ग़ैरत
ग़ैरत (अरबी: الغيرة) उन नैतिक गुणों में से एक है जो व्यक्ति को अपने महिलाओं और परिवार, धर्म और अनुष्ठान के साथ-साथ संपत्ति और देश की रक्षा करने के लिए प्रेरित करता है। हदीसों के अनुसार, ग़ैरत ईश्वर के गुणों में से एक है। मुल्ला अहमद नराक़ी ने किताब मेराज अल सआदा में कहा है कि विश्वासियों को अपने परिवारों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए और उन मामलों में लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए जो फ़साद का कारण बनते हैं। उन्होंने अम्र बिल मारूफ़ व नही अज़ मुन्कर के लागू करने को और धर्म (दीन) में होने वाली बिदअत का सामना करने को ग़ैरत का उदाहरण माना है।
शिया हदीसों में, इफ़्फ़त और पाक दामनी, पारिवारिक स्थिरता और फ़साद की रोकथाम, ग़ैरत के प्रभाव और लाभों और महरम और ग़ैर महरम के मिश्रण, हराम संगीत, ग़ैर महरम को देखना और शराब पीने को, बेग़ैरती के कारणों के रूप में पेश किया गया है।
इमाम अली (अ) की एक हदीस के अनुसार, अत्यधिक ग़ैरत विपरीत प्रभाव डाल सकती है और फ़साद का कारण बन सकती है।
परिभाषा
इस्लामी संस्कृति में, ग़ैरत को एक महत्वपूर्ण नैतिक गुण माना जाता है[१] जो किसी व्यक्ति को अपनी प्रतिष्ठा, सम्मान, धर्म, अनुष्ठान, धन और भूमि की रक्षा करने के लिए प्रेरित करता है।[२]
पवित्र क़ुरआन में ग़ैरत शब्द का सीधे तौर पर उपयोग नहीं किया गया है, लेकिन शिया मराजे ए तक़लीद में से एक और कुरआन के टिप्पणीकार, नासिर मकारिम शिराज़ी, सूर ए अहज़ाब की आयत 60 से 62 को ग़ैरत की अवधारणा अभिव्यक्ति के रूप में मानते हैं जिसमें, "पाखंडी, बीमार दिल वाले लोग और पाकदामन महिलाओं के बारे में ग़लत बात करने वालों" को कड़ी सज़ा, निर्वासन और हत्या की धमकी दी जाती है।[३]
शिया हदीसों के अनुसार, ग़ैरत, ईश्वर के गुणों में से एक है, और ईश्वर को बेग़ैरती पसंद नहीं है।[४] उल्लिखित हदीसों में ग़ैरत, का उल्लेख गरिमा और सम्मान के साथ किया गया है।[५] कुछ हदीसों के अनुसार, बेग़ैरत पुरुष शापित होते हैं।[६]
اَلا وَ اِنَّ اللهَ حَرَّمَ الْحَرامَ وَ حَدَّ الحُدودَ وَ ما اَحَدٌ اَغْیرَ مِنَ اللهِ وَ مِنْ غَیرَتِهِ حَرَّمَ الْفواحِشَ. (अला वा इन्नल्लाह हर्रमा अल हराम व हद्दा अल हुदूद वमा अहदुन अग़यर मिनल्लाह व मिन ग़ैरतेही हर्रमा अल फ़वाहिश) अनुवाद: ध्यान रखें कि भगवान ने मोहर्रेमात को हराम किया है और सीमाएं (हुदूद) स्थापित की हैं, और कोई भी भगवान से अधिक ग़ैरत वाला नहीं है, जिसने ग़ैरत से बुराइयों को हराम किया है।
प्रकार और उदाहरण
न्यायविद् मुल्ला अहमद नराक़ी ने अपनी पुस्तक मेराज अल सआदत में महिलाओं के प्रति ग़ैरत के अलावा धर्म, प्रतिष्ठा और धन के बारे में भी ग़ैरत को व्यक्त किया है। नराक़ी के अनुसार, विश्वासियों (मोमेनीन) को अपने परिवार की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए और उन मामलों के बारे में लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए जो फ़साद का कारण बनते हों।[७] नराक़ी ने अम्र बिल मारुफ़ व नही अज़ मुन्कर को ग़ैरत के उदाहरण के रूप में माना है।[८]
हुसैन मज़ाहेरी, शिया मराजे ए तक़लीद में से एक ने, व्यक्तिगत ग़ैरत के अलावा, हदीसों के आधार पर, ग़ैरत के अन्य मामलों का भी उल्लेख किया है; उनमें से, सार्वजनिक और सामाजिक ग़ैरत, सभी महिलाओं के प्रति समाज के पुरुषों की ग़ैरत के अर्थ में,[९] मातृभूमि और भूमि के लिए ग़ैरत, मातृभूमि से प्यार करने और इसे विकसित करने की कोशिश करने के अर्थ में,[१०] और इस्लाम की पवित्रता की रक्षा के अर्थ में धार्मिक ग़ैरत।[११]
हदीसों में बेग़ैरती के कारणों का उल्लेख किया गया है; उनमें महरम और ग़ैर महरम का मिश्रण,[१२] हराम संगीत,[१३] ग़ैर महरम को देखना,[१४] शराब पीना,[१५] और सूअर का मांस खाना शामिल है।[१६]
ग़ैरत का प्रभाव
मासूमीन की हदीसों के आधार पर ग़ैरत के प्रभाव और लाभ का उल्लेख किया गया है; जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
- इफ़्फ़त और पाकदामनी: ऐसा कहा गया है कि यदि कोई अपनी महिलाओं का सम्मान करता है और उसके प्रति ग़ैरत भी रखता है, तो वह स्वयं को दूसरों की महिलाओँ पर नज़र डालने की अनुमति नहीं देगा।[१७] इस मामले में इमाम अली (अ) की एक हदीस का हवाला दिया गया है: ما زنیٰ غیورٌ قطُّ؛ (मा ज़ेना ग़य्यूर क़त्तुन) ग़ैरतमंद व्यक्ति कभी भी व्यभिचार (ज़ेना) नहीं करता है।[१८]
- फ़साद की रोकथाम: जितना ग़ैरत की कमी और उदासीनता को फ़साद की नींव माना गया है, उतना ही ग़ैरत और संवेदनशीलता को भी फ़साद के विरुद्ध निवारक माना गया है।[१९]
- पारिवारिक स्थिरता: ग़ैरत को पारिवारिक स्थिरता और सुदृढ़ीकरण का कारण माना जाता है; क्योंकि ग़ैरत पुरुषों वाले समाज में, उपद्रवी और मनमौजी लोग सुरक्षित नहीं होते और पाकदामन लड़कियाँ और महिलाएँ समाज में अमन महसूस करती हैं।[२०]
अत्यधिक ग़ैरत
मासूमीन द्वारा वर्णित हदीसों के अनुसार, बेवजह ग़ैरत, महिलाओं के बारे में पुरुषों के संदेह और बहाना बनाने से मना किया गया है; क्योंकि इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है और फ़साद का कारण बनता है।[२१] इस संबंध में, इमाम अली (अ) का अपने बेटे इमाम हसन (अ) को लिखे गए पत्र का हवाला दिया गया है: ग़लत स्थिति में ग़ैरतमंद होने से बचें, क्योंकि बेवजह की ग़ैरत, यह पवित्र (पाक) महिलाओं को अपवित्रता (ना पाकी) की ओर और निर्दोषों (बेगुनाह) को अपवित्रता (गुनाह) की ओर ले जाती है।[२२]
इसके अलावा, इमाम सादिक़ (अ) की एक रिवायत में, वैध (हलाल) मामलों में ग़ैरत से मना किया गया है: لا غیرة فی الحلال (ला ग़ैरत फ़ी अल हलाल)।[२३]
मोनोग्राफ़ी
ग़ैरत के विषय पर पुस्तकें और मोनोग्राफ प्रकाशित हुए हैं; जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
- गौहरे ग़ैरत, फ़ातिमा आज़मी, मरकज़े हिफ़्ज़े आसार व नशर अर्ज़िशहा ए देफ़ा ए मुक़द्दस, इस्फ़हान, 1390 शम्सी।
- मक़ामे ग़ैरत दर अख़्लाक़ व इरफ़ाने इस्लामी, अली अकबर इफ़्तेख़ारीफ़र, प्रकाशक, अस्र मॉडर्न, 1394 शम्सी।
- ग़ैरत दर मकतबे इतरत, फ़रीद नजफ़निया, प्रकाशक, उस्वा, 1394 शम्सी।
- ग़ैरते हुसैनी व ग़ैरते ज़ैनबी, मोहम्मद हसन वकीली, प्रकाशक, मोअस्सास ए मुतालेआत राहबुर्दी उलूम व मआरिफ़े इस्लाम, 1395 शम्सी।
- राबेत ए ग़ैरते दीनी बा अम्र बे मारूफ़ व नही अज़ मुन्कर, रज़ा अली कर्मी, क़लमगाह पब्लिशिंग हाउस, 1393 शम्सी।
फ़ुटनोट
- ↑ नराक़ी, जामेअ अल सआदत, 1381 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 266; तबातबाई, अल-मीज़ान, 1374 शम्सी, खंड 4, पृष्ठ 280।
- ↑ मकारिम शिराज़ी, अख़्लाक़ दर क़ुरआन, 1380 शम्सी, खंड 3, पृष्ठ 431।
- ↑ मकारिम शिराज़ी, अख़्लाक़ दर क़ुरआन, 1380 शम्सी, पृष्ठ 433 और 434।
- ↑ कुलैनी, उसूले काफ़ी, 1401, खंड 8, पृष्ठ 372।
- ↑ नहज अल बलाग़ा, सुब्ही सालेह द्वारा संपादित, हिकमत 305, पृष्ठ 529।
- ↑ शेख़ हुर्रे आमोली, वसाएल अल शिया, 1414 हिजरी, खंड 20, पृष्ठ 235।
- ↑ नराक़ी, मेराज अल सआदत, जावेदान प्रकाशन, पृष्ठ 152-153।
- ↑ नराक़ी, मेराज अल सआदत, जावेदान प्रकाशन, पृष्ठ 152-153।
- ↑ मज़ाहेरी, मारेफ़ते नफ़्स, 1394 शम्सी, खंड 3, पृष्ठ 135।
- ↑ मज़ाहेरी, मारेफ़ते नफ़्स, 1394 शम्सी, खंड 3, पृष्ठ 137।
- ↑ मज़ाहेरी, मारेफ़ते नफ़्स, 1394 शम्सी, खंड 3, पृष्ठ 138।
- ↑ शेख़ हुर्रे आमोली, वसाएल अल शिया, खंड 14, पृष्ठ 174।
- ↑ शेख़ हुर्रे आमोली, वसाएल अल शिया, किताबे तेजारत, अध्याय 100, 1414 हिजरी, खंड 12, पृष्ठ 232, हदीस1; कुलैनी, उसूले काफ़ी, 1401 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 655, पृष्ठ 14।
- ↑ नूरी, मुस्तद्रक अल वसाएल, 1408 हिजरी, खंड 14, पृष्ठ 268।
- ↑ शेख़ हुर्रे आमोली, वसाएल अल शिया, 1414 हिजरी, खंड 17, पृष्ठ 253।
- ↑ बोरोजर्दी, तफ़सीर जामेअ, 1366 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 156।
- ↑ अकबरी, ग़ैरतमंदी व आसीबहा, 1390 शम्सी, पृष्ठ 38।
- ↑ नहज अल बलाग़ा, सुब्ही सालेह द्वारा संपादित, हिकमत 305, पृष्ठ 529।
- ↑ अकबरी, ग़ैरतमंदी व आसीबहा, 1390 शम्सी, पृष्ठ 38।
- ↑ अकबरी, ग़ैरतमंदी व आसीबहा, 1390 शम्सी, पृष्ठ 40-41।
- ↑ आमदी, ग़ेरर अल हेकम व दोरर अल-कलम, 1410 हिजरी, 2704 एच, पृष्ठ 169; जज़ाएरी, दुरूसे अख़्लाक़े इस्लामी, 1388 शम्सी, पृष्ठ 163।
- ↑ आमदी, ग़ेरर अल हेकम व दोरर अल-कलम, 1410 हिजरी, 2704 एच, पृष्ठ 169।
- ↑ अब्दूस, बीस्त व पंज अस्ल अज़ उसूले अख़्लाक़ी इमामान, 1377 शम्सी, पृष्ठ 313।
स्रोत
- अकबरी, महमूद, ग़ैरतमंदी व आसीबहा, क़ुम, फतयान, 1390 शम्सी।
- बोरोजेर्दी, सय्यद मोहम्मद इब्राहीम, तफ़सीरे जामेअ, तेहरान, सद्र प्रकाशन, 1366 शम्सी।
- जज़ायेरी (अल-गफूर), मोहम्मद अली, दुरूसे अख़्लाक़े इस्लामी, क़ुम, क़ुम सेमिनरी मैनेजमेंट सेंटर, 1388 शम्सी।
- हुर्रे आमोली, मुहम्मद बिन हसन, वसाएल अल शिया, क़ुम, आले-अल-बैत, 1414 हिजरी।
- तबातबाई, सय्यद मोहम्मद हुसैन, अल-मीज़ान फ़ी तफ़सीर अल-कुरआन, मोहम्मद बाक़िर मूसवी द्वारा अनुवादित, क़ुम, इस्लामिक पब्लिशिंग हाउस, पांचवां संस्करण, 1374 शम्सी।
- कुलैनी, मुहम्मद बिन याक़ूब, अल-काफ़ी, अली अकबर ग़फ़्फ़ारी द्वारा शोध, बेरूत 1401 हिजरी।
- मकारिम शिराज़ी, नासिर, अख़्लाक़ दर कुरआन, क़ुम, मदरसा इमाम अली इब्ने अबी तालिब (अ), 1387 शम्सी।
- नराक़ी, अहमद, मेराज अल सआदत, क़ुम, हिजरत, 1377।
- नराक़ी, महदी बिन अबी ज़र, इल्मे अख़्लाक़े इस्लामी: जामेअ अल सआदात का अनुवाद, जलालुद्दीन मुज्तबवी द्वारा अनुवादित, तेहरान, 1381 शम्सी।
- नूरी, मिर्ज़ा हुसैन, मुस्तद्रक अल वसाएल, बैरूत, आले अल बैत ले एहिया अल तोरास फाउंडेशन, 1408 हिजरी।
- नहज अल बलाग़ा, सुब्ही सालेह द्वारा संशोधित, बेरूत, दार अल-किताब अल-लेबनानी, 1980 ईस्वी।
- नहज अल फ़साहा, पैग़म्बर के शब्द, अबुल कासिम पायंदेह द्वारा लिखित, अब्दुल रसूल पैमानी और मोहम्मद अमीन शरियती द्वारा संशोधित और संपादित, इस्फ़हान, ख़ातम अल अंबिया, 1383 शम्सी।