ग़ज़्वा बनी मुस्तलिक़
- यह लेख ग़ज़्वा बनी मुस्तलिक के बारे में है। इस नाम वाली जनजाति के बारे में जानने के लिए बनी मुस्तलिक जनजाति वाला लेख देखें।
ग़ज़्वा बनी मुस्तलिक या ग़ज़्वा मुरयसीअ (फ़ारसीःغزوه بنی مُصطَلِق یا غزوه مُرَیسیع) पैग़म्बर (स) के ग़ज़्वात (अभियानो, युद्धो) में से एक है जो बनी मुस्तलिक जनजाति का सामना करने के लिए 5वीं या 6ठीं हिजरी में हुई थी। इस युद्ध में, अबू ज़र गफ़्फ़ारी मदीना में पैग़म्बर (स) के उत्तराधिकारी बने और कुछ पाखंडी युद्ध के माले गनीमत हासिल करने के लिए इस्लामी सेना में शामिल हो गए।
इस्लाम के पैग़म्बर (स) ने शुरू में बनी मुस्तलिक जनजाति को इस्लाम में आमंत्रित किया; लेकिन इस्लाम स्वीकार करने से इनकार करने और मुस्लिम सेना पर तीरअंदानी करने के बाद, उन्होंने हमले का आदेश दिया।
ऐतिहासिक सूत्रों के अनुसार इस युद्ध में शत्रु की पराजय के बाद मुसलमानों ने दो सौ बंदी, दो हजार ऊँट और पाँच हजार भेड़ें माले ग़नीमत मे मिली। बंदियों और माले ग़नीमत को मुसलमानों के बीच बांट दिया गया, और बंदियों की रिहाई की शर्त फ़िदये (फ़िरौती) का भुगतान थी, जिसे पैग़म्बर (स) ने निर्धारित किया था।
इस युद्ध में बनी मुस्तलिक जनजाति के मुखिया हारिस की बेटी जुवैरिया को भी बंदी बना लिया गया और पैग़म्बर (स) ने फ़िदया लेकर उसे रिहा कर दिया। मुक्त होने के बाद, जुवैरिया ने इस्लाम स्वीकार कर पैग़म्बर (स) से विवाह कर लिया।
कुछ तफसीर की पुस्तकों की रिपोर्टों के अनुसार, इस युद्ध के दौरान पाखंडियों, विशेषकर अब्दुल्लाह बिन उबैय के व्यवहार के बारे में सूर ए मुनाफ़ेक़ून की पहली से आठवीं आयतें नाजलि हुई। यह भी कहा जाता है कि इस अभियान से लौटने के बाद इफ़्क की घटना घटी।
युद्ध का कारण
बनी मुस्तलिक की लड़ाई[१] या मुरैसीअ की लड़ाई[२] पैग़म्बर (स) के अभियानों (युद्धो) में से एक है, जो ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार 5वें[३] या 6ठीं[४] हिजरी में हुई थी। कुछ ऐतिहासिक रिपोर्टों के अनुसार, इस्लाम के पैग़म्बर (स) को सूचित किया गया था कि खुज़ाआ जनजाति से संबंधित प्रमुखो में से बनी मुस्तलिक जनजाती के प्रमुख हारिस बिन अबी ज़ेरार, अपने लोगों और अरब जनजातियो के एक समूह के साथ, मुसलमानों के साथ लड़ने की तैयारी मे है।[५] बनी मुस्तलिक के कुरैश के साथ नज़दीकी संबंध थे, और उन्होंने अपने व्यावसायिक हितों की रक्षा के लिए इस्लाम स्वीकार करने से इनकार कर दिया था, और पैग़म्बर (स) कुछ कारणों से उन्हें सहन करते थे।[६]
मुसलमानों के खिलाफ बनी मुस्तलिक के अभियान को सुनिश्चित करने के लिए, पैगंम्बर (स) ने बुरैदा बिन हसीब को दुश्मन के शिविर में यह पता लगाने के लिए भेजा कि खबर सही है या नहीं, और खबर की सच्चाई जानने के बाद उन्होंने बनी मुस्तलिक की ओर सेना भेजने का आदेश दिया।[७] वाक़ेदी लिखते हैं कि प्रस्थान के समय कुछ पाखंडी[८], युद्ध स्थल की निकटता के कारण और जंग मे माले ग़नीमत हासिल करने के लिए पैग़म्बर (स) की सेना के साथ हो गए।[९] अंदलूसी के अनुसार, प्रस्थान करते समय पैग़म्बर (स) ने अबू ज़र गफ़्फ़ारी को मदीना में अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था।[१०] हालाकि, कुछ इतिहासकारों ने नमीला बिन अब्दुल्लाह अल-लीसी[११] और ज़ियाद बिन हारेसा को मदीने मे पैग़म्बर (स) के उत्तराधिकारी के रूप में उल्लेख किया है।[१२]
लड़ाई का भाग्य
चंद्र कैलेंडर के 10वीं शताब्दी के इतिहासकार सालेही दमश्क़ी के अनुसार, जब पैग़म्बर (स) बनी मुस्तलिक की ओर बढ़ रहे थे, तो हारिस के एक जासूस को मुसलमानों ने गिरफ्तार कर लिया था; लेकिन उसने पैग़म्बर (स) को जानकारी देने से इनकार कर दिया। हालाँकि, पैग़म्बर (स) ने उसे इस्लाम में परिवर्तित होने के लिए कहा; लेकिन उसने इस्लाम स्वीकार करने से भी इनकार कर दिया. इस कारण से, पैग़म्बर (स) के आदेश से उसे मार दिया गया।[१३] इस जासूस की हत्या से हरिस और उसके साथियों में दहशत फैल गई और हारिस की सेना से अन्य जनजातियां तितर-बितर हो गईं। परिणामस्वरूप, हारिस और उसके दल के अलावा युद्ध के मैदान में कोई नहीं बचा।[१४] सूत्रों के अनुसार, जब पैग़म्बर (स) मुरैसीअ के क्षेत्र में पहुंचे, तो उन्होंने अपने साथियों को खड़ा कर दिया। उन्होंने अप्रवासियों (मुहाजेरीन) का झंडा अम्मार बिन यासिर और एक कथन के अनुसार अबू बक्र को दिया और अंसार का झंडा साद बिन उबादा को सौंप कर युद्ध के लिए तैयार हो गये।[१५]
पैग़म्बर (स) ने शुरू में उन्हें इस्लाम में आमंत्रित किया; लेकिन जब उन्होंने इस्लाम स्वीकार करने से इनकार कर दिया और इस्लामी सेना पर गोली चला दी, तो आप (स) ने हमले का आदेश दिया।[१६] मुसलमानों ने "या मंसूर अमित" (हे विजयी मरो) के नारे के साथ दुश्मनों पर हमला किया।[१७]
इस युद्ध में, हरिस के दस साथी मारे गए और बाकी बंदी बन गए[१८] और कुछ भाग गए।[१९] इस्लामी सेना के हाथ बहुत सारा माले ग़नीमत हाथ लगा,[२०] इतिहासकार तबरी के अनुसार कि हाशिम बिन ज़बाबा को दुश्मन का पीछा करके लौटते समय गलती से एक मुसलमान ने मार डाला था।[२१] और पैगम्बर (स) ने उसके खून बहा के भुगतान का आदेश दिया।[२२]
ग़नाइम का विभाजन
अल-मग़ाज़ी किताब में वाक़ेदी के अनुसार, युद्ध की समाप्ति के बाद, पैग़म्बर (स) ने बुरैदा बिन हसीब को बंदियों की रक्षा के लिए नियुक्त किया और उन्हें बंदियों के साथ नम्रता से व्यवहार करने का आदेश दिया।[२३] और इसी प्रकार उन्होंने ग़नाइम अर्थात युद्ध मे हाथ लगा माल, हथियार और मवेशियों को एक जगह इकट्ठा किया और पैग़म्बर (स) के आदेश पर उनके नौकर शक़रान को उनकी देखभाल करने के लिए नियुक्त किया।[२४] ख़ुम्स और मुसलमानों का हिस्सा निर्धारित करने के लिए महमिया बिन जज़ को चुना गया।[२५]
ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार, बनी मुस्तलिक की लड़ाई में दो सौ बंदी, दो हजार ऊंट और पांच हजार भेड़ें गनीमत के रूप में मिली।[२६] कुछ स्रोतों में उल्लेख किया गया है कि पैग़म्बर (स) ने पहले गनाइम के खुम्स को अलग किया और फिर मुसलमानों के बीच संपत्ति और मवेशीयो को विभाजित किया।[२७]
धन का बँटवारा करते समय, प्रत्येक ऊँट दस भेड़ों के बराबर, और प्रत्येक घोड़े को दो हिस्से दिए गए, एक हिस्सा घोड़े के मालिक को दिया गया, और एक हिस्सा पैदल सैनिकों को दिया गया।[२८] विभिन्न स्रोतों ने लिखा है कि पैगम्बर (स) ने बंदियों को मुसलमानों के बीच बांट दिया और बंदियों की रिहाई के लिए फिरौती (फ़िदया) निर्धारित किया गया। ऐसा कहा जाता है कि प्रत्येक स्त्री और प्रत्येक बच्चे के बदले में छह ऊँट फ़िरौती मे दिए जाने थे। बनी मुस्तलिक के लोग मदीना आते थे और फिरौती देकर अपने बंदियों को मुक्त कराते थे। कुछ को फिरौती का भुगतान किए बिना रिहा कर दिया गया।[२९]
जुवैरिया के साथ पैग़म्बर (स) का विवाह
बंदियों के वितरण के दौरान,खुज़ाआ जनजाति के प्रमुख हारिस बिन अबी ज़ेरार की बेटी जुवैरिया की हिरासत साबित बिन क़ैस को सौंपी गई थी[३०] तारीख तबरी के अनुसार, साबित बिन क़ैस जुवैरिया से इस पर सहमत थे कि अगर वह कुछ पैसे (सोना) दे तो उसे रिहा कर दें।[३१] अपनी स्वतंत्रता के लिए, जुवैरिया पैग़म्बर (स) के पास गई और अल्लाह की वहदानियत को स्वीकार करने के बाद, उसने आप (स) से अपनी स्वतंत्रता की कीमत का भुगतान करने के लिए कहा। पैग़म्बर (स) ने उसकी कीमत अदा की और फिर उससे शादी कर ली।[३२] लोगों के बीच इस खबर के फैलने के कारण मुसलमानों ने पैग़म्बर (स) से रिश्तेदारी के कारण बनी मुस्तलिक की सभी बंदी महिलाओं को रिहा कर दिया।[३३] कुछ रिपोर्टों में यह भी कहा गया है कि जुवैरिया की शादी की शर्त उसके लोगों के सभी बंदियों या सौ बंदियों या चालीस बंदियों की रिहाई थी।[३४]
सूर ए मुनाफ़ेक़ून की शुरुआती आयतों का नुज़ूल
अली बिन इब्राहिम क़ुमी ने अपनी तफ़सीर में उल्लेख किया है कि इस युद्ध में दो सहाबीयो के बीच कुएं से पानी भरने को लेकर लड़ाई हुई और अंसार में से एक घायल हो गया। यह समाचार सुनने के बाद, अब्दुल्लाह बिन उबैय बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने मदीना लौटने पर इस शहर से घृणित लोगों को निष्कासित करने की धमकी दी;[३५] ज़ैद बिन अरक़म जो इस घटना के चश्मदीद गवाह थे उनेहोने अब्दुल्लाह की बात को पैग़म्बर (स) के सामने रखा। अब्दुल्लाह पैग़म्बर (स) के पास गए और अल्लाह की वहदानियत और पैग़म्बर (स) की नबूवत की गवाही दी और ज़ैद की बातो का खंडन किया। थोड़ी देर बाद, सूर ए मुनाफ़ेक़ून की पहली से आठवीं आयतें नाज़िल हुईं।[३६] अल्लामा तबातबाई ने अल-मिज़ान में लिखा कि "घृणित लोगों" से अब्दुल्लाह बिन उबय का मतलब पैग़म्बर (स) थे और इस कथन के साथ उसका इरादा पैग़म्बर (स) को धमकी देने का था।[३७] कुछ रिपोर्टों के अनुसार, इस यात्रा से लौटते समय इफ़्क की घटना घटी थी।[३८]
फ़ुटनोट
- ↑ तबरी, ऐलाम उर वर्रा, 1417 हिजरी, भाग 1, पेज 196
- ↑ इब्न साद, अल तबक़ात अल कुबरा, 1418 हिजरी, भाग 2, पेज 48
- ↑ वाक़ेदी, किताब अल मग़ाज़ी, 1409 हिजरी, भाग 1, पेज 404
- ↑ इब्न हेशाम, अल सीरा अल नबवीया, बैरूत, भाग 2, पेज 286
- ↑ कलाई, अल इक्तेफ़ा, 1420 हिजरी, भाग 1, पेज 454 वाक़ेदी, अल मग़ाज़ी, 1409 हिजरी, भगा 1, पेज 404
- ↑ करीबी, मरूयात गज़्वा बनी मुस्तलिक, ऐमादतुल बहस अल इल्मी बिल जामेअतिल इस्लामीया, पेज 63
- ↑ मक़रीज़ी, इम्ताउल अस्माअ, 1420 हिजरी, भाग 1, पेज 203
- ↑ दयार उल कुबरा, तारीख अल खमीस, बैरूत, भाग 1, पेज 470
- ↑ वाक़ेदी, अल मग़ाज़ी, 1409 हिजरी, भगा 1, पेज 405; मक़रीज़ी, इम्ताउल अस्माअ, 1420 हिजरी, भाग 1, पेज 203
- ↑ अंदलूसी, अल दुरर फ़ि इख्तेसार अल मग़ाज़ी वल सैर, 1415 हिजरी, पेज 200
- ↑ इब्न कसीर, अल बिदाया वल निहाया, बैरूत, भाग 4, पेज 156
- ↑ ज़हबी, तारीख अल इस्लाम, 1409 हिजरी, भाग 2, पेज 258
- ↑ हल्बी, अल सीरत अल हल्बीया, 1427 हिजरी, भाग 2, पेज 378
- ↑ सालेही दमिश्की, सुबुल अल हुदा वल रेशाद, 1414 हिजरी, भाग 2, पेज 344; वाक़ेदी, अल मग़ाज़ी, 1409 हिजरी, भगा 1, पेज 406
- ↑ इब्न कसीर, अल बिदाया वल निहाया, बैरूत, भाग 4, पेज 156; वाक़ेदी, अल मग़ाज़ी, 1409 हिजरी, भगा 1, पेज 407
- ↑ इब्न कसीर, अल बिदाया वल निहाया, बैरूत, भाग 4, पेज 156; वाक़ेदी, अल मग़ाज़ी, 1409 हिजरी, भगा 1, पेज 407
- ↑ आमेरि, बहजतुल महाफ़िल, बैरुत, भाग 1, पेज 241
- ↑ हल्बी, अल सीरतुल हल्बीया, 1427 हिजरी, भाग 2, पेज 379
- ↑ वाक़ेदी, अल मग़ाज़ी, 1409 हिजरी, भगा 1, पेज 407
- ↑ बयहक़ी, दलाइल अल नबूवा, 1405 हिजरी, भाग 4, पेज 48
- ↑ तबरी, तारीख अल उमम वल मुलूक, 1387 हिजरी, भाग 2, पेज 604
- ↑ अस्क़लानी, अल इसाबा फ़ी तमीज़ अल सहाबा, 1415 हिजरी, भाग 1, पेज 308
- ↑ वाक़ेदी, अल मग़ाज़ी, 1409 हिजरी, भगा 1, पेज 410
- ↑ इब्न सय्यद अल नास, ओयून अल असर, 1414 हिजरी, भाग 2, पेज 129
- ↑ इब्न साद, अल तबक़ात अल कुबरा, 1418 हिजरी, भाग 2, पेज 49
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- ↑ आमोली, अल सहीह मिन सीरत उन नबी अल आज़म (अ), 1426 हिजरी, भाग 11, पेज 289; हल्बी, अल सीरत उल हल्बीया, 1427 हिजरी, भाग 2, पेज 383; वाक़ेदी, अल मग़ाज़ी, 1409 हिजरी, भगा 1, पेज 412
- ↑ आमेरि, बहजत उल महाफ़िल, बैरूत, भाग 2, पेज 143
- ↑ तबरी, तारीख अल उमम वल मुलूक, 1387 हिजरी, भाग 2, पेज 609; आमोली, अल सहीह मिन सीरत उन नबी अल आज़म (स), 1426 हिजरी, भाग 11, पेज 289
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- ↑ क़ुमी, तफ़ासीर अल क़ुमी, 1367 शम्सी, भाग 2, पेज 369-370; इब्न हेशाम, अल सीरा अल नबवीया, बैरूत, भाग 2, पेज 292
- ↑ तबातबाई, अल मीज़ान, 1390 हिजरी, भाग 19, पेज 282
- ↑ इब्न हेशाम, अल सीरा अल नबवीया, बैरूत, भाग 2, पेज 297; मक़रीज़ी, इम्ताअ उल अस्माअ, 1420 हिजरी, भाग 1, पेज 220
स्रोत
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