लवात का आरोप

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यह लेख क़ज़्फ़ की अवधारणा के बारे में है। क़ुरआन में क़ज़्फ़ के बारे में जानने के लिए आय ए क़ज़्फ़ वाले लेख का अध्ययन करें।'

क़ज़्फ़ (अरबीः القذف) दूसरे पर व्यभिचार या लवात का आरोप लगाने को क़ज़्फ़ कहते है। क़ज़्फ़ को साबित करने और उसकी सज़ा लागू करने के लिए न्यायविदों ने परिपक्वता (बुलूग़), बुद्धि और इस्लाम जैसी शर्तों का उल्लेख किया है। क़ज़्फ़ की सज़ा अस्सी कोड़े है, हालांकि यह सज़ा उस समय लागू होती है जब आरोपित व्यक्ति इसकी मांग करे। इसके अलावा आरोपित व्यक्ति क़ज़्फ़ की सज़ा की मांग नहीं करता है, या दोष लगाने वाले व्यक्ति के दावे की पुष्टि ना हो, या दोष लगाने वाला व्यक्ति अपने दावे को साबित करने के लिए सबूत (बय्येना) लाता है, तो क़ज़्फ़ की सज़ा रद्द कर दी जाएगी।

क़ज़्फ़ बड़े पापो में से एक है और इसके कुछ नियम हैं, जिनमें दोष लगाने वाले की गवाही स्वीकार नहीं की जाती है और प्रसिद्ध राय के अनुसार, जिस व्यक्ति पर तीन बार क़ज़्फ़ की सज़ा लागू हो चुकी है, उसे चौथी बार मार दिया जाएगा।

परिभाषा और महत्व

किसी पर व्यभिचार और लवात का आरोप लगाने को क़ज़्फ़ कहते है।[१] क़ज़्फ़ का शाब्दिक अर्थ पत्थर अथवा ज़बान इत्यादि ... से हमला करना है।[२] ऐसा कहा गया है कि जो व्यक्ति क़ज़्फ़ करता है वह वास्तव में दूसरे के प्रति अनुचित आरोप लगाता है।[३] कुछ न्यायविदों ने लेखन के माध्यम से व्यभिचार और लवात का आरोप लगाने को क़ज़्फ़ मे शुमार किया है।[४] फ़िक़्ह मे दूसरे पर व्यभिचार और लवात का आरोप लगाने वाले को क़ाज़िफ़ और जिस पर आरोप लगाया जा रहा है उसको मक़ज़ूफ़ कहते है।[५]

क़ज़्फ़ बड़े पापों में से एक है[६] और पैग़म्बर (स) की एक हदीस में, जादू टोना, बहुदेववाद (शिर्क), क़त्ल नफ़्स, अनाथ की संपत्ति खाने, सूद लेने और युद्ध के दौरान भाग जाने इत्यादि को विनाशकारी पापों के रूप में वर्णित किया गया है।[७] न्यायशास्त्र पुस्तकों मे हुदूद के अध्याय में क़ज़्फ़ की चर्चा की गई है।[८] इसके अलावा, ईरान के इस्लामी दंड संहिता के अनुच्छेद 245 से 261, जो इमामिया न्यायशास्त्र से लिए गए हैं, क़ज़्फ़ और उसके फैसलों को समर्पित हैं।[९]

सज़ा

क़ज़्फ़ की सज़ा अस्सी कोड़े[१०] है जो दो आदिल पुरूषो की गवाही या स्वंय क़ाज़िफ़ के दो बार स्वीकार करने से साबित होती है।[११] इस हुक्म के तीन तर्क है पहला तर्क ‘’ وَالَّذِينَ يَرْ‌مُونَ الْمُحْصَنَاتِ ثُمَّ لَمْ يَأْتُوا بِأَرْ‌بَعَةِ شُهَدَاءَ فَاجْلِدُوهُمْ ثَمَانِينَ جَلْدَةً وَلَا تَقْبَلُوا لَهُمْ شَهَادَةً أَبَدًا ۚ وَأُولَـٰئِكَ هُمُ الْفَاسِقُونَ؛ वल्लज़ीना यरमूनल मोहसेनात सुम्मा लम यातू बेअरबअते शोहादाआ फ़ज्लेदूहुम समानीना जल्दतन वला तक़ब्लू लहुम शहादुन अबदा व उलाएका होमुल फ़ासेक़ून’’ अनुवादः और जो लोग पवित्र महिलाओ पर व्यभिचार का आरोप लगाए और फिर चार गवाह पेश न करें तो उन्हे अस्सी कोड़े लगाओ और कभी उनकी कोई गवाही स्वीकार न करो और यह लोग पाखंड़ी है।"[१२] दूसरा तर्क रिवायात[१३] और तीसरा तर्क सर्वसम्मति (इज्माअ) है।[१४]

साथ ही, ऐसे व्यक्ति की गवाही भी स्वीकार नही की जाएगी जो किसी दूसरे व्यक्ति पर व्यभिचार का आरोप तो लगाता है परंतु उसे साबित नहीं कर सकता।[१५]

सज़ा की तीव्रता

ऐसे मामले जिनमें क़ज़्फ़ की सज़ा समाप्त हो जाती है

निम्नलिखित मामलों में क़ज़्फ़ की सज़ा समाप्त हो जाती है:

  • आरोपित या उसके वारिस (आरोपित अर्थात मक़ज़ूफ़ की मृत्यु होने की स्थिति मे) आरोप लगाने वाले को माफ कर दे।
  • आरोप लगाने वाला अपना दावा साबित करने के लिए शरई बय्येना ले आए।
  • आरोपित व्यक्ति अपने ऊपर लगने वाले आरोप को स्वीकार कर ले।
  • यदि क़ज़्फ़ लेआन [नोट १] का कारण बने[२१]

इस्लामिक दंड संहिता के अनुच्छेद 261 में कहा गया है कि जिस व्यक्ति को क़ज़्फ किया जा रहा है उसकी स्वीकृति या माफ़ी के साथ-साथ आरोप का बय्यना से साबित होना अथवा क़ाज़ी के ज्ञान के साथ क़ज़्फ़ की सज़ा समाप्त हो जाती है।[२२]

क़ज़्फ़ के लिए सज़ा क्यों?

तफ़सीर नमूना में नासिर मकारिम शिराज़ी के अनुसार, क़ज़्फ़ की सजा के कार्यान्वयन का उद्देश्य लोगों के सम्मान और गरिमा को संरक्षित करना और क़ज़्फ़ के सामाजिक और नैतिक भ्रष्टाचार को रोकना है। यदि भ्रष्ट लोगों को आरोपों और दूसरों के साथ अनुचित व्यवहार के मामले में दंडित नहीं किया जाता है, तो लोगों का सम्मान और गरिमा खतरे में पड़ जाएगी और इससे लोगों में एक-दूसरे के प्रति निराशावादिता होगी और परिवारों का पतन होगा।[२३]

सज़ा के कार्यान्वयन की शर्तें

क़ज़्फ़ को साबित करने और उसकी सज़ा लागू करने के लिए, क़ाज़िफ़ और मक़ज़ूफ़ मे से प्रत्येक के लिए विशेष शर्तें बताई गई हैं। यदि इनमें से एक भी शर्त मौजूद नहीं है, तो क़ज़्फ़ की सज़ा लागू नहीं होती है और आरोप लगाने वाले पर ताज़ीर ( वह सज़ा जिसको हाकिम शरअ स्वंय निर्धारित करता है) लागू होगी।[२४] परिपक्वता (बुलूग), अक़्ल, इरादा और इख़्तियार क़ाज़िफ़ की शर्ते है।[२५] इस आधार से यदि कोई बच्चा या पागल किसी को क़ज़्फ़ करे, तो उस पर क़ज़्फ़ की सज़ा लागू नही होगी, लेकिन उसे दंडित किया जाएगा।[२६] इसी तरह अगर कोई गलती से या अनिच्छा से किसी पर आरोप लगाए, तो कोई सज़ा नहीं है।[२७] कुछ विद्वानो का कहना है कि क़ाज़िफ़ जो आरोप लगा रहा है वह उसके अर्थ को भी जानता हो।[२८] न्यायविदों ने मक़्ज़ूफ़ के लिए एहसान को बुनयादी शर्त माना है।[२९] एहसान का अर्थ परिपक्वता (बुलूग़), बुद्धि (अक़्ल), स्वतंत्रता (गुलाम होने के विपरीत स्वतंत्र होना), इस्लाम और पवित्रता (शुद्धता) है;[३०] हालांकि एहसान का एक दूसरा अर्थ शादी विवाह का भी उल्लेख किया गया है।[३१]

इसके अलावा, मक़्ज़ूफ़ हाकिम शरआ से सज़ा लागू करने की मांग करे, क्योकि क़ज़्फ़ की सज़ा हक़्क़ुन्नास है।[३२] और हाकिम शरअ हक़्क़ुन्नास उसी स्थिति मे दिलवा सकता है जब साहेब हक़ स्वंय उसकी मांग करता है।[३३] क़ज़्फ़ की सज़ा उसी समय साबित होती है जब क़ज़्फ़ के शब्द स्पष्ट रूप से या पारंपरिक रूप से व्यभिचार या लवात को समझाते हो।[३४]

क़ज़्फ़ के अन्य नियम

क़ज़्फ़ के कुछ अहकाम इस प्रकार हैं:

  • यदि कोई व्यक्ति किसी समूह पर आरोप लगाए, यदि वे एक साथ क़ज़्फ़ की सज़ा की मांग करें, तो उस पर एक हद (सज़ा) लागू होगी, लेकिन यदि वे व्यक्तिगत रूप से कज़्फ़ की सज़ा की मांग करते हैं, तो उनमें से प्रत्येक के लिए अलग अलग सज़ा लागू होगी।[३५] इसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति किसी महिला पर किसी पुरुष के साथ व्यभिचार का आरोप लगाता है, यदि वे दोनों एक साथ सज़ा की मांग करते हैं, तो क़ाज़िफ़ पर एक सज़ा दी जाएगी, और यदि दोनो अलग अलग सज़ा की मांग करें तो क़ाज़िफ़ पर दो सज़ा दी जाएगी।[३६]
  • यदि कोई पिता अपने बेटे पर व्यभिचार या लवात का आरोप लगाए तो उस पर क़ज़्फ़ की सज़ा लागू नहीं होती, बल्कि उसे दंडित किया जाता है।[३७]
  • यदि कोई व्यक्ति अपनी गूंगी-बहरी पत्नी पर व्यभिचार का आरोप लगाता है, तो पत्नि उसके लिए हमेशा हराम हो जाएगी।[३८]
  • क़ज़्फ़ का अधिकार वुरसा को मिलता है; अर्थात मक़ज़ूफ़ की मृत्यु हो जाए, तो उसके वारिस क़ज़्फ़ की सज़ा की मांग कर सकते है।[३९]
  • यदि दो लोग एक-दूसरे पर व्यभिचार या लवात का आरोप लगाए, तो सज़ा खत्म हो जाती है और दोनों को दंडित किया जाता है।[४०]

फ़ुटनोट

  1. शहीद सानी, अल रौज़ा अल बाहीया, 1410 हिजरी, भाग 9, पेज 166; अब्दुर रहमान, मोअजम अल मुस्तलेहात व अल फ़ाज अल फिक़्हीया, भाग 3, पेज 74
  2. फ़राहीदी, अलऐन, 1410 हिजरी, भाग 5, पेज 35 (क़ज़्फ़ शब्द के अंर्तगत)
  3. नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1362 शम्सी, भाग 41, पेज 402
  4. बहजत, इस्तिफतेआत, 1428 हिजरी, भाग 4, पेज 461; तबरेज़ी, इस्तिफ्तेआत जदीद, 1385 शम्सी, भाग 1, पेज 426
  5. देखेः ख़ूई, मोसूआ अल इमाम अल ख़ूई, भाग 41, पेज 314
  6. इमाम ख़ुमैनी, तहरीर अल वसीला, मोअस्सेसा मतबूआत दार अल इल्म, भाग 1, पेज 274
  7. शेख सदूक़, अल ख़िसाल, 1362 शम्सी, भाग 2, पेज 364
  8. नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1362 शम्सी, भाग 41, पेज 402
  9. क़ानून मजाज़ात इस्लामी, मरकज पुज़ूहिश हाए मजलिसी शूरा ए इस्लामी
  10. अल्लामा हिल्ली, क़वाइद अल अहकाम, 1413 हिजरी, भाग 3, पेज 547; शहीद सानी, अल रौज़ा अल बहईया, 1410 हिजरी, भगा 9, पेज 188
  11. तूसी, अल नेहाया, 1400 हिजरी, पेज 726; अल्लामा हिल्ली, क़वाइद अल अहकाम, 1413 हिजरी, भाग 3, पेज 547
  12. सूर ए नूर, आयत न 4
  13. देखेः कुलैनी, अल काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 7, पेज 2085-209; हुर्रे आमोली, वसाइल अल शिया, 1409 हिजरी, भाग 28, पेज 173-208
  14. देखेः शहीद सानी, अल रौज़ा अल बहईया, 1410 हिजरी, भाग 9, पेज 188; नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1362 शम्सी, भाग 41, पेज 402
  15. नजफी, जवाहिर अल कलाम, 1362 शम्सी, भाग 41, पेज 37
  16. देखेः शहीद सानी, अल रौज़ा अल बहईया, 1410 हिजरी, भाग 9, पेज 196
  17. शहीद सानी, अल रौज़ा अल बहईया, 1410 हिजरी, भाग 9, पेज 196
  18. नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1362 हिजरी, भाग 41, पेज 438
  19. देखेः अल्लामा हिल्ली, क़वाइद अल अहकाम, 1413 हिजरी, भाग 3, पेज 547; शहीद सानी, अल रौज़ा अल बहईया, 1410 हिजरी, भाग 9, पेज 190
  20. इब्न इद्रीस, अल सराइर, 1410 हिजरी, भाग 3, पेज 519
  21. अल्लामा हिल्ली, क़वाइद अल अहकाम, 1413 हिजरी, भाग 3, पेज 547; शहीद सानी, अल रौज़ा अल बहईया, 1410 हिजरी, भाग 9, पेज 191; नजफी, जवाहिर अल कलाम, 1362 शम्सी, भाग 41, पेज 42
  22. क़ानून मजाज़ात इस्लामी, मरकज़ पुज़ूहिश हाए मजलिस शूरा ए इस्लामी
  23. मकारिम शिराज़ी, तफसीर नमूना, 1371 शम्सी, भाग 14, पेज 376
  24. अल्लामा हिल्ली, क़वाइद अल अहकाम, 1413 हिजरी, भाग 3, पेज 545; शहीद सानी, अल रौज़ा अल बहईया, 1410 हिजरी, भाग 9, पेज 179 180
  25. अल्लामा हिल्ली, क़वाइद अल अहकाम, 1413 हिजरी, भाग 3, पेज 544
  26. अल्लामा हिल्ली, क़वाइद अल अहकाम, 1413 हिजरी, भाग 3, पेज 544; शहीद सानी, अल रौज़ा अल बहईया, 1410 हिजरी, भाग 9, पेज 175
  27. अल्लामा हिल्ली, क़वाइद अल अहकाम, 1413 हिजरी, भाग 3, पेज 544
  28. तूसी, अल नेहाया, 1400 हिजरी, पेज 728; शहीद सानी, अल रौज़ा अल बहईया, 1410 हिजरी, भाग 9, पेज 166-172
  29. अल्लामा हिल्ली, क़वाइद अल अहकाम, 1413 हिजरी, भाग 3, पेज 544; शहीद सानी, अल रौज़ा अल बहईया, 1410 हिजरी, भाग 9, पेज 179
  30. अल्लामा हिल्ली, क़वाइद अल अहकाम, 1413 हिजरी, भाग 3, पेज 544; शहीद सानी, अल रौज़ा अल बहईया, 1410 हिजरी, भाग 9, पेज 179
  31. शहीद सानी, अल रौज़ा अल बहईया, 1410 हिजरी, भाग 9, पेज 178
  32. शहीद सानी, मसालिक अल इफ़्हाम, 1413 हिजरी, भाग 5, पेज 257
  33. अल्लामा हिल्ली, क़वाइद अल अहकाम, 1413 हिजरी, भाग 3, पेज 547; शहीद सानी, अल रौज़ा अल बहईया, 1410 हिजरी, भाग 9, पेज 190
  34. शहीद सानी, अल रौज़ा अल बहईया, 1410 हिजरी, भाग 9, पेज 166-168
  35. अल्लामा हिल्ली, क़वाइद अल अहकाम, 1413 हिजरी, भाग 3, पेज 546; शहीद सानी, अल रौज़ा अल बहईया, 1410 हिजरी, भाग 9, पेज 183-184
  36. नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1362 शम्सी, भाग 34, पेज 74
  37. तूसी, अल नेहाया, 1400 हिजरी, पेज 727; अल्लामा हिल्ली, क़वाइद अल अहकाम, 1413 हिजरी, भाग 3, पेज 546
  38. नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1362 शम्सी, भाग 29, पेज 237; सिस्तानी, मिन्हाज अल सालेहीन, 1415 हिजरी, भाग 3, पेज 72
  39. तूसी, अल नेहाया, 1400 हिजरी, पेज 727; अल्लामा हिल्ली, क़वाइद अल अहकाम, 1413 हिजरी, भाग 3, पेज 547
  40. अल्लामा हिल्ली, क़वाइद अल अहकाम, 1413 हिजरी, भाग 3, पेज 546; शहीद सानी, अल रौज़ा अल बहईया, 1410 हिजरी, भाग 9, पेज 183

नोट

  1. लेआन उस स्थान पर होती है जब पति अपनी पत्नि पर व्यभिचार का आरोप लगाए और उसके पास अपने दावे को साबित करने के लिए कोई गवाह या तर्क ना हो तो ऐसी स्थिति मे वह क़ाज़ी के सामने कोर्ट मे जाकर चार बार अपने दावे को दोहराएगा और फिर इस आयत को पढ़ेगा لَعْنَةُ اللّه عَلیَّ إنْ کُنْتُ مِن الْكاذِبينَ लानातुल्लाहे अलय्या इन कुन्तो मिनल काज़ेबीन अनुवादः अगर मै अपने दावे मे झूठा हूं तो मुझ पर अल्लाह की लानत हो। (मिश्कीनी, मुस्तलेहात अल फ़िक़्ह, पेज 454

स्रोत

  • इब्न इद्रीस, मुहम्मद बिन मंसूर, अल सराइर अल हावी लेतहरीर अल फ़तावी, क़ुम, दफतर इंतेशारात इस्लामी, दूसरा संस्करण, 1410 हिजरी
  • इमाम ख़ुमैनी, सय्यद रुहुल्लाह, तहरीर अल वसीला, क़ुम, मोअस्सेसा मतबूआत दार अल इल्म, पहला संस्करण
  • बहजत, मुहम्मद तक़ी, इस्तिफ़्तेआत, क़ुम, दफतर आयतुल्लाह बहज़त, 1428 हिजरी
  • तबरेज़ी, जवाद, इस्तिफ़तेआत जदीद, कुम, नशर सुरूर, 1385 शम्सी
  • हुर्रे आमोली, मुहम्मद बिन हसन, वसाइल अल शिया, क़ुम, मोअस्सेसा आले अल-बैत (अ), पहला संस्करण, 1409 हिजरी
  • शहीद सानी, ज़ैनुद्दीन बिन अली, मसालिक अल इफ़्हाम इला तंक़ीह शरा ए अल इस्लाम, क़ुम, मोअस्सेसा अल मआरिफ़ अल इस्लामीया, 1413 हिजरी
  • शहीद सानी, ज़ैनुद्दीन बिन अली, अल रौज़ा अल बहईया फ़ी शरह अल लुम्आ अल दमिश्क़ीया, हाशिया व शरह कलांतर, क़ुम, किताब फ़रोशी दावरी, पहला संस्करण, 1410 हिजरी
  • शेख सदूक़, मुहम्मद बिन अली, अल ख़िसाल, संशोधनः अली अकबर गफ़्फ़ारी, क़ुम, जामे मुदर्रेसीन, 1362 शम्सी
  • तूसी, मुहम्मद बिन हसन, अल नेहाया फ़ी मुजर्रेद अल फ़िक़्ह वल फ़तावा, बैरुत, दार अल किताब अल अरबी, दूसरा संस्करण, 1400 हिजरी
  • अब्दुर रहमान, मोअजम अल मुस्तलेहात वल अलफ़ाज़ अल फ़िक़्हीया
  • अल्लामा हिल्ली, हसन बिन युसुफ़, क़वाइद अल अहकाम फ़ी मारफत अल हलाल वल हराम, क़ुम, दफ़तर इंतेशारात इस्लामी, पहला संस्करण, 1413 हिजरी
  • फ़राहीदी, ख़लील बिन अहमद, अल ऐन, संशोधनः महदी मखज़ूमी व इब्राहीम सामराई, क़ुम, नशर हिजरत, 1410 हिजरी
  • क़ानून मजाज़ात इस्लामी, साइट मरकज़ पुज़ूहिश हाए मजलिस शूरा ए इस्लामी, वीज़िट की तारीख 29 तीर 1398 शम्सी
  • कुलैनी, मुहम्मद बिन याक़ूब, अल काफ़ी, तेहरान, दार अल कुतुब अल इस्लामीया, चौथा संस्करण, 1407 हिजरी
  • मिश्कीनी, मीर्ज़ा अली, मुस्तलेहात अल फ़िक्ह
  • मकारिम शिराज़ी, नासिर, तफसीर नमूना, तेहरान, दार अल कुतुब अल इस्लामीया, दसवां संस्करण, 1371 शम्सी
  • नजफ़ी, मुहम्मद हसन, जवाहिर अल कलाम फ़ी शरह शरा ए अल इस्लाम, शोधः मुहम्मद कूचानी, बैरुत, दार एहया अल तुरास अल अरबी, सातवां संस्करण, 1362 शम्सी