अल्लाह के रसूल (स) की नमाज़
अल्लाह के रसूल (स) की नमाज़, दो रकअत मुसतहब नमाज़ है जिसका श्रेय इस्लाम के पैग़म्बर (स) को दिया गया है, जो पापों की क्षमा और आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अनुशंसित है। इस नमाज़ की विशेषता यह है कि इसमें सूरह-क़द्र को विभिन्न स्थितियों में 15 बार (कुल 210 बार) पढ़ा जाता है। नमाज़ पूरी होने के बाद, एक विशेष दुआ भी पढ़ी जाती है।
यह नमाज़ दिन या रात के किसी भी समय अदा की जा सकती है और किसी विशिष्ट समय तक सीमित नहीं है।
इस नमाज़ का महत्व
अल्लाह के रसूल (स) की नमाज़ उन प्रसिद्ध नमाज़ों में से एक है जिसका उल्लेख शिया और सुन्नी दोनों ने अपनी किताबों में किया है।[१] सय्यद बिन ताऊस ने अपनी किताब जमाल अल-उस्बूअ में इमाम अली रज़ा (अ) से एक रिवायत बयान की है जिसमें एक व्यक्ति जाफ़र अल-तय्यार की नमाज़ के बारे में पूछता है। जवाब में, इमाम रज़ा (अ.स.) ने उन्हें पैग़म्बर (स) की नमाज़ पढ़ने की सलाह दी और कहा:
“जब तुम नमाज़ पूरी कर लोगे, तो तुम्हारे लिए कोई भी पाप शेष नहीं रहेगा, मगर यह कि वह क्षमा कर दिया गया है, और तुम जो भी मन्नत माँगोगे वह पूरी हो जाएगी।”[२]
इस नमाज़ का समय
अल्लामा मजलिसी के अनुसार, हालाँकि कुछ स्रोतों में, पैग़म्बर (स) की नमाज़ को शुक्रवार के दिन के लिए एक विशेष नमाज़ माना गया है, लेकिन ऐसी कोई व्याख्या हदीसों में नहीं मिलती। उनके विचार से, यह नमाज़ अनुशंसित है और इसे केवल शुक्रवार को ही नहीं, बल्कि सप्ताह के सभी दिनों में अदा किया जा सकता है।[३]
नमाज़ कैसे पढ़ें
पैग़म्बर मुहम्मद (स) की नमाज़ दो रकअत की होती है और प्रत्येक रकअत में कुल 105 बार सूरह क़द्र पढ़ा जाता है। सूरह क़द्र निम्नलिखित स्थितियों में से प्रत्येक में 15 बार पढ़ी जाती है:
- सूरह हम्द पढ़ने के बाद
- रुकूअ में
- रुकूअ के बाद (खड़े होकर)
- पहले सजदे में
- पहले सजदे से सिर उठाने के बाद (बैठकर)
- दूसरे सजदे में
- दूसरे सजदे से सिर उठाने के बाद (बैठकर)
फिर नमाज़ का तशह्हुद और सलाम पढ़ा जाता है, और उसके बाद यह दुआ पढ़ी जाती है:
لَا إِلٰهَ إِلّا اللّٰهُ رَبُّنا وَرَبُّ آبائِنَا الْأَوَّلِینَ، لَاإِلٰهَ إِلّا اللّٰهُ إِلٰهاً واحِداً وَ نَحْنُ لَهُ مُسْلِمُونَ : ला इलाहा इल्ललाहो रब्बोना व रब्बो आबाएनल अव्वलीन, ला इलाहा इल्ललाहो एलाहन वाहेदन व नहनो लहू मुसलेमून
لَاإِلٰهَ إِلّا اللّٰهُ لَانَعْبُدُ إِلّا إِیاهُ مُخْلِصِینَ لَهُ الدِّینَ وَ لَوْ کَرِهَ الْمُشْرِکُونَ: ला इलाहा इल्ललाहो ला नअबोदो इल्ला इय्याहो मुख़्लेसीना लहुद्दीन वलौ करेहल मुश्रेकूना
لاٰ اِلـٰهَ اِلَّا اللهُ، وَحْدَهُ وَحْدَهُ [وَحْدَهُ]، اَنْجَزَ وَعْدَهُ، وَ نَصَرَ عَبْدَهُ، وَ اَعَزَّ جُنْدَهُ، وَ هَزَمَ الأَحْزٰابَ وَحْدَهُ: ला इलाहा इल्ललाहो, वहदहु वहदहु (वहदहु), अन्जज़ा वअदहु, व नसरा अब्दहू, व आअज़्ज़ा जुन्दहू, व हज़मल अहज़ाबा वहदहु
فَلَهُ الْمُلْکُ وَ لَهُ الْحَمْدُ، وَ هُوَ عَلىٰ کُلِّ شَىْءٍ قَدیرٌ: फ़लहुल मुल्को व लहुल हम्दो, व होवा अला कुल्ले शैइन क़दीर
اَللّـٰهُمَّ اَنْتَ نُورُ السَّمٰوٰاتِ وَ الْأَرْضِ وَ مَنْ فیهِنَّ: अल्लाहुम्मा अन्ता नूरुस्समावाते वल अर्ज़े व मन फ़ीहिन्ना
فَلَکَ الْحَمْدُ، وَ اَنْتَ قَیّٰامُ السَّمٰوٰاتِ وَ الْأَرْضِ وَ مَنْ فیهِنَّ: फ़लकल हम्दो, व अन्ता क़य्यामुस्समावाते वल अर्ज़े व मन फ़ीहिन्ना
فَلَکَ الْحَمْدُ، وَ اَنْتَ الْحَقُّ وَ وَعْدُکَ الْحَقُّ، فَقَوْلُکَ حَقٌّ، وَ اِنْجٰازُکَ حَقٌّ، وَ الْجَنَّةُ حَقٌّ، وَ النّٰارُ حَقٌّ: फ़लकल हम्दो, व अन्तल हक़्क़ो व वअदोकल हक्क़ो, व क़ौलोका हक़्क़ुन, व इन्जाज़ोका हक्क़ुन, वल जन्नतो हक़्क़ुन, वन नारो हक़्क़ुन
اَللّـٰهُمَّ لَکَ اَسْلَمْتُ، وَ بِکَ آمَنْتُ، وَ عَلَیْکَ تَوَکَّلْتُ، وَ بِکَ خٰاصَمْتُ، وَ اِلَیْکَ حٰاکَمْتُ: अल्लाहुम्मा लका अस्लमतो, व बेका आमन्तो, व अलैका तवक्कल्तो, व बेका ख़ासम्तो, व एलैका हाकम्तो
یٰا رَبِّ یٰا رَبِّ یٰا ربِّ، اِغْفِرْ لى مٰا قَدَّمْتُ وَ مٰا اَخَّرْتُ، وَ مٰا اَسْرَرْتُ وَ اَعْلَنْتُ: या रब्बे या रब्बे या रब्बे, इग्फ़िर ली मा क़द्दमतो वमा अख़्ख़रतो, वमा असररतो व आअलनतो
اَنْتَ اِلٰهى لاٰ اِلـٰهَ اِلّٰا اَنْتَ، صَلِّ عَلىٰ مُحَمَّدٍ وَ آلِ مُحَمَّدٍ: अन्ता एलाही ला इलाहा इल्ला अन्ता, सल्ले अला मुहम्मदिन व आले मुहम्मद
وَ اغْفِرْ لى وَ ارْحَمْنى، وَ تُبْ عَلَىَّ اِنَّکَ اَنْتَ التَّوٰابُ الرَّحیمُ: वग़फ़िर ली वरहमनी, व तुब अलय्या इन्नका अन्तत तव्वाबुर रहीम[४]
अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं, वह हमारा रब और हमारे पूर्वजों का रब है। अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं, वह एक ईश्वर है, और हम उसी के अधीन हैं।
अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं, हम उसके सिवा किसी की इबादत नहीं करते, और हमारा धर्म उसके प्रति सच्चा है, हालाँकि मुशरिकों को यह नापसंद है।
अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं, वह एक है, जिसने अपना वादा पूरा किया, अपने बन्दे का साथ दिया, अपनी सेना को सम्मानित किया और (दुश्मन के) दलों को अकेले ही हराया।
अतः राज्य उसी का है और प्रशंसा उसी की है, और वह हर चीज़ पर प्रभुत्व रखता है।
ऐ अल्लाह, तू ही आकाशों और धरती और उनमें जो कुछ है, उसका प्रकाश है।
अतः प्रशंसा तेरे लिए है, और तू ही आकाशों और धरती और उनमें जो कुछ है, उसका पालनहार है।
अतः प्रशंसा तेरे लिए है, और तू ही सत्य है, और तेरा वादा सत्य है, अतः तेरा वचन सत्य है, और तेरा वादा सत्य है, और जन्नत सत्य है, और जहन्नम सत्य है।
ऐ अल्लाह, मैं तेरे आगे समर्पण करता हूँ, मैं तुझ पर विश्वास करता हूँ, मैं तुझ पर भरोसा करता हूँ, और मैं तुझ पर आशा रखते हुए दुश्मन का सामना करता हूँ, और मैं तुझ ही की ओर न्याय करता हूँ।
ऐ अल्लाह, ऐ अल्लाह, ऐ अल्लाह, मेरे पिछले और भविष्य के पापों के लिए, और जो मैंने छिपाया है और जो मैंने प्रकट किया है, उसके लिए मुझे क्षमा कर।
तू मेरा ईश्वर है, तेरे सिवा कोई ईश्वर नहीं। मुहम्मद और मुहम्मद के परिवार पर दया भेज।
और मुझे क्षमा कर, मुझ पर दया कर और मेरी तौबा स्वीकार कर। निस्संदेह, तू तौबा स्वीकार करने वाला, दयावान है।[६]
फ़ुटनोट
- ↑ मजलिसी, बेहार अल-अनवार, 1404 हिजरी, खंड। 88, पृ. 170।
- ↑ सय्यद इब्न तावूस, जमाल अल-उस्बूअ, 1408 एएच, पीपी 246-247।
- ↑ मजलिसी, बेहार अल-अनवार, 1404 एएच, खंड। 88, पृ. 170।
- ↑ सय्यद इब्ने तावूस, जमाल अल-उस्बूअ, 1408 एएच, पीपी. 246 और 247; मजलिसी, ज़ाद अल-मआद, 1423 एएच, पीपी. 404 और 405।
- ↑ "पवित्र पैग़म्बर की प्रार्थना (स)", आयतुल्लाह मकारिम शिराज़ी के कार्यालय की मफ़ातिह नवीन वेबसाइट से अनुवादित।
- ↑ "पवित्र पैग़म्बर की प्रार्थना (स)", आयतुल्लाह मकारिम शिराज़ी के कार्यालय की मफ़ातिह नवीन वेबसाइट से अनुवादित।
स्रोत
- सय्यद इब्न ताऊस, अली इब्न मूसा, जमाल अल-उसबूअ बेकमाल अल-अमल अल-मशरूअ, तेहरान, दार अल-रज़ी, 1408 हिजरी।
- मजलिसी, मुहम्मद बाक़िर, बेहार अल-अनवार, बेरूत, दार इह्या अल-तुरास अल-अरब, 1404 हिजरी।
- मजलिसी, मुहम्मद बाक़िर, ज़ाद अल-मआद, बेरूत, अल-आलमी प्रकाशन संस्था, 1423 हिजरी।
- "नमाज़े पैग़म्बरे अकरम (स)", आयतुल्लाह मकारिम शिराज़ी के कार्यालय की मफ़ातिह नोवीन वेबसाइट द्वारा अनुवादित, यात्रा की तिथि: 13 मुरदाद 1404 शम्सी।