आक़े वालेदैन
आक़े वालेदैन, (अरबी: عقوق الوالدین) या उक़ूक़े वालेदैन, माता-पिता की अवज्ञा बड़े पापों (गुनाहे कबीरा) और नैतिक दोषों (अख़्लाक़ी बुराईयों) में से एक है, जिसका अर्थ है माता पिता का किसी भी प्रकार का अपमान और माता-पिता को या उनमें से किसी एक को भाषा और व्यवहार से चोट पहुँचाना। हदीस में अवज्ञा, क्रोध भरी दृष्टि, अनादर और 'उफ़' कहना, इसके उदाहरण (मसादीक़) के रूप में जाना जाता है और कहा गया है कि 'उफ़' कहने से कम कुछ भी होता तो भगवान उसे भी मना कर देते। इसके अलावा, स्वर्ग से बहिष्कार, नर्क में प्रवेश, क़ब्र की पीड़ा, नमाज़ के स्वीकार होने में विफलता और दुआ के क़ुबूल होने में विफलता कुछ ऐसे परिणाम हैं जो हदीसों में आक़े वालेदैन के लिए वर्णित हुए हैं। कुछ नैतिक (अख़्लाक़ी) विद्वानों ने जीवन की अल्पता (आयु की कमी), कठिनाई से प्राण त्यागना और प्राण त्यागने में कठिनाई को भी इसके सांसारिक प्रभावों के रूप में माना है।
परिभाषा
माता-पिता की अवज्ञा का अर्थ है कि बच्चा माता-पिता को नाराज़ करता है और उन्हें भाषा और व्यवहार से कष्ट देता है।[१] बेशक, उक़ूक़ शब्द का शाब्दिक अर्थ है काटना, इस अवस्था में, माता-पिता की अवज्ञा का अर्थ है सिले रहम को काट देना।[२] मुल्ला महदी नराक़ी ने आक़े वालेदैन को सबसे खराब प्रकार का क़तए रहम माना है और उनका मानना है कि हर वह चीज़ जो क़त ए रहम की निंदा करती है वह आक़े वालेदैन की भी निंदा में भी शामिल है इसके अलावा, वह माता-पिता के अनादर को क्रोध और वासना की शक्तियों से संबंधित दोषों में से एक मानते हैं और यह घृणा और क्रोध या लोभ और संसार के प्रेम से आता है।[३]
मिसदाक़
माता पिता का किसी भी प्रकार का अपमान और माता-पिता को या उनमें से किसी एक को भाषा और व्यवहार से चोट पहुँचाना, आक़्क़े वालेदैन कहलाता है। हदीसों में तेज़ और गुस्से वाली नज़र,[४] अधिकारों (हुक़ूक़) को बर्बाद करना,[५] अनुरोध को पूरा न करना, आदेश को पूरा न करना, और सम्मान न करना[६] इसके मसादीक़ हैं। मुल्ला अहमद नराक़ी ने कहा हर वह चीज़ जो माता-पिता को कष्ट पहुंचाती हैं उसे आक़ माना जाता है।[७] इमाम सादिक़ (अ) की एक रिवायत में, माता-पिता को उफ़ कहना, आक़े वालैदैन के सबसे निचले दर्जे के मसादीक़ में से वर्णित किया गया है और यह कहा गया था कि अगर उफ़ से भी कम कोई चीज़ होती तो भगवान उससे भी मना कर देता।[८]
परिणाम
आक़े वालेदैन नैतिक दोषों में से एक है, जिसे हदीस[९] में एक बड़े पाप (गुनाहे कबीरा) के रूप में परिभाषित किया गया है और इसके परिणाम बताए गए हैं:
- स्वर्ग और उसकी गंध से वंचित,[१०] इमाम सादिक़ (अ) की एक रिवायत के आधार पर, क़यामत के दिन, स्वर्ग के पर्दों का एक पर्दा हटा दिया जाएगा, और उसकी गंध हर जीवित प्राणी के नथनों तक पांच सौ साल की दूरी से पहुँच जाएगी, केवल उनके जो आक़े वालेदैन हो गए हैं।[११] इसके अलावा, कई रवायतों में, आक़े वालेदैन होने वाले व्यक्ति के लिए لا یدخل الجنه "ला यदख़ोलुल ज्न्ना" (स्वर्ग में प्रवेश नहीं करेगा) जैसे शब्दों का उपयोग किया गया है।[१२]
- नर्क में प्रवेश[१३]
- नमाज़ स्वीकार न होना; एक रवायत में वर्णित है कि जो कोई भी अपने माता-पिता को अत्याचारी और शत्रुता की दृष्टि से देखता है, ईश्वर उसकी नमाज़ स्वीकार नहीं करता।[१४]
- दुआ का क़बूल न होना।[१५]
- दुनिया में पीड़ा (अज़ाब); पैग़म्बर (स) की एक हदीस में, आक़्क़े वालेदैन को उन पापों में से एक माना है जिसके लिए इंसान को इसी दुनिया में दंडित किया जाएगा।[१६] मुल्ला अहमद नराक़ी ने कहा है कि आक़े वालेदैन का निरंतर अनुभव, छोटा जीवन, जीवन की कड़वाहट, ग़रीबी, संकट और कठिनाई से प्राण त्यागना और प्राण त्यागने में कठिनाई है।[१७]
- क़ब्र की पीड़ा (अज़ाब); मुल्ला महदी नराक़ी के अनुसार, जिसकी माँ उससे अप्रसन्न हो उसको प्राण त्यागने में कठिनाई होगी और उसकी क़ब्र की सज़ा कठोर है।[१८]
आक़े वालेदैन मृत्यु के बाद
कुछ हदीसों के अनुसार आक़े वालेदैन माता-पिता के जीवित रहने तक ही सीमित नहीं है और उनकी मृत्यु के बाद भी उन्हें शामिल करता है। ठीक वैसे ही जैसे उनके साथ भलाई करना उनके जीवनकाल में सीमित नहीं है। यह संभव है कि जीवित रहते हुए कोई अपने माता-पिता के प्रति दयालु हो, लेकिन उनकी मृत्यु के बाद वह आक़ हो जाए, जैसे कोई अपने माता-पिता की मृत्यु के बाद उनका क़र्ज़ नहीं चुकाता है और उनके लिए क्षमा नहीं मांगता है। इसी तरह यह भी मुमक़िन है एक बच्चा इस दुनिया में आक़े वालेदैन हो लेकिन संभव है, उनकी मृत्यु के बाद न हो।[१९]
फ़ुटनोट
- ↑ नराक़ी, मेराज अल-सआदा, 1378 शम्सी, पृष्ठ 532।
- ↑ फ़राहीदी, अल-ऐन, 1409 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 63।
- ↑ नराक़ी, जामेअ अल-सआदात, 1383 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 262।
- ↑ कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 349।
- ↑ तमीमी आमदी, ग़ेररुल हेकम, 1410 हिजरी, पृष्ठ 671।
- ↑ नूरी, मुस्तदरक़ अल-वसाएल, 1408 हिजरी, खंड 15, पृष्ठ 194।
- ↑ नराक़ी, मेराज अल-सआदा, 1378 शम्सी, पृष्ठ 532।
- ↑ कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 349।
- ↑ कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 276।
- ↑ कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 349।
- ↑ कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 349।
- ↑ होमैरी, क़ुर्बुल-असनाद, 1413 हिजरी, पृष्ठ 82।
- ↑ कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 348।
- ↑ कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, पृष्ठ 349।
- ↑ कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 448।
- ↑ पायन्देह, नहजुल फसाहा, 1382 शम्सी, पृष्ठ 165।
- ↑ नराक़ी, मेराज अल-सआदा, 1378 शम्सी, पृष्ठ 532।
- ↑ नराक़ी, जामेअ अल-सआदात, 1383 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 263।
- ↑ कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 163।
स्रोत
- पायन्देह, अबुल क़ासिम, नहजुल-फ़साहा, तेहरान, दानिश, 1382 शम्सी।
- तमीमी आमदी, ग़ेररुल हेकम व दोररुल कलम, सय्यद महदी रजाई द्वारा संपादित, क़ुम, दार अल-किताब अल-इस्लामी, 1410 हिजरी।
- होमैरी, अब्दुल्लाह बिन जाफ़र, क़ुर्बुल असनाद, क़ुम, आल-अल-बैत फ़ाउंडेशन, 1413 हिजरी।
- फ़राहीदी, ख़लील बिन अहमद, क़ुम, हिजरत प्रकाशन, 1409 हिजरी।
- कुलैनी, मुहम्मद बिन याक़ूब, अल-काफ़ी, अली अकबर ग़फ़्फारी और मुहम्मद आखुंदी द्वारा संपादित, तेहरान, दारुल किताब अल-इस्लामिया, 1407 हिजरी।
- नराक़ी, अहमद बिन मुहम्मद महदी, मेराज अल-सआदा, हिजरत प्रकाशन संस्थान, 1378 शम्सी।
- नराक़ी, मुहम्मद महदी, जामेअ अल-सआदात, क़ुम, ईरानी प्रेस संस्थान, 1963 ई./1383 हिजरी।
- नूरी, हुसैन बिन मुहम्मद तक़ी, मुस्तदरक़ अल-वसाएल व मुस्तनबित अल-मसाएल, क़ुम, आल-अल-बैत फ़ाउंडेशन, 1408 हिजरी।