तपस्या
तपस्या या आत्म संयम (अरबीः رياضة النفس) आत्मा को शुद्ध करने के लिए कष्टों को सहना, सांसारिख आनंद को त्यागना और इबादत करने को कहा जाता है, जिसे कुछ रहस्यमय ग्रंथों में जिहाद अकबर के रूप में वर्णित किया गया है और इस्लाम द्वारा इसकी सिफारिश की गई है। कम खाना, रात को जागना, कम बोलना और एकान्तवास तपस्या के आधार माने गये हैं।
परोपकार, बहादुरी, ग़ैरत और ईश्वर के प्रति समर्पण तपस्या के परिणाम हैं। इस्लाम मे इसकी सिफारिश की गई है लेकिन तपस्या के अवैध तरीको जैसे मठवाद से रोका गया है।
मुल्ला सदरा सही मारफ़त और धार्मिक पूजा पर पूर्ण रूप से व्यवहारिक हुए बिना तपस्या शुरू करने को भ्रामक मानते है।
परिभाषा
मजमा अल-बहरैन में तुरैही ने जानवरों की आत्मा को वासना और क्रोध से और मानवी नफ़्से नातेक़ा को नैतिक दोषों से दूषित होने से रोकने के लिए तपस्या कहा है।[१] तपस्या या आत्म संयम आत्मा को शुद्ध करने के लिए कष्टों को सहना, सांसारिख आनंद को त्यागना और इबादत करने को कहा जाता है,[२] जिसकी पवित्र क़ुरआन की आयतों और मासूमीन की रिवायतो मे सिफारिश हुई है।[३]
रहस्यमय कार्यों (इरफ़ानी मुतून) में, तपस्या के विभिन्न अर्थ सामने आए हैं;[४] जिसमें भगवान के लिए अपनी वाणी, कार्यों और इरादों को शुद्ध करने के लिए आत्मा को प्रशिक्षित करना शामिल है।[५] तपस्या को जिहाद अकबर भी माना गया है, और इसके आधार कम खाना, रातो को जागना, कम बोलना और एकान्तवास बताए गए है।[६]
प्रभाव और परिणाम
" وَ إِنَّما هِي نَفْسِي أَرُوْضُهَا بِالتَّقْوَى لِتَأْتِيَ آمِنَةً يَوْمَ الْخَوْفِ الْأَكْبَرِ، وَ تَثْبُتَ عَلَى جَوَانِبِ الْمَزْلَقِ व इन्नमा हेया नफ़्सी अरूज़ोहा बित्तक़्वा लेयातेया आमेतन यौमल ख़ौफ़िल अकबरे, व तस्बोता अला जवानेबिल मज़लके "
अनुवादः मैं आत्मा को धर्मपरायणता के साथ प्रशिक्षित और वश में करूंगा। ताकि उस भयभीत दिन मे सुरक्षा के साथ पुनरुत्थान के दृश्य में प्रवेश करूं, जहां हर कोई फिसल जाता है, वहा दृढ़ और अटल रहूं।
कंजूसी, ईर्ष्या (हसद), अहंकार, संसार के प्रति लालच का उन्मूलन तपस्या के परिणाम जाने जाते है;[७] परोपकार, बहादुरी, ग़ैरत, ईश्वर के प्रति समर्पण और विनम्रता जैसे वांछनीय गुणों को प्राप्त करना भी इसके प्रभाव और बरकात है।[८]
पवित्र क़ुरआन की कुछ आयतों को तपस्या की ओर इशारा माना जाता है;[९] जिसमें सूर ए नाज़ेआत की 40 और 41 नम्बर की आयतें शामिल हैं, जिनके अनुसार, जो कोई अपने ईश्वर से डरता है और स्वंय को आत्मा की हवा से रोकता है, उसका निवास स्वर्ग है।[१०] इमाम अली (अ) को यह कहते हुए भी सुना गया है कि जो कोई अपनी आत्मा को तपस्या के माध्यम से संयमित रखेगा पुनरुत्थान के दिन उसे इसका लाभ मिलेगा।[११]
प्रतिबंधित मवारिद
अवैध तरीकों से होने वाली तपस्या की इस्लाम मे प्रतिबंधित है[१२] और इसलिए मठवाद को, जिसका अर्थ दुनिया छोड़ना है[१३] इस्लाम मे निषिद्ध बताया गया है।[१४]
मुल्ला सदरा सही मारफ़त और धार्मिक पूजा पर पूर्ण रूप से व्यवहारिक हुए बिना तपस्या शुरू करने को भ्रामक मानते है।[१५] इसके आधार पर उनका मानना है कि जब तक धार्मिक पूजा में कमी हो, तब तक बुद्धिमान पूजा (हकीमाना इबादत) और धार्मिक तपस्या के लिए कोई जगह नहीं है। क्योंकि यह स्वयं के विनाश और दूसरों के विनाश की ओर ले जाता है।[१६] وَ إِنَّما هِي نَفْسِي أَرُوْضُهَا بِالتَّقْوَى لِتَأْتِيَ آمِنَةً يَوْمَ الْخَوْفِ الْأَكْبَرِ، وَ تَثْبُتَ عَلَى جَوَانِبِ الْمَزْلَقِ व इन्नमा हेया नफ़्सी अरूज़ोहा बित्तक़्वा लेयातेया आमेतन यौमल ख़ौफ़िल अकबरे, व तस्बोता अला जवानेबिल मज़लके अनुवादः मैं आत्मा को धर्मपरायणता के साथ प्रशिक्षित और वश में करूंगा। ताकि उस भयभीत दिन मे सुरक्षा के साथ पुनरुत्थान के दृश्य में प्रवेश करूं, जहां हर कोई फिसल जाता है, वहा दृढ़ और अटल रहूं।
फ़ुटनोट
- ↑ तुरैही, मजमा अल बहरैन, भाग 2, पेज 251
- ↑ अनवरी, फ़रहंग बुज़ुर्ग सुख़न, 1390 शम्सी, भाग 4, पेज 3767
- ↑ मजमूआ नवीसंदेगान, फ़रहंग फ़िक़्ह, 1389 शम्सी, भाग 4, पेज 213
- ↑ देखेः ख़ातेमी, आईना मकारिम, 1368 शम्सी, भाग 1, पेज 140; गौहरीन, शरह इस्तेलाहात तसव्वुफ़, 1380 शम्सी, भाग 6, पेज 142-143
- ↑ अल क़ासानी, शरह मनाज़िल अल साएरीन, 1385 शम्सी, पेज 218
- ↑ मूसवी तबरेज़ी, मुकद्दा बर इरफ़ान अम्ली, 1378 शम्सी, पेज 247
- ↑ मजमुआ नविसंगेदान, फ़रहंग फ़िक़्ह, 1389 शम्सी, भाग 4, पेज 213
- ↑ मजमुआ नविसंगेदान, फ़रहंग फ़िक़्ह, 1389 शम्सी, भाग 4, पेज 213
- ↑ नसीरुद्दीन तूसी, औसाफ़ अल अशराफ़, 1369 शम्सी, पेज 35
- ↑ सूर ए नाज़ेआत, आयतन न 40-41 बर असासे तरज़ुमा मकारिम शिराज़ी
- ↑ मन इस्तदामा रियाजते नफ़सहू इन्तफ़आ (आमदी, ग़ेररुल हिकम, 1410 हिजरी, पेज 608, हदीस 660)
- ↑ गुलपाएगानी, इरशाद अल साइल, 1413 हिजरी, पेज 197
- ↑ अनवरी, फ़रहंग बुज़ुर्ग सुखन, 1390 शम्सी, भाग 4, पेज 3460, इस्लाम मे निषिद्ध बताया गया है।मजमुआ नविसंगेदान, फ़रहंग फ़िक़्ह, 1389 शम्सी, भाग 4, पेज 213
- ↑ मजमुआ नविसंगेदान, फ़रहंग फ़िक़्ह, 1389 शम्सी, भाग 4, पेज 213
- ↑ सदरुद्दीन शिराज़ी, कसर अस्नाम अल जाहेलीया, 1381 शम्सी, पेज 35
- ↑ सदरुद्दीन शिराज़ी, कसर अस्नाम अल जाहेलीया, 1381 शम्सी, पेज 38
स्रोत
- आमदी, अब्दुल वाहिद बिन मुहम्मद, ग़ेररुल हिकम व दुरर अल कलिम, संशोधनः महदी रजाई, क़ुम, दार अल कुतुब अल इस्लामी, 1410 हिजरी
- अनवरी, हसन, फ़रहंग बुज़ुर्ग सुख़न, तेहरान, सुख़्न, 1390 शम्सी
- ख़ातेमी, रुहुल्लाह, आईना मकारिमः शरह दुआ मकारिम अल अख़लाक़ इमाम सज्जाद (अ), तेहारन, ज़ुलाल, 1368 शम्सी
- सदरुद्दीन शिराज़ी, मुहम्मद बिन इब्राहीम, कसर अस्नाम अल जाहेलीया, संशोधन व शोधः मुकद्दमा मोहसिन जहानगीर, बा अशराफ़ सय्यद मुहम्मद ख़ामेनई, तेहरान, बुनयाद हिकमत इस्लामी सदरा, 1381 शम्सी
- तुरैही, फ़ख़्रुद्दीन, मजमा अल बहरैन
- फ़्यूमी, अहमद बिन मुहम्मद, अल मिस्बाह अल मुनीर, शोधकर्ताः यूसुफ़ अल शेख मुहम्मद, अल नाशिरः अल मकतब अल अस्रीया, बैरुत, दूसरा संस्करण, 1418 हिजरी
- अल क़ासानी, अब्दुर रज़्ज़ाक़, शरह मनाज़िल अल साएरीन ख़ाज़ा अब्दुल्लाह अंसारी, शोधः मोहसिन बेदार फ़र, क़ुम, 1385 शम्सी
- गुलपाएगानी, मुहम्मद रज़ा, इरशाद अल साइल, बैरुत, दार अल सफवा, 1413 हिजरी
- गौहरीन, सादिक, शरह इस्तेलाहात तसव्वुफ़, तेहरान, जव्वार, 1380 शम्सी
- मजमूआ नवीसंदेगान, फ़रहंग फ़िक़्ह, मुताबिक़ मज़हब अहले-बैत (अ), महमूद हाश्मी शाहरूदी की देख रेख, भाग 4, क़ुम, मोअस्सेसा दाएरातुल मआरिफ़ फ़िक़्ह इस्लामी बर मज़हब अहले-बैत (अ), 1389 शम्सी
- मूसवी तबरेजी, मोहसिन, मुकद्दामेई बर इरफ़ान व तहारत नफ़्स व शनाख़्त इंसान कामिल, तेहरान, मोअस्सेसा फ़रहंगी नूर अला नूर, 1387 शम्सी
- नसीरुद्दीन तूसी, मुहम्मद बिन मुहम्मद, औसाफ अल अशराफ़, संशोधन व तंज़ीन व शोध महदी शम्सुद्दीन, तेहरान, वज़ारत फ़रहंग व इरशाद इस्लामी, 1369 शम्सी
- मकारिम शिराज़ी, नासिर, नहज अल बलाग़ा बा तरजुमा फ़ारसी रवान, तहय्या व तंज़ीम मुहम्मद जाफ़र आश्तियानी, जाफ़र इमामी, नाशिरः मदरसा अल इमाम अली इब्न अबी तालिब (अ), क़ुम, 1384 शम्सी