पड़ोसी

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पड़ोसी (फ़ारसी: همسایه‌داری) अर्थात पड़ोसियों के साथ अच्छा व्यवहार, सूर ए निसा की आयत 36 में पड़ोसियों के प्रति दयालुता का आदेश दिया गया है। हदीसों में भी पड़ोसियों के प्रति दयालु होने और उन्हें नुक़सान न पहुंचाने पर ज़ोर दिया गया है, और पड़ोसी का सम्मान करना मां का सम्मान करने के समान है, और उसे नुक़सान पहुंचाना ईश्वर के पैग़म्बर (स) को नुक़सान पहुंचाने के समान है।

हदीसों में पड़ोसियों के लिए कुछ अधिकार का भी उल्लेख किया गया है, भले ही वह काफ़िर ही क्यों न हो; जैसे उधार देना, बीमार होने पर मिलने जाना, अंतिम संस्कार में भाग लेना, फल और घर के भोजन का कुछ हिस्सा दान करना, जासूसी न करना और पड़ोसी की प्रताड़ना सहन करना।

कथनों के अनुसार, अपने पड़ोसी का भला करने से ईश्वर का प्रेम और स्वर्ग में प्रवेश, आजीविका और दीर्घायु में वृद्धि होगी और उसे नुक़सान पहुंचाने से ईश्वर की दया दूर हो जाएगी और स्वर्ग से वंचित होना पड़ेगा।

संकल्पना और स्थिति

पड़ोसी, अर्थात पड़ोसियों के साथ अच्छा व्यवहार और यह हदीसों में उल्लेखित वाक्यांश हुस्न उल जेवार «حُسْنُ الجِوار» के समान है।[१] दो लोग या दो परिवार जिनके घर एक-दूसरे के बगल में हैं या एक ही घर के दो हिस्सों में रहते हैं, पड़ोसी कहलाते हैं।[२] पैग़म्बर (स) और इमाम सादिक़ (अ) ने पड़ोसी की सीमा आगे, पीछे, दाएं और बाएं चालीस घरों तक बताई है।[३] क़ुरआन में एकेश्वरवाद और माता पिता के प्रति दयालुता, रिश्तेदारों और ग़रीबों के प्रति दया के बाद पड़ोसियों के प्रति दया का आदेश दिया गया है।[४] पड़ोसियों के साथ अच्छे व्यावहार और उन्हें परेशान न करने के बारे में अहले बैत (अ) से कई रिवायतें वर्णित हुई हैं।[५]

पैग़म्बर (स) से वर्णित हुआ है कि पड़ोसी का सम्मान करना मां का सम्मान करने के समान है।[६] इमाम अली (अ) भी पैग़म्बर (स) से वर्णित करते हैं कि जिब्राईल पड़ोसियों के बारे इस हद तक आदेश देते थे कि मुझे लगता था कि वह उन्हें विरासत में हिस्सा देंगे।[७] इस्लामी धर्म की शुरूआत में नजाशी (हब्शा के राजा) के लिए ईश्वर के पैग़म्बर (स) के प्रतिनिधि जाफ़र बिन अबी तालिब, इस्लाम धर्म का परिचय देते हुए पड़ोसियों के प्रति दयालुता को इस्लामी धर्म की महत्वपूर्ण शिक्षाओं में से एक माना है।[८] इमाम अली (अ) ने अपने जीवन के अंतिम दिनों में अपनी वसीयत में पड़ोसियों के लिए आदेश दिए हैं।[९] शिया हदीस लेखक मोहद्दिस नूरी के अनुसार इस्लाम के पैग़म्बर (स) ने पड़ोसी के साथ दुर्व्यवहार को स्वयं के साथ दुर्व्यवहार के रूप में पेश किया है।[१०]

पड़ोसी के अधिकार

यह पड़ोसी का अधिकार है कि उसकी अनुपस्थिति में उसकी रक्षा करे और उसकी उपस्थिति में उसका सम्मान करे, और उस पर होने वाले अत्याचार के विरुद्ध उसकी सहायता करे और उसके दोष न देखे। यदि आपको उसकी कोई बुरी बात दिखे तो उसे छिपा लें और यदि आप जानते हैं कि उसे सलाह दी जा सकती है तो उसे अकेले में सलाह दें। उसे कठिनाइयों में अकेला न छोड़ें, उसकी ग़लतियों को क्षमा करें, उसके पापों को क्षमा करें और उसके साथ दयालुता से समय बिताएं, ईश्वर की अनुमति के अलावा कोई शक्ति नहीं है।

शेख़ सदूक़, मन ला यहज़रोहुल फ़क़ीह, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 623।

ईश्वर के पैग़म्बर (स) के एक कथन के अनुसार, मानव पड़ोसियों की तीन श्रेणियां हैं: पहली श्रेणी मुस्लिम पड़ोसी और रिश्तेदार हैं, दूसरी श्रेणी मुस्लिम पड़ोसी हैं, और तीसरी श्रेणी ग़ैर-मुस्लिम पड़ोसी हैं। सभी तीन श्रेणियों का मनुष्यों पर अधिकार है और उनका सम्मान किया जाना चाहिए; हालाँकि तीसरी श्रेणी की तुलना में दूसरी श्रेणी और दूसरी श्रेणी की तुलना में पहली श्रेणी, उनके पास अधिक अधिकार हैं।[११] साथ ही, ईश्वर के पैग़म्बर (स) के इमाम अली (अ) के आदेश में वर्णित हुआ है कि पड़ोसी का सम्मान करें, भले ही वह काफ़िर ही क्यों न हों।[१२]

पड़ोसी के प्रति दयालुता के उदाहरण

कई हदीसों में पड़ोसियों के प्रति दयालुता का आदेश दिया गया है।[१३] कुछ हदीसों में, पड़ोसियों के प्रति दयालुता के उदाहरण इस प्रकार सूचीबद्ध किए गए हैं:

ईश्वर के पैग़म्बर (स) से वर्णित है कि आपके पड़ोसी का आप पर अधिकार यह है कि यदि वह सहायता मांगे तो उसकी सहायता करें, यदि वह उधार मांगे तो उसे क़र्ज़ दें, जब उसे ज़रूरत हो तो उसे वित्तीय सहायता दें। जब वह मुसीबत में हो तो उसे सांत्वना दें, यदि उसके साथ कुछ अच्छा होता है तो उसे बधाई दें, जब वह बीमार हो तो उससे मिलें और उसकी मृत्यु के बाद उसके अंतिम संस्कार में शामिल हों। उसके घर में हवा के प्रवाह को अवरुद्ध करने के लिए उसकी अनुमति के बिना अपनी इमारत को उसकी इमारत से ऊंचा न रखना चाहिए। यदि आपने कोई फल खरीदा है, तो या तो उसे गुप्त रूप से घर ले आएं या उसे उपहार के रूप में कुछ दें, और यदि घर में भोजन की गंध फैल जाए, तो उसे भी उस भोजन में से कुछ खिलाएं।[१४]

इमाम सज्जाद (अ) ने भी एक लंबे कथन में, जिसे रेसालतुल हुक़ूक़ के रूप में जाना जाता है, कहा है कि पड़ोसी के साथ अत्याचार होने पर उसकी सहायता करना, पड़ोसी की गलतियों और पापों को माफ़ करना, उदार सहयोग और निजी सलाह पड़ोसी के अधिकारों में से हैं।[१५]

साथ ही, पैग़म्बर (स) ने कहा कि वह व्यक्ति जिसका पेट भरा हुआ हो और उसका पड़ोसी भूखा हो, तो उसने मुझ पर विश्वास नहीं किया है।[१६] इमाम बाक़िर (अ) और इमाम सादिक़ (अ) ने आदेश दिया है कि अगर पड़ोसी पर आपदा आई हो तो, उनके और उनके मेहमानों के लिए उनके पड़ोसी तीन दिनों तक भोजन उपलब्ध कराएं।[१७]

हदीसों में पड़ोसी के अधिकार या पड़ोसी के प्रति दयालुता के उदाहरण के रूप में अन्य मामलों का भी उल्लेख किया गया है, जो इस प्रकार हैं:

  • जासूसी न करना

हदीसों में, पड़ोसियों का अभिवादन करने और उन्हें सांत्वना देने की सिफ़ारिश की गई है;[१८] लेकिन पड़ोसी के घर की जासूसी करना मना है।[१९]

  • प्रताड़ित न करना

ईश्वर के पैग़म्बर (स) ने कहा: जो कोई ईश्वर और क़यामत के दिन पर विश्वास करता है वह अपने पड़ोसी को प्रताड़ित नहीं करेगा।[२०]

  • प्रताड़ना सहन करना

इमाम काज़िम (अ) की एक हदीस में कहा गया है कि पड़ोसी के साथ अच्छा व्यवहार करना केवल उसे परेशान न करना नहीं है; बल्कि पड़ोसी के उत्पीड़न का धैर्य और सहनशीलता भी पड़ोसीपन का हिस्सा है।[२१]

पड़ोसियों की दयालुता एवं दुर्व्यवहार का प्रभाव

रिवायतों के अनुसार, पड़ोसियों के प्रति दयालुता ईश्वर और ईश्वर के पैग़म्बर (स) के प्रेम को आकर्षित करती है,[२२] जीविका में वृद्धि,[२३] शहरों की समृद्धि और दीर्घायु में वृद्धि,[२४] चमकते चेहरे के साथ ईश्वर से मिलना,[२५] स्वर्ग में प्रवेश करना,[२६] और उच्च स्तर तक पहुंचना[२७] और व्यक्ति के विश्वास (ईमान) का संकेत,[२८] गरिमा (करामत)[२९] और शिष्टता[३०] का प्रतीक है। ईश्वर के पैग़म्बर (स) से वर्णित हुआ है कि कोई मर जाता है और उसके तीन पड़ोसी हों जो उससे संतुष्ट हों, तो उसके पाप माफ़ कर दिए जाएंगे।[३१]

इसके अलावा, हदीसों के अनुसार, पड़ोसी को परेशान करना, अभिशाप (लानत) और ईश्वर की दया से दूरी का कारण है[३२] और स्वर्ग की सुगंध को सूंघने से वंचित होता है[३३] और यह व्यक्ति के अविश्वास[३४] और नीचता का संकेत है।[३५]

सम्बंधित लेख

फ़ुटनोट

  1. उदाहरण के तौर पर देखें, जाफ़री, तोहफ़ उल उक़ूल का अनुवाद, 142 हिजरी, पृष्ठ 80।
  2. देहखोदा, 1377 शम्सी, हमसाया शब्द के अंतर्गत।
  3. कूफ़ी अहवाज़ी, अल ज़ोहद, 1402 हिजरी, पृष्ठ 42; कुलैनी, अल काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 669; शेख़ सदूक़, मआनी अल अख़्बार, 1403 हिजरी, पृष्ठ 165; तबरसी, मिश्क़ात अल अनवार, 1385 हिजरी, पृष्ठ 215; शेख़ हुर्रे आमोली, वसाएल अल शिया, 1409 हिजरी, खंड 12, पृष्ठ 125; अल्लामा मजलिसी, बिहार अल अनवार, 1403 हिजरी, खंड 71, पृष्ठ 151 और 152; मोहद्दिस नूरी, मुस्तदरक अल वसाएल, 1408 हिजरी, खंड 8, पृष्ठ 431।
  4. सूर ए निसा, आयत 36।
  5. उदाहरण के तौर पर, देखें: कुलैनी, अल काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 666-669; मिश्कात अल अनवार, 1385 हिजरी, पृष्ठ 212-215; अल वसाएल अल शिया, 1409 हिजरी, खंड 12, पृष्ठ 121-133।
  6. कुलैनी, अल काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 666 और खंड 5, पृष्ठ 31; शेख़ तूसी, तहज़ीब अल अहकाम, 1407 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 141; तबरसी, मकारिम अल अख़्लाक़, 1412 हिजरी, पृष्ठ 126।
  7. शेख़ सदूक़, अल अमाली, 1418 हिजरी, पृष्ठ 428।
  8. इब्ने अबी अल हदीद, शरहे नहजुल बलाग़ा, खंड 6, पृष्ठ 309।
  9. कुलैनी, अल काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 7, पृष्ठ 51; सय्यद रज़ी, नहजुल बलाग़ा, 1414 हिजरी, पृष्ठ 422 (पत्र 47)।
  10. मोहद्दिस नूरी, मुस्तदरक अल वसाएल, 1408 हिजरी, खंड 8, पृष्ठ 424।
  11. फ़त्ताल नैशापुरी, रौज़ा अल वाएज़ीन, 1417 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 389; शईरी, जामेअ अल अख़्बार, बी ता, पृष्ठ 139; तबरसी, मिश्क़ात अल अनवार, 1385 हिजरी, पृष्ठ 213।
  12. शईरी, जामेअ अल अख़्बार, बी ता, पृष्ठ 89।
  13. उदाहरण के तौर पर, देखें: कुलैनी, अल काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 666-668; शेख़ हुर्रे आमोली, वसाएल अल शिया, 1409 हिजरी, खंड 12, पृष्ठ 125-133।
  14. शहीद सानी, मोसक्किन अल फ़ोआद, बी ता, पृष्ठ 114; पायनदेह, अबुल क़ासिम, नहजुल फ़साहा, 1424 हिजरी, पृष्ठ 445।
  15. शेख़ सदूक़, मन ला यहज़रोहुल फ़क़ीह, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 623; शेख़ सदूक़, अल खेसाल, 1403 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 565; अल्लामा मजलिसी, बिहार अल अनवार, 1403 हिजरी, खंड 71, पृष्ठ 7।
  16. कुलैनी, अल काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 2, पृ 668।
  17. बर्क़ी, अल महासिन, 1371 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 419; शेख़ सदूक़, मन ला यहज़रोहुल फ़क़ीह, 1413 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 174।
  18. इब्ने शोअबा हर्रानी, तोहफ़ अल अक़ूल, 1404 हिजरी, पृष्ठ 409।
  19. शेख़ सदूक़, मन ला यहज़रोहुल फ़क़ीह, 1413 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 13।
  20. कुलैनी, अल काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 667; तबरसी, मिश्क़ात अल अनवार, 1385 हिजरी, पृष्ठ 214।
  21. कुलैनी, अल काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 667;
  22. पायनदेह, नहजुल फ़साहा, 1424 हिजरी, पृष्ठ 264।
  23. कूफ़ी अहवाज़ी, अल ज़ोहद, 1402 हिजरी, पृष्ठ 42; कुलैनी, अल काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 666।
  24. कुलैनी, अल काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 667 और 668; मिश्कात अल अनवार, 1385 हिजरी, पृष्ठ 213।
  25. शेख़ सदूक़, सवाब अल आमाल, 1406 हिजरी, पृष्ठ 181; शईरी, जामेअ अल अख़्बार, बी ता, पृष्ठ 139।
  26. शईरी, जामेअ अख़्बार, बी ता, पृष्ठ 106।
  27. इब्ने शोअबा हर्रानी, तोहफ़ अल उक़ूल, 1404, पृ 21।
  28. अल हलवानी, नुज़्हा अल नाज़िर, 1408 हिजरी, पृष्ठ 21।
  29. लैसी वास्ती, उयून अल हेकम, 1418 हिजरी, पृष्ठ 60; तमीमी आमदी, ग़ोरर अल हकम, 1407 हिजरी, पृष्ठ 436।
  30. लैसी वास्ती, उयून अल हेकम, 1418 हिजरी, पृष्ठ 468; तमीमी आमदी, ग़ोरर अल हकम, 1407 हिजरी, पृष्ठ 437।
  31. रावंदी, अल दअवात, 1407 हिजरी, पृष्ठ 228; तबरसी, मिश्कात अल अनवार, 1385 हिजरी, पृष्ठ 214।
  32. कराजकी, कन्ज़ उल फ़वाएद, 1410 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 150; शईरी, जामेअ अल अख़्बार, बी ता, पृष्ठ 89।
  33. शेख़ सदूक़, मन ला यहज़रोहुल फ़क़ीह, 1413 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 13; शेख़ सदूक़, अमाली, 1418 हिजरी, पृष्ठ 428।
  34. कूफ़ी अहवाज़ी, अल ज़ोहद, 1402 हिजरी, पृष्ठ 42; कुलैनी, अल काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 666।
  35. लैसी वासती, उयून अल हकम, 1418 हिजरी, पृष्ठ 472; तमीमी आमदी, ग़ोरर अल हकम, 1407 हिजरी, पृष्ठ 437।

स्रोत

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