दुआ हज़ीन

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दुआ हज़ीन(फ़ारसी: دعای حزین), इमाम सज्जाद (अ.स.) से मंसूब एक प्रार्थना (मुनाजात) है जिसे रात की प्रार्थना (नमाज़े शब) के बाद पढ़ने की सिफारिश की जाती है।[१] इस प्रार्थना में ईश्वर की क्षमा और उदारता के सामने अपने ग़लत काम और पाप पर पछतावा, मृत्यु के बाद अकेलेपन का डर जैसी अवधारणाओं, और ईश्वर से क्षमा मांगने का उल्लेख किया गया है।[२] कुछ शोधकर्ताओं का मानना ​​है कि इस प्रार्थना के विषय शिया विश्वदृष्टि में कुछ मौलिक अवधारणाओं को दर्शाते हैं, जैसे मानवीय दुःख और पीड़ा, अकेलापन और अन्य लोगों से आशा न रखना, और अल्लाह से शरण मांगना है।[३]

6वीं शताब्दी के मुहद्दिसीन में से एक, हसन बिन फ़ज़्ल तबरसी के अनुसार, इमाम सज्जाद (अ.स.) रात की नमाज़ के बाद इस प्रार्थना को पढ़ते थे,[४] लेकिन किताब मिस्बाह अल-मुतहज्जिद में शेख़ तूसी (मृत्यु: 460 हिजरी) ने इस प्रार्थना का श्रेय इमाम सज्जाद (अ.स.) को देने के बारे में कोई राय नही दी है।[५] यह प्रार्थना सहीफ़ा सज्जादिया में नहीं आई है, और कुछ शोधकर्ताओं के अनुसार, इसका उल्लेख 14वीं शताब्दी से पहले लिखे गए सहीफ़ा सज्जादिया के किसी भी मुस्तदरक में नहीं किया गया है।[६]

मिफ़ताह अल-फ़लाह में, शेख़ बहाई ने नमाज़े वित्र के आदाब के साथ इस प्रार्थना के कुछ हिस्सों की शरह की है।[७] एक भारतीय न्यायविद् सैय्यद अब्बास शुशतरी लखनवी (मृत्यु: 1306 हिजरी) ने भी इस प्रार्थना से प्राप्त आह्वान को अपनी कविताओं में शामिल किया है।[८]

दुआ का पाठ और अनुवाद

  • اُناجیکَ یا مَوْجُوداً فی کُلِّ مَکانٍ لَعَلَّکَ تَسْمَعُ نِدائی
  • فَقَدْ عَظُمَ جُرْمی وَ قَلَّ حَیآئی
  • مَوْلایَ یا مَوْلایَ اَیَّ الاَهْوالِ اَتَذَکَّرُ وَ اَیَّها اَنْسی
  • وَ لَوْلَمْ یَکُنْ اِلا الْمَوْتُ لَکَفی
  • کَیْفَ وَ ما بَعْدَ الْمَوْتِ اَعْظَمُ وَ اَدْهی
  • مَوْلایَ یا مَوْلایَ حَتّی مَتی وَ اِلی مَتی اَقُولُ لَکَ الْعُتْبی
  • مَرَّةً بَعْدَ اُخْری ثُمَّ لا تَجِدُ عِنْدی صِدْقاً وَ لا وَفاءً
  • فَیاغَوْثاهُ ثُمَّ واغَوْثاهُ بِکَ یا اَللَّهُ
  • مِنْ هَویً قَدْ غَلَبَنی وَ مِنْ عَدُوٍّ قَدِ اسْتَکْلَبَ عَلَیَّ
  • وَ مِنْ دُنْیا قَدْ تَزَیَّنَتْ لی
  • وَ مِنْ نَفْسٍ اَمّارَةٍ بِالسُّوءِ اِلاّ ما رَحِمَ رَبّی
  • مَوْلایَ یا مَوْلایَ اِنْ کُنْتَ رَحِمْتَ مِثْلی فَارْحَمْنی
  • وَ اِنْ کُنْتَ قَبِلْتَ مِثْلی فَاقْبَلْنی
  • یا قابِلَ السَحَّرَةِ اقْبَلْنی یا مَنْ لَمْ اَزَلْ اَتَعَّرَفُ مِنْهُ الْحُسْنی
  • یا مَنْ یُغَذّینی باِلنِّعَمِ صَباحاً وَ مَسآءً
  • اِرْحَمْنی یَوْمَ اتیکَ فَرْدَا شاخِصا اِلَیْکَ بَصَری
  • مُقَلِّداً عَمَلی قَدْ تَبَرَّءَ جَمیعُ الْخَلْقِ مِنّی
  • نَعَمْ وَ اَبی وَ اُمّی وَ مَنْ کانَ لَهُ کَدّی وَ سَعْیی
  • فَاِنْ لَمْ تَرْحَمْنی فَمَنْ یَرْحَمُنی
  • وَ مَنْ یُونِسُ فِی الْقَبْرِ وَحْشَتی وَ مَنْ یُنْطِقُ لِسانی
  • اِذا خَلَوْتُ بِعَمَلی وَ سآئَلْتَنی عَمّا اَنْتَ اَعْلَمُ بِهِ مِنّی
  • فَاِنْ قُلْتُ نَعَمْ فَاَیْنَ الْمَهْرَبُ مِنْ عَدْلِکَ
  • وَ اِنْ قُلْتُ لَمْ اَفْعَلْ قُلْتَ اَلَمْ اَکُنِ الشّاهِدَعَلَیْکَ فَعَفوَکَ عَفْوَکَ یا مَوْلایَ
  • قَبْلَ سَرابیلِ الْقَطِرانِ پیش از پوشیدن پیراهن آتش زا
  • عَفْوَکَ عَفْوَکَ یا مَوْلایَ قَبْلَ جَهَنَّمَ وَ النّیران
  • عَفْوَکَ عَفْوَکَ یا مَوْلایَ قَبْلَ اَنْ تُغَلَّ الاَیْدی اِلَی الاَعْناقِ
  • یا اَرْحَمَ الرّاحِمینَ وَ خَیْرَ الْغافِرینَ[९]

अनुवाद

  • मैं तुझे अपना राज़ बताऊंगा, हे तू जो मेरी दोहाई हर जगह सुन सकता है शायद तू मेरी फ़रियाद सुन ले।
  • क्योंकि मेरा अपराध और पाप बड़ा है, और मेरी लज्जा थोड़ी है
  • ऐ मेरे मौला, मैं तूझे अपना कौन सा डर याद दिलाऊँ और कौन सा भूल जाऊँ?
  • और यदि नहीं, तो मेरे लिए केवल मृत्यु ही काफी है
  • संभवत! हालाँकि मृत्यु के बाद की दुनिया अधिक बड़ी और अधिक कठिन है
  • मेरे मौला, मेरे प्रभु, मैं कब तक किस समय तक कहूं कि (मैं पापी हूं और) तेरे पास मुझे सज़ा देने का अधिकार है?
  • एक बार नहीं कई बार, लेकिन फिर भी तूने मुझ में सच्चाई और वफ़ा नही पाई।
  • तो, फिर फ़रियाद, एक बार फिर से फ़रियाद तेरी बारगाह ऐ मेरे ख़ुदा
  • उस हवाए नफ़्स से जिसने मुझे अपने क़ाबू में कर लिया है और उस शत्रु से जिसने मुझ पर आक्रमण किया है
  • और उस दुनिया से जिसने मेरे लिए खुद को मेरे सामने सजा कर पेश किया है
  • और उस नफ़्स से जो बुराई की ओर दावत देता है, मगर यह कि मेरा अल्लाह मुझ पर रहम करे
  • ऐ मेरे मौला, ऐ मेरे स्वामी, यदि आपने मुझ जैसे किसी पर दया की है, तो मुझ पर भी दया कर
  • और यदि आपने मेरे जैसे किसी को स्वीकार किया हैं, तो मुझे भी स्वीकार कर
  • हे जादूगरों को स्वीकार करने वाले, मुझे भी स्वीकार कर, ऐ वह कि जिससे मैंने अच्छाई ही देखी है
  • ऐ वह कि जिसने मुझे रोज़ी दी अपनी नेमतों से मुझे प्रतिदिन सुबह-शाम
  • उस दिन मुझ पर दया करना, जिस दिन मैं तेरे पास आऊंगा, अकेला जबकि मेरे नज़रे तेरी तरफ़ उठी हुई होगीं
  • और मेरे कर्मो का पत्र मेरे गले में पड़ा होगा, और सब लोग मुझ से बेज़ारी दिखा रहे होगें
  • यहां तक मेरे माता-पिता भी और वह व्यक्ति भी जिसके लिए मैने पीड़ा उठाई और प्रयास किया था
  • तो यदि तू मुझ पर दया नही करेगा, तो फिर कौन मुझ पर दया करेगा?
  • और कौन होगा जो मेरी वहशते क़ब्र का साथी हो और कौन होगा जिसके सामने मेरी ज़बान खुल सकेगी
  • जब मैं अपने कार्यों के साथ अकेला रह जाऊँगा हूं और आप मुझसे पूछेंगे उस बारे में जो आप मुझसे बेहतर जानते हैं
  • तो यदि मैं हाँ कहूँ, तो मैं तेरे न्याय से कहा पनाह ले सकता हूँ
  • और यदि मैं कहूं कि मैंने ऐसा नहीं किया, तो तेरा उत्तर होगा कि क्या मैं गवाह नहीं हूं, तो मैं तुम्हारी क्षमा, तुम्हारी माफ़ी चाहता हूं, हे प्रभु
  • ज्वलनशील कपड़ा पहनने से पहले
  • मैं क्षमा चाहता हूं, माफ़ी चाहता हूँ हे प्रभु, इससे पहले कि मैं नरक और जलती हुई आग में फंस जाऊं,
  • मैं क्षमा चाहता हूं, माफ़ी चाहता हूँ हे मेरे प्रभु, इससे पहले कि मेरे हाथों को जंजीरों से गर्दन तक बांध दिए जाएं
  • [9] हे परम दयालु और सर्वोत्तम क्षमाशील!

फ़ुटनोट

  1. क़ोमी, मफ़ातिह अल-जेनान, मुलहक़ात का अनुभाग, मुसतहब्बी नमाज़ों के उल्लेख में, पृष्ठ 873।
  2. शेख़ तूसी, मिस्बाह अल-मुतहज्जिद, 1411 हिजरी, पृष्ठ 160।
  3. महरूश, "हज़ीन, दुआ", पी. 442.
  4. तबरसी, मकारिम अल-अख़लाक, 1379, पृ.
  5. शेख़ तूसी, मिस्बाह अल-मुतहज्जिद, 1411 एएच, पृष्ठ 160।
  6. महरूश, "हज़ीन, दुआ", पी. 442.
  7. शेख़ बहाई, मिफ्ताह अल-फ़लाह, 1415, पृष्ठ 701।
  8. नोशाही, उपमहाद्वीप के कार्यों की ग्रंथ सूची, 1391, खंड 3, पृष्ठ 1965।
  9. शेख़ तूसी, मिस्बाह अल-मुतहज्जिद, 1411 एएच, पृष्ठ 160।

स्रोत

  • शेख़ बहाई, मुहम्मद बिन हुसैन, मिफ्ताह अल-फ़लाह दिन और रात के कार्य में, क़ुम, जामिया मद्रासिन, 1415 हिजरी।
  • शेख़ तूसी, मुहम्मद बिन हसन, मिस्बाह अल-मुतहज्जिद, तूसी, बेरूत, फ़िक़्ह अल-शिया संस्थान, 1411 एएच।
  • तबरसी, हसन बिन फ़ज़्ल, मकारिम अल-अख़लाक़, क़ुम, अल-शरीफ अल-रज़ी, 1370 शम्सी।
  • क़ोमी, शेख़ अब्बास, मफ़ातिह अल-जेनान, हज रिसर्च सेंटर प्रकाशन।
  • महरूश, फ़रहंग, ग्रेट इस्लामिक इनसाइक्लोपीडिया में "दुआ हज़ीन", खंड 21, तेहरान, सेंटर ऑफ़ द ग्रेट इस्लामिक इनसाइक्लोपीडिया, 1391 शम्सी।
  • नोशाही, आरिफ़, उपमहाद्वीप (भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश) में प्रकाशित फ़ारसी कार्यों की ग्रंथ सूची, तेहरान, 1391 शम्सी।