अल जार सुम्मा अल दार

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अली बहरैनी द्वारा "अल जार सुम्मा अल दार" नामक कैनवस चित्रकला

अल-जार सुम्मा अल-दार, (अरबी: الجار ثم الدار) का अर्थ है "पहले पड़ोसी, फिर घर", यह हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (अ)[१] की एक प्रसिद्ध हदीस[२] के पाठ से लिया गया एक वाक्य है। इमाम हसन (अ) ने एक रिवायत में बयान किया है कि मेरी माँ ने एक बार शुक्रवार की रात (शबे जुमा) में सुबह तक अपने मेहराब में इबादत में मशगूल रहीं और मोमिन मर्दों और औरतों के लिए उनके नाम लेकर बहुत दुआएँ कीं, लेकिन उन्होने अपने लिए दुआ नहीं की। मैंने कहा: मेरी माँ! आप दूसरों के लिए प्रार्थना करते समय अपने लिए प्रार्थना क्यों नहीं करती? उन्होंने कहाः मेरे बेटे! पहले पड़ोसी, फिर घर।[३]

इलल अल-शरायेअ पुस्तक के अध्याय 145 में, शेख़ सदूक़ ने दो अलग-अलग स्रोतों (सनद) के साथ दो हदीसों को उद्धृत किया है जिसमें अल-जार सुम्मा-अल-दार (اَلجارَ ثُمَّ الدّارَ) वाक्यांश शामिल है। पहला कथन इमाम हसन (अ.स.) का है और दूसरा इमाम काज़िम (अ.स.) का है जो उनके पूर्वजो के हवाले से उल्लेख किया गयी है, जिनकी सामग्री में बहुत अंतर नहीं है।[४] शेख़ हुर्रे आमिली ने अपने लिए प्रार्थना करने से पहले अन्य मोमिनो के लिए प्रार्थना करने को मुसतहब माना है। और उन्होंने वसायल अल-शिया किताब में इसके लिए एक अध्याय रखा है। उन्होने इन दो हदीसों को अपनी राय के कारण के रूप में उद्धृत किया हैं।[५]

सय्यद अली खान मदनी ने अपने शब्दकोष में पड़ोसी विषय के साथ कई कहावतों में इस वाक्य को अलग-अलग सामग्री के साथ शामिल किया है। उनके अनुसार, यह कहावत घर में रहने से पहले पड़ोसी के बारे में जानने या घर खरीदने से पहले उसके बारे में जानने के महत्व को दर्शाती है।[६] अल-काफ़ी और तोहफ़ अल-उक़ूल जैसी हदीस की किताबों में, इमाम अली (अ.स.) का एक वाक्य है जो घर चुनने से पहले पड़ोसी को जानने के महत्व के बारे में है और उनके वाक्यांश हज़रत फ़ातेमा (अ) के वाक्यांश के समान है।[७] हदीस अध्ययन के शोधकर्ता मेहदी मेहरिज़ी ने ऐसी हदीसों के अर्थ को समझने के लिए जिनमें सामान्य शब्द हों, हदीस जारी करने के माहौल पर ध्यान देने को ज़रूरी माना है।[८] यह कहा गया है कि यह वाक्य और दोनों सामग्री का उपयोग फ़ारसी रीति-रिवाजों और साहित्य में भी किया गया है।[९] एक सुन्नी विद्वान, अवज़ाई द्वारा लिखित किताब अल-एख्तेसास में लुक़मान अल-हकीम द्वारा अपने बेटे को दी गई सलाह की जानकारी दी गई है, जिसमें यह वाक्यांश "अल-जार सुम्मा-अल-दार" भी[१०] शामिल है।

ऐसा कहा गया है कि अत्तार नैशापूरी और ग़ज़ाली जैसे आरिफ़ों और कवियों ने अल-जार सुम्मा अल-दार वाक्य का श्रेय दूसरी चंद्र शताब्दी की तपस्वी महिला रबीआ अदविया को दिया है।[११] कुछ शोधकर्ताओं ने इस दावे को हदीस स्रोतों और हज़रत फ़ातेमा (स) के कथन का हवाला देते हुए, ख़ारिज कर दिया है।[१२] आरिफ़ों ने इस वाक्यांश का अर्थ स्वर्ग पर ईश्वर की प्राथमिकता और इबादत में ख़ुलूस को माना है।[१३]

फ़ुटनोट

  1. शेख़ सदूक़, इलल अल शरायेअ, 1385/1966 ई., खंड 1, पृष्ठ 182।
  2. जमशेदी, "क़वायदे फ़हमे हदीस", पृष्ठ 60।
  3. शेख़ सदूक़, इलल अल शरायेअ, 1385/1966 ई., खंड 1, पृष्ठ 182।
  4. शेख़ सदूक़, इलल अल शरायेअ, 1385/1966 ई., खंड 1, पृष्ठ 182।
  5. शेख़ हुर्र आमिली, वसायल अल-शिया, 1409 हिजरी, खंड 7, पृष्ठ 113।
  6. मदनी शिराज़ी, अल-तराज़, 2004, खंड 7, पृष्ठ 230।
  7. कुलैनी, काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 8, पृष्ठ 24; इब्न शोबा हर्रानी, ​​तोहफ़ अल-उक़ूल, 1404 हिजरी/1363 शम्सी, पृष्ठ 86; नहज अल-बलाग़ा, सहिह सुबही सालेह, पत्र 31, पृष्ठ 405।
  8. मेहरिज़ी, हदीस अनुसंधान, 2013, खंड 1, पृष्ठ 179।
  9. "फारसी साहित्य पर शिया कथाओं का भाषाई और सामग्री प्रभाव", आईन रहमत साइट।
  10. शेख मुफीद, अल-इख़तेसास, 1413 एएच, पृष्ठ 337।
  11. पनाही, "अल-जार सुम्मा अल-दार और इसके स्रोत और नैतिक और रहस्यमय शिक्षाओं की समीक्षा", पीपी. 32-34।
  12. पनाही, "अल-जार सुम्मा अल-दार और इसके स्रोत और नैतिक और रहस्यमय शिक्षाओं की समीक्षा", पीपी. 36-34।
  13. मुल्ला सदरा, तफ़सीर अल-कुरान अल-करीम, 1366, खंड 4, पृष्ठ 414; खंड 7, पृ. 399; पनाही, "अल-जार सुम्मा अल-दार और इसके स्रोत और नैतिक और रहस्यमय शिक्षाओं की समीक्षा", पृष्ठ 33।

स्रोत

  • इब्न शोबा हर्रानी, ​​हसन बिन अली, तोहफ़ अल-उक़ूल, अली अकबर ग़फ़्फ़ारी द्वारा संपादित, क़ुम, जामिया मोदार्रेसिन, दूसरा संस्करण, 1404 हिजरी/1363 शम्सी।
  • पनाही, मीहन, "अल-जार सुम्मा अल-दार और इसके स्रोत और नैतिक और रहस्यमय शिक्षाओं का अध्ययन", इस्लामिक रिसर्च जर्नल, नंबर सात, ग्रीष्मकालीन 2013।
  • "फारसी साहित्य पर शिया कथाओं का भाषाई और सामग्री प्रभाव", आईने रहमत साइट, प्रवेश की तारीख़: 5 ख़ुरदाद 1403 शम्सी।
  • जमशीदी, असदुल्लाह, "क़वायदे फ़हमे हदीस", मारेफ़त मैगज़ीन में, नंबर 83, आबान 1383 शम्सी।
  • शेख़ सदूक़, मुहम्मद बिन अली, इलल अल-शरायेअ, क़ुम, दावरी बुकस्टोर, पहला संस्करण, 1966/1385 शम्सी।
  • शेख़ मोफिद, मुहम्मद बिन मुहम्मद, अल-इख़तेसास, क़ुम, अल-मोतमर अल-आलमी लिल अल्फिया अल-शेख़ अल-मोफिद, पहला संस्करण, 1413 हिजरी।
  • कुलैनी, मुहम्मद बिन याक़ूब, अल-काफ़ी, अली अकबर ग़फ़्फ़ारी और मुहम्मद आखुंदी द्वारा शोध, तेहरान, दार अल-कुतुब अल-इस्लामिया, चौथा संस्करण, 1407 हिजरी।
  • मदनी शिराज़ी, अली खान बिन अहमद, अल-तराज़ अल-अव्वल वा अल-कनाज़ लम्मा अलैहे मिन तुलग़ित अरब, मशहद, परंपरा के पुनरुद्धार के लिए आलुल-बैत संस्थान, पहला संस्करण, 1384 शम्सी।
  • मुल्ला सदरा, मुहम्मद, तफ़सीर अल-कुरान अल-करीम, मुहम्मद ख़ाजवी द्वारा शोध, क़ुम, बीदार प्रकाशन, दूसरा संस्करण, 1366 शम्सी।
  • मौलवी, जलालुद्दीन मोहम्मद, मसनवी मनावी, बेकोशिश तौफीक़ हाशिमपूर सुबहानी, तेहरान, संस्कृति और इस्लामी मार्गदर्शन मंत्रालय, पहला संस्करण, 1373 शम्सी।
  • मेहरिज़ी, महदी, हदीस अध्ययन, क़ुम, दार अल-हदीस, दूसरा संस्करण, 1390 शम्सी।
  • नहज अल-बलाग़ा, सुबही सालेह द्वारा संशोधित, क़ुम, दार अल-हिजरा संस्थान, 1414 हिजरी।