झूठी गवाही

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झूठी गवाही (अरबी: شهادة الزور) देना बड़े पापों (गुनाहे कबीरा) में से एक है अर्थात व्यक्ति वास्तविक्ता के विपरीत गवाही देता है। न्यायविद आयात और हदीसों का हवाला देकर इसे हराम मानते हैं और उनके मत के अनुसार यदि स्वीकारोक्ति, गवाही और न्यायाधीश के ज्ञान से गवाही झूठी साबित हो जाती है तो झूठे गवाह को दण्ड (तअज़ीर) दिया जायेगा। यदि न्यायाधीश के फ़ैसला सुनाने से पहले यह मालूम हो जाता है कि गवाही झूठी थी, तो वह फ़ैसला रद्द कर दिया जाएगा, लेकिन यदि फ़ैसला सुनाने के बाद यह सिद्ध होता है, तो झूठी गवाही देने वाला व्यक्ति, दोषी (जिस व्यक्ति के खिलाफ़ फैसला आया है) को हर्जाना (जैसे कि धन, या प्रतिशोध (दीया और क़ेसास)) देगा।

महत्व एवं स्थिति

शेख़ तूसी (मृत्यु 460 हिजरी) ने अपनी पुस्तक मबसूत में कहा है कि झूठी गवाही को प्रमुख पापों (गुनाहे कबीरा) में से एक माना गया है;[१] यह भी कहा गया है कि ईश्वर से शिर्क करने के बाद इससे बड़ा कोई पाप नहीं है।[२] इमामिया न्यायशास्त्र में, अल शहादात के शीर्षक के साथ एक अध्याय है, जिसमें झूठी गवाही के अहकाम पर भी चर्चा की गई है।[३]

शिया मौलवी और लेखक मोहम्मद मोहम्मदी इश्तेहारदी (मृत्यु 2005) ने कुरआन[४] में झूठी गवाही और मूर्तिपूजा के मेल को झूठी गवाही की गंदगी का संकेत बताया है।[५] इसके अलावा, झूठी गवाही से बचना, क़ुरआन में एबाद अल रहमान (ईश्वर के बंदों) की विशेषताओं में से एक के रूप में वर्णित है।[६]

परिभाषा

झूठी गवाही का अर्थ है कि कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी ऐसी बात की गवाही देता है जिसके बारे में वह नहीं जानता है या वह जो गवाही देता है वह वास्तविक्ता के विपरीत होता है।[७] कुछ न्यायविदों का मानना है कि झूठी गवाही को अपराध माना गया है और अदालत में आधिकारिक अधिकारियों के समक्ष उस पर मुक़द्दमा चलाया जा सकता है।[८]

झूठी गवाही के हुरमत का कारण

शिया न्यायशास्त्र में झूठी गवाही को हराम माना गया है और इसकी हुरमत के लिए आयत «وَاجْتَنِبُوا قَوْلَ‌ الزُّور» "वजतनेबू क़ौल अल ज़ूर"[९] का हवाला दिया गया है;[१०] इमाम ख़ुमैनी और सय्यद अली ख़ामेनेई का मानना है कि उल्लिखित आयत झूठे कथन की हुरमत को इंगित करती है, जिसमें झूठ, झूठी गवाही और संगीत (ग़ेना) शामिल है।[११]

कुछ टिप्पणीकारों का मानना है कि आयत «وَالَّذِينَ لَا يَشْهَدُونَ الزُّورَ» "वल्लज़ीना ला यश्हदूना अल ज़ूर"[१२] भी झूठी गवाही की हुरमत को इंगित कर रही है।[१३] सय्यद हुसैन बुरुजर्दी, शिया मरज ए तक़लीद, इमाम सादिक़ (अ) की एक हदीस के आधार पर, "जो झूठी गवाही देता है उसने अभी तक अपनी जगह से एक क़दम भी नहीं उठाया होता है कि नर्क की आग उस पर अनिवार्य हो जाती है",[१४] तर्क देते हुए उन्होंने झूठी गवाही को हराम माना है।[१५] अल्लामा हिल्ली ने इमाम बाक़िर (अ) की एक और रिवायत का हवाला दिया है: "ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जो किसी मुस्लिम व्यक्ति की संपत्ति हड़पने के लिए उसके खिलाफ़ झूठी गवाही दे, मगर यह कि अल्लाह, सर्वशक्तिमान, दस्तावेज़ में यह न लिख दे कि वह जहन्नमी (नर्क में रहने वाला) है।"[१६]

अहकाम

झूठी गवाही उन पापों में से एक है जिसके लिए शरियत में कोई सज़ा (हद) तय नहीं की गई है, लेकिन इसके लिए तअज़ीर (शरई सज़ा (हद) से कुछ कम अपराधी को सज़ा देना और कोड़े मारना)[१७] को माना गया है और इस मामले में इमामिया और अहले सुन्नत सहमत हैं लेकिन इसके विवरण में मतभेद पाया जाता है: शिया न्यायविद तअज़ीर के साथ-साथ तशहीर (किसी व्यक्ति का लोगों के बीच परिचय करना) को भी मानते हैं और इस मामले में मतभेद भी नहीं है;[१८] शेख़ तूसी ने इस मुद्दे को स्पष्ट किया है।[१९] हालाँकि, इसी मुद्दे पर सुन्नी न्यायविदों के बीच विवाद रहा है।[२०]

प्रमाण के तरीक़े

झूठी गवाही को कई तरीक़ों से सिद्ध किया जा सकता है:

  • स्वीकारोक्ति (इक़रार): एक व्यक्ति इक़रार करता है और अपनी गवाही से मुकर जाता है।[२१]
  • दूसरों की गवाही: लोग प्राथमिक गवाहों की गवाही की सत्यता के विरुद्ध गवाही देते हैं।[२२]
  • न्यायाधीश का ज्ञान: कभी-कभी, न्यायाधीश विभिन्न तरीकों से पता लगाता है कि दी गई गवाही झूठी है।[२३] मुस्तफ़ा मोहक़्क़िक़ दामाद (जन्म 1324 शम्सी (1945)) के अनुसार, इस मामले में न्यायाधीश के ज्ञान को प्राथमिक्ता प्राप्त है।[२४]

न्यायिक और कानूनी परिणाम

झूठी गवाही के परिणाम इस प्रकार हैं:

जारी आदेश का उल्लंघन

किताब अल दुरूस अल शरीया में शहीद अव्वल (शहादत 786 हिजरी) के अनुसार, यदि फैसले के निष्पादन से पहले गवाह की झूठी गवाही सिद्ध हो जाती है, तो न्यायाधीश के फ़ैसले पर रोक लगा दिया जाएगा।[२५] अनुच्छेद 1319 के अनुसार ईरान के नागरिक संहिता के अनुसार, यदि गवाह अपनी गवाही से पीछे हट जाता है या पता चल जाता है कि उसने तथ्य के विपरीत गवाही दी है, तो उसकी गवाही प्रभावी नहीं होगी।[२६]

मुआवज़ा और प्रतिशोध

यदि सज़ा के निष्पादन के बाद गवाही झूठी सिद्ध होती है, तो झूठी गवाही देने वाला व्यक्ति, दोषी (जिस व्यक्ति के खिलाफ़ फैसला आया है) को हर्जाना देगा।[२७] और यदि उसे (दोषी को) प्रतिशोध (क़ेसास) या दीयत की सज़ा सुनाई गई और सज़ा निष्पादित कर दी गई हो, तो गवाहों को प्रतिशोध (क़ेसास) या दीयत के भुगतान की सज़ा दी जाएगी;[२८] क्योंकि ऐसे मामलों में, कारण (मुख्य कारक) प्रबंधक (जिसने सज़ा दी है) से अधिक मज़बूत होता है।[२९]

कारावास एवं आर्थिक दण्ड

कुछ न्यायविदों ने, इमाम अली (अ) के शासनकाल के दौरान उनके सीरत का हवाला देते हुए, झूठे गवाह को क़ैद करने का फ़तवा जारी किया है।[३०] ईरान के इस्लामी दंड संहिता के अनुच्छेद 650 के अनुसार, जो कोई भी आधिकारिक के सामने अदालत में झूठी गवाही देता है अधिकारियों को क़ैद किया जाएगा।[३१] और जुर्माना[३२] की सज़ा सुनाई जाएगी। यह सज़ा उस सज़ा से अलग है जिसका उल्लेख हुदूद, प्रतिशोध और झूठी गवाही के अध्याय में किया गया है।[३३]

बाद की गवाही को स्वीकार न करना

शिया न्यायविदों के फ़तवे के अनुसार, अदालत में झूठी गवाही देने वालों की बाद की गवाही तब तक स्वीकार नहीं की जाती, जब तक कि वे पश्चाताप नहीं करते और उनका पाप छोड़ना सिद्ध नहीं होता।[३४]

फ़ुटनोट

  1. शेख़ तूसी, अल-मबसूत, 1387 हिजरी, खंड 8, पृष्ठ 164।
  2. माज़ंदरानी, शरह अल-काफ़ी, 1382 हिजरी, खंड 9, पृष्ठ 264; इब्ने बर्राज, अल-मोहज़्ज़ब, 1406 हिजरी, खंड 2, 562।
  3. नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1404 हिजरी, खंड 41, पृष्ठ 252।
  4. सूर ए हज, आयत 30।
  5. मोहम्मदी इश्तेहारदी, "वीजगीहा ए एबाद अल रहमान परहीज़े शदीद अज़ गवाही दुरूग़ व शिरकत दर मजालिसे गुनाह", पृष्ठ 19।
  6. मोहम्मदी इश्तेहारदी, "वीजगीहा ए एबाद अल रहमान परहीज़े शदीद अज़ गवाही दुरूग़ व शिरकत दर मजालिसे गुनाह", पृष्ठ 19।
  7. माज़ंदरानी, शरह अल-काफ़ी, 1382 हिजरी, खंड 9, पृष्ठ 264; मुर्तज़ा और अन्य, "बर्रसी माअना शनाख़्ती शहादते ज़ूर व ज़रूरत मोअर्रफ़ी उमूमी ए आन दर फ़िक़्हे मज़ाहिबे ख़म्सा", 1393 शम्सी, पृष्ठ 125।
  8. शामलू अहमदी, फ़र्हंगे इस्तेलाहाते व अनावीन जज़ाई, 1380 शम्सी, पृष्ठ 287; राष्ट्रपति कानूनी सहायक, इस्लामी दंड संहिता, 1392 शम्सी, पृष्ठ 161, अनुच्छेद 650।
  9. सूर ए हज, आयत 30।
  10. शेख़ तूसी, अल-मबसूत, 1387 हिजरी, खंड 8, पृष्ठ 164।
  11. इमाम खुमैनी, अल-मकासिब अल-मोहर्रमा, 1434 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 344; ख़ामेनेई, ग़ेना व मूसीक़ी, 1398 शम्सी, पृष्ठ 38।
  12. सूर ए फ़ुरक़ान, आयत 72।
  13. तबरसी, मजमा अल-बयान, 1415 हिजरी, खंड 7, पृष्ठ 315।
  14. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 7, पृष्ठ 383, पृष्ठ2।
  15. बोरोजर्दी, जामेअ अहादीस अल शिया, 1386 शम्सी, खंड 30, पृष्ठ 328।
  16. शेख़ सदूक़, मन ला यहज़रोहुल फ़कीह, 1413 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 61, हदीस. 3338; अल्लामा हिल्ली, तहरीर अल-अहकाम, 1420 हिजरी, खंड 5, पृ. 297 और 298।
  17. इब्ने मंज़ूर, लेसान अल-अरब, 1414 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 562।
  18. हाशमी शाहरूदी, फ़र्हंगे फ़िक़ह मुताबिक़ मज़हबे अहले बैत (अ), 1382 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 508।
  19. तूसी, अल-ख़ेलाफ़, 1407 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 240।
  20. सरखसी, अल-मबसूत, 1414 हिजरी, खंड 16, पृष्ठ 145।
  21. हुर्रे आमोली, हेदाया अल उम्मा एला अहकाम अल आइम्मा (अ), 1412 हिजरी, खंड 8, पृष्ठ 426; हल्बी, अल-काफ़ी फ़ी फ़िक़्ह, 1403 हिजरी, पृष्ठ 440; राष्ट्रपति कानूनी सहायक, इस्लामी दंड संहिता, 1392, पृष्ठ 56, अनुच्छेद 198।
  22. मूसवी गोलपायगानी, किताब अल-शहादात, 1405 हिजरी, पृष्ठ 448-449; हल्बी, अल-काफ़ी फ़ी फ़िक़्ह, 1403 हिजरी, पृष्ठ 440; राष्ट्रपति कानूनी सहायक, इस्लामी दंड संहिता, 1392, पृष्ठ 55, अनुच्छेद 191, 195, 196।
  23. हल्बी, अल-काफ़ी फ़ी फ़िक़्ह, 1403 हिजरी, पृष्ठ 440; दय्यानी, क़ानून मजाज़ाते इस्लामी मोअर्रब, 1399 शम्सी, पृष्ठ 88, अनुच्छेद 160 और 211।
  24. मोहक़्क़िक दामाद, क़वाएद फ़ीक़ह (न्यायिक अनुभाग), 1381 शम्सी, पृष्ठ 48।
  25. शहीद अव्वल, अल-दुरूल अल-शरिया, 1417 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 143।
  26. कमालान, हन्दबुक कारबुर्दी क़वानीन व मुक़र्रेरात हुक़ूक़ी, 1391 शम्सी, पृष्ठ 204।
  27. मर्शी शुश्त्री, दीदगाहा ए नव दर हुक़ूक, 1427 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 122।
  28. बजनवर्दी, क़वाएदे फ़िक़हीया, 1401 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 18; ख़ूई, मबानी तकमेला अल-मिन्हाज, 1422 हिजरी, खंड 41, पृष्ठ 191।
  29. मर्शी शुश्त्री, दीदगाहा ए नव दर हुक़ूक, 1427 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 122।
  30. हाशमी शाहरूदी, मौसूआ अल फ़िक़ह अल इस्लामिया अल-मुक़ारिन, 1432 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 295।
  31. मुआवेनते हुक़ूक़ी रेयासत जमहूरी, क़ानूने मजाज़ात इस्लामी, 1392 शम्सी, पृष्ठ 161।
  32. मुआवेनते हुक़ूक़ी रेयासत जमहूरी, क़ानूने मजाज़ात इस्लामी, 1392 शम्सी, पृष्ठ 161।
  33. मुआवेनते हुक़ूक़ी रेयासत जमहूरी, क़ानूने मजाज़ात इस्लामी, 1392 शम्सी, पृष्ठ 161।
  34. फ़ाज़िल लंकारानी, तफ़सील अस शरीयत (अल-क़ज़ा व अल-शहादात), 1427 हिजरी, पृष्ठ 598 और 612।


स्रोत

  • पवित्र कुरआन।
  • इब्ने मंज़ूर, मुहम्मद बिन मुकर्रम, लेसान अल अरब, बेरूत, दार सादिर, 1414 हिजरी।
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  • हाशमी शाहरुदी, महमूद, मौसूआ अल फ़िक़ह अल इस्लामी अल मुक़ारिन, क़ुम, मोअस्सास ए दाएरतुल मआरिफ़ फ़िक़हे इस्लामी बर मज़हबे अहले बैत (अ), 1432 हिजरी।
  • हाशमी शाहरुदी, महमूद, फ़र्हंगे फ़िक़ह मुताबिक़ मज़हबे अहले अल बैत (अ), क़ुम, मोअस्सास ए दाएरतुल मआरिफ़ फ़िक़हे इस्लामी बर मज़हबे अहले बैत (अ), 1382 शम्सी।