मुफ़्सिद फ़ि अल अर्ज़
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कुछ अमली व फ़िक़ही अहकाम |
फ़ुरू ए दीन |
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- यह लेख मुफ़्सिद फ़िल अर्ज़ के बारे में है। महारिब के बारे में अधिक जानने के लिए मुहारबा वाले लेख का अध्यन करें।
मुफ़्सिद फ़ि अल-अर्ज़ (अरबीःمُفسِد فِی الاَرض) (अनुवाद: ज़मीन मे फ़साद फ़ैलाने वाला) वह व्यक्ति है जो कुछ पाप और अनुचित कार्य करके स्वतंत्रता, सुरक्षा, न्याय और सार्वजनिक शांति को नष्ट कर देता है और समाज को संयम से बाहर कर देता है। यह शब्द (मुफ़्सिद फ़ि अल-अर्ज़) क़ुरआन से लिया गया है। फ़ुक़्हा के एक समूह ने आय ए महारिब का हवाला देते हुए मुफ़्सिद फ़ि अल-अर्ज़ को मुहारिब से अलग माना और मुफ़्सिद फ़ि अल-अर्ज़ के लिए हत्या की सजा निर्धारित की है। एक दूसरे समूह ने इन दोनों अर्थात मुहारिब और मुफ़्सिद फ़ि अल-अर्ज़ को एक समान माना और दोनो की सज़ा भी समान निर्धारित की है।
शिया फ़ुक़्हा ने अपहरण, अहले ज़िम्मा लोगों को मारने की आदत, कफ़न चुराने की आदत, जादू टोना और मोहर्रेमात (जो काम शरीयत मे हराम है) को दोहराने जैसे मामलों को ज़मीन पर फ़साद फ़ैलाने के उदाहरण माना है।
परिभाषा एंव महत्व
मुफ़्सिद फ़ि अल अर्ज़ (अर्थात ज़मीन मे फ़साद फैलाने वाला) क़ुरआन से लिया गया एक ऐसा शीर्षक है, जिसके लिए क़ुरआन मे कड़ी सजा का वादा किया गया है। मुफ़्सिद फ़ि अल-अर्ज़[१] और फ़साद फ़ि अल-अर्ज़[२] का शीर्षक क़ुरआन की कई आयतों में इस्तेमाल किया गया है।
शिया हदीसी और फ़िक्ही (न्यायशास्त्रीय) स्रोतों में, "मुफ़्सिद फ़ि अल-अर्ज़" या "इफ़साद फ़ि अल-अर्ज़" शीर्षक वाला कोई अलग अध्याय नहीं है बल्कि इस मुद्दे से संबंधित हदीसों को अलग-अलग अध्यायों में एकत्र किया गया है जैसे कि क़ेसास,[३] महारिब[४] और दीयात[५] के अध्याय मे उल्लेख किया गया है। इसके अलावा इसके अहकाम भी विभिन्न न्यायशास्त्रीय विषयों, जैसे ग़स्ब (हड़पना), ज़मान (गारंटी), ताज़ीरत (सज़ा), क़ेसास (प्रतिशोध), मुहारेबा, हुदूद और दीयात पर चर्चा की गई है।[६]
मुफ़्सिद फ़ि अल-अर्ज़ और महारिब मे अंतर
- मुख्य लेख: महारिब
फ़ुक्हा के एक समूह ने आय ए मुहारेबा का हवाला देते हुए मुफ़्सिद फ़ि-अल-अर्ज़ को मुहारिब से भिन्न माना और दूसरे समूह ने इन दोनों (महारिब और मुफ़्सिद फ़ि अल-अर्ज़) को एक माना है। न्यायशास्त्रियों की कुछ राय इस प्रकार हैं:
- इमाम ख़ुमैनी (1281-1368 शम्सी) शिया फ़क़ीह और इस्लामिक गणराज्य के संस्थापक ने मुफ़्सिद फ़ि अल-अर्ज़ और महारिब को समान मानते है। आपकी दृष्टि मे महारिब उस व्यक्ति को कहा जाता है जो लोगो को डराने और ज़मीन मे फ़साद पैदा करने के उद्देश्य से हथियार उठाए।[७]
- मुहम्मद मोमिन क़ुमी (1316-1397 शम्सी) शिया मुज्तहिद के अनुसार उल्लेखित आयत मे असली विषय मुफ़्सिद फ़ि अल अर्ज़ है और महारिब उसका एक उहरण है, इसलिए जब भी "ज़मीन पर फ़साद फ़ैलाने" का शीर्षक आ जाए चाहे मुहारबे के बिना ही क् ना हो बयान किए गए चार दंड है (हत्या करना, फाँसी देना, हाथ-पैर काटना या निर्वासित करना) इसी से सम्बन्धित है।[८]
- आयतुल्लाह मुहम्मद फ़ाज़िल लंकारानी (1310-1386 शम्सी) के अनुसार, मुफ़्सिद फ़ि अल अर्ज़ और मुहारिब के बीच उमूम ख़ुसूस मुतलक़ की निस्बत के क़ायल है, अर्थात हर मुहारिब मुफ़्सिद फ़ि अल अर्ज़ है लेकिन हर मुफ़्सिद फि अल अर्ज़ मुहारिब नही हो सकता और हर मुफ़्सिद पर मुहारबे की सज़ा लागू नही होगी।[९]
- आयतुल्लाह नासिर मकारिम शिराज़ी (जन्म 1305 शम्सी) का मानना है कि मुफ़स्दि फ़ि अल अर्ज़ और मुहारिब दो अलग-अलग अवधारणाएँ हैं; उदाहरण के लिए, जो व्यक्ति बड़े पैमाने पर नशीले पदार्थ की स्मगलिंग करता है वह मुफ़्सिद फ़ि अल अर्ज़ है, लेकिन उसे मुहारिब नही कहा जा सकता; क्योंकि उसने कोई हथियार नहीं उठाया, लेकिन जो एक बार भी हथियार से लोगों को धमकाता है, तो ऐसा व्यक्ति मुहारिब शुमार होगा लेकिन उस पर मुफ़्सिद फ़ि अल अर्ज़ का शीर्षक साबित नही आएगा, मगर यह कि वह इस कार्य को बार बार अंजाम दे।[१०]
ईरान के इस्लामी गणराज्य के इस्लामी दंड संहिता में दो शीर्षकों "मुफ़्सिद फ़ि अल अर्ज़" और "मुहारिब" के बीच संबंध में न्यायविदों की राय के मतभेद का भी प्रभाव पड़ा है;[११] जैसे 1392 शम्सी में इस्लामी दंड स्वीकृत संहिता में "मुफ़्सिद फ़ि अल अर्ज़" और "मुहारबे" को दो अलग अलग अवधारणाओ के रूप मे परिभाषित किए गए है।[१२]
मसादीक़ या उदाहरण
न्यायविदों ने ज़मीन पर फ़साद फ़ैलाने के उदाहरण के रूप में कुछ चीजों को सूचीबद्ध किया है, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
- कुछ हदीसो मे भिन्न प्रकार के जराइम के लिए बयान होने वाली सज़ाओ को ध्यान मे रखते हुए कुछ न्यायविदों ने दूसरों के घरों और संपत्तियों को आग लगाना,[१३] अपहरण,[१४] और अहले ज़िम्मा लोगों को हत्या करने की आदत,[१५] जैसी बातों को इफ़साद फ़ि अल अर्ज़ का उदाहरण माना है।
- आयतुल्लाह मुहम्मद फ़ाज़िल लंकरानी के अनुसार, हत्या से जुड़े सभी अपराध, जैसे ज़िना ए मोहसेना, महरमो के साथ व्यभिचार, लवात आदि, इफ़्साद फ़ि अल अर्ज़ मे शुमार होगा।[१६]
- ईरान के इस्लामी दंड संहिता के अनुसार किसी को शारीरिक रूप से नाकारा बनाना, देश की आंतरिक या बाहरी सुरक्षा के खिलाफ अपराध, झूठ फ़ैलाना, देश की आर्थिक व्यवस्था को बाधित करना, आगजनी और विनाश, और वेश्यावृत्ति केंद्र या उनमें सहायक के रूप में कार्य करना जिस से देश की सार्वजनिक व्यवस्था में गंभीर गड़बड़ी पैदा हो तो ऐसी बाते “इफ़्साद फ़ि अल अर्ज़” मे शुमार होगी।[१७]
- इसी तरह कुछ न्यायविद वेश्यावृत्ति गिरोहों के गठन और नशीली दवाओं की तस्करी आदि जैसी कार्रवाइयों पर भी विचार किया है, जो समाज के एक हिस्से को संयम की स्थिति छोड़ने का कारण बनती हैं, इसे ज़मीन पर फ़साद फ़ैलाने का उदाहरण माना है।[१८]
- 1392 शम्सी में अनुमोदित ईरान में इस्लामी दंड संहिता में आर्थिक भ्रष्टाचार को अपराधों में मान्यता दी गई है[१९] और ऐसे अपराधीयो के मुक़ाबले मे कठोर सजाओ को लागू करने पर जोर दिया गया है जिन मे फांसी की सज़ा को पहले नम्बर पर रखा गया है।[२०] कुछ शोधकर्ताओ के अनुसार आर्थिक भ्रष्टाचारियों के लिए मृत्युदंड देने का आदेश किसी शक्तिशाली फ़िक्ही सनद का हामिल नही इसी बिना पर यह सज़ा आर्थिक भ्रष्टाचार से लड़ने में किसी प्रकार से प्रभावित नही हो सकती है।[२१]
सज़ा
मुफ़्सिद फ़ि अल अर्ज़ की सजा के संबंध में मतभेद है, और इसका मूल "मुफ़्सिद फ़ि अल अर्ज़" और "मुहारिब" की दो उपाधियों की परिभाषा और संबंध में अंतर है।[२२] जो फ़ुक़्हा इन दोनो अवधारणाओ को एक समझते है वह यहा भी मुहारबे के लिए निर्धारित सज़ाओ को पर्याप्त समझते है।[२३] आय ए मुहारेबा के अंतर्गत फ़ुक़्हा मुहारबे की चार सज़ा बयान करते है (हत्या, सूली पर चढ़ाना,[२४] विपरीत एक हाथ और एक पैर काटना और निर्वासन) और इस हुक्म पर सबकी सहमति है।[२५] मुहारिब को दंडित करने का दर्शन निर्दोष लोगों की जान, माल और नामूस को संरक्षित करना है।[२६]
कुछ न्यायविदों की राय के अनुसार, मुफ़्सिद फ़ि अल अर्ज़ को अगर मुहारिब से अलग अवधारणा क़रार दिया जाए तो उसकी सज़ा हत्या है।[२७] इसी तरह ईरान की इस्लामी दंड संहिता के अनुच्छेद 286 के अनुसार मुफ़्सिद फ़ि अल अर्ज़ की सजा मृत्युदंड है।[२८]
मृत्युदंड को लेकर विवाद
ईरान में सर्वोच्च न्यायिक परिषद के सदस्य सय्यद मुहम्मद मूसवी बिजनवरदी के अनुसार, इमाम खुमैनी की दृष्टि मे मुफ़्सिद फ़ि अल अर्ज़ अपने आप में कोई ऐसा अपराध नही जिसकी सज़ा फांसी हो, मगर यह कि मुहारबे का शीर्षक उस पर फिट बैठ जाए;[२९] इसी आधार पर उस समय के सर्वोच्च न्यायालय के प्रमुख अब्दुल करीम मूसवी अर्दबेली के पत्र के जवाब में मुफ़्सिद फ़ि अल अर्ज़ को फांसी की सजा निर्धारित करने के जवाब मे इमाम ख़ुमैनी ने इस काम मे आयतुल्लाह मुंतज़री के फ़त्वे पर अमल करने की अनुमति दी।[३०] आयतुल्लाह मुंतज़री मुफ़्सिद फ़ि अल अर्ज़ को फांसी देना जायज समझते थे।
संबंधित लेख
फ़ुटनोट
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- ↑ सूर ए माएदा, आयत 33; सूर ए क़ेसस, आयत 77 और 83
- ↑ हुर्रे आमोली, वसाइल अल शिया, 1416 हिजरी, भाग 29, पेज 9
- ↑ हुर्रे आमोली, वसाइल अल शिया, 1416 हिजरी, भाग 28, पेज 307
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स्रोत
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- मोमिन क़ुमी, मुहम्मद, कलमात सदीदा, क़ुम, मोअस्सेसा अल नशर अल इस्लामी, 1415 हिजरी
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- वज्हे तफ़ावुत इफ़्साद फ़ि अल अर्ज़ वा मुहारेबा, साइट इत्तेला रसानी दफतर आयतुल्लाह मकारिम शिराज़ी, तारीख वीजीट 2 आज़र 1400 शम्सी