तेहरान मे अमेरिकी दूतावास पर क़ब्ज़ा
| अन्य नाम | जासूसों के घोंसले पर विजय • दूसरी क्रांति |
|---|---|
| कथा का वर्णन | इमाम की विचारधारा का अनुसरण करने वाले छात्रों द्वारा तेहरान में अमेरिकी दूतावास पर कब्ज़ा |
| समय | 13 नवंबर, 1979 |
| अवधि | इस्लामी गणतंत्र ईरान |
| स्थान | तेहरान में अमेरिकी दूतावास |
| कारण | शाह का अमेरिका में प्रवास |
| लक्ष्य | शाह को ईरान वापस लाना• अमेरिका को तख्तापलट करने से रोकना |
| एजेंट | इमाम के मार्ग पर चलने वाले छात्र |
| परिणाम | अमेरिका और ईरान के बीच राजनयिक संबंध तोड़ना • अमेरिका को ईरानी तेल निर्यात बंद करना |
| घाटा | नहीं था |
| प्रतिक्रियाएँ | ईरान की अस्थायी सरकार का सामूहिक इस्तीफ़ा • अमेरिकी बैंकों में ईरान के विदेशी मुद्रा खातों पर रोक |
तेहरान में अमेरिकी दूतावास पर क़ब्ज़ा, जिसे जासूसी अड्डे पर कब्ज़ा भी कहा जाता है, 3 नवंबर, 1979 ई को इमाम की विचारधारा का पालन करने वाले छात्रों द्वारा ईरान में अमेरिकी दूतावास पर क़ब्ज़ा करने की घटना को संदर्भित करता है। यह घटना अमेरिका द्वारा मुहम्मद रज़ा पहलवी (ईरान के अपदस्थ शाह) को स्वीकार किए जाने के विरोध में हुई थी। उस समय ईरान के नेता इमाम ख़ुमैनी ने इस कार्रवाई को दूसरी क्रांति कहा और अमेरिका को बड़ा शैतान और दूतावास को जासूसी अड्डा कहा।
इस घटना के कई परिणाम हुए, जिनमें अस्थायी सरकार का सामूहिक इस्तीफा, ईरान और अमेरिका के बीच राजनयिक संबंधों का विच्छेद और अमेरिका द्वारा ईरानी संपत्तियों पर क़ब्ज़ा शामिल है।
तब्स में अमेरिकी सैन्य अभियान (1970 ई) की विफलता के बाद, अल्जीरिया की मध्यस्थता और इस्लामी काउंसिल की स्वीकृति से 444 दिनों के बाद अंततः बंधकों को रिहा कर दिया गया।
इस घटना की वर्षगांठ (3 नवंबर) को ईरान में वैश्विक अहंकार के विरुद्ध राष्ट्रीय संघर्ष दिवस के रूप में मनाई जाती है।
महत्व और स्थान
3 नवंबर, 1979 ई को तेहरान में अमेरिकी दूतावास पर कब्ज़ा, जिसे जासूसी अड्डे पर कब्ज़ा[१] के नाम से जाना जाता है, कुछ लोग इसको ईरान की इस्लामी क्रांति के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ मानते हैं।[२] कुछ लोगों का मानना है कि ईरान में साम्राज्यवाद के प्रभाव को कम करने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका के कारण इस घटना का इस्लामी क्रांति के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान है।[३]
इमाम खुमैनी ने छात्रों द्वारा की गई इस कार्रवाई को दूसरी क्रांति कहा और इसे इस्लामी क्रांति से एक कदम आगे माना।[४] ईरानी नेताओं के अनुसार, इस घटना के कारण अमेरिकी वैभव का पतन हुआ[५] और ईरान के विरुद्ध शत्रुओं की साज़िशें निष्प्रभावी हो गईं।[६] इसके अन्य परिणाम भी हुए, जैसे राजनयिक संबंधों का विच्छेद और ईरानी संपत्तियों की ज़ब्ती।
अमेरिका के इलिनोइस विश्वविद्यालय में शोधकर्ता और राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर फ्रांसिस एंथनी बॉयल ने इस कार्रवाई को संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 51 के अनुसार, अमेरिकी खतरों से अपनी रक्षा करने का ईरान का वैध अधिकार माना है। वह छात्र आंदोलन को आक्रामकता को रोकने और अमेरिका के एक और तख्तापलट के प्रयास को रोकने के एक साधन के रूप में भी देखते हैं।[७]
आज, इस दिन को ईरानी कैलेंडर में वैश्विक अहंकार के विरुद्ध संघर्ष दिवस के रूप में मनाया जाता है, और हर साल इस दिन लोकप्रिय रैलियाँ आयोजित की जाती हैं।[८]
पृष्ठभूमि
"आज ऐसा दिन नहीं है कि हम बैठे रहें और सिर्फ देखते रहें... आज भूमिगत गद्दारियाँ हो रही हैं... ये सब इन्हीं दूतावासों में हो रहा है, जिनमें सबसे मुख्य और बड़ा शैतान अमेरिका है। हम बैठ नहीं सकते जबकि वे साजिशें रच रहे हैं... उन्हें यह नहीं सोचना चाहिए कि हम बैठे-बैठे सुनते रहेंगे कि वे जो चाहें वही करें। नहीं, ऐसा नहीं है। यह मामला फिर से क्रांति का है। यह पहली क्रांति से भी बड़ी क्रांति होगी।"[९]
20 अक्टूबर 1979 ई को संयुक्त राज्य अमेरिका में मुहम्मद रज़ा पहलवी की शरण को तेहरान में छात्रों द्वारा अमेरिकी दूतावास पर कब्ज़ा करने के मुख्य कारणों में से एक माना जाता है।[१०] 29 और 30 नवंबर को, इमाम खुमैनी ने छात्रों, विद्यार्थियों और धार्मिक विद्वानों से आह्वान किया था कि वे अमेरिका द्वारा मुहम्मद रज़ा शाह को शरण दिए जाने के विरोध में, संयुक्त राज्य अमेरिका के विरुद्ध अपने संघर्ष को मज़बूती से जारी रखें।[११] मोअस्सेसा तंज़ीम व नशर आसार इमाम खुमैनी के तत्कालीन उप निदेशक हामिद अंसारी के अनुसार, इमाम खुमैनी के शब्दों ने इस्लामी संघों को यह महसूस कराया कि क्रांति और देश को अराजकता और अलगाववाद से बचाने के लिए उन्हें कार्रवाई करनी होगी।[१२]
अमेरिकी दूतावास को एक जासूसी केंद्र में तब्दील कर दिया गया,[१३] विरोधी और आतंकवादी समूहों से संपर्क और समर्थन,[१४] ईरानी सरकारी अधिकारियों को आकर्षित करने के दूतावास के प्रयास,[१५] ईरानी क्रांति से पहले हुई फ़ासीयो के खिलाफ अमेरिकी सीनेट में एक प्रस्ताव पारित करना,[१६] 7 नवंबर 1979 ई को इमाम खुमैनी के संदेश का समर्थन करना और ईरान और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच औपनिवेशिक समझौतों का विरोध करना[१७] और ईरान में 19 अगस्त 1953 के तख्तापलट का बदला लेना[१८] तेहरान में अमेरिकी दूतावास पर कब्ज़ा करने के अन्य कारण हैं।
घटना का विवरण

4 नवंबर, 1979 ई को तेहरान विश्वविद्यालय के छात्रों का एक समूह आयतुल्लाह तालेक़ानी स्ट्रीट पर तेहरान विश्वविद्यालय की ओर मार्च कर रहा था। जब वे अमेरिकी दूतावास के मुख्य द्वार पर पहुँचे, तो उनमें से कुछ ने प्रवेश द्वार की जंजीरें खोल दीं और दीवार फांदकर दूतावास परिसर में प्रवेश कर गए।[१९] उन्हें अमेरिकी बंदूकधारियों के तीन घंटे के प्रतिरोध का सामना करना पड़ा, जिन्होंने आँसू गैस के गोले दागे।[२०]
छात्रों ने लाउडस्पीकरों पर बयान जारी करके मुख्य भवन पर पूर्ण कब्ज़ा करने की घोषणा की।[२१] इस घटना से पहले, अमेरिकियों ने दूतावास के कुछ दस्तावेज़ों को बाहर निकालकर नष्ट कर दिया था।[२२] इस घटना के दौरान, 72 अमेरिकियों को बंधक बना लिया गया था, और बातचीत के लिए विदेश मंत्रालय गए तीन अमेरिकियों को भी छात्रों को सौंप दिया गया था।[२३] छात्रों ने खुद को इमाम के मार्ग पर चलने वाले छात्र बताया, और अपनी कार्रवाई को अमेरिकी नीतियों के विरोध और इमाम खुमैनी के विचारों के समर्थन के रूप में वर्णित किया।[२४]
क़ब्ज़े के बाद, दूतावास शुरू में रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के नियंत्रण में था। और फिर क़ुरआन व इतरत को हस्तांतरित कर दिया गया। आज, यह स्थान 13 आबान छात्र सांस्कृतिक केंद्र के रूप में छात्र बसीज के क़ब्ज़े में है।[२५]
इमाम के मार्ग पर चलने वाले एक छात्र, इब्राहीम असगरज़ादेह द्वारा मूसवी खोइनी और सय्यद अहमद ख़ुमैनी के बीच हुई एक टेलीफोन बातचीत का वर्णन, जिसमें उन्होंने 4 नवम्बर वर्ष 1979 ई को विश्वविद्यालयों के इस्लामी संघों के छात्रों द्वारा अमेरिकी दूतावास पर कब्ज़ा करने के बारे में इमाम ख़ुमैनी की राय पूछी थी: "अहमद आगा दो नमाज़ों के बीच इमाम की राय पूछने गए और वापस आकर कहा, इमाम ने कहा: छात्रो ने अच्छी जगह पर क़ब्ज़ा किया है उसे छोड़े नही।"[२६]
प्रतिक्रियाएँ
अस्थायी सरकार का इस्तीफ़ा
दूतावास पर कब्ज़ा करने के बाद, प्रधानमंत्री महदी बाज़रगान के नेतृत्व वाली ईरान की अस्थायी सरकार ने 4 नवंबर[२७] को सामूहिक रूप से इस्तीफ़ा दे दिया और एक अन्य विवरण के अनुसार, 5 नवंबर 1979[२८] को, और क्रांतिकारी परिषद ने देश चलाने की ज़िम्मेदारी संभाली, जिसने अपने पहले कदम में संयुक्त राज्य अमेरिका को तेल निर्यात बंद कर दिया।[२९]
ईरान और अमेरिका के बीच राजनयिक संबंधों का विच्छेद
अमेरिका ने शुरुआत में 150 ईरानी छात्रों को गिरफ़्तार किया[३०] और 9,000 ईरानियों को निष्कासित करने का आदेश दिया।[३१] अपने अगले कदम में, उसने दुनिया भर के बैंकों में ईरान के विदेशी मुद्रा भंडार को फ़्रीज़ कर दिया[३२] और ईरान के साथ राजनयिक संबंध तोड़ लिए।[३३] अमेरिका ने हेग स्थित अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और यहाँ तक कि इस्लामिक सम्मेलन संगठन में भी ईरान की निंदा की।[३४]
इमाम खुमैनी द्वारा वार्ता के अनुरोध को अस्वीकार करना
"'अमेरिकी दूतावास' नामक षड्यंत्र और जासूसी का केंद्र और वहाँ हमारे इस्लामी आंदोलन के खिलाफ षड्यंत्र रचने वाले व्यक्तियों को अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक सम्मान प्राप्त नहीं है... ईरानी राष्ट्र ईरान में इन जासूसी अड्डों को अपनी शर्मनाक हरकतें जारी रखने से रोकने के लिए उठ खड़ा हुआ है।"[३५]
छात्रों द्वारा दूतावास पर कब्ज़ा करने के बाद, इमाम खुमैनी ने संयुक्त राज्य अमेरिका को बड़ा शैतान और अमेरिकी दूतावास को जासूसी का अड्डा कहा।[३६] दो उच्च पदस्थ अधिकारियों ने बातचीत के लिए आए अमेरिकियों को स्वीकार नहीं किया।[३७]
इसके बाद, अमेरिका ने बंधकों की रिहाई के लिए मध्यस्थ के रूप में कई अधिकारियों का इस्तेमाल किया, जैसे कि संयुक्त राष्ट्र के तत्कालीन महासचिव कर्ट वाल्डहाइम[३८] और दुनिया के कैथोलिक नेता पोप जॉन पॉल द्वितीय तेहरान आए। इमाम खुमैनी ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव से मिलने के अनुरोध के साथ-साथ बंधकों की रिहाई के लिए पोप के बिना शर्त अनुरोध को भी स्वीकार नहीं किया।[३९]
मई 1970 में, अमेरिका ने सैन्य कार्रवाई की और अपने बंधकों को मुक्त कराने के लिए तबस रेगिस्तान में सेना उतारी, लेकिन यह अभियान भी विफल रहा।[४०]
बंधकों की रिहाई
444 दिनों के बाद, उस समय के सरकारी अधिकारियों ने इमाम खुमैनी की अनुमति से, इस्लामी सलाहकार सभा के निर्णय के बाद, और अल्जीरियाई सरकार की मध्यस्थता से, अमेरिकी अधिकारियों से मुलाकात की और बंधकों को रिहा करते हुए अल्जीयर्स समझौता संपन्न किया। ईरानी पक्ष ने पाँच माँगें रखीं, लेकिन 25 अगस्त 1970 को शाह की मृत्यु के साथ, शाह के प्रत्यर्पण की शर्त रद्द कर दी गई। सभी ईरानी संपत्तियों की रिहाई, ईरान के खिलाफ सभी अमेरिकी दावों को रद्द करना, ईरान में अमेरिका के किसी भी राजनीतिक या सैन्य हस्तक्षेप की गारंटी नहीं देना, और शाह द्वारा चुराई गई राष्ट्रीय संपत्ति की वापसी, ये चार अन्य शर्तें थीं जो ईरान ने बंधकों की रिहाई के लिए रखी थीं।[४१]
गैलरी
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इमाम की विचारधारा का अनुसरण करने वाले छात्रों के बीच इमाम ख़ुमैनी के प्रतिनिधि सय्यद अहमद ख़ुमैनी की उपस्थिति
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ईरान की इस्लामी क्रांतिकारी परिषद के सदस्य सय्यद अली ख़ामेनेई की अमेरिकी दूतावास में उपस्थिति
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छात्र प्रतिनिधि और प्रवक्ता मूसवी खोइनिस के साथ इमाम की विचारधारा का अनुसरण करने वाले छात्र
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अमेरिकी दूतावास पर कब्जे के संबंध में इमाम की विचारधारा का अनुसारण करने वाले छात्रों की घोषणा
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जब्त किए गए अमेरिकी दूतावास के सदस्यों द्वारा नष्ट किए गए दस्तावेज़
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जामेअ रूहानियत मुबारिज़ ने अमेरिकी दूतावास पर कब्जे का दौरा किया
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20 नवंबर, 1979 को प्रकाशित कैहान अखबार का पहला पृष्ठ
फ़ुटनोट
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स्रोत
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- शाह अली, अहमद रज़ा, तासीर वाक़ेआ तस्ख़ीर लाने जासूसी अमेरिका बर जिरयानहाए सियासी दाखिल किशवर, पुजूहिशहाए सियासी जहान इस्लाम पत्रिका, क्रमांक 4, पाईज़ 1391 शम्सी।
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- शैरूदी, मुर्तज़ा, तहलील जामेअ शनाख़्ती अज़ जुम्बिश दानिशजूई ईरान, हुसून पत्रिका, क्रमांक 21, पाईज़ 1388 शम्सी।
- समदी फ़र्द, अली रज़ा, माजराए लाने जासूसी व नमूनेहाए आशकार दुशमनी इस्तिकबार, मुबल्लेगान पत्रिका, क्रमांक 245, आबान व आज़र 1398 शम्सी।
- हमगाम बा पीरूज़ी बुजुर्ग तर, 13 आबान-तस्ख़ीर लाने जासूसी अमेरिका, पासदार इस्लाम पत्रिका, क्रमांक 107, आबान 1369 शम्सी।
- हानतीनगुतून, सामूइल, इमप्रातूरी अमेरिका तन्हा यक अफ़साने अस्त, अनुवाद मुज्तबा अमीरी वहीद, इत्तेलात सियासी-इक्तेसादी पत्रिका, क्रमांक 21-22 फ़रवरदीन व उरदिबहिश्त 1384 शम्सी।
- हाशिमपूर यज़्दान परस्त, सय्यद मुहम्मद, तस्ख़ीर लाने जासूसी अमेरिका, एलल व ज़मीनेहा, पाज़्देह खुरदाद पत्रिका, क्रमांक 17, पाईज़ 1387 शम्सी।
- हैदरी असग़र, तस्खीर लाने जासूसी अमेरिका व सफ़र कमीसीयून तहक़ीक़ साज़मान मिलल बे ईरान, 15 खुरदाद पत्रिका, क्रमांक 18 ज़मिस्तान 1387 शम्सी।
- चेरा हज़रत इमाम ख़ुमैनी (र) क़ातेआने अज़ तस्ख़ीर लाने जासूसी अमेरिका हमायत करदंद? साइट मरकज़ अस्नाद इंक़ेलाब इस्लामी, प्रविष्ट की तारीख 12 आबान 1400 शम्सी, विजिट की तारीख 20 खुरदाद, 1402 शम्सी।
- इक़्दामात सियासी अमेरिका बाद अज़ तस्ख़ीर सिफ़ारत अमेरिका, साइट मरकज़ अस्नाद इंक़ेलाब इस्लामी, प्रविष्ट की तारीख 16 आबान 1394 शम्सी, वीजिट की तारीख 17 तीर, 1402 शम्सी।
- चेरा अमेरिका तख्ते जम्शेद रा बराए सिफारत ख़ाना ख़ुद इंतेखाब कर्द? ईरना समाचार एजंसी, प्रविष्ट की तारीख 13 आबान 1392 शम्सी, वीजिट की तारीख 25 तीर 1402 शम्सी।
- बयानात दर दीदार दानिश आमूज़ान व दानिशजूयान, साइट दफ्तर हिफ़्ज व नशर आसार आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनेई, प्रविष्ट की तारीख 12 आबान 1395 शम्सी, वीजिट की तारीख 16 खुरदाद 1402 शम्सी।
- हुज़ूर माअनादार मुरदुम ईरान दर राहपैमाई 13 आबान / ख़त व निशान राहपैमायान बराए “अमेरिका व इग़्तेशासगरान” + फ़िल्म, तस्नीम समाचार एजेंसी, प्रविष्ट की तारीख 13 आबान 1401 शम्सी, वीजिट की तारीख 21 तीर 1402 शम्सी।
- चे किताबहाए दरबारा ए तस्खीर लाने जासूसी अमेरिका बेखानीम? किताब ईरान समाचार एजेंसी की साइट, प्रविष्ट की तारीख 13 आबान 1398 शम्सी, वीजिट की तारीख 24 तीर 1402 शम्सी।