शिया फ़िरक़े
- यह लेख शिया सम्प्रदाय के पंथो (शियो के फ़िरक़ो) के बारे में है। शिया फ़िरक़ो की सूची के लिए, शिया फ़िरक़ो की सूची वाली प्रविष्टि देखें।
शिया फ़िरक़े (अरबीःفرق الشيعة) अलग-अलग शाखाएं हैं, जो अली इब्न अबी तालिब (अ) की बिला फ़स्ल इमामत मे विश्वास करने के बावजूद, मासूम इमामों की संख्या सहित कुछ अन्य मान्यताओ (अक़ाइद) मे एक-दूसरे से भिन्न है। इमामिया, ज़ैदिया और इस्माइलिया सबसे महत्वपूर्ण जीवित शिया पंथ हैं। कुछ स्रोतों मे कैसानिया, फ़तहिया, वाक़्फिया, नावुसिया और ग़ालियान के समूहों को भी शियो के विलुप्त हो चुके पंथो मे शुमार किया हैं।
इमाम के उत्तराधिकारी और नियुक्ति पर मतभेद, अक़ीदे मे ग़ुलुव की घुसपैठ और महदी ए मौऊद के मिस्दाक़ (उदाहरण) निर्धारित करने में विचलन को शिया में विभिन्न पंथो के उदय होने में सबसे महत्वपूर्ण कारक माना जाता है।
अनुयायियों की संख्या के संदर्भ मे इमामिया को सबसे अधिक आबादी वाला शिया सम्प्रदाय माना जाता है जो ईरान, इराक़, भारत, पाकिस्तान और लेबनान जैसे देशों मे रहता है। शिया पंथो के परिचय में विभिन्न रचनाएँ लिखी गई हैं। हसन बिन मूसा नौबख्ती द्वारा लिखित फ़िरक़ अल-शिया इस विषय पर सबसे पुराने लिखित कार्यों मे से एक है।
महत्त्व
शियो के पंथ, शिया सम्प्रदाय (इस्लाम के दो प्रमुख संप्रदायो में से एक) की शाखाओं को संदर्भित करता है, जिनमें से सभी इमाम अली (अ) की इमामत में विश्वास साझा करते हैं।[१] तीसरी और चौथी चंद्र शताब्दी से संबंधित हसन बिन मूसा नौबख्ती की किताब फ़िरक अल-शिया इसी विषय पर लिखी गई थी। आज कल (15वीं शताब्दी हिजरी) कुछ विश्वविद्यालयों में शिया पंथो का विभाग स्थापित हो चुका है।[२]
प्रारम्भिक शाखाएँ
सय्यद मुहम्मद हुसैन तबातबाई ने इस्लाम में शिया नामक पुस्तक में कहा कि शिया सम्प्रदाय मे पहला विभाजन इमाम हुसैन (अ) की शहादत (शहादत: 61 हिजरी) के बाद हुआ था; इसलिए कि अधिकांश शिया इमाम सज्जाद (अ) की इमामत में विश्वास करते थे और उनमें से एक छोटी संख्या, जिन्हें कैसानिया के नाम से जाना जाता है, इमाम अली (अ) के दूसरे बेटे मुहम्मद बिन हनफ़िया को इमाम मान लिया।[३] वह यह भी मानते हैं कि इमाम रज़ा (अ) की इमामत के काल से लेकार इमाम महदी (अ) की इमामत के काल तक कोई महत्वपूर्ण विभाजन नहीं हुआ था, और यदि विभाजन के रूप मे कोई घटना घटी भी, तो वह कुछ दिनों से अधिक नहीं टिकती थी और वह स्वंय ही समाप्त हो जाती थीं[४] हालाकि कुछ के अनुसार शियो मे पहला समूह उस्मान की खिलाफत के अंत और इमाम अली (अ) की ख़िलाफ़त के प्रारम्भ मे अब्दुल्लाह बिन सबा द्वारा सबाय्या के नाम से अस्तित्व मे आया।[५]
फ़िरक़ो की संख्या
शिया फ़िरक़ो की संख्या के बारे में अलग-अलग राय हैं। फरहंग शिया पुस्तक में, उन्होंने शिया फ़िरक़ो की संख्या एक सौ तक बताई, जिनमे से सबसे प्रसिद्ध फ़िरक़ा इमामिया, कैसानिया, ज़ैदिया, इस्माइलिया, फ़तहिया और ग़ुलात है।[६] चौथी शताब्दी हिजरी के शाफ़ई न्यायविद अबुल हुसैन मिलती ने अपनी किताब "अल-तंबीह वर रद अला अहल अल-हवाए वल बदए" मे शिया पंथो की संख्या 18 बताई है।[७] शाफ़ई न्यायविद् और धर्मशास्त्री अब्दुल काहिर अल-बगदादी (मृत्यु: 429 हिजरी) ने अपनी किताब "अल-फ़र्को बैनल फ़िरक़" मे शियो के सबसे बुनियादी पंथो मे इमामिया, कैसानिया और ज़ैदिया को बताया हैं,[८] शहरिस्तानी (मृत्यु: 548 हिजरी) ने अल-मेलल व अल-नहल मे शियो को इमामिया, ज़ैदिया, कैसानिया, इस्माइलिया और ग़ुलात पांच पंथो में सूचीबद्ध किया है[९] और तबातबाई (मृत्यु: 1402 हिजरी) ने इस्लाम में शिया नामक पुस्तक मे तीन पंथो इमामिया, इस्माइलिया और ज़ैदिया को शिया के मुख्य पंथो के रूप मे पेश किया है।[१०]
गठन के कारक
शिया सम्प्रदाय मे विभिन्न पंथो के निर्माण में विभिन्न कारक शामिल रहे है, जिनमे से सबसे महत्वपूर्ण इस प्रकार हैं:
- इमामत: रसूल जाफ़रयान के अनुसार, इमामत का मुद्दा और इमाम के उत्तराधिकारी और नियुक्ति पर विवाद शिया मे विभिन्न पंथो के उद्भव का पहला कारण था[११] उदाहरण के लिए, कैसानिया शिया पंथो मे से एक है जो इमाम अली (अ) की शहादत के बाद शुरू हुआ उनका मानना था कि उनके बाद के इमाम इमाम हसन मुजतबा (अ) नहीं हैं, बल्कि मुहम्मद इब्न हनफ़या हैं।[१२]
- ग़ुलुव के अक़ीदा का प्रभाव: इमाम अली (अ) और दूसरे मासूम इमामो के जीवनकाल के दौरान और उनके स्वर्गवास पश्चात भी कुछ शियो ने उन्हें भगवान की तरह देखा और उनके लिए अतिरंजित विशेषताओं अर्थात ग़ुलुव वाली विशेषताओ के लिए जिम्मेदार ठहराया, और यही शियावाद के इतिहास में ग़ालीयो के विभिन्न पंथो के अस्तित्व मे आने का कारण बना और पंथलेखकों ने इन पंथो को शियो के पंथ लिखा।[१३] उदाहरण के लिए, सबाय्या पंथ ग़ालीयो के फ़िरक़े मे से एक और अब्दुल्लाह बिन सबा के अनुयायियों का मानना था कि इमाम अली (अ) का निधन ना हुआ है और ना ही होगा, बल्कि एक दिन वो आएंगे और पृथ्वी पर फ़ैली हुई निर्दयता और अत्याचार पर न्याय को फैलाऐंगे।[१४]
- महदी ए मौऊद के मिस्दाक़ (उदाहरण) निर्धारित करने मे विचलन पहली तीन शताब्दियों के दौरान शिया में विभिन्न पंथो के निर्माण में अन्य कारकों मे से एक था।[१५]
जीवित फ़िरक़े
इमामिया, ज़ैदिया और इस्माइलिया फ़िरक़े दुनिया में सबसे प्रसिद्ध और जीवित शियो के फ़िरक़े माने जाते हैं:[१६]
इमामिया
- मुख्य लेख: इमामिया
इमामिया का मानना है कि पैग़म्बर (स) के स्वर्गवास पश्चात इमाम अली (अ) ईश्वर की ओर से इमाम बनाए गए और पैग़म्बर (स) के बिला फ़स्ल उत्तराधिकारी बनाए गए और उनके बाद इमाम हसन (अ) और फिर इमाम हुसैन (अ) और उनके बाद उनके नौ वंशज, अर्थात् इमाम सज्जाद (अ), इमाम बाक़िर (अ), इमाम सादिक़ (अ), इमाम काज़िम (अ), इमाम रज़ा (अ), इमाम जवाद (अ), इमाम हादी (अ), इमाम हसन अस्करी (अ) और इमाम महदी (अ) तक इमामत पुहंची।[१७]
इमामिया के अनुसार बारहवें इमाम, अर्थात इमाम महदी ही क़ायम और उद्धारकर्ता (मुंजी) हैं जो गुप्तकाल (ग़ैबत) मे जीवन व्यतीत कर रहे है और अंतिम समय (आख़ेरुज ज़मान) मे प्रकट होंगे।[१८] इमामिया इमाम की इस्मत को वाजिब मानते हैं और वे ऐसा मानते हैं कि सभी इमाम मासूम हैं।[१९] उनके अनुसार, इमाम क़ुरआन और पैग़म्बर (स) की सुन्नत के सच्चे व्याख्याकार हैं।[२०]
इस्माइलिया
- मुख्य लेख: इस्माइलिया
तेहरान विश्वविद्यालय के इतिहासकार और प्रोफेसर मुहम्मद जवाद मशकूर (मृत्यु: 1995 ईस्वी) के अनुसार, "फ़रहंग फ़िरक़ इस्लामी" पुस्तक में इस्माइलिया उन पंथो का सामान्य नाम है, जिनकी इमामत इमाम सादिक़ (अ) के बाद उनके सबसे बड़े बेटे इस्माईल बिन जाफ़र या उनके पोते मुहम्मद बिन इस्माईल ने किया था।[२१] इस्माइलिया को शुरू में दो समूहों में विभाजित किया गया था: विशेष इस्माइलिस और जनरल इस्माइलिस[२२] विशेष इस्माइलियो का मानना था कि इस्माइल अपने पिता के समय मे इमाम थे और गायब हो गए वह शियो के सातवें इमाम हैं। जनरल इस्माइलियो का मानना था कि इस्माइल की मृत्यु उनके पिता के समय मे हुई थी और उनकी मृत्यु से पहले उन्होंने अपने बेटे मुहम्मद को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था।[२३] सय्यद मुहम्मद हुसैन तबातबाई ने इस्लाम में शिया नामक पुस्तक मे कहा कि यह दोनो समूह कुछ समय पश्चात समाप्त हो गए और एक दूसरा समूह जो इस बात को मानता था कि इस्माइल अपने पिता के जीवनकाल मे इमाम थे और उनके बाद इमामत उनके बेटे मुहम्मद बिन इस्माइल और फिर उनके वंशजों के पास चली गई जो अब तक बनी हुई हैं और अभी भी उनके अनुयायी हैं।[२४]
ऐसा कहा जाता है कि इमामिया के बाद इस्माइलिया की संख्या सबसे अधिक है, और यह पूरे इतिहास में विभिन्न शाखाओं में विभाजित हो गया है और एशिया, अफ्रीका, यूरोप और उत्तरी अमेरिका में 25 से अधिक देशों में फैल गया है।[२५]
ज़ैदिया
- मुख्य लेख: ज़ैदिया
ज़ैद बिन अली के अनुयायी और जो लोग उनकी इमामत में विश्वास करते है[२६], ऐसा कहा जाता है कि वे ज़ैद बिन अली को पाँचवाँ इमाम मानते हैं[२७] शेख़ मुफ़ीद (मृत्यु: 413 हिजरी) ने अवाइल अल-मक़ालात मे कहा वे इमाम अली (अ), इमाम हसन (अ) और इमाम हुसैन (अ) की इमामत में विश्वास करते हैं, फिर वे ज़ैद बिन अली की इमामत में विश्वास करते हैं[२८] ज़ैदिया का यह भी मानना है कि इमाम को हज़रत फ़ातिमा (स) का वंशज होना चाहिए। हज़रत फ़ातिमा की पीढ़ी से जो ज्ञानी, बहादुर और उदार (सखी) हैं और हक़ के लिए आगे बढ़ता है अर्थात आंदोलन करता है वही इमाम हैं।[२९]
ज़ैदिया इस्मते इमामान और रजअत में विश्वास नहीं करते है, इमामिया के विपरीत जो इमाम अली (अ) के उत्तराधिकारी के लिए एक स्पष्ट तर्क (नस्से जली) के अस्तित्व में विश्वास करते हैं, उनका मानना है कि वह नस्स जो पैग़म्बर (स) ने इमाम अली (स) के बारे मे बयान की है वह गुप्त पाठ (नस्से ख़फ़ी) है, और इमाम अली (अ) ने किसी कारण के आधार पर इसे केवल अपने कुछ विशेष साथियों के लिए बयान किया है।[३०]
हालाँकि ज़ैदिया इमाम अली (अ) को पैग़म्बर (स) का बिला फ़स्ल उत्तराधिकारी मानते हैं, लेकिन वे इमाम अली (अ) से पहले के तीन ख़लीफाओं की ख़िलाफत को भी सही और वैध मानते हैं[३१] मुहम्मद जवाद मशकूर ने फ़रहंग फ़िरक़ इस्लामी पुस्तक मे ज़ैदीया सम्प्रदाय के 16 पंथो का परिचय कराया है।[३२] जारूदिया, सुलेमानिया (सुलेमान बिन जुरैर के अनुयायी) और बुत्रिया (हसन बिन सालेह बिन हय के अनुयायी) ज़ैदिया सम्प्रदाय के तीन मुख्य पंथ हैं।[३३]
विलुप्त हुए फ़िरक़े
कुछ सबसे महत्वपूर्ण शियो के फ़िरक़े जो अतीत मे मौजूद थे और फिर विलुप्त हो गए, वे इस प्ररकार हैं:
- कैसानिया: शियो का एक समूह था जो मुहम्मद बिन हनफ़िया की इमामत मे विश्वास करता था।[३४] शहरिस्तानी का अल-मेलल वा अल-नहल मे कहना है कि मुहम्मद इब्न हनफ़िया के बाद, उनके अनुयायियो के बीच विवाद हुआ[३५] कुछ का मानना था कि मुहम्मद इब्न हनफ़िया की मृत्यु नहीं हुई है और वह फिर से लौटेगे और देश में न्याय फैलाएंगे।[३६] अन्य लोगो ने कहा कि उनकी मृत्यु हो गई और इमामत उनके बेटे अबू हाशिम को हस्तांतरित कर दी गई[३७] मुहम्मद जवाद मशकूर की रिपोर्ट अनुसार, कैसानिया सम्प्रदाय मुहम्मद बिन हनफ़िया के बाद बारह समूहों में विभाजित हो गया।[३८] इन सभी ने मुहम्मद बिन हनफ़िया की इमामत में विश्वास करते है।[३९] कैसानिया के कुछ सम्प्रदाय जैसे हाशमिया,[४०] करुबिया,[४१] हमज़िया,[४२] बयानिया,[४३] हरबिया[४४] को ग़ाली सम्प्रदाय के रूप मे जाना जाता है।
- फ़तहिया: शियो का एक समूह जो इमाम सादिक़ (अ) के बाद उनके बेटे अब्दुल्लाह अफ़्ताह की इमामत में विश्वास करता था।[४५] शाहरिस्तानी की एक रिपोर्ट के अनुसार, इमाम सादिक़ (अ) की शहादत के सत्तर दिन बाद अब्दुल्लाह की मृत्यु हो गई और उनके कोई संतान नहीं थी।[४६] परिणामस्वरूप, अब्दुल्लाह अफ़्ताह की इमामत में विश्वास भी समाप्त हो गया और उनके अधिकांश अनुयायी इमाम काज़िम (अ) की इमामत में विश्वास करने लगे।[४७]
- नावुसिया: शियो का एक सम्प्रदाय जो इमाम सादिक़ (अ) के जिंदा होने में विश्वास करता था और मानता था कि वही महदी ए मौऊद है जो अंतिम समय (आख़ेरुज़ ज़मान) मे ज़ोहूर करेगे।[४८] ऐसा कहा जाता है कि नावुसिया बसरा निवासी व्यक्ति अजलान बिन नावुस के अनुयायी थे।[४९]
- वाक़्फ़िया: शियो का एक समूह था जिसने इमामत को इमाम मूसा काज़िम (अ) पर रोक दिया और उनके बेटे इमाम रज़ा (अ) की इमामत से इनकार कर दिया।[५०] रेजाल कशी किताब के अनुसार इमाम काज़िम (अ) के कारागार मे होने के समय आपके सहाबीयो के पास इमाम की संपत्तियां (सहमे इमाम) थीं, जिन्हें उन्होंने हड़प लिया था, और जब इमाम मूसा काज़िम (अ) की शहादत की खबर उन तक पहुंची, तो उन्होंने उनकी शहादत और उनके बेटे इमाम रज़ा (अ) की इमामत से इनकार कर दिया और रुक गए इसलिए उन्हे वाक़्फ़िया कहा जाता है।[५१]
ग़ाली फ़िरक़े
- मुख्य लेख: ग़ालियान
ग़ालियान वे लोग थे जिन्होंने इमाम अली (अ) और उनके बच्चों को देवत्व (ख़ुदाई) या नबूवत का श्रेय दिया, और वे उनका वर्णन करने में चरम सीमा तक चले गए[५२] ग़ाली सम्प्रदायों की संख्या का उल्लेख करने मे सम्प्रदाय संबंधी किताबें भिन्न हैं, इसलिए ग़ाली सम्प्रदायों की संख्या सबसे कम है। ग़ाली सम्प्रदाय की सबसे कम संख्या 9 और सबसे अधिक संख्या 100 दर्ज की गई हैं।[५३] शियो से संबंधित कुछ सबसे प्रसिद्ध ग़ाली सम्प्रदाय: सबाय्या (अब्दुल्लाह बिन सबा के अनुयायी), बयानिया, ख़ेताबिया, बशरिय्या, मुफ़व्वेज़ा और मुगिरिय्या[५४] है। जोकि अब विलुप्त हो चुके हैं।
अली युल्लाही या अहले-हक़ ग़ाली शिया के अन्य संप्रदायों में से हैं, उनके कुछ अनुयायी ईरान के कुछ हिस्सों मे रहते हैं[५५] ऐसा कहा जाता है कि उनका मानना है कि परमात्मा ने पैगंबरों के लिए एक रहस्य बयान किया है जोकि नबूवत है और पैग़म्बर आदम के समय से यह हज़रत मुहम्मद (स) तक जारी रहा और उनके बाद यह इमाम अली (अ) और फिर उनके बाद बारहवे इमाम तक जारी रहा[५६] बारहवें इमाम की अनुपस्थिति (ग़ैबत) के बाद, यह (इमामत) का रहस्य उनके अनुयायियों और अक़ताब (क़ुत्ब के बहुवचन) को कहा जाता है जो एक के बाद दूसरा आता है।[५७]
ग़ैबत सुग़रा मे विचलित समूह
फ़िरक़-अल-शिया में नौबख़्ती के अनुसार, इमाम हसन अस्करी (अ) की शहादत के बाद इमाम की नियुक्ति और महदी ए मौऊद का मिस्दाक़ निर्धारित करने में शिया 14 सम्प्रदायों में विभाजित हो गए।[५८] उदाहरण के लिए एक समूह ने कहा कि इमाम हसन अस्करी (अ) की मृत्यु नहीं हुई और आप वही महदी क़ायम हैं।[५९] कुछ ने यह भी कहा कि इमाम हसन अस्करी (अ) की मृत्यु हो गई थी, लेकिन क्योंकि उनका कोई बेटा नहीं था, उनकी मृत्यु के बाद जीवन फिर से शुरू हो गया वही महदी क़ायम है।[६०] एक अन्य समूह का मानना है कि इमाम हसन अस्करी (अ) की शहादत के बाद उनके भाई जाफ़र इमाम बने।[६१] शेख़ मुफ़ीद ने अल फ़ुसूल अल-मुख्तारोह में कहा है कि इन 14 संप्रदायों में से, इमामिया को छोड़कर जो हज़रत महदी (अ) की इमामत में विश्वास करते हैं, अन्य सभी संप्रदाय विलुप्त हो गए हैं।[६२]
इसके अलावा, हसन शरिई, मुहम्मद बिन नसीर नुमैरी, अहमद बिन हिलाल अबरताई और कुछ अन्य लोग शियो मे से थे, जिन्होंने बाबीत होने का दावा किया और इमाम महदी (अ) के प्रतिनिधि होने का दावा किया और ऐसे समूह बनाए जो अब गायब हो गए हैं।[६३]
जनसंख्या और भौगोलिक वितरण
"नक़्शे जमईयत मुसलमानान जहान" (संकलित: 1393 शम्सी) पुस्तक की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में शियो (इमामिया, इस्माइलिया और ज़ैदिया) की आबादी 300 मिलियन से अधिक होने का अनुमान है, जो कि दुनिया की कुल मुस्लिम आबादी का पांचवा हिस्सा है।[६४] 2015 में बीबीसी फ़ारसी समाचार एजेंसी के अनुसार, इस्माइली शियो की आबादी 15 मिलियन होने का अनुमान है, जो दुनिया की शिया आबादी के दस प्रतिशत से भी कम है, और उनमें से अधिकांश भारत, पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान, ताजिकिस्तान और लगभग 30 हजार लोग ईरान के खुरासान, किरमान और मरकज़ी प्रांतों मे रहते हैं।[६५] ब्रिटानिका विश्वकोश मे "शिया" लेख के अंतर्गत केवल नज़्ज़ारिया को ही कहा गया है। इस्माइलिया की सबसे अधिक आबादी वाली शाखाओं में से एक, की आबादी पांच से 15 मिलियन लोगों के बीच है।[६६]
ऐसा कहा जाता है कि ज़ैदिया मौजूदा शिया संप्रदायों मे सबसे कम आबादी वाला फ़िरक़ा है, और उनमे से अधिकांश अब (15वीं शताब्दी हिजरी में) यमन में रहते हैं; जोकि इस देश की आबादी का आधा हिस्सा है।[६७] उनमें से कुछ सऊदी अरब के दक्षिणी क्षेत्र नजरान मे भी रहते हैं।[६८] मौजूदा शिया सम्प्रदायों मे इमामिया की संख्या सबसे अधिक है।[६९] और उनमें से अधिकांश ईरान, इराक़, भारत, पाकिस्तान और लेबनान जैसे देशों में रहते हैं।[७०]
मोनोग्राफ़ी
शिया सम्प्रदाय की पहचान मे स्वतंत्र रूप से लिखी गईं कुछ रचनाएँ इस प्रकार हैं:
- फ़िरक़ अल-शिया, हसन बिन मूसा नौबख़्ती की रचना है। यह कार्य तीसरी शताब्दी हिजरी के अंत तक शिया संप्रदायों की पहचान के स्रोतों मे से एक है। इस पुस्तक में शिया सम्प्रदायों के परिचय के अतिरिक्त कुछ अन्य इस्लामी सम्प्रदायों के बारे में भी विस्तृत चर्चा की गई है। ऐसा कहा जाता है कि लेखक का ग़ैबत सुग़रा का समकालीन होना और समय शियो मे फ़िरक़ो का अस्तित्व मे आने के कारण इस काम को इस क्षेत्र में प्रत्यक्ष स्रोतों में से एक माना जाता है।[७१]
- आशनाई बा फ़िरक़ तशय्यो, महदी फ़रमानीयान द्वारा लिखित पुस्तक है। इस पुस्तक में शिया संप्रदायों के परिचय पर एक परिचय और बीस पाठ शामिल हैं, जिन्हें पाठ्यपुस्तक के उद्देश्य से संकलित किया गया था। इसके अलावा, पुस्तक के अंत में "शियो के फ़िरक़ो और शिया सम्प्रदाय के विचलित शाखाएँ" और प्रसिद्ध पुस्तक मेलल व नहल पर आधारित "शिया सम्प्रदाय" शीर्षक के साथ दो चर्चाएँ संलग्न की गई हैं।[७२]
फ़ुटनोट
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- ↑ गिरोह तारीख़ व फ़िरक़ तशय्योअ, दानिशगाह अदयान व मज़ाहिब
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- ↑ तबातबाई, शिया दर इस्लाम, 1388 शम्सी, पेज 61
- ↑ फ़ज़ाई, मुकद्दमा दर तारीख अक़ाइद व मज़ाहिब शिया, 1353 शम्सी, पेज 9
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- ↑ मलती, अल तंबीह वर रद्द, 1413 हिजरी, पेज 16
- ↑ बग़दादी, अल फ़र्क़ो बैनल फ़िरक़, दार अल जील, पेज 38
- ↑ शहरिस्तानी, अल मेलल वल नहल, 1364 शम्सी, भाग 1, पेज 170
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- ↑ शेख सदूक़, अल ऐतेक़ादात, 1414 हिजरी, पेज 364; फ़ाज़िल मिक़्दाद, इरशाद अल तालेबीन, 1405 हिजरी, पेज 374-375
- ↑ देखेः काशिफ़ अल ग़ेता, कश्फ़ अल ग़ेता अन मुबहेमात अल शरीया अल ग़र्रा, 1420 हिजरी, भाग 1, पेज 64
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- ↑ मशकूर, फ़रहंग फ़िरक़ इस्लामी, 1375 शम्सी, पेज 48
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- ↑ शहरिस्तानी, अल मेलल वल नहल, 1364 शम्सी, भाग 1, पेज 37
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- Newman, Andrew J, Shiʿi, Britannica, Visited in, 25 February 2024
- गिरोह तारीख व फ़िरक़ तशय्योअ, दानिशगाह अदयान व मज़ाहिब, विज़िट की तारीख 14 इस्फ़ंद 1402 शम्सी