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सहीफ़ा सज्जादिया की पचासवीं दुआ

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सहीफ़ा सज्जादिया की पचासवीं दुआ
शाबान 1102 में अब्दुल्लाह यज़्दी द्वारा लिखित साहिफ़ा सज्जादिया की पांडुलिपि
शाबान 1102 में अब्दुल्लाह यज़्दी द्वारा लिखित साहिफ़ा सज्जादिया की पांडुलिपि
विषयखुदा का खौफ़ तारी होने पर पढ़ी जाने वाली दुआ
प्रभावी/अप्रभावीप्रभावी
किस से नक़्ल हुईइमाम सज्जाद (अ)
कथावाचकमुतवक्किल बिन हारुन
शिया स्रोतसहीफ़ा सज्जादिया


सहीफ़ा सज्जादिया की पचासवीं दुआ (अरबीःالدعاء الخمسون من الصحيفة السجادية) इमाम सज्जाद (अ) की प्रसिद्ध दुआओ मे से है। जिसे आप (अ) किसी पाप और मास्यत के कारण खौफ़ खुदा तारी होने के समय पड़ी जाती है। इस दुआ में अल्लाह को मनुष्य के निर्माता, पालनकर्ता और प्रदाता के रूप में पेश किया गया है, और उसकी क्षमा को वह कारक माना गया है जो मनुष्य के लिए आशा पैदा करता है। यह मानव स्वभाव के प्रति परमेश्वर की जागरूकता और पश्चाताप की स्वीकृति को भी संदर्भित करती है।

पचासवीं दुआ की विभिन्न व्याख्याएँ है, सहीफ़ा सज्जादिया की व्याख्याओ मे शुहूद व शनाखत फ़ारसी भाषा मे व्याख्या है जो हसन ममदूही किरमानशाही द्वारा लिखित है और अरबी भाषा मे किताब रियाज़ उस सालेकीन फ़ी शरह सहीफ़ा सय्यद उस साजेदीन है जो सय्यद अली खान मदनी द्वारा लिखित है।

शिक्षाएँ

सहीफ़ा सज्जादिया की पचासवीं दुआ, पाप और मासयत की कारण खौफ़ खुदा तारी होने के समय पढ़ी जाती है। ममदूही किरमानशाही जो सहीफ़ा सज्जादिया की व्याख्या लिखने वालो मे से एक है, उनके कथन के अनुसार पाप मोमेनीन के दिलो मे ख़ौफ व हरास पैदा करता है इस दुआ मे बयान हुआ है कि आस्ति के लिए एकमात्र शरण अल्लाह की ओर वापस आना है।[] इस दुआ की शिक्षाएँ इस प्रकार हैं:

  • ईश्वर मनुष्य का निर्माता, उसका पालन-पोषण करने वाला और भरण-पोषण करने वाला है।
  • कर्मों के अभिलेख में दर्ज पापों के कारण बदनामी का भय
  • पाप मानव प्रतिभाओं को बर्बाद करने और मुसीबत पैदा करने का कारण है।
  • परमेश्वर की ओर से क्षमा के शुभ समाचार के साथ निराशा और आशाहीनता से मुक्ति
  • ईश्वरीय क्षमा की आशा जीवन की आशा का एक कारक है।
  • परमेश्वर के राज्य से बचकर भागना व्यर्थ है
  • पापों के लिए दण्ड की पात्रता स्वीकार करना
  • ईश्वर का दण्ड न्याय के समान ही है।
  • परमेश्वर को अपने सेवकों को दण्ड दिए जाने की आवश्यकता नहीं है
  • स्वर्ग और पृथ्वी के रहस्य परमेश्वर से छिपे नहीं हैं।
  • नरक की आग मानव सहनशक्ति से परे है।
  • ईश्वर से दया और क्षमा मांगना
  • परमेश्वर के राज्य की महानता और उसके स्थायित्व को स्वीकार करना
  • परमेश्वर के राज्य की स्थायित्व और उसकी अपूर्णताओं में आज्ञाकारिता और अवज्ञा की अप्रभावीता
  • आइम्मा ए मासूमीन (अ) को ईश्वर के गुप्त नामों का ज्ञान
  • मानव स्वभाव के बारे में परमेश्वर का ज्ञान
  • परमेश्‍वर बहुत क्षमाशील और दयालु है।
  • सृष्टि की दुनिया पर ईश्वर के शासन की अनंतता[]

व्याख्याएँ

सहीफ़ा सज्जादिया की पचासवीं दुआ की भी व्याख्या दूसरी दुआओ की तरह की गई है। यह दुआ हुसैन अंसारियान की दयारे आशेक़ान[] हसन ममदूही किरमानशाही की शुहुद व शनाख्त,[] और सय्यद अहमद फ़हरी की किताब शरह व तरजुमा सहीफ़ा सज्जादिया[] मे फ़ारसी भाषा मे व्याख्या की गई है।

सहीफ़ा सज्जादिया की पचासवीं दुआ सय्यद अली खान मदनी की किताब रियाज़ उस सालेकीन[] मुहम्मद जवाद मुग़्निया की फी ज़िलाल अल-सहीफ़ा सज्जादिया,[] मुहम्मद बिन मुहम्मद दाराबी की रियाज़ उल आरेफ़ीन[] और सय्यद मुहम्मद हुसैन फ़ज़लुल्लाह की आफ़ाक़ अल रूह[] मे इसका वर्णन अरबी में किया गया है। इस दुआ के शब्दों को फ़ैज़ काशानी द्वारा तालीक़ा अला अल-सहीफ़ा सज्जादिया[१०] और इज़्ज़ुद्दीन जज़ाएरी द्वारा शरह अल-सहीफ़ा अल-सज्जादिया जैसी शाब्दिक टिप्पणियों में भी उल्लेक किया गया है।[११]

पचासवीं दुआ का पाठ और अनुवाद

पाठ
पाठ और अनुवाद
अनुवाद

وَ كَانَ مِنْ دُعَائِهِ عَلَيْهِ السَّلَامُ فِي الرَّهْبَةِ

व काना मिन दुआएहे अलैहिस सलामो फ़िर रहबते

اللَّهُمَّ إِنَّكَ خَلَقْتَنِي سَوِيّاً، وَ رَبَّيْتَنِي صَغِيراً، وَ رَزَقْتَنِي مَكْفِيّاً

अल्लाहुम्मा इन्नका ख़लक़्तनी सवीय्या, व रब्बयतनी सगीरा, व रज़क़तनी मकफ़िय्या

اللَّهُمَّ إِنِّي وَجَدْتُ فِيمَا أَنْزَلْتَ مِنْ كِتَابِكَ، وَ بَشَّرْتَ بِهِ عِبَادَكَ أَنْ قُلْتَ: «يا عِبادِيَ الَّذِينَ أَسْرَفُوا عَلى‏ أَنْفُسِهِمْ لا تَقْنَطُوا مِنْ رَحْمَةِ اللَّهِ، إِنَّ اللَّهَ يَغْفِرُ الذُّنُوبَ جَمِيعاً» وَ قَدْ تَقَدَّمَ مِنِّي مَا قَدْ عَلِمْتَ وَ مَا أَنْتَ أَعْلَمُ بِهِ مِنِّي، فَيَا سَوْأَتَا مِمَّا أَحْصَاهُ عَلَيَّ كِتَابُكَ

अल्लाहुम्मा इन्नी वजदतो फ़ीमा अंज़लता मिन किताबेका, व यश्शरता बेहि ऐबादेका अन क़ुलताः या ऐबादेयल लज़ीना असरफ़ू अला अंफ़ोसेहिम ला तक़नतू मिन रहमतिल्लाहे, इन्नल्लाहा यग़फ़ेरुज़ ज़ोनूबा जमीआ, व क़द तक़द्दमा मिन्नी मा क़द अलिमता व मा अनता आलमो बेहि मिन्नी, फ़मा सौआता मिम्मा अहसाहो अलय्या किताबोका

فَلَوْ لَا الْمَوَاقِفُ الَّتِي أُؤَمِّلُ مِنْ عَفْوِكَ الَّذِي شَمِلَ كُلَّ شَيْ‏ءٍ لَأَلْقَيْتُ بِيَدِي، وَ لَوْ أَنَّ أَحَداً اسْتَطَاعَ الْهَرَبَ مِنْ رَبِّهِ لَكُنْتُ أَنَا أَحَقَّ بِالْهَرَبِ مِنْكَ، وَ أَنْتَ لَا تَخْفَى عَلَيْكَ خَافِيَةٌ فِي الْأَرْضِ وَ لَا فِي السَّمَاءِ إِلَّا أَتَيْتَ بِهَا، وَ كَفَى بِكَ جَازِياً، وَ كَفَى بِكَ حَسِيباً.

फ़लौ लल मवाक़ेफ़ुल लज़ी अवम्मेलो मिन अफ़वेकल लज़ी शमेला कुल्ला शैइन लअलक़यतो बेयदी, वलो अन्ना अहदन इस्तताअल हरबा मिन रब्बेहि लकुन्तो अना अहक़्क़ा बिल हर्बे मिनका, व अंता ला तख़फ़ा अलैका ख़ाफ़ीयतुन फ़िल अर्ज़े व ला फ़िस समाए इल्ला आतयता बेहा, व कफ़ा बेका जाज़ियन, व कफ़ा बेका हसीबा

اللَّهُمَّ إِنَّكَ طَالِبِي إِنْ أَنَا هَرَبْتُ، وَ مُدْرِكِي إِنْ أَنَا فَرَرْتُ، فَهَا أَنَا ذَا بَيْنَ يَدَيْكَ خَاضِعٌ ذَلِيلٌ رَاغِمٌ، إِنْ تُعَذِّبْنِي فَإِنِّي لِذَلِكَ أَهْلٌ، وَ هُوَ- يَا رَبِّ- مِنْكَ عَدْلٌ، وَ إِنْ تَعْفُ عَنِّي فَقَدِيماً شَمَلَنِي عَفْوُكَ، وَ أَلْبَسْتَنِي عَافِيَتَكَ.

अल्लाहुम्मा इन्नका तालेबी इन अना हरब्तो, व मुदरेकी इन अना फ़ररतो, फ़हा अना ज़ा बैयना यदयका ख़ाज़ेउन ज़लीलुन राग़ेमुन, इन तोअज़्ज़िबनी फ़इन्नी लेज़ालेका अहलुन, व होवा – या रब्बे- मिन्का अदलुन, व इन तअफ़ो अन्नी फ़क़दीमन शमलनी अफ़वोका, व अलबसतनी आफ़ीयतेका

فَأَسْأَلُكَ- اللَّهُمَّ- بِالْمَخْزُونِ مِنْ أَسْمَائِكَ، وَ بِمَا وَارَتْهُ الْحُجُبُ مِنْ بَهَائِكَ، إِلَّا رَحِمْتَ هَذِهِ النَّفْسَ الْجَزُوعَةَ، وَ هَذِهِ الرِّمَّةَ الْهَلُوعَةَ، الَّتِي لَا تَسْتَطِيعُ حَرَّ شَمْسِكَ، فَكَيْفَ تَسْتَطِيعُ حَرَّ نَارِكَ،! وَ الَّتِي لَا تَسْتَطِيعُ صَوْتَ رَعْدِكَ، فَكَيْفَ تَسْتَطِيعُ صَوْتَ غَضَبِكَ!

फ़अस्अलोका -अल्लाहुम्मा- बिल मख़ज़ूने मिन अस्माएका, व बेमा वारतहुल होजोबो मिन बहाएका, इल्ला रहमता हाज़ेहिन नफ़सल जज़ूअता, व हाज़ेहिर रिम्मतल हलऔता, अल्लती ला तस्ततीओ हर्रा शम्सेका, फ़कैयफ़ा तस्ततीओ हर्रा नारेका ! व अल्लती ला तस्ततीओ सौता रअदेका, फ़कयफ़ा तस्ततीओ सौता ग़ज़बेका !

فَارْحَمْنِيَ- اللَّهُمَّ- فَإِنِّي امْرُؤٌ حَقِيرٌ، وَ خَطَرِي يَسِيرٌ، وَ لَيْسَ عَذَابِي مِمَّا يَزِيدُ فِي مُلْكِكَ مِثْقَالَ ذَرَّةٍ، وَ لَوْ أَنَّ عَذَابِي مِمَّا يَزِيدُ فِي مُلْكِكَ لَسَأَلْتُكَ الصَّبْرَ عَلَيْهِ، وَ أَحْبَبْتُ أَنْ يَكُونَ ذَلِكَ لَكَ، وَ لَكِنْ سُلْطَانُكَ- اللَّهُمَّ- أَعْظَمُ، وَ مُلْكُكَ أَدْوَمُ مِنْ أَنْ تَزِيدَ فِيهِ طَاعَةُ الْمُطِيعِينَ، أَوْ تَنْقُصَ مِنْهُ مَعْصِيَةُ الْمُذْنِبِينَ.

फ़रहमनी -अल्लाहुम्मा- फ़इन्निम रोउन हक़ीरुन, व खतरी यसीरुन, व लैसा अज़ाबी मिम्मा यज़ीदो फ़ी मुल्केका मिस्काला ज़र्रतिन, व लौ अन्ना अज़ाबी मिम्मा यज़ीदो फ़ी मुलकेका लसअलतोकस सब्रा अलैहे, व अहबबतो अय यकूना ज़ालेका लका, व लाकिन सुलतानोका -अल्लाहुम्मा- आअज़मो, व मुलकोका अदवमो मिन अन तज़ीदा फ़ीहे ताअतुल मुतीईना, ओ तनक़ुसा मिन्हो मअसीयतहुल मुज़नेबीना

فَارْحَمْنِي يَا أَرْحَمَ الرَّاحِمِينَ، وَ تَجَاوَزْ عَنِّي يَا ذَا الْجَلَالِ وَ الْإِكْرَامِ، وَ تُبْ عَلَيَّ، إِنَّكَ أَنْتَ التَّوَّابُ الرَّحِيمُ‏.

फ़रहमनी या अरहमर राहेमीना, व तजावज़ अन्नी या ज़ल जलाले वल इकराम, व तुब अलय्या इन्नका अन्तत तव्वाबुर रहीम

وَ كَانَ مِنْ دُعَائِهِ عَلَيْهِ السَّلَامُ فِي الرَّهْبَةِ
अल्लाह के डर के बारे में हज़रत की दुआ
اللَّهُمَّ إِنَّكَ خَلَقْتَنِي سَوِيّاً، وَ رَبَّيْتَنِي صَغِيراً، وَ رَزَقْتَنِي مَكْفِيّاً
हे परमेश्वर ! तूने मुझे इस तरह बनाया है कि मेरे अंग पूरी तरह स्वस्थ और सुदृढ़ हैं। और जब मैं छोटा था, तो तूने बिना किसी कष्ट या प्रयास के मेरा पालन-पोषण किया और मेरी देखभाल की।
اللَّهُمَّ إِنِّي وَجَدْتُ فِيمَا أَنْزَلْتَ مِنْ كِتَابِكَ، وَ بَشَّرْتَ بِهِ عِبَادَكَ أَنْ قُلْتَ: «يا عِبادِيَ الَّذِينَ أَسْرَفُوا عَلى‏ أَنْفُسِهِمْ لا تَقْنَطُوا مِنْ رَحْمَةِ اللَّهِ، إِنَّ اللَّهَ يَغْفِرُ الذُّنُوبَ جَمِيعاً» وَ قَدْ تَقَدَّمَ مِنِّي مَا قَدْ عَلِمْتَ وَ مَا أَنْتَ أَعْلَمُ بِهِ مِنِّي، فَيَا سَوْأَتَا مِمَّا أَحْصَاهُ عَلَيَّ كِتَابُكَ
हे परमात्मा ! जो किताब तूने नाज़िल की और जिसके द्वारा तूने अपने बन्दों को शुभ सूचना दी, उसमें मैंने तेरा यह कथन देखा है कि ऐ मेरे बन्दों! जिन लोगों ने अपने ऊपर अत्याचार किया है, वे अल्लाह की दया से निराश न हों। निश्चय ही अल्लाह तुम्हारे सारे पापों को क्षमा कर देगा, किन्तु मैंने तो उससे भी अधिक पाप किये हैं, जिनके विषय में तू भली-भाँति जानता है और जिन्हें तू मुझसे अधिक जानता है। हाय! उन पापों के कारण कितनी पीड़ा और अपमान है, जो तेरी पुस्तक में दर्ज हैं।
فَلَوْ لَا الْمَوَاقِفُ الَّتِي أُؤَمِّلُ مِنْ عَفْوِكَ الَّذِي شَمِلَ كُلَّ شَيْ‏ءٍ لَأَلْقَيْتُ بِيَدِي، وَ لَوْ أَنَّ أَحَداً اسْتَطَاعَ الْهَرَبَ مِنْ رَبِّهِ لَكُنْتُ أَنَا أَحَقَّ بِالْهَرَبِ مِنْكَ، وَ أَنْتَ لَا تَخْفَى عَلَيْكَ خَافِيَةٌ فِي الْأَرْضِ وَ لَا فِي السَّمَاءِ إِلَّا أَتَيْتَ بِهَا، وَ كَفَى بِكَ جَازِياً، وَ كَفَى بِكَ حَسِيباً.
यदि मुझे तेरी सर्वव्यापी क्षमा के अवसर न मिलते, जिनकी मुझे आशा है, तो मैं अपने ही हाथों अपना विनाश कर लेता। यदि कोई अपने प्रभु से भाग सकता है, तो मैं तुझसे भागने के अधिक योग्य हूँ। और तू ही वह है जिसकी ओर से आकाशों और धरती में कोई रहस्य छिपा नहीं है, परन्तु तू ही उसे (क़यामत के दिन) प्रकट कर देगा। अतः यह जज़ा देने और हिसाब के लिए पर्याप्त है।
اللَّهُمَّ إِنَّكَ طَالِبِي إِنْ أَنَا هَرَبْتُ، وَ مُدْرِكِي إِنْ أَنَا فَرَرْتُ، فَهَا أَنَا ذَا بَيْنَ يَدَيْكَ خَاضِعٌ ذَلِيلٌ رَاغِمٌ، إِنْ تُعَذِّبْنِي فَإِنِّي لِذَلِكَ أَهْلٌ، وَ هُوَ- يَا رَبِّ- مِنْكَ عَدْلٌ، وَ إِنْ تَعْفُ عَنِّي فَقَدِيماً شَمَلَنِي عَفْوُكَ، وَ أَلْبَسْتَنِي عَافِيَتَكَ.
हे अल्लाह ! अगर मैं भागना चाहूँगा तो तू मुझे ढूंढ लेगा। अगर मैं रास्ता बदल लूं तो तू मुझे पा लेगा। देखिये, मैं तेरे सामने दीन, अपमानित और पराजित खड़ा हूँ। यदि तू मुझे दण्ड देगा तो मैं उसका हकदार हूं। हे मेरे परमदेव! यह तेरी ओर से शुद्ध न्याय है, और यदि तू मुझे क्षमा करता हैं, तो तेरी क्षमा और माफी हमेशा मेरे साथ रहेगी। और तूने मुझे स्वास्थ्य और सुरक्षा के वस्त्र पहनाये हैं।
فَأَسْأَلُكَ- اللَّهُمَّ- بِالْمَخْزُونِ مِنْ أَسْمَائِكَ، وَ بِمَا وَارَتْهُ الْحُجُبُ مِنْ بَهَائِكَ، إِلَّا رَحِمْتَ هَذِهِ النَّفْسَ الْجَزُوعَةَ، وَ هَذِهِ الرِّمَّةَ الْهَلُوعَةَ، الَّتِي لَا تَسْتَطِيعُ حَرَّ شَمْسِكَ، فَكَيْفَ تَسْتَطِيعُ حَرَّ نَارِكَ،! وَ الَّتِي لَا تَسْتَطِيعُ صَوْتَ رَعْدِكَ، فَكَيْفَ تَسْتَطِيعُ صَوْتَ غَضَبِكَ!
हे पालन हार ! मैं तुझसे तेरे गुप्त नामों और तेरी अज़मत की शपथ लेता हूँ जो (तेज और ऐश्वर्य के) आवरण में छिपी है, कि इस अधीर आत्मा और बेचैन कंकाल पर दया कर (क्योंकि) जो तेरे सूर्य की गर्मी सहन नहीं कर सकता, वह तेरे नरक की प्रचंडता कैसे सहन कर सकता है, और जो तेरे बादलों की गड़गड़ाहट से काँपता है, वह तेरे क्रोध की आवाज़ कैसे सुन सकता है।
فَارْحَمْنِيَ- اللَّهُمَّ- فَإِنِّي امْرُؤٌ حَقِيرٌ، وَ خَطَرِي يَسِيرٌ، وَ لَيْسَ عَذَابِي مِمَّا يَزِيدُ فِي مُلْكِكَ مِثْقَالَ ذَرَّةٍ، وَ لَوْ أَنَّ عَذَابِي مِمَّا يَزِيدُ فِي مُلْكِكَ لَسَأَلْتُكَ الصَّبْرَ عَلَيْهِ، وَ أَحْبَبْتُ أَنْ يَكُونَ ذَلِكَ لَكَ، وَ لَكِنْ سُلْطَانُكَ- اللَّهُمَّ- أَعْظَمُ، وَ مُلْكُكَ أَدْوَمُ مِنْ أَنْ تَزِيدَ فِيهِ طَاعَةُ الْمُطِيعِينَ، أَوْ تَنْقُصَ مِنْهُ مَعْصِيَةُ الْمُذْنِبِينَ.
अतः मेरी दुर्दशा पर दया कर। क्योंकि, हे मेरे परमेश्वर! मैं एक निम्न स्तर का अधम व्यक्ति हूँ और मुझे दण्ड देने से तेरे राज्य में रत्ती भर भी वृद्धि नहीं होगी। और यदि मुझे दण्ड देने से तेरे राज्य में वृद्धि होती है, तो मैं तुझसे दण्ड के सामने धैर्य और सहनशीलता की दुआ करूंगा और मैं चाहूंगा कि वह वृद्धि तेरी हो। लेकिन हे अल्लाह! तेरा राज्य इतना महान और इतना स्थायी है कि आज्ञाकारी लोगों की आज्ञाकारिता उसमें कुछ भी नहीं बढ़ा सकती। या फिर पापियों के पापों से इसमें कुछ कमी नही आ सकती है।
فَارْحَمْنِي يَا أَرْحَمَ الرَّاحِمِينَ، وَ تَجَاوَزْ عَنِّي يَا ذَا الْجَلَالِ وَ الْإِكْرَامِ، وَ تُبْ عَلَيَّ، إِنَّكَ أَنْتَ التَّوَّابُ الرَّحِيمُ‏.
अतः हे दया करने वालों में सबसे अधिक दयालु, मुझ पर दया कर। और हे महिमा और ऐश्वर्य के प्रभु, मुझे क्षमा कर और मेरा पश्चाताप स्वीकार कर। निस्संदेह, तू ही तौबा क़बूल करनेवाला, अत्यन्त दयावान है।

अल्लाह के डर के बारे में हज़रत की दुआ

हे परमेश्वर ! तूने मुझे इस तरह बनाया है कि मेरे अंग पूरी तरह स्वस्थ और सुदृढ़ हैं। और जब मैं छोटा था, तो तूने बिना किसी कष्ट या प्रयास के मेरा पालन-पोषण किया और मेरी देखभाल की।

हे परमात्मा ! जो किताब तूने नाज़िल की और जिसके द्वारा तूने अपने बन्दों को शुभ सूचना दी, उसमें मैंने तेरा यह कथन देखा है कि ऐ मेरे बन्दों! जिन लोगों ने अपने ऊपर अत्याचार किया है, वे अल्लाह की दया से निराश न हों। निश्चय ही अल्लाह तुम्हारे सारे पापों को क्षमा कर देगा, किन्तु मैंने तो उससे भी अधिक पाप किये हैं, जिनके विषय में तू भली-भाँति जानता है और जिन्हें तू मुझसे अधिक जानता है। हाय! उन पापों के कारण कितनी पीड़ा और अपमान है, जो तेरी पुस्तक में दर्ज हैं।

यदि मुझे तेरी सर्वव्यापी क्षमा के अवसर न मिलते, जिनकी मुझे आशा है, तो मैं अपने ही हाथों अपना विनाश कर लेता। यदि कोई अपने प्रभु से भाग सकता है, तो मैं तुझसे भागने के अधिक योग्य हूँ। और तू ही वह है जिसकी ओर से आकाशों और धरती में कोई रहस्य छिपा नहीं है, परन्तु तू ही उसे (क़यामत के दिन) प्रकट कर देगा। अतः यह जज़ा देने और हिसाब के लिए पर्याप्त है।

हे अल्लाह ! अगर मैं भागना चाहूँगा तो तू मुझे ढूंढ लेगा। अगर मैं रास्ता बदल लूं तो तू मुझे पा लेगा। देखिये, मैं तेरे सामने दीन, अपमानित और पराजित खड़ा हूँ। यदि तू मुझे दण्ड देगा तो मैं उसका हकदार हूं। हे मेरे परमदेव! यह तेरी ओर से शुद्ध न्याय है, और यदि तू मुझे क्षमा करता हैं, तो तेरी क्षमा और माफी हमेशा मेरे साथ रहेगी। और तूने मुझे स्वास्थ्य और सुरक्षा के वस्त्र पहनाये हैं।

हे पालन हार ! मैं तुझसे तेरे गुप्त नामों और तेरी अज़मत की शपथ लेता हूँ जो (तेज और ऐश्वर्य के) आवरण में छिपी है, कि इस अधीर आत्मा और बेचैन कंकाल पर दया कर (क्योंकि) जो तेरे सूर्य की गर्मी सहन नहीं कर सकता, वह तेरे नरक की प्रचंडता कैसे सहन कर सकता है, और जो तेरे बादलों की गड़गड़ाहट से काँपता है, वह तेरे क्रोध की आवाज़ कैसे सुन सकता है।

अतः मेरी दुर्दशा पर दया कर। क्योंकि, हे मेरे परमेश्वर! मैं एक निम्न स्तर का अधम व्यक्ति हूँ और मुझे दण्ड देने से तेरे राज्य में रत्ती भर भी वृद्धि नहीं होगी। और यदि मुझे दण्ड देने से तेरे राज्य में वृद्धि होती है, तो मैं तुझसे दण्ड के सामने धैर्य और सहनशीलता की दुआ करूंगा और मैं चाहूंगा कि वह वृद्धि तेरी हो। लेकिन हे अल्लाह! तेरा राज्य इतना महान और इतना स्थायी है कि आज्ञाकारी लोगों की आज्ञाकारिता उसमें कुछ भी नहीं बढ़ा सकती। या फिर पापियों के पापों से इसमें कुछ कमी नही आ सकती है।

अतः हे दया करने वालों में सबसे अधिक दयालु, मुझ पर दया कर। और हे महिमा और ऐश्वर्य के प्रभु, मुझे क्षमा कर और मेरा पश्चाताप स्वीकार कर। निस्संदेह, तू ही तौबा क़बूल करनेवाला, अत्यन्त दयावान है।

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फ़ुटनोट

  1. ममदूही, शुहूद व शनाख़त, 1388 शम्सी, भाग 4, पेज 296
  2. ममदूही, शुहूद व शनाख़त, 1388 शम्सी, भाग 4, पेज 296-305 शरह फ़राज़हाए दुआ पंजाहुम अज़ साइट इरफ़ान
  3. अंसारियान, दयारे आशेक़ान, 1373 शम्सी, भाग 7, पेज 587-599
  4. ममदूही, शुहूद व शनाख़त, 1388 शम्सी, भाग 4, पेज 293-305
  5. फ़हरि, शरह व तफसीर सहीफ़ा सज्जादिया, 1388 शम्सी, भाग 3, पेज 535-539
  6. मदनी शिराज़ी, रियाज़ उस सालेकीन, 1435 हिजरी, भाग 7, पेज 297-330
  7. मुग़्निया, फ़ी ज़िलाल अल सहीफ़ा, 1428 हिजरी , पेज 637-640
  8. दाराबी, रियाज़ उल आरेफ़ीन, 1379 शम्सी, पेज 699-705
  9. फ़ज़्लुल्लाह, आफ़ाक़ अल रूह, 1420 शम्सी, भाग 2, पेज 592-600
  10. फ़ैज़ काशानी, तालीक़ात अलस सहीफ़ा अल-सज्जादिया, 1407 हिजरी, पेज 101-102
  11. जज़ाएरी, शरह अल-सहीफ़ा अल-सज्जादिया, 1402 हिजरी, पेज 285-287

स्रोत

  • अंसारीयान, हुसैन, दयारे आशेक़ान, तफ़सीर जामेअ सहीफ़ा सज्जादिया, तेहरान, पयाम ए आज़ादी, 1372 शम्सी
  • जज़ाएरी, इज़्ज़ुद्दीन, शरह अल-सहीफ़ा अल-सज्जादिया, बैरूत, दार उत तआरुफ लिलमतबूआत, 1402 हिजरी
  • दाराबी, मुहम्मद बिन मुहम्मद, रियाज़ अल आरेफ़ीन फ़ी शरह अल सहीफ़ा सज्जादिया, शोधः हुसैन दरगाही, तेहरान, नशर उस्वा, 1379 शम्सी
  • फ़ज़्लुल्लाह, सय्यद मुहम्मद हुसैन, आफ़ाक़ अल-रूह, बैरूत, दार उल मालिक, 1420 हिजरी
  • फ़हरि, सय्यद अहमद, शरह व तरजुमा सहीफ़ा सज्जादिया, तेहरान, उस्वा, 1388 शम्सी
  • फ़ैज़ काशानी, मुहम्मद बिन मुर्तज़ा, तालीक़ात अलस सहीफ़ा अल-सज्जादिया, तेहरान, मोअस्सेसा अल बुहूस वत तहक़ीक़ात अल सक़ाफ़ीया, 1407 हिजरी
  • मदनी शिराज़ी, सय्यद अली ख़ान, रियाज उस-सालेकीन फ़ी शरह सहीफ़ा तुस साजेदीन, क़ुम, मोअस्सेसा अल-नश्र उल-इस्लामी, 1435 हिजरी
  • मुग़्निया, मुहम्मद जवाद, फ़ी ज़िलाल अल-सहीफ़ा सज्जादिया, क़ुम, दार उल किताब उल इस्लामी, 1428 हिजरी
  • ममदूही किरमानशाही, हसन, शुहूद व शनाख़्त, तरजुमा व शरह सहीफ़ा सज्जादिया, मुकद्मा आयतुल्लाह जवादी आमोली, क़ुम, बूस्तान किताब, 1388 शम्सी