इस्तेख़ारा
इस्तेखारा (अरबीः الاستخارة) जब किसी व्यक्ति को इसके बारे में संदेह हो और दूसरों से परामर्श करके अपने अच्छे और बुरे का मूल्यांकन नहीं कर सकता हो तो अपने काम के च्यन को ख़ुदा पर छोड़ने को कहा जाता है। इस्तेख़ारा विभिन्न रूपों में होता है; नमाज़ और दुआ के माध्यम से इस्तिखारा, क़ुरआन, कागज़ और तस्बीह से इस्तेख़ारा करना शामिल हैं।
धार्मिक विद्वानों ने इस्तिखारा की वैधता को रिवायतो से प्रमाणित किया है। शेख़ अब्बास क़ुमी ने मफ़ातीह अल जिनान में इस्तेख़ारा के कुछ तरीके बताए हैं। इस्तेख़ारा के कुछ शिष्टाचार हैं: क़ुरआन से सूरा पढ़ना, पैगंबर (स) और उनके परिवार पर सलवात भेजना और विशेष दुआ का पढ़ना।
अल्लामा मजलिसी के अनुसार, सिद्धांत यह है कि हर किसी को अपने लिए इस्तेखारा करना चाहिए; हालांकि कुछ धार्मिक विद्वान इसे दूसरों से इस्तेख़ारा कराने को जायज़ मानते हैं, और आजकल इस्तेख़ारा अधिकांश रूप से इसी तरह से किया जाता है।
हौज़ा ए इल्मिया क़ुम के संस्थापक अब्दुल करीम हाएरी का क़ुम मे रहने के लिए इस्तेख़ार और मुहम्मद अली शाह का नेशनल असेंबली को बंद करने के लिए इस्तेख़ारा प्रसिद्ध इस्तेख़ारो मे से है जिन्हे विद्वानो और जनता ने बयान किया है।
नमाज़, दुआ, क़ुरआन, कागज़ और तस्बीह से इस्तेख़ारा किया जाता है। इनमें से प्रत्येक प्रकार का इस्तेख़ारा कई तरीकों से किया जा सकता है। शेख़ अब्बास क़ुमी द्वारा लिखी गई किताब मफ़ातीह अल-जिनान में इस्तेख़ारा के कुछ तरीकों का उल्लेख किया गया है।
परिभाषा
शब्दकोष मे इस्तेख़ारा भलाई मांगने का कहते है।[१] और इस्तेलाह मे इस्तेख़ारा परमेश्वर से भलाई माँगने को कहा जाता है।[२] तीसरी शताब्दी के शिया विद्वान जवाहिर अल कलाम के लेखक के अनुसार, इस्तिखारा के दो अर्थ हैं: 1- जिस काम को करने का निर्णय किया है उसमे परमेश्वर से भलाई मांगना। 2- उसे ईश्वर से अपने लिए चुने गए कार्य को चुनने की सफलता मांगना, और यह सफलता इस्तेखारे के माध्यम से प्राप्त हो सकती है या यह किसी ऐसे व्यक्ति की जबान के माध्यम से प्रवाहित हो सकती है जो मनुष्य से परामर्श करता है और मनुष्य को सलाह देता है।[३]
नमाज़ से इस्तेख़ारा
नमाज़ से इस्तेख़ारा का तरीक़ा यह है कि व्यक्ति दो रकअत नमाज़ पढ़ने के बाद सज्दे मे जाकर सौ बार कहता है: “اَستخیر اللّٰه فی جمیع اُموری خيرةً فی عافیة अस्तख़ीरुल्लाहा फ़ी जमीए उमूरी खयारतन फ़ी आफ़ीया; मैं अपने सभी मामलों में परमेश्वर से भलाई माँगता हूँ और आफ़ीयत के साथ काम करता हूँ। फिर उसे वही करना चाहिए जो परमेश्वर उसके हृदय में डाले।[४]
क़ुरआन से इस्तेख़ारा
क़ुरआन से इस्तेख़ारा करने के विभिन्न तरीकों का उल्लेख किया गया है,[५] जैसे कि:
- इमाम सादिक़ (अ) की रिवायत के आधार पर, क़ुरआन से इस्तेख़ारा के तरीकों में से एक यह है कि जब भी किसी व्यक्ति को कुछ करने या छोड़ने के बीच संदेह होता है, जब वह नमाज़ के लिए तैयार होता है, तो क़ुरआन को खोले और पहली चीज जो उसमें देखे उस पर अमल करें।[६]
- सय्यद इब्ने ताऊस ने पैग़म्बर (स) से नक़्ल किया है कि जब क़ुरआन से इस्तेख़ारा देखना चाहो, तो तीन बार सूर ए इख़्लास पढ़े और तीन बार सलवात भेजें, और फिर यह दुआ पढ़े: "قُلْ اللَّهُمَّ إِنِّی تَفَأَّلْتُ بِکِتَابِکَ وَ تَوَکَّلْتُ عَلَيْکَ فَأَرِنِی مِنْ کِتَابِکَ مَا هُوَ الْمَکْتُومُ مِنْ سِرِّکَ الْمَکْنُونِ فِی غَیْبِک क़ुल अल्लाहुम्मा इन्नी तफ़ाअलतो बेकिताबेका वा तवक्कलतो अलैका फ़अरेनी मिन किताबेका मा होवल मकतूमो मिन सिर्रेकल मकनूने फ़ी ग़ैबेक " हे परमेश्वर, मैं तेरी पुस्तक से इस्तेख़ारा करता हूं, और मैं तुझ पर भरोसा रखता हूं, और तेरी पुस्तक में जो असरार छिपे हुए है, जो तेरी अनदेखी के रहस्य में छिपे हैं मुझ पर स्पष्ट कर। को पढ़कर क़ुरआन खोलें, पहले पृष्ठ की पहली पंक्ति से अपना इस्तिखारा लें।[७]
- कुछ आख्यानों के अनुसार, क़ुरआन को खोलने के बाद, सात या आठ पृष्ठ गिने जाते हैं और इस्तिखारा को सातवें या आठवें पृष्ठ से लिया जाता है।[८]
कागज़ से इस्तेख़ारा
कागज़ से इस्तेख़ारा का तरीक़ा यह है कि दो शब्द "इफ़्अल" (काम कर) और "ला तफ़्अल" (काम न कर) कागज के दो टुकड़ों पर लिखे जाते हैं, और इस्तेख़ारा करने वाल विशेष शिष्टाचार अंजाम देने के साथ दोनों में से एक टुक्ड़ा उठाता है और जो उसपर लिखा होता है उस पर अमल करता है।[९]
इब्ने इद्रीस हिल्ली ने कागज से इस्तेख़ारा की हदीसों को अविश्वसनीय माना है।[१०] लेकिन शहीद अव्वल ने कागज़ से इस्तेख़ारा इमामिया के बीच प्रसिद्ध होने का तर्क देते हुए इब्ने इद्रीस हिल्ली के दृष्टिकोण का खंडन किया है।[११]
तस्बीह से इस्तेख़ारा
तस्बीह से इस्तेख़ारा का उल्लेख अलग-अलग तरीकों से किया गया है।
- शहीद अव्वल ने अपनी किताब ज़िक्रा मे कहा है कि सूर ए हम्द को कम से कम तीन बार अगर ना हो सके तो एक बार पढ़ने के बाद सूर ए क़द्र 10 बार और विशेष दुआ पढ़ने के बाद तस्बीह के दानो को एक मुठ्ठी मे ले फ़िर दो दो करके दानो को गिने। यदि अंत मे संख्या दो थी, तो वांछित कार्य को करे और यदि यह संख्या एक थी, तो कार्य ना करें या इसके विपरीत अर्थात दो बचने पर कार्य न करें और एक बचने पर कार्य करें।[१२]
- मफ़ातीह अल जिनान मे तस्बीह से एक और इस्तेख़ारा जवाहिर अल कलाम के लेखक द्वारा बताया गया है, जो उनके समय में प्रचलित था (जवाहिर अल कलाम के लेखक के अनुसार, इसे इमाम ज़माना (अ) से मंसूब किया जा सकता है)। वह यह कि क़ुरआन और दुआ पढ़ने के बाद तस्बीह के कुछ दानो को पकड़े और आठ आठ दाने करके कम करता हुआ चला जाए अगर एक दाना बचे तो इस्तेख़ारा अच्छा है, अगर दो बचे मना है, अगर तीन बचे तो काम करना और ना करना दोनो बराबर है अगर चार बचे तो उसमे दो मनाही है और अगर पांच दाने बचे तो कुछ का मानना है कि कष्ट है और कुछ का कहना है कि उसमे दोष है, अगर छः दाने बचे तो बहुत ही अच्छा है काम करने मे जल्दी करनी चाहिए, और अगर सात बचे तो उसका हुक्म भी वही है जो पांच दाने बचने वाले का हुक्म है और अगर आठ दाने बचे तो उसमे चार नही है।[१३] साहिब जवाहिर ने इस इस्तेख़ारा का वर्णन करने के बाद कहा कि हमें पुरानी और नई, मुख्य और माध्यमिक पुस्तकों में इस इस्तेख़ारा का कोई उल्लेख नहीं मिला, जैसा कि हमारे कुछ विद्वानों ने भी कहा है।[१४]
- शहीद अव्वल के अनुसार, तस्बीह या कंकड़ से इस्तेख़ारा का दस्तावेज़ रज़ीउद्दीन आबी तक पहुँचता है।[१५] जबकि सय्यद इब्ने ताऊस ने दस्तावेज़ को इमामों तक पहुंचाया है।[१६] और साहिब जवाहिर (1266-1202 हिजरी) के अनुसार उनके समय में विद्वान इसी तरह से इस्तेख़ारा किया करते थे।[१७]
इमाम ज़माना (अ) से मंसूब इस्तेखारा को सय्यद मूसा शुबैरी सय्यद अली शूस्त्री को जिम्मेदार मानते कहते है कि बिस्मिल्लाह के साथ तीन सलवात और दुआ पढ़ी जाती है और फिर तस्बीह के दानो को हाथ से पकड़ कर दो दो करके दाने गिने जाते है अगर अंत मे एक बचे तो इस्तेख़ारा अच्छा है और दो बचे तो इस्तेख़ारा बुरा है।[१८]
इस्तेख़ारे की वैधता
इस्लाम से पहले इस्तिक़साम बे अज़लाम नामक एक प्रकार का इस्तिखारा प्रचलित था[१९] जो धनुष और तीर के माध्यम से किया जाता था।[२०] सुन्नी विद्वान शेख शलतूत, सूर ए माएदा की आयत न 3 का हवाला देते हुए इस्तिक़साम बे अज़लाम हराम घोषित है, इस्तेख़ारा इस आयत के निषेध का एक उदाहरण है और इसे एक नाजायज कृत्य माना है;[२१] लेकिन शिया मरजा ए तक़लीद आयतुल्लाह साफ़ी गुलपाएगानी ने इस्तिक़साम और अज़लाम के बीच अंतर मानते हुए शेख शलतूत की राय को खारिज कर दिया[२२] और इस्तेख़ारे के मुस्तहब होने पर कई हदीसों का हवाला दिया है।[२३]
शिष्टाचार और शर्तें
इस्तिखारा के लिए, रीति-रिवाज और शर्तें बताई गई हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
- जिस कार्य के लिए इस्तिखारा किया जाता है इस्तिखारा अनुमेय (मुबाह) कार्यों के बारे में संदेह को दूर करने के लिए है, न कि अच्छे कर्मों के लिए।[२४]
- खुद के लिए इस्तिखारा: अल्लामा मजलिसी के अनुसार, ऐसी कोई हदीस नहीं है जिसमें कोई व्यक्ति दूसरे की ओर से इस्तिखारा करे। इसलिए हर किसी को अपने लिए इस्तेख़ारा करना अधिक उपयुक्त है।[२५] हालाकि उन्होंने सय्यद इब्ने ताऊस से भी उद्धृत किया कि वह दूसरे के लिए इस्तिखारा को जायज़ मानते थे। [२६]
- परामर्श के बाद इस्तेखारा: इसका अर्थ है इस्तेखारा से पहले परामर्श करना है, अगर किसी परिणाम तक नही पुहंचे तो फिर इस्तेखारा किया जाए।[२७]
- इस्तेख़ारा का स्थान: शहीद अव्वल के अनुसार, मस्जिदों और मजारों में दुआ से इस्तिखारा करना बेहतर है।[२८] कुछ रिवायतो में इमाम हुसैन (अ) के हरम में इस्तेख़ारा के बारे में उल्लेख मिलता है।[२९]
- समय: फ़ैज़ काशानी ने अपनी पुस्तक तक़वीम अल-मोहसेनीन बराए इस्तेख़ारा बे क़ुरआन में सप्ताह के प्रत्येक दिन के घंटों का उल्लेख किया है, लेकिन उन्होंने कहा कि वर्णित घंटे मोमिनों के बीच प्रसिद्ध हैं और हदीसों में इसका कोई उल्लेख नही हैं।[३०] साहिब जवाहिर के अनुसार, इस्तेखारा की नमाज़ के लिए एक विशेष समय होता है। इसका कोई अस्तित्व नहीं है।[३१] जबकि कुरआन से इस्तेख़ारा के बारे में उल्लेख है कि इसे नमाज़ के समय किया जाना चाहिए।[३२]
- इस्तेखारा पर अमल: इस्तेख़ारा पर अमल करना शरई जिम्मेदारी नहीं है, लेकिन इस पर अमल करना बेहतर है।[३३]
विशेष दुआओ का पढ़ना,[३४] क़ुरआन के कुछ सूरो का पढ़ना[३५] और सलवात भेजना[३६] भी उन रस्मों में शामिल हैं जिन्हे इस्तेख़ारा से पहले की सिफारिश की गई है।
प्रसिद्ध इस्तेख़ारा
कुछ प्रसिद्ध इस्तेखारे निम्नलिखित हैं:
- मोहम्मद अली शाह क़ाजार के इस्तेख़ारे: इन्होने 1908 ई में राष्ट्रीय परिषद को बंद करने और कुछ लोगों के निर्वासन सहित विभिन्न मामलों के लिए इस्तेख़ारा किया करते थे।[३७]
- हेरात पर ईरान की संप्रभुता को स्वीकार करने के लिए नासिरुद्दीन शाह का इस्तिखारा:[३८] 1917 ई में ब्रिटिश सरकार ने अनिश्चित समय के लिए हेरात को ईरान मे विलय का फैसला किया, नासिरुद्दीन ने कई परामर्शों के पश्चात इस्तेख़ारा की सहायता ली।[३९]
- क़ुम में रहने के लिए अब्दुल करीम हाएरी यज़्दी का इस्तेख़ारा: हौज़ा ए इल्मीया क़ुम के संस्थापक आयतुल्लाह हाएरी 1340 हिजरी में क़ुम गए। इस यात्रा के दौरान कुछ विद्वानों और क़ुम के निवासीयो ने उनसे क़ुम मे बसने का आग्रह किया। आरम्भ मे मुरद्द थे, लेकिन जब विद्वानों के अधिक आग्रह किया तो क़ुम मे निवास करने के लिए इस्तेख़ारा किया और क़ुम को अपना निवास स्थान स्वीकार कर लिया। [४०]
- नजफ़ के बुजुर्गों की ओर से मुल्ला क़ुरबान अली ज़ंजानी के लिए इस्तेख़ारा: आप ज़ंजान के निवासी थे और संविधान से सहमत नहीं थे। संविधानवादी उन्हे तेहरान में निगरानी में रखना चाहते थे, लेकिन नजफ के बुजुर्गों ने जो संविधान के पक्ष में थे इस्तेख़ारा किया और उसके आधार पर उन्हे इराक भेजने का अनुरोध किया।[४१]
- इंजीनियर महदी बाज़रगान का इस्तेख़ाराः ब्रिटिश तेल कंपनी के निदेशक मंडल का नेतृत्व करने के लिए डॉ. मुसद्दक के प्रस्ताव को स्वीकार करने के लिए इस्तेख़ारा।[४२]
"कंदूकावी बराय इस्तेख़ारा और तफ़ाउल" नामक पुस्तक में शेख अंसारी, फ़ैज़ कशानी, शहीद सानी और सय्यद इब्ने ताऊस जैसे शिया विद्वानों के इस्तेखारों का उल्लेख है।[४३]
इस्तेख़ारे पर अमल करने का शरई हुक्म
न्यायविदों के अनुसार, इस्तेख़ारा के परिणाम के अनुसार कार्य करना अनिवार्य (वाजिब) नहीं है, और शरीयत में इसका विरोध भी मना नहीं है, हालांकि इसके विरुद्ध अमल ना करना बेहतर है।[४४] आयतुल्लाह शुबैरी ज़ंजानी के अनुसार इस्तेख़ारा का विरोध करने में नुकसान का संदेह है एहतियात इसका विरोध नहीं करना है।[४५]
मोनोग्राफ़ी
इस्तेखारा के संबंध में विभिन्न किताबें लिखी गई हैं, अय्याशी द्वारा लिखित इस्तेखारा की पुस्तक और ज़ुबैरी शाफेई द्वारा लिखित अल-इस्तीशारा को इस शैली में पहली रचना माना जाता है। इस्तिखारा के बारे में कुछ अन्य पुस्तकें इस प्रकार हैं:
- सय्यद इब्ने ताऊस (मृत्यु 664 हिजरी) द्वारा फत्हुल अबवाब बैना ज़विल अल बाब वा बैना रब्बिल अरबाब फ़िल इस्तेख़ारा अरबी भाषा मे लिखी गई है इस किताब मे लेखक ने इस्तेखाऱा की वैधता अर्थात प्रमाण के साथ-साथ इसके विभिन्न तरीको का उल्लेख किया है।
- अबुल फ़ज़्ल तरीका दार द्वारा लिखित "कंदूकावी इस्तिखारा व तफाउल": इस पुस्तक में, इस्तेखारा के तरीकों को कुरआन, कागज और तस्बीह से निरपेक्ष, हृदय, सलाहकार, इस्तेखारा में विभाजित किया गया है।[४६]
- सय्यद अब्दुल्लाह शुब्बर की इरशाद अल-मुस्तबसिर फ़िल इस्तेख़ारात।
- शेख़ बहाई की किताब इस्तेख़ारा बा क़ुरआन।
- सय्यद अब्दुल हुसैन लारी द्वारा लिखित इस्तेखारा नामेह,
- फ़ैज़ काशानी द्वारा लिखित् अल-इसारतो अन मआनिल इस्तखारा,
- मुहम्मद हुसैन मरअशी शहरिस्तानी द्वारा लिखित अल-इस्तेख़ारात
- अहमद बिन अब्दुल सलाम अल-बहरानी द्वारा लिखित अल-इस्तेख़ारात,
- मीर्जा अबुल मआली कलबासी इस्फ़हानी की रचना अल-इस्तेखारा मिनल क़ुरआन अल-मजीद वल फ़ुरक़ान अल हमीद
- लुत्फ़ुल्लाह साफ़ी गुलपाएगानी की रचना जवाज़ उल इस्तिस्क़ाम बिल अज़लाम वल इस्तेख़ारा
- मुहम्मद बाक़िर मजलिसी की रचना मफ़ातीह अल-ग़ैब दर आदाब ए इस्तेख़ारा।
- कफअमी द्वारा लिखित मफातीह उल-ग़ैब फिल इस्तेख़ारा वल इस्तेशारा।
संबंधित लेख
फ़ुटनोट
- ↑ दहख़ुदा, लुग़तनामा, इस्तेख़ारा के अंतर्गत
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स्रोत
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