हदीसे इफ़तेराक़

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यह लेख हदीसे इफ़तेराक़ के बारे में है। नाजिया फ़िरक़ा के उदाहरण के बारे में जानने के लिए, नाजिया फ़िरक़ा की प्रविष्टि देखें।
हदीसे इफ़तेराक़
विषयइस्लामिक उम्मतों का विभाजन
किस से नक़्ल हुईपैग़म्बर (स)
दस्तावेज़ की वैधतामुतावातिर होने का दावा

हदीसे इफ़तेराक़ (अरबी: حديث الافتراق) इस्लामी उम्मत के सत्तर से अधिक संप्रदायों में विभाजन के बारे में पवित्र पैग़म्बर (स) से मंसूब हदीस। इस हदीस के अनुसार, इस्लामी उम्मत, पैग़म्बर (स) के बाद सत्तर से अधिक संप्रदायों में विभाजित होगी, जिसमें से केवल एक संप्रदाय मोक्ष पाएगा। नाजिया फ़िरक़ा के उदाहरण (मिसदाक़) के बारे में इस्लामी संप्रदायों के विद्वानों में मतभेद है। पैग़म्बर (स) से यह वर्णन किया गया है कि नाजिया फ़िरक़ा अली (अ) के शिया हैं।

हदीसे इफ़तेराक़ को धार्मिक चर्चाओं, सांप्रदायिक ज्ञान और सांप्रदायिक संघर्षों में परिलक्षित किया गया है।

हदीस का मत्न और विवरण

हदीसे इफ़तेराक़ पैग़म्बर (स) की एक हदीस को संदर्भित करती है, जिसके विभिन्न वर्णन में सामान्य विषय यह है कि "मजूसी सत्तर संप्रदायों में विभाजित थे, यहूदी धर्म इकहत्तर संप्रदायों में, और ईसाई धर्म बहत्तर संप्रदायों में, और मेरी उम्मत तिहत्तर संप्रदायों में विभाजित होगी। और इनमें से केवल एक संप्रदाय नाजिया फ़िरक़ा है।[१] अलबत्ता, कुछ आख्यानों में, यह कहा गया है कि 72 संप्रदायों का उद्धार होगा और एक संप्रदाय नर्क में जाएगा।[२]

इस हदीस के विभिन्न वर्णन में, इस्लामिक संप्रदायों की संख्या कभी-कभी तिहत्तर संप्रदायों,[३] कभी-कभी बहत्तर संप्रदायों[४] और कभी-कभी इकहत्तर संप्रदायों[५] होती हैं।

हदीसे इफ़तेराक़ की व्याख्या में यह कहा गया है कि नाजिया फ़िरक़े को छोड़कर अधिकांश इस्लामी संप्रदायों की गुमराही, विश्वास में मतभेदों के कारण है जो एक दूसरे के खिलाफ़ तकफ़ीर और दुश्मनी की ओर ले जाती है, और यह न्यायविदों के न्यायशास्त्रीय मतभेदों से संबंधित नहीं है, जो क़ुरआन और सुन्नत की ओर रुजूअ करके क्षमाशील और मोक्ष पाए हुए लोग हैं।[६] कुछ ने यह भी सुझाव दिया है कि इस हदीस में, मुस्लमानों के सांसारिक धन और जीवन और सरकार में मतभेद जो दुश्मनी और सांप्रदायिकता की ओर ले जाते हैं, शामिल हैं।[७]

वैधता

शियों की कुतुब अरबआ और सुन्नियों की सहीहैन में हदीसे इफ़तेराक़ का उल्लेख नहीं किया गया है, और सांप्रदायिक विद्वानों ने, जैसे नौबख़्ती ने फ़ेरक़ अल-शिया और अबुल हसन अशअरी ने अल इस्लामयैन लेखों में इसकी ओर इशारा या उल्लेख नहीं किया है। सुन्नी विद्वानों में से एक, इब्ने हज़्म अंदलूसी (मृत्यु 456 हिजरी), ने इसे आपत्तिजनक और ग़लत माना है[८] और ज़ैदिया मज़हब के न्यायविद इब्ने वज़ीर के अनुसार (मृत्यु 840 हिजरी), इसका अंतिम भाग (एक संप्रदाय को छोड़कर सभी) नार्कीय हैं) भी नक़ली (जाली) है।[९]

हालाँकि, शिया[१०] और सुन्नियों[११] की कुछ हदीस पुस्तकों और कुछ मेलल व नेहल लेखकों[१२] ने हदीस को उद्धृत और स्वीकार किया है, और कुछ सांप्रदायिक विद्वानों जैसे अब्दुल क़ाहिर बिन ताहिर बग़दादी,[१३] शहफ़ूर बिन ताहिर असफ़रायनी[१४] और इब्ने अब्दुर्रहमान मल्ती शाफ़ेई[१५] ने भी 73 संप्रदायों के आधार पर इस्लामी संप्रदायों को वर्गीकृत किया है। इसलिए, यह कहा गया है कि हदीसे इफ़तेराक़ न केवल प्रसिद्ध (मशहूर) और मुस्तफ़ीज़[१६] है, बल्कि मुतावातिर[१७] या मुतावातिर[१८] के करीब़ भी है।

आयतुल्लाह सुब्हानी के अनुसार, यह तथ्य कि यह हदीस प्रामाणिक है और शिया और सुन्नी किताबों में कई बार उद्धृत किया गया है, इसकी प्रामाणिकता की कमी की भरपाई करता है, और इन स्रोतों में विभिन्न दस्तावेजों के साथ इसे उद्धृत करने से इसमें विश्वास पैदा होता है।[१९] इसके अलावा, मुहम्मद बिन अहमद मुक़द्दसी (मृत्यु 381 हिजरी के बाद), अहसन अल-तक़ासीम फ़ी मारफ़त अल-अक़ालीम पुस्तक के लेखक, ने इस हदीस को अन्य हदीस की तुलना में अधिक प्रसिद्ध (मशहूर) माना है, जो मोक्ष पाने वालों की संख्या को 72 संप्रदायों और एक संप्रदाय के नरक में जाने वाला मानती हैं, और निश्चित रूप से यह मानते हैं कि दूसरी हदीस अधिक सही है।[२०]

नाजिया फ़िरक़ा

मुख्य लेख: नाजिया फ़िरक़ा

नाजिया फ़िरक़े के उदाहरण के निर्धारण के विषय में विभिन्न धर्मों के विद्वानों में मतभेद है। अक्सर, उनमें से प्रत्येक अपने स्वयं के धर्म को उद्धारकर्ता संप्रदाय मानते थे, और अन्य 72 संप्रदायों को नष्ट हुआ मानते हैं:[२१] जमालुद्दीन राज़ी, इमामिया विद्वानों में से एक ने अपनी पुस्तक "तबसेरा अल अवाम फ़ी मारेफ़त मक़ालात अल अमान",[२२] जाफ़र बिन मंसूर अल-इमन, इस्माइली विद्वानों में से एक, अपनी पुस्तक "साराएर व असरार अल-नुत्क़ा"[२३] और सुन्नी विद्वानों में से एक शहरिस्तानी ने अल-मेलल व अल-नेहल[२४] में, अपने धर्म को नाजिया फ़िरक़े का उदाहरण माना है।

शेख़ सदूक़ चौथी शताब्दी के प्रसिद्ध शिया मुहद्दिस, कमाल अल-दीन वा तमाम अल-नेमा, में हदीसे सक़लैन का ज़िक्र करते हुए, हर उन्होंने क़ुरआन और पैग़म्बर (स) के अहले बैत का पालन करने वाले को नाजिया संप्रदाय का हिस्सा क़रार दिया है।[२५] इसके अलावा, बिहार अल-अनवार में अल्लामा मजलिसी ने इमाम अली (अ) से उद्धृत किया कि मेरे शिया मोक्ष पाने वाले हैं।[२६] हदीसों पर भरोसा करते हुए अल्लामा हिल्ली ने नाजिया फ़िरक़े के उदाहरण के रूप में बारह इमामों और उनके अनुयायियों का उल्लेख किया है।[२७] फिर उन्होंने शिया धर्म की प्रामाणिकता सिद्ध करने के लिए कुछ दलीलों का उल्लेख किया है।[२८]

हालांकि, सुन्नीयों ने, अन्य हदीसों का ज़िक्र करते हुए, नाजिया फ़िरका, मण्डली (जमाअत)[२९] या बहुसंख्यक[३०] या राशेदीन ख़लीफ़ाओं के अनुयाईयों को को मानते हैं।[३१] हदीसे इफ़तेराक़ की एक रिपोर्ट अनुसार सभी इस्लामिक संप्रदाय, विधर्मियों (ज़िनदीक़ों) को छोड़कर, मोक्ष पाए लोग हैं।[३२]

हलाक होने वाला फ़िरक़ा

इस्लामिक धर्मों के विद्वानों ने अपने अलावा अन्य 72 संप्रदायों को हलाक होने वाला फ़िरक़ा माना है:[३३] अलबत्ता, मालेकी विद्वानों में से एक, इब्राहीम इब्ने मूसा शातबी (मृत्यु 790 हिजरी) के अनुसार, अहले सुन्नत संप्रदाय संख्या 72 में हलाक होने वाले संप्रदाय का कोई बौद्धिक (दलीले अक़्ली) या कथात्मक (दलीले नक़्ली) कारण (दलील) नहीं है।[३४] इब्ने हज़्म, एक सुन्नी विद्वान (मृत्यु 456 हिजरी) ने फ़िक़्ही अल-मोहल्ला बिल आसार किताब में हदीस का हवाला देते हुए (जिसे पैग़म्बर (स) से उद्धृत किया गया है,«تفترق اُمتی علی بضع وسبعین فرقة اعظمهم فتنة علی امتی قوم یقیسون الامور...»[३५]) न्यायशास्त्र में क़ेयास करने वालों को गुमराह और हलाक होने वाले संप्रदायों में से एक मानते हैं।[३६]

सम्बंधित लेख

फ़ुटनोट

  1. इब्ने हंबल, मुसनद, 1419 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 145; इब्ने माजा, सुनन इब्ने माजा, दार अल-फ़िक्र, खंड 2, पृष्ठ 364; अल्लामा मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1404 हिजरी, खंड 28, पृष्ठ 4।
  2. मुक़द्दसी, अहसन अल-तकासीम, दार सादिर, खंड 1, पृष्ठ 39।
  3. हाकिम निशापुरी, अल-मुस्तद्रक अला अल-सहीहैन, 1411 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 281; तिर्मिज़ी, सुनन अल-तिर्मिज़ी, 1403 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 26; तबरानी, अल-मोजम अल-कबीर, मतबआ अल उम्मत, खंड 18, पृष्ठ 51; इब्ने हंबल, मुसनद, 1419 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 102।
  4. हैसमी, मजमा अल-ज़वाएद, 1406 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 260; तबरानी, अल-मोजम अल-कबीर, मतबआ अल उम्मत, खंड 17, पृष्ठ 13।
  5. दानी, अल-सुनन अल-वारेदा, 1416 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 624।
  6. बग़दादी, अल-फ़ेरक़ बैना अल-फ़ेरक़, 1408 हिजरी, पृष्ठ 5-8; शातबी, अल-एतेसाम, 1420 हिजरी, पृष्ठ 442।
  7. शातबी, अल-एतेसाम, 1420 हिजरी, पृष्ठ 461-460।
  8. इब्ने हज़्म, अल-फ़ेसल, 1405 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 292।
  9. इब्ने वज़ीर, अल-अवासिम व अल-क़वासिम, 1415 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 172-170।
  10. उदाहरण के लिए, देखें शेख़ सदूक़, अल-ख़ेसाल, 1362 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 584-585; अल्लामा मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, खंड 28, पृष्ठ 13।
  11. उदाहरण के लिए देखें, इब्ने हंबल, मुसनद, 1414 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 569; इब्ने अबी आसिम, अल सुन्नत, 1419 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 75-80; तबरानी, अल-मोजम अल-कबीर, मतबआ अल उम्मत, खंड 18, पृष्ठ 51।
  12. उदाहरण के लिए देखें, अल-बग़दादी, अल-फ़ेरक़ बैना अल-फ़ेरक़, 1408 हिजरी, पृष्ठ 8-5; सुब्हानी, बोहूस फ़ी अल मेलल व अल नेहल, अल-नशर अल-इस्लामी पब्लिशिंग हाउस, खंड 1, पृष्ठ 25-26।
  13. बग़दादी, अल-फ़ेरक़ बैना अल-फ़ेरक़, 1408 हिजरी, पृष्ठ 11-21।
  14. अस्फ़रायनी, अल-तबसीर फ़ी अल-दीन, 1408 हिजरी, पृष्ठ 23-25।
  15. मल्ती शाफ़ेई, अल-तंबीह वा अल रद्द, 1413 हिजरी, पृष्ठ 12।
  16. सुब्हानी, बोहूस फ़ी अल मेलल व अल नेहल, अल-नशर अल-इस्लामी पब्लिशिंग हाउस, खंड 1, पृष्ठ 23; मुज़फ़्फ़र, दलाएल अल-सिद्क़, 1422 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 289।
  17. इब्ने ताऊस, अल-तराएफ़, 1420 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 287 व खंड 2, पृष्ठ 74 व पृष्ठ 259; मनावी, फ़ैज़ अल-क़दीर, 1391 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 20।
  18. अल-आमदी, अल-अहकाम फ़ी असूल अल-अहकाम, दार अल-किताब अल-आलमिया, खंड 1, पृष्ठ 219।
  19. सुब्हानी, बोहूस फ़ी अल मेलल व अल नेहल, अल-नशर अल-इस्लामी पब्लिशिंग हाउस, खंड 1, पृष्ठ 25।
  20. मुक़द्दसी, अहसन अल-तक़ासीम, दार सादिर, पृष्ठ 39।
  21. बग़दादी, अल-फ़ेरक़ बैना अल-फ़ेरक़, 1408 हिजरी, पृष्ठ 11-21; इस्फ़रायनी, अल-तबासीर फ़ी अल-दीन, 1408 हिजरी, पृष्ठ 23-25; मल्ती शाफ़ेई, अल-तनबीह वा अल रद्द, 1413 हिजरी, पृष्ठ 12।
  22. राज़ी, तबसेरा अल अवाम, 1364 शम्सी, पृष्ठ 194-199।
  23. अलीमन, सराएर व असरार अल-नुत्का, 1404 हिजरी, पृष्ठ 243।
  24. शहरिस्तानी, अल-मेलल व अल-नेहल, 1364 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 19-20।
  25. शेख़ सदूक़, कमालुद्दीन, 1395 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 662।
  26. अल्लामा मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, खंड 28, पृष्ठ 11।
  27. उदाहरण के लिए देखें, अल्लामा हिल्ली, मिन्हाज अल-करामाह, 1379, पृष्ठ 50।
  28. अल्लामा हिल्ली, मिन्हाज अल-करामाह, 1379 शम्सी, पृष्ठ 111-35।
  29. इब्ने माजा, सुनन इब्ने माजा, 1430 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 128-130।
  30. अल-आमदी, अल-अहकाम फ़ी उसूल अल-अहकाम, दार अल-किताब अल-आलमिया, खंड 1, पृष्ठ 219।
  31. इब्ने माजा, सुनन इब्ने माजा, 1430 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 28-29।
  32. दैलमी, अल-फिरदौस बे मासूर अल-खत्ताब, 1406 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 63।
  33. बग़दादी, अल-फ़ेरक़ बैना अल फ़ेरक़, 1408 हिजरी, पृष्ठ 11-21; इस्फ़रायनी, अल-तबसीर फ़ी अल-दीन, 1408 हिजरी, पृष्ठ 23-25; मल्ती शाफ़ेई, अल-तनबीह वा अल रद्द, 1413 हिजरी, पृष्ठ 12।
  34. शातबी, अल-एतेसाम, 1420 हिजरी, पृष्ठ 481।
  35. तबरानी, अल-मोजम अल-कबीर, मतबआ अल उम्मत, खंड 17, पृष्ठ 13।
  36. इब्ने हज़्म, अल-मोहल्ला बिल आसार, दार अल-जील, खंड 1, पृष्ठ 62।

स्रोत

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