आय ए मुहारेबा
मुहारेबा की आयत | |
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आयत का नाम | आय ए मुहारेबा |
सूरह में उपस्थित | सूर ए माएदा |
आयत की संख़्या | 33 |
पारा | 6 |
शाने नुज़ूल | उरैनीयान या डाकू |
नुज़ूल का स्थान | मदीना |
विषय | फ़िक़्ही |
अन्य | मुहारिब को सज़ा कैसे दी जाए |
- यह लेख मुहारेबा की आयत के बारे में है। मुहारेबा की अवधारणा के बारे में जानने के लिए, मुहारेबा वाले लेख का अध्यन करें।
आय ए मुहारेबा (अरबीः آية المحاربة) सूर ए माएदा आयत न 33 को कहा जाता है जिसमे उन लोगों की सज़ा का बयान है जो अल्लाह और पैग़म्बर (स) से जंग करते हैं। अधिकांश टिप्पणीकारों का मानना है कि यह आयत ताज़ा मुसलमान होने वाले मुशरेकीन के एक समूह के बारे में नाज़िल हुई थी जिन्होंने कुछ मुसलमानों की हत्या करके उनके ऊंटों को चुरा लिया और पैग़म्बर (स) ने उन्हें इस आयत के अनुसार दंडित किया।
इस आयत का उपयोग करके न्यायशास्त्र में मुहारेबा के अहकाम प्राप्त किए जाते है। न्यायशास्त्री उस व्यक्ति को मुहारिब मानते हैं जो हथियार के बल पर लो खुल्लम खुल्ला चोरी करे या लोगो को बंदी बनाए ऐसे व्यक्ति के लिए इस आयत मे चार प्रकार की सजा का प्रावधान है जिनमे हत्या, सूली पर चढ़ाना, विपरीत दिशा मे एक हाथ और एक पैर काटना (जैसे दाहिना हाथ और बाया पैर या दाहिना पैर और बाया हाथ) और निर्वासन शामिल है। कुछ न्यायविदो का मानना है कि क़ाज़ी इन चारो सज़ाओ मे से किसी एक सज़ा को लागू करने का चयन कर सकता है लेकिन कुछ दूसरो न्यायविदो का मानना है कि अपराध को ध्यान मे रख कर क़ाज़ी अपराध की तुलना मे उल्लेखित सज़ाओ मे से किसी एक या कई सज़ाओ को लागू कर सकता है।
पाठ और अनुवाद
“ | ” |
अनुवादः बेशक जो लोग अल्लाह और उसके पैग़म्बर के खिलाफ लड़ते हैं और पृथ्वी पर फसाद करने के लिए द़ौड़ते रहते हैं, उनके लिए एकमात्र सजा यह है कि उनकी हत्या कर दी जाए या सूली पर चढ़ा दिया जाए, या उनके हाथ और पैर विपरीत दिशा मे काट दिए जाएं, या उन्हे निर्वासित कर दिया जाए। यह तो उनका इस संसार में अपमान हुआ और वे परलोक में बड़े अज़ाब में फँसेंगे।
शाने नुज़ूल
अधिकांश टीकाकारों का मानना है कि आय ए मुहारेबा उरैनीयान[१] अर्थात मुशरेकीन का एक समूह जिन्होने मदीना जाकर इस्लाम स्वीकार किया था[२] और मदीना की जलवायु अनुकूल ना होने के कारण मरीज़ हो गए और पैग़म्बर (स) के आदेश से ऊंट का दूध प्रयोग करने के बाद स्वस्थ हुए तथा उसके बाद कुछ मुसलमानो की हत्या करके उनके ऊंटो को चुरा कर धर्मत्यागी होकर मदीना से फरार हो गए।[३] अल्लामा तबताबाई के अनुसार, इमाम अली (अ) ने पैगंबर (स) के आदेश से उन्हें गिरफ्तार कर पैगंबर (स) के पास ले गए।[४] इसी समय आय ए मुहारेबा नाज़िल हुई और पैगम्बर (स) ने इस आयत के अनुसार उन्हें सज़ा दी।[५] कुछ लोगों का मानना है कि उरैनीयान ने केवल चोरी की थी। इस कारण से, आयत के अनुसार, पैगंबर (स) ने केवल उनके हाथ और पैर काटे थे।[६] उरैनीयान की कहानी का इमाम सादिक (अ) से किताब काफ़ी में भी वर्णन हुआ है।[७]
आय ए मुहारेबा के लिए एक दूसरी शाने नुज़ूल भी बताई गई है।[८] फ़ख़्रे राज़ी के अनुसार, यह आयत बनी इस्राइल के लोगों के बारे में नाज़िल हुई थी; क्योंकि वे भ्रष्टाचारियों को मारने में बहुत आगे बढ़ गए थे।[९] अन्य टिप्पणीकारों ने दूसरी शाने नुज़ूल का भी रुजहान दिया है: हज और ज़ियारत के कारवांनो को लूटने वाले डाकू, मुशरेकीन और पैमान तौड़ने वाले।[१०] अल्लामा तबातबाई के अनुसार अहले सुन्नत की छ विशवासनीय पुस्तको मे भी इस आयत की शाने नुज़ूल थोड़ा बहुत अंतर के साथ बयान की गई है।[११]
तफ़सीर
सूरए माएदा की तैंतीसवीं आयत को आय ए मुहारेबा[१२] के नाम से जाना जाता है और टिप्पणीकारों के अनुसार, जो कोई भी इस्लामी समाज में असुरक्षा और लूटपाट पैदा करता है उसे मुहारिब माना जाता है[१३] क्योंकि मुहारिब ने वास्तव में अल्लाह और उसके रसूल के खिलाफ जंग की घोषणा की है।[१४] आय ए मुहारेबा के अनुसार, मुहारिब को चार तरीकों में से एक में दंडित किया जाता है:[१५]
- हत्या, हत्या मुहारिब की सजा है जिसने एक इंसान की भी हत्या की हो[१६] 9वीं हिजरी के शिया मुफस्सिर और फ़क़ीह फ़ाजिल मिक़दाद का मानना है कि पीड़ित के खून के मालिकों द्वारा माफ करने से सजा नहीं समाप्त नही होगी और जो भी मुहारिब होगा वह निश्चित रूप से उसकी हत्या की जाएगी।[१७]
- सूली पर चढ़ाना, (अपराधी के हाथ और पैर को किसी चीज़ से सूली पर बाधना) सूली पर चढ़ाना उस व्यक्ति के लिए सजा है, जिसने किसी इंसान की हत्या के अलावा चोरी भी की हो।[१८] 6वीं शताब्दी हिजरी के शिया न्यायविद और टिप्पणीकार फ़ज़्ल बिन हसन तबरसी का मानना है कि मुहारिब को हत्या के बाद तीन बार फांसी दी जाती है।[१९] किताब कश्फ अल-असरार के अनुसार, मुहारिब को हत्या से तीन दिन पहले या बाद में सूली पर चढ़ाया जाता है, और इसका फैसला इमाम पर निर्भर करता है।[२०]
- हाथ और पैर काटना, उस मुहरिब की सज़ा है जिसने मुहारेबा के अलावा केवल चोरी की हो।[२१] इमाम सादिक़ (अ) ने फ़रमाया कि इसका मतलब दाहिना हाथ और बायां पैर है।[२२] इसके अलावा एक समूह ने हाथ और पैर काटने को हाथ और पैर की चार उंगलीयो को काटना माना है[२३] यदि चोरी की गई संपत्ति चोरी की राशि के बराबर हो तो हाथ या पैर की अंगुली काट दी जाती है।[२४]
- निर्वासन या कारावास, उस व्यक्ति के लिए है जो लोगों के बीच भय और असुरक्षा पैदा करता है।[२५] टिप्पणीकारों का एक समूह "ओ यानफौ मिनल अर्ज़" मुहारिब को दूसरे शरह निर्वासित करने और कुछ लोग उसे जेल मे क़ैद करने को कहते है।[२६] यह भी कहा गया है कि मुहारिब को उन शहरों में जाने से रोका जाना चाहिए जहां बहुदेववादी रहते हैं।[२७] फाज़िल मिक़दाद द्वारा लिखित पुस्तक कन्ज़ अल-इरफ़ान मे सुन्नियों के चार संप्रदायों में से एक संप्रदाय के संस्थापक शाफ़ेई से बयान किया है कि जिस मुहारिब को निर्वासित किया गया है उसके साथ किसी भी प्रकार का संबंध नहीं रखना चाहिए, जिसमें खरीदना और बेचना, मदद करना और मेलजोल शामिल है।[२८]
- मुस्लिम टिप्पणीकारों के अनुसार, उल्लिखित सज़ाएं मुहारिब के अपराध की गंभीरता के अनुपात में निर्धारित की जाती हैं;[२९] जैसा कि इमाम बाकिर (अ) और इमाम सादिक़ (अ) से वर्णित है।[३०] कुछ लोगों का मानना है कि किसी मुहारिब को सज़ा देने का तरीका शासक[३१] या इमाम[३२] द्वारा तय किया जाता है। आय ए मुहारिब के अनुसार, ये सज़ाएँ इस दुनिया से संबंधित हैं और इसके बाद मुहारिब की सज़ा को नहीं रोकती हैं।[३३]
मुहारिब की तौबा
टिप्पणीकारों के अनुसार, यदि कोई मुहारिब गिरफ्तार होने से पहले पश्चाताप करता है, तो उसकी पश्चाताप स्वीकार की जाएगी और उसे दंडित नहीं किया जाएगा।[३४]10वीं शताब्दी हिजरी के एक मुहद्दिस सीवती के अनुसार हारिस बिन बद्र ने मिस्र मे लोगों पर तलवार चलाई थी, लेकिन उसने तौबा किया उसे कुछ मुसलमान इमाम अली (अ) के पास ले गए, और इमाम अली (अ) ने उसकी पश्चाताप को स्वीकार कर लिया और उसकी पश्चाताप के बारे में आश्वस्त होने के बाद उसे सुरक्षा पत्र दिया।[३५] मुहारिब के पश्चाताप के मामले में, केवल उसकी सार्वजनिक सुरक्षा को बाधित करने के अपराध को नजरअंदाज कर दिया गया है; लेकिन अगर उसने चोरी या हत्या की है, तो उसे उसी के अनुसार दंडित किया जाना चाहिए।[३६] इसके अलावा, यदि वह गिरफ्तार होने के बाद पश्चाताप करता है, तो उसकी सजा रद्द नहीं की जाएगी।[३७]
फ़िक़्ही इस्तेमाल
- मुख्य लेख: मुहारेबा
फ़िक़्ही किताबो मे मुहारिब का शरई हुक्म आय ए मुहारिब के अनुसार बयान हुआ है। आयतुल्लाह मिशकिनी के अनुसार, न्यायविदों के फतवे के अनुसार, जो कोई भी खुले तौर पर और जबरदस्ती दूसरे की संपत्ति लेता है या लोगों को बंदी बनाता है वह मुहारिब है।[३८] मुहारिब साबित होने के लिए विभिन्न शर्तें हैं, जैसे हथियार निकालना, जनता मे डर पैदा करना इत्यादि को मुहारिब कहा गया है।[३९]
न्यायविदों के एक समूह ने मुहारिब के लिए उदाहरण दिए हैं, जैसे अहले ज़िम्मा, धर्मत्यागी, डाकू और कोई भी व्यक्ति जो मुसलमानों को डराता है।[४०] इसके अलावा, कुछ न्यायविदों ने मुहारिब का अर्थ मुसलमानों के साथ जंग करने को माना है।[४१]
दण्ड चयनित है या वैकल्पिक
आय ए मुहारेबा के अनुसार, मुहारिब के लिए चार सज़ाएं हैं;[४२] लेकिन मुहारिब को कैसे दंडित किया जाए, इस पर न्यायविदों में मतभेद है;[४३] शेख़ सदूक़,[४४] शेख मुफ़ीद,[४५] अल्लामा हिल्ली,[४६] और इमाम खुमैनी।[४७] वे सज़ा को वैकल्पिक मानते हैं और मानते हैं कि न्यायाधीश चार सज़ाओं में से एक को चुन सकता है। दूसरी ओर, ऐसा कहा गया है कि शेख तूसी, मुहम्मद हसन नजफ़ी, साहिबे रियाज़ और सय्यद अबुल कासिम खूई का मानना है कि एक मुहारिब की सज़ा व्यवस्थित तरीके से और उसके द्वारा किए गए अपराध के अनुपात में होती है।[४८]
फ़ुटनोट
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- ↑ तबरसी, मजमा अल बयान, 1372 शम्सी, भाग 3, पेज 291; ख्वाज़ा अब्दुलाह अंसारी, कशफ अल इसरार, 1371 शम्सी, भाग 3, पेज 103
- ↑ तबरसी, मजमा अल बयान, 1372 शम्सी, भाग 3, पेज 291; ख्वाज़ा अब्दुलाह अंसारी, कशफ अल इसरार, 1371 शम्सी, भाग 3, पेज 103
- ↑ तबातबाई, तफसीर अल मीज़ान, 1390 शम्सी, भाग 5, पेज 331
- ↑ तबरसी, मजमा अल बयान, 1372 शम्सी, भाग 3, पेज 291; ख्वाज़ा अब्दुलाह अंसारी, कशफ अल इसरार, 1371 शम्सी, भाग 3, पेज 103; फ़ख्रे राज़ी, अल तफसीर अल कबीर, 1420 हिजरी, भाग 11, पेज 345; मकारिम शिराज़ी, तफसीर नमूना, 1371 शम्सी, भाग 4, पेज 359
- ↑ तबरसी, मजमा अल बयान, 1372 शम्सी, भाग 3, पेज 291; तबातबाई, तफसीर अल मीज़ान, 1390 शम्सी, भाग 5, पेज 326
- ↑ कुलैनी, अल काफी, 1407 हिजरी, भाग 7, पेज 245
- ↑ देखेः तबरसी, मजमा अल बयान, 1372 शम्सी, भाग 3, पेज 291; ख्वाज़ा अब्दुलाह अंसारी, कशफ अल इसरार, 1371 शम्सी, भाग 3, पेज 103; फ़ख्रे राज़ी, अल तफसीर अल कबीर, 1420 हिजरी, भाग 11, पेज 345
- ↑ फ़ख्रे राज़ी, अल तफसीर अल कबीर, 1420 हिजरी, भाग 11, पेज 345
- ↑ तबरसी, मजमा अल बयान, 1372 शम्सी, भाग 3, पेज 291; ख्वाज़ा अब्दुलाह अंसारी, कशफ अल इसरार, 1371 शम्सी, भाग 3, पेज 103; फ़ख्रे राज़ी, अल तफसीर अल कबीर, 1420 हिजरी, भाग 11, पेज 345
- ↑ तबातबाई, तफसीर अल मीज़ान, 1390 शम्सी, भाग 5, पेज 333
- ↑ सालेही नजफाबादी, तफसीर आय मुबारेहा वा अहकाम फिक़्ही आन, पेज 65
- ↑ तबातबाई, तफसीर अल मीज़ान, 1390 शम्सी, भाग 5, पेज 326; तबरसी, मजमा अल बयान, 1372 शम्सी, भाग 3, पेज 292
- ↑ तबातबाई, तफसीर अल मीज़ान, 1390 शम्सी, भाग 5, पेज 326
- ↑ तबरसी, मजमा अल बयान, 1372 शम्सी, भाग 3, पेज 292; ख्वाज़ा अब्दुलाह अंसारी, कशफ अल इसरार, 1371 शम्सी, भाग 3, पेज 103
- ↑ तबरसी, मजमा अल बयान, 1372 शम्सी, भाग 3, पेज 292; ख्वाज़ा अब्दुलाह अंसारी, कशफ अल इसरार, 1371 शम्सी, भाग 3, पेज 103
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- ↑ तबरसी, मजमा अल बयान, 1372 शम्सी, भाग 3, पेज 292
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- ↑ तबरसी, मजमा अल बयान, 1372 शम्सी, भाग 3, पेज 292
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- ↑ सीवती, अल दुर अल मंसूर, 1404 हिजरी, भाग 2, पेज 279
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- ↑ मुहक़्क़िक़ हिल्ली, शरा ए अल इस्लाम, 1408 हिजरी, भाग 4, पेज 168
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- ↑ शेख तूसी, अल मबसूत, 1387 हिजरी, भाग 8, पेज 47
- ↑ सालेही नजफ़ाबादी, तफसीर आय ए मुहारेबा वा अहकाम ए फ़िक़्ही आन, पेज 61
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- ↑ ख़ुमैनी, तहरीर अल वसीला, मतबूआत दार अल इल्म, भाग 2, पेज 493
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स्रोत
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- कुलैनी, मुहम्मद बिन याक़ूब, अल काफी, संशोधन गफ़्फ़ारी वा आख़ूंदी, तेहरान, मकतब अल इस्लामीया, 1407 हिजरी
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- मुहक़्क़िक़ हिल्ली, जाफ़र बिन हसन, शरा ए अल इस्लाम फ़ी मसाइल अल हलाल वल हराम, शोध व संशोधन अब्दुल हुसैन मुहम्मद अली बक़्क़ाल, क़ुम, इस्माईलीयान, दूसरा संस्करण, 1408 हिजरी
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- मूसवी अर्दबेली, सय्यद अब्दुल करीम, फ़िक़्ह अल हुदूद वल ताज़ीरात, क़ुम, मोअस्सेसा अल नशर लेजामे अल मुफ़ीद रहामाहुल्लाह, दूसरा संस्करण, 1427 हिजरी