मुहारेबा
- यह लेख मुहारेबा की अवधारणा के बारे में है। इफ़्साद फ़ि अल अर्ज़ के बारे में जानने के लिए मुफ़्सिद फ़ि अल अर्ज़ वाले लेख का अध्यन करें।
कुछ अमली व फ़िक़ही अहकाम |
फ़ुरू ए दीन |
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मुहारेबा, लोगों में डर पैदा करने के उद्देश्य से हथियार उठाने को कहा जाता है। न्यायविद हथियार के बल पर खुलेआम किसी को लूटने या बंदी बनाने वाले व्यक्ति को मुहारिब कहते है, सूर ए माएदा आयत 33 का हवाला देते हुए उनका मानना है कि मुहारिब की सजा में हत्या, सूली पर चढ़ाना (क्रॉस की तरह किसी चीज से लटकाना), विपरीत दिशा मे हाथ और पैर काटना और निर्वासन शामिल है।
शेख़ सदूक़, शेख़ मुफ़ीद और एक अन्य समूह का मानना है कि न्यायाधीश (काज़ी) मुहारिब को इनमें से कोई भी सजा दे सकता है, लेकिन शेख़ तूसी और साहिब जवाहर सहित एक अन्य समूह का कहना है कि मुहारिब ने जिस प्रकार के अपराध को अंजाम दिया है, उसके आधार पर चार सज़ाओं में से एक या एक से अधिक सजा का च्यन कर सकता है।
मुहारिब की परिभाषा और उससे मिलती जुलती इफ़्साद फ़ि अल अर्ज़, राजद्रोह और सविनय अवज्ञा जैसी अन्य अवधारणाओं के साथ इसके अंतर को समझाया गया है; कि मुहारिब लोगो के साथ युद्ध करता है, जबकि राजद्रोही शासक के विरुद्ध उठ खड़ा होता है। शिया न्यायविदों की राय है कि यदि कोई मुहारिब गिरफ्तार होने से पहले पश्चाताप करता है, तो मुहारिब की सजा उस पर लागू नहीं की जाएगी, मगर यह कि उसकी गर्दन पर कोई हक़्क़ुन्नास हो।
स्थान एवं महत्व
न्यायशास्त्र में, लोगों को डराने के मक़सद से उन पर हथियार उठाना मुहरेबा कहा जाता है।[१] न्यायविदों के फ़तवे के अनुसार, जो कोई भी खुले तौर पर और जबरदस्ती दूसरे की संपत्ति लेता है या लोगों को बंदी बनाता है वह मुहारिब कहलाता है।[२] यहा पर हथियार हर उसको कहा जाता है जो मनुष्यों के बीच संघर्ष में उपयोग किया जाने वाला उपकरण है; जैसे तलवार, धनुष-बाण और आधुनिक हथियार इत्यादि।[३]
मुहारेबा की सज़ा, धर्मत्याग, व्यभिचार और शराब पीने की सज़ा की तरह निर्धारित सज़ाओ मे से है; अर्थात शरीयत में इसके लिए एक खास सजा निर्धारित की गई है।[४] हालांकि, मुहारेबा और दूसरे अपराध में यह अंतर है, मुहारेबे के लिए चार सजाएं निर्धारित की गई हैं और उनमें से एक या एक से अधिक लागू होती हैं।[५]
मुहारेबा क्या है?
न्यायशास्त्रीय पुस्तकों में मुहारेबा साबित होने की शर्तों के बारे में विस्तृत चर्चा की गई है।[६] शिया और सुन्नी न्यायविदों का मानना है कि बिना हथियार उठाए मुहारबे को साकार (साबित) नहीं किया जा सकता है।[७] अधिकांश शिया न्यायशास्त्रीयो ने लोगों को डराने का इरादा रखने को मुहारेबा साबित होने मे शर्त मानते हैं।[८] 15वीं शताब्दी हिजरी में शिया फक़ीह सय्यद अब्दुल-करीम मूसवी अर्दबेली के अनुसार शहीद सानी अपनी एक किताब मे इस शर्त को स्वीकार नही किया है।[९] हालाँकि, अपनी दूसरी पुस्तक में अन्य न्यायविदों की तरह डराने के इरादे को एक शर्त माना है।[१०]
तथ्य यह है कि जिस व्यक्ति ने हथियार निकाला है उसका भ्रष्ट होना अर्थात पहले भी उसका इस काम मे लिप्त होना है[११] और लोग भी उससे डरे, या केवल मुहारिब की ओर से डराने का इरादा काफ़ी है चाहें लोग डरे या ना डरें[१२] शहीद अव्वल, शहीद सानी और साहिब रियाज़ का इस संबंध मे मानना है कि लोगों को डराने का इरादा ही काफी है।[१३] लेकिन दूसरी ओर मुहक़्क़िक़ अर्दबेली, फ़ाज़िल इस्फ़हानी और इमाम खुमैनी जैसी न्यायविद इस बात को मानते है कि यदि कोई व्यक्ति लोगों को डराने और धमकाने के इरादे से हथियार उठाए, लेकिन लोग उससे भयभीत न हो तो यह व्यक्ति मुहारिब नही कहलाएगा।[१४]
इसके अलावा, यदि कोई केवल शत्रुता के कारण किसी व्यक्ति या लोगों पर हथियार उठाए, तो उसे मुहारिब नहीं कहा जाता।[१५] ईरान के इस्लामी गणराज्य के दंड संहिता के अनुसार मुहारबे का अपराध तब साबित होगा जब यह कार्य एक सार्वजनिक पहलू रखता हो और संबंधित व्यक्ति समाज को शांति और सुरक्षा से वंचित करने की क्षमता रखता हो।[१६]
उदाहरण
मुस्लिम न्यायविदों ने मुहारेबा की आयत में मुहरेबा के उदाहरणों के बारे में अलग-अलग विचार हैं;[१७] कुछ ने कहा है कि मुहारिब का अर्थ अहले-ज़िम्मा से है, यदि वे संधि तोड़ते हैं और मुसलमानों के साथ युद्ध करते हैं। जबकि दूसरे समूह ने आयत के शाने नुज़ूल को ध्यान में रखते हुए, धर्मत्यागी को मुहारिब माना है, और कुछ ने डाकुओं को इसके मिस्दाक़ माना है।[१८] शेख तूसी के अनुसार, शिया न्यायविदों की राय यह है कि जो कोई भी लोगों को डराने के लिए हथियार का उपयोग करता है वह मुहारिब है।[१९]
मुहारिब और मुफ़्सिद फ़ि अल अर्ज़ के बीच अंतर
न्यायविदों के एक समूह ने आय ए मुहारेबा का हवाला देते हुए मुफ़्सिद फ़ि अल अर्ज़ को मुहारिब से भिन्न माना और दूसरे समूह ने इन दोनों को एक माना है। इमाम खुमैनी (1903-1990) ने मुफ़्सिज फ़ि अल अर्ज़ की और मुहारिब को एक मानते हुए कहते है कि मुहारिब उस व्यक्ति को कहते है जो लोगो मे भय पैदा करने और इफ्साद फ़ि अल अर्ज़ के उद्देश्य से अपने हथियारो को उजागर और सुसज्जित करता है।।[२०] शिया न्यायविद मुहम्मद मोमिन क़ुमी (1938-2019) के अनुसार उल्लिखित आयत मे असल विषय, मुफ्सिद फ़ि अल अर्ज़ है और मुहारिब उसका एक उदाहरण है।[२१] मुहम्मद फ़ाज़िल लंकारानी (1932-2008) के अनुसार, मुफ़्सिदफ़ि अर्ज़ और मुहारिब के बीच उमूम खुसूस मुतलक़ की निस्बत पाई जाती है अर्थात प्रत्येक मुहारिब मुफ़्सिद फ़ि अल अर्ज़ है परन्तु प्रत्येक मुफ़्सिद फ़ि अल अर्ज़ मुहारिब नही है।[२२] नासिर मकारिम शिराज़ी के अनुसार, मुफ्सिद (भ्रष्ट) और मुहारिब (भ्रष्टाचारी) दो अलग अवधारणाएँ हैं।[२३] और फ़िक़ह फारसी शब्दकोष मे इस बात की ओर ध्यान केंद्रित करते हुए कि इफसाद (क्रपशन) का संबंध या तो संपत्ति से होगा या कर्म (अमल) से होगा और कभी कभी मुहारबे और समाज को शांति और सुरक्षा से वंछित करने के लिए भी संदर्भित किया जाता है। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि मुहारिब को मुफसिद फ़ि अर्ज़ कहा जाता है।[२४]
लड़ाई और विद्रोह में अंतर
न्यायशास्त्र में, मुहारेबा और विद्रोह दो अलग-अलग मुद्दे हैं और उनकी अलग-अलग परिभाषाएँ और शरिया नियम और मुद्दे हैं;[२५] मुहारिब लोगों से लड़ता हैं, लेकिन विद्रोही शासक से लड़ने के इरादे से हथियार उठाता हैं।[२६] न्यायविदो ने विद्रोही के नियमो की जिहाद के खंड में चर्चा की है लेकिन मुहारेबा के नियमो को हुदूद (सजा) के खंड मे चर्चा की है।[२७] इन दो नियमो में से प्रत्येक का दस्तावेज़ीकरण भी अलग है, लोगों का डर, फिसाद और असुरक्षा विद्रोह की शर्त में शामिल नहीं हैं।[२८]
मुहारेबा और सविनय अवज्ञा मे अंतर
राजनीतिक न्यायशास्त्र के शोधकर्ता सय्यद जवाद वरई का मानना है कि सविनय प्रतिरोध और सविनय अवज्ञा किसी कानून या नीति या प्रशासक आदि को बदलने के उद्देश्य से की जाती है, और इसका उद्देश्य राजनीतिक व्यवस्था को नष्ट करना या समाज मे आतंक पैदा करना नहीं है। इसलिए किसी सविनय अवज्ञाकारी को मुहारिब या विद्रोही नहीं माना जा सकता, जिस प्रकार किसी मुहारिब की भी सविनय अवज्ञा की उपाधि के साथ समर्थन नहीं किया जा सकता।[२९]
मुहारिब की सज़ा
न्यायविदो ने मुहारेबा की आयत और इज्माअ का ध्यान रखते हुए - हत्या, सूली पर चढ़ाना (अपराधी के हाथ और पैर को क्रॉस जैसी किसी चीज से बांधना)[३०], अपराधी के हाथ और पैर को विपरीत दिशा मे काटना और निर्वासन- मुहारिब की चार सजा मानते हैं[३१] लेकिन सजा को कैसे लागू किया जाए, इस पर उनके बीच मतभेद है।[३२] सय्यद अब्दुल करीम मूसवी अर्दबेली के अनुसार, सुन्नी न्यायविदों के बीच भी ऐसा मतभेद है।[३३]
तख़्यीर का सिद्दांत
शेख सदूक़, शेख मुफ़ीद, मुहक़्क़िक़ हिल्ली, अल्लामा हिल्ली, शहीद अव्वल, शहीद सानी और इमाम खुमैनी का मानना है कि आय ए मुहारेबा में मौजूद चार दंडों में से कोई भी सज़ा मुहारिब पर लागू की जा सकती है।[३४]
तरतीब का सिद्धांत
मूसवी अर्दबेली के अनुसार, शेख तूसी, इब्न ज़ोहरा, इब्न बर्राज, अबू सलाह हलबी, साहिब रियाज़, साहिब जवाहर और सय्यद अबुल कासिम ख़ूई जैसे न्यायविदो के एक अन्य समूह का फतवा तरतीब (क्रम) है; अर्थात्, अपराध के प्रकार के आधार पर, आयत में दी गई सज़ाओं में से एक या उससे अधिक सज़ाएँ लागू की जाएंगी।[३५] आयतुल्लाह खूई ने मुहारेबे की क्रमबद्ध सज़ा की व्याख्या इस प्रकार की है: जिसने केवल हथियार के बल पर लोगों को डराया हो, उसकी सज़ा नफ़ी बलद (निर्वासन) है; जिस व्यक्ति ने हथियार उठाने के अलावा नुकसान भी पहुंचाया हो, उसकी सज़ा प्रतिशोध (क़ेसास) है, और जिस व्यक्ति ने हथियार उठाने के साथ चोरी की भी है उसकी सज़ा विपरीत दिशा मे हाथ और पैर काटना है। जिस व्यक्ति ने हथियार उठाने के साथ किसी व्यक्ति की हत्या की है, लेकिन संपत्ति नहीं चुराई तो उसकी सज़ा हत्या है। जिस व्यक्ति ने हत्या करने के अलावा संपत्ति भी चुराई है, पहले उसका दाहिना हाथ काट कर पीड़ित परिवार (वारिस) को सौंप दिया जाएगा ताकि वे उससे अपनी संपत्ति ले सकें उसके बाद उसे मार दिया जाएगा।यहा पर यदि पीड़ित के परिवार उसे माफ कर दे, तो हाकिम शरअ स्वयं उसकी हत्या करेगा।[३६]
ईरान के इस्लामी दंड संहिता में, मुहारिब को फ़ांसी, सूली पर चढ़ाना, दाहिना हाथ और बायां पैर काटना और निर्वासन की चार सज़ाओं में से कोई एक सज़ा दी जा सकती है।[३७]
मुहारिब की तौबा
शिया न्यायविदों के फ़तवे के अनुसार, यदि मुहारिब गिरफ्तार होने से पहले पश्चाताप करता है, तो मुहारिब की सजा समाप्त हो जाती है, लेकिन हक़्क़ुन्नास उसकी गरदन पर बाकी रहेगा। अर्थात, अगर उसने किसी की हत्या की है, या किसी को नुकसान पहुंचाया है, या पैसे चुराए हैं, तो मालिक के माफ नहीं करने पर उससे प्रतिशोध (क़िसास) लिया जाएगा या दियत या हर्जाना अदा करेगा , लेकिन अगर वह गिरफ्तार होने के बाद पश्चाताप करता है, तो उसकी सजा समाप्त नहीं होगी माफ कर दिया गया।[३८] शिया न्यायविदों की इस मुद्दे पास सर्वसम्मति (इज्माअ) है।[३९]
यह दृष्टिकोण आय ए मुहारेबा के बाद वाली आयत से लिया गया है, जिसमें वाक्यांश "إِلَّا الَّذِینَ تٰابُوا مِنْ قَبْلِ أَنْ تَقْدِرُوا عَلَیهِمْ इल लल्लज़ीना ताबू मिन कब्ले अन तक़देरू अलैहिम (अनुवादः उन लोगों को छोड़कर जिन्होंने आपके पकड़ने से पहले पश्चाताप किया था)[४०] जो लोग गिरफ्तार होने से पहले पश्चाताप करते हैं उन्हें सज़ा पाने वालों से बाहर रखा गया है।[४१] इस दृष्टिकोण के समर्थन मे हदीसे बयान हुई है उनमें से, एक रिवायत इमाम सादिक (अ) की हदीस है जिसमें कहा गया है: यदि कोई मुहारिब शासक द्वारा गिरफ्तार किए जाने से पहले पश्चाताप करता है, तो उसे दंडित नहीं किया जाएगा।[४२]
आय ए मुहारेबा
- मुख्य लेख: आय ए मुहारेबा
मुहरेबा के हुक्म के लिए न्यायविदों का मुख्य दस्तावेज सूर ए माएदा की आयत 33 है।[४३] इस आयत में कहा गया है: "إِنَّمَا جَزَاءُ الَّذِینَ یحَارِبُونَ اللهَ وَرَسُولَهُ وَیسْعَوْنَ فِی الْأَرْضِ فَسَادًا أَن یُقَتَّلُوا أَوْ یُصَلَّبُوا أَوْ تُقَطَّعَ أَیدِیهِمْ وَأَرْجُلُهُم مِّنْ خِلَافٍ أَوْ یُنفَوْا مِنَ الْأَرْضِ...» इन्नमा जज़ाउल लज़ीना योहारेबूनल्लाहा वर रसूलहू वा यस्औना फ़िल अर्ज़े फ़सादन अय योक़त्तलू औ योसल्लबू औ तोक़त्तआ ऐयदीहिम व अरजोलोहुम मिन ख़ेलाफ़िन औ युंफ़ौ मिनल अर्ज़े... उन लोगों की सजा जो अल्लाह और उसके रसूल के खिलाफ लड़ते हैं और ज़मीन पर भ्रष्टाचार फैलाने मे उनकी मदद करते हैं, उनके लिए सज़ा कुछ और नहीं बल्कि मार दिया जाएगा या फांसी दे दी जाएगी, या उनके हाथ और पैर विपरीत दिशाओं में काट दिए जाएंगे, या उसे भूमि से निर्वासित कर दिया जाएगा।[४४]
तफ़सीर नमूना मे इस आयत की तफ़सीर मे कहा गया है कि यह आयत इस्लाम स्वीकार करने वाले बहुदेववादियों के एक समूह की शान मे नाज़िल हुई है, जिन्हे मदीना की जलवायु उनके लिए उपयुक्त नहीं होने के कारण पैग़म्बर (स) के आदेश पर अच्छी जलवायु वाले क्षेत्र में भेज दिया गया था। चूँकि यह क्षेत्र ऊँटों की चरागाह था, एक दिन इन लोगों ने मुस्लिम चरवाहों के हाथ-पैर काट दिये, ऊँट चुरा लिये और इस्लाम छोड़ दिया। इन लोगों के बारे में आयत नाज़िल हुई और उनकी सज़ा की व्याख्या की गई।[४५]
न्यायशास्त्र की पुस्तकों में इस आयत का उल्लेख महारिब की सज़ा के प्रकार और उसके उदाहरण दोनों के संदर्भ में चर्चा की जाती है।[४६]
संबंधित लेख
फ़ुटनोट
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- ↑ मिश्कीनी, मुस्तलेहात अल फ़िक़्ह व इस्तेलाहात अल उसूल, 1431 हिजरी, पेज 475
- ↑ मिश्कीनी, मुस्तलेहात अल फ़िक़्ह व इस्तेलाहात अल उसूल, 1431 हिजरी, पेज 475; मूस्वी अर्दबेली, फ़िक़्ह अल हुदूद वत ताज़ीरात, 1427 हिजरी, भाग 3, पेज 515
- ↑ मूस्वी अर्दबेली, फ़िक़्ह अल हुदूद वत ताज़ीरात, 1427 हिजरी, भाग 1, पेज 4
- ↑ मूस्वी अर्दबेली, फ़िक़्ह अल हुदूद वत ताज़ीरात, 1427 हिजरी, भाग 1, पेज 4
- ↑ देखेः मूस्वी अर्दबेली, फ़िक़्ह अल हुदूद वत ताज़ीरात, 1427 हिजरी, भाग 3, पेज 511-524
- ↑ देखेः मूस्वी अर्दबेली, फ़िक़्ह अल हुदूद वत ताज़ीरात, 1427 हिजरी, भाग 3, पेज 511-5116
- ↑ देखेः मूस्वी अर्दबेली, फ़िक़्ह अल हुदूद वत ताज़ीरात, 1427 हिजरी, भाग 3, पेज 516-517
- ↑ देखेः मूस्वी अर्दबेली, फ़िक़्ह अल हुदूद वत ताज़ीरात, 1427 हिजरी, भाग 3, पेज 517
- ↑ देखेः मूस्वी अर्दबेली, फ़िक़्ह अल हुदूद वत ताज़ीरात, 1427 हिजरी, भाग 3, पेज 518
- ↑ देखेः मूस्वी अर्दबेली, फ़िक़्ह अल हुदूद वत ताज़ीरात, 1427 हिजरी, भाग 3, पेज 518-521
- ↑ देखेः मूस्वी अर्दबेली, फ़िक़्ह अल हुदूद वत ताज़ीरात, 1427 हिजरी, भाग 3, पेज 518
- ↑ देखेः मूस्वी अर्दबेली, फ़िक़्ह अल हुदूद वत ताज़ीरात, 1427 हिजरी, भाग 3, पेज 519
- ↑ देखेः मूस्वी अर्दबेली, फ़िक़्ह अल हुदूद वत ताज़ीरात, 1427 हिजरी, भाग 3, पेज 519
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- ↑ वरई, बर रसी मफ़हूमी बगी, मुहारेबा व नाफ़रमानी मदनी, पेज 143
- ↑ वरई, बर रसी मफ़हूमी बगी, मुहारेबा व नाफ़रमानी मदनी, पेज 148
- ↑ मूसवी अर्दबेली, फ़िक़्ह अल हुदूद वत ताज़ीरात, 1427 हिजरी, भाग 3, पेज 609
- ↑ मूसवी अर्दबेली, फ़िक़्ह अल हुदूद वत ताज़ीरात, 1427 हिजरी, भाग 3, 558
- ↑ मूसवी अर्दबेली, फ़िक़्ह अल हुदूद वत ताज़ीरात, 1427 हिजरी, भाग 3, पेज 557
- ↑ मूसवी अर्दबेली, फ़िक़्ह अल हुदूद वत ताज़ीरात, 1427 हिजरी, भाग 3, पेज 558
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- ↑ देखेः ख़ूई, तकमेलातुल मिनहाज, 1410 हिजरी, पेज 51
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स्रोत
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