सहरी
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सहरी उस भोजन (नाश्ता) को कहा जाता है जोकि रोज़ा रखने वाले सुबह की आज़ान से पहले खाते हैं, और हदीसों में सहरी खाने पर ज़ोर दिया गया है। न्यायशास्त्र की दृष्टि से सहरी खाना मुस्तहब है, और न खाने से बड़ी कमज़ोरी हो जाती है और रोज़ा तोड़ने वाला हो तो सहरी खाना वाजिब माना जाता है। सहर ख़्वानी और मुनाजात पढ़ना अलग-अलग रस्में हैं जो लोगों को सहरी खाने के लिए जगाने के लिए उपयोग की जाती हैं।
महत्व और स्थिति
सहरी उस भोजन (नाश्ता) को कहा जाता है जोकि रोज़ा रखने वाले सुबह की नमाज़ से पहले खाते हैं।[१] एक रिवायत के अनुसार सहरी खाना इफ्तार करने से बेहतर है।[२] पैगंबर (स) की एक हदीस में सहरी खाना बरकत माना जाता है जिसे उनकी उम्मत नहीं छोड़ती।[३] पैग़म्बर (स) की एक दूसरी रिवायत मे सहरी खाने वाले और इस्तिग़फ़ार करने वाले मोमेनीन पर अल्लाह और फ़रिश्ते (स्वर्गदूत) सलाम और दूरूद भेजते है।[४]
चौदह मासूमीन (अ) की हदीसों में सहरी खाने पर बहुत जोर दिया गया है चाहे पानी का एक घूंट ही पीना हो,[५] ताकि रोज़ा रखने की कठिनाई मे कमी हो।[६] एक हदीस मे क़ावूत और खजूर को सहरी के लिए सबसे अच्छे भोजन के रूप में पेश किया गया है।[७] इमाम बाक़िर (अ) के कथन के अनुसार, पैगंबर (स) सहरी मे खजूर और किशमिश खाते थे।[८]
इमाम सादिक़ (अ) की एक रिवायत के अनुसार, कोई भी रोज़ेदार जो सहरी और इफ्तार के दौरान सूर ए क़द्र का पाठ (तिलावत) करता है, इन दोनो के बीच ईश्वर के मार्ग में शहीद होने वालो के समान होगा।[९]
अहकाम
न्यायविदों ने सहरी खाने के बारे में निम्नलिखित अहकाम बयान किए हैं:
- सहरी खाना मुस्तहब है[१०] और हदीसों में रमज़ान के महीने में सहरी खाने पर ज़्यादा ज़ोर दिया गया है।[११]
- यदि किसी व्यक्ति को यक़ीन हो कि साहरी न खाने के कारण उसे दिन के किसी भी समय रोज़ा इफ्तार करने पर मजबूर होगा, तो उसके लिए सहरी खाना वाजिब है।[१२]
- सहरी न खाना किसी व्यक्ति के रोज़ा नही रखने का कारण नही बन सकता है, लेकिन सहरी न खाने के कारण दिन को गंभीर कमजोरी और असहनयोग्य भूक का अनुभव हो तो वह रोज़ा इफ़्तार कर सकता है और बाद में उसकी भरपाई (क़ज़ा) करना ज़रूरी है।[१३]
- यदि कोई व्यक्ति तुलूए फ़ज्र की जांच किए बिना सहरी खाता है, और उसे पता चले कि उसने तुलुए फ़ज्र के बाद सहरी खाई थी, उस पर उस दिन के रोज़े की कज़ा वाजिब है।[१४]
- अगर सहरी खाते समय फ़ज्र की अज़ान होने लगे तो उसे अपने मुँह में जो कुछ है उसे निकालना ज़रूरी है, और यदि वह जानबूझकर उसे निगल लेता है, तो उसका रोज़ा अमान्य (बातिल) हो जाएगा और उस दिन की क़ज़ा के साथ साथ उस पर प्रायश्चित (कफ़्फ़ारा) भी वाजिब है।[१५]
रिवाज
कुछ एतिहासिक साक्ष्यो से ज्ञात होतो है कि इस्लाम की शुरुआत में इब्ने उम्मे मकतूम मुसलमानों को भोर में सहरी खाने के लिए अज़ान कहकर जगाते थे, और सहरी खाने के बाद लोग बिलाल की अज़ान की आवाज़ सुनकर सहरी खाना बंद कर देते थे और समझ जाते थे कि सुबह की नमाज़ का समय हो गया है।[१६] भोर के समय लोगों को विभिन्न तरीकों से जगाना का रिवाज प्राचीन काल से चला आ रहा है, जैसे कि मुअज्जिनों और ढंढोरचीयो का गली कूचो मे आज़ान देते हुए घूमना,[१७] मस्जिदो और दूसरे स्थानो पर मौजूद मीनारो पर लालटेन जलाना,[१८] घरों के द्वार खटखटाना[१९] और तोप से गोले दागना इत्यादि सम्मिलित है।[२०]
ईरान में रमजान की सुबह में लोगों को जगाने के लिए सहर ख़्वानी एक रस्म रही है।[२१] भारत मे भी सहर ख़्वानी का रिवाज है।[२२] सीरिया मे ढोल बजाने और तुर्की मे चाउश ख़ानी का रिवाज भी लोगो को सहरी के लिए जगाने वाली रस्म व रिवाज मे से है।[२३] लबनान में लोगों को सहरी में जगाना मुसाहिरती कहे जाने वाले लोगों की जिम्मेदारी है।[२४]
भारत में सेहरी के लिए ग़नजी[२५] और लेबनान मे मंक़ूश नामक भोजन सहरी में बनाया जाता है।[२६] सीरिया में लोग सामूहिक रूप मे सहरी खाते है।[२७] पाकिस्तान में रमज़ान महीने के आखिरी दशक मे पुरुष मस्जिदों में सहरी खाते हैं।[२८] तुर्की में इफ़्तार के अलावा सहरी का प्रबंध भी मस्जिदो मे किया जाता है।[२९]
संबंधित लेख
फ़ुटनोट
- ↑ दहख़ुदा, लुग़तनामा हदख़ुदा, सहरी के अंर्तगत
- ↑ शेख सदूक़, मन ला याहज़ेरुल फ़क़ीह, 1413 हिजरी, भाग 2, पेज 136
- ↑ कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 4, पेज 95
- ↑ शेख सदूक़, मन ला याहज़ेरुल फ़क़ीह, 1413 हिजरी, भाग 2, पेज 136
- ↑ शेख सदूक़, मन ला याहज़ेरुल फ़क़ीह, 1413 हिजरी, भाग 2, पेज 135 शेख़ तूसी, तहज़ीब अल-अहकाम, 1407 हिजरी, भाग 4, पेज 198
- ↑ शेख़ तूसी, तहज़ीब अल-अहकाम, 1407 हिजरी, भाग 4, पेज 199
- ↑ शेख सदूक़, मन ला याहज़ेरुल फ़क़ीह, 1413 हिजरी, भाग 2, पेज 136
- ↑ शेख़ तूसी, तहज़ीब अल-अहकाम, 1407 हिजरी, भाग 4, पेज 198
- ↑ सय्यद इब्ने ताऊस, इक़बाल अल-आमाल, 1409 हिजरी, भाग 1, पेज 83
- ↑ अल्लामा हिल्ली, तज़केरतुल फ़ुक़्हा, 1414 हिजरी, भाग 6, पेज 231
- ↑ देखेः कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 4, पेज 94
- ↑ मकारिम शिराज़ी, हुक्मे ख़ुरदने सहरी
- ↑ मकारिम शिराज़ी, हुक्मे रोज़ा नगिरफ़्तने फ़रदी के सहरी ना ख़ुरदे
- ↑ यज़्दी, अल-उरवातुल वुस्क़ा अल-महशी, 1419 हिजरी, भाग 3, पेज 604-606
- ↑ मूसवी ख़ुमैनी, तौज़ीहुल मसाइल (महशी), 1424 हिजरी, भाग 1, पेज 892
- ↑ शेख सदूक़, मन ला याहज़ेरुल फ़क़ीह, 1413 हिजरी, भाग 1, पेज 297
- ↑ खाजाईयान, निगाही बे आईनहाए नुमाएशी माहे रमज़ान, पेज 91
- ↑ यार अहमदी, आईनहा, मनासिक व मरासिम माहे रमज़ान दर ईरान, पेज 7
- ↑ सबरी, पुज़ूहिश मरदुम शनासी, आईनहा व सुन्नतहाए फ़रहंगी तुरकमनहा दर माहे मुबारक रमज़ान, पेज 59
- ↑ मलिक ज़ादे, शल्लीके तूप माहे रमज़ान बे रिवायते असनाद आरशीव मिल्ली ईरान, पेज 189
- ↑ जावेद, मूसीक़ी रमज़ान दर ईरान, पेज 17
- ↑ रमज़ान व ज़ीबाई तफ़ावुत आईना दर किश्वरहाए जहान, दर साइट हौज़ा नुमाइंदगी ए वली फ़क़ीह दर उमूरे हज व ज़ियारात
- ↑ रमज़ान व ज़ीबाई तफ़ावुत आईना दर किश्वरहाए जहान, दर साइट हौज़ा नुमाइंदगी ए वली फ़क़ीह दर उमूरे हज व ज़ियारात
- ↑ मुरादज़ादे, माहे ख़ूबे खुदा, दर साइट जामे जम ऑनलाइन
- ↑ रमज़ान व ज़ीबाई तफ़ावुत आईना दर किश्वरहाए जहान, दर साइट खबरगुजारी जमहूरी ए इस्लामी
- ↑ शरीअती, सुन्नत हाए रोज़ादारान लबनानी दर माहे रमज़ान, दर साइट खबरगुज़ारी हौज़ा
- ↑ वा ज़ीबाई तफ़ावुत आईना दर किश्वरहाए जहान, दर साइट खबरगुजारी जमहूरी ए इस्लामी
- ↑ मुरादज़ादे, माहे ख़ूबे खुदा, दर साइट जामे जम ऑनलाइन
- ↑ सह रस्मे जालिब माहे रमज़ान दर मिस्र, तुर्की व लबनान, दर साइट मजल्ले कूरूश
स्रोत
- सह रस्मे जालिब माहे रमज़ान दर मिस्र, तुर्की व लबनान, दर साइट मजल्ले कूरूश, तारीखे दर्ज 14 उरदीबहिश्त 1398 शम्सी, तारीख वीजीट 3 फ़रवरदीन 1401 शम्सी
- रमज़ान व ज़ीबाई तफ़ावुत आईना दर किश्वरहाए जहान, दर साइट हौज़ा नुमाइंदगी ए वली फ़क़ीह दर उमूरे हज व ज़ियारात, तारीख दर्ज 7 ख़ुरदाद 1397 शम्सी, तारीख वीजीट 3 फ़रवरदीन, 1401 शम्सी
- रमज़ान व ज़ीबाई तफ़ावुत आईना दर किश्वरहाए जहान, दर साइट खबरगुजारी जमहूरी ए इस्लामी, तारीख दर्ज 7 ख़ुरदाद 1397 शम्सी, तारीख वीजीट 3 फ़रवरदीन 1401 शम्सी
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- दहख़ुदा, अली अकबर, लुग़तनामा दहखुदा, तेहरान, रूज़नेह, 1373 शम्सी
- सय्यद इब्ने ताऊस, अली बिन मूसा, इक़बाल अल-आमाल, तेहरान, दार अल-कुतुब अल-इस्लामीया, 1409 हिजरी
- शरीअती, कौसर, सुन्नतहाए रोज़ादारान लबनानी दर माहे रमज़ान, दर साइत ख़बरगुज़ारी हौज़ा, दर्ज 12 उरदिबहिश्त 1399 शम्सी, तारीख वीजीट 3 फ़रवरदीन 1401 शम्सी
- शेख़ सदूक़, मुहम्मद बिन अली, मन ला याहज़ेरोह अल-फ़क़ीह, क़ुम, दफ्तरे इंतेशारात इस्लामी, 1413 हिजरी
- शेख़ तूसी, मुहम्मद बिन हसन, तहज़ीब अल-अहकाम, तेहरान, दार अल-कुतुब अल-इस्लामीया, 1407 हिजरी
- सब्री, मरयम, पुज़ूहिश मरदुम शनासी, आईनहा व सुन्नत हाए फ़रहंगी तुरकमनहा दर माहे मुबारक रमज़ान, दर मजल्ले पूइश दर उलूम ए इंसानी, क्रमांक 7 ताबिस्तान 1396 शम्सी
- तबातबाई यज्दी, सय्यद मुहम्मद काज़िम, अल-उरवातुल वुस्क़ा अल-महशी, क़ुम, दफ़्तरे इंतेशारात इस्लामी, 1419 हिजरी
- अल्लामा हिल्ली, हसन बिन युसुफ़, तज़्केरातुल फ़ुक़्हा, क़ुम, मोअस्सेसा आले अल-बैत (अ), 1414 हिजरी
- कुलैनी, मुहम्मद बिन याक़ूब, अल-काफ़ी, तेहरान, दार अल-कुतुब अल-इस्लामीया, 1407 हिजरी
- मुरादज़ादे, फातेमा, माहे खूब ख़ुदा, दर साइत जामे जम ऑनलाइन, तारीख दर्ज 9 शहरीवर 1389 शम्सी, तारीख वीजीट 3 फ़रवरदीन 1401 शम्सी
- मलिकज़ादे, इल्हाम, शल्लीके तूप माहे रमज़ान बे रिवायत असनाद आरशीव मिल्ली ईरान, दर मजल्ले मुतालेआत तारीख इस्लाम, क्रमांक 35, ताबिस्तान 1396 शम्सी
- मूसवी ख़ुमैनी, सय्यद रूहुल्लाह, तौज़ीहुल मसाइल (महशी), क़ुम, दफ़्तरे इंतेशारात इस्लामी, 1424 हिजरी
- यार अहमदी, जहानशीर, आईनहा, मनासिक व मरासिम माहे रमज़ान दर ईरान, दर मजल्ले नुमाइश, क्रमांक 155, मुरदाद 1391 शम्सी