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विवाह

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विवाह या निकाह (अरबीः النكاح) विवाह अनुबंध के माध्यम से विवाह बंधन का निर्माण है। कुरआन शादी और पुरुषों को अपनी पत्नियों के साथ आराम का स्रोत मानता है और मुसलमानों को अविवाहित पुरुषों और महिलाओं से शादी करने की सलाह देता है। रिवायतों के अनुसार, इस्लाम के बाद विवाह सबसे बड़ी नेअमत है, विवाह धर्म के आधे या दो तिहाई हिस्से को संरक्षित करने मे पैगंबर (स) की सुन्नत है।

पत्नी चुनने के लिए रिवायतोंं में दिए गए मानदंडों में धार्मिकता, अच्छी नैतिकता और अच्छा परिवार शामिल हैं। न्यायविदों के दृष्टिकोण से, विवाह अपने आप मे मुस्तहब मोअकद्द है, लेकिन जिस व्यक्ति के लिए विवाह न करना पाप करने का कारक हो तो उसके लिए अनिवार्य (वाजिब) है।

इमामिया शिया धर्म में विवाह स्थायी और अस्थायी (दाइम और मोअक़्कत) दो प्रकार के होते हैं। अस्थायी विवाह (अक़्दे मोअक़्क़त) अनुबंध के रूप में विवाह की अवधि और महर की राशि का निर्धारण एक शर्त है और इस अवधि के बाद पति-पत्नी बिना तलाक़ के अलग हो जाते हैं।

तौज़ीह अल-मसाइल में, विवाह के लिए कई न्यायशास्त्रीय नियम हैं, जिनमें से एक सबसे महत्वपूर्ण विवाह के अनुबंध (निकाह के सीग़े) को पढ़ने की आवश्यकता है और विवाह को पूरा करने के लिए केवल पुरुष और महिला की सहमति पर्याप्त नहीं है, कुंवारी लड़की को शादी करने के लिए अपने पिता या दादा से अनुमति लेनी होगी।

विवाह लेआन, तलाक़, मृत्यु, लिंग परिवर्तन, धर्मत्याग, और विवाह को रद्द करने के कारकों में से एक के अस्तित्व के साथ विवाह का अंत हो जाता है और अलग होने के बाद, महिला को इद्दत करनी चाहिए।

परिभाषा और प्रकार

विवाह अनुबंध के माध्यम से वैवाहिक बंधन का निर्माण विवाह कहलाता है। इमामिया शिया संप्रदाय में विवाह स्थायी और अस्थायी (दाइम और मोअक़्कत) दो प्रकार के होते हैं। अस्थायी विवाह (अक़्दे मोअक़्क़त) अनुबंध के रूप में विवाह की अवधि और मेहेर की राशि का निर्धारण एक शर्त है और इस अवधि के बाद पति-पत्नी बिना तलाक़ के अलग हो जाते हैं।[]

अस्थायी विवाह

मुख़्य लेखः अस्थायी विवाह

पैग़म्बर (स) के समय अस्थायी विवाह वैध (जायज़) था; लेकिन दूसरे ख़लीफ़ा के समय से इसे हराम घोषित कर दिया गया।[] इस्लामी स्कूलों में केवल इमामिया शिया संप्रदाय अस्थायी विवाह को वैध (जायज) मानता है।[] अस्थायी विवाह और स्थायी विवाह के बीच सबसे महत्वपूर्ण अंतर यह है कि अस्थायी विवाह एक सीमित अवधि के लिए होता है जिस अवधि का उल्लेख अक़्द के सीग़े में आवश्यक है।[]

स्थायी और अस्थायी विवाह के बीच अंतर

इस्लामी विद्वान आयतुल्लाह मुर्तज़ा मुतह्हरी विवाह की शैक्षिक भूमिका के बारे में:

"इस्लाम में, विवाह (भले ही यह सुख और वासना की श्रेणी से है) एक पवित्र कार्य और एक इबादत (उपासना) माना गया है। इसका एक कारण यह है कि विवाह पहला क़दम है जब इंसान स्वार्थ और आत्म-केंद्रितता से निकलकर दूसरों से प्रेम की ओर बढ़ता है। विवाह से पहले, केवल 'मैं' (अहं) का अस्तित्व होता था और सब कुछ इसी 'मैं' के लिए था। पहला चरण जब यह खोल टूटता है, वह विवाह के साथ होता है, यानि इस 'मैं' के बगल में एक दूसरा प्राणी भी आ खड़ा होता है और उसके लिए अर्थपूर्ण हो जाता है; (व्यक्ति) काम करता है, परिश्रम करता है, सेवा करता है - 'मैं' के लिए नहीं बल्कि 'उस' (पति/पत्नी) के लिए।"

मुतह्हरी, तालीम व तरबीयत दर इस्लाम, पृष्ठ 267

स्थायी विवाह और अस्थायी विवाह के कई नियम समान हैं; जैसा कि दोनों में अक़्द के सीग़े पढ़ना आवश्यक है। इन दोनों विवाहों में कुछ अंतर भी हो जिकि निम्नलिखित हैं:

  • स्थायी विवाह में, अस्थायी विवाह के विपरीत, पति को पत्नी के भरण-पोषण (नफ़्क़ा) का भुगतान करना होता है।
  • स्थायी विवाह में पत्नि अपने पति की अनुमति के बिना घर से बाहर नही निकल सकती; लेकिन अस्थाई विवाह में पुरूष की अनुमति की आवश्यकता नहीं होती है।
  • स्थायी विवाह में अस्थायी विवाह के विपरीत पति और पत्नि को एक दूसरे से विरासत मिलती हैं।[]
  • यदि अस्थायी विवाह में मेहेर का उल्लेख नहीं है, तो विवाह अमान्य है; हालाँकि स्थायी विवाह में विवाह सही है और शारीरिक संबंध बनाने की स्थिति मे मेहर अल-मिस्ल की हकदार होती है।[]

स्थान

इस्लाम धर्म ने विवाह (निकाह) को बहुत महत्व दिया है और इसे पैग़म्बर मुहम्मद (स) की एक सुन्नत (परंपरा) बताया है।[] और कुंवारे रहने, शादी न करने और जीवनसाथी न चुनने को मकरूह (अवांछनीय) माना है।[] इसके अलावा, पवित्र क़ुरआन ने विवाह को सुकून (आराम) का साधन बताया है[] और मुसलमानों को सलाह दी है कि वे बिन-ब्याहे पुरुषों और महिलाओं का विवाह करवाएं।[१०]

हदीसों में शादी के लिए कई विशेषताएं और फ़ायदे बताए गए हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं: इस्लाम के बाद सबसे बड़ी नेअमत,[११] दुनिया और आख़िरत (परलोक) में भलाई का कारण,[१२] आधे या दो-तिहाई दीन (धर्म) की रक्षा करने वाली,[१३] और रोज़ी (जीविका) बढ़ाने वाली।[१४] साथ ही, मुसलमानों में सबसे नीच (निकृष्ट) मुर्दे वे लोग बताए गए हैं जो बिना शादी किए दुनिया से जाते हैं।[१५]

नियम

ईरान में स्थायी विवाह प्रमाणपत्र का एक उदाहरण।

तौज़ीह अल-मसाइल और कई न्यायशास्त्रीय पुस्तको मे विवाह से संबंधित नियम का उल्लेख हैं। उनमें से कुछ सबसे महत्वपूर्ण निम्नलिखित हैं:

  • न्यायविदों के दृष्टिकोण से, विवाह स्वयं मुस्तहब मोअक्कद है, लेकिन जिस व्यक्ति के लिए विवाह न करना पाप करने का कारक हो तो उसके लिए अनिवार्य (वाजिब) है।[१६]
  • स्थायी और अस्थायी विवाह में, विवाह अनुबंध (अक्द के सीग़े) को पढ़ना आवश्यक है, और केवल पुरुष और महिला की सहमति ही विवाह को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है।[१७]
  • पुरुष और महिला विवाह अनुबंध (अक़्द के सीग़े) स्वयं पढ़ सकते हैं या अपनी ओर से अक़्द के सीग़े पढ़ने के लिए किसी को वकील बना सकते हैं।[१८]
  • यदि पुरुष और महिला मे अरबी में सीग़ा पढ़ने की क्षमता हो, तो उन्हें इसे अरबी में पढ़ना चाहिए।[१९]
  • एक कुंवारी लड़की को शादी करने के लिए अपने पिता या दादा से अनुमति लेनी होगी।[२०]
  • पुरूष का माँ, बहन और सास से विवाह करना हराम है।[२१]
  • गैर-मुस्लिम पुरुष के साथ मुस्लिम महिला की स्थायी और अस्थायी शादी जायज़ नहीं है।[२२]
  • मुस्लिम पुरुष और गैर-मुस्लिम महिला (अहले किताब) के बीच अस्थायी विवाह की अनुमति है।[२३]

जीवनसाथी चुनने के लिए रिवायती मानदंड

कुछ रिवायतों में, विवाह के मानदंड बताए गए हैं और जीवनसाथी चुनने पर विचार करने की सिफारिश की गई है; एक रिवायत के अनुसार पैगंबर (स) ने धार्मिक (मुतादय्यन) लोगों से शादी करने की सिफारिश की है।[२४] मकारिम अल-अख़लाक़ किताब में इमाम सादिक़ (अ) एक रिवायत मे फ़रमाते हैं: एक सभ्य परिवार से शादी करो; क्योंकि पारिवारिक विशेषताएं बच्चों मे आती हैं।[२५] इमाम रज़ा (अ) की एक हदीस मे आया है कि बुरे व्यक्ति से शादी करने से बचना चाहिए।[२६] ज़ैद बिन साबित कहते हैं कि ईश्वर के पैग़म्बर (स) ने मुझसे फरमाया: ऐ ज़ैद! क्या तुमने शादी कर ली है? मैंने कहा: नहीं। तो आपने फरमाया: शादी कर लो ताकि तुम्हारी पवित्रता सुरक्षित रहे, लेकिन पाँच प्रकार की औरतों से शादी न करना। मैंने कहा: वे औरतें कौन सी हैं? आपने फ़रमाया: कभी भी "शहबरा", "लहबरा", "नहबरा", "हैदरा" और "लफूत" से शादी न करना। मैंने कहा: ऐ ईश्वर के रसूल! मैं समझा नहीं, आपने क्या फ़रमाया और मैं इन शब्दों में से किसी का अर्थ नहीं जानता। तो ईश्वर के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमाया: क्या तुम अरब नहीं हो? "शहबरा" वह औरत है जिसकी आँखें नीली हों और बुरा बोलने वाली हो। "लहबरा" वह औरत है जो लंबी और पतली हो। "नहबरा" वह औरत है जो छोटे कद और बुरे स्वभाव वाली हो। "हैदरा" वह बूढ़ी औरत है जो कुबड़ी हो। और "लफ़ूत" वह औरत है जिसके पहले शौहर से बच्चे हों।[२७][नोट १]

विवाह समाप्ति के कारक

न्यायविदों के अनुसार लिंग परिवर्तन,[२८] मृत्यु, तलाक़ और विवाह भंग होने का कारण बनने वाली चीजें विवाह समाप्ति के कारण हैं।[२९] विवाह की समाप्ति के बाद महिला को इद्दत (एक निश्चित अवधि जिसके दौरान स्त्री विवाह करने का अधिकार नहीं रखती) करनी चाहिए।[३०]

ईश्वर के पैग़म्बर:

"तुम्हारी सर्वश्रेष्ठ महिलाएं वे हैं जो अत्यधिक संतान (जननी) वाली और अत्यंत दयालु (प्यार करने वाली) हों। अपने परिवार (या कबीले) के लिए सम्मानित और (बुरी नज़रों से) ढकी हुई हों, और अपने पति के प्रति विनम्र हों और (उसके सामने) बेपर्दा (घूंघट रहित) हों, और अपने पति के अलावा (दूसरे पुरुषों) से अपने आप को सख्ती से ढके रहने वाली हों। वह अपने पति की बात सुनती है और उसके आदेश का पालन करती है, और एकांत में वह उसे वह सब कुछ प्रदान करती है जो वह चाहता है, साथ ही स्त्रीयोचित कोमलता के साथ।" "फिर आप (सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम) ने फरमाया: 'क्या मैं तुम्हें बताऊं कि तुम्हारी सबसे बुरी महिलाएं कौन हैं?' लोगों ने कहा: 'हां, (बताइए)!' तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम) ने फरमाया: 'वह महिला जो अपने परिवार (या कबीले) के सामने विनम्र और दब्बू हो, लेकिन अपने पति के प्रति विद्रोही (ज़िद्दी) हो, बांझ हो, द्वेष रखने वाली हो, बुराई से संयम न रखती हो (अर्थात बुराई करने से न रुके), और जब उसका पति मौजूद न हो तो (अनैतिकता में) बेपरवाह हो, और एकांत में अपने पति से (संबंध बनाने से) इनकार करती हो, जैसे एक जिद्दी घोड़ी (जो सवार को गिरा दे)। वह अपने पति का बहाना (या दोष) स्वीकार नहीं करती और न ही उसके गुनाह को माफ़ करती है।'"

शेख़ हुर्रे आमोली, वलाएल अल शिया, खंड 20, पृष्ठ 30।

विवाह में बाधाएँ

इस्लामी न्यायशास्त्र में बाधाओं के अस्तित्व के कारण कुछ महिलाओं के साथ विवाह हराम है:

  • अस्थायी बाधाएँ: ऐसी स्थितियाँ जिनमें स्त्री और पुरुष का विवाह अस्थायी रूप से हराम (हराम मोअक़्क़त) होता है, और जब ये स्थितियाँ समाप्त हो जाती हैं, तो हुरमत भी समाप्त हो जाती है।[३१] जैसे:
  1. इस्तीफ़ा ए अदद: [नोट २] इसका मतलब है कि एक पुरुष चार से अधिक स्वतंत्र महिलाओं से स्थायी विवाह नहीं कर सकता।[३२] और दो कनीज़ो के साथ स्थायी विवाह करने पर वह तीसरी कनीज़ से शादी नहीं कर सकता।[३३]
  2. दो बहनों से शादी: एक ही समय में दो बहनों से शादी करना हराम है, लेकिन अगर किसी व्यक्ति की पत्नी की मृत्यु हो गई है या वे तलाक के कारण अलग हो गए हैं, तो वह उस महिला की बहन से शादी कर सकता है।[३४] [नोट ३]
  3. कुफ़्र और धर्मत्याग: मुस्लिम महिला का काफ़िरे हर्बी या काफ़िरे किताबी और इसी प्रकार मुर्तद्द (धर्मत्यागी) के साथ स्थायी और अस्थायी विवाह जायज़ नही है[३५] इसी प्रकार पुरूष पर काफ़िर और धर्मत्यागी के साथ शादी करना जायज़ नहीं है।[३६]

विवाह पंजीकरण कानून

कई देशों में विवाह कानूनी रूप से पंजीकृत किया जाता हैं।[४६] कुछ देशो मे विवाह पंजीकृत न कराने पर अपराध माना जाता है।[४७] विवाह पंजीकरण के कुछ उद्देश्य हैं: विवाह की प्रामाणिकता सुनिश्चित करना, विवादों की रोकथाम और जीवनसाथी के अधिकारों को साबित करने में आसानी।[४८]

संबंधित लेख

फ़ुटनोट

  1. मोअस्सेसा दाएरतुल मआरिफ़ फ़िक़्ह इस्लामी, फरहंगे फ़िक्ह, 1392 शम्सी, भाग 1, पेज 390
  2. सुब्हानी, इज़्देवाज मोअक़्क़त दर किताब वा सुन्नत, पेज 125-126
  3. सुब्हानी, इज़्देवाज मोअक़्क़त दर किताब वा सुन्नत, पेज 63
  4. हुसैनी, अहकाम ए इज़्देवाज, 1389 शम्सी, पेज 121
  5. हुसैनी, अहकाम ए इज़्देवाज, 1389 शम्सी, पेज 121-122
  6. अकबरी, अहकाम ए ख़ानवादा, 1393 शम्सी, पेज 26
  7. कुलैनी, अल काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 5, बाबे कराहत अल अज़्बा, पृष्ठ 329।
  8. हुर्रे आमोली, वसाएल अल शिया, खंड 20, पृष्ठ 18।
  9. सूर ए रूम आयत 21।
  10. सूर ए नूर, आयत 32, हुसैनी, अहकामे इज़्देवाज, 1389 शम्सी, पृष्ठ 39-40।
  11. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 5, बाबो मन वफ़ेक़ा लहू अज़्जौजतो अल-सालेहा, पेज 327
  12. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 5, बाबो मन वफ़ेक़ा लहू अज़्जौजतो अल-सालेहा, पेज 327
  13. कुलैनी, अल काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 5, बाबे कराहत अल अज़्बा, पृष्ठ 329।
  14. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 5, बाबो अन्ना तज़्वीजा यज़ीदो फ़िर रिज़्क़, पेज 330-331
  15. कुलैनी, अल काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 5, बाबे कराहत अल अज़्बा, पृष्ठ 329।
  16. हुसैनी, अहकाम ए इज़्देवाज, 1389 शम्सी, पेज 39-40
  17. इमाम ख़ुमैनी, तौज़ीह अल-मसाइल (मोहश्शी), 1424 हिजरी, भाग 2, 450
  18. इमाम ख़ुमैनी, तौज़ीह अल-मसाइल (मोहश्शी), 1424 हिजरी, भाग 2, 450
  19. इमाम ख़ुमैनी, तौज़ीह अल-मसाइल (मोहश्शी), 1424 हिजरी, भाग 2, 453
  20. इमाम ख़ुमैनी, तौज़ीह अल-मसाइल (मोहश्शी), 1424 हिजरी, भाग 2, 458
  21. इमाम ख़ुमैनी, तौज़ीह अल-मसाइल (मोहश्शी), 1424 हिजरी, भाग 2, 464
  22. इमाम ख़ुमैनी, तौज़ीह अल-मसाइल (मोहश्शी), 1424 हिजरी, भाग 2, 468
  23. इमाम ख़ुमैनी, तौज़ीह अल-मसाइल (मोहश्शी), 1424 हिजरी, भाग 2, 468
  24. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 5, पेज 332
  25. तबरसी, मकारिम अल-अख़लाक़, 1370 शम्सी, पेज 203
  26. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 5, पेज 563
  27. सदूक़, अल ख़ेसाल, 1362 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 316।
  28. इमाम ख़ुमैनी, तहरीर अल-वसीला, 1384 शम्सी, पेज 992-993
  29. नजफी, जवाहिर अल-कलाम, 1404 हिजरी, भाग 32, पेज 211
  30. नजफी, जवाहिर अल-कलाम, 1404 हिजरी, भाग 32, पेज 211
  31. सारदूई नसब व दिगरान, वाकावी तत्बीक़ी हुरमतहाए अब्दी ए इज़्देवाज दर फ़िक़्ह इमामीया वा ज़ैदीया बा रूकर्द ए हुक़ूक़ी, पेज 86
  32. मोहक़्क़िक़ हिल्ली, शरा ए अल-इस्लाम, 1408 हिजरी, भाग 2, पेज 236
  33. मोहक़्क़िक़ हिल्ली, शरा ए अल-इस्लाम, 1408 हिजरी, भाग 2, पेज 237
  34. शहीदे अव्वल, अल-लुम्अतुत दमिश्क़ीया, 1410 हिजरी, पेज 164
  35. ख़ुमैनी, तहरीर अल-वसीला, 1434 हिजरी, भाग 2, पेज 305
  36. ख़ुमैनी, तहरीर अल-वसीला, 1434 हिजरी, भाग 2, पेज 305
  37. सारदूई नस्ब व दिगरान, वाकावी तस्बीक़ी हुरमतहाए अब्दी इज़्देवाज दर फ़िक़्ह इमामीया व ज़ैदीया बा रूइकर्द हक़ूक़ी, पेज 86
  38. शेख़ मुफ़ीद, अल-मुक़्नेआ, 1413 हिजरी, पेज 501
  39. मोहक़्क़िक़ हिल्ली, शरा ए अल-इस्लाम, 1408 हिजरी, भाग 2, पेज 237 फ़ाज़िल मिक़दाद, कंज़ अल-इरफ़ान, 1425 हिजरी, भाग 2, पेज 295
  40. अल्लामा हिल्ली, तहरीर अल-अहकाम, 1420 हिजरी, भाग 2, पेज 583
  41. इब्ने इद्रीस हिल्ली, अल-सराइर, 1410 हिजरी, भाग 2, पेज 526
  42. शेख मुफ़ीद, अल मुक़्नेआ, 1413 हिजरी, पेज 501
  43. अल्लामा हिल्ली, तहरीर अल-अहकाम, 1420 हिजरी, पेज 465 फाज़िल आबी, कश्फ़ अल-रुमूज़, 1417 हिजरी, भाग 2, पेज 216
  44. शेख मुफ़ीद, अल मुक़्नेआ, 1413 हिजरी, पेज 501 फ़ाज़िल आबी, कश्फ़ अल-रुमूज़, 1417 हिजरी, भाग 2, पेज 216
  45. बहजत, मनासिक हज, क़ुम, पेज 100 सुब्हानी, मनासिक हज, 1388 शम्सी, भाग 1, पेज 91
  46. असदी, नकद व बररसी क़वानीन सब्ते इज़्देवाज, पेज 103
  47. असदी, नकद व बररसी क़वानीन सब्ते इज़्देवाज, पेज 103
  48. असदी, नकद व बररसी क़वानीन सब्ते इज़्देवाज, पेज 106-109

नोट

  1. कुछ शोधकर्ताओं ने इन शब्दों की व्याख्या इस तरह से की है ताकि किसी की प्राकृतिक और अनैच्छिक विशेषता, शादी से वंचित होने का आधार या कारण न बन सके। उदाहरण के लिए, "लहबरा" की व्याख्या में कहा गया है कि यह उस औरत को कहते हैं जो लंबी, पतली-दुबली (मतलब कम अक़्ल वाली) हो। और "हीदरा" उस औरत को कहते हैं जो बूढ़ी, बुज़ुर्ग, धूर्त और चालाक हो।
  2. इस्तीफ़ा ए अदद अर्थात निकाह और तलाक़ मे निर्धारित संख्या का पूरा होना। (दाएरातुल मआरिफ, फ़रहंग फ़िक़्ह फ़ारसी, भाग 1, पेज 503)
  3. एक समय मे दो बहनो से शादी – चाहे निस्बी हो चाहे रज़ाई हो – स्थायी शादी हो या अस्थायी शादी या अलग (एक निस्बी हो दूसरी रिज़ाई, एक स्थायी शादी हो दूसरी अस्थायी शादी) हो जायज़ नही है। अगर एक बहन के साथ शादी करे फ़िर दूसरी बहन से शादी करे तो दूसरी शादी अमान्य (बातिल) है नाकि पहली शादी चाहे पहली वाली के साथ शारीरिक संबंध बनाए हो या ना बनाए हो, अगर दोनो के साथ एक ही समय एक ही अक्द किया हो तो दोनो अमान्य है। (ख़ुमैनी, तहरीर अल-वसीला, नाशिरः मोअस्सेसा तंज़ीम वा नशर आसारे इमाम ख़ुमैनी (र), भाग 2, पेज 266
  4. अगर पुरूष स्वतंत्र महिला को तीन बार तलाक दे तो वह महिला उस पुरूष पर हराम हो जाती है लेकिन मोहल्लिल के माध्यम से फिर हलाल हो जाती है। लेकिन अगर कोई पुरूष किसी महिला को 9 बार इसी प्रकार तलाक़ दे तो वह महिला उस पुरूष पर हमेश के लिए हराम हो जाती है। (मोअस्सेसा दाएरातुल मआरिफ़ अल-फ़िक़्ह अल-इस्लामी, फ़रहंगे फ़िक्ह फ़ारसी, भाग 1, पेज 503)

स्रोत

  • असदी, लैला सादात, नक़द व बररसी क़वानीन सब्ते इज़्देवाज, दर मजल्ले मुतालेआत राहबुरदी ज़नान, तेहरान, शूराइ फ़रहंगी इज्तेमाई ज़नान वा ख़ानवादे, ताबिस्तान 1387, क्रमांक 40
  • अकबरी, महमूद, अहकाम ख़ानवादे, क़ुम, फ़ित्यान, 1393
  • इमाम ख़ुमैनी, सय्यद रूहुल्लाह, तौज़ीह अल-मसाइल (मोहश्शी), तहकीक सय्यद मुहम्मद हुसैन बनी हाशमी खुमैनी, क़ुम, दफ्तरे इंतेशारात इस्लामी, आठवां संस्करण, 1424 हिजरी
  • हुसैनी, सय्यद मुज्तबा, अहकामे इज्देवाज (मुताबिक बा नज़र दह तन अज़ मराजे ए एज़ा), क़ुम, दफ्तरे नशरे मआरिफ़, सातवां संस्करण, 1389 शम्सी
  • सुब्हानी, जाफ़र, इज़्देवाज मोअक़्क़त दर किताब व सुन्नत, फिक़्ह अहले-बैत, क्रमांक 48, 1385 शम्सी
  • शहीद सानी, ज़ैनुद्दीन बिन अली, मसालिक अल-इफ़्हाम एला तनंकीह शरा ए अल-इस्लाम, क़ुम, मोअस्सेसा अल-मआरिफ अल-इस्लामीया, पहला संस्करण, 1413 हिजरी
  • सन्आनी, अब्दुर रज़्ज़ाक बिन हम्माम, अल-मुस्न्निफ़, मजलिस इल्मी, 1390 हिजरी
  • तबरसी, फ़ज़्ल बिन हसन, मकारिम अल-अख़लाक़, क़ुम, अल-शरीफ़ अल-रज़ी, चौथा संस्करण, 1412 हिजरी
  • तूसी, मुहम्मद बिन हसन, अल-मबसूत फ़ी फ़िक़्ह अल-इमामीया, तस्हीह मुहम्मद तकी कश्फ़ी, तेहरान, अल मकतबा अल-मुर्रजवीया लेएहया ए आसारे अल-जाफ़रीया, 1387 शम्सी
  • कुलैनी, मुहम्मद बिन याकूब, अल-काफ़ी, तहक़ीक अली अकबर गफ़्फ़ारी, तेहरान, दार अल-कुतुब अल-इस्लामीय, चौथा संस्करण, 1407 हिजरी
  • मसूर, जहानगीर, क़ानून मदनी बा आखेरीन इस्लाहीयेहा वा इल्हाक़ात हमराह बा क़ानून मस्ऊलीयत मदनी, तेहरान, नशर दीदार, 1391 शम्सी
  • हाशमी शाहरूदी, सय्यद महमुद, फ़रहंग फ़िक़्ह मुताबिक बा मज़हब अहले-बैत (अ), क़ुम, मोअस्सेसा दाएरातुल मआरिफ़ फ़िक़्ह इस्लामी, पहला संस्करण, 1392 हिजरी
  • नजफ़ी, मुहम्मद हसन, जावहिर अल-कलाम फ़ी शरह शरा ए अल-इस्लाम, बैरूत, दार एहया अल तुरास अल-अरबी, सातवां संस्करण, 1404 हिजरी