माता पिता के प्रति दयालुता

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माता पिता के प्रति दयालुता (अरबी: برّ الوالدين) माता पिता के प्रति दयालुता का अर्थ है माता-पिता का सम्मान करना, उनकी ताज़ीम (सम्मान) करना और उनके प्रति हर तरह की भलाई करना। कुरआन में, माता-पिता के प्रति दयालुता को ईश्वर की पूजा (इबादत) करने के आदेश के साथ रखा गया है। टिप्पणीकारों के अनुसार क़ुरआन के इस आदेश में प्रत्येक माता-पिता चाहे वह काफ़िर हों या मुसलमान, नेक हों या पापी शामिल हैं।

शिया और सुन्नी के हदीसी स्रोतों में, माता-पिता के प्रति दयालुता को ईश्वर द्वारा सबसे अच्छे और सबसे प्रिय कार्यों में से एक माना गया है, और इसके लिए विभिन्न परिणाम बताए गए हैं; जैसे: जीविका (रिज़्क़ और रोज़ी) में वृद्धि, दीर्घायु (लम्बी आयु), मृत्यु में आसानी, पापों की क्षमा और क़यामत के दिन स्वर्ग में प्रवेश, शामिल हैं।

माता-पिता के साथ अच्छा व्यवहार करना और कठोर न होना, दयालुता से देखना और उनके सामने अपनी आवाज़ न उठाना माता-पिता के प्रति दयालुता के उदाहरण हैं।

परिभाषा और स्थिति

माता-पिता के प्रति दयालुता के आदेश पर क़ुरआन में बहुत ज़ोर दिया गया है[१] और कुरआन की आयतों में, इसे भगवान की पूजा (इबादत) करने के आदेश के साथ रखा गया है।[२] कुरआन के टीकाकार इसे माता पिता के प्रति दयालुता के महत्व का संकेत मानते हैं[३] और वे ईश्वर के यहाँ इस आदेश का पालन करने की उच्च स्थिति को जानते हैं।[४] न्यायविदों ने भी इस आदेश के पालन को बच्चों के लिए अनिवार्य (वाजिब) माना है।[५] इसके अलावा, कुछ नैतिक पुस्तकों में, माता-पिता के प्रति दयालुता को सबसे अच्छे कार्य के रूप में वर्णित किया गया है जो सआदत और भगवान के क़रीब लाता है।[६]

तफ़सीरे नमूना में, सूर ए इस्रा की आयत 23 के तहत, यह उल्लेख किया गया है कि माता पिता के प्रति दयालुता के साथ एकेश्वरवाद को रखना माता पिता के प्रति अच्छे व्यवहार पर कुरआन के ज़ोर को व्यक्त करता है।[७]

وَقَضَیٰ رَ‌بُّکَ أَلَّا تَعْبُدُوا إِلَّا إِیَّاهُ وَبِالْوَالِدَیْنِ إِحْسَانًا إِمَّا یَبْلُغَنَّ عِندَکَ الْکِبَرَ أَحَدُهُمَا أَوْ کِلَاهُمَا فَلَا تَقُل لَّهُمَا أُفٍّ وَلَا تَنْهَرْ‌هُمَا وَقُل لَّهُمَا قَوْلًا کَرِ‌یمًا وَاخْفِضْ لَهُمَا جَنَاحَ الذُّلِّ مِنَ الرَّ‌حْمَةِ وَقُل رَّ‌بِّ ارْ‌حَمْهُمَا کَمَا رَ‌بَّیَانِی صَغِیرً‌ا (व क़ज़ा रब्बोका अल्ला तअबोदू इल्ला इय्याहो व बिल वालेदैने एहसानन इम्मा यब्लोग़न्ना इन्दका अल केबर अहदोहोमा अव किलाहोमा फ़ला तक़ुल लहोमा उफ़्फ़िन वला तन्हरहोमा व क़ुल लहोमा क़ौलन करीमा वख़्फ़िज़ लहोमा जनाहा अल ज़ुल्ले मिन अल रहमते व क़ुल रब्बिरहमहोमा कमा रब्बयानी सग़ीरा)

अनुवाद: और तुम्हारे रब का आदेश यह है कि तुम उसके अलावा किसी की पूजा (इबादत) न करो और अपने माता पिता के प्रति दया करो, यदि उनमें से एक या दोनों तुम्हारे सामने बुढ़ापे तक पहुँच जाएँ, तो उनसे "उफ़" भी न कहें और उन्हें उत्तेजित न करें और उनसे सभ्य तरीक़े से बात करें। और दयालुता से, उन पर नम्रता के पंख फैलाओ और कहो: "भगवान, उन दोनों पर दया करो, जैसे उन्होंने मुझे बचपन में पाला था।

सूर ए इस्रा, आयत 23-24, फौलादवंद द्वारा अनुवादित।

माता-पिता के प्रति दयालुता (एहसान) को माता-पिता के प्रति बहुत ताज़ीम (सम्मान) के अर्थ में माना गया है[८] और इसमें हर वह अच्छाई शामिल है जो दोनों की स्थिति के योग्य हो।[९] वे "वालेदैन" (माता पिता) की पूर्णता (मुतलक़) पर यह भी विचार करते हैं कि इसमें प्रत्येक माता-पिता शामिल हैं; चाहे वह अच्छे हों या बुरे।[१०] चाहे वह काफिर हों या मुसलमान[११]

माता-पिता के प्रति दयालुता का कारण तथा एकेश्वरवाद से उसकी अनुकूलता

मुख्य लेख: माता पिता के प्रति दयालुता की आयत

कुछ टिप्पणीकारों ने एकेश्वरवाद (तौहीद) और माता-पिता के प्रति दयालुता के बीच अनुकूलता का चित्रण किया है, जिन्हें क़ुरआन में साथ-साथ रखा गया है, इस तरह से कि ईश्वर मानव अस्तित्व का वास्तविक कारण है, और माता-पिता उसके स्पष्ट कारण और भरण-पोषण हैं।[१२] साथ ही जिस प्रकार ईश्वर के आशीर्वाद का वास्तविक आशीर्वाद (हक़ीक़ी नेअमत देने वाले) के शीर्षक से साथ आभारी होना अनिवार्य (वाजिब) है, उसी तरह बंदों के आशीर्वाद (नेअमत) के लिए आभारी होना अनिवार्य (वाजिब) है, और किसी ने भी माता पिता की तरह कष्ट सहन नहीं किया है और आभार का पात्र नहीं है।[१३]

अल्लामा तबातबाई ने बताया है कि क्यों कुरआन माता-पिता के प्रति दयालुता पर ज़ोर देता है क्योंकि माता पिता और बच्चों के बीच भावनात्मक संबंध नई पीढ़ी और पिछली पीढ़ी के बीच एक मजबूत बंधन का कारण बनता है और परिवार को मज़बूत करता है। सामाजिक संबंधों में सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों में से एक के रूप में, पारिवारिक स्थिरता मानव समाज की स्थिरता का कारण है।[१४]

हदीसों की दृष्टि से माता पिता के प्रति दयालुता

मासूमीन की हदीसों में माता-पिता की विशेष स्थिति और उनके प्रति दयालुता पर ज़ोर दिया गया है।[१५] शिया और सुन्नी के हदीसी स्रोतों में, एक स्वतंत्र खंड इसके लिए समर्पित किया गया है।[१६] हदीसों में माता-पिता के साथ व्यवहार में दयालुता को भगवान की नज़र में सबसे अच्छे[१७] और सबसे प्रिय कार्यों में से एक[१८] और शियों की विशिष्ट विशेषताओँ में से एक के रूप में प्रस्तुत किया गया है।[१९]

यह भी कहा गया है कि माता-पिता को देखना इबादत है[२०] और साथ ही, भगवान की प्रसन्नता और क्रोध उनके बच्चों के प्रति उनकी संतुष्टि और नाराज़गी पर निर्भर करता है,[२१] और उनके प्रति दयालु न होने का कोई बहाना स्वीकार नहीं किया जाता है।[२२]

पैग़म्बर (स) की सीरत के बारे में यह भी कहा गया है कि वह अपनी रेज़ाई माँ (पालक मां) का बहुत सम्मान करते थे[२३] और उन लोगों का भी सम्मान करते थे जो अपने माता-पिता के साथ अच्छा व्यवहार करते थे।[२४] इसी आधार पर, मुसलमानों को अपने माता-पिता के प्रति दयालु होने और उनकी देखभाल करने की कठिनाइयों को सहन करने का आदेश दिया गया है[२५] भले ही माता-पिता बहुदेववादी (मुशरिक)[२६] या पापी हों।[२७] यह भी सिफ़ारिश की गई है कि यदि वे जीवित न हों, तो उनके लिए इस्तिग़फ़ार करके, उनके क़र्ज़ चुकाकर और उनकी क़ज़ा इबादतों को अंजाम देकर, उन पर दया (एहसान) करना चाहिए।[२८]

एक आदमी पैग़म्बर (स) के पास आया और कहा कि मैंने हर बुरा काम किया है। क्या मेरे लिए पश्चाताप करने और वापस लौटने का कोई रास्ता है? पैग़म्बर (स) ने उत्तर दिया, "क्या आपके माता-पिता में से कोई जीवित है?" उसने कहा मेरे पिता जीवित हैं, पैग़म्बर ने कहा, जाओ और उनके साथ भलाई करो। जब वह आदमी चला गया, तो ईश्वर के पैग़म्बर (स) ने कहा काश उसकी माँ जीवित होती।

कूफ़ी अहवाज़ी, अल ज़ोहद, 1399 हिजरी, पृष्ठ 35।

माँ के प्रति दयालुता पर विशेष ध्यान

सूर ए अहक़ाफ़ की 15वीं आयत में माता-पिता की दयालुता का आदेश देने और उसके दर्शन (फ़लसफ़े) को व्यक्त करने के बाद केवल माँ के प्रयासों का ही उल्लेख किया गया है। मुस्लिम विद्वानों के अनुसार, यह मुद्दा माँ के अधिकार और उसके प्रति एक बड़े आदेश पर ज़ोर देता है।[२९] इमाम सज्जाद (अ) ने रेसाला अल हुक़ूक़ में गर्भावस्था के दौरान और उसके बाद बच्चे के बचपन के दौरान माँ द्वारा सहन की जाने वाली कठिनाइयों की ओर इशारा किया है और विशेष रूप से बच्चे को माँ के प्रयासों की सराहना करने का आदेश दिया है।[३०]

इसके अलावा, कुलैनी ने किताब काफ़ी में एक हदीस वर्णित कि है कि एक आदमी ने पैग़म्बर (स) से पूछा कि मुझे किसका उपकार (एहसान) करना चाहिए? पैग़म्बर ने उत्तर दिया अपनी माँ का। उस आदमी ने यह प्रश्न दो बार और पूछा और पैग़म्बर ने फिर कहा अपनी माँ का और जब चौथी बार उसने पूछा, तो पैग़म्बर ने उत्तर दिया अपने पिता का।[३१] एक अन्य हदीस में, पैग़म्बर (स) से वर्णित है कि माँ के प्रति दयालु होना पिछले पापों का प्रायश्चित है।[३२]

दयालुता के उदाहरण

सूर ए इस्रा की आयत 23 और 24 में माता-पिता के प्रति दयालु होने के आदेश के बाद, इसके कुछ उदाहरणों का उल्लेख किया गया है, जैसे "उफ़" कहने की मनाही और उनके प्रति कम से कम कठोरता।[३३] हदीसी स्रोतों में, जब इमाम सादिक़ (अ) से इस आयत के बारे में पूछा गया कि दयालुता का क्या अर्थ है, तो उन्होंने उत्तर दिया कि माता-पिता के प्रति दयालुता का अर्थ यह है कि आप उनके साथ अच्छा व्यवहार करते हैं और इससे पहले कि वे आपसे कुछ भी मांगें, उन्हें प्रदान करें चाहे वे इसे स्वयं प्राप्त कर सकते हों।[३४]

हदीस की अगली कड़ी में, यह कहा गया है कि आयत कहती है, "उन्हें "उफ़" मत कहो, अर्थात, यदि वे तुम्हें परेशान करते हैं, तो उनके साथ कम से कम कठोर भी मत बनो, और यह जो कहते हैं: "उनसे गरिमा के साथ बात करो", अर्थात, भले ही वे तुम्हें मारें, तो कहो कि भगवान आप पर दया करे, और यह जो कहते हैं: "उनके सामने विनम्र रहो", अर्थात, उन्हें कठोर नज़र से मत देखो; बल्कि उन्हें दया और करुणा की नज़र से देखो और अपनी आवाज़ उनसे ज़्यादा ऊंची न करो। इसके अलावा, उन्हें कुछ देते समय अपना हाथ उनके हाथ के ऊपर न रखो, और चलते या बैठते समय उनसे आगे न निकलो।[३५]

माता पिता के प्रति दयालुता का परिणाम

इमाम सादिक़ (अ):

यदि तुम चाहते हैं कि ईश्वर तुम्हारी आयु बढ़ाए, तो अपने माता-पिता को खुश करो।

कूफ़ी अहवाज़ी, अल ज़ोहद, 1399 हिजरी, पृष्ठ 33।

हदीसी स्रोतों में, माता पिता के प्रति दयालुता के भौतिक और आध्यात्मिक परिणामों का उल्लेख किया गया है; उनमें से: फ़क़्र (ग़रीबी) का दूर होना,[३६] जीविका (रिज़्क़ और रोज़ी) में वृद्धि,[३७] दीर्घायु (लम्बी आयु),[३८] मृत्यु में आसानी,[३९] भगवान की प्रसन्नता और पापों की क्षमा,[४०] कर्मों के लेखा-जोखा में आसानी[४१] और क़यामत के दिन स्वर्ग में स्थान प्राप्त करना।[४२]

हदीसों में यह भी उल्लेख किया गया है कि बच्चे की अपने माता-पिता पर दयालु दृष्टि भगवान की दया (रहमत) के द्वार खोल को देती है[४३] और हज मक़बूला (स्वीकार हज) का सवाब दिया जाता है।[४४] किताब काफ़ी में इमाम सादिक़ (अ) से वर्णित हुआ है कि जिन माता पिता का निधन हो गया हो, उनके लिए नमाज़ और सदक़ा जैसे अच्छे कर्म करने के बदले में उसे वही सवाब और उससे अधिक सवाब मिलेगा।[४५]

अन्य हदीसों के अनुसार, माता-पिता के प्रति दयालुता का पालन न करने से ईश्वर की आज्ञाकारिता से विचलन, कृतघ्नता (ना शुक्री) और आशीर्वाद की निन्दा (कुफ़राने नेअमत), धन्यवाद का अमान्य (बुत्लाने शुक्र), वंश की समाप्ति[४६] और स्वर्ग से वंचित होना[४७] जैसे प्रभाव पड़ते हैं।

सम्बंधित लेख

फ़ुटनोट

  1. मकारिम शिराज़ी, तफ़सीर नमूना, 1373 शम्सी, खंड 12, पृष्ठ 74।
  2. सूर ए निसा, आयत 36 को देखें; सूर ए अनआम, आयत 151; सूर ए इस्रा, आयत 23।
  3. फ़ख़्रे राज़ी, मफ़ातीह अल ग़ैब, 1420 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 586; क़ासमी, महासिन अल तावील, 1418 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 453।
  4. फ़ख़्रे राज़ी, मफ़ातीह अल ग़ैब, 1420 हिजरी, खंड 20, पृष्ठ 323; सय्यद कुतुब, फ़ी ज़ेलाल अल क़ुरआन, 1412 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 2222।
  5. नजफ़ी, मुहम्मद हसन, जवाहिर अल कलाम, 1404 हिजरी, खंड 21, पृष्ठ 24; मोअस्सास ए दाएरतुल मआरिफ़ फ़िक़्हे इस्लामी, मोसूआ फ़िक़्हे इस्लामी, खंड 3, पृष्ठ 85।
  6. नराक़ी, जामेअ अल सादात, अल आलमी, खंड 2, पृष्ठ 273; नराक़ी, मेराज अल सआदा, 1377 शम्सी, पृष्ठ 533; क़ुमी, अख़्लाक़ व आदाब, 2009, पृष्ठ 152।
  7. मकारिम शिराज़ी, तफ़सीर अल नमूना, 1373 शम्सी, खंड 12, पृष्ठ 74।
  8. गनाबादी, तफ़सीर बयान अल सआदा, 1408 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 438।
  9. सक़फ़ी तेहरानी, तफ़सीर रवान जावेद, 1398 शम्सी, खंड 3, पृष्ठ 351।
  10. इब्ने शाअबा हर्रानी, तोहफ़ अल उक़ूल, 1404 हिजरी, पृष्ठ 367।
  11. मकारिम शिराज़ी, तफ़सीर नमूना, 1373 शम्सी, खंड 12, पृष्ठ 74; मिर्ज़ाई क़ुमी, जामेअ अल शतात, 1413 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 241।
  12. बैज़ावी, अनवार अल तंज़ील, 1418 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 252; क़ुमी मशहदी, कन्ज़ अल दक़ाएक, 1368 शम्सी, खंड 7, पृष्ठ 381; फ़ैज़ काशानी, तफ़सीर अल साफ़ी, 1415 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 185।
  13. फ़ख़्रे राज़ी, मफ़ातीह अल ग़ैब, 1420 हिजरी, खंड 20, पृष्ठ 321।
  14. तबातबाई, अल मीज़ान, 1417 हिजरी, खंड 7, पृष्ठ 374 और खंड 13, पृष्ठ 80।
  15. तजलील तबरेज़ी, मोजम अल महासिन व अल मसावी, 1417 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 389।
  16. उदाहरण के लिए देखें: कुलैनी, अल काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 157; मजलिसी, बिहार अल अनवार, खंड 71, पृष्ठ 22; बोखारी, सहीह बोखारी, 1422 हिजरी, खंड 8, पृष्ठ 2; मुस्लिम बिन हज्जाज, सहीह मुस्लिम, दार अल फ़िक्र, खंड 8, पृष्ठ 1।
  17. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 158।
  18. बोखारी, सहीह बोखारी, 1422 हिजरी, खंड 8, पृष्ठ 2।
  19. कुलैनी, अल-काफी, 1407 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 74।
  20. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 240।
  21. तिर्मिज़ी, सुनन अल तिर्मिज़ी, 1403 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 207; कुलैनी, अल-काफी, 1407 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 428।
  22. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 162।
  23. अबू दाऊद, सुनन अबू दाऊद, 1410 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 507-508।
  24. देखें कुलैनी, अल-काफी, 1407 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 161।
  25. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 162; शेख़ सदूक़, मन ला याहज़रो अल फ़क़ीह, 1413 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 407 और 408।
  26. बोखारी, सहीह बोखारी, 1422 हिजरी, खंड 8, पृष्ठ 4।
  27. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 162।
  28. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 158; माज़ंदरानी, शरह अल काफ़ी, 1382 हिजरी, खंड 9, पृष्ठ 19।
  29. मकारिम शिराज़ी, तफ़सीर नमूना, 1373 शम्सी, खंड 17, पृष्ठ 40; इब्ने मफ़लह, अल आदाब अल-शरिया व अल मन्ह अल मरईया, 1424 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 338।
  30. शेख़ सदूक़, मन ला यहज़रो अल फ़कीह, 1413 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 621।
  31. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 159; बोखारी, सहीह बोखारी, 1422 हिजरी, खंड 8, पृष्ठ 2।
  32. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 162।
  33. फ़ख़्रे राज़ी, मफ़ातीह अल ग़ैब, 1420 हिजरी, खंड 20, पृष्ठ 324।
  34. कुलैनी, अल काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 157।
  35. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 158; माज़ंदरानी, शरह अल काफ़ी, 1382 हिजरी, खंड 9, पृष्ठ 19।
  36. शेख़ सदूक़, अल अमाली, 1376 शम्सी, पृष्ठ 389।
  37. तबरसी, मेशका अनवर, 1385 एएच, पृष्ठ 166।
  38. तबरसी, मिश्कात अल अनवार, 1385 हिजरी, पृष्ठ 166।
  39. शेख़ सदूक़, अल अमाली, 1376 शम्सी, पृष्ठ 389।
  40. कूफ़ी अहवाज़ी, अल ज़ोहद, 1402 हिजरी, पृष्ठ 35।
  41. कुतुबुद्दीन रावंदी, अल दावात (सलवा अल हज़ीन), 1407 हिजरी, पृष्ठ 126।
  42. शईरी, जामेअ अल अख़्बार, हैदरिया प्रेस, पृष्ठ 106।
  43. शईरी, जामेअ अल अख़्बार, हैदरिया प्रेस, पृष्ठ 101।
  44. इब्ने अबी अल दुनिया, मकारिम अल अख़्लाक़, 2004 ईस्वी, पृष्ठ 74।
  45. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 159।
  46. फ़ैज़ काशानी, अल-वाफ़ी, 1406 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 1059।
  47. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 349।

स्रोत

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  • क़ुमी मशहदी, मुहम्मद बिन मुहम्मद रज़ा,तफ़सीर कन्ज़ अल दक़ाएक़ व बहर अल ग़राएब, हुसैन दरगाही का शोध, तेहरान, साज़माने चाप व इंतेशारात वेज़ारते इरशादे इस्लामी, 1368 शम्सी।
  • कुलैनी, मुहम्मद बिन याक़ूब, अल-काफ़ी, शोधकर्ता और प्रूफरीडर: अली अकबर ग़फ़्फ़ारी व मुहम्मद आखुंदी, तेहरान, दार अल कुतुब अल इस्लामिया, चौथा संस्करण, 1407 हिजरी।
  • कूफ़ी अहवाज़ी, हुसैन बिन सईद, अल-ज़ोहद, ग़ुलाम रज़ा इरफ़ानियान द्वारा शोध, क़ुम, अल मतबआ अल-इल्मिया, 1399 हिजरी।
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  • माज़ंदरानी, मुहम्मद सालेह, शरह अल-काफी, तेहरान, अल मकतब अल इस्लामिया, पहला संस्करण, 1382 हिजरी।
  • मोअस्सास ए दाएरतुल मआरिफ़ फ़िक़हे इस्लामी, मौसूआ अल फ़िक़ह अल इस्लामी तिब्क़न ले मज़हब, सय्यद महमूद शाहरूदी के देखरेख में, क़ुम, मोअस्सास ए दाएरतुल मआरिफ़ फ़िक़हे इस्लामी, पहला संस्करण, 1423 हिजरी।
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  • नजफ़ी, मुहम्मद हसन, जवाहिर अल कलाम फ़ी शरहे शराए अल इस्लाम, शोधकर्ता और प्रूफरीडर: क़ूचानी, अब्बास, आखुंदी, अली, बेरुत, दार अल इह्या अल तोरास अल अरबी, 7वां संस्करण, 1404 हिजरी।
  • नराक़ी, मुल्ला अहमद, मेराज अल सआदा, हिजरत, क़ुम, पाँचवाँ संस्करण, 1377 शम्सी।
  • नराक़ी, मुल्ला मुहम्मद महदी, जामेअ अल सआदात, बेरुत, आलमी, चौथा संस्करण, बी ता।