियों द्वारा पैग़म्बर के जन्मदिन के उत्सव को विधर्म (बिदअत) मानने का कारण यह है कि ऐसे समारोह का आयोजन इस्लाम के पैग़म्बर (स) और सहाबा के समय में नहीं किया गया है।[१४]

शिया और सुन्नी विद्वानों का उत्तर

विरोधियों के अनुसार, हालांकि शरीयत में पैग़म्बर के जन्म का कोई प्रत्यक्ष उल्लेख नहीं है, क़ुरआन की आयतें इस उत्सव के आयोजन की पुष्टि करती हैं।[१५] उन्होंने क़ुरआन की सामान्य अवधारणाओं से जैसे कि पैग़म्बर (स) से प्रेम करने की आवश्यकता[१६] और पैग़म्बर की जयंती की आवश्यकता[१७] द्वारा पैग़म्बर के जन्मदिन पर उत्सव के वैधता की सहायता ली है।[१८] शिया विद्वान जाफ़र सुब्हानी के अनुसार, पैग़म्बर (स) के जन्मदिन का उत्सव मनाना उनके प्रति प्रेम की अभिव्यक्ति है; कुरआन ने जिस प्रेम का आदेश दिया है।[१९] साथ ही, सूर ए माएदा की अंतिम आयतों का उल्लेख करते हुए, जिसके अनुसार हज़रत ईसा (अ) ने उस दिन उत्सव मनाया था जब स्वर्गीय माएदा उनके प्रेरितों (हवारियून) पर अवतरित (नाज़िल) हुआ था और ईसाई आज भी उस दिन उत्सव मनाते हैं। उनका मानना है कि पैग़म्बर के जन्मदिन पर उत्सव मनाया जाना चाहिए क्योंकि पैग़म्बर ने दुनिया को मूर्तिपूजा (बुत परस्ती) और अज्ञानता (जेहालत) से बचाया, और यह आशीर्वाद (नेअमत) प्रेरितों (हवारियून) के लिए स्वर्गीय माएदा से भी उत्तम है।[२०]

सुन्नीयों के बुज़ुर्ग, जैसे सिरी सुक़ती (मृत्यु 253 हिजरी), जुनैदी बग़दादी (मृत्यु 297 हिजरी), याफ़ई (मृत्यु 768 हिजरी) और हसन बिन उमर बिन हबीब (मृत्यु 779 हिजरी), पैग़म्बर (स) के जन्मदिन पर उत्सव मनाने को अच्छा कार्य (नेक) माना है।[२१]

समकालीन सुन्नी विद्वानों में से एक, युसूफ़ क़रज़ावी (मृत्यु 1444 हिजरी) ने क़ुरआन की आयतों[२२] के आधार पर तर्क देकर पैग़म्बर के जन्मदिन का उत्सव मनाने को जायज़ माना है।[२३] उनका मानना है कि पैग़म्बर के जन्मदिन और अन्य इस्लामी आयोजनों के लिए समारोह आयोजित करना वास्तव में उन आशीर्वादों (नेअमतों) की याद दिलाता है जो ईश्वर ने मुसलमानों को दिए हैं, और यह अनुस्मारक न केवल विधर्म (बिदअत) और निषिद्ध (हराम) नहीं है, बल्कि वांछनीय (मतलूब) भी है।[२४] सुन्नी विद्वानों में से एक, ताहिर क़ादरी के अनुसार, कोई भी सम्मानजनक (मुबाह) कार्य करना जो शरियत में निषिद्ध (हराम) नहीं है, समाज की संस्कृति बन गई है, और इसका उद्देश्य पैग़म्बर के जन्म के अवसर पर ख़ुशी व्यक्त करना है, इसमें कोई हर्ज नहीं है।[२५]

इक़बालुल आमाल पुस्तक में वर्णित हदीस के अनुसार, इस्लाम के पैग़म्बर के जन्मदिन पर उपवास (रोज़ा) करने से एक वर्ष के उपवास का सवाब मिलता है।[२६] इसके अलावा, शिया विद्वान इस दिन दान (सदक़ा) देना, रौज़ों पर जाना[२७] अच्छे काम करना, विश्वासियों (मोमिनों) को खुश करना आदि मुस्तहब मानते हैं।[२८] शिया हदीसों में, पैग़म्बर (स) के जन्मदिन के लिए एक विशेष नमाज़ का उल्लेख हुआ है।[२९] सुन्नियों ने इस दिन पैग़म्बर की याद में, पैग़म्बर (स) के बारे में भाषण देने, कुरआन के पाठ करने, सिल ए रहम, उपहार देने, ग़रीबों का खाना खिलाने, की सलाह दी है।[३०]

जन्म का समय और स्थान

पैग़म्बर के जन्म की तिथि के बारे में मतभेद है।[३१] शिया विद्वानों के बीच लोकप्रिय रबी-उल-अव्वल की 17वीं तारीख़ है और सुन्नियों के बीच लोकप्रिय रबी-उल-अव्वल की 12वीं तारीख़ है।[३२] इन दो तिथियों के बीच के अंतराल को शिया और सुन्नी के बीच एकता के सप्ताह (हफ़्ता ए वहदत) नाम दिया गया है।[३३]

इस्लाम के पैग़म्बर (स) का जन्म शेअबे अबी तालिब के एक घर में हुआ था।[३४] शाफ़ेई के विद्वान मुहम्मद बिन उमर बहरक़ के अनुसार, जिनकी मृत्यु 930 हिजरी में हुई थी, मक्का के लोग उनके स्थान पर इकट्ठा होते थे और दुआ पढ़ते थे और आशीर्वाद लेते थे।[३५] इसके अलावा, 11वीं शताब्दी हिजरी के एक मुहद्दिस अल्लामा मजलिसी वर्णन करते हैं कि उनके समय में मक्का में इस नाम का एक स्थान था और लोग वहां की ज़ियारत करते थे।[३६] यह इमारत हेजाज़ पर आले सऊद के शासन के आरम्भ तक बनी रही। उन्होंने वहाबी धर्म की मान्यताओं के कारण इसे नष्ट कर दिया, जो पैगम्बरों और धर्मियों के कार्यों पर आशीर्वाद देने पर रोक लगाता है।[३७]

मोनोग्राफ़ी

पैग़म्बर (स) के जन्मदिन के उत्सव की वैधता साबित करने के बारे में किताबें लिखी गई हैं, उनमें से कुछ इस प्रकार हैं:

  • अल बयान अल नबवी अन फ़ज़ल अल एहतेफ़ाल बे मूलेदिन अल नबवी, महमूद अहमद अल ज़ैन द्वारा लिखित है जो पैग़म्बर (स) के जन्मदिन के उत्सव की वैधता को साबित करने और उस पर हुए संदेह को दूर करने के उद्देश्य से अरबी में लिखी गई है। इस पुस्तक में लेखक इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि सुन्नी न्यायविद और विद्वान मीलादुन नबी के उत्सव को मुस्तहब मानते हैं। इंतेशाराते दारुल बोहूस लिद दरासात अल इस्लामिया दुबई ने 1426 हिजरी में इस पुस्तक को प्रकाशित किया है।[३८]
  • जश्ने मीलादे पयाम्बर सल्ललाहो अलैहे वा आलेही वसल्लम, अब्दुर्रहीम मूसवी द्वारा लिखित, पैग़म्बर के जन्म के उत्सव की वैधता साबित करने और विरोधियों के विचारों की आलोचना करने के उद्देश्य से फ़ारसी में लिखी गई है। लेखक के अनुसार, मीलाद मनाना पैग़म्बर का सम्मान करने के दायित्व के उदाहरणों में से एक है। यह पुस्तक मकतबे अहले बैत के संग्रह का 25वां खंड है, जिसे इंतेशाराते मजमा ए जहानी अहले बैत द्वारा वर्ष 1390 शम्सी में 57 पृष्ठों में प्रकाशित किया गया था।[३९]

फ़ोटो गैलरी

फ़ुटनोट

  1. "अरब देश पैग़म्बर (स) के जन्म का उत्सव कैसे मनाते हैं?", इकना समाचार एजेंसी।
  2. Time.ir
  3. Holidays
  4. Public Holidays in Pakistan 2018
  5. "ईद अल मोलिद अल-नबवी अल-शरीफ़", ईद अल-मोलिद अल-नबवी अल-शरीफ़।
  6. "सऊदी अरब को छोड़कर सभी इस्लामी देशों में महान पैग़म्बर का जन्मदिन एक आधिकारिक अवकाश है", क़ुद्स ऑनलाइन।
  7. अल-दोवैश, फ़तावा अल लोजना अल दाएमा, रेयाज़, खंड 3, पृष्ठ 29।
  8. मिक़रीज़ी, अल-मोएज़ा व अल एतेबार, 1418 हिजरी खंड 2, पृष्ठ 436।
  9. इब्ने कसीर, अल-बेदाया वा अल-नेहाया, 1407 हिजरी, खंड 13, पृष्ठ 137; मिक़रिज़ी, अल-सलूक ले मारेफ़त दौल अल मुलूक, 1418 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 368।
  10. अल-दोवैश, फ़तावा अल लोजना अल दाएमा, रेयाज़, खंड 3, पृष्ठ 29।
  11. "इमाम इब्न तैमियाह ने पैगंबर का जन्मदिन मनाने की सिफारिश नहीं की", बेनबाज़ साइट।
  12. शाहता, अल-मोल्ड अल-नबावी..., अलेक्जेंड्रिया, पृष्ठ 116।
  13. दबीरी, रसूलुल्लाह (PBUH) के जन्मदिन का जश्न, 1437 हिजरी, पृष्ठ 9।
  14. "इमाम इब्न तैमियाह ने पैगंबर का जन्मदिन मनाने की सिफारिश नहीं की", बेनबाज़ साइट।
  15. करीमी सुलैमी, "जश्न व सुरूद दर मीलादे पयाम्बरे गरामी (स) अज़ दीदगाहे क़ुरआन व सुन्नत", पृष्ठ 126।
  16. सूर ए तौबा, आयत 23.
  17. सूर आराफ़, आयत 157.
  18. करीमी सुलैमी, "जश्न व सुरूद दर मीलादे पयाम्बरे गरामी (स) अज़ दीदगाहे क़ुरआन व सुन्नत", पृष्ठ. 127-132।
  19. "इस्लाम के पैग़म्बर (स) के जन्मदिन पर उत्सव मनाना उनके लिए एक व्यावहारिक प्रेम है और कुरान की आज्ञा को पूरा करना है", शफ़क़ना वेबसाइट।
  20. "इस्लाम के पैग़म्बर (स) के जन्मदिन पर उत्सव मनाना उनके लिए एक व्यावहारिक प्रेम है और कुरान की आज्ञा को पूरा करना है", शफ़क़ना वेबसाइट।
  21. "इस्लाम के पवित्र पैग़म्बर (स) के जन्मदिन का जश्न, सुन्नत या विधर्म (बिदअत)?", हौज़ा की आधिकारिक समाचार एजेंसी।
  22. पैगंबर के जन्मदिन और इस्लामी आयोजनों का जश्न मनाते हुए, युसुफ क़रज़ावी वेबसाइट।
  23. "अल-क़रादावी: पैगंबर लिस बिदाह के जन्म का जश्न", सलाम ऑनलाइन।
  24. अल क़रज़ावी: अल एहतेलाफ़ बे मोलिद अल नबी वल मुनासेबात अल इस्लामिया, युसुफ क़रज़ावी वेबसाइट।
  25. क़ादरी, क्या मीलाद अल-नबी मनाना बिदअत है, 2008 ईस्वी, पृष्ठ 15 और 17।
  26. सय्यद इब्ने ताऊस, इक़बाल अल-आमाल, 1409 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 603।
  27. शेख़ तूसी, मिस्बाह अल-मुताहज्जद, तेहरान, खंड 2, पृष्ठ 791।
  28. मजलिसी, बिहारुल अनवार, 1403 हिजरी, खंड 95, पृष्ठ 359।
  29. सय्यद इब्ने ताऊस, इक़बाल अल-आमाल, 1409 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 611-612।
  30. "मोलिद अल-नबी", बव्वाबा अल-अज़हर वेबसाइट।
  31. मसऊदी, मोरुज अल-ज़हब, 1409 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 362।
  32. सुब्हानी, फ़ोरोग़े अब्दियत, 1380 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 151।
  33. इमाम ख़ुमैनी, सहीफ़ा इमाम, 1378 शम्सी, खंड 15, पृष्ठ 440 और 455।
  34. मिकरिज़ी, इमता अल-अस्मा, 1420 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 6।
  35. बहरक़, हदाएक़ अल-अनवार, 1409 हिजरी, पृष्ठ 150।
  36. मजलिसी, मिरआतुल उक़ूल, 1404 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 174।
  37. आमोली, सहीह मिन सिरत अल-नबी, 1385 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 147।
  38. " अल बयान अल नबवी अन फ़ज़ल अल एहतेलाफ़ बे मोलिद अल नबवी", वहाबी अध्ययन और सलफ़ी आंदोलनों का एक विशेष डेटाबेस।
  39. "अहले बैत (अ) के मकतब में, -खंड 25- पैग़म्बर (स) के जन्म का जश्न, " मजमा ए जहानी अहले बैत की वेबसाइट।

स्रोत