हसन और हुसैन जन्नत के जवानों के सरदार

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अल हसन व अल हुसैन सय्यदा शबाबे अहल अल जन्ना (अरबी: اَلْحَسَنُ و اَلْحُسَینُ سَیِّدَا شَبَابِ أَهْلِ الْجَنَّة) इमाम हसन (अ) और इमाम हुसैन (अ) की श्रेष्ठता के बारे में पैग़म्बर (स) की एक हदीस है। कुछ शिया विद्वानों ने इस हदीस की सामग्री से यह निष्कर्ष निकाला है कि ये दोनों इमाम दुनिया के दूसरों लोगों से श्रेष्ठ हैं और इनका पालन किया जाना चाहिए। कुछ सुन्नी विद्वानों के अनुसार, जिन हदीसों में स्वर्ग के लोगों को युवा के रुप में वर्णित किया गया है, हदीस का अर्थ यह है कि हसन (अ) और हुसैन (अ) स्वर्ग के सभी लोगों के सरदार हैं; हालांकि, पैग़म्बर (स) और इमाम अली (अ) जैसे कुछ लोगों को इसकी व्यापकता से बाहर रखा गया है।

यह हदीस अमाली शेख़ तूसी, मन ला यहज़रोहुल फ़क़ीह और सुनन तिर्मिज़ी जैसे स्रोतों में वर्णित हुई है। इस हदीस को पैग़म्बर (स) के 25 साथियों, जैसे इमाम अली (अ), अबू बक्र और उमर इब्ने ख़त्ताब ने वर्णित किया है, सुन्नी और शिया विद्वान इस हदीस को मुत्वातिर मानते हैं। कुछ सुन्नी स्रोतों में, इस हदीस के समान एक हदीस वर्णित हुई है, जो अबू बक्र और उमर को स्वर्ग के लोगों के बुज़ुर्गों के सरदार के रूप में पेश करती है; लेकिन कुछ सुन्नी रेजाली विद्वान इसे कमज़ोर और गढ़ी हुई हदीस मानते हैं।

परिचय एवं स्थिति

सय्यदा शबाबे अहल अल जन्ना हदीस, पैग़म्बर (स) की एक प्रसिद्ध हदीस है,[१] जिसका उपयोग स्वर्ग के अन्य लोगों पर इमाम हसन (अ) और इमाम हुसैन (अ) की श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए किया गया है।[२] किताब बिहार अल अनवार में वर्णित हुआ है कि इमाम हुसैन (अ) ने अपनी सच्चाई (हक़्क़ानियत) सिद्ध करने के लिए कर्बला की घटना में दुश्मन के सामने इस हदीस का हवाला दिया था।[३]

हदीस का शब्द इस प्रकार है: «اَلْحَسَنُ وَ الْحُسَینُ سَیدَا شَبَابِ أَهْلِ الْجَنَّة» (अल हसन व अल हुसैन सय्यदा शबाबे अहले जन्नत) “हसन (अ) और हुसैन (अ) जन्नत के जवानों के सरदार हैं”।[४] यह हदीस शिया और सुन्नी हदीसी स्रोतों में अन्य शब्दों के साथ भी वर्णित हुई है; उनमें से: «الْحَسَنُ وَ الْحُسَینُ سَیدَا شَبَابِ أَهْلِ الْجَنَّةِ وَ أَبُوهُمَا خَیرٌ مِنْهُمَا» (अल हसन व अल हुसैन सय्यदा शबाबे अहले अल जन्नते व अबूहोमा ख़ैरुन मिनहोमा) "हसन (अ) और हुसैन (अ) जन्नत के जवानों के सरदार हैं, और उनके पिता उन दोनों से बेहतर हैं[५] और «الْحَسَنَ وَ الْحُسَینَ سَیدَا شَبَابِ أَهْلِ الْجَنَّةِ وَ أَنَّ فَاطِمَةَ سَیدَةُ نِسَاءِ أَهْلِ الْجَنَّة» (अल हसन व अल हुसैन सय्यदा शबाबे अहले अल जन्नते व अन्ना फ़ातेमता सय्यदातो नेसाए अहले अल जन्नत) “हसन और हुसैन जन्नत के जवानों के सरदार हैं और फ़ातिमा जन्नत की महिलाओं की सरदार हैं”।[६]

स्वर्ग के सभी लोगों पर हसनैन की श्रेष्ठता

कुछ हदीसों में जन्नत के सभी लोगों को युवा बताया गया है।[७] कुछ सुन्नी विद्वानों ने ऐसी हदीसों का हवाला देते हुए, जन्नत के लोगों में शबाब (युवा) को जोड़ने को हदीस के अतिरिक्त और इसकी व्याख्या के रूप में माना है;[८] अर्थात, हसन (अ) और हुसैन (अ) स्वर्ग के सभी लोगों के सरदार हैं।[९] हालांकि, पैग़म्बर (स) और हज़रत अली (अ) को इससे बाहर रखा गया है।[१०] एक अन्य हदीस में, यह उल्लेख किया गया है कि ईश्वर के पैग़म्बर (स) ने हज़रत ईसा (अ) और हज़रत यह्या (अ) को इस से बाहर रखा था।[११] लेकिन शिया विद्वानों में से एक मुहम्मद हसन मुज़फ्फ़र ने इस हदीस में कमी और बढ़ोतरी करने की संभावना दी है और उल्लिखित अपवाद को स्वीकार नहीं किया है; क्योंकि इब्राहीम (अ) और मूसा (अ) जैसे पैग़म्बर हैं जो यह्या से बेहतर हैं, लेकिन हदीस में उन्हें बाहर नहीं रखा गया है।[१२]

हसनैन की इमामत सिद्ध करने के लिए एक दस्तावेज़

शिया विद्वानों में से एक, अली बहरानी (मृत्यु: 1340 हिजरी), एक हदीस का हवाला देते हुए, जिसमें महशर के लोगों के सरदार को दुनिया के लोगों का सरदार माना है,[१३] उनका मानना है कि हदीस सय्यदा शबाबे अहले अल जन्नत के अनुसार, इमाम हसन (अ) और इमाम हुसैन (अ) दुनियां में भी श्रेष्ठ हैं और इनका पालन किया जाना चाहिए।[१४] इसी कारण से कहा गया है कि यह हदीस उन दोनों इमामों की इमामत सिद्ध करने का एक कारण है।[१५]

"सय्यद" का प्रयोग उस व्यक्ति के लिए किया जाता है जिसके पास नेतृत्व, महानता और सम्मान है।[१६] साथ ही, जो व्यक्ति सभी अच्छे गुणों में दूसरों से श्रेष्ठ है उसे सय्यद कहा जाता है।[१७]

हदीस का मुत्वातिर होना

शिया हदीस विद्वान अल्लामा मजलिसी, सय्यदा शबाबे अहले अल जन्नत हदीस को शिया और सुन्नी विद्वानों के बीच मुत्वातिर मानते हैं।[१८] स्यूती और नासिरुद्दीन अल्बानी सहित कुछ सुन्नी विद्वानों ने भी इस हदीस को मुत्वातिर माना है।[१९] अबू नईम इस्फ़हानी, एक सुन्नी हदीस विद्वान, इस हदीस की श्रृंखला (सनद) की ताक़त के बारे में एक व्यंग्यात्मक व्याख्या (केनाई ताबीर) में, अहमद बिन हंबल द्वारा वर्णित है कि यदि इस हदीस की श्रृंखला एक पागल व्यक्ति को सुनाई जाए, तो उसका पागलपन ख़त्म हो जाएगा।[२०]

इस हदीस का प्रसिद्ध विवरण शेख़ तूसी ने अपनी पुस्तक अमाली[२१] और शेख़ सदूक़ ने अपनी पुस्तक मन ला यहज़रोहुल फ़क़ीह[२२] में किया है। सुन्नी विद्वानों में, तिर्मिज़ी और इब्ने अबी शैबा भी इस हदीस के वर्णन करने वालों में से हैं।[२३] कुछ शोधकर्ताओं के अनुसार, सय्यदा शबाबे अहले अल जन्नत, हदीस अपने अलग-अलग उद्धरणों के साथ पैग़म्बर (स) के 25 साथियों, जैसे इमाम अली (अ), अबू बक्र और उमर इब्ने ख़त्ताब ने वर्णित किया है।[२४]

उमर और अबू बक्र के सम्मान में ऐसी ही हदीस गढ़ना

सुन्नी स्रोतों में, अबू बक्र और उमर के सम्मान में, सय्यदा शबाबे अहले अल जन्नत हदीस के समान एक हदीस का उल्लेख किया गया है, कि वे स्वर्ग के बुज़ुर्गों के सरदार हैं।[२५] हैसमी और इब्ने जौज़ी, सुन्नी विद्वानों ने इस हदीस को कमज़ोर और गढ़ी हुई हदीस माना है।[२६]

तबरसी ने एहतेजाज किताब में वर्णित किया है, इमाम जवाद (अ) के साथ यह्या इब्ने अकसम की बहस में, यह्या ने इमाम से पूछा: इस हदीस के बारे में आपकी क्या राय है "अबू बक्र और उमर स्वर्ग के बुज़ुर्गों के सरदार हैं"? इमाम ने पैग़म्बर (स) द्वारा ऐसा बयान जारी करना असंभव माना है और उन्होंने कहा: यह हदीस "हसन और हुसैन स्वर्ग के लोगों के सरदार हैं" के ख़िलाफ़ बनी उमय्या द्वारा गढ़ी हुई हदीस है।[२७]

फ़ुटनोट

  1. फ़त्ही, "हदीस सय्यदा शबाब अहल अल जन्ना व मस्अला अफ़्ज़लीयते इमाम", पृष्ठ 61।
  2. फ़त्ही, "हदीस सय्यदा शबाब अहल अल जन्ना व मस्अला अफ़्ज़लीयते इमाम", पृष्ठ 61 82।
  3. बिहार अल अनवार, 1403 हिजरी, खंड 45, पृष्ठ 6।
  4. शेख़ तूसी, अमाली, 1414 हिजरी, पृष्ठ 312; शेख़ सदूक़, मन ला यहज़रो अल फ़क़ीह, 1413 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 179; तिर्मिज़ी, सुनन अल तिर्मिज़ी, 1395 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 656; इब्ने अबी शैबा, अल-मुसन्नफ़, 1409 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 378, हदीस 32176।
  5. हिमयरी, क़ुर्ब अल अस्नाद, 1413 हिजरी, पृष्ठ 111; इब्ने माजा, सुनन इब्ने माजा, दार अल एह्या अल-कुतुब अल अरबिया, खंड 1, पृष्ठ 44।
  6. शेख़ मुफ़ीद, अमाली, 1413 हिजरी, पृष्ठ 23; अहमद बिन हंबल, मुसनद अहमद, 1421 हिजरी, खंड 38, पृष्ठ 353, हदीस 2329।
  7. शेख़ मुफ़ीद, अल इख़्तिसास, 1413 हिजरी, पृष्ठ 358; तिर्मिज़ी, सुनन अल तिर्मिज़ी, 1395 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 679; बिहार अल अनवार, 1403 हिजरी, खंड 43, पृष्ठ 292।
  8. मनावी, फैज़ अल क़दीर, 1356 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 151।
  9. सिंदी, हाशिया अल-सिंदी, दार अल-जील, खंड 1, पृष्ठ 57।
  10. मुजफ्फ़र, दलाइल अल सिद्क़, 1422 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 463; फ़त्ही, "हदीस सय्यदा शबाब अहल अल जन्ना व मस्अला अफ़्ज़लीयते इमाम", पृष्ठ 59।
  11. बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, खंड 43, पृष्ठ 316।
  12. मुजफ्फ़र, दलाइल अल सिद्क़, 1422 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 461-462।
  13. इब्ने अबी अल हदीद, शरहे नहजुल बलाग़ा, 1404 हिजरी, खंड 7, पृष्ठ 64।
  14. बहरानी, मनार अल होदा, 1405 हिजरी, पृष्ठ 582।
  15. बाज़ुंद, "बाज़ ख़्वानी सनदी व दलाली हदीस सय्यदा शबाब अहले जन्ना", मरकज़े हक़ाएक़ इस्लामी।
  16. बहरानी, मनार अल होदा, 1405 हिजरी, पृष्ठ 582।
  17. समआनी, तफ़सीर अल कुरआन, 1418 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 316; खाज़िन, लोबाब अल तावील, 1415 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 242।
  18. मजलिसी, हक़ अल यक़ीन, इंतेशाराते इस्लामी, पृष्ठ 287।
  19. मनावी, अल तैसीर बे शरहे अल जामेअ अल सग़ीर, 1408 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 507; अल-अल्बानी, सिल्सिला अल अहादीस अल सहीहा, 1415 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 431।
  20. इस्फ़हानी, तारीख़े इस्फ़हान, 1410 हिजरी, पृष्ठ 73।
  21. शेख तुसी, अमाली, 1414 हिजरी, पृष्ठ 312।
  22. शेख़ सदूक़, मन ला यहज़रो अल फ़क़ीह, 1413 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 179।
  23. तिर्मिज़ी, सुनन अल तिर्मिज़ी, 1395 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 656; इब्ने अबी शैबा, अल-मुसनफ़, 1409 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 378, हदीस 32176।
  24. फ़त्ही, "हदीस सय्यदा शबाब अहल अल जन्ना व मस्अला अफ़्ज़लीयते इमाम", पृष्ठ 62।
  25. तिर्मिज़ी, सुनन अल तिर्मिज़ी, 1395 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 611; अहमद बिन हंबल, मुसनद अहमद, 1421 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 40, हदीस 602।
  26. हैसमी, मजमा अल ज़वाएद, 1414 हिजरी, खंड 9, पृष्ठ 53; इब्ने जौज़ी, अल-मौज़ूआत, 1386 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 398।
  27. तबरसी, अल-इह्तेजाज, 1403 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 447।

स्रोत

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